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Shane gause pak | Gaus e paak ke 11 name in hindi
गौ़स ए पाक का पूरा नाम क्या है
सरकारे बगदाद हुज़ूर गौ़से पाक रहमतुल्लाह अलैहे की कुन्नियत अबू मुहम्मदऔर अलक़ाबातमुहियुद्दीन, महबूबे सुब्हानी, गौसुस्स-क़लैन, गौसुल आज़म वगैरा है।
आप सन् 470 हिजरी में बगदाद शरीफ के क़रीब क़स्बा ए जीलान में पैदा हुए।
और सन् 561 हिजरी में बगदाद शरीफ ही में विसाल फ़रमाया। आप का मज़ारे पुर अन्वार इराक़ के मशहूर शहर बगदाद शरीफ में है।
Gaus pak ki shayari in hindi गौस पाक पर शायरी
किसी को ज़माने की दौलत मिली है
किसी को ज़माने की हुक्मरानी मिली है
मै अपने मुकद्दर पर कुरबान जाँऊ मुझे गौसे आज़म की निस्बत मिली है
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गौ़स किसे कहते हैं | Gaus kise kehte hain
गौसिय्यत बुज़ुर्गी का एक खास दर्जा है, लफ़्ज़े "गौस" के लुगवि माना है "फरियाद-रस यानी फ़रियाद करना ।
चूँकी हज़रते शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैहे गरीबों, बे कसों और हाजत मन्दो के मददगार हैं।
इसलिए आप को ग़ौसे आज़म के खिताब से सरफ़राज़ किया गया है।
और बाज़ अक़ीदत मन्द आपको "पीराने पीर दस्त-गीर" के लक़ब से भी याद करते हैं। ( ग़ौसे पाक के हालात, सफ़ह नम्बर 16 )
ग़ौसे पाक हज़रत सय्यद अब्दुल का़दिर जीलानी गौसे आज़म का नसब शरीफ gaus e pak Ka Nasab nama
ग़ौस. ए आज़म रहमतुल्लाह अलैहे वालिदेमाजिद की निस्बत से हसनी है।
ग़ौस ए आज़म सिलसिला ए नसब यूँ है।
सय्यद मुहयुद्दीन अबू मुहम्मद अब्दुल क़ादिर जीलानी
बिन सय्यद अबू सालेह जंगी दोस्त
बिन सय्यद अबू अब्दुल्लाह
बिन सय्यद याहया
बिन सय्यद मुहम्मद
बिन सय्यद दावूद
बिन सय्यद मूसा सानी
बिन सय्यद अब्दुल्लाह
बिन सय्यद मूसा जौन
बिन सय्यद अब्दुल्लाह महज़
बिन सय्यद इमाम हसन मुसन्ना
बिन सय्यद इमामे हसन
बिन सय्यदना अ़लिय्युल मुर्तज़ा हज़रत अली रदि अल्लाहु अन्हु।
और सरकार गौ़स ए पाक रहमतुल्लाह अलैहे अपनी वालिदा माजिदा की निस्बत से हुसैनी सय्यद है।
Gause pak ke aba oazdad | ग़ौसे पाक के आबाओ अज्दाद
सरकार गौ़सुल आज़म रहमतुल्लाह अलैहे का खानदान स्वलिहीन का घराना था।
आप के नाना जान, दादा जान, वालिदे माजिद, वालिद ए मोहतरमा, फूफी जान, भाई और साहिब जा-दगान सब मुत्तक़ी व परहेज़ गार थे।
इसी वजह से लोग आप के खानदान को अशराफ का खानदान कहते हैं।
सरकार गौस ए आजम नजीबुत तरफैन सय्यदहै आप का घराना हसनी हुसैनी सय्यद है। ( ग़ौसे पाक के हालात, सफ़ह नम्बर 16-17 )
Gaus e pak ke walid गौस पाक के वालिद का नाम
सरकार गौस ए आजम रहमतुल्लाह अलैहे के वालिदे मोहतरम हज़रते अबू स्वालेह सय्यद मूसा जंगी दोस्त रहमतुल्लाह अलैहे थे।
आप का इसमें गिरामी "सय्यद मूसा" कुन्नियत "अबू स्वालेह" और लक़ब "जंगीदोस्त" था।
आप जीलान शरीफ के अकाबिर मशाईखे किराम में से थे।
Jangi dost laqab ki wajah| जंगी दोस्त लक़ब की वजह
सरकार गौसुल आलम रहमतुल्लाह अलैहे के वालि माजिद का लक़ब जंगी दोस्त इस लिये हुवा की
आप खालि-सतन अल्लाह की रिज़ा के लिये नफ़्स कशी और रियाज़ते शर-ई में यकताए ज़माना थे।
नेकी के कामो का हुक्म करने और बुराई से रोकने के लिये मश्हूर थे।
Gaus pak ke nana ka naam |ग़ौसे पाक के नाना जान
हुज़ूर सय्यदना गौसुल आ'ज़म रहमतुल्लाह अलैहे के नाना जान हज़रते अब्दुल्लाह सौमई रहमतुल्लाह अलैहे जीलान शरीफ के मशाइख में से थे।
आप निहायत ज़ाहिद और परहेज़ गा़र होने के आलावा साहिबे फ़ज़्लो कमाल भी थे।
बड़े बड़े मशाईखे किराम से आप ने शरफे मुलाक़ात हासिल किया था।
Gaus e paak ki wiladat ki basharat | ग़ौसे पाक की विलादत की बशारत
महबूबे सुब्हानी शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी के वालिदे माजिद हज़रते सय्यदना अबू स्वालेह़ मूसा जंगी दोस्त रहमतुल्लाहि तआला ने
हुज़ूर गौसे आज़म अलैहिर्रहमा की विलादत की रातमुशाहदा फ़रमाया की सरवरे काइनात फ़ख़रे मौजूदात हुजूर मोहम्मदमुस्तफा स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम ﷺ मअ सहाबा ए किराम,
और औलिया ए इज़ाम उनके घर में जल्वा अफ़रोज़ हैं।
और इन अल्फ़ाज़े मुबारका से उन को खिताब फरमा कर बशारत से नवाजा। ऐ अबू स्वालेह! अल्लाह عزوجل ने तुम को ऐसा फ़रज़न्द अता फ़रमाया है जो वाली है।
और वो मेरा और अल्लाह عزوجل का महबूब है।
और उसकी शान औलिया और अक़्ताब में वैसी ही शान होगी होगी जैसी अम्बिया और मुरसलीन अलैहिसलातु वस्सलाम में मेरी शान है।
Ambiya e kiram ki bsharat | अम्बियाए किराम की बिशारत
हज़रते अबू स्वालेह मूसा जंगी दोस्त रहमतुल्लाह अलैह को ख्वाब में शहंशाहे अरबो अ'ज़म के आलावा जुम्ला अम्बियाए किराम अलैहिमुस्सलाम ने ये बशारत दी की
"तमाम औलिया अल्लाह तुम्हारे फऱज़न्दे अर्ज़मंद के मुतीअ़ होंगे और उन की गर्दनों पर इनका क़दम मुबारक होगा। (सीरते गौसुस्स-क़लैन, सफा नम्बर 55 ,ग़ौसे पाक के हालात, सफ़ह नम्बर 22-23 )
Hazrat Hasan Bashri ki Basharat | ग़ौसे पाक की विलादत की बशारत हज़रते हसन बसरी की बशारत
जिन मशाइख ने हज़रते ग़ौसे आ'ज़म रहमतुल्लाह अलैह की क़ुतबिय्यत के मर्तबे की गवाही दी है।
"रौ-ज़तुन्नवाज़िर" और "नूज़हतुल खवातिर" में साहिबे किताब उन मशाइख का तज़्क़िरा करते हुए लिखते हैं।
आप रहमतुल्लाह अलैह से पहले अल्लाह के औलिया में से कोई भी आप का मुन्किर न था।
बल्कि उन्होंने आप की आमद की बशारत दी है।
चुनान्चे हज़रत हसन बसरी रहमतुल्लाह अलैह ने अपने ज़माना ए मुबारक से ले कर हज़रते शैख़ मुहिय्युद्दीन अब्दुल क़ादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह के ज़माना ए मुबारक तक तफ़्सील से खबर दी है की ।
जितने भी अल्लाह के औलिया गुज़रे हैं सब ने हज़रत शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह की खबर दी है। ( सीरते गौसुस्स-क़लैन, सफा नंबर 58 )
Hazrat Khwaja junnaid bagdaadi ki basharat | हज़रत ख़्वाजा जुन्नैद बग़दादी की बशारत
आप रहमतुल्लाह अलैह इर्शाद फरमाते है की "मुझे आ़लमे गै़ब से मालुम हुवा है की पाँचवीसदी ( 5 th Century ) के वस्त में सय्यदुल मुर-सलीन की औलादे अतहार में से एककु़त्बे आ़लम होगा।
जिन का लक़ब मुहिय्युद्दीन और इस्मे मुबारक अब्दुल क़ादिर है और वो ग़ौस एआ़ज़म होगा।
और जीलान में पैदा होगा उनको खतमुन्नबीय्यीन की औलादे अतहार में से आइम्मा ए किराम और सहाबा ए किराम के आलावा ,
अव्वलीन ओ आखिरीन के "हर वाली और वालिय्या की गर्दन पर मेरा क़दम है। कहने का हुक्म होगा। (सीरते गौसुस्स-क़लैन, सफा नंबर 57 )
Hazrat Gaus Pak ki Karamat
ग़ौसे आ'ज़म की वक़्ते विलादत करामत का ज़हूर
सरकार गौ़सुल आ़लम दस्तगी़र रहमतुल्लाह अलैह की विलादत माहे रमज़ानुल मुबारक में हुई।
और पहले दिन ही रोज़ा रखासेहरी से ले कर इफ्तारी तक आप अपनी वालिदा ए मोहतरमा का दूध नहीं पीते थे।
चुनान्चे गौ़सुस - सक़लैन हज़रत शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह की वालिद ए माजिदा फरमाती है की
जब मेरा फ़रज़न्द अब्दुल का़दिर पैदा हुवा तो रमज़ान शरीफ में दिन भर दूध नहीं पीता था।
Gaus Pak ki bachpan ki Karamat |गौ़स ए पाक के बचपन की बरकतें
गौ़स पाक की वालिद ए माजिदा फरमाया करती थी ।
जब मैने अपने साहब ज़ादे अब्दुल क़ादिर को जना तो वो रमज़ानुल मुबारक में दिन के वक़्त मेरा दूध नहीं पीता था।
अगले साल रमज़ान का चांद गुबार की वजह से नज़र न आया था ।
तो लोग मेरे पास दरियाफ़्त करने के लिये आए तो मेने कहा "मेरे बच्चे ने दूध नहीं पिया"।
फिर मालूम हुआ की आज रमज़ान का दिन है और हमारे शहर में ये बात मशहूर हो गई की सय्यदों में एक बच्चा पैदा हुआ है।
जो रमज़ान में दिन के वक़्त दूध नहीं पीता है।( ग़ौसे पाक के हालात, सफ़ह नम्बर 24-25 )
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Hazrat Gaus Pak ka bachpan | gaus pak ki karamat bachpan ki |हज़रतगौसे पाक का बचपन
छोटे बच्चे की लाश
ख़ानक़ाह में एक बा पर्दा खातून अपने छोटे बच्चे की लाश चादर में लपेटे सीने से चिपकाए जारो क़तार रो रही थी। इतने में एक नूरानी बच्चा दौड़ता हुआ आता है।
और हम दर्दाना लहजे में उस खा़तून से रोने का सबब दरियाफ़्त करता है।
वो रोते हुए कहती है बेटा ! मेरा शौहर अपने लख्ते जिगर के दीदार की हसरत लिये दुनियां से रुख़सत हो गया है।
ये बच्चा उस वक़्त पेट में था और अब ये अपने बाप की निशानी और मेरी ज़िन्दगानी का सरमाया था।
ये बीमार हो गया मैं इसे इसी खानकाह में दमकरवाने ला रही थी की रास्ते में इस ने दम तोड़ दिया है।
मैं फिर भी बड़ी उम्मीद ले कर यहाँ हाजिर हो गयी की इस ख़ानक़ाह वाले बुज़ुर्ग की विलायत की हर तरफ धूम (चर्चा) है।
और इनकी निगाहें करम से अब भी बहुत कुछ हो सकता है।
मगर वो मुझे सब्र की तल्की़न देकर अंदर तशरीफ़ ले जा चुके हैं।
ये कह कर वो खातुन फिर रोने लगी उस नूरानी बच्चें का दिल पिघल गया।
और उस की रहमत भरी ज़बान पर ये अल्फ़ाज़ निकले । मोहतरमा आप का बच्चा मरा हुवा नहीं बल्कि ज़िन्दा है देखो तो सही वो हरकत कर रहा है । दुख्यारी माँ ने बेताबी के साथ अपने बच्चे की लाश पर से कपडा उठा कर देखा तो वो सच मुच ज़िन्दा था औरहाथ-पैर हिला रहा था।
इतने में ख़ानक़ाह वाले बुज़ुर्ग अंदर से वापस तशरीफ़ लाए।
बच्चे को ज़िन्दा देख कर सारी बात समझ गए और लाठी उठा कर ये कहते हुए उस नूरानी बच्चें की तरफ लपके की ।
तू ने अभी से तक़दीरें खुदा वन्दी के सरबस्ताराज़ खोलने शुरु कर दिया है।
नूरानी बच्चा वहां से भाग खड़ा हुवा और वो बुज़ुर्ग उसके पीछे दौड़ने लगे।
नूरानी बच्चा यका यक कब्रस्तान की तरफ मुड़ा और बुलंद आवाज़ से पुकारने लगा ऐकब्र वालो! मुझे बचाओ
तेज़ी से लपकते हुये बुज़ुर्ग अचानक ठिठक कर रुक गए।
क्यों कि क़ब्रस्तान से तीन सौ (300) मुर्दे उठ कर उसी नूरानी बच्चे की ढाल बन चुके थे ।
और वो नूरानी बच्चा दूर खड़ा अपना चाँद सा चेहरा चमकता मुस्कुरा रहा था।
उस बुज़ुर्ग ने बड़ी हसरत के साथ नूरानी बच्चे की तरफ देखते हुये कहा बेटा ! हम तेरे मर्तबे को नहीं पहुच सकते।
इस लिये तेरी मर्ज़ी के आगे अपना सरे तस्लीम खम करते है !
