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Benefits of sadaqah in Islam सदका करने के फायदे के बारे में जानेंगे
अल्लाह पाक कुरआन मजीद में इर्शाद फ़रमाता है कि जो कुछ दुनियां में तुम्हारे पास है एक ना एक दिन वह खत्म हो जाएगा।
और जो अ़मल तुम अल्लाह के पास भेज दोगे वो हमेशा बाकी रहेगा। (सूरह नहल आयत 96)
Sadqa |
सदकाते नफ़्ल का बयान
अल्लाह तआला की राह में देना निहायत अच्छा काम है ।
माल से तुम को फायदा न पहुँचा तो तुम्हारे क्या काम आया और अपने काम का वही है जो खा - पहन लिया।
या आख़िरत के लिए किया न वह कि जमा किया और दूसरों के लिए छोड़ गये ।
इसके फज़ाइल में चन्द हदीसें सुनें और उन , पर अमल कीजिए अल्लाह तआला तौफीक देने वाला है ।
हदीस नम्बर 1 : - सहीह मुस्लिम शरीफ में हज़रत अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है हुजूरे अक़दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं।
बन्दा कहता है मेरा माल है , मेरा माल है और उसे तो उसके माल से तीन ही किस्म का फायदा है।
(1) जो खाकर फना कर दिया ।
(2) या पहन कर पुराना कर दिया ।
(3) या अता करके आखिरत के लिए जमा किया।
और उसके सिवा जाने वाला है कि औरों के लिए छोड़ जायेगा ।
हदीस नम्बर 2 :- बुख़ारी व नसई ने इब्ने मसऊद रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी हैं हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं तुम में कौन है कि उसे अपने वारिस का माल अपने माल से ज़्यादा महबूब है ।
सहाबा ने अर्ज़ की या रसूलल्लाह ! हम में कोई ऐसा नहीं जिसे अपना माल ज्यादा महबूब न हो ।
फ़रमाया अपना माल तो वह है जो आगे रवाना कर चुका और जो पीछे छोड़ गया वह वारिस का माल है ।
हदीस नम्बर 3 : - इमाम बुखारी हज़रत अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी हैं रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं अगर मेरे पास उहद ( अरब के एक पहाड़ का नाम ) बराबर सोना हो तो मुझे यही पसन्द आता है कि तीन रातें . न गुज़रने पायें और उसमें का मेरे पास कुछ रह जाये।
हाँ अगर मुझ पर दैन ( कर्ज ) हो तो उसके लिए कुछ रख लूँगा ।
हदीस नम्बर 4 :- सही मुस्लिम शरीफ में हुजूरे अक़दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कोई दिन ऐसा नहीं कि सुबह होती है।
मगर दो फ़रिश्ते नाज़िल होते हैं और उनमें एक कहता है ऐ अल्लाह ! खर्च करने वाले को बदला दे और दूसरा कहता है ऐ अल्लाह ! रोकने वाले के माल को तल्फ ( बरबाद ) कर और इसी के मिस्ल इमाम अहमद व इब्ने हिब्बान व हाकिम ने हज़रत अबू दरदा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की ।
हदीस नम्बर 6 :- सहीहैन में है कि हुजूरे अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने असमा रदि यल्लाहु तआला अन्हा से फ़रमाया खर्च कर और शुमार न कर कि अल्लाह तआला शुमार करके देगा।
और बन्द न कर कि अल्लाह तआला भी तुझ पर बन्द कर देगा कुछ दे जो तुझे इस्तिताअत हो ।
हदीस नम्बर 7 :- नीज़ सहीहैन में हज़रत अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि अल्लाह तआला ने फरमाया ऐ इब्ने आदम ! खर्च कर मैं तुझ पर खर्च करूँगा ।
हदीस नम्बर 8 : सही मुस्लिम व सुनने तिर्मिज़ी में अबू उमामा रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फररमाया ऐ इब्ने आदम ! बचे हुए का खर्च करना तेरे लिए बेहतर है और उसका रोकना तेरे लिए बुरा है।
और ब - कद्र ज़रूरत रोकने पर मलामत ( बुराई ) नहीं और उनसे शुरू कर जो तेरी परवरिश में हैं ।
हदीस नम्बर 9 : - सहीहैन में हज़रत अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है हुजूरे अक़दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया बखील ( कंजूस ) और सदका़ देने वाले की मिसाल उन दो शख्सों की है।
जो लोहे की जिरह पहने हुए हैं जिन के हाथ सीने और गले से जकड़े हुए हैं तो सदका देने वाले ने जब सदका दिया वह जिरह कुशादा हो गई ( फैल गई )
और बखील ( कंजूस ) जब सदका देने का इरादा करता है हर कड़ी अपनी जगह को पकड़ लेती है वह कुशादा करना भी चाहता है तो कुशादा नहीं होती ।
हदीस नम्बर 10 : - सही मुस्लिम में हज़रत जाबिर रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं जुल्म से बचो कि जुल्म क़यामत के दिन तारीकियाँ है।
और बुख़्ल ( कंजूसी ) से बचो कि बुख़्ल ने अगलों को हलाक़ किया । इसी बुख़्ल ने उन्हें खून बहाने और हराम को हलाल करने पर आमादा किया ।
हदीस नम्बर 11 : - सही मुस्लिम में हज़रत अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी एक शख्स ने अर्ज की या रसूलल्लाह ! किस सदके का ज़्यादा अज्र है ?
