Khwaja garib nawaz ki zindgi urs kgn 2022

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urs khwaja garib nawaz 2022 date 8 February 2022 mutabik 6 rajjabul murajjab 1443 hijri ko hoga

हज़रत ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती सरकार ग़रीब नवाज़ का उर्स मुबारक तारीख 6 फरवरी 2022 मुताबिक 6 रजबुल मुरज्जब 1443 हिजरी को होगा।

Khwaja garib nawaz ki mukamal zindgi hindi me

विलादते बा सआदत

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Khwaja garib nawaz ki zindgi 
ख्वाजा-ए-ख्वाजगांँ हजरत ख्वाजा मुईनुद्दीन हसन अजमेरी रहमतुललाह अलैहि
537 हिजरी में खुरासान प्रांत के सन्‍जर नामक गांँव में पैदा हुए। सन्‍जर कन्धार से उत्तर की जानिब है। और आज भी वह गांव मौजूद है।
कई लोग इसको सजिस्तान भी कहते है। ख्वाजा बुजुर्ग के वालिद माजिद का नाम सैयद गयासुद्दीन हसन है, वह आठवीं पुश्त में हजरत मूसा काजिम के पोते होते है।

वालिदा माजिदा का नाम बीबी उम्मुलवरा उर्फ बीबी माहे नूर है जो चन्द वास्तों से हजरत इमाम हसन की पोती होती है। इसलिए आप बाप की तरफ से हुसैनी और माँ की तरफ से हसनी सैयद है।
आप की वालिदा माजिदा हजरत बीबी उम्मुलवरा से रिवायत है कि जिस वक्‍त मेरा नूरे नजर मुईनुद्दीन मेरे शिकम से आया मेरा घर खैर व बरकत से मामूर नज़र आने लगा। जो लोग हमारे दुश्मन थे मुहब्बत से पेश आने लगे। 
कई बार मुझे खूबसूरत ख्वाब नजर आते थे। जिस वक्‍त अल्लाह तआला ने आपके जिस्म में जान
डालीं इस वक्‍त से यह मामूल हो गया था कि आधी रात से लेकर सुबह तक मेरे शिकम से तस्बीह व तहलील की आवाज़ आती थी। मैं उस मुबारक आवाज में सरशार हो जाती थी। जब आप पैदा हुए तो मेरा घर नूर से जगमगा उठा।

नसब नामा पिदरी आपके वालिद का शजरा ए नसब इस तरह है

हजरत ख्वाजा मुईनुद्दीन हसन चिश्ती रहमतुल्लाहि अलैह
  • बिन हजरत ख्वाजा गयासुद्दीन रहमतुल्लाहि अलैह
  • बिन हजरत ख्वाजा नजमुद्दीन ताहिर रहमतुल्लाहि अलैह
  • बिन हजरत ख्वाजा सैयद इब्राहिम रहमतुल्लाहि अलैह
  • बिन सैयद इृदरीश रहमतुल्लाहि अलैह
  • बिन सैयद इमाम मूसा काजिम रहमतुल्लाहि अलैह
  • बिन सैयद जाफर सादिक रहमतुल्लाहि अलैह
  • बिन सैयद मुहम्मद बाकर रहमतुल्लाहि अलैह
  • बिन सैय्यिदना इमाम हुसैन रदि अल्लाहु अन्हु
  • बिन अमीरूल मोमिनीन हजरत अली कर्रमल्लाह वज्हुह

नसब नामा वालिदा मां के तरफ से

ख्वाजा साहब रहमतुल्लाहि अलैह की वालिदा माजिदा का शजर ए नसब इस तरह है-
बिन्त हजरत सैयद दाऊद रहमतुल्लाहि अलैह
  • बिन हजरत सैयद जाहिद रहमतुल्लाहि अलैह
  • बिन हजरत सैयद मुहम्मद मूरिस रहमतुल्लाहि अलैह
  • बिन हजरत सैयद दाऊद रहमतुल्लाहि अलैह
  • बिन हजरत सैयद मूसा रहमतुल्लाहि अलैह
  • बिन हजरत सैयद अब्दुललाह मखफी रहमतुल्लाहि अलैह
  • बिन हजरत सैयद हसन मुसन्‍ना रहमतुल्लाहि अलैह
  • बिन हजरत सैयद सैय्यिदना इमाम हसन रदिअल्लाहु अन्हु
  • बिन अमीरूल मोमिनीन सैयिदना हजरत अली कर्रमल्लाहु वज्हुहू

तालीम व तर्बियत

इब्तदाई तालीम घर पर हुई आपके वालिद बुजुर्गवार एक बड़े आलिम थे ख्वाजा साहब ने नौ (9) साल की उम्र में कुरआन मजीद हिफ्ज कर लिया और इसके बाद सन्‍जर के मक्‍तब में दाखिला हुआ। आपने यहां इब्तदाई तौर से तफ्सीर फिक्ह और
हदीस की तालीम पाई और थोड़े समय में आपने काफी इल्म हासिल कर लिया।

खुरासान की मुख्तसर तारीख

हुजूर ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह जिस जमाने में पैदा हुए वह बड़ा ही पुर आशोब जमाना था। बे-रहम तातारियों ने हर तरफ कत्ल व गारतगरी और लूट का बाजार गर्म कर रखा था। अम्न व चैन किसी को भी नसीब नहीं था।
इन दरिन्दों ने खुरासान पर हमला कर दिया और सुल्तान सन्‍जर को उनसे इलाका था जिसमें एक तरफ तातरियों ने जुल्म ढा रखा था और दूसरी तरफ अकाइदे इस्लाम के खिलाफ सख्त कारगुजारी कर रहे थे
 क्योकि सुल्तान खुरासान को शिकस्त हो चुकी थी,
इसलिए तातारी इलाके के लोग बिना किसी रोक-टोक के खुरासान में दाखिल हो गये और कई शहरों जैसे ओश (मशहद) मुकद्दम और नेशापूर को बर्बाद करके डाल दिया। 
लड़कों और लड़कियों को गुलाम और लौंडी बनाया और तमाम मस्जिदों को तबाह व बर्बाद कर दिया बेगुनाह लोगों की लाशों के ढेर लग गये और बहुत से बड़े-बड़े आलिम बेगुनाह शहीद कर दिये गये। उस वक्‍त ख्वाजा साहब रहमतुल्लाहि अलैह की उम्र सिर्फ तेरह साल की थी ऐसा खौफनाक खून-खराबा देखकर आपका दिल बेचैन हो गया। होश संभाला ही था कि ये खतरनाक वाकियात नजर से गुजरे।

वालिदे बुजुर्गवार का विसाल

ख्वाजा गरीब नवाज की उम्र अभी चौहद (14) साल की थी कि बाप का साया सर से उठ गया और आप यतीम हो गये। वालिद ने तरके में एक बाग और पवन चक्की छोड़ी थीं जो आपके हिस्से में आई, वालिद माजिद की विसाल के कुछ सालों बाद वालिदा इस दुनिया से चली गई। इस सख्त सदम का उन पर बहुत असर हुआ।
और हमारे ख्वाजा बेयार व मददगार रह गये। उस वक्‍त आपकी उम्र सिर्फ पन्द्रह (15) साल की थी। इतनी उम्र में मां-बाप का साया सर से उठना कोई मामूली बात नहीं। आपने सब किया मगर दुनिया से दिल उचट गया। आपने फैसला किया,यह दुनिया कुछ भी नहीं है।” 
हकीकी और असल राहत इन्सान को उसी वक्‍त मिल सकती है जबकि वह अपने खुदा को पहचान ले। 
मगर इस राह में भी रहनुमा की जरूरत थी। गुजारे के लिए सिर्फ एक बाग और एक पवन चक्की थी जो बाप की तरफ से तरके में मिली थी। हमारे ख्वाजा रहमतुल्लाहि अलैह पौधों की देखभाल करते,इनको पानी देते और काट-काट करते थे। हर तरफ से बाग की निगरानपी करते और इसी पर अपना गुजर-बसर करते थे।

Khwaja garib nawaz ki zindgi | ख्वाजा गरीब नवाज़ की ज़िन्दगी |خواجہ غریب نواز کی زندگی

जिन्दगी में एक नया मोड़

ख्वाजा साहब रहमतुल्लाहि अलैह शुरू से ही दरवेशों, सूफियों और फकीरों की संगत में बैठते,उनका अदब करते और उनसे मुहब्बत रखते थे। एक रोज आप अपने बाग में पौधों को पानी दे रहे थे कि एक बुजुर्ग शेख इब्राहीम कन्दोजी रहमतुल्लाहि अलैह तशरीफ लाये थे।
नजर जब उन पर पड़ी तो सब काम छोड़कर आपके पास आ गये और आपके हाथ को चूमा और बहुत अदब से एक सायादार पेड़ की छांव में लाकर बिठाया। 
और तो कोई सामान था नहीं मगर इन दिनों अंगूर का मौसम था ख्वाजा साहब ने अंगूरो का एक पका हुआ गुच्छा तोड़कर उनको पेश किया और उनके सामने अदब से बैठ गये । 
अल्लाह वाले बुजुर्ग को आपकी यह अदा बहुत पसन्द आई और उन्होने खुशी से नोश फरमाये।
बुजुर्ग की खुदा शनास नजरों से फौरन जान लिया कि यह होनहार बच्चा राहे हक का तालिब है। उन्होने अपनी जेब से खली का एक टुकडा निकाला और उसको अपने दांतों से चबाकर ख्वाजा साहब के दहने मुबारक (मुख) में डाल दिया। ख्वाजा गरीब नवााज़ क्‍योंकि शुरू से ही दरवेशों का अदब करते और फकीरों से मुहब्बत रखते थे, 
इसलिए इब्राहीम कन्दोजी रहमतुल्लाहि अलैह के दिये हुए खली के टुकडे को खा गये। फिर क्‍या था, आपका दिल दुनिया से उचट गया और वहम के सभी परदे हट गये। खली का वह टुकड़ा हलक से उतरना था कि आप रूहानियत की दुनियां में पहुंच गये, दिल में एक जोशे हैरत पैदा हो गया, 
आंख खुली रह गई। जब आप उस हालत से बाहर आये तो अपने को तन्‍हा पाया। शेख इब्राहीम कन्दोजी रहमतुल्लाहि अलैह जैसे आये थे वैसे ही चल दिये। हज़रत शेख इब्राहीम कन्दोंजी रहमतुल्लाहि अलैह तो चल दिये लेकिन  ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह ने जो जलवा देखा था वह आपकी नजरों के सामने फिर रहा था और ऐसा नहीं था जिसको फरामोश किया जा सकता। वह बार-बार इसको देखने की ख्वाहिश करते।
आपने सब्र और तहम्मुल से काम लिया मगर फिर भी दिल काबू में न रहा। 
इश्क की आग भड़क उठी और जब दीवानगी हद से बढ़ने लगी तो आपकी नजरों में दुनियां और इसकी दौलत हकीर (तुच्छ) नज़र आने लगी।
 चुनान्चे बाग और पवन चक्‍की को बेंचकर, और जो कुछ नगद व सामान पास मौजूद था,राहे खुदा में फकीरों और बेसहारों में बांट दिया और थोड़ा सा जरूरी सामान साथ लेकर तलाशें हक में निकल पड़े।

उलूमेे जाहिरी की तकमील

खुदा की याद क्योकि इल्म के बगैर नामुम्किन है, इसलिए ख्वाजा मुईनुुुुुुुद्दीन हसन संजरी ने सबसे पहले इल्म हासिल करने की तरफ ध्यान दिया ताकि अमल में कमी और खराबी न रहे।
आपने अपने वतन को छोंड़ दिया और इल्म की तलाश में निकल पड़े चूँकि
तातरियों ने खुरासान के ज्यादा तर दीनीं मदरसों को तबाह कर दिया था, इसलिए दूर-दूर का सफर करना पड़ा।
कठिन और दुश्वार रास्तों, नदियों और पहाड़ों और घने जंगलों को पार करते हुए हर किस्म की मुसीबतों और तकलीफों को सहते हुए आप बराबर सफर करते रहे यहां तक कि बुखारा के मशहूर दीनी मदरसों में पहुंचकर आपने फिक्ह हदीस तफ्सीर और दूसरे अक्ली इल्म की किताबे पढ़ीं 
और मौलाना हुसामुद्दीन बुखारी रहमतुल्लाहि अलैह जैसी मशहूर बुजुर्गों और दूसरे आलिमों से आपने इल्म हासिल किया।
 आखिरकार मौलाना हुसामुद्दीन बुखीरी रहमतुल्लाहि अलैह ने आपको दस्तारे फजी़लत अता फरमाई और इल्मे दीन से इतना मालामाल कर दिया कि आपकी गिनती उस वक्‍त के मशहूर आलिमों में होने लगी। 
फिर भी इल्म की प्यास बाकी रही और आप मौलाना हुसामुद्दीन बुखारी रहमतुल्लाहि अलैह से रूख्सत होकर समरकन्द चले गये। 
समरकन्द में भी दीनी तालीम के एक मदरसे में पहुंचकर और अधिक इल्म हासिल किया 
इब्राहीम कन्दोजी रहमतुल्लाहि अलैह ने जब से हजरत ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाहि अलैह को इश्के इलाहीं की झलक दिखाई थी उसी वक्‍त से आपका दिल बेकरार था। 

और जब तालीम की हवा ने इश्क की आग का भड़का दिया। इस तरह आपने एक दिन समरकन्द को भी छोड़ा और अल्लाह का नाम लेकर मगरिब (पश्चिम) की जानिब रवाना हो गये। मगरिब की सर ज़मीन में बड़े-बड़े आरिफाने हक के मजा़रों से भरी पड़ी
थी। और बड़े-बड़े खुदा रसीदा बुजुर्ग उस सरजमीन पर मौजूद थे,
 जहां कदम-कदम पर फैज के दरिया जारी थे। समरकन्द से एक रास्ता दक्षिण की तरफ बल्ख को जाता है। आप इसी रास्ते पर कामिल पीर की तलाश में चल पड़े मगर इस तमाम सफर में कोई पीरे कामिल न मिला और आप बराबर चलते रहे जैसे कोई गैबी कोशिश आपको खींचते लिए जा रही हो। नेशापुर से कुछ ही दूर चले थे कि कसबा हारून में पहुंच गये। 

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पीरे कामिल की खिदमत में

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कस्बा हारून एक छोटा-सा कस्बा था लेकिन शाने खुदावन्दी तो देखो कि इस छोटे से कस्बे पर अल्लाह की रहमत बरस रही थी, यानी इन दिनो वहां शेख उस्मान हारूनी की खैर व बरकत से मामूर (भरा) था। हजरत शेख उस्मान हारूनी रहमतुल्लाहि अलैह बुजुुुर्ग औलियाओं में से थे और आपका फैज व बरकत की चर्चा दूर-दूर तक फैली हुई थीं, हाजत मन्द और अल्लाह के चाहने वाले अपनी मुरादों की झोलियां भर-भर कर ले जाते थे।
हुजूर ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह के इश्क का जज्बा आखिकार आपको मंजिल पर ले आया, यानी आप कस्बा-ए-हारून में दाखिल हो गये। 
उस वक्‍त आपकी खुशी की इन्तिहा न रही क्योकि आपने अब चश्मा-ए-आबे बका को पा लिया था यानी पीरे कामिल को पा लिया था। हमारे ख्वाजा रहमतुल्लाहि अलैह दूर से सफर करते हुए हारून पहुंचे थे इसलिए आपका जिस्म मुबारक गर्द आलूद हो गया था और लिबास गुबार में अटा हुआ था। 
आप बेकराँ ज़रूर थे मगर चेहरे पर ताज़गी और संजीदगी दिखाई देती थीं हजरत गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह ने हजरत ख्वाजा शेख उस्मान हारूनी रहमतुल्लाहि अलैह के दस्ते हक परस्त पर बैअत की और ख्वाजा उस्मान हारूनी रहमतुल्लाहि अलैह ने आपको अपने शागिर्दों में शामिल कर लिया।

हजरत ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह के
मुरीद होने का वाकिया खुद आपके लफ्ज यहां पेश किया जाता है

मैं एक ऐसी बारगाह में जिसमें जलीलुल कद्र बुजुर्ग मौजूद थे बहुत अदब से हाजिर हुआ और सरे नियाज जमीने अदब पर झुका दिया। हुजूर ने हुक्म फरमाया-दो (2) रकात नमाज़ अदा करों मैने हुक्म पर अमल किया फिर हुक्म हुआ किबला रूख बैठ जाओ। मैं अदब से किबला रूख बैठ गया। फिर इर्शाद फरमाया-'सूरह बकर की तिलावत करो मैने अदब के साथ तिलावत की फिर हुक्म हुआ- साठ (60) बार सुब्हानललाह पढ़ो। मैने पढा। फिर हुजूरे वाला ने मेरा हाथ अपने हाथ में ले लिया और आसमान की तरफ नजर उठाकर देखा और जबान मुबारक से यह इर्शाद फरमाया- मैनं तुझे खुदा तक पहुंचा दिया।
इन सभी बातों के बाद हजरत शेख उस्मान हारूनी रहमतुल्लाहि अलैह ने एक खास किस्म की तुर्की टोपी मेरे सर पर रखी जो कुलाह चहार तुर्की कहलाती है और जुब्बा मुबारक मुझे पहनाया।
फिर फरमाया-'बैठ जाओ'मैं फौरने बैठ गया। अब फिर हुक्म हुआ “हजार (1000) बार सूरह अख्लास पढ़ो।'
जब में इससे फारिग हुआ तो फरमाया-हमारे मशाइख के यहांँ सिर्फ एक दिन रात की इबादत है, इसलिए जाओ और एक दिन रात बराबर इबादत करो।'ये हुक्म सुनकर मैने एक दिन रात पूरी इबादते इलाही और नमाज़ में गुजार दी।
दूसरे दिन खिदमत में हाजिर होकर कदम-बोसी की दौलत हासिल की और हुक्म के मुताबिक बैठ गया। इर्शाद फरमाया- इधर देखा।' (आसमान की तरफ इशारा
करके) मैंन आसमान की तरफ नजर उठाई आपने पूछा-

कहां तक दिखता है ?

मैने जवाब दिया, अर्शे मोअ़लला तक
फिर इर्शाद हुआ, नीचे देखो मैने नीच देखा तो फिर वहीं फरमाया

कहांँ तक दिखता हैं ?

मैने जवाब दिया, “तहतुस्सरा तक फिर हुक्म हुआ- (1000) हजार बार सूरह अख्लास पढो़ मैने हुक्म पर अमल किया तो हजरत ने फिर इर्शाद फरमाया-'आसमान की तरफ देखो।'मैने देखा और अर्ज किया
हिजाबे अजमत तक साफ नजर आ रहा है। फरमाया-आंँखे बन्द करो ।' मैने आंँखे बन्द कर ली। फिर हुक्म दिया- खोल दो मैने आंँखे खोल दी इसके बाद आपने अपनी दो उंगलियां मेरे सामने की और पूछा- 

क्या दिखाई देता है ?

मैने जवाब दिया- 'अट्ठारह हजार आलम मेरी आंखो के सामने है। 
तब मेरी जबान से ये जुम्ले निकले तो आपने इर्शाद फरमाया-“बस, अब तेरा काम पूरा हो गया। 
बाद में एक ईंट की तरफ जो सामने पड़ी थी, इशारा करके फरमाया-“इसको उठा
लो। मैने उठाया तो उसके नीचे से कुछ दीनार निकले, जिनके बारे में हुक्म हुआ- इन्हे ले जा, और फकीरों व गरीबो में बांट दे।'
मैने हुक्म का पालन किया और फिर खिदमत में हाजिर हुआ।
इर्शाद हुआ-'कुछ दिन हमारी खिदमत में रहो। मैने अर्ज किया-'हाजिर हूं।'

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हजरत ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती (20)बीस साल तक पीर की खिदमत में

हजरत ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती एक मुद्दत से ही हजरत ख्वाजा उस्मान हारूनी रहमतुल्लाहि अलैह से अकीदत रखते थें अब इस कदर शैदाई हो गये कि हर वक्‍त सफर हो या कियाम (ठहराव) हो अपने मुरशिद की खिदमत में हाजिर रहते।
उनका बिसतर,तकिया, पानी का मशकीजा और दूसरा जरूरी सामान अपने सर और कन्धों पर रखकर हमसफर (साथ-साथ) होते थे। 
हजरत ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह (20)बीस साल तक अपने पीर की खिदमत में रहकर अल्लाह तआला की इबादत करते रहे। और उसी अर्से में मारफत व हकीकत की सभी मंजिलें तय (पूरी) कर ली 
और फकीरी से अच्छी तरह वाकिफ हो गये। आपने पीर व मुर्शिद से जो नसीहत भरीबातें सुनी और हैरत अंगेज करामात देखे उनमें से कुछ का बयान खुद ख्वाजा बुजुर्ग के अलफाज में पेश किया जाता है
(1) एक बार मैं अपने पीर हजरत ख्वाजा हारूनी रहमतुल्लाहि अलैह के साथ सियस्तान के सफर में था कि एक दिन हम एक खानकाह में पहुंँचे। वहांँ एक बुजुर्ग रहते थे। उन बुजुर्ग का नाम सदरूद्दीन अहमद सियस्तानी था। 
ये बडे ही पहंचे हुए बुजुर्ग थे। मैं कई दिन तक उनकी खिदमत में रहा जो शख्स उनकी खिदमत में हाजिर होता खाली हाथ वापस नहीं जाता। आप अन्दर से कोई चीज़ लाकर देते और फरमाते कि मेरे हक में दुआ करो कि मैं ईमान सलामत लेकर जाऊंँ यह बुजुर्ग जिस वक्‍त कब्र की सख्ती और मौत का हाल सुनते तो खौफे खुदा से बेद की तरह कांपने लगते और आंखों से खून के आंसू जारी हो जाते। 
सात-सात दिन तक लगातार रोते रहते और इस तरह रोते कि देखने वाले भी रोने लगते। जब आपको सुकून हुआ तो मेरी तरफ ध्यान देकर फरमाया-'ऐ अजीज! 
  • जिसके सामने मौत खड़ी हो और जिसका दुश्मन मौत का फरिश्ता हो उसका सोने और खुश रहने से क्या काम।
  • और फिर फरमाया-“अगर तुम्हें उन लोगों का हाल मालूम हो जाये जो जमीन के नीचे सोते है और बिच्छू भरी कोठरी में बन्द है तो इस तरह पिघल जाओगे जिस तरह पानी में नमक पिघल जाता है।
  • इसके बाद फरमाने लगे। आज तीस (30) साल के बाद तुम्हें यह वाकिया सुनाता हूं कि बसरा के कब्रिस्तान में एक कब्र के पास मेरे साथ एक बुजुर्ग बैठे हुए थे। उस कब्र के अन्दर मुर्दे पर अजाब नाजिल हो रहा था क्योंकि वह बुजुर्ग साहिबे कश्फ थे, उन पर कब्र का हाल रौशन हो गया। यह देखकर जोर से नारा मारा और जमीन पर गिर पड़े। हमने उठाना चाहा मगर उनकी रूह जिस्म से परवाज कर चुकी थी और देखते-देखते थोडी देर में इनका जिस्म नमक की तरह पिघलकर पानी बन कर बह गया। जो खौफ उन बुजुर्ग में देखा वह आज तक किसी में न देखा न सुना। उसके बाद आपने अपनी आदत के मुताबिक मुझे भी दो खजूर देकर विदा किया।