प्यारे दोस्तों भाइयों आप जानते हैं वो नूरानी बच्चा कोन था ?
उस नूरानी बच्चे का नाम "सय्यिद अब्दुल क़ादिर जीलानी" था।
और आगे चल कर वो गौसुल आज़म के लक़ब से मशहूर हुए।
और वो बुज़ुर्ग उन के नाना जान हज़रते सय्यदना अब्दुल्लाह सूमई रहमतुल्लाह अलैहे थे। ( ग़ौसे पाक का बचपन, सफ़ह नम्बर 4-5 )
नबी ए रहमत हजरत मोहम्मद मुस्तफा ﷺ की बशारत
महबूबे सुब्हानी, शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी के वालिदे मजीद हज़रते सय्यिदुना अबू सालेह मूसा जंगी दोस्त राह्मतुल्लाहे तआला ने
हुज़ूर गौ़से आज़म अलैहिर्रहमा की विलादत की रात मुशाहदा फ़रमाया की सरवरे काइनात, फ़ख़रे मौजूदात ﷺ मअ सहाबा ए किराम और औलिया ए इज़ाम उनके घर जल्वा अफ़रोज़ हैं । और इन अल्फ़ाज़े मुबारका से उन को खिताब फरमा कर बशारत से नवाज़ा ऐ अबू सालेह अल्लाह عزوجل ने तुम को ऐसा फ़रज़न्द अता फ़रमाया है जो वाली है।
और वो मेरा और अल्लाह عزوجل का महबूब है और उसकी औलिया और अक़्ताब में वैसी ही शान होगी। जैसी अम्बिया और मुरसलीन अलैहिसलातु वस्सलाम में मेरी शान है। (सीरते गौसुसशकलैन, सफ़ह नम्बर 55 )
प्यारे दोस्तों हमारे गौसे पाक की शानकिस क़दर बुलंदो बाला है की आप के पैदा होते ही
गैब बताने वाले आक़ा ﷺ ने आप के बुलंद मर्तबे और शानो अज़मत की बशारत दे दी थी नीज़ ये भी बता दिया था की
आप तमाम औलिया जे सरदार होंगे इसी लिये आप के पैदा होते ही बरकात ओ तजल्लिय्यात का ज़हूर शुरू हो गया।
विलादते बा सआदत सरकार गौ़स ए पाक |Wiladat Hazrat Gaus e paak
हुज़ूर गौसे पाक रहमतुल्लाह तआला अलैहे यकुम रमज़ान बरोज़ जुमअतुल मुबारकसन 470 हिजरी(01,Ramzan, Friday, 470 hijri) को बगदाद शरीफ के क़रीब क़स्बा ए जीलान में पैदा हुये।
इसी निस्बत से आप को गौसुल आज़म जीलानी कहा जाता है
Gaus e pak ki karamat in hindi | हैरत अंगेज़ वाकीआत
हज़रते सय्यदना अब्दुल क़ादिर जीलानी रहमतुल्लाहि तआला अलैहे की विलादत बा सआदत के वक़्त बहुत से हैरत अंगेज़ वाकीआत ज़हूर पज़ीर हुये।
सबसे बड़ी बात तो ये है की जब आप रौनक अफरोज़ आलम हुए उस वक़्त आप की वालिद ए माजिदा हज़रते उम्मुल खैर फ़ातिमा की उम्र 60 साल की थी।
इस उम्र में आम तौर पर औरतों को औलाद से ना उम्मीदी हो जाती है। ये अल्लाह का खास फ़ज़्ल था की इस उम्र में हुज़ूर गौसे आज़म रहमतुल्लाहि अलैह उनके बतने मुबारक से पैदा हुए। जिस रात हज़रते सय्यदना अब्दुल क़ादिर जीलानी रहमतुल्लाह तआला अलैहे की विलादत हुयी। उस रात जीलान शरीफ की जिन औरतों के यहाँ बच्चा पैदा हुआ।
उन सब को अल्लाह ने लड़का ही अता फ़रमाया।
और हर नौमौलूद लड़का अल्लाहकावली बना। ( गौसे पाक का बचपन सफ़ह नम्बर 7-8 )
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खेल कूद से बे रागबति
देखा जाता है की बचपन में उमूमन बच्चे खेल कूद की तरफ रागि़ब होते हैं और पढा़ई से दूर भागते हैं।
जब की हमारे गौ़से पाक की शान तो देखिये की बचपन ही से आप को खेल कूद से कोई रगबत नहीं थी।
निहायत साफ सुथरे रहते और ज़बाने मुबारक से कभी कम अक्ली की बात न निकली थी।
सरकार गौसे पाक अपने लड़कपन के मुतअल्लिक़ खुद इर्शाद फरमाते है की :-
उम्र के इब्तिदाई दौर में जब कभी में लड़कोंं के साथ खेलना चाहता तो गै़ब से आवाज़ आती थी की
"खेल कूद से बाज़ रहो" जिसे सुनकर में रुक जाया करता था ।
और अपने गिर्दो पेश पर नज़र डालता तो मुझे कोई कहने वाला दिखाई न देता था।
जिस से मुझे दहशत सी मालूम होती मै जल्दी से भागता हुवा घर आता और वालिदा ए मोहतरमा की आगोशे मोहब्ब्त में छुप जाता था।
अब वो ही आवाज़ में अपनी तन्हाइयो में सुना करता हूं।
अगर मुझे नींद नहीं आती है तो फौरन मेरे कानो में आ कर मुझे मुतनब्बेह (खबरदार) कर देती है की
"तुम को इस लिये पैदा किया गया है की तुम सोया करो।
( गौसे पाक का बचपन सफ़ह नम्बर 12 )
शिक्मे मादर में इल्म ( माँ के पेट में इल्म )
5 बरस की उम्र में जब पहली बार बिस्मिल्लाह पढ़ने की रस्म के लिये किसी बुज़ुर्ग के पास बैठे तो बिस्मिल्लाह पढ़ कर सूरए फातिहा और अलिफ़-लाम-मीम से लेकर 18 पारे पढ़ कर सुना दिये।
उन बुज़ुर्ग ने कहा बेटा और पढ़िये।
फ़रमाया बस मुझे इतना ही याद है क्यू की मेरी माँ को भी इतना ही याद था।
जब में अपनी माँ के पेट में था उस वक़्त वो पढ़ा करती थी, मेंने सुन कर याद कर लिया था।
( गौसे पाक का बचपन सफ़ह नम्बर 15 )
अपनी विलायत का इल्म होना
हज़ूर गौसे आ'ज़म फरमाते है की जब में बचपन के आ'लम में मदरसे को जाया करता था ।
तो रोज़ाना एक फरिश्ता इन्सानी शक्ल में मेरे पास आता और मुझे मदरसे ले जाता,
खुद भी मेरे पास बैठा रहता था।
में उसे मुतलकन नहीं पहचानता था की ये फरिश्ता है।
एक दिन मैंने उससे पूछा आप कौन हो ?
तो उसने जवाब दिया की में फरिश्तों में से एक फरिश्ता हूँ।
अल्लाह तआला ने मुझे इस लिये भेजा है की मदरसे में आप के साथ रहा करूँ।
इसी तरह आप फरमाते है, की एक रोज़ मेरे क़रीब से एक शख्स गुज़रा जिस को में बिल्कुल नहीं जनता था।
उसने जब फरिश्तों को ये कहते सुना की कुशादा हो जाओ ताकि अल्लाह का वाली बैठ जाए।
तो उसने फ़रिश्ते से पूछा की ये लड़का किस का है ?
तो फ़रिश्ते ने जवाब दिया की ये सादात के घराने का लड़का है।
तो उसने कहा की ये अन क़रीब बहुत बड़ी शान वाला होगा।
आप रहमतुल्लाह अलैहे के साहिब ज़ादे शैख अब्दुल रज़्जा़क़ रहमतुल्लाहअलैहे का बयान है की :-
एक दफा हुज़ूर गौसे आ'ज़म से दरयाफ़्त किया गया की आप को अपने वली होने का इल्म कब हुवा ?