फरमाया उसका कि सेहत की हालत में हो और लालच हो मुहताजी का डर हो और तवंगरी ( मालदारी ) की आरजू यह नहीं कि छोड़े रहे।
और जब जान गले को आ जाये तो कहे इतना फुलाँ को और इतना फुलाँ को देना और यह फुलाँ का हो चुका है यनी वारिस को ।
हदीस नम्बर 12 : - सहीहैन में हजरत अबूज़र रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है कहते हैं मैं हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाज़िर हुआ।
और हुजूर काबए मुअज्जमा के साए में तशरीफ फरमा थे मुझे देख कर फरमाया कसम है रब्बे कबा की वह घाटे में है ।
मैंने अर्ज की मेरे बाप माँ हुजूर पर कुर्बान वह कौन लोग हैं ।
फरमाया ज़्यादा माल वाले मगर जो इस तरह और इस तरह और इस तरह करे आगे पीछे दाहिने बायें यानी हर मौके पर खर्च करे और ऐसे लोग बहुत कम हैं ।
हदीस नम्बर 13 :- सुनने तिर्मिज़ी में हज़रत अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया।
सखी़ क़रीब है अल्लाह से , क़रीब है जन्नत से , क़रीब है आदमियों से , दूर है जहन्नम से , और बखी़ल दूर है अल्लाह से , दूर है जन्नत से , दूर है आदमियों से करीब है जहन्नम से , और जाहिल सखी़ अल्लाह के नजदीक ज़्यादा प्यारा है बखी़ल आबिद से ।
हदीस नम्बर 14 :- सुनने अबू दाऊद में हज़रत अबू सईद रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया
आदमी का अपनी ज़िन्दगी ( यअनी सेहत ) में एक दिरहम सदका़ करना मरते वक्त के सौ (100) दिरहम सदका़ करने से ज़्यादा बेहतर है ।
हदीस न .15 : - इमाम अहमद व नसई व दारमी व तिर्मिज़ी हज़रत अबूदरदा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया
जो शख्स मरते वक़्त सदका़ देता है या आजा़द करता है उसकी मिसाल उस शख्स की है कि जब आसूदा हो लिया तो हदिया करता है । ( मसलन किसी के पास पाँच (5) रोटी थीं और उससे किसी ने सदका़ माँगा उसने न दी अगर दो (2) दे देता ।
और तीन (3) पर गुज़ारा करता तो बेहतर था लेकिन चार खाई और जब एक (1) या कम जो पेट में जगह रहने से मजबूरन बची तो माँगने वाले को दे दी । )
हदीस नम्बर 16 : - सही मुस्लिम शरीफ में हज़रत अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं।
एक शख्स जंगल में था उसने अब्र में एक आवाज़ सुनी कि फुलाँ के बाग को सैराब करो ।
वह अब एक किनारे को हो गया और उसने पानी संगिस्तान ( पथरीली जमीन ) में गिराया और एक नाली ने वह सारा पानी ले लिया ।
वह शख्स पानी के पीछे हो लिया , एक शख्स को देखा कि अपने . बाग में खड़ा हुआ खुरपिया से पानी फेर रहा है ।
इसने कहा ऐ अल्लाह के बन्दे ! तेरा क्या नाम है ?
उसने कहा फुलाँ नाम , वही नाम जो इसने अब्र में से सुना । उसने कहा ऐ अल्लाह के बन्दे । तू मेरा नाम क्यूँ पूछता है ?
इसने कहा मैंने उस अब्र में से जिस का यह पानी है एक आवाज़ सुनी कि वह तेरा नाम लेकर कहता है फुलाँ के बाग को सैराब कर
तो तू क्या करता है ( कि तेरा नाम ले लेकर पानी भेजा जाता है )
जवाब दिया कि जो कुछ पैदा होता है उसमें से एक तिहाई खैरात करता हूँ। और एक तिहाई मैं और मेरे बाल - बच्चे खाते हैं और एक तिहाई बोने के लिये रखता हूँ ।
हदीस नम्बर 17 : - सहीहैन में हज़रत अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं बनी इस्राईल में तीन (3) शख्स थे एक बर्स ( सफेद दाग ) वाला , दूसरा गंजा , तीसरा अंधा । अल्लाह तआला ने उनका इम्तिहान लेना चाहा ।
उनके पास एक फ़रिश्ता भेजा । वह फरिश्ता बर्स वाले के पास आया । उससे पूछा तुझे क्या चीज़ ज़्यादा महबूब है ।
उसने कहा अच्छा रंग और अच्छा चमड़ा और यह बात जाती रहे जिससे लोग घिन करते हैं ।
फ़रिश्ते ने उस पर हाथ फेरा वह घिन की चीज़ जाती रही और अच्छा रंग और अच्छी खाल उसे दी गई । फरिश्ते ने कहा तुझे कौन सा माल ज़्यादा महबूब है ।
उसने ऊँट कहा या गाय ( रावी का शक है मगर बर्स वाले और गंजे में से एक ने ऊँट कहा दूसरे ने गाय ) उसे दस महीने की हामिला ऊँटनी दी और कहा कि अल्लाह तआला तेरे लिए इसमें बरकत दे फिर गंजे के पास आया ।
उसे कहा तुझे क्या शय ज़्यादा महबूब है । उसने कहा खुबसूरत बाल और यह जाता रहे जिससे लोग मुझ से घिन करते हैं । फरिश्ते ने उस पर हाथ फेरा वह बात जाती रही और खूबसूरत बाल उसे दिये गये ।
उससे कहा तुझे कौन सा माल महबूब है । उसने गाय बताई । एक गाभिन गाय उसे दी गई और कहा अल्लाह तआला तेरे लिए इसमें बरकत दे फिर अन्धे के पास आया और कहा तुझे क्या चीज़ महबूब है ।
उसने कहा यह कि अल्लाह तआला मेरी निगाह वापस कर दे कि मैं लोगों को देखू ।
फरिश्ते ने हाथ फेरा अल्लाह तआला ने उसकी निगाह वापस कर दी । फरिश्ते ने पूछा तुझे कौन सा माल ज़्यादा पसन्द है ।
