ALLAH ki zaat o sifat ke bare me kaisa aqeeda hona chahiye

ALLAH ki zaat o sifat ke bare me kaisa aqeeda hona chahiye

अल्लाह की जात और सिफात के बारे में कैसा अकीदा होना चाहिए

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ALLAH KI ZAAT AUR SIFAT KE BAARE ME AQEEDE 

ALLAH ek hai uska koi shareek nhi na zaat me na sifaat me na af'aal (kaamon) me na ahkaam (hukm dene) me na naamon me, 

woh WAAJIBUL WAJOOD hai yani (jiska har haal me moujood rahna zaroori ho) uska a'adam muhaal hai yani kisi zamaane me uski zaat moujood na hona namumkin hai, 

ALLAH " QADEEM " aur " AZALEE hai yani humesha se hai aur " ABDEE bhi hai yani woh humesha rahega use kabhi mout na aayegi, 

ALLAH T'LA hi is laaiq hai ki uski bandagi aur ibaadat ki jaye. 
AQEEDA :- ALLAH beparwaah hai kisi ka muhtaaj nhi aur saari duniya usi ki muhtaaj hai.

 AQEEDA :- ALLAH ki zaat ka idraak aql ke zariye muhaal hai yani aql us ki zaat ko samajhna mumkin nhi q ki jo cheez aql ke zariye se samajh aati hai aql usko apne ghere me le leti hai aur ALLAH ki shaan yeh hai ki koi cheez uski zaat ko gher nhi sakti, 

albatta ALLAH ke kaamon ke zariye se mukhtasar tour par uski sifaton aur fir
un sifaton ke zariye ALLAH T'ALA ki zaat pahchani jati hai.
 AQEEDA :- ALLAH T'ALA ki sifatein na ain hain na gair yani ALLAH T'ALA ki sifatein uski zaat nhi aur na sifatein uski zaat se alag ho sakein g ki woh sifatein aisi hain jo ALLAH ki zaat ko chahti hain aur uski zaat ke liye zaroori hain..
 isi silsile me dusri baat yeh bhi dhayaan rakhne ki hai ki ALLAH ko sifatein kai hain aur alag hain aur har sifat ka matlab bhi alag hai, mutraadifain nhi, 
is liye sifatein aine zaat nhi họ sakti aur sifatein gaire zaat is liye nhi hain ki gair zaat maanne ki soorat me 2 baatein ho sakti hain. 
yaa to sifatein QADEEM hongi yaa HAASEED (jo kisi ke paida karne se paida hui yani makhlookh) agat QADEEM maante hai to kai QADEEM ko manna padhega jabki QADEEM sirf ek hi hai aur agar HASEED tasleem karte hain 
to yeh manna bhi zaroori hoga woh QADEEM zaat sifaton ke HAASEED hone yaa paida hone se pahle bagair sifaton ke thi aur yeh 2no baatein batil hain. 

is liye in mushkilon se bachne ke liye ahle sunnat ne woh mazhab ikhtiyaar kiya hai ki sifaate baari (ALLAH T'ALA ki sifatein) na to aine zaat hain aur na gaire zaat balki sifatein us zaat ko laazim hain kisi haal
me us se juda nhi aur zaate BAAREE T'ALA apni har sifat ke sath AZALEE, ABADEE, aua QADEEM hai..
 AQEEDA :- jis tarah ALLAH T'ALA ki zaat QADEEM, AZALEE, aur ABADEE hai usi tarah uski sifatein bhi QADEEM, AZALEE, ABADEE hain. 

AQEEDA :- ALLAH ki koi bhi sifat makhlooq nhi na zere Qudrat dakhil. AQEEDA :- ALLAH ki zaat aur sifaat ke alawa sab cheezein HAASEED yani pahle na thi ab moulood hai.

 AQEEDA :- jo ALLAH ki sifaton ko makhlooq kahe ya HAASEED bataye woh gumrah aur baddeen hai.

 AQEEDA :- jo aalam me kisi cheez ko khud se maane yaa uske Haaseed hone me shak kare woh kafır hai.

 AQEEDA :- ALLAH T'ALA na kisi ka baap hai aur na hi kisi ka beta aur na uske liye koi biwi, agar koi ALLAH ke liye baap, beta yaa biwi bataye woh kafir hai balki jo mumkin bhi bataye gumrah baddeen hai. 