तो आप ने फ़रमाया की जब मैं (10) दस बरस का था और अपने शहर के मकतब में जाया करता था।
और फरिश्तों और को अपने पीछे और इर्द गिर्द चलते देखता।
जब मकतब में पहुंच जाता तो वो बार बार ये कहते की अल्लाह के वली को बैठने के लिये जगह दो।
इसी वाकिये को बार बार देख कर मेरे दिल में ये अहसास पैदा हुवा की अल्लाह तआला ने मुझे दर्जए विलायत पर फाइज़ किया है ! ( गौसे पाक का बचपन सफ़ह नम्बर 18 )
बचपन में राहे खुदा के मुसाफिर बन गए
गौसे पाक बचपन ही में इल्मे दिन हासिल करने के लिये राहे खुदा के मुसाफिर बन गए थे।
चुनान्चे हज़रत शैख़ मुहम्मद बिन क़ाइद अवानी फरमाते है की हज़रत गौसे आ'ज़मजीलानी ने हम से फ़रमाया की बचपन में हज के दिन मुझे एक मर्तबा जंगल की तरफ जाने का इत्तिफ़ाक़ हुवा
और में एक बैल के पीछे पीछे चल रहा था की उस बैल ने मेरी तरफ देख कर कहा
ऐ अब्दुल क़ादिर जीलानी तुम्हे इस किस्म के कामो के लिये तो पैदा नहीं किया गया में घबरा कर घर लौटा और अपने घर की छत पर चढ़ गया तो क्या देखता हुं की मैदाने अरफात में लोग खड़े है।
इसके बाद मेने अपनी वालिदए माजिदा की खिदमते अक़्दस में हाजिर हो कर अर्ज़ किया आप मुझे राहे खुदा में वक़्फ़ फरमा दे और मुझे बगदाद जाने की इजाज़त मर्हमत फरमाए ताकि में वहा जा कर इल्मे दीन हासिल करूँ। वालिदा माजिदा ने मुझसे इसका सबब दरयाफ़्त किया, मेने बैल वाला वाक़ीआ अर्ज़ कर दिया तो उन की आँखों में आँसू आ गए और वो (80) अस्सी दिनार जो मेरे वालिदे माजिद की विरासत थे।
मेरे पास ले आई तो मेने उनमे से (40) चालिस दिनार ले लिये और (40 )चालिसदिनार अपने भाई सय्यिद अबू अहमद के लिये छोड़ दिये। वालिदए माजिदा ने मेरे (40) चालिस दिनार मेरी गुदड़ी में सी दिये और मुझे बगदाद जाने की इजाज़त इनायत फरमा दी।
उन्होंने मुझे हर हाल में रास्त गोयी और सच्चाईको अपनाने की ताकीद फ़रमायी और जीलान के बाहर तक मुझे अल विदाअ़ कहने के लिये तशरीफ़ लाई और फ़रमाया ऐ मेरे प्यारे बेटे में तुझे अल्लाह की रिजा और ख़ुशनूदी की खातिर अपने पास से जुदा करती हुं और अब मुझे तुम्हारा मुह क़यामत को ही देखना नसीब होगा। ( गौसे पाक का बचपन सफ़ह 19-20 )
शौके इल्मे दीन
हज़रत सय्यिदना शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी अलैरहमा के इल्मे दिन हासिल करने का अंदाज़ बड़ा निराला था, आप के शौके इल्मे दिन का अंदाज़ इस बात से लगाइये की आप फरमाते है
मैं अपने तालिबे इल्म के ज़माने में असातिज़ा से सबक ले कर जंगल की तरफ निकल जाया करता था, फिर बयाबानो और वीरानो में दिन हो या रात, अंधी हो या मूसलधारबारिश, गर्मी हो या सर्दी अपना मुताअला जारी रखता था,
उस वक़्त में अपने सर पर एक छोटा सा इमामा बाधता और मामूली तरकारियां खा कर शिकम की आग सर्द करता।
कभी कभी ये तरकारियां भी हाथ न आती, क्यू की भूक के मारे हुवे दूसरे फकरा भी इधर का रुख कर लिया करते थे।
ऐसे अवकेअ पर मुझे शर्म आती थी की मैं दरवेशों की हक़ तल्फि करु, मजबूरन वहा से चला जाता और अपना मुताअला जारी रखता, फिर नींद आती तो खली पेट ही कंकरियो से भरी हुई ज़मीन पर सो जाता।
आप अपने इसी ज़मानए तालिबे इल्मी के बारे में फरमाते है में ज़माने की जिन सख्तियो से दो चार हुवा।
उन्हें बर्दाश्त करते करते पहाड़ भी फट जाता, ये तो उस ज़ाते बे नियाज़ का काम है की में बी आफिय्यत उन खारज़ारो (काँटेदार जंगलो) से गुज़र गया।
(गौसे पाक का बचपन सफ़ह 20 )
ग़ौसे पाक का इल्मो अ'मल और तक़्वा व परहेज़ गारी
हज़रते शैख़ इमाम मौक़ीफ़ुद्दीन बिन क़ीदामा रहमतुल्लाह अलैह फरमाते है की हम 561 हिजरी में बगदाद शरीफ गए तो हमने देखा की शैख़ सय्यिद अब्दुल क़ादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह उनमें से है की जिन को वहा पर इल्म, अ'मल और हाल व फतवा नवीसी की बादशाहत दी गई है।
कोई तालिबे इल्म यहाँ के इलावा किसी और जगह का इरादा इसलिये नहीं करता था की आप में तमाम उलूम जमा है ।
और जो आप से इल्म हासिल करते थे आप उम् तमाम तलबा के पढ़ाने में सब्र फरमाते थे,
आप का सीना फराख़ था और आप सैर चश्म थे, अल्लाह ने आप में औसाफे जमीला और अहवाले अ'ज़िज़ा जमा फरमा दिये थे ।
( गौसे पाक के हालात सफ़ह 27 )
शाने गौसे आज़म तेरह (13 subject) उलूम में तक़रीर फरमाते
इमाम रब्बानी शैख़ अब्दुल वह्हाब शारानी और शैखुल मुहद्दिसिन अब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी और अल्लामा मुहम्मद बिन यहया हबली रहमतुल्लाह अलैह तहरीर फरमाते है की
हज़रत अब्दुल क़ादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह तेरह (13 subject) उलूम में तक़रीर फ़रमाया करते थे।
एक जगह अल्लामा शाअरानी फरमाते है की ग़ौसे पाक के मदरसा आलिया में लोग आप से
तफ़्सीर,
हदीस,
फिक़्ह और
इल्मुल कलाम पढ़ते थे,
दोपहर से पहले और बाद दोनों वक़्त लोगो को
तफ़्सीर,
हदीस,
फिक़्ह,
कलाम,
उसूल और
नहव पढ़ाते थे
और ज़ोहर के बाद किरआतो के साथ क़ुरआन पढ़ते थे।
( गौसे पाक के हालात सफ़ह 28 )
इल्म का समुन्दर
शैख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिस दहेल्वी रहमतुल्लाह अलैह ग़ौसे पाक के इल्मी कमालात के मुतअल्लिक़ एक रिवायत नक़ल करते है की
एक रोज़ किसी क़ारी ने आप की मजलिस में क़ुरआनशरीफ की एक आयत तिलावत की तो आप ने उस आयत की तफ़्सीर में पहले एक (1) तर्जुमा फिर (2) दो इसके बाद (3) तीन यहाँ तक की हाज़िरीन के इल्म के मुताबिक़
आप ने उस आयत के ग्यारह (11) तर्जुमा और मआनी बयान फ़रमा दिये
और फिर दीगर वुजूहात बयान फ़रमाई जिन की तादाद चालिस (40) थी और हर वजह की ताईद में इल्मी दलाइल बयान फ़रमाए और हर मानी के साथ सनद बयान फ़रमाई।
ग़ौसे पाक रहमतुल्लाह अलैह के इल्मी दलाइल की तफ़सील से सब हाज़िरीन मुतज्जीब हुए।
(गौसे पाक के हालात सफ़ह 29 )
एक आयत के चालीस मआनी बयान फरमाए गौसे आज़म का इल्मी मुका़म غوث اعظم Abdul Qadir jilani غوث اعظم بمن غوث کا معنی غوث پاک کی اولاد غوث اعظم کا علمی مقام غوث اعظم کی کرامات غوث گوالیاری غواش
हाफ़िज़ अबुल अब्बास अहमद बिन अहमद बगदादी बनदलजी रहमतुल्लाह अलैह ने साहिबे बहज्जतुल असरार से फ़रमाया।
मैं और तुम्हारे वालिद एक दिन हज़रते शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह की मजलिस में हाज़िर हुए आप ने एक (1) आयत की तफ़्सीर में एक तर्जुमा और म-आ-नी बयान फ़रमाया तो मेने तुम्हारे वालिद से कहा ये तर्जुमा मतलब म-आ-नी आप जानते है ?
आप ने फ़रमाया हाँ।
फिर ग़ौसे पाक ने दूसरा तर्जुमा और म-आ-नी बयान फ़रमाया तो मैने दोबारा तुम्हारे वालिद से पूँछा की क्या आप इस तर्जुमाऔर म-आ-नी को जानते है ?
तो उन्होंने फ़रमाया हाँ।
फिर आप ने एक और तर्जुमा और म-आ-नी बयान फ़रमाया तो मेने तुम्हारे वालिद से पूछा की आप इस मानी को जानते है।
इसके बाद आप ने ग्यारह (11) मआनी बयान किये और मैं हर बार तुम्हारे वालिद से पूँछता था।
और वो यही कहते की इन तर्जुमा और मानोसे में वाक़ीफ़ हूँ।
यहाँ तक की ग़ौसे पाक ने पूरे चालिस (40) म-आ-नी बयान किये जो निहायत उम्दा और अज़ीज़ थे।
ग्यारह (11) के बाद हर तर्जुमा और म-आ-नी के बारे में तुम्हारे वालिद कहते थे में इन तर्जुमा और मानो से वाक़ीफ़ नहीं हूँ !
(गौसे पाक के हालात सफ़ह 29 )
हज़रत इमाम अहमद बिन हम्बल का इज़हारे अक़ीदत
हज़रत शैख़ इमाम अबुल हसन अली बिन अल हैती रहमतुल्लाह अलैह फरमाते है की मैने हज़रते शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह और शैख़ बक़ा बिन बतौ के साथ हज़रते इमाम अहमद बिन हम्बल रहमतुल्लाह अलैह के रौज ए अक़्दस की ज़ियारत की। मैने देखा की हज़रते इमाम अहमद बिन हम्बल रहमतुल्लाह अलैह क़ब्र से बाहर तशरीफ़ लाए ।
और हुज़ूर ग़ौसे पाक को अपने सीने से लगा लिया और उन्हें खिरका पहना कर इर्शाद फ़रमाया। ऐ शैख़ अब्दुल क़ादिर बेशक में इल्मे शरीअत, इल्मे हक़ीक़त, इल्मे हाल और फेलेहाल में तुम्हारा मोहताज हूँ !
( गौसे पाक के हालात सफ़ह 30 )
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मुश्किल मसअले का आसान जवाब
बिलादे अ'जम से एक सुवाल आया की "एक शख्स ने तीन (3) तलाक़ो की क़सम इस तौर पर खाई है।
की वो अल्लाह की ऐसी इबादत करेगा की जिस वक़्त वो इबादत में मशगूल हो तो लोगो में से कोई शख्स भी वो इबादत न कर रहा हो
अगर वो ऐसा न कर सका तो उसकी बीवी को (3) तीन तलाक़ै हो जाएगी, तो इस सूरत में कौन सी इबादत करनी चाहिए ?
" इस सवाल से उल्माए इराक़ हैरान और शशदर रह गए।
और इस मसअले को उन्होंने हुज़ूर ग़ौसे आ'ज़म रहमतुल्लाह अलैह की खिदमते अक़्दस में पेश किया तो आप ने फौरन इसका जवाब इर्शाद फ़रमाया की "वो शख्स मक्कए मुकर्रमा चला जाए और तवाफ़ की जगह सिर्फ अपने लिये खाली कराए और तन्हा (7) सात मर्तबा तवाफ़ करके अपनी क़सम को पूरा करे।
इस शाफ़ी जवाब से उल्मा ए इराक़ को निहायत ही तअज्जुब हुवा क्यू की वो इस सुवाल के जवाब से आ'जिज़ हो गए थे!
( गौसे पाक के हालात सफ़ह 30 - 31 )
वाह क्या मर्तबा ऐ ग़ौस है बाला तेरा
हज़रते शैख़ अबू अब्दुल्लाह मुहम्मद बिन ख़िज़र के वालिद फरमाते है की मैंने हज़रते ग़ौसे आ'ज़म रहमतुल्लाह अलैह के मदरसे में ख़्वाब देखा की एक बड़ा वसीअ मकान है।
और उस में सहरा और समुन्दर के मशाइख़मौजूद हैं ।
और हज़रते शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी उनके सद्र है।
उन्मे बाज़ मशाइख़ तो वो है जिन के सर पर सिर्फ इमामा है।
और बाज़ वो है जिनके इमामे पर एक तुर्रा है।
और बाज़ के दो (2) तुररे हैं लेकिन
हुज़ूर ग़ौसे पाक के इमामा शरीफ पर तीन (3) तुररे है।
में उन तीन (3) तुररे के बारे में मुतफ़क्किर था।
और इसी हालत में जब में वेदार हुवा तो आप मेरे सिरहाने खड़े थे।
इर्शाद फ़रमाने लगे की खिज्र ! एक तुर्रा इल्मे शरीअत की शराफत का और दूसरा इल्मे हक़ीक़त की शराफ़त का और तीसरा शरफ़ व मर्तबे का तुर्रा है।
(गौसे पाक के हालात सफ़ह 31 )
हुज़ूर ग़ौसे आ'ज़म की साबित क़दमी
हज़रत कुत्बे रब्बानी शैख़ अब्दुल क़ादिर अल जीलानी अल हसनी वल हुसैनी रहमतुल्लाह अलैह ने अपनी साबित क़दमि का खुद इस अंदाज़ में ताज़्करा फ़रमाया है की
मेने (राहे खुदा عزوجل में) बड़ी बड़ी सख्तिया और मशक़्क़्ते बतदश्त की अगर वो किसी पहाड़ पर गुज़रती तो वो भी फट जाता।
शयातीन से मुक़ाबला
शैख़ उस्मान अस्सरिफैन रहमतुल्लाह अलैह फरमाते है मैने शहंशाहे बगदाद हुज़ूरे ग़ौसे पाक रहमतुल्लाह अलैह की ज़बाने मुबारक से सुना की में शबो रोज़ बयाबानो और वीरान जंगलो में रहा करता था।
