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azan ka bayan अजा़न वा इकामत का बयान
अल्लाह पाक इरशाद फरमाता है
व अम्मन अहसनू कौउलन मिम्मन द अ अन इलल्लाहि अमिला स्वालिहन वा काला इन ननि मिनल मुस्लिमीन (पारह 17)
तर्जुमा :- उससे अच्छी किसकी बात जो अल्लाह के तरफ बुलाये और नेक काम करें और यह कहे मैं मुसलमान हूँ।
अमीरुल मोमिनीन फारूके आज़म और अब्दुल्लाह इब्ने जैद बिन अब्दे रब्बेही रदियल्लाहु तआला अन्हुमा को अज़ान ख्वाब में तालीम हुई । हुजूर अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया यह ख्वाब हक है और अब्दुल्ला इब्ने जैद रदिअल्लाहु तआला अनहु से फरमाया जाओ बिलाल को तलकीन करो वह अज़ान कहें कि वह तुम से ज़्यादा बलन्द आवाज़ हैं ।
इस हदीस को अबू दाऊद व तिर्मिज़ी व इब्ने माजा व दारमी ने रिवायत किया रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने बिलाल रदिअल्लाहु तआला अन्हु को हुक्म फ़रमाया कि अज़ान के वक्त कानों में उँगलियाँ कर लो कि इसके सबब आवाज़ बलन्द होगी ।
इस हदीस को इबने माजा ने अब्दुर्रहमान इब्ने सअद रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत किया अज़ान कहने की बड़ी फजीलतें हदीसों में आई हैं , बअज़ फ़ज़ाइल ज़िक्र किए जाते हैं ।
azan ka bayan अजान का बयान
हदीस नम्बर .1 :-
मुस्लिम व अहमद व इब्ने माजा हजरत मुआविया . रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी हैं कि फरमाते हैं नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम मुअज्जिनों की गर्दनें कयामत के दिन सबसे ज़्यादा दराज़ होंगी ।
अल्लामा अब्दुर्रऊफ मनादी तफ्सीर में फरमाते हैं यह हदीस मुतावातिर है और हदीस के मअना यह बयान फ़रमाते हैं कि मुअज्जिन रहमते इलाही के बहुत उम्मीदवार होंगे कि जिसको जिस चीज़ की उम्मीद होती है उसकी तरफ गर्दन दराज़ करता है
या उसके यह माअना है उनको सवाब बहुत है और बाज़ों ने कहा कि इससे यह इशारा है कि शर्मिन्दा न होंगे , इसलिए कि जो शर्मिन्दा होता है , उसकी गर्दन झुक जाती है ।
हदीस नम्बर .2 :-
इमाम अहमद अबू हुरैरा रदिअल्लाहु तआला अन्हु से रावी है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं कि मुअज्जिन की जहाँ तक आवाज़ पहुँचती है उसके लिए मगफिरत कर दी जाती है और हर तर व खुश्क जिसने उसकी आवाज़ सुनी उसकी तस्दीक करता है और एक रिवायत में है हर तर व खुश्क जिसने आवाज़ सुनी उसके लिये गवाही देगा ।
दूसरे रिवायत में है हर ढेला और पत्थर उसके लिए गवाही देगा ।
हदीस नम्बर .3 :-
बुखारी व मुस्लिम व मालिक और अबू दाऊद अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी हैं कि फरमाते हैं हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जब अज़ान कही जाती है शैतान गोज़ मारता हुआ भागता है ( यानी आवाज़ के साथ हवा खारिज करता हुआ भागता हैं )
यहाँ तक कि अज़ान की आवाज़ उसे न पहुँचे ।
जब अज़ान पूरी हो जाती है चला आता है
फिर जब इकामत कही जाती है भाग जाता है जब पूरी हो लेती है आ जाता है और खतरा डालता है फलाँ बात याद कर फलाँ बात याद कर वह जो पहले याद न थी यहाँ तक कि आदमी को यह नहीं मालूम होता कि कितनी पढ़ी ।
हदीस नम्बर .4 :-
सहीह मुस्लिम में हजरत जाबिर रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी कि हुजूर फरमाते हैं शैतान जब अज़ान सुनता है इतनी दूर भागता है जैसे रौहा ( जगह का नाम ) और रौहा मदीने से छत्तीस मील के फासले पर है ।
हदीस नम्बर .5 :-
तबरानी इब्ने , उमर रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से रावी है कि फरमाते हैं हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम अज़ान देने वाला कि सवाब का तालिब है उस शहीद की मिस्ल है कि खून में आलूदा है और जब मरेगा कब में उसके बदन में कीड़े नहीं पड़ेंगे ।
हदीस नम्बर .6 :-
इमाम बुखारी अपनी तारीख में हजरत अनस रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी हैं कि फरमाते हैं हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जब मुअज्जिन अज़ान कहता है रब तआला अपना दस्ते कुदरत उसके सर पर रखता है और यूंँहीं रहता है
यहाँ तक कि अज़ान से फारिग हो और उसकी मगफिरत कर दी जाती है जहाँ तक आवाज़ पहुँचे जब वह फारिग हो जाता है रब तआला फरमाता है मेरे बन्दे ने सच कहा और तूने हक गवाही दी लिहाज़ा तुझे बशारत हो ।
हदीस नम्बर .7 : -
तबरानी सगीर में हजरत अनस रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी हैं कि फरमाते हैं हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जिस बस्ती में अज़ान कही जाये अल्लाह तआला अपने अज़ाब से उस दिन उसे अमान देता है ।
हदीस नम्बर .8 : -