AQEEDA :- ALLAH T'ALA HAYY (amar) hai yani zinda hai jise kabhi mout na aayegi, sabki zindagi usi ke hath me hai woh jise chahe zindagi de aur jab chahe mout de de. [BAHARE SHARI'AT]

अल्लाह पाक के बारे में चालीस 40 अकाईद 

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allah ke  sifton ka bayan अल्लाह की जात और उसकी सिफतों का बयान तफ्सील से पढ़

 (1) अल्लाह पाक एक है उसका कोई शरीक ( हिस्सेदार ) नहीं ना जात में ना सिफात ( खूबियों ) में ना अफआल ( कामों ) में ना अहकाम में ना असमा ( नामों ) में ।

(2) अल्लाह पाक बे परवाह है किसी का मोहताज नहीं और तमाम जहाँ उसका मोहताज है । 

(3) अल्लाह पाक की ज़ात और सिफात के सिवा सब चीजें हादिस हैं , यानी पहले ना थी फिर मौजूद हुई ।

(4) अल्लाह पाक कदीम है यानी हमेशा से है , बाकी है , हमेशा रहेगा , अज़ली है ( हमेशा से है ) अबदी है ( हमेशा रहेगा ) । 

(5) अल्लाह ना किसी का बाप है , ना बेटा है , ना उसकी कोई बीवी है । 

(6) अल्लाह पाक हय्य है यानी वोह खुद से जिन्दा है और सबकी ज़िन्दगी उसके दस्ते कुदरत ( हाथ ) में है , जिसे जब चाहे जिन्दा करे जिसे जब चाहे मौत दे ।

(7) अल्लाह पाक हर मुमकिन पर कादिर है कोई भी मुमकिन उस की कुदरत से बाहर नहीं है । 

(8) अल्लाह पाक हर कमाल और खूबियों का जामेअ ( उस में मौजूद ) है , और हर वोह चीज़ जिसमें ऐब और नुकसान हो पाक है ।

(9) अल्लाह पाक हर चीज़ को देखता और सुनता है और कलाम ( बात ) फ़रमाता है , लेकिन उसका देखना आँख से नहीं , उसका सुनना कान से नहीं और कलाम करना ज़बान से नहीं है क्योंकि आँख , कान , ज़बान , यह सब अजसाम ( जिस्म ) हैं और अल्लाह पाक जिस्म से पाक हैं 

(10) अल्लाह पाक का कलाम ( बात करना ) आवाज़ से पाक है । 

(11) अल्लाह पाक का इल्म हर चीज़ को मुहीत ( घेरे हुए ) है , हर शय को वह अज़ल से जानता है यानी हमेशा से जानता है और हमेशा जानेगा , उस के इल्म कि कोई इंतेहा नहीं । 

(12) अल्लाह पाक ज़ाहिर और पोशीदा ( छुपा हुआ ) सबको जानता है । इल्मे जाती ( वो इल्म जो किसी ने नहीं दिया , खुद उसका है ) उसका खास्सा ( सिर्फ उसी के लिए ) है । 

(13) अल्लाह पाक ही हर शय का खालिक ( पैदा करने वाला है ) सब उसी के पैदा किए हुए हैं । 

(14) अल्लाह पाक ही हकीकत में रोज़ी पहुँचाने वाला है , फरिश्ते वगैरह सब वसीला और ज़रिया हैं । 

(15) अल्लाह पाक ने हर भलाई और बुराई को अपने इल्मे अज़ली के मुवाफ़िक ( मुताबिक ) मुकद्दर फरमा दिया है जैसा होने वाला था और जो जैसा करने वाला था अपने इल्म से जाना और वही लिख लिया , तो यह नहीं है के जैसा उसने लिखा हम को करना पड़ता है बल्कि जैसा हम करने वाले थे वैसा उसने लिख दिया ।

(16) अल्लाह पाक ( सम्त , दिशा ) , मकान ( जगह ) , जमान ( वक्त ) , हरकत ( हिलना ) , सुकून ( ठहरा रहना ) , शक्ल व सूरत और तमाम फना होने वाली बातों से पाक है , लिहाज़ा अल्लाह पाक ऊपर है या नीचे है नहीं कह सकते । 

(17) दुनिया की ज़िन्दगी में अल्लाह पाक का दीदार नबी - ए - पाक स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम के साथ खास है और आख़िरत में हर सुन्नी मुसलमान के लिए मुमकिन बल्कि वाकेअ होगा । 