मेरे पास शयातीन मुसल्लह हो कर हैबत नाक शक्ल में कतार आते और मुझ से मुक़ाबला करते, मुझ पर आग फेकते मगर में अपने दिल में बहुत ज्यादा हिम्मत और ताक़त महसूस करता और गैब से कोई मुझे पुकार कर कहता।
ऐ अब्दुल क़ादिर उठो उनकी तरफ बढ़ो, मुक़ाबले में हम तुम्हे साबित क़दम रखेंगे और तुम्हारी मदद करेंगे।
फिर जब में उन की तरफ बढ़ता तो वो दाएं बाएं या जिधर से आते उसी तरफ भाग जाते।
उन मेसे मेरे पास सिर्फ एक ही शख्स आता और डराता और मुझे कहता की यहाँ से चले जाओ।
तो में उसे एक तमाचा मारता तो वो भागता नज़र आता फिर में "ला-हव्ल-वला-क़ुव्वत इल्ला-बिल्ला-हिल-अ'लिय्यिल-अ'जी़म" पढता तो वो जल कर ख़ाक हो जाता।
( गौसे पाक के हालात सफ़ह 32)
ज़ाहिर व बातिनी औसाफ के जामेअ
मुफ्तिये इराक़ मुहयुद्दीन शैख़ अबू अब्दुल्लाह मुहम्मद बिन अली तौहीदि रहमतुल्लाह अलैह फरमाते है
हज़रते शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह
जल्द रोने वाले,
निहायत ख़ौफ़ वाले,
बा हैबत,
मुस्तजाबुद्दा'वात,
करीमुल अख़लाक़,
खुशबूदार पसीने वाले,
बुरी बातो से दूर रहने वाले,
हक़ की तरफ लोगो से ज्यादा क़रीब होने वाले,
नफ़्स पर क़ाबू पाने वाले,
इन्तिक़ाम न लेने वाले,
साइल को न झिड़कने वाले,
इल्म से मुहज़्ज़ब होने वाले थे।
आदाबे शरीअत आप के ज़ाहिरी औसाफ़ और हक़ीक़त आप का बातिन था।
( गौसे पाक के हालात सफ़ह 32 - 33 )
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साल भर तक आफ़तों से हिफाज़त इंशाअल्लाह होगी
राबीउस्सानी मतलब रबीउल आखिर की 11वी शब् (यानि बड़ी रात) सारा साल मुसीबतो से हिफाज़त की निय्यत से सरकारे गौषे आ'ज़म के 11 नाम अव्वल आखिर 11 दुरुद शरीफ पढ़ कर 11 खजूरों पर दम कर के उसी रात खा लीजिये। इन्शा अल्लाह सारा साल मुसीबतो से हिफाज़त होगी।
वो नाम ये है
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या सैय्यद मोहिय्युद्दीन अमरुल्लाह।
या शैख मोहय्युद्दीने फदलुल्लाह।
या वलिय्य मोहीय्युद्दीने अमानुल्लाह।
या मौलाना मोहय्युद्दीनि नुरुल्लाह।
या गौस मोहय्युद्दीनी कुतबुल्लाह।
या सुल्तान मोहय्युद्दीने फार्मानुल्लाह।
या ख्वाजा मोहय्युद्दीने बुरहानुल्लाह।
या खलिल मोहय्युद्दीने अमानुल्लाह।
या बादशाह मोहिय्युद्दीने कुदसूल्लाह।
या कुत्बो मुहय्युद्दीने शाहिदुल्लाह।
अगिसनी अगिसनि अगिसनि वमदुदनि व-अदरिकनी फि-कदा ई हाजति वफतह अलल मखलुकि-न या कुत्बो रब्बानी या गौसुस समदानी या महबूबे सुब्हानी या सुल्तान मीरा मोहय्युद्दीने अबू मोहम्मदेनि-शशाहो अब्दुल क़ादिरे अलजीलानि कददसल्लाहो सिररहुल अजी-ज़ व सल्लल्लाहो अला खैरे खलकेहि मोहमदिव व-आलेही व-अशबेहि आजमइन बे रहमते क या अरहमर्राहेमिन
मा-हुमा मोहताज तू हाजत रवा
अल मदद या गौषे आज़म सय्यिदा
तर्जुमा :- जो जैसा भी मोहताज हो आप उसके हाजत रवा हो, तो ऐ गौषे आ'ज़म رضي الله تعالي عنه हमारी मदद फरमाइये।
मुश्किला-ती अदद-दारीम-मा
अल मदद या गौषे आ'ज़म पिरि-मा
तर्जुमा :- बेशुमार मुश्किलात ने हमको घेर लिया है, ऐ हमारे पिर सरकार गौसे आ'ज़म رضي الله تعالي عنه हमारी मदद फरमाइये। आमीन अल्लाहुम्मा आमीन
समुंदरी तरीक़त आप के हाथो में
कुत्बे शहरी अहमद रिफाइ रहमतुल्लाह अलैह से मरवी है की
शैख़ अब्दुल क़ादिर रहमतुल्लाह अलैह वो है की शरीअत का समुन्दर उनके दाए हाथ है
और हक़ीक़त का समुन्दर उनके बाए हाथ,
जिस में से चाहे पानी ले, हमारे इस वक़्त में अब्दुल क़ादिर का कोई सानी नहीं।
चालिस साल तक इशा के वुज़ू से नमाज़े फज्र अदा फ़रमाई शैख़ अबू अब्दुल्लाह मुहम्मद बिन अबूल फ़त्ह हरवी रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाते है की
मेने हज़रते शैख़ मुहयुद्दीन अब्दुल क़ादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह की 40 साल तक खिदमत की, इस मुद्दत में आप इशा के वुज़ू से सुबह की नमाज़ पढ़ते थे।
और आप का मामूल था की जब बे वुज़ू होते थे तो उसी वक़्त वुज़ू फ़रमा कर दो रकअतनमाज़े नफ़्ल पढ़ लेते थे।
15 साल तक हर रात में ख़त्मे क़ुरआने मजीद
हुज़ूरे गौसुस्स-क़लैन् रहमतुल्लाह अलैह 15 साल तक रत भर में एक क़ुरआने पाक ख़त्म करते रहे।
और आप हर रोज़ एकहज़ार (1000) रकअत नफ़्ल अदा फ़रमाते थे।
( ग़ौसे पाक के हालात, सफ़ह 33 )
आप के बयान मुबारक की बरकतें
हज़रते बज़्ज़ाज़ रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाते है। मैंने हज़रते शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी से सुना की आप कुर्सी पर बैठे तक़रीर (वाअज़) फ़रमा रहे थे की
मैंने हुज़ूर सय्यदे आ'लम ﷺ की ज़ियारत की तो आप ने मुझे फ़रमाया।
बेटा तुम बयान क्यों नहीं करते हो ?
मैंने अर्ज़ किया ऐ मेरे नानाजान में एक आज़मि हूँ बग़दाद में फुसहा के सामने बयान कैसे करूं ?
आप ﷺ ने मुझे फ़रमाया बेटा अपना मुंह खोलो
मेने अपना मुह खोला, तो आप ﷺ ने मेरे मुह में सात (7) दफा लुआ'बे मुबारक डाला और मुझसे फ़रमाया की लोगो के सामने बयान किया करो और उन्हें अपने रब की तरफ़ उम्दा हिक्मत और नसीहत के साथ बुलाओ।
फिर मैने नमाज़े ज़ोहर अदा की और बैठ गया, मेरे पास बहुत से लोग आए और मुज पर चिल्लाए,
इसके बाद मुझे हज़रते अली इब्ने अबी तालिब की ज़ियारत की, की मेरे सामने मजलिस में खड़े है और
फ़रमाते है की "ऐ बेटे तुम बयान क्यू नहीं करते ?
मेने अर्ज़ की ऐ मेरे वालिद लोग मुझ पर चिल्लाते है।
फिर आप ने फ़रमाया ऐ मेरे फ़रज़न्द अपना मुह खोलो।
मेने अपना मुह खोला तो आप ने मेरे मुह में 6 दफा लुआ'ब डाला,
मेने अर्ज़ की आप ने 7 दफा क्यू नहीं डाला ?
उन्होंने फ़रमाया रसूलुल्लाह ﷺ के अदब की वजह से। फिर वो मेरी आँखों से ओझल हो गए।
( ग़ौसे पाक के हालात, सफ़ह 34 - 35 )
आप का पहला बयान मुबारक
हुज़ूर गैस आ'ज़म रहमतुल्लाह अलैह का पहला बयान इज्तिमाए बरानिया में माहे शव्वालुल मुकर्रम 521 हिजरी में अज़ीमुश्शान मजलिस में हुवा जिस पर हैबत व रौनक़ छाई हुई थी
औलियाए किराम और फिरिश्तो ने उसे ढापा हुवा था।
आप ने किताब व सुन्नत की तशरीह के साथ लोगो को अल्लाह तआला की तरफ बुलाया तो वो सब इताअत व फ़रमा बरदारी के लिये जल्दी करने लगे।
चालिस साल तक इस्तिक़ामत से बयान फ़रमाया ।
ग़ौसे पाक रहमतुल्लाह अलैह के फऱज़न्दे अर्जुमन्द अब्दुल वह्हाब रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाते है की
हुज़ूर शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह ने 521 हिजरी से 561 हिजरी तक चालिस (40) साल तक मख़लूक़ को वा'ज़ो नसीहत फ़रमाई !
( गौस पाक के हालात, सफ़ह 35)
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आप के बयान मुबारक की तासीर
हज़रते इब्राहिम बिन साद रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाते है की जब हमारे शैख़ हुज़ूरे ग़ौसे आ'ज़म रहमतुल्लाह अलैह आ'लिमो वाला लिबास पहन कर उचे मक़ाम पर जल्वा अफरोज़ हो कर बयान फ़रमाते तो लोग आप के कलामे मुबारक को बागौर सुनते और उस पर अ'मल पैरा होते।
आप की आवाज़ मुबारक की करामत
हज़रते शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह की मजलिसे मुबारक में बा वुज़ूद ये की सुरकाए इज्तिमा बहुत ज्यादा होते थे ।
लेकिन आप की आवाज़ मुबारक जैसी नज़्दीक वालो को सुनाई देती थी वैसी ही दूर वालो को सुनाई देती थी यानि दूर और नज़्दीक वालो के लिये आप की आवाज़ मुबारक यक्सा थी !
( ग़ौसे पाक के हालात, सफ़ह 35 - 36 )
शुरकाए इज्तिमाअ पर आप की हैबत
आप शुरकाए इज्तिमा के दिलो के मुताबिक़ बयान फ़रमाते और कश्फ़ के साथ उनकी तरफ़ मुतवज्जेह हो जाते
जब आप मिम्बर पर खड़े हो जाते तो आप के जलाल की वजह से लोग भी खड़े हो जाते थे और जब आप उन से फ़रमाते की चुप रहो।
तो सब ऐसे ख़ामोश हो जाते की आप की हैबत की वजह से उन की सांसों के इलावा कुछ भी सुनाई न देता !
( ग़ौसे पाक के हालात, सफ़ह 36 )
अम्बिया और औलिया की आप के बयान में तशरीफ़ आवरी
शैख़ मुहक़्क़ीक़ शैख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिस दहेल्वी फ़रमाते है। ग़ौसे पाक रहमतुल्लाह अलैह की मजलिस शरीफ में कुल औलिया और अम्बियाए किराम जिस्मानी हयात और अरवाह के साथ नीज़ जिन्न और मलाएका तशरीफ़ फ़रमा होते थे।
और हबीबे रब्बुल आ'लमिन ﷺ भी तरबिय्यत व ताईद फ़रमाने के लिये जल्वा अफरोज़ होते थे।
और हज़रते खिजर अलैरहमा तो अक्सर अवक़ात मजलिस शरीफ के हाज़िरीन में शामिल होते थे और न सिर्फ खुद आते बल्कि मशाईखे ज़माना में से जिस से भी आप की मुलाक़ात होती तो उन को भी आप की मजलिस में हाज़िर होने की ताकीद फ़रमाते हुए इर्शाद फ़रमाते की
जिस को भी फ़लाह व कामरानी की ख्वाहिश हो उस को ग़ौसे पाक रहमतुल्लाह अलैह की मजलिस शरीफ की हमेशा हाज़री ज़रूरी है।
(ग़ौसे पाक के हालात, सफ़ह 36 - 37 )
जिन्नात भी आप का बयान सुनते है।
शैख़ अबू ज़करिया यहया बिन अबी नसर् सहरावी रहमतुल्लाह अलैह के वालिद फ़रमाते है की
"मैने एक दफा अ'मल के ज़रिए जिन्नात को बुलाया तो उन्हों ने कुछ ज़्यादा देर कर दी फिर वो मेरे पास आए और कहने लगे की
जब शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी बयान फरमा रहे होते उस वक़्त हमें बुलाने की कोशिश न किया करो।
मैंने कहा क्यूं ?
उन्होंने कहा की हम हुज़ूरे ग़ौसे आ'ज़म रहमतुल्लाह अलैह की मजलिस में हाज़िर होते है।
मैंने कहा तुम भी उनकी मजलिस में जाते हो ?
उन्होंने कहा हा हम मर्दों में कसीर तादाद में होते है, हमारे बहुत से गिरोह है जिन्हों ने इस्लाम क़बूल किया है और उन सब ने हुज़ूरग़ौसे पाक रहमतुल्लाह अलैह के हाथ पर तौबा की है !
(ग़ौसे पाक के हालात, सफ़ह 37 )
500 यहूदियो और ईसाइयो का कबूले इस्लाम
हज़रते शैख़ मुहिय्युद्दीन अब्दुल क़ादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाते हैं।
मेरे हांथ पर पांच सौ (500) से ज्यादा यहूदियो और ईसाइयो ने इस्लाम क़बूल किया ।
और एक लाख (100000) से ज्यादा डाकू, चोर, फुस्साक़ो फुज्जार, फ़सादी और बिदअतीलोगों ने तौबा की।
( ग़ौसे पाक के हालात, सफ़ह 37 - 38 )
डाकू ताइब हो गए
हुज़ूर ग़ौसे पाक रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाते हैं। जब मैं इल्मे दीन हासिल करने के लिये जीलान से बग़दाद काफिले के हमराह रवाना हुवा और जब हमदान से आगे पहुचे तो 60डाकू काफिले पर टूट पड़े और सारा काफिला लूट लिया लेकिन किसी ने मुझ से तअर्रुज़ न किया, एक डाकू मेरे पास आ कर पूछने लगा ऐ लड़के तुम्हारे पास भी कुछ है ?
