hazrat ali ki zindagi in hindi

hazrat ali ki zindagi in hindi 

खलीफ़ए चहारुम अमीरुल मोअमिनीन हजरते अली मुर्तजा रदिअल्लाहु अन्हू आप  का नामे नामी अली , कुन्नियत अबुल हसन , अबू तुराब है । 
आप के वालिद हुजूर सरवरे आलम स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम के चचा अबू तालिब हैं । 
आप नौ उम्रों (छोटी उम्र) में सब से पहले इस्लाम लाए । इस्लाम लाने के वक्त आप रदिअल्लाहु अन्हू  की उम्र शरीफ़ क्या थी इस में चन्द अक्वाल हैं : 
एक क़ौल में आप की उम्र (15) पन्दरह साल की , एक में (16) सोलह साल की , एक में (8) आठ साल की , एक में (10) दस साल की । 
अगर्चे उम्र के बाब में चन्द कौल हैं मगर इस क़दर यक़ीनी है कि इब्तिदाए उम्र में बुलूगियत के मुत्तसिल ही आप दौलते ईमान से मुशर्रफ़ हुए । 
आप रदिअल्लाहु अन्हू  ने कभी बुत परस्ती नहीं की जिस तरह कि हज़रते सिद्दीक़ रदिअल्लाहु अन्हू नैन कभी भी बुत परस्ती के साथ मुलव्विस न हुए । 
आप रदिअल्लाहु अन्हू  - अशरए मुबश्शरा में से हैं जिन के लिये जन्नत का वादा दिया गया और इसके अलावा चचा ज़ाद भाई होने के आप रदिअल्लाहु अन्हू  को हुजूरे अकरम ,
नबिय्ये करीम स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम की बारगाह में इज्जते मुवाखात भी है और सय्यिद-ए -निसा-ए-आलमीन ख़ातूने जन्नत हज़रते बतूल ज़हरा रदिअल्लाहु अन्हा  के साथ आप का अक्दे निकाह हुवा । 
hazrat ali ki zindagi in hindi
Hazrat ali dargah photo 
आप साबिक़ीने अव्वलीन और उ - लमाए रब्बानिय्यीन में से हैं । जिस तरह शुजाअत बसालत में आप रदिअल्लाहु अन्हू  का नामे नामी शोहरए आलम है , अरबो अजम बहरो बर में आप रदिअल्लाहु अन्हू  के ज़ोर व कुव्वत के सिक्के बैठे हुए हैं , 


आप रदिअल्लाहु अन्हू  की हैबत व दबदबे से आज भी  जवान मर्दाने शेर दिल कांँप जाते हैं इसी तरह आप रदिअल्लाहु अन्हू  का जोहदो इबादतो रियाज़त अतराफ़ व अकनाफ़े आलम में वज़ीफ़ए ख़ासो आम है ।  


करोड़ों औलिया  आप रदिअल्लाहु अन्हू  के सीनए नूरे गन्जीना से मुस्तफ़ीज़ हैं और आप रदिअल्लाहु अन्हू  के इरशादे हिदायत ने ज़मीन को खुदा परस्तों की इताअत व रियाज़त से भर दिया है । 
खुश बयान फुसहा और मा'रूफ़ खुतबा में आप रदिअल्लाहु अन्हू  बुलन्द पाया हैं । 


जामेईने कुरआने पाक में आप रदिअल्लाहु अन्हू  का नामे नामी नूरानी होने के साथ चमकता है । आप रदिअल्लाहु अन्हू  बनी हाशिम में पहले ख़लीफ़ा हैं और सिबतैन करीमैन हसनैन जमीलैन सईदैन शहीदैन ( इमाम हसन, इमाम हुसैन ) के वालिदे माजिद हैं । 


(सय्यद जादे) सादाते किराम और औलादे रसूल  का सिलसिला परवर दिगारे आलम  ने आप रदिअल्लाहु अन्हू  से जारी फ़रमाया , आप रदिअल्लाहु अन्हू  : जन्गे तबूक के सिवा तमाम मशाहिद में हाज़िर  हुए ।


 जन्गे तबूक के मौक़ पर हुजूरे अकदस स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम ने आप रदिअल्लाहु अन्हू   को मदीना पर ख़लीफ़ा बनाया था और इरशाद फ़रमाया था कि तुम्हें हमारी बारगाह में वोह मर्तबा हासिल है जो हज़रते - मूसा अलैहिस्सलाम की बारगाह में हज़रते हारून अलैहिस्सलाम को 
हुजूरे अकदस स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम ने चन्द मकामों में आप को लिवा ( झन्डा ) अता फ़रमाया । खुसूसन रोजे खैबर के दिन और हुजूर स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम ने खबर दी कि इन के हाथ पर फ़तह होगी । 