उसने कहा बकरी । उसे एक गाभिन बकरी दी । अब ऊँटों से जंगल भर गया , दूसरे के लिए गाय से , तीसरे के लिए बकरियों से ।
फिर वही फ़रिश्ता बर्स वाले के पास उसकी सूरत और बनावट में होकर आया यअनी बर्स वाला बनकर और कहा मैं मिस्कीन मर्द हूँ मेरे सफर में वसाइल ख़त्म हो गये ।
पहुँचने की सूरत मेरे लिए आज नज़र नहीं आती अल्लाह की मदद से फिर तेरी मदद से मैं उसके वास्ते से जिसने तुझे खूबसूरत रंग और अच्छा चमड़ा और माल दिया है एक ऊँट का सवाल करता हूँ ।
जिससे मैं सफर में मक़सद तक पहुँच जाऊँ ,। उसने जवाब दिया हुकूक बहुत हैं ।
फरिश्ते ने कहा गोया मैं तुझे पहचानता हूँ , क्या तू कोढ़ी न था कि लोग तुझसे घिन करते थे फकीर न था फिर अल्लाह ने तुझे माल दिया । उस ने कहा मैं तो इस माल
का बाप - दादा से वारिस किया गया हूँ ।
फरिश्ते ने कहा अगर तू झूटा है तो अल्लाह तआला तुझे वैसा ही कर दे जैसा तू था ।
फिर गन्जे के पास उसी की सूरत बन कर आया । उससे भी वही कहा ।
उसने भी वैसा ही जवाब दिया । फ़रिश्ते ने कहा अगर तू झूटा है तो अल्लाह तआला तुझे वैसा ही कर दे जैसा तू था ।
फिर अन्धे के पास उसकी सूरत बन कर आया और कहा मैं मिस्कीन शख्स मुसाफिर हूँ।
मेरे सफर में वसाइल खत्म हो गये आज पहुँचने की सूरत नहीं मगर अल्लाह की मदद से फिर तेरी मदद से मैं उसके वसीले से जिसने तुझे निगाह दी।
एक बकरी का सवाल करता हूँ जिसकी वजह से मैं अपने सफर में मकसद तक पहुँच जाऊँ ।
वह कहने लगा मैं अन्धा था अल्लाह तआला ने मुझे आँखें दी तू जो चाहे ले ले और जितना चाहे छोड़ दे खुदा की कसम अल्लाह के लिए तू जो कुछ लेगा मैं तुझ पर मशक्कत न डालूंगा ।
फरिश्ते ने कहा तू अपना माल अपने कब्जे में रख , बात यह है कि तुम तीनों शख्सों का इम्तिहान था तेरे लिए अल्लाह की रज़ा है और उन दोनों पर नाराज़गी ।
हदीस नम्बर18 : - इमाम अहमद व अबू दाऊद व तिर्मिज़ी उम्मे बुजैद रदियल्लाहु तआला अन्हा से रावी कहती हैं मैंने अर्ज की या रसूलल्लाह !
मिस्कीन दरवाजे़ पर खड़ा होता हैं और मुझे शर्म आती है कि घर में कुछ नहीं होता कि उसे दूं ।
इरशाद फरमाया उसे कुछ दे दे अगर्चे जला हुआ खुर ।
हदीस नम्बर 19 : - बैहकी ने दलाइले नुबुव्वत में रिवायत की कि उम्मुल मोमिनीन उम्मे सलमा रदियल्लाहु तआला अन्हा की खिदमत में गोश्त का टुकड़ा हदिया में आया ।
हुजूरे अक़दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को गोश्त पसन्द था उन्होंने खादिमा से कहा इसे घर में रख दे शायद हुजूर तनावुल फरमायें ।
उस ने ताक़ में रख दिया एक साइल आकर दरवाजे पर खड़ा हुआ और कहा सदका़ करो अल्लाह तआला तुम में बरकत देगा ।
लोगों ने कहा तुझमें बरकत दे ( साइल को वापस करना होता तो यह लफ़्ज़ बोलते थे ) साइल चला गया ।
हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम तशरीफ लाये और फरमाया तुम्हारे यहाँ कुछ खाने की चीज़ है ।
उम्मुल मोमिनीन ने अर्ज की हाँ और खादिमा से फरमाया जा वह गोश्त ले आ ।
वह गई तो ताक में पत्थर का एक टुकड़ा पाया । हुजूर ने इरशाद फरमाया चूँकि तुमने साइल को न दिया लिहाज़ा वह गोश्त पत्थर हो गया ।
हदीस नम्बर 20 : - बैहकी शुऐबुल ईमान में हज़रत अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया।
सखावत जन्नत में एक दरख्त है जो सखी़ है उसने उसकी टहनी पकड़ ली है वह टहनी उसको न छोड़ेगी ।
जब तक जन्नत में दाखिल न कर ले और बुख्ल जहन्नम में एक दरख्त है जो बखील है उसने उसकी टहनी पकड़ ली है वह टहनी उसे जहन्नम में दाखिल किए बमैर न छोड़ेगी ।
हदीस नम्बर 21 : - रज़ीन ने हज़रते मौला अली रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया सदका़ में जल्दी करो कि बला सदके़ को नहीं फलाँगती ।
हदीस नम्बर 22 : - सहीहैन में अबू मुसा अशअरी रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया है।
हर मुसलमान पर सदका़ है । लोगों ने अर्ज की अगर न पाये । फरमाया अपने हाथ से काम करे अपने को नफा पहुँचाये और सदका़ भी दे ।
फरमाया साहिबे हाजत परेशान ( यानी जिस शख्स को कुछ ज़रूरत हो या परेशान हो ) की मदद करे । अर्ज की अगर यह भी न करे । फरमाया नेकी का हुक्म करे ।
अर्ज की अगर यह भी न करे । फरमाया शर से बाज़ रहे कि यही उसके लिए सदका़ है ।
हदीस नम्बर 23 :- सहीहैन में हज़रत अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी हुजूरे अक़दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं ।
दो शख्सों में अदल ( इन्साफ ) करना सदका़ है , किसी को जानवर पर सवार होने में मदद देना या उसका असबाब उठा देना सदका़ है ।
