Isale sawab ki sharai haisiyat isale sawab ki dua arbi urdu ईसाल ए सवाब की शरई हैसियत infomgm

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ईसाल ए सवाब की शरई हैसियत 

इबादत की तीन किस्में है 

(1) बदनी 
(2) माली 
(3) मोरक्कब 


(1) बदनी : 

जिसका तअल्लुक बदन से हो , 
जैसे तिलावते कुरआन 
 तस्बीह व तहलील 
दुआ व इस्तगफार 
और नमाज व रोज़ा वगैरह ।


(2) माली-

 जिसका तअल्लुक माल से हो 
जैसे ज़कात , 
सदकात 
और खैरात वगैरहा । 


(3) मोरक्कब-

 जिस का तअल्लुक दोनों से हो 
जैसे हज कि इस में माल भी खर्च होता है 


और मक्का मोकर्रमा पहुंच कर जिस्मानियत के साथ हज के अरकान भी अदा करने पड़ते है । 
मुसलमान इन इबादतों में से इखलास के साथ जब कोई इबादत करता है 
तो अल्लाह तआला अपने फज़लो करम से उस - को अजरो सवाब अता फरमाता है 
अब सवाल यह है कि - मुसलमान अपनी किसी इबादत का सवाब किसी मोतवफ्फा मुसलमान को पहुंचा सकता है या नहीं ? 

का मज़हब यह है कि न तो सवाब पहुंचता है और न उस से मुर्दो को कोई नफा पहुंचता है , 
और जम्हूर अहले सुन्नत व जमाअत का मज़हब यह है कि सवाब पहुंचता है 
और इस से मुर्दो को भी नफा पहुंचता है । अगरचे मोतजेला तो नहीं रहे लेकिन बद किस्मती से मुसलमानों में फिर ऐसे चन्द अफराद पैदा हो गए है 
जिन्होंने मोतजेला की तरह से इसाले सवाब का इनकार शुरू कर दिया है । हालांकि वह कुरआन व हदीस पर ईमान व अमल रखने के मुद्दइ है 
तअज्जुब है कि कुरआन व हदीस पर ईमान व अमल रखने के मुद्दी होकर ईसाले सवाब और उस के मुफीद व नाफे होने के मुनकिर कैसे हो गये है 
क्यों कि कुरआन व हदीस पर ईमान व अमल का दावा और ईसाले सवाब का इनकार , यह दोनों चीजें तो ऐसी है जो कभी जमा नहीं हो सकती , ऐसे है हज़रात को हस्बे जैल दलाइल में गहरी नज़र से गौर करना चाहिये

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 बदनी इबादत 

मय्यत के लिए दुआ व इस्तगफार करना 
( 1.) हज़रत नोअमान बिन बशीर रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते है कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया ( अद्दुआउ हुवल इबादतु) दुआ इबादत है ( अबुदाऊद ) 
( 2. ) हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते है कि हुजूर सल्लल्लहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया दुआ इबादत का मगज़ है । ( कंजुलआमाल ) इन दोनों हदीसों से साबित हुवा कि दुआ इबादत बल्कि इबादत का मग्ज़ है 
( 3.) अल्लाह तआला फरमाता है वह जो उन के बाद आए  वह यूं दुआ करते है । 
ऐ हमारे  परवरदिगार हम को बख़्श दे  और हमारे उन भाइयों को भी बख्श दे जो हमसे पहले  बा - ईमान गुज़र चुके हैं । ( कुरआने करीम पा . 28 )


गौर फरमाइये ! 