आप रदिअल्लाहु अन्हू  ने उस रोज़ किलअए खैबर का दरवाज़ा अपनी पुश्त पर रखा और उस पर मुसलमानों ने चढ़ कर किला को फ़त्ह किया । इस के बा'द लोगों ने उसे खींचना चाहा तो चालीस आदमियों से कम उस को  ना उठा सके । 
जन्गों में आप रदिअल्लाहु अन्हू  के कारनामे बहुत हैं । 


 आप रदिअल्लाहु अन्हू  को अपने नामों में अबू तुराब बहुत प्यारा मा'लूम होता था और इस नाम से आप रदिअल्लाहु अन्हू  बहुत  खुश होते थे । 
इस का सबब यह था कि एक रोज़ आप रदिअल्लाहु अन्हू  मस्जिद शरीफ़ की दीवार के पास लैटे हुए थे  पुश्ते मुबारक को मिट्टी लग गई थी , हुजूरे अकदस स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम  तशरीफ़ लाए और आप की पुश्ते मुबारक से मिट्टी झाड़ कर फ़रमाया ऐ अबु तुराब उठो


येह हुजूर स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम का अता फ़रमाया हुवा ख़िताब आप रदिअल्लाहु अन्हू  को हर नाम से प्यारा मा'लूम होता था और आप रदिअल्लाहु अन्हू  इस नाम से सुल्ताने कौनैन स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम के , लुत्फो करम के मजे लेते थे । 


आप रदिअल्लाहु अन्हू के फ़ज़ाइल व महामिद बहुत ज़्यादा हैं । हज़रते सा'द इब्ने अबी वक्कास रदिअल्लाहु अन्हू से मरवी है कि हुजूरे अकदस स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम ने गजवए तबूक के मौक़ पर हज़रते है अली रदिअल्लाहु अन्हू को मदीनए तय्यिबा में अहले बैत की हिफ़ाज़त के लिये छोड़ा । 


हज़रते मौला अली मुर्तजा रदिअल्लाहु अन्हू ने अर्ज किया : या रसूलल्लाह स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम आप मुझे औरतों और बच्चों में ख़लीफ़ा बनाते हैं । 
हुजूर स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया : क्या है
तुम राजी नहीं हो कि तुम्हें मेरे दरबार में वोह मर्तबत हासिल हो जो हज़रते हारून को दरबारे हज़रते मूसा में थी  बजुज़ इस बात के कि मेरे बाद कोई नबी नहीं आया । 


 हज़रते इब्ने सअद रदिअल्लाहु अन्हू से मरवी है कि हुजूरे अकरम स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम ने रोजे खैबर फ़रमाया कि मैं कल झन्डा है उस शख्स को दूंगा जिस के हाथों पर अल्लाह तआला फ़त्ह फ़रमाएगा । और वोह अल्लाह व रसूल  को महबूब  रखता है और अल्लाह व रसूल  उस को  महबूब रखते हैं । 


इस मुज़दए जांँ फ़िज़ा ने सहाबए किराम  को तमाम शब उम्मीद की साअतें शुमार करने में मसरूफ़ रखा ।  आरजू मन्द दिलों को रात काटनी मुश्किल हो गई और मुजाहिदीन की नींदें  उड़ गई । 


हर दिल आरजू मन्द था कि इस नेअमते उजमा व कुब्रा से बहरा मन्द हो और हर आंख मुन्तज़िर थी कि सुब्ह की रोशनी में सुल्ताने  दारैन फ़त्ह का झंडा किस को अता फ़रमाते हैं । सुब्ह होते ही शब बेदार है तमन्नाई उम्मीदों के ज़ख़ाइर लिये बारगाहे रिसालत में हाज़िर हुए और अदब के साथ देखने लगे कि करीम ज़र्रा परवर का दस्ते रहमत किस सआदत मन्द को सरफ़राज़ फ़रमाता है । 


महबूबे खुदा स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम के लबे मुबारक की जुम्बिश पर अरमान भरी निगाहें कुरबान हो रही थी ।  रहमते आलम स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया : अली इब्ने अबी तालिब कहां हैं ? 
अर्ज किया गया : वोह बीमार हैं , उन की आंखों पर आशोब है । 
बुलाने का हुक्म दिया गया और अली मुर्तजा रदिअल्लाहु अन्हू हाज़िर हुए । हुजूरे अकदस स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम ने है अपने दहन मुबारक के हयात बख़्श लुआब से उन की चश्मे बीमारी का  इलाज फ़रमाया और बरकत की दुआ की , दुआ करना था कि ना दर्द बाक़ी
रहा न खटक न सुर्सी न टपक , आन की आन में ऐसा आराम हुवा कि गोया कभी बीमार न हुए थे । इस के बाद उन को झंडा अता फ़रमाया 
 तिरमिजी व नसाई व इब्ने माजा ने हब्शी बिन जनादा से रिवायत की , हुजूर सय्यिदे आलम स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया : ( अली मुझ से है और मैं अली से ) 


