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नबी का साया नहीं था infomgm 

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नात शरीफ naat sharif in hindi साया का साया ना होता है ना साया नूर का 

सुबह तैबा में हुयी बटता है बाड़ा नूर का 
सदका लेने नूर का , आया है तारा नूर का


मैं गदा तू बादशाह भर दे प्याला नूर का 
नूर दिन दूना तेरा दे डाल सदका नूर का


तेरी ही जानिब है पांचों वक्त सजदा नूर का 
रुख है किबला नूर का अबरू है काबा नूर का


तू है साया नूर का हर अज्व टुकड़ा नूर का 
साया का साया ना होता है ना साया नूर का


तेरी नस्ल पाक में है बच्चा बच्चा नूर का 
तू है ऐने नूर , तेरा सब घराना नूर का


का फ़ गेसू हा दहन या अबरू आँखें ऐन स्वाद 
काफ हा या ऐन स्वाद उनका है चेहरा नूर का


ऐ रज़ा यह अहमदे नूरी का फैज़ नूर है 
होगई मेरी ग़ज़ल पढ़ कर कसीदा नूर का


( हदाइके बखिशश हिस्सा 2 पेज 242 )
शैखुल इस्लाम वल मुसलिमीन आला हज़रत इमामे अहले सुन्नत मुजद्दिदे दीन व मिल्लत अल- हाफिज़ अल - कारी मौलाना अश - शाह इमाम अहमद रज़ा खान अलैहिर रहमा बरेली शरीफ 

नात शरीफ naat sharif in hindi जो अहले शक हैं अगर में मगर में रहते हैं 


बड़े लतीफ़ हैं नाजुक से घर में रहते हैं 
मेरे हुजूर मेरी चशमे तर में रहते हैं 


हमारे दिल में हमारे जिगर में रहते है 
उन्हीं के घर हैं वह अपने घर में रहते हैं 


मक़ाम उनका ना फर्श जमीं ना अर्श बरी 
वह अपने चाहने वालों के घर में रहते हैं 


यकीन वाले कहाँ से चले कहाँ पहुंचे 
जो अहले शक हैं अगर में मगर में रहते हैं 


खुदा के नूर को अपनी तरह समझते हैं 
यह कौन लोग हैं किस के असर में रहते हैं 


जो अख्तर उनके तसव्वुर में सुबह व शाम करें 
कहीं भी रहते हों तैबा नगर में रहते हैं 


( तजल्लियाते सुखन पेज नम्बर 28 ) 
राईसुल मुहक्ककीन शैखुल इस्लाम वल मुसलिमीन हज़रत अल्लामा सय्यद मुहम्मद मदनी अशरफ अशरफी अल - जिलानी सज्जादा नशीन हुजुर मुहदिसे आज़म हिन्द किछौछा शरीफ 


नज़र आए ना साये में भी महबूब का सानी 
खुदा ने इसलिए रखा नहीं साया मुहम्मद का


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क्या हुजूर सय्यदे आलम सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही वअसहाबिही वसल्लम का जिस्मे अतहर भी नूरी था ? 
हज़रत अल्लामा सय्यद अहमद शाह काज़मी अलिहिर्रहमा " रिसाला ए मीलादुन्नबी " के पेज नम्बर 15 पर फरमाते हैं कि हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि वसल्लम का जिस्म भी नूर था 


इस मसले पर आज कल के नये नये लोग , देवबंदि वहाबी जमात से राब्ता रखने वाले , बात बात पर शिर्क एवं कुफ्र का फ़तवा दागने वाले,विरोध करते हैं 
और अहले सुन्नत व जमात को कुफ्र वा शिर्क का निशाना बनाते हैं 


हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम 
वह क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता 


1. इमामुल हदीस हज़रत हकीम तिर्मज़ी रहमतुल्लाहि अलैह अपनी किताब " नवादिरुल उसूल " में हज़रत ज़क्वान रदिअल्लाहु अन्ह से यह हदीस रवायत करते हैं :  सरकारे दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व अस हाबिही व सल्लम का छाया (साया) ना सूरज की धूप में नज़र आता था ना चाँद की चाँदनी में | ( हवाला : अल मवाहिबुल लदुन्या अलश शमाइलिल मुहम्मदिया प्रकाशित मिस्र पृष्ट 30 ) 