मैने जवाब में कहा : हाँ।
डाकू ने कहा : क्या है ?
मैने कहा : 40 दीनार।
उसने पूछा : कहाँ है?
मैने कहा : गुदड़ी के नीचे।
डाकू इस रास्त गोई को मज़ाक़ तसव्वुर करता हुवा चला गया, इसके बाद दूसरा डाकू आया और उसने भी इसी तरह के सवालात किये
और मैने यही जवाबात उसको भी दिये और वो भी इसी तरह मज़ाक़ समझते हुए चलता बना।
जब डाकू अपने सरदार के पास जमा हुए तो उन्होंने अपने सरदार को मेरे बारे में बताया तो मुझे वहाँ बुलाया गया, वो माल की तक़्सीम करने में मसरूफ थे।
डाकुओ का सरदार मुझ से मुखातिब हुवा तुम्हारे पास क्या है ?
मैंने कहा 40 दिनार है।
डाकुओ के सरदार ने डाकुओ को हुक्म देते हुए कहा इसकी तलाशी लो। तलाशी लेने पर जब सच्चाई का इज़हार हुवा तो उसने ताअज्जुब से सवाल किया की
तुम्हे सच बोलने पर किस चीज़ ने आमादा किया ?
मैने कहा वालिदाए माजिदा की नसीहत ने।
सरदार बोला वो नसीहत क्या है ?
मैने कहा मेरी वालिद ए मोहतरमा ने मुझे हमेशा सच बोलने की तलकीन फ़रमाई थी और मैने उनसे वादा किया था की सच बोलूंगा।
तो डाकुओ का सरदार रो कर कहने लगा ये बच्चा अपनी माँ से किये हुए वादे से मुन्हरीफ नहीं हुवा और मैंने सारी उम्र अपने रब से किये हुए वादे के खिलाफ गुज़ार दी है। उसी वक़्त वो उन साठ (60) डाकुओं समेत हांथ पर ताइब हुवा और काफिले का लूटा हुआ माल वापस कर दिया।
निगाहे वली में ये तासीर देखी
बदलती हज़ारो की तक़दीर देखी
( ग़ौसे पाक के हालात, सफ़ह 38-39 )
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निगाहे गौस आ'ज़म से चोर कुत्ब बन गया
ग़ौसे आ'ज़म रहमतुल्लाह अलैह मदिनए मुनव्वरह से हाज़िरी दे कर नंगे पाँव बगदाद शरीफ की तरफ आ रहे थे की रास्ते में एक चोर खड़ा किसी मुसाफिर का इंतज़ार कर रहा था की उसको लूट ले।
आप जब उसके क़रीब पहुचे तो पूछा तुम कौन हो ?
उसने जवाब दिया देहाती हुं।
मगर आप के कश्फ़ के ज़रिए उसकी मासियत और बद किर्दारी को लिखा हुवा देख लिया और उस चोर के दिल में ख्याल आया शायद ये ग़ौसे आ'ज़म रहमतुल्लाह अलैह है।
आप को उसके दिल में पैदा होने वाले ख्याल का इल्म हो गया तो आप ने फ़रमाया में अब्दुल क़ादिर जीलानी हूं।
तो वो चोर सुनते ही फौरन आप के मुबारक कदमो पर गिर पड़ा और उस की ज़बान पर "ऐ मेरे सरदार अब्दुल क़ादिर मेरे हाल पर रहम फरमाये" जारी हो गया।
आप को उस की हालत पर रहम आ गया और उसकी इस्लाह के लिये बारगाहे इलाही में मुतवज्जेह हुए तो गै़ब से निदा आई।
याग़ौसे आ'ज़म इस चोर को सीधा रास्ता दिखा दो और हिदायत की तरफ रहनुमाई फ़रमाते हुए इसे कुतुब बना दो।
चुनान्चे आप की निगाहे फैज़ रसा से वो कुत्बीय्यत के दरजे पर फाइज़् हो गया।
कसीदये गौसिया शरीफ में फ़रमाते है।kasida gausiya,qasida e gausiya
बिला-दुल्लाहि मुल्की तहत हुकमी
यानि अल्लाह के तमाम शहर मेरे तहते तसर्रुफ़ और ज़ेरे हुक़ूमत है।
इससे ज़ाहिर हुआ की आ'लम में हर इक शै पर है क़ब्ज़ा सरकार ग़ौसे आ'ज़म का है।
असा मुबारक चराग की तरह रोशन हो गया
हज़रते अब्दुल मलिक ज़याल रहमतुल्लाह अलैह बयान करते है की में एक रात हुज़ूर ग़ौसे पाक रहमतुल्लाह अलैह के मदरसे में खड़ा था।
आप अंदर से एक आसा दस्ते अक़्दस में लिए हुए तशरीफ़ फरमा हुए, मेरे दिल में ख्याल आया की काश !
हुज़ूर अपने इस आसा से कोई करामत दिखलाए।
इधर मेरे दिल में ये ख़याल गुज़रा और उधर हुज़ूर ने आसा को ज़मींन पर गाड़ दिया तो वो आसा मिस्ल चराग के रोशन हो गया और बहुत देर तक रोशन रहा फिर आप ने उसे उखेड लिया तो वो आसा जैसा था वेसा ही हो गया
इसके बाद आप ने फ़रमाया बस ऐ ज़याल ! तुम यही चाहते थे।
( ग़ौसे पाक के हालात, सफा 39 )
करामाते गौसे आज़म ऊँगली मुबारक की करामत
एक मर्तबा रात में सरकारे बगदाद अब्दुल क़ादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह के हमराह शैख़ अहमद रिफाइ और अदि बिन मुसाफिर रहमतुल्लाह अलैह हज़रते इमाम अहमद बिन हम्बल रहमतुल्लाह अलैह के मज़ारे पुर अन्वार की ज़ियारत के लिये तशरीफ़ ले गए।
मगर उस वक़्त अँधेरा बहुत ज्यादा थाहज़रते ग़ौसे पाक रहमतुल्लाह अलैह उनके आगे आगे थे।
आप जब किसी पथ्थर, लकड़ी, दिवार या कब्र के पास से गुज़रते तो आप हाथ से इशारा फ़रमाते तो उस वक़्त आप का हाथ मुबारक चांद की तरह रोशन हो जाता था ।
और इस तरह वो सब हज़रात आप के मुबारक हाथ की रौशनी के ज़रिए हज़रते इमाम अहमद बिन हम्बल रहमतुल्लाह अलैह के मज़ारे मुबारक तक पहुच गए।
( ग़ौसे पाक के हालात, सफा 41 )
अल्लाह का आप से वादा
हुज़ूर गौसे आ'ज़म रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाते है। मेरे परवर दिगार ने मुझ से वादा फ़रमाया है की जो मुसलमान तुम्हारे मदरसे के दरवाजे से गुज़रेगा उसके अज़ाब में तख़फ़ीफ़ फरमाऊंगा।
मदरसे के करीब से गुज़रने वाले की बख्शिश
एक शख्स ने खिदमते अक़्दस में हाज़िर हो कर अर्ज़ की, फला क़ब्रिस्तान में एक शख्स दफन किया गया है जिस का हाल ही में इंतिक़ाल हुवा है उसकी क़ब्र से चीखने की आवाज़ आती है जैसे कि अज़ाब में मुब्तला है।
हुज़ूर गौस पाक रहमतुल्लाह अलैह ने इर्शाद फ़रमाया
क्या वो हमसे बैअत है ?
अर्ज़ की :- मालुम नहीं।
फरमाया :- हमारे यहाँ के आने वालो में था ?
अर्ज़ की :- मालुम नहीं।
फ़रमाया :- कभी हमारे घर का खाना उसने खाया है ?
अर्ज़ की :- ये भी मालुम नहीं।
हुज़ूर गौसुस्स-क़लैन रहमतुल्लाह अलैह ने मुरा-क़बा फ़रमाया और ज़रा देर में सरे अक़्दस उठाया, हैबतो जलाल रुए अन्वर से ज़ाहिर था।
इर्शाद फ़रमाया फरिश्ते हम से ये कहते है की एक बार इसने हम को देखा था और दिल मे नेक गुमान लाया था इस वजह से बख्श दिया गया।
फिर जो उसकी क़ब्र पर जा कर देखा तो फरियाद व पुकार की आवाज़ आना बिलकुल बंद हो गई।
( ग़ौसे पाक के हालात, सफा 41-42 )
अज़ाबे क़ब्र से निजात मिल गई
बगदाद शरीफ के महल्ले बाबुल के क़ब्रिस्तान में एक क़ब्र से मुर्दे के चीखने की आवाज़ सुनाई देने के मुतअल्लिक़ लोगो ने आप रहमतुल्लाह अलैह की बारगाह में अर्ज़ किया तो आप ने पूछा ?
क्या उस क़ब्र वाले ने मुझ से खिर्का पहना है ?
लोगोने कहा हुज़ूरे वाला इसका हमें इल्म नहीं है।
आप ने पूछा उसने कभी मेरी मजलिस में हाज़री दी थी ?
लोगोने अर्ज़ की बन्दा नवाज़! इसका भी हमे इल्म नहीं।
इसके बाद आप ने पूछा क्या उसने मेरे पीछे नमाज़ पढ़ी है ?