तबरानी मअकल इब्ने यसार रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी है कि फरमाते हैं हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जिस कौम में सुबह को अज़ान हुई उनके लिए अल्लाह के अज़ाब से शाम तक अमान है और जिनमें शाम को अज़ान हुई उनके लिये अल्लाह के अज़ाब से सुबह तक अमान है ।
हदीस नम्बर .9 : -
अबू यअला मुसनद में उबई रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी है कि हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं मैं जन्नत में गया उसमें मोती के गुम्बद देखे उसकी खाक मुश्क की है ।
फरमया ऐ जिब्रील , यह किस के लिए है । अर्ज की हुजूर की उम्मत के मुअज्जिनों और इमामों के लिए है ।
हदीस नम्बर .10 : -
इमाम अहमद अबू सईद रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी हैं कि फरमाते हैं हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम अगर लोगों को मालूम होता कि अज़ान कहने में कितना सवाब है तो उस पर आपस में तलवार चलती ।
हदीस नम्बर .11 : -
तिर्मिज़ी व इब्ने माजा इब्ने अब्बास रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से रावी कि फरमाते हैं हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जिसने सात बरस सवाब के लिये अज़ान कही अल्लाह तआला उसके लिये नार से बराअत ( दोज़ख से आज़ादी ) लिख देगा ।
हदीस नम्बर .12 :
इब्ने माजा व हाकिम इब्ने उमर रदिअल्लाहु तआला अन्हु से रावी हैं और कि फरमाते है हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जिसने बारह बरस अज़ान कही उसके लिये जन्नत वाजिब हो गई और हर रोज़ उसकी अज़ान के बदले साठ नेकियाँ और इकामत ( नमाज़ से पहले कही जाने वाली तकबीर ) के बदले तीस नेकियाँ लिखी जायेंगी ।
हदीस नम्बर .13 : -
बैहकी की रिवायत सौबान रदिअल्लाहु तआला अन्हु से यूँ है कि फरमाते है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जिसने साल भर अज़ान पर मुहाफजत की यानी हमेशा अजान दी उसके लिए जन्नत वाजिब हो गई ।
हदीस नम्बर .14 : -
बैहकी ने अबू हुरैरा रदिअल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि फरमाते हैं रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जिसने पाँच नमाज़ों की अज़ान ईमान की बिना पर सवाब के लिये कही उसके जो गुनाह पहले हुए हैं माफ हो जायेंगे जो अपने साथियों की पाँच नमाज़ों में इमामत करे ईमान की बिना पर सवाब के लिए तो जो गुनाह पहले हुए मुआफ कर दिये जायेंगे ।
azan ka bayan अजान का बयान
हदीस नम्बर .15 :-
इब्ने असाकिर ने हजरत अनस रदिअल्लाहु तआला अन्हु से रावी हैं कि फरमाते है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जो साल भर अज़ान कहे और उस पर उजरत तलब न करे कयामत के दिन बुलाया जायेगा और जन्नत में दरवाजे पर खड़ा किया जायेगा और उस से कहा जायेगा जिस के लिए तू चाहे शफाअत कर ।
हदीस नम्बर .16 : -
खतीब व इब्ने असाकिर ने हजरत अनस रदिअल्लाहु तआला अन्हु से रावी हैं कि फरमाते हैं रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम मुअज्जिनों का हश्र यूँ होगा कि जन्नत की ऊँटनियों पर सवार होंगे उनके आगे बिलाल रदियल्लाहु तआला अन्हु होंगे सब के सब बलन्द आवाज़ से अज़ान कहते हुए आयेंगे लोग उनकी तरफ नज़र करेंगे और पूछंगे यह कौन लोग हैं ?
कहा जाएगा उम्मते मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के मुअज्जिन हैं
लोग खौफ में हैं और उनको खौफ नहीं लोग गम में है उनको गम नहीं ।
हदीस नम्बर .17 : -
अबुश्शैख ने हजरत अनस रदिअल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत करते हैं कि फरमाते हैं रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जब अज़ान कही जाती है आसमान के दरवाजे खोल दिये जाते हैं और दुआ कबूल होती है जब इकामत का वक्त होता है दुआ रद्द नहीं की जाती ।
अबू दाऊद व तिर्मिज़ी की रिवायत उन्हीं " से है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्ल्म ने फरमाया अजान व इकामत के दरमियान दुआ रद्द नहीं की जाती ।
हदीस नम्बर .18 : -
दारमी व अबू दाऊद ने सुहैल इब्ने सअद रदिअल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की हुजूरे अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं दो दुआयें रद्द नहीं होती या बहुत कम रह होती हैं अजान के वक्त और जिहाद की शिद्दत के वक्त ।
हदीस नम्बर .19 :
अबुश्शैख ने रिवायत की फरमाते हैं रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इब्ने अब्बास अजान ' को नमाज़ से तअल्लुक है तो तुम में कोई शख्स अज़ान न कहे मगर पाकी की हालत में ।
हदीस नम्बर .20 : -
तिर्मिज़ी , अबू हुरैरा रदिअल्लाहु तआला अन्हु से रावी हैं कि फरमाते हैं रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जिसका तर्जुमा ये है : - " कोई शख्स अज़ान न दे मगर बा - वुजू " । मतलब अजान देने के लिये वजू बना लें तब अजान दें