इस आयते करीमा में अल्लाह तआला मुसलमानों के इस मुबारक फेल ( काम ) बतौर इस्तेहसान व तारीफ के बयान फरमा रहा है कि वह बाद में आने वाले मुसलमान जहां अपने लिए दुआए बखशिश करते है वहां अपने मुसलमान भाईयों के लिए भी दुआए बख़शिश करते हैं जो उन से पहले गुज़र चुके है । 
जब साबित हो गया कि दुआ इबादत है तो मालूम हुआ कि ज़िन्दों की इबादत यानी दुआ से मुर्दो को फाइदा पहुंचता है । अगर यह न माना जाये तो फिर मुसलमान का अपने मुतवफफा ( मरे हुये ) भाइयों के लिए दुआए बखशिश करना फ़जूल और लगूव करार पाएगा 
और फिर यह भी कहना पड़ेगा कि .कुरआन मआज अल्लाह फ़जूल और लगव कामों का बतौरे तारीफ व इस्तेहसान बयान करता है । 
साबित हुआ कि जिन्दा मुसलमान का मुर्दा मुसलमानों के लिए दुआए बख्रिशश करना मुर्दो के अफव व बखशिश और रफओ दरजात का सबब है । 
( 4.) चुनान्चे इमाम जलालुद्दीन सुयूती रहमतुल्लाह अलैह फरमाते है  और इस पर बहुत से उलमा ने इजमा नकल किया ।  है कि बेशक दुआ मय्यत को  नफा देती है और उस की  दलील कुरआन शरीफ में है । रब्बनगफिरलना वलिइखवानिनल लजीना अल्लाह तआला का यह कौल  ( शरहुस्सुदूर 127 ) 
( 5. )अल्लाह तआला .कुरआन मजीद में हज़रत इबराहीम अलैहिस्सलाम की दुआ का जिक्र भी बतौरे तारीफ बयान फ़रमाता 
 ऐ हमारे परवरदिगार ! मुझ  को और मेरे माँ बाप को और मुमेनीन को बख्श दे जिस दिन  हिसाब कायम हो ।( कुरआन करीम पा . : 13 ) 
देखिये हज़रत इबराहीम अलैहिस्सलाम अपने मुतवफ्फा वालिदैन और मुसलमानों के लिए दुआए बख़शिश फरमा रहे है ।

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 दुआ इबादत है तो मालूम हुआ कि उनकी इबादत से उनके वालिदैन और मुसलमानों को नफा ज़रूर होगा । वरना हज़रत इबराहीम अलैहिस्सलाम का दुआ करना फुजूल ठहरेगा । 
क्या यहां यह कहना मुनासिब होगा कि हज़रत इबराहीम अलैहिस्सलाम जैसा जलीलुलकद्र पैगम्बर फ़जूल काम का मुरतकिब हुआ और कुरआन करीम ने फुजूल काम का जिक्र फरमाया ( मआज अल्लाह ) 
( 6.) अल्लाह तआला फरमाता है कि वह फरिश्ते जो अर्श को 
उठाने वाले है 
और उस के इर्द गिर्द है वह हमारी तस्बीह व तहमीद के साथ - साथ मोमिनों के लिए दुआए  बख्रिशश भी करते है ।   ( कुरआन करीम पारा : 24 )
इस आयत से मालूम हुआ कि फ़रिश्ते अल्लाह की तस्बीह व तहमीद के साथ मोमिनों के लिए दुआए बखिशश भी करते है । 
देखिये दुआए बख्रिशश मांगने वाले फरिश्ते है । और उसका फायदा मुसलमानों को पहुंचेगा 
अगर उनकी दुआ का कोई - फाइदा मुसलमानों के हक में मुरत्तब न हो तो उनका मुसलमानों - के लिए दुआ करना बेकार होगा । 
और फरिश्ते मासूम और मामूर मिनल्लाह होते है । उन का कोई काम बेकार और खिलाफे अमर नहीं होता । 
लिहाज़ा साबित हुआ कि फ़रिश्तों की इबादत यानी दुआए बख़शिश का फायदा मुसलमानों को ज़रूर पहुंचेगा 
मालूम हुआ कि एक की इबादत का दूसरे को फायदा पहुंच सकता है बशर्ते कि दूसरे को फायदा पहुचाना मकसूद हो । 
( 7. ) हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा फरमाते है कि- हुजूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया  मुर्दो की हालत कब्र में डूबते हुए फरयाद करने वाले  की तरह होती है वह इन्तेज़ार करता है कि उस के बाप  या माँ या भाई या दोस्त की  तरफ से उस को दुआ पहुंचायें