2. हजरत अब्दुल्लाह बिन मुबारक और हाफिज़ इब्ने जौज़ी रहमतुल्ला हि अलैह हज़रत इब्ने अब्बास रदिअल्लाहु अन्हुमा से रिवायत करते हैं : 
सरकारे दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व अस हाबिही व सल्लम के जिस्म मुबारक का छाया नहीं था ना सूरज की धुप में ना चिराग की रौशनी में , सरकार का नूर सूरज और चिराग के नूर पर गालिब रहता था | ( खसाइसे कुबरा जिल्द 1 पेज 28 ) 


3. इमाम रागिब अस्फहानी ( वसाल 450 हिज़री ) रहमतुल्ला हि अलैह फरमाते हैं ।  
रिवायत की गयी कि जब हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व असहाबिही वसल्लम चलते तो आप का छाया ना होता था | ( अल मारूफुल राअद ) 


4. इमाम नस्फी ( वसाल 710 हिज़री ) तफसीरे " मदारिक शरीफ " में हज़रत उस्मान रदिअल्लाहु अन्ह से यह हदीस नकल फ़रमाते हैं :  
हज़रत उस्मान गनी रदिअल्लाहु अन्ह ने बारगाहे रिसालत में अर्ज़ किया कि खुदा जल जलालहु ने आप का छाया (साया) जमीन पर पड़ने नहीं दिया ताकि इस पर किसी इंसान का कदम ना पड़ जाये | ( मदारिक शरीफ जिल्द 2 पेज 28 मत्बूआ क़दीम वा मदारीजुन नबुवा जिल्द 2 पेज 161 )


5. इमाम जलाल उद्दीन सियूती अशशाफ़ई ( वसाल 911 हिज़री ) फरमाते हैं :  
हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व अस हाबिही व सल्लम जाने नूर का साया ज़मीन पर नहीं पड़ता था 
और ना सूरज चाँद के रौशनी में छाया आता था 
 इब्ने सुबअ इसकी वजाहत बयान करते हैं कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही वअस हाबिही वसल्लम नूर थे 
रजीन ने कहा कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व असहाबिही वसल्लम का नूर सब पर ग़ालिब था ( अन्मूज़जुल लबीब ) 


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6. इमामुल ज़मान क़ाज़ी एयाज़ रहमतुल्ला हि अलैह ( वसाल 844 हिज़री ) फरमाते हैं :  
यह जो बताया गया है कि सूरज और चाँद की रौशनी में हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व असहाबिही वसल्लम का मुबारक शरीर का छाया नहीं पड़ता था और आप सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व अस हाबिही व सल्लम के शरीर और लिबास ( वस्त्र ) पर मख्खी नहीं बैठती थी 
तो इसकी वजह यह कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व अस हाबिही व सल्लम नूर थे 
( शिफ़ा काज़ी एयाज़ जिल्द 1 सफा 342 - 343 ) 


7. अल्लामा इब्ने हजर मक्की रहमतुल्ला हिअलैह ( वसाल 973 हिज़री ) फरमाते हैं :  
हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम पाबन्दी के साथ यह दुआ फरमाते थे कि 
ईलाही मेरे तमाम जिस्म को नूर कर दे और इस दुआ से मुराद यह नहीं कि नूर होना अभी हासिल ना था 
कि इसके लिए  माँगते थे बल्कि यह दुआ इस बात के जाहिर करने के लिए था कि हकीकत में हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम का तमाम का जिस्म नूर था और यह करम अल्लाह तआला ने हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि सल्लम पर कर दिया जैसा कि हमें हुक्म हुवा कि सुरह बकरा शरीफ के आयत
 करें वोह भी इस बेहतरीन के जाहिर अल्लाह त आला के करम के है और हुजुर अलैहिस्सलातु व सलाम के सिर्फ नूर हो जाने की पुष्टि इससे होती है कि धूप या चाँदनी में हुजुर का छाया पैदा न होता
इसलिए कि छाया तोक्सीफ ( गढ़ा ) होता है और हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि वसल्लम को अल्लाह तआला ने तमाम जिस्मानी कसाफ़तों से साफ करके सरापा नूर कर दिया लिहाज़ा हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम के लिए छाया असलन न था | 
( अफ्ज़लुल क र उल कुर्रा उम्मुल कुर्रा शरह उम्मुल कुर्रा शरह नम्बर 2 सफा 128-129 जिल्द 1 प्रकाशित अबू ज़हबी ) 