लोगो ने कहा हम इस के मुतअल्लिक़ भी नहीं जानते।
आपने इर्शाद फ़रमाया भुला हुवा शख्स ही ख़सार में पड़ता है।
इसके बाद आप ने मुराक़बा फ़रमाया और आप के चेहरए मुबारक से जलाल, हैबत और वक़ार ज़ाहिर होने लगा।
आपने सरे मुबारक उठा कर फ़रमाया की फिरिश्तो ने मुझे कहा है। इस शख्स ने आप की ज़ियारत की है और आप से हुस्ने ज़न और मोहब्बत रखता था तो अल्लाह तआला ने आप के सबब इस पर रहम फरमा दिया है।
इसके बाद उस क़ब्र से कभी भी आवाज़ न सुनाई दी।
( ग़ौसे पाक के हालात, सफा 44 )
मुर्गी ज़िन्दा कर दी
एक बीबी सरकारे बग़दाद रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में अपना बेटा छोड़ गई की इस का दिल हुज़ूर से गिरविदा है अल्लाह عزوجل और उसके रसूल ﷺ के लिये इस की तरबिय्यत फरमाए।
आप ने उसे क़बूल फरमा कर मुजाहदे पर लगा दिया और एक रोज़ उनकी माँ आई देखा लड़का भूक और शब बेदारी से बहुत कमज़ोर और ज़र्द रंग हो गया है और उसे जौ की रोटी खाते देखा।
जब बारगाहे अक़्दस में हाज़िर हुई तो देखा की आप के सामने एक बर्तन में मुर्गी की हड्डिया रखी है जिसे हुज़ूर रहमतुल्लाह अलैह ने तनावुल फ़रमाया था।
अर्ज़ की ऐ मेरे मौला हुज़ूर तो मुर्गी खाए और मेरा बच्चा जौ की रोटी।
ये सुन कर हुज़ूरे पुरनूर सरकार अब्दुल क़ादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह ने अपना दस्ते अक़्दस उन हड्डियों पर रखा और फ़रमाया जी उठ उस अल्लाह عزوجل के हुक्म से जो बोसीदा हड्डियों को ज़िन्दा फ़रमाएगा।
ये फरमान था की मुर्गी फौरन ज़िन्दा सहीह सालिम खड़ी हों कर आवाज़ करने लगी।
गौसे पाक रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया जब तेरा बेटा इस दरजे तक पहुच जाएगा तो जो चाहे खाए।
(गौसे पाक के हालात, सफा 44 - 45 )
आप की दुआ की बरकत
हज़रते शैख़ सालेह अबुल मुज़फ्फर इस्माइल बिन अली हुमैरी ज़रीरानी रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाते है।
हज़रते शैख़ अली बिन हैतमि रहमतुल्लाह अलैह जब बीमार होते तो कभी कभी मेरी ज़मीन की तरफ जो की ज़रीरान में थी तशरीफ़ लाते और वहा कई दिन गुज़ारते
एक दफा आप वही बीमार हो गए तो उन के पास मेरे गौषे समदानी रहमतुल्लाह अलैहबगदाद से तामीर दारी के लिये तशरीफ़ लाए।
दोनों मेरी ज़मीन पर जमा हुए, उस में दो खजूर के दरख़्त थे जो चार बरस से खुश्क थे और उन्हें फल नहीं लगता था
हमने उन को काट देने का इरादा किया तो हज़रते अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह खड़े हुए और उन में से एक के निचे वुज़ू किया और दूसरे के निचे दो नफ़्ल अदा किये
तो वो सब्ज़ हो गए और उनके पत्ते निकल आए।
और उसी हफ्ते में उन का फल आ गया हाला की वो खजूरो के फल का वक़्त नहीं था में ने अपनी ज़मीन से कुछ खजूरे ले कर आप की खिदमत में हाज़िर कर दी आप ने उस में से खाई और मुझ से कहा अल्लाह عزوجل तेरी ज़मीन, तेरे दिरहम, तेरे साअ और तेरे दूध में बरकत दे।
हज़रते शैख़ इस्माइल बिन अली रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाते है की मेरी ज़मीन में उस साल की मिक़दार से दो से चार गुना पैदा होना शुरू हुवा,
अब मेरा ये हाल है की जब में एक दिरहम खर्च करता हु तो उस से मेरे पास दो से तिन गुना आ जाता है
और जब में गंदुम की 100 बोरी किसी मकान में रखता हु फिर उस में से 50 बोरी खर्च कर डालता हु और बाक़ी को देखता हु तो 100 बोरी मौजूद होती है
मेरे मवेशी इस क़दर बच्चे जनते हैंकि में उन का शुमार भूल जाता हु
और ये हाल हज़रते शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह की बरकत से अब तक बाक़ी है।
( गौसे पाक के हालात, सफा 46 )
खलीफा ए वक्त का मालो दौलत खून में बदल गया
हज़रते अबू अब्दुल्लाह मुहम्मद बिन अबुल अब्बास मौसिलि रहमतुल्लाह अलैह अपने वालिद से नक़ल करते है की उन्होंने फ़रमाया हम एक रात अपने शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह के मदरसे बग़दाद में थे उस वक़्त आप की खिदमत में बादशाह अल मुस्तन्जद बिल्लाह अबुल मुज़फ्फर युसूफ हाज़िर हुवा उसने आप को सलाम किया और नसीहत का ख़्वास्त-गार हुवा और आप की खिदमत में दस थैलियां लेकर की जो दस गुलाम उठाए हुए थे
आप रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया में इन की हाजत नहीं रखता। और क़ुबल करनेसे इंकार फरमा दिया उसने बड़ी आजिज़ी की, तब आप ने एक थैली अपने दाए हाथ में पकड़ी और दूसरी थैली बाए हाथ में पकड़ी और दोनों थैलियो को हाथ से दबा कर निचोड़ा की वो दोनों थैलियां खून हो कर बह गई,
आप रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया ऐ अबुल मुज़फ्फर क्या तुम्हे अल्लाह का खौफ नहीं की लोगो का खून लेते हो और मेरे सामने लाते हो।
वो आप की बात सुनकर हैरानी के आ'लम में बेहोश हो गया।
फिर हुज़ूरे गौसे पाक रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया अल्लाह की क़सम अगर इसके हुज़ूर नबिय्ये पाक से रिश्ते का लिहाज़ न होता तो में खून को इस तरह छोड़ता की उसके मकान तक पहुचता।
( गौसे पाक के हालात, सफा 46 -47 )
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अन्धो को बीना और मुर्दो को ज़िन्दा करना
हज़रते शैख़ बरगुज़ीदा अबुल हसन करशी फ़रमाते है। में और शैख़ अबुल हसन अली बिन हैती हज़रते शैख़ मुहयुद्दीन अब्दुल क़ादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में उनके मदरसे में मौजूद थे तो उनके पास अबू ग़ालिब फ़ज़्लुल्लाह बिन इस्माइल बगदादी अज़जी सौदागर हाज़िर हुवा वो आप से अर्ज़ करने लगा की
ऐ मेरे सरदार ! आप के जद्दे अमजद हुज़ूरे पुरनूर का फ़रमाने ज़ीशान है की "जो शख्स दा'वत में बुलाया जाए उस को दा'वत क़बूल करनी चाहिये।
में हाजिर हुवा हु की आप मेरे घर दावत पर तशरीफ़ लाए।
आप ने फ़रमाया अगर मुझे इजाज़त मिली तो में आऊंगा। फिर कुछ देर बाद आपने मुराक़बा करके फ़रमाया हा आऊंगा।
फिर आप रहमतुल्लाह अलैह अपने खच्चर पर सुवार हुए, शैख़ अली ने आप की दाई रिकाब पकड़ी और मेने बाई रिकाब थामी और जब उसके घर में हम आए देखा तो उस में बगदाद के मसाइख्, उल्मा और मुअज़्ज़ज़िन जमा है,
दस्तर ख्वान बिछाया गया जिसमे तमाम शीरी और तुर्श चीज़े खाने के लिये मौजूद थी और एक बड़ा सन्दूक़ लाया गया जो सर ब मोहर था, दो आदमी उसे उठाए हुए थे उसे दस्तर ख्वान के एक तरफ रख दिया गया,
तो अबू ग़ालिब ने कहा इजाज़त है।
उस वक़्त हज़रते शैख़ मुहिय्युद्दीन अब्दुल क़ादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह मुराक़बे में थे और आप ने खाना न खाया और न ही खाने की इजाज़त दी।
आप रहमतुल्लाह अलैह ने खाने की इजाज़त न दी तो किसी ने भी खाना न खाया,
आप की हैबत के सबब मजलिस वालो का हाल ऐसा था की गोया उनके सरो पर परिन्दे बैठे है, फिर आप ने शैख़ अली की तरफ इशारा करते हुए फ़रमाया की वो सन्दूक़ उठा लाइए।
हम उठे और उसे उठाया तो वो वज़नी था, हमने सन्दूक़ को आप के सामने ला कर रख दिया आप ने हुक्म दिया की सन्दूक़ को खोला जाए।
हमने खोल तो उसमे अबू ग़ालिब का लड़का मौजूद था जो मादर ज़ाद अन्धा था तो आप ने उससे कहा खड़ा हो जा। हमने देखा की आप के कहने की देर थी लड़का दौड़ने लगा और बीना भी हो गया और ऐसा हो गया की कभी बीमारी में मुब्तला नहीं था, ये देख कर मजलिस में शोर बरपा हो गया और आप इसी हालत में बाहर निकल आए और कुछ न खाया।
इसके बाद में शैख़ अबू साद कैल्वि की खिदमत में हाज़िर हुवा और ये हाल बयान किया तो उन्होंने कहा की हज़रते शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह मादर ज़ाद अन्धे और बरस वालो को अच्छा करते हैं और खुदा के हुक्म से मुर्दे ज़िन्दा करते है।
( गौसे पाक के हालात, सफा 50 )
बादलो पर भी आप की हुक्मरानी
हज़रते शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह एक दिन मिम्बर पर बेठे बयान फरमा रहे थे की बारिश शुरू हो गई तो आप ने फ़रमाया मैं तो जमा करता हु और ऐ बादल तू मुतफ़र्रिक कर देता है। तो बादल मजलिस से हट गया और मजलिस से बाहर बरसने लगा,
रावी कहते है की अल्लाह عزوجل की क़सम शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह का कलाम अभी पूरा नहीं हुवा था की बारिश हम से बन्द हो गई और हम से दाए बाए बरसती थी और हम पर नहीं बरसती थी। (गौसे पाक के हालात, सफा 51 )
एक जिन्न की तौबा
हुज़ूर गौसे आ'ज़म रहमतुल्लाह अलैह के साहिब ज़ादे हज़रत अबू अब्दुर्रज़्ज़ाक रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाते है की मेरे वालिदे गिरामी शैख़ मुहिय्युद्दीन अब्दुल क़ादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह इर्शाद फ़रमाते है की मै एक रात जामा मस्जिद मंसूर में नमाज़ पढता था की मैने सुतूनो और किसी शै की हरकत की आवाज़ सुनी, फिर एक बड़ा सांप आया और उसने अपना मुँह मेरे सज्दे की जगह में खोल दिया,
मैने जब सज्दे का इरादा किया तो अपने हाथ से उसको हटा दिया और सज्दा किया फिर जब मै अत्तहिय्यात के लिये बैठा तो वो मेरी रान पर चलते हुए मेरी गर्दन पर चढ़ कर इससे लिपट गया, जब मेने सलाम फेरा तो उसको न देखा।
दूसरे दिन में जामा मस्जिद से बहार मैदान में गया तो एक शख्स को देखा जिस की आँखे बिल्ली की तरह थी और क़द लम्बा था तो मेने जान लिया की ये जिन्न है,
उसने मुझसे कहा में वही जिन्न हु जिस को आप ने कल रात देखा था, मैने बहुत से औलियाए किराम को इस तरह आज़माया है जिस तरह आप को आज़माया
मगर आप की तरह उन्मे से कोई भी साबित क़दम नहीं रहा, उन्मे बाज़ वो थे जो ज़ाहिरो बातिन से घबरा गए, बाज़ वो थे जिन के दिल में इज़्तिराब हुवा और ज़ाहिर में साबित क़दम रहे, बाज़ वो थे की ज़ाहिर में मुज़तरिब हुए और बातिन में साबित क़दम रहे, लेकिन मैने आप को देखा की आप न ज़ाहिर में घबराए और न ही बातिन में।
उसने मुझसे सुवाल किया की आप मुझे अपने हाथ पर तौबा करवाए।
मैने उसे तौबा करवाई।
( गौसे पाक के हालात, सफा 54 - 55 )
शैतान लइन के सर से महफूज़ रहना
हज़रते शैख़ अबू नसर् मूसा शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाते है की मेरे वालिद ने इर्शाद फ़रमाया में अपने एक सफर में सहरा की तरफ निकला और चन्द दिन वहा ठहरा मगर मुझे पानी नहीं मिलता था जब मुझे प्यास की सख्ती महसूस हुई तो एक बादल ने मुझ पर साया किया और उसमे से मुज पर बारिश के मुशाबेह एक चीज़ गिरी, में उस से सैराब हो गया
फिर मेने एक नूर देखा जिस से आसमान का कनारा रोशन हो गया और एक शक्ल जाहिर हुई जिस से मेने एक आवाज़ सुनी
ऐ अब्दुल क़ादिर ! में तेरा रब हु और मेने तुम पर हराम चीज़े हलाल कर दी है।
तो मेने अउजुबिल्लाहि-मिन-स-शैतानिर-रजीम पढ़ कर कहा ऐ शैतान लईन ! दूर हो जा।
तो रोशन कनारा अँधेरे में बदल गया और वो शक्ल धुवा बन गई फिर उसने मुझसे कहा ऐ अब्दुल क़ादिर ! तुम मुझसे अपने इल्म, अपने रब के हुक्म और अपने मरातिब के सिलसिले में समझ बुझ के ज़रिए नजात पा गए और मेने ऐसे 70 मशाइख़् को गुमराह कर दिया।
मैने कहा ये सिर्फ मेरे रब का फ़ज़्लो करम है।
शैख़ अबू नस्र मूसा रहमतुल्लाह अलैहन ने आप से दरयाफ़्त किया की आप ने किस तरह जाना की वो शैतान है ?
आप ने इर्शाद फ़रमाया उसकी इस बात से की "बेशक मेने तेरे लिये हराम चीज़ों को हलाल कर दिया।( गौसे पाक के हालात, सफा 57 )
गरीबो और मोहताज़ो पर रहम
शैख़ अब्दुल्लाह जुबाई रहमतुल्लाह अलैह बयान करते है की एक मर्तबा हुज़ूरे गौस ए पाक रहमतुल्लाह अलैह ने मुझसे इर्शाद फ़रमाया मेरे नजदीक भूँखों को खाना खिलाना और हुस्ने अख़लाक़ कामिल ज्यादा फ़ज़ीलत वाले आ'माल है।
फिर इर्शाद फ़रमाया मेरे हाथ में पैसा नहीं ठहरता, अगर सुबह को मेरे पास हज़ार दिनार आए तो शाम तक उन्मे से एक पैसा भी न बचे की गरीबो और मोहताज़ो में तक़्सीम कर दू और भूखे लोगो को खाना खिला दूँ।( गौसे पाक के हालात, सफा 57-58 )
मेरा क़दम हर वाली की गर्दन पर है
हाफ़िज़ अबुल इज़्ज़ अब्दुल मुगीस बिन अबू हर्ब अल बगदादी रहमतुल्लाह अलैह से मरवी है की हम लोग बगदाद में हज़रते गौस ए आज़म रहमतुल्लाह अलैह की रबात हबला में हाज़िर थे उस वक़्त उन की मजलिस में इराक़ के अक्सर मशाइख़ हाजिर थे। और आप उन सब हज़रात के सामने वा'ज़ फरमा रहे थे की उसी वक़्त आप ने फ़रमाया
मेरा ये क़दम हर वलियुल्लाह की गर्दन पर है।
ये सुन कर हज़रते शैख़ अली बिन अल हैती रहमतुल्लाह अलैह का क़दम मुबारक अपनी गर्दन पर रख लिया।
इसके बाद तमाम हाज़िरीन ने आगे बढ़ कर अपनी गर्दन झुका दी।
( गौसे पाक के हालात, सफा 68 )
औलियाए किराम का आप से इज़हारे अक़ीदत
ख्वाज़ा गरीब नवाज़ रहमतुल्लाह अलैह
जिस वक़्त हुज़ूर गौस ए आ'ज़म रहमतुल्लाह अलैह ने बगदाद मुक़द्दस में इर्शाद फ़रमाया
मेरा ये क़दम अल्लाह के हर वली की गर्दन पर है।
तो उस वक़्त ख्वाज़ा गरीब नवाज़ रहमतुल्लाह अलैह अपनी जवानी के दिनों में मुल्के खुरासान के दामने कोह में इबादत करते थे
वहा बग़दाद शरीफ में इर्शाद होता है और यहा गरीब नवाज़ रहमतुल्लाह अलैह ने अपना सर झुकाया और इतना झुकाया की सरे मुबारक ज़मीन तक पहुचा और फ़रमाया
बल्कि आप के क़दम मेरे सर पर है और मेरी आँखों पर है
मालूम हुवा की हुज़ूर गरीब नवाज़ रहमतुल्लाह अलैह सुल्तानुल हिन्द हुए और यहाँ तमाम औलियाए अहदो मा बा'द आप के महकूम और हुज़ूरे गौस ए पाक रहमतुल्लाह अलैह उन पर सुलतान की तरह हाकिम ठहरे।
( गौसे पाक के हालात, सफ़ह 69 )
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औलियाए किराम का आप से इज़हारे अक़ीदत
शैख़ अहमद रिफाइ रहमतुल्लाह अलैह
जब हज़रते शैख़ अब्दुल का़दिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया
मेरा ये क़दम अल्लाह के हर वली की गर्दन पर है।
तो अहमद रिफाइ रहमतुल्लाह अलैह ने अपनी गर्दन को झुका कर अर्ज़ किया
मेरी गर्दन पर भी आप का क़दम है।
हाज़िरीन ने अर्ज़ किया हुज़ूरे वाला आप ये क्या फ़रमा रहे है ?