हदीस नम्बर .21 :-
बुखारी व अबू . दाऊद व तिर्मिज़ी व नसई व इब्ने माजा व अहमद हजरत जाबिर रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी हैं कि फरमाते हैं रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जो अजान सुनकर यह दुआ पढ़े उसके लिए मेरी शफाअत वाजिब हो गई । दुआ यह है :
अल्ला हुम्मा रब्बा हाजिद दावतित ताम्मति वस्सलातिल काइमति आति सय्यदना मोहम्मिदा निल वसीलता वलफदीलता वद दरा जतिररफीअह वबा असहू मकाम महमूदा निल्लजी व अत्तहु वरजुकना शफा अतहू य उमल कियामह इन्नका ला तुखलिफुल मिआद ,
तर्जुमा :- ऐ अल्लाह इस दुआए ताम और नमाज़ बरपा होने वाले के मालिक तू हमारे सरदार मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को वसीला और फजीलत और बलन्द दर्जा अता कर और उनको मकामे महमूद में खड़ा कर जिसका तूने वदा किया है बेशक तू वादे के खिलाफ नहीं करता ।
azan ka bayan अजान का बयान
हदीस नम्बर .22 : -
इमाम अहमद व मुस्लिम व अबू दाऊद व तिर्मिज़ी व नसई की रिवायत इब्ने उमर रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से है कि मुअज्ज़िन का जवाब दे फिर मुझ पर दुरूद पढ़े फ़िर वसीले का सवाल करे ।
हदीस नम्बर .23 : -
तबरानी की रिवायत में इब्ने अब्बास रदियल्लहु तआला अन्हुमा से यह भी है वजा अलना फी शफा अतही य उमल कियामह ।
तर्जमा : - " और कर दे हमको उनकी शफाअत में कयामत के दिन " ।
हदीस नम्बर .24 : -
तबरानी कबीर में कअब इब्ने अजरह रदिअल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत करते हैं कि हुजूर ने फरमाया जब तू अज़ान सुने तो अल्लाह के दाई ( अल्लाह की तरफ बुलाने वाले ) का जवाब दो ।
हदीस नम्बर .25 :-
इब्ने माजा अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि फरमाते हैं रसूलुल्लाहि सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जब मुअज्जिन को अज़ान कहते सुनो तो जो वह कहता हो तुम भी कहो ।
हदीस नम्बर .26 :-
फरमाते हैं रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम मोमिन को बदबख्ती व नामुरादी के लिए काफी है कि मुअज्जिन को तकबीर कहते सुने और जवाब न दे ।
हदीस नम्बर .27 : -
फरमाते हैं रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जुल्म है पूरा जुल्म और निफाक है यह कि अल्लाह के मुनादी ( ऐलान करने वाले ) को अज़ान कहते सुने और हाज़िर न हो यह दोनों हदीसें तबरानी ने हजरत मआज इब्ने अनस रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की । अज़ान के जवाब का निहायत अज़ीम सवाब है ।
हदीस नम्बर .28 :-
अबुश्शैख की रिवायत हजरत मुगीरा इब्ने शुएबा रदियल्लाहु तआला अन्हु से है उसकी मगफिरत हो जायेगी ।
हदीस नम्बर 29 :-
इब्ने असाकिर ने रिवायत की कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया ऐ गिरोहे ज़नान ( औरतों का गिरोह ) जब तुम बिलाल को अज़ान और इकामत कहते सुनो तो जिस तरह वह कहता है तुम भी कहो कि अल्लाह तआला तुम्हारे लिए हर कलिमे के बदले एक लाख नेकी लिखेगा और हज़ार दर्जे बलन्द फरमायेगा और हज़ार गुनाह मिटा देगा औरतों ने अर्ज की कि यह तो औरतों के लिए है मर्दों के लिए क्या है । फरमाया मदों के लिए दोगुना ।
हदीस नम्बर .30 : -
तबरानी की रिवायत हज़रते मोमिन रदिअल्लाहु तआला अन्हा से है कि औरतों के लिए हर कलिमे के मुकाबिल दस लाख दरजे बलंद किये जायेंगे । फारूके आजम रदियल्लाहु तआला अन्हु ने अर्ज की कि यह औरतों के लिए है मर्दो के लिए क्या है ? फरमाया मर्दों के लिए दोगुना ।
हदीस नम्बर .31 : -
हाकिम व अबू नईम हजरत अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि हुजूर ने फरमाया मुअज्जिन को नमाज़ पढ़ने वाले पर दो सौ बीस नेकी ज़्यादा हैं मगर वह जो उसके मिस्ल कहे और अगर इकामत कहे तो एक सौ चालीस नेकी हैं मगर वह जो उसके मिस्ल कहे ।
azan ka bayan अजान का बयान
हदीस नम्बर .32 : -
सहीह मुस्लिम में अमीरूल मोमिनीन हज़रत उमर रदिअल्लाहु तआला अन्हु से मरवी कि फरमाते है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम मुअज्जिन अज़ान दे तो जो शख्स उसके मिस्ल कहे और जब वह हय्याअलस्सलाह और हय्याअललफलाह ' कहे तो यह लाहौ - ला - वला कुव्वता इल्ला बिल्ला कहे जन्नत में दाखिल होगा ।
हदीस नम्बर . 33 : -
अबूदाऊद व तिर्मिज़ी व इब्ने माजा ने रिवायत की ज़ियाद इब्ने हारिस सुदाई रदियल्लाहु तआला अन्हु कहते हैं नमाजे फज्र में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने अज़ान कहने का मुझे हुक्म दिया । मैंने अज़ान कही बिलाल रदियल्लाहु तआला अन्हु ने इकामत कहना चाही फरमाया सुदाई ने अज़ान कही और जो अज़ान दे वही इकामत कहे । मसाइले फिकहिया अज़ान उर्फे शरअ में एक खास किस्म का एलान है जिसके लिए अलफाज़ मुकर्रर हैं । अज़ान के अलफाज़ यह हैं : अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर,अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर,