8. अल्लामा शहाब उद्दीन खुफ्फाजी रहमतुल्ला हि अलैह हम्दे मुस्तफा में फरमाते हैं :
अदबो एहतराम के वजह से हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व असहाबिही वसल्लम के छाया ( साया ) जिस्म के दामन जमीन पर रगड़ता हुवा नहीं चलता था हालाँकि हुजूर ही का साया ए करम में सरे इन्सान चैन की नींद सोते हैं 
इससे हैरत अंगेज़ बात और क्या हो सकती है । इस बात की गवाही के लिए कुरान करीम की यह गवाही काफी है कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व असहाबिही वसल्लम मुबीन हैं 
और हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व अस हाबिही व सल्लम का छाया ना होना बशर होने के मनाफ़ी नहीं
( नसीमुर रियाज़ जिल्द3 सफा 319 मिस्री ) 


9 . इमाम अहमद कुस्तुलानी फरमाते हैं :  
हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व अस हाबिही व सल्लम के जिस्मे अतहर का साया ना सूरज की रौशनी में पड़ता था ना चाँद की चाँदनी में । ( मवाहिबुल लदुन्या जिल्द 1सफा 180 - जुर्कानी जिल्द 4 सफा 220 ) 
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10 . अल्लामा हुसैन इब्ने मुहम्मद दियार फरमाते हैं :  
हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व अस हाबिही व सल्लम के मुबारक जिस्म का छाया ना सूरज की रौशनी में  पड़ता था ना चाँद की चाँदनी में | ( किताबुल खमीस ) 


11 . अल्लामा सुलेमान जुमल रहमतुल्ला हि अलैह फरमाते हैं :
 हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व अस हाबिही व सल्लम का मुबारक जिस्म का छाया ना सूरज की रौशनी में पड़ता था ना चाँद की चाँदनी में | ( हयाते अहमदिया शरह हम्ज़िया सफा 5) 


12 . इमामे रब्बानी मुजद्दिद अल्फ ए सानी रहमतुल्ला हि अलैह फरमाते हैं : 
 हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व अस हाबिही व सल्लम का छाया ना था और इसकी वजह यह है कि आलमे शहादत में हर चीज़ से उसका साया लतीफ़ होता है और सरकार सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व अस हाबिही व सल्लम की शान यह है कि कायनात ( ब्रह्मांड ) में उन से ज्यादह कोई लतीफ़ चीज़ है ही नहीं फिर हुजूर का साया क्यों कर पड़ता  
( मकतूबात जिल्द 3 सफा 147 प्रर्काशित नवल किशोर लखनऊ ) अल्लामा शैख़ मुहम्मद ताहिर 


13 . साहिबे " मजम अल बहार रहमतुल्ला हि अलैह फरमाते हैं 
 हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व अस हाबिही व सल्लम नामो में से नूर भी एक नाम है 
और उसकी खुसूसियत है कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व अस हाबिही व सल्लम का साया ना धुप में और ना चाँदनी में ( मजमअ बहारुल अनवार ) 


14 . साहिबे सिरतुल ह ल बिया ( मारूफबिह सीरत शामी ) फरमाते हैं 
 हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व अस हाबिही व सल्लम जब सूरज या चाँद की रौशनी में चलते तो आप का छाया ना होता इसलिए कि आप नूर थे | ( अल मारूफुल राअद ) 
15 . इमाम तकीउद्दीन सुबकी रहमतुल्ला हि अलैह फरमाते हैं : खुदा ए रहमान ने आप के छाया को ज़मीन पर स्थित होने से पाक फरमाया और पाए - माली से बचने के लिए आप की अज़मत ( सम्मान ) के कारण इसको लपेट दिया कि दिखाई न दे । इमाम शैख़ अहमद मनावी भी यही फरमाते हैं ।
16 . इमामुल आरिफीन मौलाना जलाल उद्दीन रूमी रहमतुल्ला हि अलैह फरमाते हैं : 
जब फ़क्र की मंजिल में दुर्वेश फ़ना का लिबास पहन लेता है तो मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व अस हाबिही व सल्लम की तरह उसका भी साया जाइल ( खत्म ) हो जाता है | ( मसनवी व मानवी बाब पंजुम ) 