तो आप ने इर्शाद फ़रमाया की इस वक़्त बगदाद में हज़रते शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह ने ऐलान फ़रमाया है की मेरा ये क़दम अल्लाह के हर वली की गर्दन पर है।
और मेने गर्दन झुका कर तामिले इर्शाद की है।
( गौसे पाक के हालात, सफ़ह 69-70 )
औलियाए किराम का आप से इज़हारे अक़ीदत
ख्वाजा बहाउद्दीन नक़्शबन्द रहमतुल्लाह अलैह
जब आप से हुज़ूरे गौस ए आ'ज़म रहमतुल्लाह अलैह के क़ौल
"मेरा ये क़दम अल्लाह के हर वली की गर्दन पर है। के मुतअल्लिक़ दरयाफ़्त किया तो आप ने इर्शाद फ़रमाया
गर्दन तो दर कनार आप का क़दम मुबारक तो मेरी आँखों पर है।
शैख़ माजिद अल कुर्दी रहमतुल्लाह अलैह
आप इर्शाद फ़रमाते है की जब गौस ए आ'ज़म रहमतुल्लाह अलैह ने
"मेरा ये क़दम अल्लाह के हर वली की गर्दन पर है" इर्शाद फ़रमाया था तो उस वक़्त कोई अल्लाह عزوجل का वली ज़मीन पर ऐसा न था की जिसने तवाज़ोअ करते हुए और आप के आ'ला मर्तबे का एतिराफ करते हुए गर्दन न झुकाई हो,
तमाम दुन्याए आ'लम के सालेह जिन्नात के वफ्द आप के दरवाज़े पर हाज़िर थे और सब के सब आप के दस्ते मुबारक पर ताइब हो कर वापस पलटे।
( गौसे पाक के हालात, सफ़ह 70 )
औलियाए किराम का आप से इज़हारे अक़ीदत सरवरे काएनात ﷺ की तस्दीक़
शैख़ खलीफा रहमतुल्लाह अलैह ने सरवरे काएनात ﷺ को ख्वाब में देखा और अर्ज़ किया की हज़रते शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह ने मेरा ये कदम अल्लाह के हर वली की गर्दन पर है" का एलान फ़रमाया है।
तो सरकारे आ'लम ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया
शैख़ अब्दुल क़ादिर रहमतुल्लाह अलैह ने सच कहा है और ये क्यूँ न कहते जब की वो कुत्बे ज़माना और मेरी ज़ेरे निगरानी है।
( गौसे पाक के हालात, सफ़ह 71 )
मल्फ़ूज़ाते गौस ए आ'ज़म
अल्लाह की इताअत करो
हज़रते शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह इर्शाद फ़रमाते है।
(1) अल्लाह की ना फ़रमानी नहीं करनी चाहिये और सच्चाई का दामन हाथ से नहीं छोड़ना चाहिये, इस बात पर यक़ीन रखना चाहिये की तू अल्लाह का बन्दा है और अल्लाह ही की मिल्कीय्यत में है,
(2) उसकी किसी चीज़ पर अपना हक़ ज़ाहिर नहीं करना चाहिये बल्कि उस का अदब करना चाहिये क्यू की उस के तमाम काम सहीह व दुरस्त होते है, अल्लाह के कामो को मुक़द्दम समझना चाहिये।
(3) अल्लाह तआला हर किस्म के उमूर से बे नियाज़ है और वो ही नेमते और जन्नत अता फ़रमाने वाला है, और उसकी जन्नत की नेमतों का कोई अंदाज़ा नहीं लगा सकता की उसने अपने बन्दों की आँखों की ठंडक के लिये क्या कुछ छुपा रखा है,
(4) इसलिये अपने तमाम काम अल्लाह ही की सिपुर्द करना चाहिये
(5) अल्लाह तआला ने अपना फ़ज़्ल व नेमत तुम और पूरा करने का अहद किया है और वो इसे ज़रूर पूरा फ़रमाएगा।
(6) बन्दे का शजरे इमानी उसकी हिफाज़त और तहफ़्फ़ुज़ का तक़ाज़ा करता है, शजरे इमानी की परवरिश ज़रूरी है, हमेशा इस की आब-यारी करते रहो, इसे नेक आ'माल की खाद देते रहो ताकि इसके फल फुले और मेवे बर क़रार रहे
(7) अगर ये मेवे और फल गिर गए तो शजरे इमानी वीरान हो जाएगा और अहले सरवत के ईमान का दरख़्त हिफाज़त के बिगैर कमज़ोर है लेकिन तफक़्क़ुरे इमानी का दरख़्त परवरिश और हिफाज़त की वजह से तरह तरह की नेमतों से फ़ैज़याब है,
(8) अल्लाह अपने एहसान से लोगो को तौफ़ीक़ अता फ़रमाता है और उन को अर-फओ आ'ला मक़ाम अता फ़रमाता है।
(9) अल्लाह तआला की ना फ़रमानी नहीं कर, सच्चाई का दामन हाथ से नहीं छोड़ और उस के दरबार में आजिज़ी से माज़िरत करते हुए अपनी हाजत दिखाते हुए आजिज़ी का इज़हार कर,
(10) आँखों को झुकाते हुए अल्लाह की मख़लूक़ की तरफ से तवज्जोह हटा कर अपनी ख्वाहिशात पर क़ाबू पाते हुए दुन्या व आख़िरत में अपनी इबादत का बदला न चाहते हुए और बुलंद मक़ाम की ख्वाहिशात दिल से निकाल कर रब्बुल आ'लमिन की इबादतों रियाज़त करने की कोशिश करो।
( गौसे पाक के हालात)
एक मोमिन को कैसा होना चाहिए
( 1) हुज़ूर गौसुल आ'ज़म शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह का फ़रमाने आलिशान है।
(2) महब्बते इलाही का तक़ाज़ा है की तू अपनी निगाहो को अल्लाह عزوجل कि रहमत की तरफ लगा दे और किसी की तरफ निगाह न हो यु की अन्धो की मानिंद हो जाए,
(3) जब तक तू गैर की तरफ देखता रहेगा अल्लाह عزوجل का फ़ज़्ल नही देख पाएगा पस तू अपने नफ़्स को मिटा कर अल्लाह عزوجل ही की तरफ मुतवज्जेह हो जा,
(4) इस तरह तेरे दिल की आँख फज़ले अज़ीम की जानिब खुल जाएगी और तू इसकी रौशनी अपने सर की आँखों से महसूस करेगा और फिर तेरे अंदर का नूर बाहर को भी मुनव्वर कर देगा,
(5) अताए इलाही से तू राहतों सुकून पाएगा और अगर तूने नफ़्स पर ज़ुल्म किया और मख़लूक़ की तरफ निगाह की तो फिर अल्लाह عزوجل की तरफ से तेरी निगाह बंद हो जाएगी और तूझ से फज़ले खुदा वन्दी रुक जाएगा।
(6) तू दुनिया की हर चीज़ से आँखे बंद करले और किसी चीज़ की तरफ न देख जब तक तू चीज़ की तरफ मुतवज्जेह रहेगा तो अल्लाह عزوجل का फ़ज़्ल और कुर्ब की राह तुझ पर नहीं खुलेगी
(7) तौहीद, कज़ाए नफ़्स, महविय्य्ते ज़ात के ज़रिए दूसरे रास्ते बंद कर दे तो तेरे दिल में अल्लाह तआला के फ़ज़्ल का अ'ज़िम दरवाज़ा खुल जाएगा तू उसे ज़ाहिरी आँखों से दिल, ईमान और यक़ीन के नूर से मशाहदा करेगा।
(8) मजीद फ़रमाते है। तेरे नफ़्स और आज़ा गैरुल्लाह की अता और वादे से आराम व सुकून नहीं पाते बल्कि अल्लाह तआला के वादे से आराम व सुकून पाते है।
(गौसे पाक के हालात, सफ़ह 81 )
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अल्लाह के वली का मक़ाम
अब्दुल क़ादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह का इरशादे मुबारक है
(1) जब बन्दा मख़लूक़, ख्वाहिशात, नफ़्स, इरादा और दुन्या व आख़िरत की आरज़ूओं से फ़ना हो जाता है तो अल्लाह عزوجل के सिवा उसका कोई मक़सूद नही होता और ये तमाम चीज़ उसके दिलसे निकल जाती है तो वो अल्लाह عزوجل तक पहुच जाता है,
(2) अल्लाह عزوجل उसे महबूब व मक़्बूल बना लेता है उससे महब्बत करता है और मख़लूक़ के दिल में उसकी महब्बत पैदा कर देता है।
(3) फिर बन्दा ऐसे मक़ाम और फाइज़् हो जाता है की वो सिर्फ अल्लाह عزوجل और उसके क़ुर्बे को महबूब रखता है उस वक़्त अल्लाह तआला का खुसूसी फ़ज़्ल उस पर साया फ़िगन हो जाता है। और उसको अल्लाह عزوجل नेमते अता फ़रमाता है और अल्लाह عزوجل उस पर अपनी रहमत के दरवाज़े खोल देता है।
(4) और उस से वादा किया जाता है की रहमते इलाही عزوجل के ये दरवाज़े कभी उस पर बंद नहीं होंगे उस वक़्त वो अल्लाह عزوجل का हो कर रह जाता है,
(5) उसके इरादे से इरादा करता है और उसके तदब्बुर से तदबीर करता है, उसकी चाहत से चाहता है, उसकी रिज़ा से राज़ी होता है, और सिर्फ अल्लाह عزوجل के हुक्म की पाबन्दी करता है।
(2) अगर इंसान अपनी तबई आदत को छोड़ कर शरीअते मुतह्हरा की तरफ रुज़ूअ करे तो हक़ीक़त में येही इताअते इलाही عزوجل है, इससे तरीक़त का रास्ता आसान होता है।
(3) अल्लाह इर्शाद फ़रमाता है। और जो कुछ तुम्हे रसूल अता फरमाए वो लो और जिस से मना फरमाए बाज़ रहो। पारह 28
(4) क्यूँ की सरकारे मदीना ﷺ की इत्तिबाअ ही अल्लाह عزوجل की इताअत है, दिल में अल्लाह عزوجل की वहदानिय्यत के सिवा कुछ नहीं रहना चाहिये, इस तरह तू फनाफ़िल्लह के मक़ाम पर फाइज़् हो जाएगा और तेरे मरातिब से तमाम हिस्से तुझे अता किये जाएगे अल्लाह عزوجل तेरी हिफाज़त फ़रमाएगा, मुवाफक़्ते खुदा वन्दी عزوجل हासिल होगी।
(5) अल्लाह عزوجل तुझे गुनाहो से महफूज़ फ़रमाएगा और तुझे अपने फज़ले अ'ज़िम से इस्तिक़ामत अता फ़रमाएगा, तुझे दिन के तक़ाज़ों को कभी भी फरामोश नहीं करना चाहिये इन आ'माल को शरीअत की पैरवी करते हुए बजा लाना चाहिये,
(6) बन्दों को हर हाल में अपने रब की रिज़ा पर राज़ी रहना चाहिये, अल्लाह عزوجل की नेमतों से शरीअत की हुदूद ही में रह कर लुत्फ़ व फाएदा उठाना चाहिये और इन दुन्यवि नेमतों से तो हुज़ूर ने भी हुदूदे शरअ में रह कर फाएदा उठाने की तरगिब् दिलाई है
(7) चुनान्चे सरकारे दो जहान ﷺ इर्शाद फ़रमाते है। खुशबू और औरत मुझे महबूब है और मेरी आँखों की ठन्डक नमाज़ में है।
(8) लिहाज़ा इन नेमतों पर अल्लाह عزوجل का सुक्र अदा करना वाजिब है, अल्लाह عزوجل के अम्बियाए किराम और औलियाए इज़ाम को नेमते इलाहिय्यह हासिल होती है और वो उसको अल्लाह عزوجل की हुदूद में रह कर इस्तिमाल फ़रमाते है,
(9) इंसान के जिस्म व रूह की हिदायत व रहनुमाई का मतलब ये है की ऐतिदाल के साथ अहकामे शरीअत की तामील होती रहे और इस में सीरते इनसानी की तकमील जारी व सारी रहती है।
हज़रते शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह इर्शाद फ़रमाते है।
(1) जब अल्लाह तआला अपने बन्दे की कोई दुआ क़बूल फ़रमाता है और जो चीज़ बन्दे ने अल्लाह तआला से तलब की वो उसे अता करता है,
(2) तो इससे इरादए खुदा वन्दी में कोई फ़र्क़ नहीं आता और न नविश्तए तक़दीर ने जो लिखा दिया है उस की मुखालफत लाज़िम आती है क्यू की इस का सुवाल अपने वक़्त पर रब तआला के इरादे के मुवाफ़िक़ होता है इस लिये क़बूल हो जाता है
(3) और रोज़े अज़ल से जो चीज़ इसके मुक़द्दर में है वक़्त आने पर इसे मिल कर रहती है।
(4) अल्लाह عزوجل के महबूब ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया अल्लाह عزوجل पर किसी का कोई हक़ वाजिब नहीं है, अल्लाह عزوجل जो चाहता करता है, जिसे चाहे अपनी रहमत से नवाज़ दे और जिसे चाहे अज़ाब में मुब्तला करदे,
(5) अर्श से फर्श और तहतुस्सरा तक जो कुछ है वो सब का सब अल्लाह عزوجل के क़ब्ज़े में है, सारी मख़लूक़ उसी की है, हर चीज़ का ख़ालिक़ वो ही है,
(6) अल्लाह عزوجل के सिवा कोई पैदा करने वाला नहीं है तो इन सब के बा वुज़ूद तू अल्लाह عزوجل के साथ किसी और को शरीक ठहराता है ?