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(2) एक दिन हजरत ख्वाजा उसमान हारूनी रहमतुल्लाहि अलैह ने ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह की तरफ मुखातब होकर फरमाया- कल कियामत के दिन, जितने अम्बिया, औलिया और मुसलमान है, जो कोई नमाज़ की जिम्मेदारियों से सलामती के साथ निकल गया, वह बच गया और जिसने नमाज की पाबन्दी नहीं की उसे दोजख में रहना होगा अल्लाह तआला कुरआन मजीद में फरमाया है-
फ-वैलुल्लिल मुसल्लीनललजी-न हुम अन सलातिहिम साहून 0 तर्जुमा:- वैल है, उन नमाजि़यों के लिए जो नमाज़ में सुस्ती करते है। इसकी तशरीह इस तरह की है कि वैल दोजख में एक कुआं है जिसमें बहुत दर्दनाक अजाब रखा गया है। जो लोग नमाज़ में सुसती करते है और वक्‍त पर अदा नहीं करते वह अजाब उन्हीं लोगों के लिए है।
फिर आपने वैल के बारे में कहा- वैल
(70000) सत्तर हजार बार खुदा-ए तआला से अर्ज करता है कि यह अजाबे सख्त किस गिरोह पर किया जायेगा ?
 हुक्म बारी तआला होता है कि “यह अजा़ब उन लोगो के लिए है जो अपनी नमाजे वक्‍त पर नही पढ़ते।'

(3) एक बार मै और पीर व मुर्शिद के साथ सफर करते हुए दरया-ए-दजला के किनार पहुंचे तो दरिया में तूफान आया हुआ था। मुझे फिक्र (चिन्ता) हुई, हजरत ने फरमाया-“आंखे बन्द करों  थोडी देर बाद जो आंखे खोली तो मैं और हजरत मुर्शिद दजला के उस पार थे। मैने अर्ज किया-'इसे किस तरह पा किया।' इर्शाद
हुआ- पांच बार अलहम्दु शरीफ पढ़कर दरिया से पार उतर आये।'

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(4) एक बार मै अपने मुर्शिद हजरत ख्वाजा उस्मान हारूनी रहमतुल्लाहि अलैह के साथ सफर में था। रास्ते में ख्वाजा बहाउद्दीन रहमतुल्लाहि अलैह से मुलाकात हो गई। उनका दस्तूर था कि जो शख्स उनकी खिदमत में हाजिर होता, खाली हाथ नहीं जाता।
अगर कोई नंगा आ जाता तो आप अपने कपड़े उतार कर देना चाहते, उसी वक्‍त फरिश्ते अच्छा लिबास हाजिर कर देते। हम कुछ दिन उनकी महफिल में रहे। जब हम चलने लगे तो आपने नसीहत फरमाई- 
जो कुछ तुझे मिले उसे अपने पास न रखना बल्कि खुदा की राह में दे देना, ताकि खुदा के दोस्तों में तुम्हारा शुमार (गिनती) हो।
(5) एक बार दरवेशों की एक महफिल में अपने पीर व मुर्शिंद हजरत ख्वाजा उस्मान हारूनी रहमतुल्लाहि अलैह की खिदमत में हाजिर था, इतने में एक बूढा शख्स आपकी खिदमत में आया। उसने आपको सलाम किया, पीर मुर्शिद ने खड़े होकर सलाम का जवाब दिया और बढ़े अदब से बिठाया। उसने अर्ज किया-'मेरा लड़का तीस साल हुए मुझसे जुदा है।' पता नहीं ज़िन्दा है या नहीं। मैं उसकी जुदाई से निढाल हो गया हूं।
आप मेरी मदद फरमायें, उसकी वापसी, तन्दुरूस्ती और सलामती के फातिहा इख्लास की इल्लिजा है।' 
हजरत ने जब ये बात सुनी तो, मुराकाबे में सर झुका दिया, थोडी देर बाद सर उठाकर हाजरीन से फरमाया- इस पीर मर्द के
लड़के की सलामती के लिए फातिहा इख्लास पढ़ों  अत: फातिहा इख्लास पढ़ी गई 
इसके बाद आपने उस बूढ़े से फरमाया--आप जाये और जिस वक्‍त आपका लड़का मिल जाये उसको साथ लेकर मेरी मुलाकात को आयें।'
अभी वह बूढ़ा शख्स रास्ते में ही था कि एक शख्य ने आकर खबर दी कि आपका लड़का मिल गया। 
घर पहुंचकर लड़के को सीने से लगाया और उलटे पांव लड़के को लकर हुजूर की खिदमत में हाजिर हुआ। ख्वाजा उस्मान हारूनी रहमतुल्लाहि अलैह ने उस
लड़के से मालूम किया कि मियाँ तुम कहां थे ?
 उसन अर्ज किया-'समुन्द्र में एक नावँ पर था और नावँ के मालिक ने मुझे जंजीरो से बांँध रखा था। आज एक दरवेश आपके हम शक्‍ल बल्कि आप ही थे, तशरीफ लाये और जंजीरो को तोड़कर मेरी गरदन जोर से पकड़ी और अपने आगे खड़ा करके हुक्म दिया कि अपने पांँव मेरे हाथ पर रखो और आंँखे बन्द करो।' 
थोड़ी देर बाद फरमाया-'आंँखे खोलो।' जिस वक्‍त मैने आंँखें खेली तो अपने आपको तन्‍हा आपने मकान के दरवाजे पर खड़ा पाया। इतना कह कर वह कुछ और कहना चाहता था मगर हजरत ने इशारे से चुप
रहने के लिए कहा। बूढे ने यह सुनकर हज़रत के कदमों पर सिर रख दिया और बाप बेटे चले गये।

Khwaja garib nawaz ki zindgi|ख्वाजा गरीब नवाज़ की ज़िन्दगी|خواجہ غریب نواز کی زندگی

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हजरत ख्वाजा उस्मान हारूनी रहमतुल्लाहि अलैह की खिदमत में हाजिर रहे। जान व दिल से

पीर के हर हुक्म का पालन करते रहे। आपकी इस जान-तोड़ खिदमत के बदले हजरत शैख ख्वाजा उस्मान हारूनी रहमतुल्लाहि अलैह ने ऐसी नेअ़मत और दौलत अता फरमाई जो हद व हिसाब से बाहर है अतः मारफत व हकीकत की तमाम बुजुर्गाने अजीम से हासिल की थी अपने होनहार मुरीद हजरत ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती को अता फरमाकर नसीहत फरमाई 'ऐ मुईनुद्दीन!
अल्लाह की मख्लूक से किसी चीज का लालच न करना कभी भी आबादी में न ठहरना, और किसी से कुछ न मांगना।'

सफर और बुजुर्गों से मुलाकातें

ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह फरमाते है कि इसके बाद पीर व मुर्शिद ने फातिहा पढ़कर मेरे सर और आंखो का चूमा और फरमाया-'तुझे खुदा के सुपुर्द किया। मुईनुद्दीन हक का महबूब है और मुझको इसकी मुरीदी पर बड़ा नाज़ है।'

ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह ने पीर व मुर्शिद हजरत ख्वाजा उस्मान हारूनी रहमतुल्लाहि अलैह से इजाजत हासिल करके बगदाद का रूख किया। रास्ते में कई जगहों पर ठहरते हुए खिरकान पहुंचे। 
खिरकान उस जमाने में एक छोटा सा कस्बा था मगर उसकी शोहरत शैख अबुल हसन खिरकानी रहमतुल्लाहि अलैह की वजह से थी। ख्वाजा साहब ने आपकी जा़त से बातनी फैज हासिल किया। कुछ दिन खिरकान में कियाम फरमाने के बाद आप वहांँ से आगे बढ़े। रास्ते में जहांँ कोई खुदा रसीदा बुजुर्ग का मजार
मिला आपने कियाम फरमाया और बातनी फैज़ हासिल किया।

सफर और बुजुर्गों से मुलाकातें

माजिन्दान की सरहद के करीब इस्तराबाद एक मशहूर और अच्छा शहर था। जिस वक्‍त आप वहांँ पहुंँचे शैख नासिरूद्दीन रहमतुल्लाहि अलैह वहांँ कियाम पजीर थे।
वह एक बुलन्द मर्तबा और खुदा रसीदा बुजुर्ग थे। उनका सिलसिला सिर्फ दो वास्तों से हजरत शैख बायजीद बुस्तामी रहमतुल्लाहि अलैह से मिलता था
हजरत ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह काफी दिन तक उनकी खिदमत में रहकर नूरे इर्फान हासिल करते रहे। वहांँ से रवाना होकर अस्फाहान चले गये। 
उस वक्‍त अस्फाहान दुनियां के खूबसूरत और मशहूर शहरों में गिना जाता था। उन्हीं दिनों अस्फाहान में शैख महमूद अस्फाहानी तशरीफ फरमा थेहमारे ख्वाजा ने आपसे मुलाकात की। 
यह मुलाकात भी अजीब व गरीब थी। दो मरदाने हक आमने-सामने बैठे थे हर दो जानिब से नूर की बारिश हो रही कुदरत का करिश्मा तो देखिए कि उसी जमाने में हजरत ख्वाजा काुतुबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाहि अलैह मुर्शिद का़मिल की तलाश में सफर करते हुए इधर आ निकले और अस्फाहान में कियाम किया। अब अक्सर शैख महमूद अस्फाहानी रहमतुल्लाहि अलैह की खिदमत में हाजिर होते रहते थे।
क्योंकि आप उनसे बहुत अकीदत रखते थे, इसलिए आपसे बैअत करना चाहते थे मगर कुदरत को कुछ और ही मंजूर था। 
एक दिन आपकी नजर हज़रत ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाहि अलैह पर पड़ गयी जिससे नूरानी किरणें निकल रही थी। बस फिर क्‍या था, आप हजरत ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाहि अलैह की खिदमत में हाजिर होने के लिए बेकरार हो गये और एक दिन हुजूर ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह की खिदमत में हाजिर हो ही गये और आपके दस्ते हक परस्त पर बैत करके इरादत मन्दों में शामिल हो गये ।

सफर और बुजुर्गों से मुलाकातें

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हजरत ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह अस्फहान से कूच फरमाकर हमदान पहुंँचे वहांँ वक्‍त के सबसे बड़े और जबरदस्त आलिम हजरत शैख यूसुफ हमदानी रहमतुल्लाहि अलैह से मुलाकात करके फैज व बरकत हासिल किया हमदान से रवाना होकर आप तबरेज पंहुचे। उन दिनों तबरेज में हजरत शेख अबू सईद तबरेजी रहमतुल्लाहि अलैह की बहुत शोहरत थी। कुछ दिन वहांँ रहकर उनकी पाक सोहबत से दिली सुकून हासिल करते रहे। बाद में आप बगदाद तशरीफ ले गये।

ख्वाजा साहब रहमतुल्लाहि अलैह बगदाद में

हमदान से रवाना होकर ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह ने बगदाद में कियाम फरमाया बगदाद उस जमाने में इल्म व फन का मरजक था।
बड़े-बड़े बुलन्द मर्तबा के आलिम,फाजिल सूफी औलिया अल्लाह वहांँ मौजूद थे। उनकी मज्लिसें आलिमों और फाजिलों से भरी रहती थी। ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह भी उनकी एक-एक महफिल में पहुंँचते और फैज हासिल करते रहे।
बगदाद पहुंचकर हुजूर ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह को मालूम हुआ कि उस जमाने के बेमिस्ल आलिम शैख अबू लजीब सोहरवरदीं रहमतुल्लाहि अलैह और गौस ए आज़म पीराने पीर दस्तगीर सैय्यद अब्दुल कादिर जीलानी रहमतुल्लाहि अलैह इन्तिकाल फरमा चुके थे। 
ख्वाजा साहब रहमतुल्लाहि अलैह इन बुजुर्गों के मजार पर हाजिर हुए और एतकाफ फरमाया। इनके अलावा आपने दूसरे बुजुर्गों के पुर नूर मजारों पर भी हाजिरी दी और फैजे बातनी हासिल किया ।

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ख्वाजा साहब रहमतुल्लाहि अलैह अल्लाह के दरबार में

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हजरत ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह 582 हिजरी में मक्का शरीफ पहुंँचे और खाना-ए काबा की जियारत की। अक्सर काबा शरीफ का तवाफ करते और इबादत में मशगूल रहते। आपने वहांँ बेशुमार बरकतें हासिल की।
एक दिन का वाकिया है कि हजरत ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह खाना-ए-काबा में इबादत में मशगूल थे गैब से आवाज आई 'ऐ मुईनुद्दीन! 
मैं तुझसे राजी हूंँ तुझे बख्श दिया। जो कुछ तेरा दिल चाहे मांँग ले।'
यह सुनकर बहुत खुश हुए और बेखुद होकर सज्दे में गिर पड़े। आपने बारगाहे इलाही में बहुत आजिजी से अर्ज किया-'खुदा वन्दा। जो मेरे सिलसिले में मुरीद हो उनको बख्श दे ! उसी वक्‍त आवाज़ आई ऐ मुईनुद्दीन तेरी दुआ मक़बूल है और कियामत तक तेरे सिलसिले में जो दाखिल होगा उसे बख्श दूंँगा।
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हजरत ख्वाजा गरीब नवााज मुईनुुुुुुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाहि अलैह रसूलुल्लाह सल्‍लललाहु अलैहि वसल्लम के दरबार में

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मक्का मुअज्जमा से रवाना होकर हजरत ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह मदीना मुनव्वरा आये और बड़ी आजिजी से दरबारे रसूलुल्लाह में हाजिरी दी।
रोजाना मस्जिदे नबवी में पांँचों वक्‍त की नमाज़ पढ़ते और ज्यादातर वक्‍त रौजा-ए-अक्दस के करीब हाजिर रहकर दरूद व सलाम पेश करते रहते
एक दिन सुबह के वक्‍त नमाजे़ फज्र पढ़ने के बाद पूरी मस्जिदे नबवी के नमाजी रोजा-ए-अक्दस के करीब दरूद व सलाम पढ़कर अदब व एहतराम से रूख्सत होते जा रहे थे कि अचानक आवाज
आई-'मुईनुद्दीन को बुलाओ।'
रौजा-ए-मुबारक के शैख ने मस्जिद के मेहराब में खड़े होकर आवाज दी मुईनुद्दीन हाजिर हों।' इस मजमें में जितने भी मुईनुद्दीन नाम के शख्स मौजूद थे शैख की आवाज पर लब्बैक-लब्बैक कहते हुए हाजिर हो गये। अब शैख हैरान है कि किस मुईनुद्दीन को सरकार ने बुलाया है
मालूम करने पर
हुजूर स्वलल्ललाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया-'मुईनुद्दीन हसन सन्जरी को हाजिर करो
ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती लब्बैक-लब्बैक कहते हुए शैख के करीब पहुंँच गये। शैख न आपको रौजा-ए-अक्दस तक पहुंँचा दिया
और अर्ज किया-'या रसूलल्लाह! मुईनुद्दीन चिश्ती हाजिर है।'
रौजा-ए-अक्दस का दरवाजा अपने आप खुल गया और इर्शादे नबवी स्वलल्ललाहो अलैहि वसल्लम हुआ- ऐ कुतुबुल मशाइख अन्दर आओ। 
आप वजदानी हालत में रौजा-ए--अक्दस के अन्दर दाखिल हुए और तजल्लियाते नबवीं में बेखुद व सरशार हो गये। जब दिली सुकून हासिल हुआ तो हुक्म हुआ-'ऐ मुईनुद्दीन! तू हमारे दीन का मुईन (मददगार)है। हमने हिन्द की हुकूमत तुझे अता की। हिन्दुस्तान जा और अजमेर में कियाम कर वही से तब्लीगे इस्लाम करना ।

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ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह बड़े अदब व एहतराम से रौजा-ए-अक्दस से बाहर निकले। आप पर एक खास कैफियत तारी थी। जब इस हालत से बेदार हुए और दिली सुकून मिल गया तो आपको फरमाने रिसालत याद आया मगर हैरान थे कि हिन्दुस्तान किधर है और अजमेर कहांँ है इसी फिक्र में थे कि शाम हो गयी और सूरज डूब गया। 
इशा की नमाज़ के बाद आंँख लगी और आप सो गये। ख्वाब की हालत में हिन्दुस्तान का नक्शा और अजमेर का मन्‍जर आपके सामने था। 
जब नींद से आंँख खुली तो सज्दा-ए-शुक्र अदा किये और रौजा-ए-अक्दस पर हाजिर होकर तोहफा-ए-दरूद व सलाम पेश करके हिन्दुस्तान की जानिब रवाना हुए हुजूर ख्वाजा गरीव नवाज रहमतुल्लाहि अलैह अपने सफर के दौरान मुल्के शाम भी गये

ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह इस सफर का हाल खुद बयान फरमाते है

एक बार मै एक शहर में पहुंँचा जो शाम के पास है वहांँ एक बुजुर्ग एक गार में रहा करते थें। उनके बदन का गोश्त (मांँस) सूख गया था सिर्फ हडिडयांँ बाँकी थी। 
यह बुजुर्ग एक मोटे कपड़े पर बैठे हुए थे और दो शेर दरवाजे पर खड़े थे। मैं उनकी मुलाकात को गया, मगर उन शेरों की वजह से अन्दर जाने की हिम्मत न हुई शैख ने मुझे देखकर फरमाया-“चले आओ डरो नहीं।'
यह सुनकर मै अन्दर चला गया और अदब से बैठ गया। कहने लगे, जब तक किसी चीज का इरादा न करोगे वह भी तुम्हारा इरादा न करेगी। फिर फरमाया-' जिसके दिल में खौफ खुदा होता है, हर चीज उससे डरती है।'फिर मुझसे पूछा-'कहांँ से आना हुआ ?'
अर्ज किया बग़दाद से' कहने लगे-खुश आमदीद, लेकिन अच्छा यह है कि दरवेशों की खिदमत करते रहो, ताकि
तुम्हारे अन्दर भी दरवेशों का जौक पैदा हो।'
फिर फरमाया-' मुझे कई साल इस गुफा में रहते गुजर गये, एक बात से डरता हूं। मैने पूछा वह क्‍या बात है।
उन्होंन कहा-'“नमाज़ है जिसके अदा करने के बाद इस खौफ से कि कोई भूल-चूक न रह गयी हो और नमाज़ ही मेरे लिए इताब (अल्लाह की पकड़) हो जाए रोता हूं। 
बस ऐ दरेवश! अगर नमाज़ अदा की तो सुबहान अल्लाह वरना मुफ्त में उम्र बेकार हुई।'
इसके बाद कहने लगे-'नमाज़ को नियम से पूरा न करना इससे ज्यादा कोई गुनाह नहीं। मुझे मालूम नहीं कि मेरी नमाज़ खुदा-ए-तआला ने कुबूल फरमाई या नही।' फिर मुझे एक सेब दिया और फरमाया-' कोशिश करो कि हक के नमाज़ अदा हो जाए
वरना कल कियामत के दिन शर्मिन्दगी होगी ।

हजरत ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह दोबारा पीर व मुर्शिद की खिदमत में

रौजा-ए--अक्दस से रूख्सत होकर वापस बगदाद शरीफ पहुंँचे।
उन दिनों आपके पीर व मुर्शिद हजरत ख्वाजा उस्मान हारूनी रहमतुल्लाहि अलैह भी बग़दाद में मौजूद थे। आप उनकी खिदमत में हाजिर हुए और इर्शादे नबवी स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम से आपको आगाह किया। 
यह सुनकर आप बहुत खुश हुए और मुसकुरा कर फरमाया-' अब हम एतकाफ में रहेंगे और हुजरे से बाहर नही आयेगे।'
हजरत ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह रोजना सूरज निकलने के बाद अपने मुर्शिद की खिदमत में हाजिर होते और रूहानी तालीम हासिल करते यह सिलसिला (28) अठठाईस दिन
तक जारी रहा। इस दर्मियान में आपने जो कुछ अपने पीर व मुर्शद की जबाने मुबारक से सुना उसे कलम बन्द कर लिया (लिख लिया) इस तरह अठठाईस रोज में अठठाईस
बाब एक रिसाला तैयार हुआ जिसका नाम “अनीसुल अरवाह' रखा
आखिरी रोज हजरत शैख ने ख्वाजा साहब को अपना असा-ए-मुबारक, मुसल्‍ला और खास खिरका अता फरमाया। 
बाद में वह तबर्रूकात मुस्तफवी स्वलल्ललाहो अलैैैहि वसल्लम जो खानदाने चिश्त में सिलसिला-ब-सिलसिला चले आ रहे थे आपको सौंप कर फरमाया-
लो ये मेरी यादगार है इनको इस तरह अपने पास रखना जिस तरह हमने रखा और तुम जिसको इस लायक समझो उसको सौंप देना। लायक फरजन्द वही है जो अपने पीर के इर्शादात को अपने होश व गोश में जगह दे और उस पार अमल करना अपना मामूल बना ले। 
इस इर्शाद के बाद आपने अपने मुरीद मुईनुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाहि अलैह को रूख्सत किया और खुद अल्लाह की याद में मग्न हो गये ।
पीर व मुर्शिद से विदा होकर आप बग़दाद शरीफ से रवाना हुए और सफर के दौरान बदख्शांँ हिरात और सब्जवार भी गए।
 बल्ख से गुजरते हुए आपने वलीये कामिल बुजुर्ग शैख अहमद खिजरूया की खानकाह में कुछ रोज कियाम फरमाया और फिर वहांँ से सफर का सामान बांँध हजरत गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह की आदत थी कि जब भी सफर करते अपने साँथ नमक दान ज़रूर रखते ताकि सफर में किसी किस्म की तकलीफ न हो। जब ज्यादा भूख लगती तो जंगल से कोई परिन्दा शिकार करके गुजर कर लेते। 
एक दिन आपको भूँख ने ज्यादा परेशान किया तो आप शिकार की तलाश में निकले, सामने एक कुलन्ग नजर आया आपने उसे जिब्ह करके खादिम के हवाले किया ताकि भून ले और खुद नमाज पढ़ने में लग गये
जिस जगह आप नमाज़ पढ़ रहे थे उसके करीब ही एक मशहूर फल्सफी और हकीम का घर था। उनका मदरसा जारी था और दूर-दूर से तालिबे इल्म, इल्म हासिल करने के लिए आते थे। 
उन हकीम साहब का नाम जियाउद्दीन था। उनको अपने फल्सफा पर बड़ा नाज़़ था मजा़क़ के अन्दाज़ में किया करते थे
जिसको लोगों पर बुरा असर पड़ता था।
जहांँ ख्वाजा साहब रहमतुल्लाहि अलैह नमाज़ पढ़ रहे थे और खादिम कुलन्ग भून रहा था, हकीम जियाउद्दीन का वहांँ से गुजर हुआ। 
उनकी नज़र जो ख्वाजा साहब रहमतुल्लाहि अलैह पर पड़ी
तो एकदम वहीं ठिठक कर रह गये। जब नमाज़ से फारिग हुए तो उसने आपके रूह मुबारक में कुछ ऐसा जलवा देख कि फल्सफा हिकमत की तमाम बातें भूल गया और सलाम करके अदब से बैठ गया।
इतने में खादिम ने कुलन्ग भून कर ख्वाजा साहब की खिदमत में पेश किया। हुजूर ने उसकी एक टांँग हकीम साहब को दी और दूसरी रान (गोश्त) खुद खाने लगे बाँकी खादिम के हवाले कर दिया।
हकीम साहब ने अभी पहला लुक्‍मा मुंह में डाला था कि बातिल (झूठ) का परदा चाक हो गया और हकीकत के आईने सामने आ गए।
 अक्ल व फल्सफे के सबब जो बुरे ख्यालात उनके दिमाग में भरे हुए थे सब निकल गए, दिल पर ऐसी घबराहट पैदा हुई कि बेहोश हो गये, ख्वाजा साहब ने एक और लुक्‍मा उनके मुंँह में डाल दिया। 
जैसे ही यह लुक्मा हलक से नीचे उतरा बदहवासी कम हुई होश में आ गये,अपने पिछले ख्यालात पर बहुत शर्मिन्दा हुए और तौबा करके माफी मांँगी। इसके बाद अपने सभी शागिर्दों के साथ हुजूर गरीब नवाज से मुरीद हो गये।
जिस वक्‍त हुजूूर गरीब नवाज का गुजर समरकन्द से हुआ तो आपने देखा कि ख्वाजा अबुल लैस समरकन्दी रहमतुल्लाहि अलैह के मकान के पास एक मस्जिद बन रही थी और एक होशियार आदमी किब्ला की सिम्त (दिशा) पर ऐतराज कर रहा था।
किसी तरह समझाये नहीं समझता था। आपने उसकी गरदन पकड़ कर कहा-“देख सामने क्‍या है। उसने काबा शरीफ देख लिया और मान गया ।