(18) अल्लाह पाक का दीदार बिला कैफ है , यानी देखेंगे लेकिन यह नहीं कह सकते कैसे देखेंगे । 

(19) अल्लाह पाक जो चाहे और जैसा चाहे करे किसी को उस पर काबू नहीं और ना कोई उसके इरादे से उसे बाज़ रखने ( रोकने ) वाला । 

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(20) अल्लाह पाक के हर काम में कसीर ( बहुत ) हिकमतें हैं चाहे हमें मालूम हों या ना हों । 

(21) अल्लाह पाक नींद और ऊँघ से पाक है उसे कभी नींद और ऊँघ नहीं आ सकती । 

(22) अल्लाह पाक ही तमाम आलम ( काएनात ) का पालने वाला 

(23) अल्लाह पाक जो कुछ करता है या करेगा सब अदल व इन्साफ है , जुल्म ( अत्याचार ) से अल्लाह पाक पाको साफ है । 

(24) अल्लाह पाक की मशीयत ( चाहने ) और इरादे के बगैर कुछ भी नहीं हो सकता ।

(25) अल्लाह पाक की रहमत है के वह ऐसे काम का हुक्म नहीं फरमाता जो बन्दे की ताकत और कुदरत से बाहर हो । 

(26) अल्लाह पाक मालिक अलल इतलाक है , जो चाहे करे जो चाहे हुक्म दे । 

(27) अल्लाह पाक पर अज़ाब या सवाब देना या बन्दे से मेहरबानी वाला सुलूक करना या वोह करना जो बन्दे के हक में बेहतर हो कुछ भी वाजिब ( ज़रूरी ) नहीं है । 

(28) अल्लाह पाक के वादा और वईद बदलते नहीं हैं , यानी जिस अच्छे काम पर सवाब देने का वादा किया हो या जिस बुरे काम पर अज़ाब की वईद फरमाई हो बदलते नहीं हैं । 

(29) अल्लाह पाक थकने और उकताने से पाक है । 

(30) अल्लाह पाक ही के दस्ते कुदरत में नफा ( फाएदा ) और ज़रर ( नुकसान ) है । 

(31) अल्लाह पाक दिलों के खतरों ( खयालों ) और वस्वसों पर भी ख़बरदार है ( यानी हर खबर रखता है ) । 

(32) अल्लाह पाक वाजिबुल वुजूद हैं , यानी उसका होना ज़रूरी और ना होना मुहाल ( नामुमकिन ) है । 

(33) अल्लाह पाक ही इस बात का मुस्तहिक है और लायक है के उसकी इबादत और परसतिश ( पूजा ) की जाए । 

(34) अल्लाह पाक की ज़ात जिस तरह कदीम है यानी हमेशा से है और हमेशा रहेगी , इसी तरह अल्लाह पाक की सिफतें ( खूबियां ) भी क़दीम हैं अज़ली हैं अबदी हैं यानी हमेशा से हैं और हमेशा रहेंगी ।

(35) जो चीज़ मुहाल ( नामुमकिन ) है अल्लाह पाक इस से पाक है के उस की कुदरत उसे शामिल हो ( मुहाल उसे कहते हैं जो मौजूद ना हो सकें ) । 

(36) अल्लाह पाक की ज़ात हर उस चीज़ से भी पाक है जिस में ना कमाल हो ना नुकसान हो । 

(37) अल्लाह पाक हर पस्त से पस्त ( धीमी से धीमी ) आवाज़ को सुनता है और हर बारीक से बारीक शय ( चीज़ ) को देखता है । 

(38) अल्लाह पाक का फना ( खत्म ) होना मुमकिन नहीं है । 

(39) अल्लाह पाक की जात का इदराक ( जानना ) अकलन मुहाल हैं यानी हम अल्लाह पाक की जात को अपने अक्ल से नहीं जान सकते , अक्ल से उस की ज़ात को नहीं समझ सकते ।

 

(40) अल्लाह पाक की ज़ात और उसकी सिफात के अलावा बाकी सब कुछ आलम ( काएनात ) है , और जो शख्स आलम को कदीम ( यानी हमेशा से है और हमेशा रहेगा ) माने या फिर आलम के हादिस ( नया पैदा होने वाला ) होने में शक करे काफ़िर है ।


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