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और जब उसको किसी की दुआ  पहुंचती है तो वह दुआ का  पहुंचना उसको दुनिया व  माफीहा माफीहा से महबूब तर होता है  और बेशक अल्लाह तआला अहले ज़मीन की दुआ से अहले  क्रुबूर को पहाड़ों की मिस्लई  अजरो रहमत अता करता है 
 और बेशक ज़िन्दों का तोहफा मुर्दो की तरफ यही है कि उन के लिए बख़शिश की दुआ मांगी जाए । ( मिश्कात पेज 206 ) 
इस हदीस से मुर्दा का दुआये बख़शिश का मुन्तज़िर होना और ज़िन्दों के हदिये और तोहफे यानी दुआए बख़शिश का उस के लिए बहुत ही ज्यादा मुफीद होना बखूबी साबित है ।
 
( 8. ) हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा फरमाते है कि हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया  जिस मुसलमान की नमाजे जनाजा पर ऐसे चालीस  मुसलमान खड़े हो जाये जिन्होंने शिर्क न किया हो तो अल्लाह  तआला उन की शिफाअत मय्यत के हक में कबूल फरमाता है ।  यानी बख्श देता है ।( अबूदाऊद शरीफ ) 
देखिये चालीस ज़िन्दा मुसलमानों का शिफाअत करना यानी दुआए बखशिश करना मुर्दा के हक में बख़शिश का सबब हुआ । 
( 9.) हजरत मालिक बिन बुहैरा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते है कि मैने सुना हुजूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि :  जिस मुसलमान की नमाजे  जनाजा पर मुसलमानों की तीन सफें हो जाएं उस पर जन्नत  वाजिब हो जाती है ।  ( मिश्कात स 0147 ) 
इसी लिए जनाज़ा पर तीन सफें की जाती है और जाहिर है कि सफें बनाना और नमाज़ पढ़ना मय्यत का नहीं बल्कि दूसरे लोगों का फेल है जो मय्यत के लिए बाइसे मगफिरत हुआ । 
( 10. ) हज़रत अबू सईद खुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते - है कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया । कि कयामत के दिन पहाड़ों जैसी नेकियाँ इन्सान  के ( आमाल से ) लाहिक होंगी  तो वह कहेगा कि यह कहां से  है ? 
तो फरमाया जाएगा कि यह तुम्हारी औलाद के  इस्तिगफार के सबब से है जो  तुम्हारे लिए किया । ( अलअदबुल मुफरद लिलबुखारी सं 0 9 ) 
( 11.) हज़रत अबूहुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि अल्लाह तआला ने जन्नत में अपने नेक बन्दे का दर्जा बुलन्द फरमाया । 
 तो वह अर्ज करता है ऐ मेरे रब्ब मेरा दर्जा क्यों कर बुलन्द हुआ ? 
इरशाद हुआ कि तेरा बेटा - जो तेरे लिए दुआए बख़शिश मांगता है उस के सबब से  ( मिश्कात : 256 )
इस हदीस से साबित हुआ.कि किसी नेक बन्दे या किसी बुर्जुग के लिए दुआए बख़शिश की जाए तो उस के दर्जे बुलन्द , हो जाते है 
और गुनहगार के लिए की जाए तो उस से सख्ती , और अज़ाब दूर हो जाता है जैसा कि पहले बयान हुआ 
( 12. ) हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते है कि हुजूर - सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया  मेरी उम्मत , उम्मते मरहूमा है वह कब्रो में गुनाहों के साथ  दाखिल होगी और जब कब्रों  से निकलेगी उस पर कोई गुनाह ।  नहीं होगा 
अल्लाह तआला  मुमिनों के इस्तिगफार की वजह से उस को गुनाहों से पाक व साफ करदेगा
( 13. ) मज़हबे हनफी के अकायद की मुसल्लेमा किताब शरह   अकाइदे नसफी में है कि   ज़िन्दों का मुर्दो के लिए  दुआ करना या सदका व खैरात  करना मुर्दो के लिए नफा का बाइस है 
और मुअतजेला उस - के खिलाफ है 
( 14. ) इमामे अजल हज़रत अल्लामा अली कारी मक्की मिरकात शरहे मिश्कात में फरमाते है कि अहले सुन्नत का इस पर इत्तेफाक है कि मुर्दो को ज़िन्दों के अमल से फाइदा पहुंचता है । ( शरहे फेकहे अकबर )

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अब तक समझ गये होगे की ईसाले सवाब से हमारा कितना ज्यादा फायदा है 
जो गुनहगार है ईसाले सवाब के जरीये उनकी मगफिरत हो जाती है 

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