अशहदु अल्ला इलाहा इलल्लाह ,अशहदु अल्ला इलाहा इलल्लाह ,
अशहदु अन्ना मोहम्मदर रसूलुल्लाह ,अशहदु अन्ना मोहम्मदर रसूलुल्लाह ,
हय्याअलस्सलाह ,हय्याअलस्सलाह ,
हय्याअललफलाह ,हय्याअललफलाह ,
अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर,
ला इलाहा इलल्लाह
मसला : -
फर्ज पंजगाना ( यानी पाँचों वक्तों की नमाज़ ) कि उन्हीं में जुमा भी है जब जमाअते मुस्तहब्बा के साथ मस्जिद में वक्त पर अदा किए जायें तो उनके लिए अज़ान सुन्नते मुअक्कदा है और इसका हुक्म वाजिब की तरह है कि अगर अज़ान न कही तो वहाँ के सब लोग गुनाहगार यहाँ तक कि इमाम मुहम्मद रहमतुल्लाहि अलैहि ने फरमाया अगर किसी शहर के सब लोग अजान तर्क कर दें तो मैं उन से जंग करूँगा और अगर एक शख्स छोड़ दे तो उसे मारूँगा और कैद करूँगा । ( दुरै मुख्तार , रद्दुल मुहतार )
मसला :
मस्जिद में बिना अज़ान व इकामत जमाअत से नमाज पढ़ना मकरूह है । ( आलमगीरी )
मसला : -
कज़ा नमाज़ मस्जिद में पढ़े तो अज़ान न कहे । अगर कोई शख्स शहर में घर में नमाज़ पढ़े और अज़ान न कहे तो कराहत नहीं कि वहाँ की मस्जिद की अज़ान उसके लिए काफी है और कह लेना मुस्तहब है । ( रददुल मुहतार 1-257 )
मसला : -
गाँव में मस्जिद है कि उसमें अज़ान व इकामत होती है तो वहाँ घर में नमाज़ पढ़ने वाले का वही हुक्म है जो शहर में है और मस्जिद न हो तो अज़ान व इकामत में उसका हुक्म मुसाफ़िर का सा है ( आलमगीरी )
मसअला : -
अगर शहर के बाहर व गाँव , बाग या खेती वगैरा में है और वह जगह करीब है तो गाँव या शहर की अज़ान किफायत करती है फिर भी अज़ान कह लेना बेहतर है और जो करीब न हो तो काफी नहीं । करीब की हद यह है कि यहाँ तक पहुँचती हो । ( आलमगीरी )
azan ka bayan अजान का बयान
मसला :
लोगों ने मस्जिद में जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ी बाद को मालूम हुआ कि वह नमाज़ सही न हुई थी और वक्त बाकी है तो उसी मस्जिद में जमाअत से पढ़ें और अज़ान को लौटाना नहीं और ज्यादा देर न हुई हो तो इकामत की भी हाजत नहीं और ज्यादा वक्फा हुआ तो इकामत कहे और वक़्त जाता रहा तो गैरे मस्जिद में अज़ान व इकामत के साथ पढ़ें । ( रद्दुल मुहतार , जि . 1 पेज 282 आलमगीरी जिल्द . 1 पेज 51 मअ इफादाते रज़विया )
मसला : -
जमाअत भर की नमाज कज़ा हो गई तो अज़ान व इकामत से पढ़ें और अकेला भी कज़ा के लिए अज़ान व इकामत कह सकता है जबकि जंगल में तन्हा हो वर्ना कज़ा का इजहार गुनाह है व लिहाज़ा मस्जिद में कज़ा पढ़ना मकरूह है और पढ़े तो अज़ान न कहे और वित्र की कज़ा में दुआए कुनूत के वक्त दोनों हाथ कानों तक न उठाये । हाँ अगर किसी ऐसे सबब से कज़ा हो गई जिसमें वहाँ के तमाम मुसलमान मुब्तला हो गये । तो अगर्चे मस्जिद में पढ़े तो अज़ान कहें । ( आलमगीरी जिल्द . 1 पेज 51 , दुरै मुख्तार जि . 1. 262 रद्दुल मुहतार मा तन्कीह अज़ इफादाते रज़विया )
मसअला :
अहले जमाअत से चन्द नमाजें कजा हुई तो पहली के लिए अज़ान व इकामत दोनों कहें और बाकियों में इख्तियार है ख्वाह दोनों कहें या सिर्फ इकामत कहें और दोनों कहना बेहतर यह में है कि एक मज्लिस वह सब पढ़ें और अगर मुख्तलिफ वक़्तों में पढ़ें तो हर मज्लिस में पहली के लिए अज़ान कहें । ( आलमगीरी जिल्द . 1 )
मसअला :-
वक़्त होने के बाद अज़ान कही जाये वक्त से पहले कही गई या वक्त होने से पहले शुरू हुई और इसी बीच अज़ान होते ही में वक्त आ गया तो लौटाई जाये ( मुतून ,दुर्रे मुखतार जि . 1 पेज 258 )
मसअला :-
अजान का मुस्तहब वक्त वही है जो नमाज का है यानी फज्र में रौशनी फैलने के बाद और मगरिब और जाड़ों की , जोहर में अव्वले वक़्त और गर्मियों की जोहर और हर मौसम की अस्र व इशा में निस्फ वक्त और गर्मियों की ज़ोहर और हर मौसम की अस्र व इशा में निस्फ वक्त गुजरने उस सूरत .
के बाद मगर अस्र मे इतनी ताखीर ना हो की नमाज पढ़ते पढ़ते मकरूह का वक्त आ जाये और अगर अव्वल वक्त
अजान हुयी और आखिर वक्त नमाज हुयी तो भी सुन्नते अजान अदा हो गयी
( आलमगीरी जि . 1 पेज अगर ( पुर मुख्तार जि . 1 पेज 256 रद्दूल मुहतार)
मसअला : -
फराइज के सिवा बाकी नमाजें मसलन वित्र , जनाज़ा ईदैन , नज्र , सुनने रवातिब ( सुन्नते मुअक्कदा ) तरावीह , इस्तिस्का ( एक नफ्ल नमाज़- जो बारिश की दुआ के लिए पढ़ी जाती है । चाश्त कुसूफ ( नफ्ल नमाज़ जो चाँद गहन के वक्त पढ़ी जाती है ) इन सारी नफ्ल नमाज़ों में अजान नहीं ।
मसला :
बच्चे और मगमूम ( गमगीन ) के कान में और मिर्गी वाले और गजबनाक और बदमिजाज के बाद मगर अम्र में इतनी ताखीर न हो कि नमाज पढ़ते पढ़ते मकरूह वक़्त आ जाये और अव्वल वक़्त अज़ान हुई और आख़िर वक्त में नमाज़ हुई तो भी सुन्नते अज़ान अदा हो