जब खवाजा साहब रहमतुल्लाहि अलैह बदरूशांँ में पुहंँचे तो वहांँ इनकी मुलाकात एक बुजुर्ग से हुई, जिनकी उम्र एक सौ चालीस (140) साल की थीं। यह बुजुर्ग हजरत ख्वाजा जुन्नैद बगदादी रहमतुल्लाहि अलैह की औलाद में से थे और उनका एक पैर कटा हुआ था। 
मालूम करने पर उन्होने फरमाया कि काफी समय से एतिकाफ में रहकर इबादत में मशगूल था। एक दिन ख्वाहिश ने मजबूर किया और इस पांँव को जो कटा हुआ है आगे बढाया ही था कि
गैब से आवाज आयी। यही वादा था जो फरामोश कर दिया।'
बस इस आवाज को सुना था कि खौफ से बेकरार हो गया और उसी वक्‍त पांँव काट कर फेंक दिया। इस घटना को चालीस साल गुजर चुके है और यह बात दिल से निकलती नहीं है कि कल कियामत के दिन दरवेशों के सामने क्‍या मुंँह दिखाऊँगा 
इसके बाद हिरात में पहुंँचकर ख्वाजा नवाज रहमतुल्लाहि अलैह हजरत उबैदुल्लाह अन्सारी रदिअल्लाहु अन्हु के मजार मुबारक पर हाजिर हुए, मजार मुबारक पर अल्लाह तआला की हैबत तारी थी। 
इसलिए आप होशियार रहते थे। वहांँ आपने काफी समय इबादत में
गुजारा रात भर इबादत में लगे रहते और कई बार इशा की नमाज़ के वुजू से फज्र की नमाज अदा करते थे। जब हिरात में आप की शोहरत बढ़ गयी और लोग आपकी खिदमत में आने लगे तो आप वहांँ से रूख्सत हुए और सीधे हिन्दुस्तान की तरफ चल पडे़।
हिरात से कूच करके ख्वाजा साहब सब्जावार पहुंँचे सब्जावार का हाकिम शैख मुहम्मद यादगार बड़ा जालिम निर्दयी और बद अख्लाक शख्श था। 
शीया मजहब रखता था और खलीफाओं के नाम का दुश्मन था। उसने शहर के बाहर एक बाग लगवाया था जो बड़ा सुन्दर था। ख्वाजा साहब रहमतुल्लाहि अलैह उस बाग में दाखिल हो गए और हौज में नहाये और नमाज़ अदा करके कुरआन पाक की तिलावत करने लगे इत्तिकाफ की बात है कि बाग का हाकिम सैर व तफरीह के लिए आने वाला था।
 बाग के मालियों ने आपसे कहा कि बाग में न ठहरें क्योंकि अगर हाकिम ने देख लिया तो खैर नहीं। आपने फरमाया-' तुम इसका खौफ न करो ।'
 इतने में खबर आयी कि हाकिम की सवारी आ गयी, नौकर अदब से खड़े हो गये।
ख्वाजा साहब के खादिम में कहीं सुन लिया था कि हाकिम फकीरों और औलियाओं के बारे में अच्छा ख्याल नहीं रखता, मुमकिन है कोइ नुक्सान पहुंँचाये, 
इस ख्याल से उसने ख्वाजा साहब से अर्ज किया-बाग में अब बैठना मुनासिब नहीं, अगर कुछ हरज न हो तो किसी दूसरी जगह तशरीफ ले चलें ? 
आपने मुस्कराते हुए फरमाया
खौफ न करो और किसी पेड़ की आड़ में बैठ कर कुदरत का तमाशा देखो जब हाकिम बाग में आया तो आप कुरआने पाक की तिलावत कर रहे थे। आपको अपनी गद्दी के पास बैठा देखकर उसको सख्त गुस्सा आया और उसने अपने नौकरों को डांँटा और कहा-'इस फकीर को यहांँ से क्यो नहीं उठाया?
सभी नौकर घबरा गये और खौफ से कांँपने लगे। 
ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह ने जो नज़र उठाकर उसकी तरफ देखा तो वह हुजूर का रौब व जलाल देखते ही कांँप उठा और बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ा मुहम्मद यागार के नौकरो ने जब यह देखा तो बहुत परेशान हुए।
और ख्वाजा साहब की खिदमत में हाजिर होकर आजिजी से माफी मांँगी और दया की दरख्वास्त की ख्वाजा साहब ने दया करके अपने खादिम को बुलाया और हुक्म दिया कि बिस्मिल्लाह पढ़ कर इसके मुंँह पर पानी छिड़को।
खादिम ने जैसे ही उसके मुंँह पर पानी डाला, होश में आ गया। बहुत शर्मिन्दा हुआ और अपनी बदसुलूकी की माफी मांँगने लगा। आपने उसकी बात को नजर अंदाज करते हुए फरमाया-
तू मुझसे माफी मांँगता है और रसूलुल्लाह स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम की दिल आजारी करता है। रसूलुल्लाह के खानदान के साथ मुहब्बत का दावा करना और उनकी पैरवी न करना बे मायने है।
हुजूर गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह ने सहाबियों के मुकाम कुछ इस अन्दाज में बयान किए कि सभी हाजरीन दंग रह गए। 
शेख मुहम्मद यादगार और उनके साथी रोने लगे। हजरत ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह की इस नसीहत का सब्जावार के हाकिम पर बड़ा असर हुआ और वह आपकी विचार धारा में शामिल होकर आपका शागिर्द बन गया
अब शैख ने अपना सब माल नकद और दूसरी चीजें गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह की खिदमत में पेश कर दीं, लेकिन आपने उसे कुबूल नहीं किया और फरमाया-'जिन लोगो से तुमने यह माल जबरन वसूल किया है उन्ही के हवाले कर दो।
ताकि कल कियामत के दिन कोई शख्स तुम्हारा दामन न पकड़े। लिहाजा उन्होने हुजूर के फरमान के मुताबिक जिनका माल था उनको लौटा दिया और जो कुछ बाकी बचा उसे फकीरों और अनाथों में तक्सीम (बांट) कर दिया
दुनियां को छोड़कर ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह की सोहबत में रहने लगे। ख्वाजा साहब ने आपको खिलाफत अता फरमाकर हिसार शहर की विलायत बख्शी,मगर आप ख्वाजा साहब रहमतुल्लाहि अलैह की जुदाई बर्दाश्त ना कर सके और हमेंशा आपके साये में रहे। 
ख्वाजा साहब रहमतुल्लाहि अलैह की वफात के बाद भी मजारे मुबारक पर खादिम बन कर आखरी वक्त तक खिदतम करते रहे। आपका मजार मुबारक रौजा-ए-अक्दस के करीब ही शाल मशरिक (पूर्वोतर] दिशा में अब भी
मौजूद है।
हजरत शेखुल मशाइख मुहम्मद यादगार रहमतुल्लाहि अलैह की औलादें अब तक अजमेर शरीफ में मौजूद है उनकों हजरत ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह के मजारे मुबारक की खिदमत
का हक हासिल है।
यह शेखजादे कहलाते है।

सब्जावार से रवाना होकर गजनी पहुंँचे। वहांँ सुलतानुल मशाइख शेख अब्दुल वाहिद रहमतुल्लाहि अलैह से मुलाकात हुई आपके साथ हजरत कुतुबुल अकतााब ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तयार काकी रहमतुल्लाहि अलैह शेखुल मशाइख हजरत मुहम्मद यादगार रहमतुल्लाहि अलैह और सैस्यिदुस्सादात हजरत ख्वाजा फखरूददीन गुरदेजी रहमतुल्लाहि अलैह भी थे।
अल्लाह वालों का यह काफिला अब हिन्दुस्तान की सरहद पर था, सामने बड़े-बड़े और ऊंचे पहाड़ रास्ता रोके खड़े थे लेकिन हुजूर ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह का अज्म (इरादा) और हिम्मत उन पहाड़ो से ज्यादा अटल और मजबूत था। 
आपने अल्लाह का नाम लेकर कदम आगे बढाया और उन देव जैसे पहाड़ो,घटियों और दुशवार रास्तों को पार करते हुए हिन्दुस्तान के सरहदी इलाके पंजाब में दाखिल हो गए
जिस वक्त हजरत ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाहि अलैह हिन्दुस्तान में दाखिल हुए।
सुलतान शहाबुद्दीन मुहम्मद गौरी और उसकी फौज पृथ्वीराज से हार का गजनी की तरफ वापस जा रही थीं। उन लोगों ने ख्वाजा साहब रहमतुल्लाहि अलैह और आपके हमराहियों से कहा कि आप लोग इस वक्‍त आगे न बढ़े बल्कि वापस लौट चलें क्योंकि मुसलमानों के बादशाह की हार है।
आगे बढ़ना आपके लिए ठीक नही है। अल्लाह वालों के इस गिरोह ने जवाब दिया कि तुम तलवार के भरोसे पर गये थे और हम अल्लाह के भरोसे पर जा रहे है। अल्लाह वालों का यह काफिला आगे बढ़ता रहा।
किला शादमान और मुलतान होता हुआ दरिया-ए-रावी के किनारे पहुंँच गया ।

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दरिया-ए-रावी के उस पार पंजाब की राजधानी लाहौर आबाद थी और उसके मन्दिरों और शिवालयों की ऊंँची-ऊंँची और सुनहरी कलागियांँ दूर से ही बता रहीं थी कि यह शहर बड़ी अजमत और शान वाला है।
ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह और आपके हमराहियों ने दरिया पार करके शहर से बाहर हजरत अली बिन उसमान हिजवेरी उर्फ दाता गंज बख्श रहमतुल्लाहि अलैह के मजार पर कियाम फरमाया।
जो शहर के करीब था हजरत दाता गंज बख्श रहमतुल्लाहि अलैह अपने वक्‍त के बेमिसाल आलिम-व-फाजिल, आबिद व जाहिद और बडे कामिल बुजुर्गों में से एक थे। 
हुजूर ख्वाजा गरीब नवाज ने यहांँ एतिकाफ फरमाया और दिली सुकून हासिल किया फिर वहांँ से रवाना हुए। रवाना होते वक्‍त आपने हजरत दाता गंज बख्श रहमतुल्लाहि अलैह की शान में शेर पढ़ा-

गंज बख्शै फैजे आलम मजहरहे नूरे खुदा,
नाकिसांरा पीरे कामिल कामिलांरा रहनुमा

गंज बख्श ने दुनिया की भलाई के लिए खुदा के नूर की लहर फैलाई है। गुनहगारो के लिए जानकारों के लिए रहनुमा है।

यह शेर ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह की जबाने मुबारक से अगरचे बेसाख्ता निकला था, लेकिन यह आपके सच्चे जज्बात व एहसासात का आईना दार है और और इसकी मकबूलियत का यह आलम है कि आज तक लोग इसे बतौर वजीफा पढ़ते है।

ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह लाहौर से रवाना होकर शमाना (पटियाला) में पहुंँचे। वहांँ के लोग देखने में तो आपके हमदर्द मालूम होते थे मगर अन्दर से आपको नुकसान पहुंँचाना चाहते थे। 
असल में बात यह थी कि दिल्‍ली और अजमेर के राजा पृथ्वीराज की मांँग इल्में नुजूम (ज्योतिष विद्या) की जानने वाली थी। उसने अपने इल्म से अपने बेटे को आगाह (सचेत) कर दिया था कि ऐसी शक्ल सूरत और हुलिया का एक शख्स उसके राज में आयेगा जो तेरी ताबाहीं का कारण बनेगा। 
राजा ने इसी कथन के अनुसार चित्रकारों से तस्वीरे बनवाई और सरहदों पर भेज दी। साथ ही साथ यह हुक्म दिया कि इस सूरत का शख्स जहांँ भी मिले तुरन्त कत्ल कर दिया जाये जब ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह शमाना (पटियााल) में पहुंचे।
तो राजा के आदमियों ने आपको उसी शक्ल व सूरत का पाकर आपको रोकना चाहा ख्वाजा साहब को बजरिए कशफ मालूम हो गया कि मेजबानों की नियते बिगड़ी हुई है। और वो लोग आपके साथ दगा व फरेब करना चाहते है इसलिए आप अपने हमराहियों को लेकर वहांँ से इस तरह बचकर निकल गये कि दुश्मनों को खबर तक नहीं हुई।

हज़रत ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ की देहली में आमद

शमाना (पटियाला) से रवाना होकर ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह देहली पहुंँचे आपने देहली में राजा खण्डेराव के महल के सामने कुछ फासले पर अपना कियाम फरमाया और इस्लाम फैलाने का काम शुरू कर दिया।
आपके अंदाजे तबलीग इतना दिल नशीन था कि आपकी जा़ते अक्दस इस कदर पुर कशिश थी कि आपके आप आने वाले में ज्यादातर लोग ईमान ले आते थे।
 धीरे-धीरे मुसलमानों की तादाद बढ़ना शुरू हो गई और कुछ ही समय में देहली में इस्लाम के इस तेजी से फैलने से तहलका
मच गया। 
आखिरकार शहर के कुछ बा-असर लोग खांडे राव हाकिम के पास गये और अर्ज किया कि इन पापी (नऊजुबिल्लाह) मुसलमान फकीरों की अमद से हमारे देवता नाराज हो गये है। 
अगर तुरन्त इनको यहांँ से निकला नहीं गया तो डर है कि देवताओं का कहर सल्‍तनत की तबाही का कारण बन जायेगा। खांडे राव ने हुक्म जारी कर दिया कि फकीरो से देहली से तुरन्त निकाल दिया जाये। 
लेकिन उसकी कोई चाल कामयाब नहीं हुई क्योकि हुकूमत के आदमी जब कोई कार्यवाही करने के लिए आपके पास आते तो आपके बर्ताव, उच्च व्यक्तित्व और सत्यवादिता से इस तरह से आकर्षित होते कि तुरन्त इस्लाम कबूल करके आपके जा-निसारों में शामिल हो जाते। 
खांडे राव का जब कोई बस न चला तो उसने एक शख्स को कुछ लालच देकर इस बात पर राजी़ कर लिया कि वह सरकार गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह को कत्ल कर दे। वह शख्स अकीदतमन्द बन कर हाजिर हुआ आप पर इसकी आमद का मकसद जाहिर हों गया। और आपने फरमाया-' ऐसे अकीदतमन्दी से क्‍या फायदा, जिस काम के लिए आया है क्यों नहीं करता।
इस बात को सुनकर वह कांँपने लगा और बगल में दबा हुआ खंजर जमीन पर गिर पड़ा। इस रोशन जमीरी को देखकर वह शख्स आपके कदमों में गिर पड़ा और ईमान लाकर इस्लाम में दाखिल हो गया। 
जब ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह ने यह देखा कि अब दहेलीं में इस्लाम की काफी चर्चा हो चुकी है तो आपने अपने खलीफा-ए-अकबर हजरत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाहि अलैह को इस्लाम फैलाने के लिए वहां छोड़ा।
और खुद अपने चालीस (40) जांँ निसारों के साथ अजमेर के लिए रवाना हो गये। इस सफर में आपने तबलीग व हिदायत का काम इस सुन्दर तरीके से अन्जाम दिया कि अजमेर पहुंँचते-पहुंँचते सैकड़ो आदमी आपके साए में ईमान लाकर मुसलमान हो चके थे।

सुल्तानुल हिन्द अजमेर में

अजमेर पहुंँचकर आपने शहर से बाहर एक सायादार पेड़ के नीचे कियाम फरमाया। अभी बैठे ही थे कि चन्द ऊंट वालों ने आकर बढ़े सख्त शब्दों में कहा-यहांँ से हट कर कहीं और बैठो, 
यह जगह राजा के ऊंँटों के बैठने की है। हुजूर गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह ने कहा-'ऊंँटों को कही भी बिठा सकते हो, बहुत जगह पड़ी है।' मगर ऊंँट वाले न माने और जबरदस्ती पर उतर आए। 
इसलिए सरकार गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह ने नर्मी से फरमाया-लो हम यहांँ से उठ जाते है तुम्हारे ऊंँट ही बैठे रहेंगे।' यह कहकर आप अपने मुरीदों के साथ आना सागर के किनारे जाकर एक पहाड? पर ठहर गये। दूसरी सुबह ऊंँट वालों ने लाख कोशिश की मगर ऊंँट खड़े न हों सके ।
ऐसा मालूम होता था कि जमीन ने उन्हे पकड़ लिया है। यह हालत देखकर ऊंँट वाले बहुत परेशान हुए, जब उनकी कोई तदबीर काम न आयी तो मजबूर होकर राजा पृथ्वीराज के दरबार में तारागढ़ पर हाजिर हुए। राजा ने जब उनकी जुबानी यह अजीब व गरीब माजरा सुना तो हैरत में पड़ गया। उसे अपनी बहादुरी पर बड़ा नाज (गर्व) था, लेकिन ख्वाजा साहब रहमतुल्लाहि अलैह की इस पहली ही करामत से उसकी सारी की सारी बहादुरी धरी की धरी रह गयी। 
लाचार होकर उसने ऊंँट वालों को हुक्म दिया कि जाओ उसी फकीर से माफी मांँगो जिसकी बददुआ का यह नतीजा है, ताकि ऊंँट खड़े हो जाएंँ। सब ऊंँट वालों ने हुजूर गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह की खिदमत में हाजिर होकर बहुत आजिजी से माफी मांँगी, आपने माफ कर दिया और फरमाया-'जाओं! 
खुदा की मेहरबानी से तुम्हारे ऊंँट खड़े हो जायेगे। ऊंँट वालो ने जब वापस आकर देखा तो उनकी खुश और आश्चर्य की कोई सीमा न रही क्योंं कि उनके सब के सब ऊंँट खड़े थे ।
हुजूर गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैहि और आपके साथी रोज आना सागर के पास घाट पर वुजू और गुस्ल(स्नान) किया करते थे, चूँकि घाट पर मन्दिरों की इमारतें थी, इसलिए मन्दिरों के पुजारियों को यह बात सख्त नागवार गुजरी| एक दिन हुजूर गरीब नवाज के कुछ मुरीद आना सागर पर नहाने के लिए गये। वहाँ से उन्हें हटा दिया गया मुरीद फरियाद लेकर ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह की खिदमत में हाजिर हुए। आपने पूरा हाल सुनकर अपने एक मुरीद से फरमाया-' जाओ कूजे (मिट्टी के बर्तन) में तालाब का पानी भर लाओं।' वह मुरीद आना सागर पर पहुंचकर तालाब का पानी भरने के लिए जैसे ही कूजे को तालाब में डाला आना सागर का सारा पानी उस कूजे में आ गया। मुरीद ने कूजे को हुजूर की खिदमत में पेश कर दिया। जब तालाब के सूखने का पुजारियों का पता चला तो उनके होश उड़ गये इधर शहर में कोहराम मच गया। लोग पानी के लिए तड़प उठे और यह बात पूरे शहर में फैल गयी कि मुसलमानों को घाट पर मारा-पीटा गया था इसलिए उनके गुरू ने सारा पानी गायब कर दिया है। शहरियों का एक गिरोह सरकार गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह से बड़ी मन्‍नत व समाजत से माफी मांँगने लगा। आपने दयापूर्वक उसे कूजे का पानी वापस तालाब में डलवा दिया और तालाब पहले जैसा पानी से भर गया। इस वाकिया को देखकर बहुत से लोग ईमान लें आये और इन करामात के बाद अजमेर में इस्लाम बड़ी तेजी से फैलने लगा।

शादी देव का ईमान लाना।

अजमेर के सभी बुतखानों का पेशवा शादी देव था जो जादूगर शादी मन्दिर में रहता था। हिन्दु धर्म का बड़ा जानकार शख्स था और सब पुजारियों का सरदार था पूरी जनता पर उसका असर था। जब उसने बुतखानों की वीरानी के आसार देखे तो तिलमिला उठा और बहुत चिंतित हुआ। मन्दिरों के पुजारियों ने भी इसको ख्वाजा साहब की मुखालफत पर उभारा। मन्दिरों के सब रहने वालों ने मिलजुल कर शादी देव को आपके मुकाबले पर ला खड़ा किया। उनकी नियत बुरी थी और ख्वाजा साहब को नुकसान पंहुचाना चाहते थे, मगर ख्वाजा साहब रहमतुल्लाहि अलैह ने उन पर एक ऐसी नजर डाली कि सब के सब थरथरा कर कांँपने लगे और चौकड़ी भूल गये। शादी देव तुरन्त हुजूर गरीब नवाज के कदमों पर गिर पड़ा और आजिजी से माफी मांँगने लगा। ख्वाजा साहब रहमतुल्लाहि अलैह ने उसे कलिमा-ए-हक पढाया और उसने खुशी से इस्लाम कुबूल कर लिया । उसका इस्लामी नाम शाद रखा गया। उसके हमराहियों में से भी अक्सर ने तौबा की और ईमान ले आये। इस घटना से सब जगह हलचल मच गयी और पृथ्वीराज भी चिंतित हो गया।