और अच्छी बात सदका़ है और जो क़दम नमाज़ की तरफ चलेगा सदका़ है , रास्ते से अज़ीयत की चीज़ दूर करना सदका़ है । हदीस नम्बर 24 :- सही बुखारी व मुस्लिम में हज़रत अनस रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं ।
जो मुसलमान पेड़ लगाये या खेत बोये उसमें से किसी आदमी या परिन्दे या चौपाए ने खाया वह सब उसके लिए सदका़ है ।
हदीस नम्बर 25 और 26 : - सुनने तिर्मिज़ी में अबू ज़र रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं ।
अपने भाई के सामने मुस्कुराना भी सदका़ है , नेक बात का हुक्म करना सदका़ है , बुरी बात से मना करना सदका़ है , राह भूले हुए को राह बताना सदका़ है , कमज़ोर निगाह वाले की मदद करना सदका़ है ।
रास्ते से पत्थर काँटा , हड्डी दूर करना सदका़ है । अपने डोल में से अपने भाई के डोल में पानी डाल देना सदका़ है । इसी के मिस्ल इमाम अहमद व तिर्मिज़ी ने हज़रत जाबिर रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की ।
हदीस नम्बर 27 : - सहीहैन में हज़रत अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है हुजूरे अक़दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं ।
एक दरख्त की शाख बीच रास्ते पर थी एक शख्स गया और कहा मैं इसको मुसलमानों के रास्ते से दूर कर दूंगा कि उनको ईज़ा ( तकलीफ ) न दे वह जन्नत में दाखिल कर दिया गया ।
हदीस नम्बर 28 : - अबू दाऊद व तिर्मिज़ी हज़रत अबू सईद रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं ।
जो मुसलमान किसी मुसलमान नंगे को कपड़ा पहना दे अल्लाह तआला उसे जन्नत के सब्ज़ कपड़े पहनायेगा और जो मुसलमान किसी भूके मुसलमान को खाना खिलायेगा
और जो मुसलमान किसी प्यासे मुसलमान को पानी पिलाये अल्लाह तआला उसे रहीके मखतूम ( यअनी जन्नत की मोहरबन्द शराब ) पिलायेगा ।
मसला:- इस लिये लोग कपड़ा,चना, गेहूं,धान वगैरा सदका़ करते हैं।
हदीस नम्बर 29 : - इमाम अहमद व तिर्मिज़ी इब्ने अब्बास रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से रावी है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते है।
जो मुसलमान किसी मुसलमान को कपड़ा पहना दे तो जब तक उसमें का उस शख्स पर एक पैवन्द भी रहेगा यह अल्लाह तआला की हिफाज़त में रहेगा ।
हदीस नम्बर 30 और 31 : - तिर्मिज़ी व इब्ने हिब्बान- हज़रत अनस रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं सदका़ अल्लाह तआला के गज़ब को बुझाता है और बुरी मौत को दफा करता है ।
नीज़ इसी के मिस्ल अबूबक सिद्दीक व दीगर सहाबए किराम रदियल्लाहु तआला अन्हुम से मरवी ।
हदीस नम्बर 32 : - तिर्मिज़ी में उम्मुल मोमिनीन हज़रत आयशा सिद्दीका रदियल्लाहु तआला अन्हा से रिवायत की लोगों ने एक बकरी ज़बह की थी ,
हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया उसमें से क्या बाकी रहा ।
अर्ज़ की सिवा शाने के कुछ बाकी नहीं । इरशाद फरमाया शाने के सिवा सब बाकी है । ( मतलब यह है कि जो तुमने अपने खाने के लिए रोका वह तो दुनिया का है और यहीं खत्म हो जायेगा
और जो तुमने सदका कर दिया वह बाकी है यअनी आखिरत के लिए उसका सवाब बाकी रहा )
हदीस नम्बर 33 : - अबू दाऊद व तिर्मिजी व नसई व इब्ने खुजैमा व इब्ने हिब्बान अबू जर रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि हुजूरे अक़दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं तीन (3) शख्सों को अल्लाह महबूब रखता है और तीन (3) शख्सों को मबगूज ( दुश्मन ) जिनको अल्लाह महबूब रखता है उनमें एक यह है कि ।
एक शख्स किसी कौ़म के पास आया और उनसे अल्लाह के नाम पर सवाल किया , उस क़राबत के वास्ते से सवाल न किया जो साइल और कौ़म के दरमियान है ।
उन्होंने न दिया । उनमें से एक शख्स चला गया और साइल को छुपा कर दिया कि उसको अल्लाह जानता है और वह शख्स जिसको दिया और किसी ने न जाना ,
और एक कौ़म रात भर चली यहाँ तक कि जब उन्हें नींद हर चीज़ से ज्यादा प्यारी हो गई सब ने सर रख दिये ( यअनी सो गये ) उनमें से एक शख्स खड़ा होकर दुआ करने लगा
और अल्लाह की आयतें पढ़ने लगा और एक शख्स लश्कर में था , दुश्मन से मुका़बला हुआ और इन को शिकस्त हुई ।
उस शख्स ने अपना सीना आगे कर दिया यहाँ तक कि क़त्ल किया जाये या फ़तह हो ।
और वह तीन (3) जिन्हें अल्लाह नापसन्द फरमाता है ।
(1) एक बूढ़ा जिनाकार ,
(2) दूसरा फकीर मुतकब्बिर ( घमंडी )
(3) तीसरा मालदार ज़ालिम ।
हदीस नम्बर 34 : - तिर्मिज़ी ने हजरत अनस रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं ।
जब अल्लाह ने ज़मीन पैदा फरमाई तो उसने हिलना शुरू किया तो पहाड़ पैदा फरमा कर उस पर नसब फरमा दिये , अब ज़मीन ठहर गई ।