17 . हज़रत अल्लामा बहरुल उलूम लख नवी रहमतुल्ला हि अलैह इस पंकित की वजाहत फरमाते हैं : हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व अस हाबिही व सल्लम के इस मोजेज़ा ( चमत्कार ) की तरफ इशारा है कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व असहाबिही वसल्लम का छाया नही था |


18 . इमामुल मुहद्दीसीन हज़रत शाह अब्दुल अज़ीज़ ( वसाल 1239 हिज़री ) बिन शाह वालीयुल्लाह मुहद्दिस देहलवी रहमतुल्ला हि अलैह फरमाते हैं :
जो खुसूसियात नबी अक्दस सल्लल्लाहु अलैहि वआलिही वअस हाबिही वसल्लम के जिस्म मुबारक में अता की गयी उन में से एक यह थी कि आपका छाया ज़मीन पर नहीं पड़ता था | ( ताज्किरतुल मौता वल कुबूर सफा 13 ) 


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19 . काज़ी सना उल्लाह पानी पती ( ( वसाल 1124 हिजरी ) मुसन्निफ माला बुद्दा मिन्ह व तफसीरे मज़हरी ने फ़रमाया है :
 उलमा ए कराम फरमाते हैं कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व अस हाबिही व सल्लम का साया नहीं था

 
20. मुफ्ती इनायत अहमद काकोरवी रहमतुल्ला हि अलैह ( वसाल 1279 हिज़री ) फ़रमाते हैं : आप का जिस्म नूर - इस वजह से आपका छाया ना था 
( तारीखे हबीबे इलाह सफा 161 प्रकाशित भारत , द्वारा मुफ्ती इनायत अहमद रहमतुल्ला हि अलैह ) 


21 . हज़रत शाह अहमद सईद मुहद्दिस देहलवी सुम्म अल मदनी रहमतुल्ला हि अलैह ( वसाल 1277 हिज़री ) फरमाते हैं :  
छाया आपका का ना था , जिस्मे अतहर आपका नूरी था " ( सईदुल बयान फ़ी मौलिद सय्येदुल इन्स व जान सफा 113 प्रकाशित गोजर नुवाला1982 द्वारा : शाह अहमद सईद रहमतुल्ला हि अलैह ) 


22 . हज़रत शैख़ अब्दुल हक़ मुहदिस देहलवी रहमतुल्ला हि अलैह ( वसाल 1052 हिज़री ) फरमाते हैं : 
आँ हजरत सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम सरे अकदस से पैर मुबारक तक सरासर नूर थे " ( मदरिजुन नुबुव्वा फारसी सफा 137 जिल्द1 ) 


23 . अल्लामा जलाल उद्दीन सियूती अश - शाफ़ई ( वसाल 911 हिज़री ) फरमाते हैं :
 इब्न सबअ ने हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम की व्यक्तित्व के संबंध में कहा कि आपका छाया धुप एवं चांदनी दोनों में इस वजह से ना था 
कि आप सर ता पा ( सरे अकदस से पैर मुबारक तक ) नूर थे । ( खसाइसे  कुबरा सफा 169 प्रकाशित कराची पाकिस्तान 1976 द्वारा : इमाम जलाल उद्दीन सियूती रहमतुल्ला हि अलैह ) मुल्ला अली कारी रहमतुल्लाहि अलैह ( वसाल 1014 हिज़री ) फरमाते हैं 
हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम का दिल मुबारक और शरीर नूर था और सभी नूर इसी नूर से फैजयाब हैं । 


24 . ( शरह शिफ़ा बर हाशिया नसीमुर्रियाज़ सफा 215 जिल्द1 प्रकाशित मुल्तान द्वारा : मुल्ला अली कारी रहमतुल्ला हि अलैह ) काज़ी अयाज़ मालकी उन्दुलिसी अलैहिर रहमाँ ( वसाल 544 हिजरी ) फरमाते हैं : हुजूर सरापा नूर है 


25 . आप सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम के मुबारक जिस्म का छाया ना धूप में होता और ना चाँदनी में क्यूंकि आप नूर थे  ( अश्शिफा अनुवादित सफा 552 जिल्द1  प्रकाशित लाहौर ) मौलाना अब्दुलहई लखनवी रहमतुल्ला हि अलैह फरमाते हैं :  बेशक नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व अस हाबिही व सल्लम जब धूप और चाँदनी में चलते थे तो
 जमीन पर नहीं पड़ता था क्यूंकि छाया कसीफ ( गढ़ा ) होता है और आप की व्यक्तित्व सर से कदम तक नूर है 