अजय पाल योगी का मुसलमान होना।

अजमेर में इस्लाम के तेजी से फैलने पर पृथ्वीराज को बहुत चिन्ता हो गयी थी। इसलिए उसने हुजूर गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह के मुकाबले के लिये अपने खानदानी गुरू की मदद ली, जिसका नाम अजय पाल योगी था। अजय पाल हिन्दुस्तान का सबसे बड़ा और बा कमाल जादूगर था जो अजमेर के पास ही जंगल में रहता था। राजा ने बुलाकर ख्वाजा साहब का सब हाल उसे सुना दिया। अजय पाल योगी ने हुजूर गरीब नवाज के उन मामूली करामात को हाथ की सफाई और नजरबन्दी समझा। उसने राजा को यकीन दिलाया कि उस फकीर को यहांँ से निकाल दूँगा। मगर छाल पर बैठा और अपने सभी शागिर्दों को साथ लेकर आना सागर की तरफ रवाना हुआ वहांँ सरकार गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह ठहरे हुए थे। शैतानों का यह लश्कर उड़न शेरों पर सवार हाथों मतें
अजगरों के कोड़े लिए हुए जंगलियों की तरह चिल्लाते-चिल्लाते आना सागर के किनारे आ जमा हुयेे हूजूर गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह के नये मुसलमान शागिर्द उस शैतानी
लश्कर को देखरकर घबरा गये। उसी वक्‍त आपने उपनी उंगली से लकीर खींच दी और फरमाया-' इसके बाहर न जाना महफुज (बचे) रहोगे।. अजय पाल और उसके चेलों ने अपने हाथों से जादू के अजगर छोड़ दिये जो हजरत की तरफ बड़ी तेजी से लपके, मगर उस लकीर तक आकर सब के सब जल गये। इस तरकीब के नाकाम होने से जादूगरों ने आग बरसाना शुरू कर दिया, मगर उस आग ने भी सरकार गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह और आपके साथियों पर कोई असर नहीं किया बल्कि वह आग वापस लौट गई और उससे जादूगर ही जल कर खाक होने लगे। जब उनका कोई करतब कारगर न हुआ तो अजय पाल ने तय किया कि आसमान पर पहुंँचकर वार किया जाये। अतः वह आसमान की तरफ उड़ने लगा ताकि हवा में रहकर हमला कर सके। जब हुजूर गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह की नजर उस पर
पड़ी तो आपने अपनी जूतियों को इशारा किया कि उस बेदीन को नीचे उतार लायें। जूतियों ने उड़ान भरी और आन की आन में अजय पाल के सिर पर पहुंचकर तड़ातड़ पड़ने लगी। थोड़ी देर बाद क्‍या देखते हैं कि जूतियां अजय पाल के सिर पर मुसललत (छा गई) हैं और वह लाचार नीचे उतरा चला आ रहा है। आखिर घमंड का सर नीचे हुआ। अजय पाल की आंँखों से अब पर्दे उठ चुके थे और उसने समझ लिया था कि जादू बेकार है। आज तक जादू सीखने में जिन्दगी बर्बाद की इसलिये आंखों में आंँसू भर लाया और माफी मांँगी। ख्वाजा साहब रहमतुल्लाहि अलैह ने दया करके उसे माफ कर दिया और वह सच्चे दिल से मुसलमान होकर आपके चाहने वालों में शामिल हो गया। हुजूर ने उसका इस्लामी नाम अब्दुल्लाह रखा। उसके बाकी चेले भी मुसलमान हो गये अब जितने आदमियों ने किनारे पर यह घटना देखी वे सब भी मुसलमान हो गये।

सुल्तानुल हिन्द अजमेर में

अजय पाल के ईमान लाने के बाद हुजूर गरीब नवाज की खिदमत में इल्तिजा की कि हुजूर अपने मदारिजे आला से आगाह फरमायें आपने मुस्कुराकर फरमाया-“आंखे बन्द करो आंखे बन्द करते ही उसने देखा कि तमाम हिजाबात (पर्दे) उठना शुरू हो गये और आलमें बरजख आसमान और यहां तक कि अर्श आजम तक की सैर करा दीं। जब उसकी तबीयत सैर हो गयी तो हुक्म दिया कि आंखे खोलो, आंखे खोलकर हुजूर के कदमों पर गिर पड़ा हुजूर ने बहुत मुहब्बत से उसे उठाया और इतना ज्यादा करम फरमाया कि उसे औलिया के दरजे तक पहुंचा दिया। अब उसने एक और इल्तिजा पेश की कि मैं हयातें अबदी का तालिब हूं। हुजूर ने बारगाहे खुदावन्दी में अर्ज गुजारी जिस पर शरफे कबूलियत हासिल हो गया। कहा जाता है कि अब्दुल्लाह जिन्दा है और भूले-भटके मुसाफिरों को रास्ता बताते है। अजमेर और उसके आस-पास के लोग उन्हे अब्दुल्लाह बियाबानी के नाम से पुकारते है।

इस्लाम का तेजी से फैलना

अजय पाल योगी के मुसलमान होते ही एक तहलका पूरे अजमेर शहर मूँ मच गया था और लोग ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह से अकीदत मन्दी का इज्हार करने लेग। शादी देव
और अजय पाल ने मुसलमान होने के बाद ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह की खिदमत में हाजिर होकर आबादी में कियाम फरमाने की अपील की। आपने आना सागर से उठकर उस जगह आकर कियाम किया जहांँ आजकल दरगाह शरीफ है। यह जगह शादी देव की मिलकियत में थी। इस घटना से राजा मुतास्सिर और चिन्तित हुआ और उसके सीने में गुस्से की आग भड़कने लगी। उधर हजरत गरीब नवाज ने इस्लाम फैलाने का काम और तेज कर दिया। अल्लाह तआला ने आपको असल में ऐसी नजर अता फरमाई थी कि जिसपर एक बार नजर डाल देते आपकी मुहब्बत में डूब जाता, आपकी जबान में इतनी मिठास थी कि हर आने वाला आपकी मेहमान नवाजी और हमदर्दी से असर अन्दाज होकर आपके गिरोह में शामिल हो जाता लोग आपकी खिदमत में भारी तादाद में आने लगे और मुसलमान होने लगे। इस तरह हजारों आदमी कुफ्र के अंधेरे से निकलकर इस्लाम की रोशनी में आ गये

पृथ्वीराज को दावते इस्लाम।

शादी देव और अजय पाल के इस्लाम कुबूल करने के बाद हुजूर गरीब नवाज ने पृथ्वीराज के पास पैगाम भेजा कि-' इस्लाम कुबूल करो। इसी में तुम्हारी भलाई है। बादशाह भी हाथ से न जायेगी और मरने के बाद भी चैन मिलेगा, वरना खूब याद रखों कि तुम्हारे लिये यहांँ और वहांँ दोनो जगह बड़ी मुसीबत का सामना है और उस वक्‍त तुमसे कुछ बनाये न बन पड़ेगा।' मगर उसके दिल पर कुछ असर न हुआ और ख्वाजा साहब का यह पैगाम सुनते ही आग बगोला हो गया। उसने इम्तिहान लेने के लिए एक शख्स को हुजूर की खिदमत में मुरीद बनना चाहा। आपने उसे मुरीद बनाने से इन्कार कर दिया। मालूम होने पर आपने फरमाया कि मुरीद ना करने के तीन कारण है।

पहला

यह कि तेरे दिल में दगा और गन्दगी है।

दूसरा

यह कि शिर्क तेरीतबियत से इस
तरह बसा हुआ है कि खुदा के सिवा हर एक के सामने सर झुकायेगा। 

तीसरा

यह कि मैने तेरे लिए लौहे महफूज में देखा है कि तू दुनिया से बेईमान जायेगा। यह सुनकर वह शख्स हैरान हो गया और राजा की खिदमत में जाकर सब हाल बयान कर दिया। ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह और पृथ्वीराज के बीच कशमकश बराबर जारी थी और अब दुश्मनी और बढ़ गयी। राजा का जब किसी तरह हुजूर गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह पर बस ना चला तो उसने सारे मुसलमानों पर जुल्म ढाने शुरू कर दिये। उसका एक दरबारी जो मुसलमान होकर ख्वाजा साहब रहमतुल्लाहि अलैह का मुरीद हो गया था उसके खूब तकक्‍लीफे दी गयी उस मुरीद ने ख्वाजा साहब रहमतुल्लाहि अलैह की खिदमत में हाजिर होकर फरियाद की कि मेरी सिफारिश की जाये ताकि राजा अपने जुल्म से बाज ओय। ख्वाजा साहब की मुरीद नवाजी मशहूर है। आपने राजा को इससे बाज रहने की सिफारिश की लेकिन राजा ने एक न मानी और गुस्से में हुक्म दिया कि यहांँ के राजा होने के नाते हमारा हुक्म है कि एक हफ्ते के अंदर अपने सार्थियों समेत अजमेर खाली कर दो वरना सख्ती से निकाल दिया जायेगा। जब यह हुक्मनामा हमारे ख्वाजा साहब रहमतुल्लाहि अलैह के पास पहुंचा तो आपको जलाल आ गया और फरमाया-' हमने पृथ्वीराज को जिन्दा गिरफ्तार करके लश्करे इस्लाम के हवाले कर दिया।' ख्वाजा साहब रहमतुल्लाहि अलैह की जबाने मुबारक से यह जुम्ला सुनकर लोग हैरान थे, मगर उन्हे यकीन था कि ख्वाजा साहब रहमतुल्लाहि अलैह की जबान से निकली हुई बात बेअसर नहीं हो सकती इसीलिए बड़ी बेकरारी से नतीजे का इन्तिजार करने लगे जिस रोज  ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह की जबाने मुबारक से यह जुमला (वाक्य) निकला मैने पृथ्वीराज को जिन्दा गिरफ्तार करके लश्करें इस्लाम के हवाले कर दिया। उसी रोज सुल्तान शहाबुद्दीन मुहम्मद गौरी को जो उन दिनों खुरासान में था, ख्वाब की बशारत हुई। देखता क्‍या है कि एक बा-खुदा बुजुर्ग सामने खड़े है और फरमा रहे है-'ऐ शहाबुद्दीन! खुदा-ए-तआला ने हिन्दुस्तान की सल्तनत तुझे अता फरमाई है, उठ, जल्द इस तरफ ध्यान दें और उस (घंमड़ी) राजा को जिंदा गिरफ्तार करके सजा दें। यह कहकर वह बुजुर्ग रूपोश हो गए। बादशाह जब ख्वाब से बेदार हुआ (जागा) तो उसके दिल पर एक अजीब कैफियत थी और उसके कान में एक गैबी आवाज रह-रहकर आ रही थी, उठ, हिन्दुस्तान चल, सफलता तेरा इन्तिजार कर रही है।' सुल्तान ने अपना ख्वाब आलिमों से बयान किया। सब ने एक जबान होकर सुलतान को मुबाकरबाद दी और फत्ह की खुशखबरी सुनाई 

शहाबुद्दीन मुहम्मद गौरी को फत्ह की खुशखबरी।

शहाबुद्दीन मुहम्मद गौरी हिन्दुस्तान के मोर्चे पर सुल्तान शहाबुद्दीन मुहम्मद गौरी को एक साल पहले तरावजी के मैदान में पृथ्वीराज के मुकाबले में शर्मनाक शिकस्त (हरा) हुई थी और मुश्किल से जान बचाकर गजनी पहुंचा था। इन्तिकाम की आग उसके दिल में भड़क रही थी और गुप्त रूप से लड़ाई की तैयारियांँ कर रहा था, लेकिन किसी को यह उम्मीद न थी कि इस कदर जल्द वह हिन्दुस्तान के मोर्चे पर रवाना हो जायेगा । सुल्तान के मुबारक ख्वाब ने उसके दिल में एक नया जोश पैदा कर दिया था। आलिमों से अपने ख्वाब की तबीर सुनते ही उसने लड़ाई के सामान की फेहरिस्त (सूची) मंगवा कर देखी और लश्कर के कूच का डंका बजवा दिया और आठवें दिन खुद रिकाब में पैर रखकर रवाना हुआ। सभी अफसर हैरत में थे कि इस कदर जल्‍द तैयारी की क्‍या वजह हुई और लश्कर किस मोर्चे पर जा रहा है मगर किसी की हिम्मत न हुई कि सुल्तान से मालूम करे। जब यह लश्कर पेशावर में आकर ठहरा तो शाही खानदान के एक उम्र रसीदा शख्स ने सुल्तान की खिदमत में हाजिर होकर अर्ज किया-' हुजूर इस मोर्चे में सामान तो जंगे अजीम (महायुद्र) का दिखाई देता है लेकिन यह नहीं जानता कि जाना किधर है ?' सुल्तान ने एक ठंडी आह भरी और जाब दिया। ऐ बुजुर्ग। तुमको मालूम नहीं है कि मुझ पर क्‍या गुजरी, क्या तुझे पिछले साल की हार नहीं रही ? क्‍या यह हार इस्लाम के नाम पर कोई मामूली सा धब्बा है ? तू यकीन कर कि उस दिन से मैंने आज तक कपड़े बदले है और न महल सरा में बिस्तर पर सोया हूं । बुजुर्ग ने यह सुनकर शहाबुद्दीन गौरी की हिम्मत बढ़ाई और उसको दुआये दी, फत्ह का यकीन दिलाया और फरमाया- अगर हुजूर का यही इरादा है तो मसलहते वक्‍त को देखते हुए काम करना चाहिए। आप उन अमीरों और सरदारों के कुसूर माफ कर दें और उन्हें दरबार में बुलाकर इनाम व इकराम से मालमाल करें ताकि वह जान की बाजी लगाकर लड़े और पिछली बदनामी का धब्बा मिटा दें। सुल्तान को बुजुर्ग का यह कीमती और सही मश्विरा बहुत पसन्द आया। जब लश्कर मुलतान पहुंचा तो सुलतान ने दरबारे आम लगाया और छोटे-बड़े सभी अमीरों और सरदारों को बुलाया, उनकी गलतियां माफ करके उनसे कहा-'ऐ मुसलमानों पिछले साल बदनामी का जो धब्बा इसलाम के माथे पर लगा है वह किसी से छुपा नहीं है इसलिए हर मुसलमान का यह फर्ज है कि उस कलंक के टीके को अपनी तलवार के पानी से धो कर साफ करें। सभी सरदारों ने अपनी तलवारों के कब्जे पर हाथ रखकर झुका दिइ्या, जैसे जबाने हाल से कह रहे थे कि हमारा वायदा पक्का है और हम उसे आखिरी सांस तक निभायेंगे।

पृथ्वीराज को सुल्तान का पैगाम।

सुलतान शहाबुद्दीन मुलतान से रवाना होकर लाहौर पहुंचा वहां से रूकनुद्दीन को जो अक्ल व तदबीर में अपना जवाब नहीं रखता था, सफीर (सन्देशवाहक) बनाकर राजा पृथ्वीराज के पास अजमेर भेजा। पृथ्वीराज के नाम जो पैगाम सुलतान ने भेजा था उसका मज्मून था-'मै अपने बड़े भाई के हुक्म से जो पंजाब से लेकर खुरासान तक सभी मुसलमानों का बादशाह है हिन्दुसतान पर लश्कर कशी करने के लिए आया हूं इसलिए पृथ्वीराज को जो हिन्दुसतान के राजाओं का महाराजा है लिखा जाता है कि वह इस्लाम को कबूल करके राज्य में खून-खराबा न होने दे वरना लड़ाई के लिए तैय्यार हो जाये। पृथ्वीराज की नजरों से जब यह पैगाम गुजरा तो उसकी कोई परवाह नहीं की और बहुत सख्त जवाब दिया क्योकि उसको अपनी बहादुरी और राजपूत सूरमाओं पर बहुत नाज था। उसको अपनी सफलमा सामने ही नजर आ रही थी। लड़ाई की तैय्यारी में लग गया तुरन्त सभी हिन्दुस्तान के राजाओं को संदेश जारी कर दिया। थोडे ही समय में तीन लाख राजपूतों का लश्कर इसके झन्‍डे के नीचे आ जमा हुये सुल्तान मुहममद गौरी उधर से बढ़ा इधर से पृथ्वीराज की संयुक्त फौज चली और सरस्वती नदी को बीच में डालकर दोनो लश्करों ने अपने-अपने खेमे लगा दिये। उसी समय सुलमान के पास पृथ्वीराज का जवाब भी आ गया जिसका मज्मून यह था- “इस्लाम के सिपहसलार को उसके जासूसों द्वारा मालूम हो गया होगा कि धर्म रक्षा के लिए हमारे पास आसमान के तारो से भी ज्यादा लश्कर मौजूद है और सभी हिन्दुस्तान के कोने-कोने से फौजों का आना जारी है, इनमें से एक-एक राजपूत ऐसा बहादुर है जिसकी तलवार से काबूल और कन्धार तक ने पनाह मांगी है। तुम इन तुर्क बचचों और अफगान जवानों की जवानी पर रहम खाते हुए यहांँ से वापस लौट जाओं। इसी में तुम्हारी भलाई है वरना देख लो हमारे पास वेशुमार लड़ाई का सामान मौजूद है और जंगी हाथी भी तीन हतार से कुछ ऊपर है। अगर मेरी राय मन्‍जूर है तो ठीक वरना याद रखो तुम्हारा एक सिपाही भी यहां से जिन्दा वापस जाने में कामियाब नहीं होगा।' सुलतान शहाबुद्दीन यह खत पढ़कर सुसत पड़ गया। दुश्मन की बेशुमार फौज और अपनी गिनत की फौज उसके सामने थी। अतः: उसने जंगी चाल से काम लेते हुए राजा को जवाब में लिखा-आपने बड़ी मेहरबानी और मुहब्बत से अच्छा मश्विरा दिया है। मगर आपका मालूम है कि मैने यह लश्कर कशी अपने बड़े भाई के हुक्म से की है जब तक वहां से हुक्म न आ जाये, मै कुछ नही कर सकता। इसलिए वहां से जवाब आने तक मुहलत चाहता हूं।'राजा ने जब कमजोर जवाब को सुना तो बहुतम खुश हुआ, उसके तमाम लश्कर में खुशी मनाई गयी और नाच व रंग का बाजार गर्म हो गया।

फैसला कुन जंग।

शहाबुद्दीन गौरी ने दुरूमन को गफलत में पाकर पूरा-पूरा फायदा उठाया और शाम से ही लश्कर बन्दी का हुक्म दे दिया। खेमों और ढेरों को उसी हालत में छोड़कर रातों रात कई मील का चक्‍कर काटकर पूरे लश्कर के साथ नदी से पार उतर गया। उस वक्‍त राजा को होश आया अज्शैर उसके लश्कर में खलबली मच गयी। राजा ने होश हवास को कायम रखा और एक हिस्सा फौज को तुरन्त तैयार करके सामने ले आया फिर बाकी फौज को भी समेट कर मैदान में ला खड़ा किया। राजा की फौज में तीन हजार हाथी तीन लाख सवार और बेशुमार पैदल थे। उधर सुलतान शहाबुद्दीन के पास सिर्फ एक लाख बीस हजार का लश्कर था। इसलिए राजा को अपनी कामियाबी का पूरा-पूरा यकीन था। इसलिए उसने लश्कर की तर्तीब पर कोई खास ध्यान नहीं दिया। सारी फौज को एक ही समय में हमले का हुक्म दें दिया उधर सुल्तान ने तर्कीब से काम लेते हुए अपनी फौज के चार हिस्से किये और हर एक पर अलग-अलग सिपहसालार मुकर्रर करके बारी-बारी जाकर लड़ने का हुक्म दे दिया। राजपूत इस बहादुरी से लड़े कि सुलतान की फौज के छक्के छूट गये। उस वक्‍त सुल्तान एक जंगीं चाल चला यानी हार की सूरत बनाकर पीछे हटा राजपूतों ने पीछठा किया सुल्तान ने जब यह देखा कि उनकी तर्तीब बिगड़ चुकी है, तो उसने दूसरे ताजा दम लश्कर को मैदान में ला खड़ किया लेकिन राजा की फौज बुशुमार थी, सुलतान की चाल कारगर न हुई। लड़ते-लड़ते दोपहर का समय हो गया, सूरज सर पर आ गया, गर्मी का मौसम था और जंग थी के खत्म न होती थी। राजा पृथ्वीराज एक सौ पचास राजाओं को साथ लेकर लश्कर से निकला और एक पेड़ के साये में पहुचकर तय किया कि अब एक फैलाकुन जंग लडी जाये। इस पर सब ने तलवारों के कब्जे पर हाथ रखकर धर्म और देश पर कट करने की कसम खाई, शरबत का एक-एक प्याला पिया, तुलसी की पत्ती जबान पर रखी और केसर का टीका अपने माथे पर लगाया और ताजा दम होकर मैदान में आ गये। अब घमासान की लड़ाई शुरू हो गयी। राजा की फौज सुबह से लड़ते-लड़ते थक चुकी सुलतान मौका पाकर अपने बारह हजार तलवारबाज बहादुरों को लेकर जो इसके खास गुलाम थे और अब तक जंग में नहीं गये थे लश्कर से निकला और इस तेजी से हमला किया कि आन की आन में राजा की फौज के बीच में घुस गया। सुलतान के दूसरे सरदारों को भी यह देखकर जोश आ गया और वह भी दायें-बाये जोर देकर राजा की फौज पर टूट पड़े। ताजा दम दसते का मुकाबला राजा की थकी हुई फौज के बस से बाहर था। देखते ही देखते हजारो राजपूत तलवार के घाट उतर गये और राजा की फौज में हलचल मच गयी। उधर जंगी हाथी जिन पर राजा को बड़ नाज था अपनी ही फौज पर उलट पड़े और हजारों को कुचल डाला। राजपूत सूरमाओं ने बेड़ा संभाला मगर उनके बनाए क्‍या बनता था। गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह की कौल (कथन) पूरा होना था और होकर रहा। अभी थोड़ा दिन बाकी था कि राजा की फौज के पैर उखज़ गये और सुलतान शहाबुद्दीन की फौज उन पर छा गई । खांडे राव मैदाने जंग में मारा गया और बहुत से हिन्दुस्तान के राजा इस लड़ाई में काम आ गये बाकी अपनी जान बचाकर भागने में कामियाब हो गये। पृथ्वीराज भी जान बचाकर भागना चाहता था मगर दरिया-ए-सरस्वती के किनारे गिरफ्तार कर लिया गया आखिरकार शहाबुद्दीन मुहम्मद गौरी की फत्ह हुई और इस जंग से उतरी हिन्दुस्तान पर मुसलमानों का कब्जा पूरी तरह से हो गया उसके बाद सरस्वती,सामाना, कोहराम और हांसी की राजपूत रियासते आसानी से जीत ली गयी। अब सुल्तान ने अजमेर का रूख किया। रास्ते में कोई मुकाबला नहीं हुआ बल्कि मरे हुए राजाओं के बेटों ने सुल्तान का शानदार इस्तकबाल (स्वागत) किया और उसकी शरण में आ गये। सुलतान ने अजमेर पहुंँच कर यहां़ की हुकुमत पृथ्वीराज के एक बेटे को दीं और उससे वफादारी का हलफ लिया।

सुल्तान शहाबुद्दीन मुहम्मद गौरी सरकार गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह के कदमों में।