मसअला :
आदमी या जानवर के कान में और लड़ाई की शिद्दत और आग लगने के वक़्त और मय्यत की दफन करने के बाद और जिन्न की सरकाशी के वक़्त और मुसाफिर के पीछे और जंगल में , रास्ता भूल जाये और कोई बताने वाला न हो उस वक्त अज़ान मुस्तहब है ( रद्दुल मुहतार जि . 1 फताया रजविया )
मसअला :-
औरतों को अज़ान व इकामत कहना मकरूहे तहरीमी है कहेंगी गुनाहगार होंगी और अज़ान दोहराई जायेगी । ( आलमगीरी , जि . 1 पेज 80 रद्दुल मुहतार जि .1 पेज 259 )
मसअला :-
औरतें अपनी नमाज़ पढ़ती हों या कज़ा उसमें अज़ान व इकामत मकरूह है अगर्च जमाअत से पढ़ें उनकी जमाअत खुद मकरूह है ।( दुर्रे मुख्तार जि .1 पेज 262 )
मसला : -
खुन्सा ( हिजड़ा ) व फासिक अगचें आलिम ही हो और नशा वाले और पागल और नासमझ बच्चे और जुनुबी ( बेगुस्ला ) की अज़ान मकरूह है इन सब की अजान का इआदा किया जाये यानी दोहराई जाये । ( दुर्रै मुखतार जि . 1 पेज 280 )
azan ka bayan अजान का बयान
मसअला : -
समझदार बच्चे और गुलाम और अंधे और वलदुज्जिना ( यानी जो ज़िना से पैदा हों ) और बे- वुजू की अजान सही है । मगर बे - वुजू अज़ान कहना मकरूह है ( दुरै मुख्तार जि : 1 पेज 262 ) ( मराकिल फलाह )
मसअला :-
जुमे के दिन शहर में जोहर की नमाज़ के लिए अज़ान नाजाइज़ है अगर्च जोहर पढ़ने वाले माजूर हों जिन पर जुमा फर्ज़ न हो । ( दुरै मूखतार , रद्दुल मुहतार जि . 1 पेज 282 )
मसला :-
अज़ान कहने का अहल वह है जिसे नमाज़ के वक़्तों की पहचान हो और वक्त न पहचानता हो तो उस सवाब का मुस्तहक नहीं जो मुअज्जिन के लिए है । ( आलमगीरी )
मसला :-
मुस्तहब यह है कि मुअज्ज़िन मर्द आकिल , नेक , परहेज़गार , आलिम , सुन्नत का जानने वाल इज़्जत वाला लोगों के अहवाल का निगरों और जो जमाअत से रह जाने वाले हों , उनको डाँटने वाला हो , अज़ान पर मुदावमत करता हो ( यानी हमेशा पाबन्दी से पढ़ता हो ) और सवाब के लिए अजान कहता हो यानी अजान पर उजरत न लेता हो अगर मुअज्जिन नाबीना हो और वक्त बताने वाला कोई ऐसा है कि सही बता दे तो उसका और आँख वाले की अज़ान कहना यकसाँ है । ( आलमगीरी जि 1 पेज 289 )
मसला :-
अगर मुअज्जिन ही इमाम भी हो तो बेहतर है । ( दुरै मुखतार जि . 1 पेज 268 )
मसला :-
एक शख्स को एक वक्त में दो मस्जिदों में अजान कहना मकरूह है ( रददुल मुखतार पेज 280 )
मसला :-
अज़ान व इमामत की विलायत बानीए मस्जिद को है यानी जो उस मस्जिद को बनाने वाला हो उसका हक है कि मुअजिन व इमाम वही मुकर्रर करे । वह न हो तो उसकी औलाद उसके खानदान वालों को और अगर अहले मुहल्ला ने किसी ऐसे को मुअज्ज़िन या इमाम किया जो बानी के मुअज्ज़िन व इमाम से बेहतर है तो वही बेहतर है । ( दुरै मुखतार , रद्दुल मुहतार )
मसला :-
अगर अज़ान देते में मुअज्ज़िन मर गया या उसकी जुबान बन्द हो गई या रूक गया और कोई बताने वाला नहीं या उसका वुजू टूट गया और वुजू करने चला गया या बेहोश हो गया तो इन सब सूरतों में सिरे से अज़ान कही जाये , वही कहे ख्वाह दूसरा कहे । ( दुरै मुखतार )
मसाला :-
अजान के बाद मआज़ल्लाह मुरतद हो गया ( यानी इस्लाम से फिर गया तो दोहराने की हाजत नहीं और दोहराना बेहतर है और अगर अज़ान कहते में मुर्तद हो गया तो बेहतर है कि दूसरा शख्स सिरे से कहे और अगर उसी को पूरा करे तो भी जाइज़ है यानी यह दूसरा शख्स बाकी को पूरा करले यह कि वह इस्लाम से फिरने के बाद उसको पूरा करे कि काफ़िर की अज़ान सही नहीं और अज़ान का टूकड़े टुकड़े पढ़ना सही नहीं बाज़ ( थोड़ी ) का ख़राब होना कुल का खराब होना है जैसे नमाज़ की पिछली रकअत में फसाद हो यानी किसी वजह से नमाज़ जाती रहे तो सब फ़ासिद है ( इफादाते रज़विया ) ( आलमगीरी जि . 1 पेज 50 )
azan ka bayan अजान का बयान
मसअला :-
बैठ कर अज़ान कहना मकरूह है अगर कही है तो दोहराई जाये मगर मुसाफिर अगर सवारी पर अज़ान कह ले तो मकरूह नहीं और इकामत मुसाफिर भी उतर कर कहे अगर न उतरा और सवारी पर कह ली तो हो जायेगी । ( आलमगीरी जि . 1 पेज 80 (रद्दुल मुहतार) )
मसअला :-
अज़ान किबला रू कहे और इसके खिलाफ करना मकरूह है और अज़ान दोहराई जाये मगर मुसाफिर जब सवारी पर अज़ान कहे और उसका मुँह किब्ले की तरफ न हो तो हरज़ नहीं । ( दुर्रे मुख्तार आलमगीरी , रद्दुल मुहतार )
मसला :-
अजान कहने की हालत में बिला उज्र खकारना मकरूह है और अगर गला पड़ गया या आवाज़ साफ़ करने के लिए खंकारा तो हरज नहीं ।
मसअला :-
मुअज्जिन को अज़ान की हालत में चलना मकरूह है और अगर कोई चलता जाये और उसी हालत में अज़ान कहता जाये तो इआदा करे ।( रद्दुल मुहतार जि .1 पेज 281 )
मसला :-
अज़ान के बीच में बातचीत करना मना है अगर कलाम किया तो फिर से अज़ान कहे ।
मसअला :-