(7) अल्लाह عزوجل जिसे चाहे और जिस चाहता है ज़िल्लत में मुब्तला कर देता है, अल्लाह عزوجل की बेहतरी सब पर ग़ालिब है और वो जिसे चाहता है बे हिसाब रोज़ी अता फ़रमाता है।
(फुतुहुल ग़ैब मुतर्ज़म, सफा 80 )
हर हाल में अल्लाह का शुक्र अदा करो हुज़ूर शैख़ मुहयुद्दीन अब्दुल क़ादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह ने इर्शाद फ़रमाया
(1) परवर दगार से अपने साबिक़ा गुनाहो की बख्शीश और मौजूदा और और आइन्दा गुनाहो से बचने के सिवा और कुछ न मांग,
(2) हुस्ने इबादत, अहकामे इलाही पर अ'मल करना, न फ़रमानी से बचने क़ज़ा व क़द्र की सख्तियो पर रिज़ा मंदी, आज़माइश में सब्र, नेमत व बख्शीश की अता और शुक्र कर, खातिमा बिलखैर और अम्बिया अलैहिमुस्सलाम, सिद्दीक़ीन, शुहदा, सालीहीन जैसे रफ़ीक़ो की रफ़ाक़त की तौफ़ीक़ तलब कर,
(3) और अल्लाह तआला से दुन्या तलब न कर, और आज़माइश व तंगदस्ती के बजाए तवंगरि व दौलत मंदी न मांग, बल्कि तक़दीर और तदबीरें इलाही पर रिज़ा मंदी की दौलत का सुवाल कर!
(4) जिस हाल में अल्लाह तआला ने तुझे रखा है उस पर हमेशा की हिफाज़त की दुआ कर, क्यू की तू नही जानता की इन में तेरी भलाई किस चीज़ में है, मोहताजी व फ़क़रो फ़ाक़ा में है या दौलत मंदी और तवंगरि में, आज़माइश में या आफिय्यत में है, अल्लाह तआला ने तुझ से अश्या का इल्म छुपा कर रखा है। उन अश्या की भलाइयों और बुराइयो के जानने में वो यकता है।
(5) अमीरुल मुअमिनीन हज़रते फ़ारूक़ رضي الله تعالي عنه इर्शाद फ़रमाते है की
मुझे इस बात की परवाह नहीं की में किस हाल में सुबह करूँगा आया इस हाल पर जिस को मेरी तबीअत ना पसंद करती है, या इस हाल पर की जिस को मेरी तबीअत मसंद करती है, क्यू की मुझे मालुम नहीं की मेरी भलाई और बेहतरी किस में है। ये बात अल्लाह तआला की तदबीर पर रिज़ा मंदी उसकी मसन्दीदगी और इख़्तियार और उसकी क़ज़ा पर इत्मीनान व सुकून होने के सबब फ़रमाई।
( गौसे पाक के हालात, सफ़ह 85 )
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तवक्कुल की हक़ीक़त हज़रत महबूबे सुब्हानी रहमतुल्लाह अलैह से तवक्कुल के बारे में दरयाफ़्त किया गया तो आप ने इरशाद फ़रमाया
"दिल अल्लाह की तरफ लगा रहे और उसके गैर से अलग रहे।" निज इरशाद फ़रमाया की तवक्कुल ये है की जिन की आँख से झांकना और मज़्हबे मारिफ़त में दिल के यक़ीन की हक़ीक़त का नाम एतिक़ाद है क्यू की वो लाज़िमी उमूर है उनमे कोई एतराज़ करने वाला नक़्स नहीं निकाल सकता।
दुन्या को दिल से निकाल दो
हुज़ूर गौसे आ'जम रहमतुल्लाह अलैह से दुन्या के बारे में पूछा गया तो आप ने फ़रमाया की दुन्या को अपने दिल से मुकम्मल तौर पर निकाल दे फिर वो तुझे नुक़सान नहीं पहुचाएगी।
शुक्र क्या है
शैख़ मुहिय्युद्दीन रहमतुल्लाह अलैह से शुक्र के बारे में दरयाफ़्त किया गया तो आप ने इरशाद फरमाया की
शुक्र की हक़ीक़त ये है की आजिज़ी करते हुए नेमत देने वाले की नेमत का इक़रार हो और इसी तरह आजिज़ी करते हुए अल्लाह के एहसान को माने और ये समझ ले की वो शुक्र अदा करने से आजिज़ है।
(गौसे पाक के हालात, सफ़ह 86-87 )
सब्र की हक़ीक़त हज़रते शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया
सब्र ये है की बला व मुसीबत के वक़्त अल्लाह के साथ हुस्ने अदब रखे और उसके फैसलो के आगे सरे तस्लीम खम करदे।
सिद्क़ क्या है।
हज़रते शैख़ मुहिय्युद्दीन रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया
(1) अक़वाल में सिद्क़ तो ये है की दिल की मुवफक़त क़ौल के साथ अपने वक़्त में हो।
(2) आमाल में सिद्क़ ये है की आमाल इस तसव्वुर के साथ बजा लाए की अल्लाह इसको देख रहा है और खुद को भूल जाए।
(3) अहवाल में सिद्क़ ये है की तबीअते इंसानी हमेशा हालते हक़ पर क़ाइम रहे अगर्चे दुश्मन का खौफ हो या दोस्त का नाहक़ मुतालबा हो।
(गौसे पाक के हालात, सफ़ह 87-88 )
नमाजे़ गौसिया पढने का आसान तरीका|सलातुल गौसिया का तरीक़ा और इस की बरकते Namaz e gausiya padhne ka tarika ,namaz e gausiya ka tarika, namaz e ghousia, namaz e gausiya, namaz e ghousia, namaz e ghousia ka tarika, namaz e gausiya ka tarika,
हज़रते शैख़ अबुल क़ासिम उमर अल बज़्ज़ार रहमतुल्लाह अलैह फरमाते है की हुज़ूर सय्यिदुना शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया की
जो शख्स मुझ को मुसीबत में पुकारे तो उसकी वो मुसीबत जाती रहेगी और जिस तक़लीफ़ में मुझे पुकारे तो उस की वो तकलीफ जाती रहेगी।
फिर फ़रमाया
जो शख्स दो रकअत नमाज़ पढ़े और हर रकअत में सूरए फातिहा के बाद सूरए इखलास 11 बार पढ़े फिर सलाम के बाद सरवरे कौनो मका ﷺ पर दुरुदे पाक और मुझ को याद करे और इराक़ की जानिब 11 क़दम चले और मेरा नाम ले कर अपनी हाजत तलब करे तो अल्लाह के हुक्म से उस की हाजत पूरी हो जाएगी।
(1) मोअर्रिखीन का इख्तलाफ है एक रवायत मे हज़रत सय्यिदुना शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह ने 17 रबीउल आखिर 561 हिजरी में इंतिक़ाल फ़रमाया, विसाल के वक़्त आप की उम्र शरीफ तक़रीबन 90 साल थी।
(2) दूसरी रवायत मे हज़रत सय्यिदुना शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह ने 9 रबीउल आखिर 561 हिजरी में इंतिक़ाल फ़रमाया, विसाल के वक़्त आप की उम्र शरीफ तक़रीबन 90 साल थी।
(3) तीसरी रवायत मे हज़रत सय्यिदुना शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह ने 22 रबीउल आखिर 561 हिजरी में इंतिक़ाल फ़रमाया, विसाल के वक़्त आप की उम्र शरीफ तक़रीबन 90 साल थी।
ghaus e azam shayari in hindi
एक पल में बनाते हैं वो वलिये का़मिल ये है करामत गौसुल आज़म जीलानी
शजरए आलिया कादरिया shajra e qadria in hindi
या इलाही रहम फ़रमा मुस्तफ़ा के वास्ते ,
या रसूलल्लाह करम कीजिए खुदा के वास्ते
मुशकिलें हल कर शहे मुश्किल कुशा के वास्ते ,
कर बलाएँ रह शहीदे करबला के वास्ते
सय्यदे सज्जाद के सदक़े में साजिद रख मुझे ,
इल्मे हक़ दे बाक़िरे इल्मे हुदा के वास्ते
सिद्के सादिक का तसद्दुक सादिकुल इस्लाम कर ,
बे गज़ब राज़ी हो काज़िम और रज़ा के वास्ते
बहरे मअरूफ़ो सरी मअरूफ़ दे बे खुद सरी ,
जुन्दे हक़ में गुन जुनैदे बा सफ़ा के वास्ते
बहरे शिबली शेरे हक़ दुनिया के कुत्तों से बचा ,
एक का रख अब्दे वाहिद बे रिया के वास्ते
बुल फ़रह का सदक़ा कर ग़म को फ़रह दे हुस्नो सअद ,
बुल हसन और बू सईदे सअदज़ा के वास्ते
क़ादरी कर , क़ादरी रख , कादरियों में उठा ,
कद्रे अब्दुल कादिरे कुदरत नुमा के वास्ते
अहसनल्लाहु लहू रिज़्कन से दे रिज्के हसन ,
बन्दए रज़्ज़ाक़ ताजुल असफ़िया के वास्ते
NaatGausse Azam,Gausse Pak ki naat|गौसे आजम की नात ए शरीफ|गौसे आजम की नात गौसे आजम जिलानी shane gause azam
वाह क्या मर्तबा ऐ गौस है बाला तेरा
ऊँचे ऊँचों के सरों से कदम आ'ला तेरा
सर भला क्या कोई जाने कि है कैसा तेरा
औलिया मलते हैं आंखें वोह है तल्वा तेरा
क्या दबे जिस पे हिमायत का हो पन्जा तेरा
शेर को खतरे में लाता नहीं कुत्ता तेरा
तू हुसैनी ह - सनी क्यूं न मुहिय्युद्दीन हो
ऐ खिज्र मज्मए बहरैन है चश्मा तेरा |
कसमें दे दे के खिलाता है पिलाता है तुझे
प्यारा अल्लाह तेरा चाहने वाला तेरा
मुस्तफ़ा के तने वे साया का साया देखा
जिस ने देखा मेरी जां जलवये जे़बा तेरा
(आलाहज़रत बरेली शरीफ़ )
11vi sharif 11vi sharif 2020 11vi sharif 2020 date in india 11vi ( 11 vi Sharif 2020 November 27 friday 2020 in India date ) 11वी़ं ग्यारहवीं शरीफ 2020 इस साल 27 नवम्बर शुक्रवार को पड़ेगा)
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Ya gaouse aazam al madad
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