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इल्म की फजीलत पर मुश्तमिल 20 अकवाले बुजुर्गाने दीन
(1) अमीरुल मोअमिनीन हज़रते सय्यिदुना अलिय्युल मुर्तजा ने हज़रते सय्यिदुना कमील बिन ज़ियाद नखई से फ़रमाया : ऐ कमील ! इल्म माल से बेहतर है कि इल्म तेरी हिफ़ाज़त करता है जब कि माल की तुझे हिफ़ाज़त करनी पड़ती है ।
इल्म हाकिम है और माल महकूम । माल खर्च करने से घटता है जब कि इल्म खर्च करने से बढ़ता है ।
मज़ीद फ़रमाया : रात भर इबादत करने वाले दिन भर रोज़ा रखने वाले मुजाहिद से आलिम अफ़ज़ल है और आलिम की मौत से इस्लाम में ऐसा रखना ( शिगाफ़ ) पड़ता है जिसे उस के नाइब के सिवा कोई नहीं भर सकता ।
आप ने कुछ अश्आर पढ़े जिन का मफ़हूम येह है : फ़ख्र उल्मा ही को लाइक है क्यूंकि वोह खुद हिदायत पर हैं और हिदायत के तलबगारों के लिये राहनुमा हैं । हर शख्स उसी चीज़ की कद्र करता है जो उसे अच्छी लगती है और जाहिल उल्मा के दुश्मन हैं । इल्म के जरीए कामयाबी हासिल करो हमेशा की ज़िन्दगी पाओगे । लोग मर जाते हैं जब कि उल्मा जिन्दा रहते हैं ।
( 2 ) हज़रते सय्यिदुना अबू अस्वद ने फ़रमाया :
इल्म से बढ़ कर इज्जत वाली शै कोई नहीं ।
बादशाह लोगों पर हुकूमत करते हैं जब कि उल्मा बादशाहों पर हुकूमत करते हैं ।
( 3 ) हज़रते सय्यिदुना अब्दुल्लाह बिन अब्बास - ने फ़रमाया : हज़रते सय्यिदुना सुलैमान अलैहिस्सलाम को इल्म , माल और बादशाहत में इख़्तियार दिया गया तो उन्हों ने इल्म को इख्तियार किया लिहाज़ा इल्म के साथ उन्हें माल और हुकूमत भी अता कर दी गई ।
( 4 ) हज़रते सय्यिदुना अब्दुल्लाह बिन मुबारक से पूछा गया कि इन्सान कौन हैं ?
फ़रमाया : उल्मा ।
फिर पूछा गया : बादशाह कौन हैं ?
फ़रमाया : परहेज़गार ।
फिर पूछा गया : घटिया लोग कौन हैं ?
फ़रमाया : जो दीन के बदले दुन्या हासिल करते हैं ।
हज़रते सय्यिदुना अब्दुल्लाह बिन मुबारक ने गैरे आलिम को इन्सानों में शुमार न किया क्यूंकि इल्म ही वोह खुसूसिय्यत है जिस की वजह से इन्सान तमाम जानवरों से मुमताज़ होते हैं ।
पस इन्सान उस वस्फ़ के जरीए इन्सान है जिस के बाइस उसे इज्जत हासिल होती है । वोह जिस्मानी कुव्वत की वजह से इन्सान नहीं वरना ऊंट इस से ज़ियादा ताकतवर है ।
न जसामत की वजह से इन्सान है वरना हाथी का जिस्म इस से कहीं ज़ियादा बड़ा है ।
न बहादुरी के सबब वरना दरिन्दे इस से बढ़ कर बहादुर हैं । न इस लिये कि वोह ज़ियादा खाता है क्यूंकि बेल का पेट इस से ज़ियादा बड़ा होता है
और न इस वजह से कि वोह जिमाअ करता है क्यूंकि इस मुआमले में छोटी सी चिड़या इस से बढ़ कर ताकतवर है बल्कि इन्सान इल्म ही के लिये पैदा किया गया है ।
( 5 ) एक आलिम का कौल है कि काश ! मुझे मालूम हो जाए कि जिसे इल्म नहीं मिला उसे | क्या मिला और जिसे इल्म मिला उसे क्या नहीं मिला ।
मुस्तफ़ा जाने रहमत स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया : जिसे कुरआन दिया गया और उस ने येह ख़याल किया कि किसी को उस से बेहतर दिया गया है तो उस ने उस चीज़ को हकीर समझा जिसे अल्लाह ने अज़ीम किया ।
( 6 )हज़रते सय्यिदुना फ़त्हे मौसिली रहमतुल्लाहि अलैह ने फ़रमाया : अगर मरीज़ को खाने , पीने और दवा से रोक दिया जाए तो क्या वोह मर नहीं जाएगा ?