फरिश्तों को पहाड़ की सख्ती देखकर तुअज्जुब हुआ । अर्ज़ की ऐ परवरदिगार तेरी मखलूक में कोई ऐसी शय है कि वह पहाड़ से ज़्यादा सख्त है फरमाया हौं लोहा ।
अर्ज की ऐ रब ! लोहे से ज़्यादा सख्त कोई चीज़ है । फरमाया हाँ आग ।
अर्ज की आग भी ज़्यादा कोई सख्त है फरमाया हाँ पानी । अर्ज की पानी से भी ज़्यादा सख्त कुछ है ।
फरमाया हाँ हवा । अर्ज की हवा से भी ज्यादा सख्त कोई शय है । फ़रमाया इने आदम कि दाहिने हाथ से सदका करता है और उसे बायें से छुपाता है ।
हदीस नम्बर 35 :- नसई ने अबू जर रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया जो मुसलमान अपने कुल माल से अल्लाह की राह में जोड़ा खर्च करे जन्नत के दरबान उसका इस्तिकबाल करेंगे ।
हर एक उसे उसकी तरफ बुलायेगा जो उसके पास है । मैंने अर्ज की इसकी क्या सूरत है । फरमाया अगर ऊँट दे तो दो ऊँट और गाय दे तो दो गाय ।
हदीस नम्बर 36 : - इमाम अहमद व तिर्मिज़ी व इब्ने माजा हज़रत मआज रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया ।
सदका़ खता को ऐसे दूर करता है जैसे पानी आग को बुझाता है ।
हदीस नम्बर 37 : - इमाम अहमद बाज़ सहाबा रदियल्लाहु तआला अन्हुम से रिवायत करते हैं कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि ।
मुसलमान का साया कि़यामत के दिन उसका सदका़ होगा ।
हदीस नम्बर 38 : - सही बुखारी में हज़रत अबू हुरैरा व हकीम इब्ने हिज़ाम रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं बेहतर सदका़ वह है कि पुश्ते गिना से
हो यअनी उसके बद तवंगरी ( मालदारी ) बाकी रहे
और उनसे शुरू करो जो तुम्हारी इयाल में हैं यअनी पहले उन को दो फिर औरों को ।
हदीस नम्बर 39 : - अबू मसऊद रदियल्लाहु तआला अन्हु से सहीहैन में मरवी कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया।
मुसलमान जो कुछ अपने अहल पर खर्च करता है अगर सवाब के लिए है तो यह भी सदका़ है ।
हदीस नम्बर 40 : - हजरत जैनब अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से सहीहैन में मरवी उन्होंने हुजूरे अक़दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से दरयाफ़्त कराया।
शौहर और यतीम बच्चे जो परवरिश में हैं उनको सदका़ देना काफी हो सकता है ।
इरशाद फरमाया उनको देने में दूना अज है एक अजे क़राबत और एक अज्जे सदका़ ।
यानी करीब का होने की वजह से देने का सवाब और दूसरो सदका का ।
हदीस नम्बर 41 :- इमाम अहमद व तिर्मिज़ी व नसई व इब्ने माजा व दारमी सुलैमान इब्ने आमिर रदियल्लाहु तआला अन्हु रावी कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्ल्म ने फरमाया।
मिस्कीन को सदका़ देना सिर्फ सदका़ है और रिश्ते वाले को देना सदका़ का भी है और सिलारहमी भी ।
हदीस नम्बर 42 : - इमाम बुखारी व मुस्लिम उम्मुल मोमिनीन हज़रत आयशा सिद्दीका रदियल्लाहु तआला अन्हा से रावी है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं
घर में जो खाने की चीज़ है अगर औरत उसमें से कुछ दे दे मगर ज़ाया करने के तौर पर न हो तो उसे देने का सवाब मिलेगा।
और शौहर को कमाने का सवाब मिलेगा और ख़ाज़िन को भी उतना ही सवाब मिलेगा ।
एक का अज दूसरे के अज को कम न करेगा यनी उस सूरत में जहाँ ऐसी आदत जारी हों कि औरतें दिया करती हों
और शौहर मना न करते हों और उसी हद तक जो आदत के मुवाफिक है
मसलन रोटी दो रोटी जैसा हिन्दुस्तान में उमूमन रिवाज है और अगर शौहर ने मना कर दिया हो या वहाँ की ऐसी आदत न हो तो बगैर इजाज़त औरत को देना जाइज़ नहीं
तिर्मिज़ी में अबू उमामा रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी कि हुजूर ने खुतबए हज्जतुलविदा ( आख़िरी हज के खुतबा ) में फ़रमाया औरत शौहर के घर से बगैर इजाज़त कुछ खर्च न करे ।
अर्ज की गई खाना भी नहीं फरमाया यह तो बहुत अच्छा माल है ।
हदीस नम्बर 43 : - सहीहैन में अबू मूसा अशअरी रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है हुजूरे अक़दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया खाजिन मुसलमान अमानतदार कि जो उसे हुक्म किया गया पूरा - पूरा - उसको दे देता है वह दो (2) सदका़ देने वालों में का एक है ।
हदीस नम्बर 44 : - हाकिम और तबरानी औसत में अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि एक लुकमा रोटी और एक मुट्ठी खुरमा ( खजूर )
और उसकी मिस्ल कोई और जिससे मिस्कीन को नफ़ा पहुँचे इनकी वजह से अल्लाह तआला तीन शख्सों को जन्नत में दाखिल फ़रमाता है।
एक साहिबेख़ाना जिसने हुक्म दिया , दूसरी जौजा कि उसे तैयार करती है , तीसरे खादिम जो मिस्कीन को दे आता है
फिर हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया हम्द है अल्लाह के लिए जिसने हमारे खादिमों को भी न छोड़ा ।