जिस वक्‍त शहाबुद्दीन मुहम्मद गौरी अजमेर में दाखिल हुआ तो शाम का वक्‍त था और सूरज डूब रहा था। इतने में अजान की आवाज आई। सुलतान हैरत में पड़ गया और मालूम किया कि यह आवाज कहां से आ रही है। लोगों ने बताया कि कुछ फकीर आये हुए है और रोज पांच वक्‍त इसी तरह पुकारते है। सुल्तान अजान की तरफ बढ़ा। जमाअत तैयार थी सुल्तान जमाअत में शामिल हो
गया। सरकार गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह इमामत फरमा रहे थे। जब नमाज खत्म हुई और सुल्तान की नजर सरकार गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह के चेहरे मुबारक पर पड़ी तो उसके हैरत की कोई इन्तिहा न रही उसने देखा कि ये वही बुजुर्ग हैं जिन्होने मुझे ख्वाजा में फत्ह की खुशखबरी दी थी, तुरन्त कदमों में गिरना चाहा लेकिन सरकार ने सुलतान को सीने से लगा लिया। सुल्तान आंखों में आंसू आ गये और बहुत देर तक रोता रहा। सरकार गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह ने दुआयें देकर बैठने को कहा। सुल्तान एक तरफ अदब से बैठ गया। जब रोना कम हुआ तो अकीदत व मुहब्बत का नजराना पेश करते हुए मुरीद होने की इल्तिजा की। सरकार गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह ने सुल्तान शहाबुद्दीन
की दरख्वास्त मंजूर करते हुए उसको अपने मुरीदों में शामिल कर लिया कुछ दिन अजमेर में रहकर सुल्तान शहाबुद्दीन मुहम्मद गौरी ने खुद जाकर दहेली पर कब्जा किया और अपने वफादार गुलाम कुृतुबुद्दीन ऐबक को हिन्दुस्तान का गवर्नर बनाकर वापस गजनी चला गया। क॒तुबुद्दीन ऐबक ने मुल्क के बाकी हिस्सों को फत्ह करने में हैरतअगेंज कामियाबी हासिल की और बहुत जल्द उतरी हिन्दस्तान पर मुसलमानों का कब्जा हो गया एक राजा हरिराज ने अजमेर से पृथ्वीरात के बेटे को निकाल बहार किया। उसने कुतुबुद्दीन ऐबक से फरियाद की। कुतुबुद्दीन ऐबक ने राजा हरिराज पर चढ़ाई करके उसको कत्ल किया और कोला फिर अजमेर का राजा बन गया लेकिन इसके साथ ही मीरां सैयद हुसैन रहमतुल्लाहि अलैह को अपना नयाब बनाकर भेजा जो बडे परहेजगार बुजुर्ग थे। मीरां सैयद हुसैन मशहदी रहमतुल्लाहि अलैह पहले ही से सरकार गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह के अकीदतमन्द थे और अब इस कदर अकीदत बढ़ गयी कि ज्यादा वक्‍त सरकार गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह की खिदमत में बसर होता था। आपने इस्लाम फैलाने में नुमायां हिस्सा लिया |

हज़रत ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ शादियांँ और औलादें।

आप का बचपन मुसीबतों और तकलीफों में गुजरा जवानी इल्म हासिल करने, अल्लाह की इबादत और फकीरी में बिता दी अब जबकि आपकी उम्र शरीफ करीब उनसठ साल की हो गयी और अजमेर शरीफ आपका हमेशा का ठिकाना बन गया। इस्लाम की तब्लीग का काम अपने परे जोर-शोर परथा तो एक रोज ख्वाब में आपको हजरे सरकारे दो आलम स्ववललल्लाहो अलैैैहि वसल्लम का दीदार हुआ, सरकारे दो आलम स्ववललल्लाहो अलैैैहि वसल्लम ने ईशाद फरमाया-'मुईनुद्दीन! अल्लाह के हुक्म को पूरा किया,क्या वजह है कि मेरी सुननत पर अमल नहीं किया। इस ख्वाब के बाद हुजूर गरीब नाज रहमतुल्लाहि अलैह ने एक के बाद एक दो शादियांँ की उन दिनों अजमेर शरीफ में एक-बा-खुदा बुजुर्ग सैयद वजीहुद्दीन मशहदी रहमतुल्लाहि अलैह रहते थे। एक दिन हजरत सैयद वजीहुद्दीन मशहदी रहमतुल्लाहि अलैह ने इमाम जाफर सादिक रदिअल्लाहु अन्हु को ख्वाब में देख कि फरमा रहे है 'ऐ फरजन्द वजीहुद्दीन! इर्शादे हुजूर सरवरे दो आलम स्ववललल्लाहो अलैैैहि वसल्लम है कि अपनी लड़की ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती के निकाह में दे दो क्योकि वह अल्लाह वलि और रसूल स्ववललल्लाहो अलैैैहि वसल्लम के चाहने वालों में है। जिस वक्‍त सैयद साहब ख्वाब से जागे तो उनको बड़ी खुशी हुई । हुजूर ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह की खिदमत में हाजिर होकर अपना ख्वाब बयान किया। ख्वाजा साहब रहमतुल्लाहि अलैह ने फरमाया कि अगरचे मेरी उम्र आखिर हुई और जब निकाह की जरूरत नहीं मगर हुजूरे सरकारे दों आलम स्ववललल्लाहो अलैैैहि वसल्लम के इर्शाद और फरमाने इमाम आली मुकाम का बात मुझे मन्जूर है। यह सुनकर सैयद साहब बहुत खुश हुए और हुजूर गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह के साथ अपनी दुख्तर (बैटी) का निकाह कर दिया। उनकी बीवी का नाम अस्मत था। हुजूर गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह ने दूसरा निकाह भी किया है जो एक राजा की लड़की से हुआ जिन्होने बपनी खुशी से इसलाम कुबूल कर लिया था । उन बीबी साहिबा का इस्लामी नाम अमतुल्लाह था

हज़रत ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ की औलादें।

दोना बीवियों से तीन साहबजादे और साहबजादी कुल चार औलादें हुजूर गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह के हुई जिनके नाम ये है।
(1) हजरत ख्वाजा फखरूद्‌दीन रहमतुल्लाहि अलैह
(2) हजरत ख्वाजा जियाउद्दीन अबू सईद रहमतुल्लाहि अलैह
(3) हजरत ख्वाजा हुसारमुद्दीन रहमतुल्लाहि अलैह
(4) बीबी हाफिज जमाल रहमतुल्लाहि अलैह

हजरत ख्वाजा फखरूद्‌दीन रहमतुल्लाहि अलैह।

आप हुजूर गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह के सबसे बड़े साहबजादे है, खेती करके अपना गुजर-बसर करत थे। आप बहुत बड़े बा-कमाल बुजुर्ग और जबरजस्त आमिल थे। हुजूर गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह के विसाल के बीस साल बाद आपने कस्बा सरवाड़ में जो अजमेर शरीफ से चालीस मील दूर है सुकूनत इख्तियार की मजारे पाक वहीं है जो एक तालाब के किनारे बहुत खूबसूरत जगह पर है। हर साल माहे शाबान की तीन से छः: तक आपका उर्स बड़े धूमधाम से सरवाड़ में होता है। आपके पांच साहबजादे थे जिनमें हजरत ख्वाजा हुसामुद्दीन जिगर सोख्ता रहमतुल्लाहि अलैह बड़े बाकमाल और खुदा शनास बुजुर्ग थे। आपका मजार मुबारक सरवाड शरीफ में है हर साल माहे रजब की तेरह और चौदह तारीख को आपका उर्स होता है। सरकार गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह को हजरत ख्वाजा फखरूद्दीन रहमतुल्लाहि अलैह से बेहद मुहब्बत थी। आप खेती करके अपना गुजारा किया करते थे। एक बार हाकिम ने आपके मक्‍बूजा आराजीं (खेती की जमीन ) पर एतराज किया। हुजूर गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह खुद देलहीं जाकर सुल्तान शम्सुद्दीन अलतमश से फरमाने शाही हासिल करके वापस अजमेर शरीफ आ गये।

हजरत ख्वाजा जियाउद्दीन अबू सईद रहमतुल्लाहि अलैह।

आप ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह के छोटे साहबजादे है बहुत परहेजगार और इबादतगुजार बुजुर्ग थे। आपने पचास साल की उम्र में वफात पाई। मजार मुबारक हुदूदे दरगाह शरीफ अजमेर में झालरा से लगा हुआ साया घाट के चबूतरे पर है। आपका उर्स हर साल जिलहज्ज की तेरहवी तारीख को होता है ।

हजरत ख्वाजा हुसामुद्दीन रहमतुल्लाहि अलैह।

आप हुजूर नवाज रहमतुल्लाहि अलैह के मंझले साहबजादे है। आप बहुत बड़े आलिम और बाकमाल बुजुर्ग थे। आपको हुजूर ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह की रूहे मुबारक से निसबत हासिल थी। आपने इबादत गुजारी में सख्त मेहनत और रियाजत की। पैंतालीस साल की उम्र में आप दुनिया की नजरों से गायब होकर अबदालों में शामिल हो गये।

हजरत बीबी हाफिज जमाल रहमतुल्लाहि अलैहा।

आप सरकार रहमतुल्लाहि अलैह इकलौती साहबजादी है। बहुत बड़ी आलिम,इबादत गुजार और पाक खातून थी। हुजूर गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह ने आपको खिरका खिलाफत अता फरमाया। बहुत सी औरतों ने आपके वसीले से कुर्बे इलाही का दर्जा हासिल किया। हजरत शेख रजीयुद्दीन रहमतुल्लाहि अलैह के साथ आपका निकाह हुआ, जो काजी हमीदुद्दीन नागौरी रहमतुल्लाहि अलैह के साहबजादे थे। साहबजादी साहिबा ने बहुत सख्त इबादतें और रियाजतें की है। आपका मजार मुबारक हुजूरे गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह के पाईन में है। यहां यह बयान करना दिलचस्पी से खाली न होगा कि एक रोज हुजूर गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह ने खास लोगों और अकीदतमन्दों की मज्लिस में इर्शाद फरमाया-मेरी पहली हालत यह थी कि जो कुछ दिल में ख्वाहिश होती थी वह तुरन्त पूरी हो जाती थी लेकिन जब से औलाद हुई है दुआ के बगैर पूरी नहीं होती हजरत ख्वाजा हमीदुद्दीन नागौरी रहमतुल्लाहि अलैह ने जो इस मज्लिस में मौजूद थे अर्ज किया
-हजरत ! होना भी ऐसा ही चाहिये था क्योकि हजरत ईसा अलैहिस्सलााम जब पैदा नहीं हुए थे तो हजरत मरयम को जन्नत के मेवे बिना दुआ के आते थे लेकिन हजरत ईसा अलैहिस्सलाम की पैदाइश के बाद हजरत मरयम को हुक्म हुआ कि पेड़ से तोड़कर खुरमा खाओ । बिना दुआ और हरकत कुछ न मिलता था। यह सुनकर सरकार गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह बहुत खुश हुए।

सरकार गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह का दहेली का सफर।

एक बार हजरत खजा कतुबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाहि अलैह ने अजमेर शरीफ आने की इजाजत चाही इसके जवाब में लिखा कि-'हर चाहने वाला अपने महबूब के साथ होता है चाहे देखने में वह हजारों कोस दूर हो। इसलिए अच्छा यही है कि वही रहों, वहां तुम्हारी जरूरत है, कुछ दिन बाद हम खुद दहेली आयेंगे इस जवाब के कुछ दिन बाद सरकार गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह दहेली रवाना हुए। ख्वाजा कुतुबुददीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाहि अलैह ने आपके आने की खबर सुलतान शम्सुद्दीन अलतमश को करना चाही, मगर हुजूर गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह ने मना फरमा दिया। आपकी आमद की खबर देहली में कब छुपने वाली थी,आखिरकार देहली वालों को मालमू हो ही गया और सभी आलिम, सूफी और खुद सुल्तान शम्सुद्दीन अलतमश आपकी खिदमत में हाजिर हुए। इन दिनों बाबा फरीदुद्दीन गंज शकर रहमतुल्लाहि अलैह इस कदर मेहनत से इबादत कर रहे थे कि जिस्म में चून की बूंद भी बाकी न थीं, इसी कमजोरी की वजह से हुजूर गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह की खिदमत में हाजिर न हो सके हुजूर गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह ने हजरत ख्वाजा कूतुबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाहि अलैह से मालूम किया कि-तुम्हारे मुरीदों में से क्या कोई नेमत पाने से रह गया है कुतुब साहब ने अर्ज किया कि एक मुरीद रह गया है जो चिल्ले में बैठा है और वह मसऊद है यानी बाबा फरीदुद्दीन गंज शंकर रहमतुल्लाहि अलैह। यह सुनकर सरकार गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह ने फरमाया- आओ चलकर उसे देखे। बाबा फरीदुद्दीन इस कदर कमजोर हो गये थे कि अदब के लिए खड़े भी न हो सके और उनकी आंखो से आंसू जारी हो गये। ख्वाजा साहब ने फरमाया-' ऐ बाबा बख्तियार इस बेचारे को इबादत और तकक्‍लीफों में कब तक घुलाते होगे कुछ तो दो। क॒तुब साहब ने अर्ज किया हुजूर मैं आपके सामने क्या दे सकता हूं।' हुजूर ख्वाजा साहेब रहमतुल्लाहि अलैह उठे, बाबा फरीद रहमतुल्लाहि अलैह का एक बाजू खुद पकड़ा और ख्वाजा कुृतुबुद्दीन रहमतुल्लाहि अलैह से फरमाया- दूसरा बाजू तुम पकड़ो अब दोनो बुजुर्गों ने मिलकर क्या-क्या नेमते बाबा फरीद को अता की, खुदा ही जानता है। बाबा फरीद रहमतुल्लाहि अलैह बढे ही खुशनसीब थे कि उनको खुश नसीबी से यह मौका मिला

देहली के शेखुल इस्लाम नज्मुद्दीन का खराब बर्ताव

सुल्तान शम्सुद्दीन अलतमश, ख्वाजा बख्तिया काकी रहमतुल्लाहि अलैह से बेपनाह अकीदत और मुहब्बत रखता था। सुल्तान का कुतुब साहब रहमतुल्लाहि अलैह से इतना गहरा सम्बन्ध देखकर
कई ओहदादारों के दिल में हसद की आग भड़क उठी और उन्होने कुतुब साहब को दहेली से निकालने की कोशिश शुरू कर दी। एक बार जब हुजूर रहमतुल्लाहि अलैह देहली आये तो देहली के
लोगों ने आपकी खिदमत में हाजिर होकर अकीदत पेश करने, न आये तो आपके पीर भाई शेख नज्मुद्दीन सुगरा जो देहली के शेखुल इस्लाम थे। एक रोज हुजूर ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह खुद उनसे मिलने के लिए उनके मकान पर पहुंचे। देखा कि शेखुल इस्लाम मकान के सेहन में खड़े हुए चबूतरा बनवा रहे है पहले तो हुजूर की तरफ ध्यान ही नहीं दिया और मिले भी तो बड़ी बेरूखी से | इस पर गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह ने फरमाया-'देहली की शुखल इसलामी ने तेरा दिमाग खराब कर रखा है।'
जवाब
में अर्ज किया- बन्दे की हकीकत पसन्दी में तो कुछ भी फर्क नहीं आया लेकिन यह शिकायत जरूर है कि आपके खलीफा के होते हुए मेरी शेखुल इस्लामी को कोई भी नहीं पूछता | सरकार गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह ने उन्हे तसल्ली देते हुए फरमाया-'घबराओं नहीं मैं बाबा बख्तियार को अपने साथ ले जाऊँगा।'बस फिर क्या था कुृतुब-साहब अपने शेख के साथ अजमेर शरीफ रवाना हो गये। जब लोगो को यह बात मालूम हुई तो उनके रंज व गम का कोई ठिकाना न रहा। पूरे दहेली शहर में तहलका और कोहराम मच गया। सभी शहर वाले सुल्तान के साथ आपके पीछे निकले जिस जगह शेख क॒तुबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाहि अलैह कदम रखते थे लोग उस जगह की खाक तबर्रूकन उठा लेते थे और बहुत आह व जारी करते थे। हुजूर ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाहि अलैह ने जब यह सूरत देख्री तो फरमाया-“ बाबा बख्तियार! तुम यही रहो, मै हरगिज इस बात का जायज नहीं समझता कि इतने दिल खराब और कबाब हों। जाओ मैने इस शहर का तुम्हारी पनाह में छोड़ा।' सुल्तान शम्सुद्दीन अलतमश ने ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह की कदमबोसी हासिल की और ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाहि अलैह के साथ बहुत खुशी-खुशी शहर की तरफ रवाना हुआ। उधर ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह अजमेर शरीफ रवाना हो गयें।

विसाले ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह।

633 हिजरी शुरू होते ही आप को मालूम हो गया कि यह आखिरी साल है। आपने मुरीदों को जरूरी हिंदायतें और वसीयतें फरमाई जिन लोगों को खिलाफत देना थी उन लोगों को को खिलाफत से सरफराज फरमाया और साथ ही ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाहि अलैह को अजमेर में बुलवाया |
हुजूर ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह एक रोज अजमेर की जामा मस्जिद में तशरीफ फरमा थे। मुरीद और अकीदतमन्द अहबाब हाजिरे खिदमत थे। आप मलकुल मौत पर बातें कर रहे थे कि शेख अली सनन्‍जरी से मुखातब हुए और उनसे ख्वाजा कुतुबददीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाहि अलैह की खिलाफत का फरमान लिखवाया | कुतुब साहब हाजिरे खिदमत थे। हुजूर गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह ने अपना कुलाहे मुबारक कुतुब साहब के सर पर रखा, अपने हाथ से अमामा बांधा। खिरका-ए-अक्दस पहनाया,असाए मुबारक हाथ में दिया, मुसल्‍ला कलाम पाक और नालैन मुबारक देकर इर्शाद फरमाया-: ये नेअमते मेरे बुजुर्गों से सिलसिला-ब-सिलासिला फकीर तक पहंची है,अब मेरा आखिरी वक्‍त आ पहुँचा है। ये अमानतें तुम्हारे हवाले करता हूं इस अमानत का हक हर हालत में अदा करते रहना ताकि कियामत के दिन मुझे अपनु बुजुर्गों के सामने शर्मिन्दा न होना पड़े | फिर और कई नसीहतें फरमायी और आपको रूख्सत किया। विसाल से कुछ दिन पहले आपने बड़े साहबजादे हजरत ख्वाजा सैयद फखरूददीन रहमतुल्लाहि अलैह को नसीहत फरमायी-'दुनिया की सभी चीजे मिटने वाली और फना होने वाली है। हर वक्‍त खुदा की पनाह व खुशनूदा मांगते रहना और किसी चीज पर भरोसा न रखना तकलीफ और मुसीबत के वक्‍त सब्र व हिम्मत का दामन हाथ से न छोडना।' 633 हिजरी में पांच और छः: रजब की दर्मियानी रात को हमेशा की तरह इशा की नमाज के बाद आप अपने हुजरे में गए और अन्दर से दरवाजा बन्द करके यादे खुदा में लग गए। रात भर दरूद शरीफ और जिक की आवाज आती रही। सुबह होने से पहले यह आवाज आना बन्द हो गयी। सूरज निकलने के बाद भी दरवाजा नहीं खुला तो खदिमओं ने दस्तक दी, उस पर भी कोई जवाब नहीं मिला तो परेशानी बढ गयी। आखिरकार मजबूर होकर दरवाजा तोड़कर अन्दर गए तो देखा कि आपकी रूहे मुबारक परवाज कर चुकी थी और आपकी नूरानी पेशानी पर रोशन शब्दों में लिखा हुआ है- 'हाजा हबीबल्लाहि मा-त फी हुब्बल्लाहि' (यह अल्लाह के हबीब थे, अल्लाह की मुहब्बत में वफात पाई) आप के इन्तिकाल पुर मलाल की खबर फौरन शहर के गली कूचों और कार्ब व जवार में फैल गयी। लोग मुहब्बत के आंसू बहाते हुये अपने महबूब के जनाजें पर हजारों की तादाद में जमा हो गए। आपके बड़े साहबजादे ख्वाजा फखरूद्दीन रहमतुल्लाहि अलैह ने नमाज जनाजा पढ़ाई । जिस हुजरे में आपको विसाल हुआ था उसी हुजरे में आपको दफन किया गया। उसी वक्‍त से आपका आस्ताना-ए-मुबारक पूरे हिन्दुस्तान का हारूनी मरकज बना हुआ है और इन्शाअल्लाह कियामत तक बना रहेगा। आपका उर्स मुबारक हर साल एक रजब से छः रजब तक बड़े एहतमाम से होता है।

हज़रत ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ की आदात मुबारक।

आप बड़े ही नर्म दिल खुश मिजाज और मिलनसार थे। आपको गुस्सा बहुत कम आता था बल्कि आता ही नहीं था। जब किसी से बात करते तो मुस्करा देते, आपकी जिन्दगी बहुत सादा लेकिन दिलकश थी। जो कोई मिलने आता तो बहुत खुशी और गर्मजोशी से मिलते, इज्जत से बिठाते और उनके रंज व गम में शरीक होते ।सखावत आपके खानदान की खासियत थी। बचपन में ही आपने बाग व पवन चककी बेचकर कुल माल व दौलत खुदा की राह में फकीरों व अनाथों में बांट दी थी और बाद में जो कुछ नजराना तोहफे आया करते थे वह सब भी अल्लाह के नाम पर जरूरतमन्दों को दे दिया करते थे। आप बडे नर्म मिजाज थे। सलाम में हमेशा सबककत (पहला) किया करते थे, आदाबे शरीअत का हमेशा लिहाज रखते थे और सुन्‍नते नबवी का हर वक्‍त ध्यान रखते थे।

हज़रत ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ की इबादत व रियाजत।

आपका ज्यादातर वक्‍त इबादत और अल्लाह की याद में गुजरता था। कुरआन शरीफ पढ़ना आपको बहुत पसन्द था। एक दिन में दो-दो बार कुरआन शरीफ खत्म कर लिया करते थे। अक्सर (अधिकतर) सुबह के बुजू से इशा की नमाज पढ़ते थे। नमाज और रोजे के बड़े पाबन्द थे रात का ज्यादा हिस्सा नफ्ल पढ़ने में गुजरता था, अक्सर व बेशतर रातों में इशा के वुजू से आपने फज् की नमाज अदा फरमाई। सारी उम्र में बहुत कम ऐसा हुआ है कि जिसमें आप रोजे से न रहे हों। अक्सर आप लगातार एक-एक हफ्ते तक रोजा रखते थे और जौ की सूखी रोटी से जो वजन में पांच मिसकाल से ज्यादा न होती थी इफ्तार (रोजा खोलना) किया करत थे लेकिन आंखो की तासीर का यह आलम था कि आपकी नजर जिस गुनाहगार पर पड़ती वह आपसे अकीदत (श्रद्दा) रखने लगता और फिर कभी गुनाह के पास न जाता।