अज़ान के अलफाज़ में लहन हराम है मसलन अल्लाहु अकबर के हमज़ा को मद के साथ ' आल्लाह ' या ' आकबर ; ' पढ़ना यूँही अकबर में ' वे ' के बाद अलिफ बढ़ाना हराम है यानी ' अकबार ' पढ़ना हराम है । ( दुरै मुखतार जि .1 पेज 250 आलमगीरी वगैराहुमा जि .1 पेज 52 )
मसअला :-
यँही कलिमाते अज़ान को कवाइदे मौसीकी पर गाना भी लहन व नाजाइज़ है ( यानी संगीत के नियमों के अनुसार पढ़ना या गाना हराम है । ) ( रद्दुल मुहतार )
मसअला :-
सुन्नत यह है कि अज़ान बलन्द जगह पर कही जाये कि पड़ोस वालों को खूब सुनाई दे।
मसला : ताकत से ज्यादा आवाज बुलंद करना अजान में मकरूह हैं (आलमगीरी)
मसला :-
अज़ान मेजना पर कही जाए ( मस्जिद में जो जगह अजान कहने के लिए खास हो मेज़ना कहते हैं ) या खारिजे मस्जिद ( हर मस्जिद के दो हिस्से होते हैं एक दाखिले मस्जिद दूसरी खारिजे मस्जिद कहलाती है वहाँ लोग वुजू वगैरा करते है ) और मस्जिद में अजान यह हुक्म हर अजान के लिए है फिक्ह की किसी किताब में मुसतसना नहीं अजाने सानी यानी जुमे के खुतबे से पहले जो जुमा में लिखा , हाँ इसमें एक बात अलबत्ता यह जाइद है कि खतीब के महाजी हो यानी मार बाज़ जगह हिन्दुस्तान में अक्सर जगह रिवाज पड़ गया है मस्जिद के अन्दर मिम्बर से हाथ दो है । के फासले पर होती है इसकी कोई सनद किसी किताब में नहीं , हदीस व फिक्ह दोनों के खिलाफ ।
मसला :-
अज़ान के कलिमात ठहर ठहर कर कहे अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर दोनों मैन्यता एक कलिमा है । दोनों के बाद सकता करे यानी ठहरे , दरमियान में नहीं और सकता की मिकता यह है कि जवाब देने वाला जवाब दे ले और सकता का तर्क मकरूह है और ऐसी अजान के लौटाना मुस्तहब (रद्दुल मुहतार , जि . पेज 2 )
मसला :-
अगर कलिमाते अज़ान या इकामत में किसी जगह तकदीम व ताखीर हो गई यन तरतीब बिगड़ गई ) तो उतने को सही कर ले सिरे से दोहराने की हाजत नहीं और अगर सही : की और नमाज़ पढ़ ली तो नमाज़ लौटाने की हाजत नहीं ।
मसला :-
हय्याअलस्सलाह ' दाई तरफ मुँह करके कहे और हय्याअललफलाह बाई जानिब गई अजान नमाज़ के लिए न हो बल्कि मसलन बच्चे के कान में या और किसी लिए कही । यह फेरन फकत मुँह का है सारे बदन से न फिरे ।
मसला :-
अगर मीनार पर अज़ान कहे तो दाहिनी तरफ के ताक से सर निकाल कर हय्याअल स्सलाह कहे और बायें जानिब के ताक से हय्याअललफलाह ( शरहे वकाया ) यानी जब बगैर इसके आवाज़ पहुँचना पूरे तौर पर न हो ( राहुल मुहतार जि .1 स . 259 ) यह वहीं होगा कि मीनार बन्द है और दोनों तरफ ताक खुले है और खुले मीनार पर ऐसा न करे बल्कि वहीं सिर्फ मुँह फेरना हो और कदम एक जगह काइम ।
मसाला :-
सुबह की अजान में हय्याअललफलाह के बाद अस्सलातु खैरूम मिनन नौम ' कहना मुस्तहब है ।
azan ka bayan अजान का बयान
मसाला :-
अज़ान कहते वक्त कानों के सूराख में उगलियाँ डाले रहना और अगर दोनो हाथ कानों पर रख लिए तो भी अच्छा है ( दुरै मुख्तार रहुल मुहतार ) और अव्वल ज्यादा अच्छा है कि
इरशादे हदीस के मुताबिक है और बलन्द आवाज़ में ज़्यादा मुईन ( मददगार ) । कान जब बन्द होते है आदमी समझता है कि अभी आवाज़ पूरी न हुई ज्यादा बलन्द करता है ।
मसला :-
इकामत अज़ान की तरह है यानी जो अहकाम ज़िक्र हुए वह इसके लिए भी है सिर्फ बाज़ बातों में फर्क है इसमें हय्याअललफलाह के बाद ' कदकामतिस्सलाह दो बार कहे इसमें भी आवाज़ बलन्द होगी मगर न अज़ान जैसी बल्कि इतनी कि हाज़िरीन तक आवाज़ पहुँच जाये । तकबीर के कलिमात जल्द जल्द कहे दरमियान में सकता न करे , न कानों पर हाथ रखना है , न कानों में उंगलियाँ रखना है और सुबह की इकामत में ' अस्सलातुखैरूम मिनन नौम ' नहीं ।
इकामत बलन्द जगह या मस्जिद से बाहर होना सुन्नत नहीं अगर इमाम ने इकामत कही तो कदकामति स्सलाह के वक्त आगे बढ़ कर मुसल्ले पर चला जाये ।(दुर्रे मुखतार आलमगीरी , जि.पेज 2 )
मसअला :-
इकामत में भी हय्या अलस्सलाह हय्या अललफलाह के वक्त दायें बायें मुँह फेरे । ( दुरै मुखतार जि .1 पेज 250 )
मसअला :-
इकामत का सुन्नत होना अज़ान की बनिस्बत ज़्यादा मुअक्कद है । ( दुरै मुखतार )
मसअला :-
जिसने अजान कही अगर मौजूद नहीं तो चाहे जो इकामत कह ले और बेहतर इमाम है और मुअज्जिन मौजूद है तो उसकी इजाज़त से दूसरा कह सकता है कि यह उसी का हक है और अगर बे - इजाज़त कही और मुअज्जिन को नागवार हो तो मकरूह है । ( आलमगीरी जि . 1 पेज 60 )
मसला :-
जुनुब ( नापाक ) व मुहदिस ( जिसे दस हुआ हो मसलन किसी वजह से वुजू टुटा हो ) की इकामत मकरूह है मगर लौटाई नहीं जायेगी । अगर जुनुब अज़ान कहे तो दोहराई जाए वह इस लिए कि अज़ान की तकरार जाइज़ है और इकामत दो बार नहीं । ( दुरै मुखतार जि .1 पेज 280 )
मसला :-
इकामत के वक्त कोई शख्स आया तो उसे खड़े होकर इन्तिज़ार करना मकरूह है बल्कि बैठ जाये जब ' हय्याअललफलाह ' पर पहुँचे उस वक्त खड़ा हो । यूँही जो लोग मस्जिद में मौजूद हैं वह भी बैठे रहें , उस वक़्त उठे जब मुकब्बिर ( तकबीर या इकामत कहने वाला ) हय्याअललफलाह ' पर पहुँचे । यही हुक्म इमाम के लिए है ( आलमगीरी जि . पेज 53 )