लोगों ने कहा : क्यूं नहीं ।
फ़रमाया : दिल का भी येही मुआमला है कि अगर तीन दिन तक इस से इल्मो हिक्मत को दूर रखा जाए तो वोह मुर्दा हो जाता है ।
आप ने बिल्कुल सच फ़रमाया क्यूंकि जिस तरह खाना बदन की ग़िज़ा है
इसी तरह इल्मो हिक्मत दिल की गिज़ा है जिन की बदौलत वोह ज़िन्दा रहता है और जिस के पास इल्म नहीं उस का दिल बीमार और उस की मौत लाज़िमी है
लेकिन उसे इस बात की खबर नहीं होती क्यूंकि दुन्या की महब्बत और इस में मश्गूलिय्यत इस के एहसास को ख़त्म कर देती है
जैसा कि ख़ौफ़ के गलबे के वक्त ज़ख़्म की तक्लीफ़ का एहसास नहीं रहता अगर्चे तक्लीफ़ मौजूद होती है । फिर जब मौत उस से दुन्या के बोझ उतारती है तब वोह अपनी हलाकत महसूस कर के बहुत पछताता है
लेकिन फिर येह उस के हक में बेसूद होता है । येह ऐसे है जैसे मदहोश को नशे और खौफ़ की हालत में लगे ज़ख्मों का एहसास उस वक्त होता है
जब उसे ख़ौफ़ और नशे से नजात मिलती है । हम पर्दे खुलने के दिन से अल्लाह की पनाह मांगते हैं । बेशक लोग सोए हुए हैं जब मरेंगे तो उन की आंखें खुल जाएंगी ।
( 8 ) हजरते सय्यदुना हसन बसरी रहमतुल्लाहि अलैह फ़रमाते हैं : उल्मा की सियाही का शुहदा के खून से वज़न किया जाएगा तो उल्मा की सियाही शुहदा के खून से भारी होगी ।
( 9 ) हज़रते सय्यिदुना अब्दुल्लाह बिन मसऊद रहमतुल्लाहि अलैह ने फ़रमाया : इल्म सीखो इस से पहले कि उठा लिया जाए ।
और इल्म का उठाया जाना येह है कि उल्मा वफ़ात पा जाएंगे । उस ज़ात की कसम जिस के क़ब्जए कुदरत में मेरी जान है ! राहे खुदा में मारे जाने वाले शुहदा जब उल्मा का मक़ाम देखेंगे तो तमन्ना करेंगे कि काश ! उन्हें भी आलिम उठाया जाता । कोई भी आलिम पैदा नहीं होता इल्म सीखने से ही आता है ।
( 10 ) हज़रते सय्यिदुना अब्दुल्लाह बिन अब्बास रदिअल्लाहु अन्हू ने फ़रमाया : रात में कुछ देर इल्म की तकरार करना मुझे सारी रात शब बेदारी से ज़ियादा महबूब है ।
इसी तरह हज़रते सय्यिदुना अबू हुरैरा रदिअल्लाहु अन्हू और हज़रते सय्यिदुना इमाम अहमद बिन हम्बल रदिअल्लाहु अन्हू से भी मन्कूल है ।
हज़रते सय्यिदुना हसन बसरी रदिअल्लाहु अन्हू इस इरशादे बारी तआला : में तर्जमए कन्जुल ईमान : ऐ रब हमारे हमें दुन्या भलाई दे और हमें आख़िरत में भलाई दे और हमें अज़ाबे दोज़ख़ से बचा की तफ़सीर में फ़रमाते हैं : दुन्या में 4 से मुराद इल्म और इबादत है जब कि आख़िरत में इस से मुराद जन्नत है ।
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( 11 ) किसी दाना से पूछा गया कि कौन सी चीजें ज़ख़ीरा करनी चाहिये ?