( अत्तालीक अल अल अजीब सफा 13 , ब हवाला अल अनवारुल मुहम्मदिया पेज 163 ) 


26. . मुफ्ती शफ़ी देवबंदी का फ़तवा
सवाल : वह हदीस कौन सी है जिस में कि रसूले मकबूल सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व अस हाबिही व सल्लम का छाया जमीन पर स्थित नहीं होता था ?
जवाब : इमाम सियूती ने खसाइसे कुबरा में आँ हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व अस हाबिही व सल्लम का छाया ज़मीन पर स्थित ना होने के बारे में  हदीस नक़ल फरमाई है और " तावारिखे हबीबे इलाह " में इनायत अहमद काकोरवी रहमतुल्ला हि अलैह लिखते हैं कि आप का शरीर नूर इसी वजह से आपका छाया ना था | मौलाना जामी रहमतुल्ला हि अलैह ने आप के छाया ना होने का खूब नुक्ता लिखा है
( अजीजुल फतवा जिल्द 6 सफा 202 , फ़तवा दारुल उलूम देवबंद सफा 163 जिल्द अव्वल प्रकाशित दारुल अशा अत कराची , ) 


जिन उलमा ए उम्मत और मुसन्निफीन ( लेखक ) के अक़वाल व रिवायत पेश किये हैं उनके नाम ये हैं 


(1) हकीम तिरमिज़ी रहमतुल्लाहि अलैह 
(2) हजरत अब्दुल्लाह बिन मुबारक रहमतुल्ला हिअलैह (3) अल्लामा हाफिज़ र ज़ी न रहमतुल्ला हिअलैह  
(4) हाफिज़ इब्ने जौज़ी रहमतुल्ला हिअलैह 
(5) इमाम नस्फी रहमतुल्लाहि अलैह 
(6) इब्न सु बअ रहमतुल्लाहि अलैह
(7) इमाम रागिब अस्फहानी रहमतुल्लाहि अलैह 
(8) इमाम जलालुद्दीन सियूती रहमतुल्लाहि अलैह 
(9) इमामुल ज़मान क़ाज़ी अल एयाज़ रहमतुल्लाहि अलैह (10) अल्लामा इब्ने हजर मक्की रहमतुल्लाहि अलैह 
(11) अल्लामा शहाबुद्दीन खुफ्फाजी रहमतुल्लाहि अलैह 
(12) इमाम अहमद कुस्तुलानी रहमतुल्लाहि अलैह 
(13) काज़ी अयाज़ मालकी उन्दुलिसी रहमतुल्लाहि अलैह (14) साहिबे सीरते शामी रहमतुल्लाहि अलैह 
(15) साहिबे सीरते ह ल बिया रहमतुल्लाहि अलैह  
(16) इमाम जुर्कानी मालकी रहमतुल्लाहि अलैह 
(17) अल्लामा हुसैन इब्ने मुहम्मद दियार रहमतुल्लाहि अलैह

(18) अल्लामा सुलेमान जुमल रहमतुल्लाहि अलैह 

(19) अल्लामा शैख़ मुहम्मद ताहिर रहमतुल्लाहि अलैह  
(20) इमाम तकीउद्दीन सुबकी रहमतुल्ला हि अलैह
(21) इमामुल आरिफीन मौलाना जलालुद्दीन रूमी रहमतुल्लाहि अलैह 
(22) मुल्ला अली कारी रहमतुल्ला हिअलैह 
(23) हज़रत अल्लामा बहरुल उलूम लख नवी रहमतुल्लाहि अलैह 
(24) इमामुल मुहद्दीसीन हज़रत शाह अब्दुल अज़ीज़ 
(25) मुफ्ती इनायत अहमद काकोरवी रहमतुल्लाहि अलैह  

(26) हज़रत शाह अहमद सईद मुहद्दिस देहलवी रहमतुल्लाहि अलैह 
(27) हज़रत शैख़ अब्दुल हक मुहदिस देहलवी रहमतुल्लाहि अलैह 
(28) अल्लामा जलाल उद्दीन सियूती अश - शाफ़ई रहमतुल्ला हि अलैह 
(29) इमामे रब्बानी मुजद्दिद अल्फ ए सानी रहमतुल्ला हि अलैह - 