हदीस नम्बर 45 :- इब्ने माजा हज़रत जाबिर इब्ने अब्दुल्लाह रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से रावी कहते हैं कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने खुतबे में फरमाया ।
ऐ लोगो ! मरने से पहले अल्लाह की तरफ रुजू करो और मशगू़ली से पहले अअमाले सालेहा की तरफ सबकत करो
और पोशीदा व अलानिया सदका देकर अपने और अपने रब के दरमियान के तअल्लुकात को मिलाओ तो तुम्हें रोज़ी दी जायेगी और तुम्हारी मदद की जायेगी ।
हदीस नम्बर 46 :- सहीहैन में अदी इब्ने हातिम रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं
हर शख्स से अल्लाह तआला कलाम फरमायेगा उसके और अल्लाह तआला के माबैन ( बीच में ) कोई तर्जमान न होगा यअनी डाइरेक्ट बात करेगा ।
वह अपनी दाहिनी तरफ नजर करेगा तो जो कुछ पहले कर चुका है दिखाई देगा फिर बाईं तरफ देखगा तो वही देखेगा जो पहले कर चुका है ।
फिर अपने सामने नज़र करेगा तो मुँह के सामने आग दिखाई देगी तो आग से बचो अगर्चे खुरमे का एक टुकड़ा देकर ।
और इसी के मिस्ल
हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद रदियल्लाहु तआला अन्हु ,
व हज़रत अबू बक्र सिद्दीके अकबर रदि अल्लाहु अन्हु ,
व उम्मुल मोमिनीन हज़रत आयशा सिद्दीका रदि अल्लाहु अन्हा ,
व हज़रत अनस रदियल्लाहु तआला अन्हु ,
व हज़रत अबू हुरैरा रदि अल्लाहु अन्हु ,
व हज़रत अबू उमामा रदि अल्लाहु अन्हु ,
व हज़रत नोमान इब्ने बशीर वगैरहुम सहाबए किराम रदियल्लाहु तआला अन्हुम से मरवी है ।
हदीस नम्बर 47 : - अबू यअला हज़रत जाबिर और तिर्मिज़ी ने हज़रत मआज इब्ने जबल रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से रावी हैं कि हुजूर सल्लल्लाहु तआल अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया
सदका़ ख़ता को ऐसे बुझाता है जैसे पानी आग को ।
हदीस नम्बर 48 : - इमाम अहमद व इब्ने खुज़ैमा व इबने हिब्बान व हाकिम उक़बा इबने आमिर रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी हैं रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं।
हर शख्स क़यामत के दिन अपने सदके़ के साए में होगा ।
उस वक्त तक कि लोगों के दरमियान फैसला हो जाये और तबरानी की रिवायत में यह भी है कि सदका़ क़ब्र की हरारत ( गर्मी ) को दफा करता है ।
हदीस नम्बर 49 : - तबरानी व बैहकी ने हज़रत हसन बसरी रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं।
रब तआला फरमाता है ऐ इब्ने आदम ! अपने खज़ाने में से मेरे पास कुछ जमा कर दे न जलेगा , न डूबेगा न चोरी में जायेगा ।
तुझे मैं पूरा दूंगा , उस वक़्त कि तू उसका ज़्यादा मुहताज होगा ।
हदीस नम्बर 50 और 51 : - इमाम अहमद व बज़्ज़ाज़ व तबरानी व इबने खुजैमा व हाकिम व बैहकी ने हज़रत बुरीदा रदियल्लाहु तआला अन्हु से और बैहकी अबू ज़र रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी हैं
कि आदमी जब कभी भी कुछ भी सदका़ निकालता है तो सत्तर (70) शैतान के जबड़े चीर कर निकलता है ।
हदीस नम्बर 52 : - तबरानी ने हजरत अम्र इबने औफ रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं।
कि मुसलमान का सदका़ उम्र में ज़्यादती का सबब है और बुरी मौत को दफा करता है।
और अल्लाह तआला उसकी वजह से तकब्बुर व फख्र को दूर फरमा देता है ।
हदीस नम्बर 53 : - तबरानी कबीर में राफेअ़ इब्ने ख़दीज रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि सदका बुराई के सत्तर (70) दरवाज़े को बन्द कर देता है ।
हदीस नम्बर 54 :- तिर्मिज़ी व इबने खुजैमा व इब्ने हिब्बान व हाकिम हारिस अशअरी रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं।
कि अल्लाह तआला ने यहया इब्ने जकरिया अलैहिमस्सलातु वस्सलाम को पाँच (5) बातों की वही भेजी कि खुद अमल करें और बनी इस्राईल को हुक्म फरमायें ।
कि वह उन पर अमल करें और उन में
एक यह है कि उसने तुम्हें सदके़ का हुक्म फरमाया है और उसकी मिसाल ऐसी है ।
जैसे किसी को दुश्मन ने कै़द किया और उसका हाथ गर्दन से मिलाकर बाँध दिया और उसे मारने के लिए लाये ।
उस वक़्त थोड़ा - बहुत जो कुछ था सब को देकर अपनी जान बचाई ।
हदीस नम्बर 55 :- इब्ने खुर्तेमा व इब्ने हिब्बान व हाकिम हज़रत अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी हैं कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया।
जिसने हराम माल जमा किया फिर उसे सदका़ किया तो उस में उसके लिए कुछ सवाब नहीं बल्कि गुनाह है ।
हदीस नम्बर 56 : - अबू दाऊद ने इब्ने खुजैमा व हाकिम उन्हीं से रावी हैं अर्ज़ की या रसूलल्लाह !