हज़रत ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ अल्लाह के यााद में।

आप पर अक्सर ऐसा होता था कि अललाह तआला की याद में इस तरह मग्न हो जाते कि और कुछ खबर न रहा करती थी। आखिरी वक्‍त में ध्यान व ज्ञान की कैफियत बेहद बढ़ गयी थी। नमाज के वक्‍त ख्वाजा कूतुबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाहि अलैह या ख्वाजा हमीदुद्दीन नागौरी रहमतुल्लाहि अलैह सामने खड़े होकर ऊंची आवाज में 'सलात सलात' (नमाज नमाज) पुकारते, आप फिर भी होश में न आते तो कान में सलात पुकारते। इस पर भी आप न हिलते तो आपका शाना (कन्धा) मुबारक हिलाया जाता, उस वक्‍त आप आंख खोलकर इर्शाद फरमाते- “रसूलुल्लाह की शरीअत से छुटकारा नही सुब्हान अल्लाह कहां से आना पड़ता है। और फिर वुजू करके नमाज पढ़ते। जब आप पर यह हालत ज्यादा होती तो हुजरे का दरवाजा अन्दर से बन्द कर लेते और यादे इलाही में मशगूल हो जाते। उस वक्‍त ख्वाजा कुतुबुद्दीन या ख्वाजा हमीदुद्दीन नागौरी रहमतुल्लाहि अलैह हुजरे के दरवाजे पर पत्थर के टुकड़े डाल देते और खुद हुजरे के पीछे चले जाते। जिस वक्‍त हुजूर बाहर निकलते और आपकी नजरें जलाली उन टुकड़ों पर पड़ती तों वह जल कर खाक हो जाते।

हज़रत ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ का खिदमत-ए-खल्क करना।

एक रोज एक किसान आपकी खिदमत में हाजिर हुआ अर्ज किया कि हाकिम ने मेरा खेत जब्त कर लिया है और कहता है कि जब तक फरमाने शाही पेश नही करोगे खेत वापस नही मिलेंगे । सिर्फ यही मेरा गुजर बसर का जरिया था जिसका हाकिम ने बन्द कर दिया है इसलिए मेरी मदद करें और क॒तुब साहब को एक सिफारशी खत लिखकर दिया जाए | क॒तुबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाहि अलैह सुल्तान शम्सुद्दीन अलतमश के पीर है और जो
कुछ इर्शाद फरमायेंगे बादशाह उसे कुबूल कर लेगा। हजरत ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह ने यह सुनकर मुराकबें में सर झुका दिया और थोड़ी देर बाद सर उठाकर कहा-'अगरचे मेरी सिफारिश से तेरा काम हो जायेगा लेकिन हक तआला ने मुझे तेरे इस काम के लिए मुकर्रर किया है और उसी वक्‍त किसान को साथ लेकर देहली रवाना हो गये। हमेशा अपनी आमद से पहले ख्वाजा कुतुबुददीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाहि अलैह को आगह कर दिया करते थे। इस बार आपने कोई इतिला (सूचना) नहीं दी। आप जब देहली के करीब पहुंचे तो एक शख्स ने आपको पहचान लिया और तुरन्त कुतुब साहब को खबर कर दी। कुतुब साहब ने बादशाह को सूचित किया और खुद पीर व मुर्शिद के स्वागत के लिए चल दिये। ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाहि अलैह परेशान थे कि इस बार पीर व मुर्शिद ने अपनी आमद की खबर क्यो नही दीं। मौका पाते ही ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह ने किसान की तरफ इशारा करके फरमाया-इस गरीब के काम के लिए आया
हूँ। और कुल हाल बयान कर दिया। कुतुब साहब ने अर्ज किया-आपने इस कदर तकलीफ उठाई, हालाकिं अगर आपका खादिम भी बादशाह से फरमाने आली कह देता तो उस शख्स की मुराद पूरी हो जाती ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह ने फरमाया-“ जिस वक्‍त यह शख्स मेरे पास आया बहुत गमगीन और मायूस था। ध्यान मग्न होकर दरबारे खुदावन्दी में अर्ज किया तो मुझे हुक्म हुआ कि इसके रंज व गम में शरीक होना इबादत के बराबर है। अगर मैं बजाये चलकर आने के वहीं से इस शख्स की सिफारिश लिख देता तो उस सवाबे अजीम से महरूम रहता जो हर कदम पर उसकी खुशी से मुझे हासिल हुड्डा है।' क॒तुब साहब ने अर्ज' हुजूर आराम फरमायें और खुद सुल्तान शम्सुद्दीन अलतमश से किसान के हक में फरमान हासिल करके खिदमते आली में पेश कर दिया ।

ख़्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह के हौसले और इरादे।

आप ने हिन्दुस्तान में एक जबरजस्त रूहानी और समाजी इंतिकलाब को जनम दिया। छूत-छात के इस भयानक माहौल में इस्लाम का नजरिया-ए-तौहीद अमली रूप में पेश किया और बताया कि यह सिर्फ एक ख्याली चीज नही है, बल्कि जिन्दगी का एक ऐसा उसूल है जिसको मानने के बाद जात पात की सब ऊंच-नीच बेमायना हों जाती है। यह एक जबरजस्त दीनी और समाजी इंकिलाब का एलान था। इन दिनों, अजमेर राजपूत साम्राज्य का मजबूत केन्द्र और हिन्दुओं का धार्मिक गढ़ था। दूर-दूर से हिन्दू अपनी धार्मिक रस्सों को पूरी करने के लिए वहां जमा होते थे। एक ऐसे जबरजस्त राजनैतिक और धार्मिक केन्द्र में रहने का फैसला, न सिर्फ ख्वाजा साहब रहमतुल्लाहि अलैह के पकके इरादे को बतात है, बल्कि उनकी गैर
मामूली खुद एतमादीं (आत्म विश्वास) का आईनादार है| आफ ने सैर सियाहत (घूमने) और देहली व अजमेर के लम्बे कियाम के जमाने में सैकड़ों खलीफाओं का तालीम देकर खुदा के बन्दों की हिदायत के लिए हिन्दुस्तान में अलम्-अलग जगह पर भेजा जिन्होने इसको अपना फर्ज समझा और तेजी से इस्लाम की तब्लीग शुरू कर दीं। आपके फरमान के अनुसार कुतुबुल अकताब कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाहि अलैह आपके
खलीफा-ए-अकबर थे।

ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह के करामात

आप वह रूहानी और मजहबी पेशवा थे जिनका अदना सा इशारा तकदीर बदलने के लिए काफी था। भला इस मकबूल बारगाह की करामतों का भी शुमार (गिनती) हो सकता है ? आपकी जिन्दगी का एक-एक वाकिया करामत है। आपने जो करना चाहा, कर दिषाया और जो इरादा किया हो गया, आपकी दुआ बेरोक अर्श तक पहुंचती थी। इधर मुंह से निकली उधर कुबूलियत का दर्जा हासिल हुआ | आपसे बेशुमार करामतें जाहिर हुई, जिनमें से कई पहले लिखी जा चुकी है और कई यहां लिखी जा रही है। (1) हजरत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाहि अलैह फरमाते है कि मैं जब तक हुजूर गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह की खिदमत में रहा, कभी आपको नाराज होते नहीं देखा। एक रोज ख्वाजा साहब रहमतुल्लाहि अलैह के साथ मैं और एक दूसरा खादिम शेख अली रहमतुल्लाहि अलैह बाहर जा रहे थे कि अचानक रास्ते में एक शख्स शेख अली रहमतुल्लाहि अलैह का दामन पकड़ कर बुरा भला कहने लगा। हजरत पीर व मुर्शिद ने उस शख्स से झगड़ा करने की वजह मालूम की। उस ने जवाब दिया यह मेरा कर्जदार है और कर्ज अदा नहीं करता आपने फरमाया- इसे छोड़ दो तुम्हारा कर्जा अदा कर देगा।' लेकिन वह शख्स नहीं माना उस पर हजरत पीर व मुर्शिद को गुस्सा आ गया और तुरन्त अपनी चादर मुबारक उतारकर जमीन पर डाल दी और फरमाया-' जिस कदर तेरा कर्जा है इस चादर से ले ले मगर खबरदार ज्यादा लेने की कोशिश न करना। उस शख्य ने अपने कर्ज से कुछ ज्यादा ले लिया, उसी वक्‍त उसका हाथ सूख गया। वह देखकर चिल्लाने लगा और मांफी मांगी। आपने उसे माफ कर दिया, उसका हााथ फौरन दुरूस्त हो गया और वह हलका-ए-इरादत में दाखिल हो गया

(2) कहते है कि एक बार जब कि आप आपे मुरीदों के साथ सफर कर रहे थे, आप का गुजर एक जंगल से हुआ। वहां आतिश परस्तों (आग पूजने वालों) का एक गिरोह आग की पूजा कर रहा था। उन की रियाजत इस कदर बढ़ी हुई थी कि छः छः माह तक बगैर खाए-पिए रह जाते थे। अक्सर उन की सख्त रियाजत से लोग इस कदर प्रभावित होते कि उन से अकीदत
रखने लगते। उन की इस हरकत से लोग गुमराह होते जाते थे। ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह ने जब उनकी यह हालत देखी तो उन से पूछा-ऐ गुमराहो! खुदा को छोड़कर आग की पूजा क्यो करते हो उन्होने अर्ज किया-” आग ताक हम इसलिए पूजते है कि हमें दोजख में तकलीफ न पहुंचाए।' आप ने फरमाया-' यह तरीका दोजख से छुटकारे का नहीं है। जब तक खुदा की इबादत नहीं करोगे कभी आग से निजात न पाओगे। तुम लोग इतने दिनों से आग को पूज रहे हो जरा इसको हाथ में लेकर देखो
तो मालूम होगा के आग पूजने का फायदा क्‍या है ?”
उन्होनें जवाब दिया कि बेशक यह हम को जला देगी। क्योंकि आग का काम ही जला देने का है। मगर हम को यह कैसे यकीन हो कि खुदा की इबादत करने वालों को आग न जला सकेगी | अगर आप आग को हाथ में उठा लें तो हमको विश्वास हो जाएगा। आपने जोश में आकर फरमाया- मुझको तो क्‍या, खुदा के बन्दे मुईनुद्दीन की जूतियों को भी आग नहीं जला सकती आप ने उसी दम अपनी जूतियां उस आग के अलाव में डालते हुए आग की तरफ इशारा कर के फरमाया-'ऐ आग अगर ये जूतियां खुदा के किसी मक्बूल बन्दे की है तो उसको जरा भी आंच न आए ' जूतियों का आग में पहुंचना था कि तुरन्त आग बुझ गयी और जूतियां सही सलामत निकल आई। इस करामत को देखकर आग पूजने वालों ने कलिमा पढ़ लिया और दिल से मुसलमान हो
गये ।

(3) कहते है कि एक बार आप एक घने जगल से गुजर रहे थे | वहां आपका सामना कुछ कुफ्फार लुटेरों से हो गया जिनका काम यह था कि मुसाफिरों को लूट लेते थे और अगर कोई मुसलमान मुसाफिर होता तो सामान लूटने के अलावा उसे कत्ल भी
कर देते थे। जब वे डाकू बुरी नियत से आपकी तरफ आए तो अजीब तमाशा हुआ | जिस हथियारबन्द (सशस्त्र) गिरोह ने सैकड़ों हजारों मुसाफिरों को बिला वजह खाक व खून में तड़पाया था, आपकी एक ही निगाह से थरथरा उठा और कदमों में गिरकर बड़ी
आजिजी से अर्ज किया हम आपके गुलाम है और नजरे करम के उम्मीदवार है जब वह अपने बुरे कामों से तौबा करने लगे तो आपने उनको कलिमा पड़ा कर इस्लाम में दाखिल कर लिया और उनको नसीहत फरमायी कि कभी किसी के माल को अपने लिए
हलाल न समझें ।

(4) कहते है कि सैर व सफर के दिनों में एक दिन हजरत ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह अवहदुद्दीन किरमानी रहमतुल्लाहि अलैह और शेख शहाबुद्दीन सहरवरदी रहमतुल्लाहि अलैह
एक जगह बैठे हुए किसी मसअले पर बातचीत कर रहे थे कि सामने से एक कम उम्र लड़का तीर कमान हाथ में लिए हुए गुजरा। ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह ने उसे देखकर फरमाया-यह लड़का देहली का बादशाह होगा | आपकी यह पेशगोई (भविष्य वाणी) इस तरह पूरी हुई कि वहीं लड़का सुल्तान शम्सुद्दीन अलतमश के नाम से देहली के तख्त पर बैठा और छब्बीस साल तक बड़े ठाठ से हुकुमत की ।
 (5) एक रोज एक औरत रोती-चिल्लाती आपकी खिदमत में हाजिर हुई। बदहवासी व बेताबी में आपसे अर्ज करने लगी-' हुजूर ! शहर के हाकिम ने मेरे बेओ को बेक॒सुर कत्ल कर दिया है, खुदा के लिए आप मेरी मदद कीजिए ।' उस औरत की दर्द भरी फरियाद से आपके अन्दर रहम व हमदर्दी पैदा हो गयी। आप तुरन्त असा-ए मुबारक हाथ में लेकर उठे और उस औरत के साथ
रवाना हो गये। बहुत से खुद्दाम और हाजरीन भी आपके साथ होग ए। जब आप लड़के की बे-जान लाश के पास पहुंचे तो बहुत देर तक चुप रहे और खड़े-खड़े उसी तरफ तकते रहे फिर आगे बढ़ और उसके जिस्म पर शथि ऐखकर फरमाया- ऐ मक्तूल! अगर तू बेगुनाह मारा गया है तो अल्लाह के हुक्म से जिन्दा हो जा | अभी आपकी जबाने मुबारक से ये शब्द निकले ही थे कि मक्‍तूल (मुर्दा) जिन्दा हो गया। आपने उसी वक्‍त फरमाया-' बन्दे को अल्लाह तआला से इस कदर निस्बत (सम्बन्ध) पैदा करनी चाहिए कि जो कुछ खुदा-ए- तआला की दरगाह में अर्ज करें कुबुल हो
जाए। अगर इतना भी न हो तो फकीर नहीं है।

(6)हजरत ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह ने उस हालत में जबकि आपकी आमदनी को कोई जरिया नहीं था लंगर खाना जारी किया और आपके लंगर खान में इस कदर ज्यादा खाना पकता था कि सभी शहर के गरीब व लाचार पेट भरकर खाते पीते थे। कहा जाता है कि लंगर खाने के दारोगा को आपने हुक्म दे रखा थ कि जब के वक्‍त जब दारोगा उस गरज से हाजिर होता तो आप अपने मुसलले का दामन उठाकर उससे फरमाते है कि जिस कदर खर्च की जरूरत हो इस खजाने गैब से ले लो। खुद रोजा रखते और जौ की सूखी रोटी से जो वजन में किसी हालत में पांच मिसकाल से ज्यादा नही हाती थी, रोजा खोलते थे ।

(7) एक शख्स कत्ल करने की नीयत से आपके पास आया। आपको इसका इरादा मालूम हो गया। उस शख्स ने आपकी खिदमत में हाजिर होकर बडे अकीदत का इज्हार (प्रदर्शन) किया। आपने उससे फरमाया-' मैं मौजूद हूं तुम जिस नीयत से
मेरे पास आए हो उसे पूरा करो। यह सुनते ही वह शख्स कांप उठा और बहुत आजिजी से कहने लगा-'हुजूर! मेरी जाती ख्वाहीश यह नहीं थी, बल्कि फलां शख्स ने तुझे लालच देकर मजबूर किया कि मैं इस नामुनासिब हरकत को करूं' फिर उसने अपनी बगल से छुरी निकाली और आपके सामने रखते हुए अर्ज किया-आप मुझे
इसकी सजा दीजिए आपने फरमाया-अल्लाह के बन्दों का मकसद बदला लेना नहीं जा मैंने तुझे माफ किया।' उस शख्स ने उस वक्‍त आपके कदमों पर गिरकर तौबा की और ईमान लाकर मुरीद हो गया ।

(8) बख्तियार काकी रहमतुल्लाहि अलैह फरमाते है कि जिस जमाने में मैं ख्वाजा साहब रहमतुल्लाहि अलैह की खिदमत में रहता था, एक बार हम ऐसे घने जंगल में पहुचे जहां कोई जानदार दिखाई न दिया। तीन दिन और तीन रात बराबर उसी उजाड़ जंगल में चलते रहे अन्त में मालूम हुआ कि उस उजाड़ जंगल के करीब
ही एक पहाड़ है और उसी पहाड़ पर एक बुजुर्ग रहते हैं। जब हम उस पहाड़ के करीब पहुंचे तो पीर व मुर्शिद ने मुझे अपने पास बुलाया और मुसलले के नीचे हाथ डालकर दो ताजा और गर्म रोटियां निकाल कर दी और फरमाया-'पहाड़ के अन्दर एक बुजुर्ग है ये रोटियां उनको दे आओं।' मैं रोटियां लेकर उनकी खिदमत में गया और सलाम अर्ज करके पेश कर दी उन्होने एक रोटी तो अपने इफ्तार के लिए रख ली औश्र एक रोटी मुझे दे दी। अपने मुसल्ले के नीचे से चार खजूरें निकालकर मुझे देते हुए फरमाया-' यह शेख मुईनुद्दीन को पहुचा दो। जब मैने आकर खजूरें ख्वाजा साहब रहमतुल्लाहि अलैह की खिदमत में पेश की तो आप बेहद
खुश हुए ।

(9) कहते है कि हजरत ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह के कियामे अजमेर के जमाने में जो लोग अजमेर और उसके आस-पास से हज के लिए तशरीफ ले जाते थे वह वापस आकर यकीनी तौर पर बयान करते थे कि हमने सरकार गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह को खाना-ए-काबा का तवाफ करते देखा है हालांकि अजमेर शरीफ में आने के बाद आपको फिर कभी हज करने का इतिफाक नहीं हुआ ।

(10) एक बार हजरत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाहि अलैह देहली के किले में बादशाह के साथ बात करने में मसरूफ थे और सल्तनत के दूसरे ओहदेदार भी साथ थे कि इतने में एक बदकार औरत हाजिर हुई और बादशाह से फरियाद
करने लगी। उसने अर्ज किया कि हुजूर मेरा निकाह करा दें। मैं सख्त अजाब में मुब्तिला हूं। बादशाह ने पूछा कि किसके साथ निकाह करेंगी और किस अजाब में घिरी है? वह कहने लगी कि यह साहब जो आपके हाथ में हाथ डाले कुतुब साहब बने घूम रहे हैं उन्होने मेरे साथ (नउजुबिल्लाह) हराम कारी की है जिससे मैं हामिला (गर्भवती) हो गई हूं। यह सुनकर बादशाह और हाजिरीन को बहुत हैरत हुई और सब ने शर्म से गर्दने झुका ली। उधर कुतुब साहब के माथे पर शर्मिन्दगीं और हैरत से पसीना आ गया। आपको उस वक्‍त कुछ न सूझा और दिल हीं दिल में अजमेर की तरफ रूख करके ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह को मदद के लिए याद किया। ख्वाजा साहब रहमतुल्लाहि अलैह ने जैसे ही अपने मुरीद के दिल से खामोश चीख सुनी लब्बैक (हाजिर हूं) कहते हुए मदद के लिए फौरन आ गये। सबन देखा कि सामने से हजरत
ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह तशरीफ ला रहे है। आपने कुतुब साहब रहमतुल्लाहि अलैह से पूछा- मुझे क्‍यों याद किया है?' कुतुब साहब मुंह से तो कुछ न बोल सके लेकिन आंखो से आंसू जारी हो गये । ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह ने इस बदकार औरत की तरफ रूख करके गुस्से से इर्शाद फरमाया-: ऐ गर्भ में रहने वाले बच्चे ! तेरी मां कुतुब साहब पर तेरे बाप होने का इल्जाम लगाती है, तू सच-सच बता। उस औरत के पेट से इतनी साफ और तेज आवाज आई कि मौजूद सभी लोगों ने साफ सुनी । बच्चे ने कहा-हुजूर/ इसका बयान बिल्कुल गलत है और यह और बड़ी हराम कार और झूठी है। क॒तुब साहब के बदख्वाहों ने इसे सिखा कर भेजा है ताकि इमली इज्जत लोगों की नजर से गिर जाये।' यह बयान सुनकर मौजूद लोगों को बहुत हैरत हुई। उस औरत ने अपने झूठ बोलने और इल्जाम लगाने का इकरार
किया। आप ने फरमाया-'इज्जत अल्लाह की के हाथ में है। और वापस अपनी जगह पर आ गये। हजरत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाहि अलैह के अलावा सब ही सरकार गरीब नवाज के तशरीफ लाने और गायब होने पर बहुत ज्यादा हैरत में थे ।


(11) कहते है कि एक रोज आपका एक मुरीद खिदमत में हाजिर हुआ। उस वक्‍त आप इबादत में थे। जब आप इबादत कर चुके तों उसकी तरफ ध्यान दिया | उसने अर्ज किया-' हुजूर! मुझे हाकिमे शहर में बिना किसी कुसूर के शहर बदर होने का हुक्म दिया है। मै बहुत परेशान हूं। आपने कुछ देर ध्यान लगाया और फरमाया-'
जाओ, उसको सजा मिल गयी ।' वह मुरीद जब शहर में वापस आया तो खबर मशहूर हो रही थीं कि हाकिमे शहर घोड़े से गिरकर मर गया।

(12) एक रोज ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह आना सागर के करीब बैठे हुए थे। उधर से एक चरवाहा गाय के कुछ बच्चों को चराता हुआ निकला। आपने फरमाया-' मुझे थोड़ा दूध पिला दे। उसने ख्वाजा साहब रहमतुल्लाहि अलैह के फरमान को मजाक समझा और अर्ज किया-'बाबा! यह तो अभी बच्चे है, इनमें दूध कहां ?” आपने मुस्कुराकर एक बछिया की तरफ इशारा किया और फरमाया- भाई इसका दूध पियूंगा, जा दूह ला।'
वह हंसने लगा। आपने दोबारा इर्शाद फरमाया-'” बरतन लेकर जा तो सही। वह हैरान होकर बछिया के पास गया तो क्‍या देखता हे कि बछिया के थन पहले तो बराए नाम थे और अब उसके थनों में काफी दूध भरा हुआ है। अतः: उसने कई बरतन भर दूध निकाला जिससे चालीस आदमियों ने पेट भर कर पिया। यह देखकर वर चरवाहा कदमों में गिर पड़ और आपका गुलाम हो गया।

(13) एक रोज आप अकीदमन्दों में बैठे हुए वअज व नसीहत फरमा रहे थे कि आपकी नजर दायी तरफ पडी आप तुरन्त ताजीम
(सम्मान) के लिए खड़े हो गये। इसके बाद यह सिलसिला जारी रहा कि जब भी दायी तरफ नजर जाती तो आप ताजीम के लिए खड़े हो जाते। जब वअज खत्म हुआ और लोग चले गये तो आपके खास खादिम ने अर्ज किया हुजूर आज यह क्‍या हालत थी कि जब भी आपको नजर दायी तरफ पड़ती आप ताजीम के लिए खड़े हो जाते थे। आपने फरमाया-' उसी जानिब मेरे पीर व मुर्शिद का मजार है और जब मेरी निगाह उस तरफ जाती तो रोजा-ए- अक्दस नजर आता, बस सम्मान के लिए खड़ा हो जाया करता था।