(30) मौलाना अब्दुलहई लखनवी रहमतुल्ला हि अलैह


इनके इलावा मुखालिफीन ( विरोधियो ) के कुछ मौलवी हैं जिनके नाम और कौल हवाले के साथ बताया जा रहा है आप दिल और दिमाग को हाज़िर करके पढ़े और खुद फैसला करें 


तुम को अपने हुस्न का इहसास नहीं
आइना सामने रख दूं तो पसीना आ जाये

27 . मौलवी अशरफ़अली देवबंदी लिखता है : हमारे हुजुर ( सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम ) सर ता पा नूर थे हुजुर ( सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम ) मैं जुल्मत ( अंधेर ) नाम को भी ना थी इसलिए आप का छाया ना था | ( शुक्रून नि अ म त बि ज़िक्रे रहमतुर्रहमा सफा 31 प्रकाशित कराची )
28.  कारी मुहम्मद तय्येब देवबंदी लिखता है : कि आप ( नबी पाक सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम ) के पवित्र शरीर जमाल मुबारक और हकीकत पाक सब ही में नूरानियत और आकर्षित नज़र आती है | ( आफ़ताबे नुबूवत सफा 49 प्रकाशित लाहौर 1980 ई . ) 
29 . मौलवी आबिद मियां देवबंदी : अपनी लेखन रहमतुल लिल आ ल मीन ( डाभेल ) में लिखता है : आँ हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व अस हाबिही व सल्लम का जिस्म नूरानी था जिस समय आप धूप और चाँदनी रात मैं आमद व रफत ( चलते - फिरते ) फरमाते थे तो बिलकुल छाया जाहिर न होता | ( रहमतुल लिल आ ल मीन सफा 53 प्रकाशित कराची ) इस पुस्तक पर और देवबंदी अकीदे  के उल्मा की मौजूदगी एवं समर्थन दर्ज हैं । 
1. मुफ्ती किफायतुल्ला देहलवी 
2. मौलवी अनवर शाह कश्मीरी 
3. मौलवी असगर हुसैन 
4. मौलवी शब्बीर अहमद उस्मानी 
5. मौलवी हबीबुर्रहमान 
6. मौलवी एअ ज़ाज़ अली 
7. मौलवी अब्दुश्शाकूर लखनवी 
8. मौलवी अहमद सईद ( देवबंदी ) 

क्या इसके बाद भी इस इलज़ाम की गुंजाईश रह जाती है कि जिस्मे मुबारक का छाया ना होने के तसव्वुर आवामी सोच का है । जिस्म मुबारक के छाया ना होने के सम्बन्ध आम मुसलमानों का यह अक़ीदा ( विश्वास ) बे बुनियाद नहीं है | 
इस अकीदा के सही होने के लिए सिर्फ दलाइल ही नहीं है मजीद काबिले इतेमाद हस्तियों के कौल व दलाइल भी हैं | जैल मे उलमा हमारे मुकतदा हैं जिनकी चमकती हुवी इबारत मोतबर ( विश्वसनीय ) किताबों से हम नकल कर चुके हैं 
 खुदा ए कदीर दौरे जदीद के फ़ितनों से सादा लोह मुसलमानों को महफूज़ रखे और ईमान पे मौत नसीब करे आमीन 


पैगामे आला हज़रत अलैहिर्रहमा:-

अल्लाह व रसूल के सच्ची मुहब्बत उनकी ताजीम और उनके दोस्तों की खिदमत और उनकी तकरीम और उनके दुश्मनों से सच्ची अदावत जिस से खुदा और रसूल की शान में अदना तौहीन पाओ फिर वह तुम्हारा कैसा ही प्यारा क्यूँ न हो फ़ौरन उस से जुदा हो जाओ जिस को बारगाहे रिसालत में जरा भी गुस्ताख देखो फिर वह तुम्हारा कैसा ही मुअज्जम क्यूँ न हो , अपने अन्दर से उसे दूध से मक्खी की तरह निकाल कर फेंक दो । ( वसाया शरीफ़ page 3 द्वारा मौलाना हसनैन रज़ा बरेली शरीफ़ )

kya nabi ka saya tha nabi ka saya nahi hai qawwali nabi ka saya dhoondte reh jaoge  kya nabi ka saya nahi tha keya nabi ka saya tha keya nabi ka saya nahi tha
नबी का साया नहीं था infomgm 



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