कौनसा सदका़ अफ़ज़ल है?
फरमाया गरीब शख्स को कोशिश करके सदका़ देना ।
हदीस नम्बर 57 : -नसई व इबने खुज़ैमा व इबने हिब्बान उन्हीं से रावी हैं कि हुजूरे अक़दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया ।
एक दिरहम लाख दिरहम से बढ़ गया । किसी ने अर्ज़ की यह क्यूँकर या रसूलल्लाह !
फ़रमाया एक शख्स के पास ज़्यादा माल है उस ने उस में से लाख दिरहम लेकर सदका़ किये और एक शख्स पास सिर्फ दो हैं उसने उनमें से एक को सदका किया ।
लिहाजा आप सब समझ पाये होंगे की सदका़ की फजी़लत और हम सब को अल्लाह पाक सदका़ करने की तौफीक़ बख्शे अमीन।
हमने 57 हदीसों से समझा जाना कि सदका़ में किसी को कपड़ा,चावल, खुश्बू, गेहूं,दाल, पैसा, दिरहम,सोना, चांदी, वगैरह हसबो हैसियत से सदका़ करना चाहिए।
और इसके बहुत सारे फायदे हैं की मुसीबतें टलती है, गुनाहों में कमी होती है, कब्र में अजाब से रिहाई मिलती है, परेशानियों से छुटकारा पाने में मदद मिलती है, अल्लाह की रहमत नाजिल होती है, सदका़ से बालाओं की काट हो जाती है
सय्यदना मौला ए कायनात हज़रत अली रदि अल्लाहु अन्हु फरमाते हैं।
जन्गे ख़ैबर में मेरी आंखों में तकलीफ थी सरकार ने अपना लुआबे दहन मेरी आंखों में लगाया।
आंखें ऐसा ठीक हुयी जैसा कि कभी तक़लीफ ही न रही हो (बुखारी शरीफ हदीस 7013)
इसकी मजीद वजा़हत के लिए सरकार स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम की हदीस पढ़ें
हज़रत मुहम्मद स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि सदक़ा करो अगर चे एक (1) खजूर ही हो क्योंकि यह भूंखो की भूंख मिटाता है।
और गुनाहों को इस तरह मिटा देता है जैसे आग को पानी बुझा देता है (अज़जहदुल इब्नुल मुबारक बाबुस सदका़ सफा नम्बर 229 हदीस नम्बर 651)
घटिया इन्सान की निशानी
रसूले अकरम स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया आदमी के घटिया होने के लिए यही काफी है वो अपने मुसलमान भाई को हकी़र और कमतर समझें । (सहीह मुस्लिम शरीफ हदीस 6706)
मुफ्ससिरीन ए किराम इस हदीस के तहत फरमाते हैं जो शख़्स किसी मुसलमान को कमतर बे अक़्ल समझें या मजा़क़ उड़ाये या उसको नुकसान पहुंचाने का सोंचे वह सब घटिया लोगों में से हैं।
एक कड़वा सच
इन्सान को जब अल्लाह से लेना होता है तो करोड़ों की चाह रखता है
और जब अल्लाह की राह में खर्च करना होता है तो सिक्के तलाश करता है।(पीर जीलानी मियां)
क्या आप को सदक़ा के फ़वाइद मालूम हैं?
सुन लो ! सदक़ा देने वाले भी और जो इस का सबब बनते हैं वो भी!
- सदक़ा जन्नत के दरवाज़ों में से एक दरवाज़ा है ।
- सदक़ा नेक अमल में अफ़ज़ल अमल है , और सबसे अफ़ज़ल सदक़ा खाना खिलाना है।
- सदक़ा क़ियामत के दिन साया होगा, और अपने देने वाले को आग से खुलासी दिलाएगा।
- सदक़ा अल्लाह तआला के ग़ज़ब को ठंडा करता है, और क़ब्र की गर्मी की ठंडक का सामान भी है ।
- मय्यत के लिए बेहतरीन हदिया और सबसे ज़्यादा नफ़ा बख़्श चीज़ सदक़ा है, और सदक़ा के सवाब को अल्लाह-तआला बढाता रहता हैं।
- सदक़ा मुशफ़्फ़ी (पाक करने वाला है) है, नफ़स की पाकी का ज़रीया और नेकियों को बढाता है ।
- सदक़ा क़ियामत के दिन सदक़ा करने वाले के चेहरे का सुरूर और ताज़गी का सबब भी है।
- सदक़ा क़ियामत की हौलनाकी़ के ख़ौफ़ से अमान है , और गुज़रे हुए पर अफ़सोस नहीं होने देता।
- सदक़ा गुनाहों की मग़फ़िरत का सबब और बुराइयों का कफ़्फ़ारा भी है।
- सदक़ा ख़ुशख़बरी है , और फ़रिश्तों की दुआ का सबब भी।
- सदक़ा देने वाला बेहतरीन लोगों में से है , और इस का सवाब हर उस शख़्स को मिलता है जो इस में किसी तौर पर भी शरीक हो जाता है।
- सदक़ा देने वाले से ख़ैरे कसीर और बड़े अज्र का वादा भी है।
- ख़र्च करना आदमी को मुत्तक़ीन की सफ़ में शामिल कर देता है, और सदक़ा करने वाले से अल्लाह की मख़लूक़ महब्बत करती है।
- सदक़ा करना जूदो-करम और सख़ावत की अलामत भी है।
- सदक़ा दुआओं के क़बूल होने का सबब है और मुश्किलों से निकालने का ज़रिया भी है।
- सदक़ा बलाओं- मुसीबत को दूर करता है , और दुनिया में सत्तर (70) दरवाज़े बुराई के बंद करता है।
- सदक़ा उम्र में और माल में इज़ाफे़ का सबब है.कामयाबी और रिज़्क़ का सबब भी है।
- सदक़ा इलाज का काम भी करता है दवाई का भी और शिफ़ा का भी काम करता है।
- सदक़ा आग से जलने, ग़र्क़ होने ,चोरी और बुरी मौत को रोकता है हमें चाहिए कि सदका करें।