(14) बुजुर्गों की मज्लिस में तय हुआ कि सब लोग कुछ करामात दिखाएं बस तुरन्त हजरत ख्वाजा उस्मान हारूनी रहमतुल्लाहि अलैह मुसलले के नीचे हाथ ले गये और एक मुट्ठी सोने के टुकड़े निकालकर एक दुरवेश को जो वहां हाजिर था, दिया और
दुरवेशों के लिए हलवा मंगवाने की फरमाइश की |शेख अवहदुद्दीन किरमानी रहमतुल्लाहि अलैह ने एक लकड़ी पर हाथ मारा तो वह सोने की हो गयी। ख्वाजा उस्मान हारूनी रहमतुल्लाहि अलैह के कहने पर हजरत ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह ने कश्फ (ध्यान मग्न) से मालूम किया कि इन्ही बुजुर्गों में एक दुरवेश बहुत भूखे है और शर्म की वजह से कुछ भी न कह सकते थे, बस आपने मुसल्ले के नीचे हाथ डाला और चार जौ की रोटियां निकालकर उस दुरवेश के सामने रख दी।

ख़्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह के इर्शादात (कथन)

हुजूर ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह के इर्शादात अहले बसीरत के लिए बेश कीमत खजाना है। अल्लाह तआला हमें उनकों समझने और उन पर अमल करने की तौफीक अता फरमाये। इर्शादात निम्न है- (1) गुनाह करने से इतना नुक्सान नहीं होता जितना कि अपने किसी भाई को हकीर (तुच्छ) या जलील समझने से | (2) फकीरी का मुस्ताहिक (लायक) वह शख्स होता है जो दुनिया-ए-फानी में अपने पास कुछ न रखे | (3) बन्दे पर फकीर का शब्द उस वक्‍त लागू है कि जब आठ साल तक बायें हाथ का फरिश्ता जो बदी लिखने वाला है उसके आमालनामें में एक भी बदी न लिखे। (4) खुदा की शनाख्त (पहचान) उस शख्स को होगी जो दुनिया वालों से अलग रहे और खुद को बड़ा न समझें | (5) खामोश और गमगीन रहना आरिफों की एक अलामत (पहचान) है। (6) पूरी दुनियां और कायनाते आलम को अपनी दो उंगलियों में देखना इरफान का एक दर्जा है। (7) बुजुर्ग वह है जो अपना दिल दोनों जहान से उठा ले और हरदम आलमे गैब से लाखों तजल्लियां उस पर जाहिर हों और अल्लाह की राह में वह अल्लाह तआला के सिवा किसी से मदद न चाहे । (8) नमाज मोमिनीन को अल्लाह तआला से मिलायेगी, इसकी हिफाजत पूरी तरह करनी चाहिए। (9) हर रोज आसमान से दो फरिश्ते उतरते है। उनमें से एक पुकारता है कि जिससे फर्जे इलाही जान-बूझकर छूट गया वह अल्लाह तआला की जमानत से बाहर हो गया। फिर दूसरा कहता है कि जिसने रसूलुल्लाह की सुन्‍नत को छोड़ा वह कियामत के रोज आफिअत से महरूम रहेगा। (10) जो शख्स पांचों वक्‍त पाबन्दी के साथ नमाज अदा करता है कियामत के दिन उसकी नमाज उसकी हिफाजत और निगहबानी करेगी | (11) जो शख्स फज् की नमाज पढ़ कर सूरज उगने तक उसी जगह बैठा रहे और नमाजे इशाराक पढ़ कर उठे तो हक तआला उसे मय सत्तर हजार आदमियों के जो उसके गुनाह हों बख्श देता है। (12) पांच चीजों का देखना इबादत है, चाहे वे चीजे अलग््अलग क्‍यों न देखी जायें- (1) मां-बाप का देखना। (2) कुरआन मजीद का देखना। (3) अल्लाह वालों को देखना। (4) खाना-ए-काबा को देखना। (5) अपने पीरे तरीकत को देखना।

(13) बाज (कुछ) बुजुर्ग ने सुलूक के सौ दर्ज मुकर्रर किए है। उनमें 
हमारे खानदाने सुलूक के पन्द्रह दर्जे है। पांचवां दर्जा कश्फ व करामात का है।
हमारे बजुर्गों ने वसीयत की है कि पांचवें दर्जे पर ही न ठहरे बल्कि पूरे पन्द्रह दर्जे
हासिल कर ले।

मुहब्बत के चार दर्ज है।

(1) हमेशा अललाह तआला का जिक करना। (2) जिक इलाही को खूब दिल लगाकर करना और उसके जिक में खुश रहना । (3) वह खूबी पैदा करना जो दुनियावी मुहब्बत से अलग हो। (4) हमेशा रोते रहना । (5) जो शख्स कहता है कियामत के सख्त (भयानक) अजाब से महफूज रहे तो उसके लिए लाजमी है कि वह मुसीबत में रहने वालों की फरियाद सुने, जरूरतमन्दों की जरूरत पूरी करें और भूखों को पेट भर कर खिलायें।

चार काम नफ्स के लिए जीनत (शोभा) है।

(1) भूखे को खाना खिलाना। (2) मुसीबत जदा की मदद करना । (3) जरूरतमन्दों की जरूरत पूरी करना। (4) दुश्मन से मेहरबानी और अच्छे सुलूक से पेश आना।

जिस शख्स में तीन खासियतें हों खुदा उसको दोस्त रखता है।

(1) दरिया जैसी सखावत (दानशीलता)। (2) सूरज जैसी शफ्कत (भलाई)। (3) जमीन जैसी तवाजों ।

✓ नेक काम करने से बेहतर नेकों की सोहबत और बुरे काम करने से बदवर बुरों की सोहबत है।

✓ सोहबत का असर जरूर होता है। बुरी सोहबत से बुरा असर और नेक सोहबत से अच्छा असर होता है।

✓ हाजत रवाई के लिए सूर: फातिहा पढ़ना बेहद फायदेमन्द साबित हुआ है।

✓ नदी नाले और दरिया के पानी में आवाज होती है लेकिन जब वह समुद्र से जाकर मिल जाते है तो कामिल सुकून हो जाता है, इसी मिसाल को सुलूक की मन्जिलें मान लेना चाहिए ।

✓ हर दौरे में दुनिया के अन्दर खुदा के सैकड़ो ऐसे मक्‍बूल व प्यारे बन्दे होते हैं जिन्हें कोई नहीं जानता और वह गुमनामी के गोशे में इन्तिकाल (देहान्त) फरमा जाते है। अत: दुनिया को औलियाओं से खाली मत समझों ।

✓ खुदा की पहचान उसे हागी जो लोगों से अलग-थलग रहे दुनियादार बुजुर्ग होने का दावा न करें ।

✓ बुजुर्गी की निशानी यह है कि खुदा के सिवा तमाम चीजों की मुहब्बत दिल से निकाल दें।

✓ सिर्फ दिल और जिस्म से काबे का तवाफ न करें क्योकि आरिफ 
वह है जिसका दिल अर्श और हरमैन के चक्कर लगाता रहे।

✓ खामोश और गमगीन रहना बुजुर्गी की एक निशानी है।

✓ तमाम इबादतों से ज्यादा अफ्जल (उत्तम) लाचारों और मजलूमों की फरियाद को पहुचना है।

✓ आरिफ हर वक्‍त इष्क की आग में डूबा रहता है। अगर खड़ा है तो दोस्त ही के इश्क में खड़ा है, बैठा है तो उसी का जिक कर रहा है सोया है तो ख्याले दोस्त में बेखबर है और जागता है तो उसी के ख्याल में होता है।

✓ आरिफ पर एक हाल होता है उस वक्‍त वह कदम उठाया करते है एक कदम में हिजाबे अजमत से गुजर कर हिजाबे किब्रीयाई तक पहुंचते है और दूसरे कदम में वापस आ जाते है।

यह बयान फरमाते हुए हजरत ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह के आसू जारी हो गये।

✓ आरिफ वह है, तो कुछ चाहे सामने आ जाये और कुछ पूछे उसका जवाब मिले।

✓ बद बख्त वह है जो गुनाह करे और उम्मीद रखे कि मै मकबूल बन्दा हूं।

✓ सखावत करना नईम (नेमत वाने वाला ) होने की चाबी है।

✓ दरवेश वह है जो हाजमन्दों को महरूम (निराश) वापस न करे ।

✓ राहे मुहब्बत में जीत उसकी होती है जो दोनों जहान से बेताल्लुक हो जाये ।

✓ तवक्कुल यह है कि लोगों के रंज व मुसीबत उठाए और किसी से शिकायत और इज्हार न करें ।

✓ जितना ज्यादा अल्लाह में ध्यान होगा उतना ही ज्यादा हैरत बढ़ेगी ।

✓ इल्म (ज्ञान) दरिया की धारा है और अल्लाह का ध्यान दरिया की एक लहर है,फिर खुदा कहां और बन्दा कहां। इल्म खुदा को है और इरफान (अल्लाह का ध्यान) बन्दे को है।

✓ अल्लाह में ध्यान रखने वाले सूरज की तरह रोशन रहते हैं और तमाम दुनिया को रोशन रखते है।

✓ आरिफ मौत को दोस्त, आराम को दुश्मन और अल्लाह के जिक को पयारा रखते है।

✓ जो शख्स वुजू करके सोता है उसकी रूह अर्श के नीचे सैर करती रहती है।

✓ आशिकों का दिल मुहब्बत की आग से जला हुआ होता है और जो कुछ उसके अन्दर आता है यह आग उसको भी जलाकर राख कर देती है।

✓ मुहब्बत में अदना (निचला) दर्जा यह है कि अल्लाह की सिफात (विशेषता) उसमें दिखाई दे और आला (उच्च) दर्जा यह है कि अगर उस पर कोंई दावा करे तो उसको उलटा मुजरिम बना दे ।

✓ दरवेशों के लिए सबसे बड़ी नेमत यह है कि दरवेशों के पास बैठें और सबसे बड़ा नुक्सान यह है कि दरवेशों से दूर रहे।

✓ कोई शख्स इबादत से अल्लाह का कार्ब (निकटता) हासिल नहीं कर सकता जब तक नमाज न पढ़े क्योकि नमाज ही बन्दे को अल्लाह से मिलाएगी ।

चार खूबियां नफ्स की जौहर हैं।

(1) गरीबी में अमीरी का इज्हार (प्रदर्शन) करना।

(2) भूख के वक्‍त सेरी (तृप्ति) का इज्हा करना।

(3) गम के वक्‍त खुश रहना।

(4) दुश्मन के साथ दोस्ती करना।

✓ नमाज अल्लाह के कुर्ब (निकटता) का जीना (सीढ़ी) है।

✓ झूठी कमस खाने वाले के घर से बरकत जाती रहती है और वह बर्बाद हो जाता है।

✓ अलहम्दु शरीफ कसरत (अधिकता) से पढ़ना हाजतों (जरूरतों) को पूरी करने के
लिए उत्त्म इलाज है।

✓ मौत से पहले मौत की तैयारी करो और मौत को हर वक्‍त सर पर रखों ।

✓ खुदा जिसको दोस्त रखता है उसके सर पर बलाओं की बारिश करता है।

✓ कुरआन पाक का देखना सवाब है पढना सवाब है अगर एक शब्द पर निगाह पड़े तो दस बदियां (पाप) दूर हो जायें और दस नेकियां लिखी जायें। आंखों की रोशनी बढ़े और उसकी आंख पर कभी कोई मुसीबत न हो ।

✓ काबतुल्लाह की जियारत से एक हजार साल की इबादत का सवाब मिलता है।
हज का सवाब अलग है।

✓ आलिम (विद्वान) की जियारत और दुरवेशों की दोस्ती से बरकत हासिल होती है।

कमाले ईमान में तीन चीजें है-

(1) खौफ (2) रजा (उम्मीद) (3) मुहब्बत
✓ मां-बाप का मुंह देखना औलाद के लिए इबादत है। जो लड़का मां-बाप की कदम बोसी हासिल करता है उसके पिछले गुनाह माफ कर दिए जाते है।
✓ ख्वाजा बायजीद बुस्तामी रहमतुल्लाहि अलैह ने फरमाया कि मैनं जितने भी मर्तबे पाए अपने मां-बाप से पाये।

✓ जिस किसी ने जो कुछ पाया पीर की खिदमत से पाया। बस मुरीद को चाहिए कि थेड़ा भी पीर के फरमान से आगे न बढ़े और पीर जो कुछ उसको तलकीन (शिक्षा) करे उस पर कान धरे और अमल करे।

✓ जो शख्स आबेदस्त (पाकी) के बाद वुजू में उंगलियों में खिलाल करता रहे उसकी उंगलियां दोजख की आग से महफूज रहेगी ।
  
✓ वुजू में हर अंग को तीन बार धोना सुन्‍न्नत है और उसकी कमी या ज्यादती खलल
है।

✓ मस्जिद में जाओ तो दायां पैर पहले अन्दर रखो जब वापस आबो तो बायां पैर पहले निकालो। 

✓ नापाकी आदमी के बदन में बाल-बाल के नीचे होती है इसलिए गुस्ल (स्नान) के वक्‍त हर बाल में पानी पहुंचना चाहिए। अगर एक बाल भी सूखा रहे तो पाकी न होगी ।

✓ आदमी का मुंह पाक होता है चाहे मोमिन हो या काफिर ।

✓ नमाज एक ओहदा (पद) है अगर इस ओहदे की सलामती के साथ जिम्मेदारी पूरी की तो निजात (मुक्ति) है, वरना खुदा के सामने शर्मिन्दगी की वजह से मुंह सामने
न होगा।

✓ अरबाबे सुलूक की सही तौबा तीन चीजों से पैदा होती है।

✓ पहला- रोजा रखने की नीयत से कम खाना ।

✓ दूसरा- महबूब के जिक की गरज से कम बोलना ।

✓ तीसरा- इबादत करने की गरज से कम सोना।

✓ तसब्बुक में न रस्में है कि जिनकी पाबन्दी हो सके और न कुछ इल्म है जिनका पढ़ कर हासिल करना आसान हो बल्कि यह मुहब्बत और तरीकत वालों के नजदीक तसब्वुफ खुदा के बन्दों के साथ खुशी व नर्मी से पेश आना है।

✓ आरिफ वहीं है जिसमें तीन बाते पायी जाएं। पहली-खौफे खुदा, दूसरी-ताजीम
(सम्मान), तीसरी हया (लज्जा)।

✓ अगर नमाज के अरकान ठीक तरह से अदा न हुए हो वह पढ़ने वाले के मुंह पर मार दी जाती है। (हदीस)

✓ खुदा-ए-तआला ने किसी इबादत के बारे में इतनी ताकीद नहीं फरमाई जितनी नमाज के लिए।

✓ जिस कदर दिल लगाकर और सुकून से नमाज अदा करेगा उतना ही खुदा तआला की नजदीकी हासिल होगी |

✓ कब्रस्तान इबरत (नसीहत) की जगह है वहां जाकर हंसना, कहाकहा लगाना, खाना-पीना या कोई और दुनियावी काम नही करना चाहिये | जो शख्स इबादत नहीं करता वह हराम रोजी खाता है।

औराद और वजीफें

आप के बख्शे हुए दुआ और वजीफे बहुत मक्बूल और बाअसर है । जरूरतमन्द बराबर इनसे फायदा उठाते रहे और इनन्‍शा अल्लाह आइन्दा भी उठाते रहेगे। नीचे आपकी कुछ दुआएं और वजीफे लिखे जाते है।

बीमारी से शिफा (स्वास्थ्य) के लिए बेहतरीन अमल।

हजरत ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह फरमाते है कि सूर: फातिहा सभी बीमारियों की दवा है। जब कोई बीमार किसी दवा से अच्छा न हो तो फज्र की नमाज में फर्ज और सुनन्‍नत के बीच इकतालीस बार सूर: फातिहा सच्चे दिल से पढ़कर बीमार पर दम रकें, इन्शा अल्लाह बीमार स्वस्थ हो जाएगा। पढने का तरीका यह है कि बिस्मिल्लाह-हिर्रहमानिर रहीम के 'मीम' को अलहम्दु के “'लाम' से मिलाकर पढ़े |

कब्र वालों की जियारत के लिए बेहतरीन अमल।

हज़रत ख़्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह ने इर्शाद फरमाया कि किसी कामिल बुजुर्ग से मुरीद होकर हर रोज बाद नमाजे इशा सोने से पहले आयतुल करर्सी और चारों 'कुल'पढ़ कर सीने पर दम करें। इसके बाद दस बार सूरः: फातिहा और अस्मा-ए-बारी तआला (खुदा तआला के निन्‍नानवे नाम) पढ़े फिर अस्मा-ए- मुबारक रसूले करीम पढ़कर दाएं-बाएं पहलू पर दम करें| इसके बाद दरूद शरीफ सौ बार पढ़े और सर की तरफ दम करें। इसके बाद सूर:अ-लम नशरह पढ़ता हुआ सो जाये इन्शाअल्लाह जिस बुजुर्ग का ख्याल दिल में करके सायेगा उनकी जियारत होगी। इकतालीस दिन के बाद जिस कब्र के पास वावुजू दो जानू बैठ कर ध्यान करेगा, खुदा के हुक्म से साहिबे कब्र की जियारत होगी। उसका दिल साफ हो तो उससे बातचीत करने की तौफीक हो जाएगी। साहिबे कब्र से आन्तरिक फायदे भी हासिल कर सकता है।

रसूलुल्लाह स्वल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम की जियारत के लिए बेहतरीन अमल।

हजरत ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह ने फरमाया कि अगर किसी शख्स को रसूलुल्लाह की जियारत का शौक हो तो चाहिए कि जुमा की रात को दो रकअत नमाज नफ्ल अदा करें, इस तरह कि हर रकअत में सूर: फातिहा के बाद आयतुल कुर्सी एक बार और सूर: इख्लास पन्द्रह बार पढ़े। नमाज पढ़ कर बहुत साफ दिल से पाक बिसतर पर चुपचाप सो जाए। खुदा के हुक्म से रसूलुल्लाह की जियारत होगी ।

पेट में दर्द के लिए बेहतरीन अमल।

हजरत ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह ने फरमाया अगर किसी के पेट में सख्त दर्द हो तो सात बार सूर: अ-लम नशरह पढ़ कर पानी दम कर के पी ले या पिला दे तो दर्द बिल्कुल ठीक हो जाएगा।

लाइलाज बीमारी से निजात के लिए बेहतरीन अमल।

हजरत ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह ने फरमाया कि अगर किसी शख्स को लाइलाज बीमारी हो तो चाहिए कि जुमा के दिन बाद नमाज अस्र से मग्रिब तक या अल्लाहु, या रहमानु या रहीमु' को पढ़ता रहे। इन्शाअल्लाह तआला इक्कीस दिन में तन्दुरूस्ती होगी, मगर रोजाना पढ़े, अगर मरजे मौत है, तो वह पढ न सकेगा।

जहरीले जानवर के काटने पर यह अमल करें।

जिस जगही पर जहरीले जानवर ने काटा हो उस जगह उंगली घुमाते हुए एक सांस में सात बार पढ़ कर दम करें-“व इजा ब-तशतुम बशतुम जब्बारीन।'

रोजी के लिए बेहतरीन अमल।

नमाज के बाद कसरत (ज्यादा) से पढ़े-सुब्हानललजी सख-खर लना हाजा वमा कुन्‍्ना लहू मुक्रिनीन |

बीमारी से छुटकारे के लिए बेहतरीन अमल।

कोई बीमारी हो रकाबी पर लिखकर बीमार को पिला दे या तावीज लिखकर गले में डाल दे। “काफ-हा-या-ऐन स्वाद, हा-मीम-ऐन-सीन-काफ'

दुश्मन को नीचा दिखाने के लिए बेहतरीन अमल।

हजरत ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह ने फरमाया कि अगर किसी के दुश्मन ज्यादा हों तो चाहिए कि वुजू करके सौ बार दरूद शरीफ पढ़े और हाथ उठाकर जनाबे बारी में दुआ करे। इसे बराबर पढ़ने से दुश्मन पस्त हो जाएगा ।

औलाद पाने के लिए बेहतरीन अमल।

हजरत ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाह अलैह ने फरमाया कि नमाज के बाद तीन बार कहे-' रबबना हब लना मिन अज्वाजिना व जुर्रीयातिना कर्र-त आयुनिंव वज-अलना लिलमुत्तकी-न इमामा।'

आसेब (भूत-प्रेत) दूर करने के लिए बेहतरीन अमल।

तीन बार पानी पर पढ़ कर मुंह पर छीटा मारे या कान में दम करें : “या अय्युहन्नासुत तकू रब्बक॒म इनृना जलजा लतिस्साअति शैईन अजीम ।'

नमाज कुबूल होने के लिए

हजरत ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह ने फरमाया कि बाद नमाज कलिमा तौहीद तीन बार पढ़कर यह दुआ पढ़ लेने से नमाज कुबूल हो जायेगी- 'इन्नल्ला-ह युम्सकुस समावाति वल्थ्वर्जि अन-तजुल-ल व ल-इन जालता इन अम-स- कहुमा मिन अह-दिम मिम-बाहिद इन्नहू का-न हलीमन गफूर |

आंखो की रोशनी के लिए बेहतरीन अमल।

हर नमाज के बाद तीन बार पढ़ कर उंगली पर दम करके आंखो पर लगाने से बीनाई में कभी कमी न होगी, बल्कि जो कुछ पहले नुक्सान पहुंचा हो वह भी जाता रहेगा “वस्समा-अ बनैनाहा बिऐदिंव व इन्‍ना लमूसिउन वल-अर-ज फ-रशनाहा फनिअमल माहिदून ।

हर हाजत पूरी होने के लिए बेहतरीन अमल।

इस आयत को अंगुश्तरी पर कुन्दा कराकर पास रखे : वा ईंयका दुल्लजी-न कफरू लयुजलिकु-न-क बिअब्सारिहिम लम्मा समिउज्जि कर व यकाूलूना इन्नहू ल-मजनून | वमा हु-व इलला जिकरूल लि आलमीन ।

अमल के नुक्सान से बचने के लिए बेहतरीन अमल।

जो शख्स किसी काम के वक्‍त इस सूर: को पढ़ ले वह उस काम की दुश्वारियों से महफुज रहेगा। उसकी मुश्किल आसान हो जायेगी । इजस्समाउन शक्‍कत। व अजिनतलिरब्बिहा व हुकक्‍कत व इजल अर्जु मुद्दत व अलकत माफीहा व तखल्लत0'


खोई हुई चीज को पाने के लिए बेहतरीन अमल।

इस आयत को पढ़कर खोई हुई चीज तलाश की जाए तो इंशाअल्लाह जरूर मिल जायेगी वरना गैब से कोई अच्छी चीज मिलेगी- “व मिनन्‍नासि मैं यतखिजु मिन दुनिल्लाहि अनदादई युहिब्बूनहुम कहुब्बिललाहि वलल्‍लजी-न आमनू अशददु-हुब्बल लिलहि वलौ यरललजी-न ज-लमू इज यरौनल अजा-ब अन्नल कुव्वल लिल्लहि जमीओं व अन्नलला-ह शहीदुल अजाब ।'