आजकल अक्सर जगह रिवाज़ पड़ गया है कि इकामत के वक्त सब लोग खड़े रहते हैं बल्कि अक्सर जगह तो यहाँ तक है कि जब तक इमाम मुसल्ले पर खड़ा न हो उस वक़्त तक तकबीर नहीं कही जाती यह खिलाफे सुन्नत है ।
मसअला :-
मुसाफिर ने अजान व इकामत दोनों न कही या इकामत न कही तो मकरूह है और अगर सिर्फ इकामत पर इक्तिफा किया तो कराहत नहीं मगर बेहतर यह है कि अज़ान भी कहे अगचे तन्हा हो या उसके सब हमराही वहीं मौजूद हो । दुर्रै मुखतार जि .1 पेज 24 रद्दुल मुहतार )
मसअला :-
शहर के बाहर किसी मैदान में जमाअत काइम की और इकामत न कही तो मकरूह है और अज़ान न कही तो हरज नहीं मगर खिलाफे औला है ( खानिया जि .1 पेज 74 )
मसला :-
मस्जिदे मुहल्ला यानी जिसके लिए इमाम व जमाअत मुअय्यन हो कि वही जमाअते ऊला काइम करता हो उस में जब जमाअते ऊला हो कि वहीं जमाअते ऊला सुन्नत तरीके से हो चुकी हो तो दोबारा अजान कहना मकरूह है और बगैर अज़ान अगर दूसरी जमाअत कायम की जाये तो इमाम मेहराब में न खड़ा हो बल्कि दाहिने या बायें हट कर खड़ा हो कि इम्तियाज रहे इस दूसरी जमाअत के इमाम को मिहराब में खड़ा होना मकरूह है और मस्जिदे मुहल्ला जैसे सड़क , बाज़ार , स्टेशन , सरायें की मस्जिदें जिन में चन्द शख्स आते हैं और पढ़कर चले जाते है ,
फिर कुछ और आये और पढ़ी इसी तरह होता हो तो इस मस्जिद में तकरारे अज़ान मकरूह नहीं वहाँ बल्कि अफज़ल यही है कि हर गिरोह जो नया आये अपनी अज़ान व इकामत के साथ जमाअत को ऐसी मस्जिद में हर इमाम मिहराब में खड़ा हो ( दुरै मुख्तार , जि .1 पेज 265 आलमगीरी , जि .1 पेज फतावा काज़ी खाँ , बज्जाजिया )
मेहराब से मुराद वस्ते मस्जिद है यानी मस्जिद के बीच में होना , ताक हो या न हो जैसे मस्जिदुल हराम शरीफ जिसमें यह मिहराब असलन नहीं या हर मस्जिदे सैफीतिह जगह जहाँ गर्मियों में नमाज़ पढ़ी जाती है )
यानी सिहने मस्जिद उसका वस्त मिहराब है अगचे इमारत असलन ( बिल्कुल ) नहीं होती , मिहराबे हकीकी यही हैं और ताक की शक्ल में मिहराब जमानए रिसालत व जमानए खुलफाए राशेदीन में न थी । वलीद बादशाह के जमाने में बनाई गई ( फतावा रज़विया )
बाज़ लोगों के ख्याल में है कि दूसरी जमाअत का इमाम पहले के मुसल्ले पर न खड़ा हो लिहाज़रा मुसल्ला हटा कर वहीं खड़े होते हैं जो इमामे अव्वल के कियाम की जगह है यह जहालत है उस जगह से दाहिने बायें हटना चाहिए मुसल्ले अगर्चे वही हों ।
मसला :-
अगर अज़ान आहिस्ता हुई तो फिर अज़ान कही जाये और पहली जमाअत जमाअते ऊला नहीं । ( काजी खाँ जि . 1 पेज 74 )
मुहल्ले की मस्जिद में कुछ मुहल्ले वालों ने अपनी जमात पढ़ ली उन के बाद इमाम और बाकी लोग आये तो जमाअते ऊला इन्हीं की है पहलों के लिए कराहत यूँही अगर गैर मुहल्ले वाले पढ़ गये उन के बाद मुहल्ले के लोग आये तो जमाअते ऊला यही है और इमाम अपनी जगह पर खड़ा होगा । ( आलमगीरी जि . 1 पेज 51 )
मसला :-
इकामत के बीच में भी मुअज्जिन को कलाम ( बातचीत ) करना नाजाइज़ है जिस तरह अज़ान में । ( आलमगीरी जि . 1 पेज 52 )
azan ka bayan अजान का बयान
मसअला :-
अजान व इकामत के बीच में उसको किसी ने सलाम किया तो जवाब न दे । खत्म के बाद भी जवाब देना वाजिब नहीं । ( आलमगीरी जि . 1 पेज 52 )
मसला :-
जब अजान सुने तो जवाब देने का हुक्म है यानी मुअज्ज़िन जो कलिमा कहे उसके बाद सुनने वाला भी वही कलिमा कहे मगर ' हय्याअलस्सलाह ' और ' हय्याअललफलाह के जवाब में लाहौ - ल वला कुब्द - ता इल्ला बिल्लाह ' कहे और बेहतर यह है कि दोनों कहे बल्कि इतना लफ्ज और मिला ले : माशा अल्लाहु काना वमा लम यशाउ लम यकनू
तर्जमा :- जो अल्लाह ने चाहा हुआ जो नहीं चाहा नहीं हुआ । ( दुईमुख्तार , रहुल मुहतार , जि .1 पेज 266 ) मसअला : - " अस्सलातु खैरूम मिनन नौम ' के जवाब में कहे :
हतता सद्दकता वा बररता वा बिल हक्की नत तकता
तर्जमा : - तू सच्चा और नेकोकार है तूने हक कहा । ( दुर्रे मुखतार रद्दुल मुहतार )
मसअला :-
जब अज़ान हो तो उतनी देर के लिये सलाम कलाम और जवाबे सलाम तमाम अशगाल रोक दे यहाँ तक कि कुरआन मजीद की तिलावत में अज़ान की आवाज़ आये तो तिलावत रोक दे और अज़ान को गौर से सुने और जवाब दे । यूँही इकामत में ( दुर्रै मुखतार )
आजकल हम लोग तो टेलीवीजन,मोबाइल,लैपटाप,कम्प्यूटर ना जाने कितने साजो सामान में मुब्तला रहते हैं अजान के दौरान अल्लाह पाक हम सब को हिदायत दें जब कुरआन ए पाक जैसे मुकद्दस किताब की तिलावत करने से रुकना पड़ता है तो हम लोग भी कोशिश करें के कुछ वक्त के लिए सब को बन्द कर के अजान के जवाब को दे दें अल्लाह हम सब को हिदायत बख्शे आमीन।
मसअला :-