जवाब दिया : वोह चीजें कि जब तुम्हारी कश्ती डूब जाए तो वोह तुम्हारे साथ तैरने लगें या'नी इल्म बा'ज़ ने कहा : कश्ती के गर्क होने से मुराद मौत के जरीए बदन का हलाक होना है।
( 12 ) कहा गया है कि जो हिक्मत को लगाम बना लेता है लोग उसे इमाम बना लेते हैं और जो हिक्मत को समझ लेता है लोग उसे इज्जत की निगाह से देखते हैं ।
( 13 ) हज़रते सय्यिदुना इमाम शाफ़ई ने फ़रमाया : इल्म की अज़मत का अन्दाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि जिस की तरफ़ येह मन्सूब हो ख़्वाह छोटी सी बात में , तो वोह खुश होता है और जिस से इसे उठा लिया जाता है वोह रंजीदा होता है ।
( 14 ) अमीरुल मोअमिनीन हज़रते सय्यिदुना उमर फ़ारूक़ रदिअल्लाहु अन्हू ने फ़रमाया : ऐ लोगो ! तुम पर इल्म हासिल करना लाज़िम है । बेशक अल्लाह की एक चादरे महब्बत है और जो इल्म का एक बाब हासिल कर लेता है अल्लाह उसे वोह चादर पहना देता है । फिर अगर उस से कोई गुनाह हो जाए तो उसे अपनी रिज़ा वाले कामों में लगा देता है ताकि चादरे महब्बत उस से सल्ब न करे अगर्चे येह सिलसिला इतना तवील हो कि उसे मौत आ जाए ।
(15 ) हज़रते सय्यिदुना अहनफ़ का कौल है कि जल्द ही उल्मा मालिक बन जाएंगे और हर उस इज्जत का अन्जामे कार ज़िल्लत होता है जिसे इल्म से मजबूत न किया जाए ।
(16) हज़रते सय्यिदुना सालिम बिन अबू जअद रदिअल्लाहु अन्हू बयान करते हैं कि मुझे मेरे आका ने 300 दिरहम में खरीद कर आज़ाद कर दिया तो मैं ने सोचा कि अब कौन सा पेशा , | इख्तियार करूं ? बिल आख़िर हुसूले इल्म में मश्गूल हो गया । अभी साल भी नहीं गुज़रा था कि शहर का हाकिम मुझ से मिलने के लिये आया लेकिन मैं ने उसे इजाज़त न दी ।
( 17 ) हज़रते सय्यिदुना जुबैर बिन अबू बक्र बयान करते हैं कि मैं इराक में था , मेरे वालिद ने मुझे पैगाम भेजा कि इल्म को लाज़िम कर लो ! अगर गरीब हो तो येह तुम्हारा माल है और अगर गनी हो तो तुम्हारा जमाल है ।
( 18 ) मन्कूल है कि हज़रते सय्यिदुना लुकमान ने अपने बेटे को जो वसिय्यतें फ़रमाईं इन में एक वसिय्यत येह भी थी कि बेटा उल्मा की सोहबत में बैठा करो , अपने जानू | उन के जानू से मिला दो क्यूंकि अल्लाह नूरे हिक्मत से दिलों को ऐसे ज़िन्दा करता है जैसे जमीन को मुसलसल बारिश से ।
( 19 ) किसी दाना का क़ौल है कि आलिम की वफ़ात पर पानी में मछलियां और हवा में परन्दे रोते हैं । आलिम का चेहरा ओझल हो जाता है लेकिन उस की यादें बाक़ी रहती हैं ।
( 20 ) हज़रते सय्यिदुना इमाम जोहरी रहमतुल्लाहि अलैह ने फ़रमाया : इल्म नूर है और आदमियों में मर्द ही इस से महब्बत करते हैं ।
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