कर्ज अदा होने के लिए बेहतरीन अमल।

सुबह व शाम सात बार पढ़ लेने से इंशाअल्लाह कर्ज अदा हो जायेगा- रब्बि हबली मिल्लदुन-क जुर्रीयतन तय्यिबतन इनन-क समी उद्दुआ |

रोजी रोजगार के लिए बेहतरीन अमल।

महीने के शुरू के जुमा से चालीस जुमा तक ग्यारह बार रोजाना मगरिब की नमाज के बाद पढ़े- “'हसबुनललाह व निअमल वकील' और हर जुमे के बाद कागज पर निम्न आयत को लिखकर कुएं में डालता जाए इन्शाअल्लाह खुशहाल हो जाएगा। “व ल-कद मक्‍कन्‍नाकुम फिल अर्जि व ज-अलना लक॒म फीहा मआइ-श कलीलम मा तशकुरून |

मुसीबत से छुटकारा पाने के लिए बेहतरीन अमल।

इन आयत को पढ़ने से मुसीबत से छुटकारा मिल जाता है। 'इन्ना फी खलकिस्समावाति वलअरजि' से “लअल्लक॒म तुफ- लिहून। तक (आले इमरान)

मुहब्बत के लिए बेहतरीन अमल।

अस आयात को पढ कर शीरीनी पर दम करे, जिसको खिलाए इंशाअल्लाह मुहब्बत होगी | “व अलकैना बैन हुमुल अदाव-त वल बगदाअ इला यौमिल कियामह।'

हर मुहिम की कामयाबी के वास्ते बेहतरीन अमल।

इय आयत को पढ़ कर दुआ करे इन्शाअल्लाह कामियाबी होगी। “व इजा जाअतहुम आयतुन कालू लन-नुअमि-न हता नुति-य मिस-ल मा ऊति-य रसूलुल्लाहि अअलहु हैसु यजअलु रिसालत।

रास्ते की बला दूर करने व बुखार-सर्दी मिटाने के लिए

इस आयत को पढ़ कर कश्ती या सवारी पर सवार होने से रास्ते की तमाम बलाओं से महफूज रहेगा। अगर किसी को सर्दी का बुखार आता हो तो बेर की लकड़ी पर लिखकर गले में डालने से इंशा-अल्लाह शिफा होगी।

इल्म की तरक्की और जेहन के लिए बेहतरीन अमल।

हर रोज नमाजे सुबह के बाद पढ़ा करे। “मिनहा खलक्नाकुम व फीहा नुईदुकुम व मिनहा नुख्जुरिकुम तारतन उखरा0'

हर बीमारी व दर्द के लिए बेहतरीन अमल।

बीमारी की जगह पर हाथ रखकर इस आयत को तीन बार पढ़ कर दम करे,इंशाअल्लाह तआला सेहत होगी । 'कल्बुहुम बासितुन जिराऐहि बिलवसीद '

मुसीबत से छुटकारा पाने के लिये बेहतरीन अमल।

इस आयत से मुसीबत के वक्‍त पढ़े, इन्शाअल्लाह मुसीबत दूर हो जायेगी । “ला इला-ह इलला अन-त सुब्हान-क इन्नी कुन्तु मिनज्जलिमीन |

बराए इस्तिखारा के लिए बेहतरीन अमल।

हजरत ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह ने फरमाया कि दो नफ्ल पढ़ कर सूरः कौसर पन्द्रह बार और इस दुआ को 360 बार पढ़े फिर हाथ पर दम कर के सो जाये और हाथ सर के नीचे रखे- “या रशीदु अरशिदनी या अलीमु अल्लिम-नी मिनल हालिल कलामी

चेचक दूर करने के लिए बेहतरीन अमल।

हजरत ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह फरमाते है कि चेचक के मौसम में या जब किसी के चेचक निकली हो तो सूरः रहमान का गन्डा बनाकर गले में डाले, इस तरह कि सूरः रहमान पढ़ना शुरू करे रहमान पढना शुरू करे और हर आयत 'फबि अय्यि आलाई रब्बिकुमा तुकज्जिबान' के बाद दम करके गांठ दे आखिर तक ऐसा ही करे। बहुत जल्द आराम होगा। यह उपाय आजमूदा है।

लोगों को अपने हक मे करने के लिए बेहतरीन अमल।

हजरत ख्वाजा गरीब नवाब रहमतुल्लाहि अलैह ने फरमाया है कि अगर किसी को यह ख्वाहिश हो कि लोग मेरी इज्जत करें तो उसे चाहिए कि जब सुबह को सूरज एक नेजा ऊंचा हो जाए तो उस वक्‍त उसकी तरफ मुंह करके साफ दिल से सूरः रहमान पढ़ना शुरू करें 'फबि अय्यि आलाई रब्बिकुमा तुकज्जिबान' कहते वक्‍त सूरज की तरफ उंगली से इशारा करे। पहले चालीस बार पढ़ कर जकात अदा करनी चाहिये। तरीका इस्तेमाल यह है कि जब किसी के सामने जाना हो तो सूरः रहमान एक बार पढ़ कर जाए, अगर वक्‍त न हो, तो सिर्फ “फबि अय्यि आलाई रब्बिकुमा तुकज्जिबान को तीन बार पढ़ कर जाये।

दीवाने कुत्ते के काटने का इलाज।

हजरत ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह फरमाते हैं कि अगर किसी को दीवाने कुत्ते ने काटा हो तो चाहिए कि इस आयत को रोटी के चालीस टुकड़ों पर लिखकर हर रोज एक टुकड़ा चालीस दिन तक खाये। “'इन-नहुम यकीदू-न कैदंव व अकीदु कैदा। फ महिहलिल काफिरी-न अमहिलहुम रूवैदा'

लकवे के इलाज के लिए बेहतरीन अमल।

हजरत ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह फरमाते हैं कि अगर किसी को लकवे की बीमारी हो जाये तो किसी कामिल बुजुर्ग से सूरः 'जिलजाल' को मअ बिस्मिल्लाह शरीफ के लिखवाकर पाक बर्तन में धो कर पिया करे। बराबर इक्‍कईस दिन पीने से इन्शाअल्लाह आराम होगा।

कर्ज की अदायगी के लिए बेहतरीन अमल।

हजरत ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह ने फरमाया- “कर्ज की अदायगी के लिए निम्न आयत को पांच बार हर नमाज में रोजाना इक्तालीस दिन तक पढ़े, इन्शाअल्लाह तआला कर्ज से बहुत जल्द निजात पाएगा। बिस्मिल्लाहिर्रमानिर्रहीम' कुलिल्लाहुम-म मालिकल मुल्कि तू तिल्मुल-क मन तशाउ से 'बिगैरि हिसाब' तक।

रोजगार पाने के लिए बेहतरीन अमल।

हजरत ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह ने फरमाया- अगर किसी को नौकरी न मिलती हो और रोजगार की कोई सूरत न हो तो उसको चाहिए कि महीने के पहले इतवार से सूर: यासीन शरीफ को इस तर्तीब से पढ़े कि सुबह की नमाज के बाद सूरज उगने से पहले दरूद शरीफ इक्तालीस बार फिर सूरः: यासीन शरीफ 'मुबीन' दर 'मुबीन' पढ़े शब्द 'मुबीन' का सात बार तकरार करता रहे आखिर तक। पूरी सूरः के बाद एक बार फिर पढ़े, फिर दरूद शरीफ इकतालीस बार पढ़े और दुआ मांगे चालीस दिन तक इसी तरह पढ़े, पहले ही चिल्ले में कामियाब होगा वरना दूसरा चिल्ला करे अगर फिर भी कामियाब न हो तो तीसरा चिल्ला भी करे, कामियाब होगा और कोई सूरत रोजगार की हो जाएगी ।

सकरात की हालत में।

हरजत ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह ने फरमाया कि जिसको मौत की तकलीफ बहुत हो उसके पास बा-वुजू सूरः यासीन सच्चे दिल से पढ़े | इन्शाअललाह तआला सकराते मौत की सख्ती आसान हो जाएगी।

इमारत दरगाह शरीफ।

अजमेर शहर ऊंची पहाड़ियों के बीच आबाद है जैसे चारदीवारी में एक किला हो। इसके पचिश्म और दक्षिण पहलू से मिला हुआ तारागढ़ पहाड़ी का सिलसिला है, इसी पहाड़ी के दामन में हजरत ख्वाजा गरीब रहमतुल्लाहि अलैह की दरगाह है जो एक बड़े क्षेत्रफल मेंत्रचारदीवारी के अन्दर है। दरगाह शरीफ के दक्षिण में झालरा, पूरब में गली लंगरखाना और मोहल्ला खदिमान, उत्तर में दरगाह बाजार और पश्चिम में वह रास्ता है जो त्रिपोलिया दरवाजे से होकर अन्दर कोट और तारा गढ़ को जाता है।

निजाम गेट।

Nizam gate ajmer
Nijam gate ajmer
दरगाह शरीफ में दाखिल होने के चारों तरफ दरवाजे हैं जिनमें से सबसे ज्यादा ऊंचा और आलीशान दरवाजा दरगाह बाजार की तरफ से उसको निजाम गेट कहते हैं।
यह दरवाजा 4942 ई0 में बनना शुरू हुआ और तामीर का काम तीन साल तक जारी रहा। यह दरवाजा जनाब मीर उस्मान अली खां साबिक नवाज हैदराबाद का बनवाया हुआ है। इसलिए इसको उस्मानी दरवाजा भी कहते हैं। इसकी ऊंचाई सत्तर फूट और चौड़ाई मय दालानों के 24 फूट है, मेहराब की चौड़ाई सोलह फुट है। दरवाजे के ऊपर नक्कारखाना है।

कालिमा दरवाजा।

उस्मानी दरवाजे से दरगाह शरीफ में दाखिल हो तो कुछ फासले पर एक पुरानी किस्म का दरवाजा आता है इसके ऊपर शाही जमाने का नुक्कारखाना है। इस दरवाजे को शाहजहां ने 4047 हिजरी में बनवाया। इस वजह से यह दरवाजा नक्कारखाना शहजहानी के नाम से मशहूर है। दरवाजे की मेहराबों पर साफ शब्दों में कलिमा तैयबा लिखा हुआ है जिसकी वहज से इसको कालिमा दरवाजा भी कहते हैं। दरवाजे के अन्दर-बाहर संगेमरमर का फर्श है। कलिमा दरवाजे से आगे बढ़े तो एक सहन में दाखिल होते हैं जिसकी दायीं ओर शफाखाना और अकबरी मस्जिद की सीढ़ियां हैं, सामने बुलन्द दरवाजा है।

अकबरी मस्जिद।

Akbari Masjid ajmer
Akbari masjid ajmer 
यह मस्जिद अकबर के जमाने की यादगार है। शहजादा सलीम (जहांगीर) की पैदाइश के छः: माह बाद अकबर बादशाह आस्ताना-ए-आलिया की जियारात के लिए अजमेर शरीफ आया, उसने मस्जिद की तामीर (निर्माण) का हुक्म दिया। यह मस्जिद
सुर्ख पत्थरों से बनायी गई है। मस्जिद मय इसकी इमारतों के 440 फुट लम्बी और 440 फूट चौड़ी है। मेहराब 56 फूट ऊंचा है।

बुलन्द दरवाजा।

यह दरवाजा सुल्तान महमूद खिलजी की यादगार है। इसकी बुलन्दी 85 फूट हैत्रअन्दर फर्श संगमरमर का है चूंकि दरगाह शरीफ की कुल इमारतों से यह दरवाजा ऊंचा है इसलिए इसको बुलन्द दरवाजा कहते हैं। 25 जुमादल आखिरी को इसी दरवाजे के ऊपर उर्स शरीफ का झन्डा लगाया जाता है।

बड़ी देग।

Badi deg ajmer
Badi deg ajmer 
सेहन चिराग में बुलन्द दरवाजे के दांयी तरफ बड़ी देग है। अकबर बादशाह ने अहद (प्रण) किया था कि चित्तोड़ गढ़ की फत्ह के बाद सीधे अजमेर शरीफ हाजिर होकर एक बड़ी देग पेश करेगा। अत: उसको फत्ह हासिज हुई और सीधे अजमेर शरीफ
पहुंचकर बड़ी देग चढ़ाई। इस देग का घेरा साढ़े बारह गज है और सममें सवा सौ मन चावल पक सकता है। यह देग 976 हिजरी में पेश की गई थी।

छोटी देग।

Choti deg ajmer
Choti deg ajmer 
यह देग सेहन चिराग में बुलंद दरवाजे के बांयी तरफ है। इसका सुल्तान नूरूद्दीन जहांगीर ने 4043 हिजरी में बनवाकर पेश किया, इसमें 80 मन चावल पक सकता है।

महफिल खाना।

यह इमारत सेहन चिराग से पश्चिम की तरफ है। नवाब बशीरूद्दौला ने अपने फरजन्द रशीद नवाब मुईनुद्दौला की पैदाइश की खुशी में बनवाया था। नवाब ने दरबारे ख्वाजा में बेटे के लिए दुआ मांगी थी। अल्लाह तआला ने उन्हें अस्सी साल की उम्र में बेटा अता फरमाया। इसी खुशी और मन्नत की अदायगी में उन्होंने यह इमारत बनवायी | इसकी तामीर का काम 4306 हिजरी में शुरू हुआ और 4309 हिजरी में यह इमारत बनकर तैयार हुई, जिसकी लम्बर 46 फुट और चौड़ाई भी 46 फुट है, यह इमारत चौकोर है। उर्स शरीफ के दिनों में मज्लिस सिमाअ (कव्वाली) का बन्दोबस्त इसी इमारत में रहता है, इसलिये इसको महफिल खाना कहते हैं।

खानकाह हज़रत ख़्वाजा ग़रीब नवाज़।

यह इमारत महफिल खाने से मिली हुई पश्चिम की तरफ है और इसमें दाखिल होने के लिए महफिल खाने के शुमाली (उत्तरी) गोशे में एक दरवाजा है। आजकल इस इमारत में यतीम खाना है।

लंगर खाना।

सेहन चिराग के पूरब में हुजरों की लाइन के बीच एक फाटक है, इस फाटक से अन्दर दाखिल होने पर एक बड़ा दालान है जिसका एक फाटक गली लंगर खाना में खुलता है। दालान के अन्दर लोहे के दो बड़े-बड़े कढाव हैं जिसमें सुबह शाम नमकीन दलिया पकाकर गशीबों में बांटा जाता है। यह लंगरखाना अकबर बादशाह ने गरीबों के लिए बनवाया था।

अहाता-ए-चमेली।

सेहन चिराग से आगे बढ़ने पर हुजरों की लाइन के बीच दो बड़े-बड़े दरवाजे हैं, जो दरवाजा पूरब की तरफ है, उससे आगे बढ़ने पर अहाता-ए-आस्ताने आलिया में दाखिल होते हैं और गुम्बद शरीफ बिल्कुल सामने नजर आता है। बांयी तरफ संगमरमर की बनी हुई एक खूबसूरत मगर छोटी-सी मस्जिद है जिसको औलिया मस्जिद कहते हैं, दांयी तरफ सन्दली मस्जिद है जिसके उत्तरी सिरे से मिला हुआ अहाता-ए-चमेली है जिसमें पाक मजारें हैं। इन मजारों और उनकी दीवारों पर चमेली के पौधे छाए हुए हैं। मशहूर है कि यह मजारे ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह कीक्षबीवियों की है।

मस्जिद सन्दल खाना

Sandal khana ajmer
Sandal khana ajmer 
इस मस्जिद का बयान अहाता-ए-चमेली के साथ हो चुका है। यह मस्जिद सुल्तान महमूद खिलजी की बनवाई हुई है। जहांगीर के जमाने में मस्जिद खस्ता व शिकस्ता (टूटी-फूटी) हो चुकी थी। जहांगीर बादशाह ने चार दर बढ़ा कर नयी बनवाई। शहनशाह औरंगजेब ने इसकी मरम्मत कराई, इस वजह से यह मस्जिद तीनों बादशाहों के नामों से मशहूर है।
उर्स शरीफ के दिनों में एक रजब से नौ रजब तक मजार अक्दस पर पेश करने के लिए सन्दल की घिसाई इसी मस्जिद में होती है जिसकी वहज से यह सन्दली मस्जिद के नाम से मशहूर हो गयी है। हुजूर ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह के मजारे अक्दस से सुबह व शाम जो फूल उतरते हैं वह इसी मस्जिद के एक गहरे ताक में कुछ देर के लिए रखे जाते हैं इस वजह से इस मस्जिद को मस्जिद फूल खाना भी कहते हैं।

औलिया मस्जिद

यह मजिस्द अहाता चमेली और मस्जिद सन्दल खाना से कुछ कदम के फासले पर पूरब की तरफ बनी हुई है। यह मस्जिद उस जगह पर बनाई गयी है जहां हुजूर ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह नमाज पढ़ा करते थे।

शाहजहानी मस्जिद

Shah jahani Masjid ajmer
Shah jahani masjid ajmer 
यह मस्जिद मजारे अक्दम से पश्चिम की तरफ बनी हुई है। बहुत उम्दा सफेदत्रसंगमरमर से बनाई गई है। यह आलीशान मस्जिद शाहजहां बादशाह के हुक्म से बनवाई गयी थी। जुमे की नमाज इस मस्जिद मे बड़ी शान से होती है। इसको जामा शाहजहानी भी कहते हैं। इसकी लम्बाई 97 गज और चौड़ाई 27 गज है। मस्जिद का सेहन बहुत बड़ा है। मजारे अक्दम का जन्‍नती दरवाजा मस्जिद के मेहराब से बिल्कुल सामने नजर आता है। जुमा की नमाज इस मस्जिद में बड़ी शान से होती है। शाही जमाने से ही यह कायदा है कि जुमे की नमाज के लिए चार बार तोपें चलाई जाती है। पहली खुत्बा होने से पांच मिनट पहले, दूसरी खुत्बे के वक्‍त, तीसरी इकामत के वक्‍त और चौथी सलाम के वक्‍त |

बेगमी दालान

गुम्बद शरीफ का सदर दरवाजा पूरब की तरफ है। इस दरवाजे के आगे एक बहुत खूबसूरत और आलीशान दालान है जो तीन तरफ खुलता है। यह दालान 4053 हिजरी में शहजादी जहान आरा ने बनवाया था। इसलिए इसको बेगमी दालान कहते हैं।

रौजा-ए-मुनव्वरा

रौजा-ए-मुनव्वरा और गुम्बद शरीफ का काम सुल्तान महमूद खिलजी के जमाने में शुरू हुआ, मगर कई इतिहासकार लिखते हैं कि रौजा-ए-मुनव्वर और गुम्बद शरीफ ख्वाजा हुसैन नागौरी रहमतुल्लाहि अलैह ने बनवाई है। गुम्बद का अन्दरूनी हिस्सा पत्थर का है जिनको चूने से जोडा गया है। गुम्बद के बाहर का हिस्सा सफेद है जिस पर चूने का प्लास्टर चढ़ा हुआ है। गुम्बद के अन्दरूनी हिस्से में सुनहरी व रंगीन नक्श व निगार बने हुए हैं। सफेद गुम्बद पर सोने का बहुत बड़ा ताज लगा है इसको नवाब कलब अली खां (रामपुर) भाई हैदर अली खां मरहूम ने नजर किया था। मजारे अक्दस हमेशा मखमल के कब्र-पोशों से ढका रहता है उन पर ताजा गुलाब के फूलों की चादरें चढ़ी रहती है। छप्पर-खट के बीच में सुनहरा कटेहरा लगा है जो शहनशाह जहांगीर ने बनवाकर चढ़ाया था।

गुम्बद शरीफ के अन्दर रोशनी

मग्रिब की नमाज से करीब बीस मिनट पहले पुराने रिवाज के अनुसार रौजा-ए-मुनव्वरा में बिजली की सभी रोशनी बन्द कर दी जाती है और खालिस मोम की बनी हुई मोमबत्तियां रोशन की जाती हैं, उन बत्तियों को रोशन करते वक्‍त नीचे लिखे शेर पढ़े जाते हैं। अन्दरूने गुम्बद के चारों तरफ चौखटों पर आईनें लगे हैं और यह शेर उनपर सुनहरी शब्दों में लिखे हुए हैं।

चिल्ला बाबा फरीद गंज शकर रहमतुल्लाहि अलैह।

यह वह जगह है जहां बाबा फरीददीन गंज शकर र0अ0 ने चिल्ला किया था। यह जगह मस्जिद सन्दल खाना के पीछे जमीन के अन्दर है। खास मस्जिद सनदल खाना के नीचे तहखाने में है, नीचे उतरने के लिए सीढ़ी बनी हुई है। इसका दरवाजा साल भर बन्द रहता है और मुहर्रम की 5 तारीख को खुलता है। उस दिन जायरीनों की लाइन लग जाती है और दूर-दूर के लोग हाजिर होकर जियारत करते हैं।

मजार हजरत ख्वाजा फखरूद्दीन गुरदेजी रहमतुल्लाहि अलैह।

आप और आपकी बीवी के मजार तोशा खाने में हैं, जो बेगमी दालान से मिला हुआ है और उसका दरवाजा रौजा-ए-मुनव्वरा के अन्दरूनी हिस्से में खुलता है। आप हजरत ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह के करीबी रिश्तेदार, पीर भाई और मुरीद थे। आपकी औलाद खुद्दाम सैयदजादगान कहलाती है जिनको अन्दरूने गुम्बद ख्दिमत का हक हासिल है। गुम्बद शरीफ, मजार अक्दस और उसका सभी सामान हजरात के कब्जे में रहता है। यही खिदमत करते हैं, फूल और सन्दल चढ़ाते हैं और जायरीन को सलाम कराते हैं, गिलाफो और चादरों का चढ़ाना इन्हीं के जिम्मे है। 25 और 26 रजब को आपका उर्स बड़ी धूमधाम से होता है।

चार यार।

जामा मस्जिद शाहजहांनी के दक्षिण दीवार के साथ ही एक छोटा सा दरवाजा है, जो पश्चिम की तरफ खुलता है। इस दरवाजे के बाहर एक बड़ा कब्रिस्तान है। यह कब्रिस्तान झालरा की दीवार से लेकर जामा मस्जिद के पीछे दूर तक फैला हुआ है। इस कब्रिस्तान में बड़े-बड़े आलिमों, फाजिलों, सूफियों, फकीरों, और औलिया-अल्लाह के मजारात हैं। मौलाना शम्सुद्दीन साबह रहमतुल्लाहि अलैह भी इसी जगह दफन हैं और मदफून है। जिनका विसाल मज्लिसे सिमआ में हुआ था। कहा जाता हे कि इसी कब्रिस्तान में
चार मजार उन बुजुर्गों के भी हैं जो हुजूर गरीब नवाज रहमतुल्लाहि अलैह के साथ तशरीफ लाये थे। इसी वजह से यह जगह चार यार के नाम से मशहूर है।

चिल्ला हजरत ख्वाजा गरीब नवाज।

आना सागर के दक्षिण पश्चिम किनारे पर एक बड़ी पहाड़ी है जिसको सदाबहार पहाड़ी कहते हैं। इसी पहाड़ी के एक कोने में छोटा सागर है।
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