जुनुब भी अज़ान का जवाब दे हैज व निफास वाली औरत और खुतबे सुनने वाले और नमाजे जनाज़ा पढ़ने वाले और जो जिमाअ में मशगूल या कज़ाए हाजत में हो उन पर जवाब नहीं ( दुर्रै मुख्तार )
मसअला :-
जब अज़ान हो तो उतनी देर के लिये सलाम , कलाम , और जवाबे सलाम तमाम अशगाल रोक दें यहाँ तक कि कुआन मजीद की तिलावत में अज़ान की आवाज़ आये तो तिलावत रोक दे और अज़ान को गौर से सुने और जवाब दे । यँही इकामत में ( दुर्रै मुखतार पेज 282 )
मसअला :-
जो अज़ान के वक्त बातों में मशगूल रहे उस पर मआज अल्लाह खातमा बुरा होने का खौफ है । ( फतावा रजविया )
मसअला :-
रास्ता चल रहा था कि अज़ान की आवाज़ आई तो उतनी देर खड़ा हो जाये सुने और जवाब दे ( आलमगीरी बज्जाजिया )
मसअला :-
इकामत का जवाब मुस्तहब है इसका जवाब भी उसी तरह है फर्क इतना है कि ' कदकामतिस्सलाह के जवाब में यह कहे आकामहुल लाहू वा आदामहा मा दामतिस समावाति वल अरद
तर्जमा :- अल्लाह इसको काइम रखे और हमेशा रखे जब तक कि आसमान व ज़मीन है ।
" या यह कहे । आकामहुल लाहू वा आदामहा वजाअलना मिन स्वालिही अहलिहा अहया अन वा अमवातन
तर्जमा : - " अल्लाह इसको काइम रखे और हमेशा रखे और हमको ज़िन्दगी और मरने के बाद इसके नेक लोगों में रखे ।
azan ka bayan अजान का बयान
मसअला :-
अगर चन्द अज़ाने सुने तो उस पर पहली ही का जवाब है और बेहतर यह है कि सब का जवाब दे । ( दुर्रैमुख्तार , रद्दुल मुहतार )
मसअला :- अगर अजान के वक्त जवाब न दिया तो अगर ज़्यादा देर न हुई हो अब दे ले ( दुर्रै मुखतार )
मसअला :-
जब अज़ान खत्म हो जाये तो मुअज्जिन और सामेईन ( सुनने वाले ) दूरूद शरीफ पढ़ें उसके बाद यह दुआ-
अल्ला हुम्मा रब्बा हाजिद दावतित ताम्मति वस्सलातिल काइमति आति सय्यदना मोहम्मिदा निल वसीलता वलफदीलता वद दरा जतिररफीअह वबा असहू मकाम महमूदा निल्लजी व अत्तहु वरजुकना शफा अतहू य उमल कियामह इन्नका ला तुखलिफुल मिआद ,
तर्जमा : -ऐ अल्लाह इस दुआए ताम और नमाज़ बरपा होने वाले के मालिक तू हमारे सरदार मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को वसीला और फजीलत और बलन्द दर्जा अता कर और उनको मकामे महमूद में खड़ा कर जिसका तूने वादा किया है वे शक तू वादे के खिलाफ नहीं करता । ( रद्दुल , मुहतार , जि .1 पेज 267 )
मअस्ला :-
जब मुअज्ज़िन ' अश्हदुअन -न मुहम्मदर्रसूलुल्लाह कहे तो सुनने वाला दुरूद और मुस्तहब है कि अगूंठों को बोसा देकर आँखों से लगा ले और कहे :
कुर रतु ऐनी बिका या रसूलुल्लाह अल्लाहुम्मा मत्तिअनी बिस सम ई वल बसरि
तर्जुमा: या रसूलल्लाह ! मेरी आंखों की ठंडक हुजूर से है ऐ अल्लाह सुनने और देखने की कुव्वत के साथ मुझे फायदा पहुँचा " । (रद्दुल मुहतार )
मसअला :-
अज़ाने नमाज़ के अलावा और अज़ानों का भी जवाब दिया जायेगा जैसे बच्चा पैदा होते वक्त की अज़ान । ( रद्दुल मुहतार जि .1 पेज 126 )
मसअला :-
अगर अज़ान गलत कही गई मसलन लहन के साथ तो उस का जवाब नहीं बल्कि ऐसी अज़ान सुने भी नहीं । ( रद्दुल मुहतार )
मसला :-
मुताअख्खिरीन . ( बाद वाले उलमा ) ने तसवीब मुस्तहसन रखी है यानी अज़ान के बाद नमाज़ के लिये , दोबारा एअलान करना और उसके लिये शरीअत ने कोई खास अलफाज मुकर्रर नहीं किए बल्कि जो वहाँ का उर्फ हो मसलन । अस्सलात अस्सलात ,कामतकामत ,अस्सलातु अस्सलामु अलैइका या रसूलुल्लाह (दुर्रै मुखतार पेज 281 )
मसला :-
मगरिब की अज़ान के बाद तसवीब नहीं होती ( इनाया और दो बार कह लें तो हरज नहीं । (दुर्रे मुखार )
मसला :-
अज़ान व इकामत के दरमियान वकफा करना सुन्नत है । अज़ान कहते ही इकामत कह देना मकरूह है मगर मगरिब में वक्फा तीन छोटी आयतों या एक बड़ी आयत के बराबर हो , बाकी नमाज़ों में अज़ान व इकामत के दरमियान इतनी देर तक ठहरे कि जो लोग पाबन्दे जमाअत हैं आ जायें मगर इतना इन्तिज़ार न किया जाये कि वक्ते कराहत आ जाये । (मुखतार पेज 201 आलमगीरी )
मसअला :-
जिन नमाज़ों से पहले सुन्नत या नफ्ल हैं उनमें औला यह है कि मुअज्जिन अज़ान के बाद सुन्नतें व नवाफिल पढ़े वर्ना बैठा रहे । ( आलमगीरी जि . 1 पेज 88 )
मसअला :-
रईसे मुहल्ला का उसकी रियासत के सबब इन्तिज़ार मकरूह है हाँ अगर वह शरीफ है और वक्त में गुन्जाइश है तो इन्तिज़ार कर सकते हैं । ( दुर्रै मुखतार जि . 1 पेज 288 )
मसला :-
मुतकदिमीन यानी पहले के उलमा ने अज़ान पर उजरत लेने को हराम बताया मगर मुतअख्खिरीन यानी बाद के उलमा ने जब लोगों में सुस्ती देखी तो इजाज़त दी और अब इसी पर फतवा है मगर अज़ान कहने पर अहादीस में जो सवाब इरशाद हुये वह उन्हीं के लिये है
जो उजरत नहीं लेते सिर्फ अल्लाह तआला की रज़ा के लिए इस खिदमत को अन्जाम देते हैं । हाँ अगर लोग बतौरे खुद . मुअज्ज़िन को साहिबे हाजत समझ कर दे दें तो यह बिलइत्तेफाक जाइज़ बल्कि बेहतर है और यह उजरत नहीं जबकि यह मशहूर न हो जाए कि उजरत ज़रूर मिलेगी ।
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