- सदक़ा का अज्र ज़रूर मिलता है , चाहे वह जानवरों और परिंदों पर ही क्यों ना हो।
सदका एक बेहतरीन अमल है।
हम सबको सदका करना चाहिए और आने वाली बलाओं से बचना चाहिए क्योंकि सदका़ आने वाली बाधाओं को टाल देता है। मुसीबत को टाल देता है ।
और हमें नेक अमल करने के लिए बेहतरीन जरिया है हम सबको चाहिए गरीबों मिस्कीनों की मदद करें ताकि अल्लाह हम से खुश हो और बंदे भी हमको दुआएं दें ।
उनकी भी जरूरतें पूरी हो वह भी अपनी जरूरत पूरी कर सके अल्लाह ताला इसका हमें बहुत अच्छा सिला देता है।
और हमारी नेकियों में बहुत इजाफा होता है
सबसे बेहतरीन सदका़
भूखें को खाना खिलाना चाहिए कि जो भी शख्स मिले अगर वह भूंखा हो तो उसे खाना खिलाना चाहिए।
यूं ही अगर कोई साइल भूंखा हो तो खाना खिलाने पर सवाब है और बेहतर सदका़ है।मगर कोई शख्स बहुत ग़रीब है तो उसको चना, गेंहू,दाल,चावल, कपड़ा, खुश्बू, वगैरह सदका़ करना चाहिए।
ताकी आइन्दा अवकात में वो इस्तेमाल कर सकें।
और यह भी बेहतरीन अमल बेहतरीन सदका़ की कैटगरी में आता है।
एक तो हमने सदका़ अदा करने से बलायें मुसीबतों का खात्मा होता है।
और किसी गरीब की मदद हो जाती है।
ऐ काश कि हमारे उल्मा और आमिलीन भी इस पर अमल करते तो सरकार स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम की हदीस के रहनुमाई में सदका़ करवा कर सुन्नते रसूलल्लाह स्वल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को भी अदा करते।
और मुसीबतों से छुटकारा पाने के लिए लोगों को दावत देकर सुन्नते मुस्तफा स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम अदा कराते।
लेकिन अफसोस सद अफसोस आज कल के आमलीन और उल्मा दोनों इसको दर किनार कर के अपना जेब भरने में लगे हुए हैं।
बहुत कम उल्मा देखने को मिलते हैं जो आज भी सरकार की हदीस को आगे रख कर उस पर खुद भी अमल करते हैं।
और दूसरों को अमल कराने की तरगी़ब देते हैं।(मलफूजाते हज़रत जीलानी मियां सफा नम्बर 37)
अल्लाह हमें सदका़ करने में सुन्नत ए रसूल ए पाक स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम अदा करने की तौफीक़ बख्शे अमीन।
sadqa e jariya meaning sadqa meaning in english sadqa k haqdar sadqa kis ko dena chahiye in urdu sadqa in urdu sadqa ki fazilat online sadqa hadees about sadqa
bainaifits of sadaqah in islam sadaka karane ke phaayade
allaah paak kuraan majeed mein irshaad faramaata hai ki jo kuchh duniyaan mein tumhaare paas hai ek na ek din vah khatm ho jaega.
aur jo amal tum allaah ke paas bhej doge vo hamesha baakee rahega. (soorah nahal aayat 96)
sayyadana maula e kaayanaat hazarat alee radi allaahu anhu pharamaate hain.
jange khaibar mein meree aankhon mein takaleeph thee sarakaar ne apana luaabe dahan meree aankhon mein lagaaya.
aankhen aisa theek huyee jaisa ki kabhee taqaleeph hee na rahee ho (bukhaaree shareeph hadees 7013)
isakee majeed vajahat ke lie sarakaar svalallaaho alaihi vasallam kee hadees padhen
hazarat muhammad svalallaaho alaihi vasallam ne faramaaya ki sadaqa karo agar che ek (1) khajoor hee ho kyonki yah bhoonkho kee bhoonkh mitaata hai.
aur gunaahon ko is tarah mita deta hai jaise aag ko paanee bujha deta hai (azajahadul ibnul mubaarak baabus sadaka sapha nambar 229 hadees nambar 651)
ghatiya insan ki nishani
rasoole akaram svalallaaho alaihi vasallam ne faramaaya aadamee ke ghatiya hone ke lie yahee kaaphee hai vo apane musalamaan bhaee ko hakeera aur kamatar samajhen . (saheeh muslim shareeph hadees 6706)
muphsasireen e kiraam is hadees ke tahat pharamaate hain jo shakhs kisee musalamaan ko kamatar be aql samajhen ya majaqa udaaye ya usako nukasaan pahunchaane ka sonche vah sab ghatiya logon mein se hain.
ek kadava sach
insaan ko jab allaah se lena hota hai to karodon kee chaah rakhata hai aur jab allaah kee raah mein kharch karana hota hai to sikke talaash karata hai.(peer jeelaanee miyaan)
kya aap ko sadaqa ke fayde maaloom hain?
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