इस से हज़रते अली मुर्तजा रदिअल्लाहु अन्हू का कमाले कुर्बे बारगाहे रिसालत मआब से ज़ाहिर होता है । इमामे मुस्लिम ने हज़रते अली मुर्तजारदिअल्लाहु अन्हू से रिवायत की , 
कि आप ने फ़रमाया कि उस की क़सम कि जिस ने दाने को फाड़ा और इस को रुवैदगी इनायत की और जानों को पैदा किया बेशक मुझे नबिय्ये उम्मी स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम ने बताया कि मुझ से ईमानदार मोहब्बत करेंगे और मुनाफ़िक बुग्ज़ रखेंगे ।


तिरमिजी में हज़रते अबू सईद खुदरी रदिअल्लाहु अन्हू से मरवी है : फ़रमाते हैं कि हमारे नज़दीक अली मुर्तजा रदिअल्लाहु अन्हू से बुग्ज़ रखना मुनाफ़िक की अलामत थी इसी से हम मुनाफ़िक़ को पहचान लेते थे । 


 हाकिम ने हज़रते मौला अली मुर्तजा रदिअल्लाहु अन्हू से रिवायत की , फ़रमाते हैं : मुझे रसूले अकरम स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम ने यमन की 
तरफ़ काज़ी बना कर भेजा , मैं ने अर्ज किया : हुजूर स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम मैं कम उम्र हूं क़ज़ा जानता नहीं , काम किस तरह अन्जाम दे सकूँगा । हुजूर स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम ने अपना दस्ते मुबारक मेरे सीने में मार कर दुआ फ़रमाई , परवर दगार की क़सम ! मुआमले के फैसल करने में मुझे शुबा भी तो न हुवा 
 सहाबए किराम हज़रते अमीरुल मोअमिनीन अली मुर्तजा रदि अल्लाहु अन्हू को यक़ज़ा जानते थे । 
सय्यिदे आलम स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम का येह फैज़ है कि हज़रते अमीरुल मोअमिनीन रदि अल्लाहु अन्हू के सीने में दस्ते मुबारक लगाया और वोह इल्मे क़ज़ा में कामिल और इक़रान में फ़ाइक़ हो गए ।
 जिस के हाथ लगाने से सीने उलूम के गन्जीने बन जाएं उस के उलूम का कोई क्या बयान कर सकता है । इब्ने असाकिर ने हज़रते इब्ने अब्बास रदि अल्लाहु अन्हू से रिवायत की , हज़रते अली मुर्तजा रदि अल्लाहु अन्हू के हक़ में बहुत सी आयतें नाज़िल हुई । 
तबरानी व हाकिम ने हज़रते इब्ने मसऊद रदि अल्लाहु अन्हू से रिवायत की , कि हुजूर सय्यिदे आलम स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया : अली मुर्तजा रदि अल्लाहु अन्हू को देखना इबादत है । 


अबू या'ला व बज्जार ने हज़रते सअ'द बिन अबी वक्कास रदि अल्लाहु अन्हू से रिवायत की , कि हुजूर स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम  ने फ़रमाया : जिस ने अली रदि अल्लाहु अन्हू को ईज़ा दी उस ने मुझे ईज़ा दी 


 बज्जार और अबू याअला और हाकिम ने हज़रते अमीरुल  मोअमिनीन अली मुर्तजा रदि अल्लाहु अन्हू से रिवायत की , आप ने फ़रमाया कि मुझ से हुजूरे अकदस स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम   ने फ़रमाया कि तुम्हें हज़रते ईसा अलैहिस्सलाम से एक मुनासबत है 


उन से  यहूदी ने यहाँ तक बुग्ज़ किया कि उन ( हज़रते ईसा अलैहिस्सलाम की वालिदए माजिदा पर तोहमत लगाई । नसारा महब्बत में ऐसे हद से - गुज़रे कि उन की खुदाई के मुअतकिद हो गए । 
होशियार हो जाओ मेरे हक़ में भी दो गिरोह हलाक होंगे एक मुहिब्बे मुफ़रित जो मुझे मेरे मर्तबे  बढ़ाए और हद से तजावुज़ करे , दूसरा मुबगिज़ जो अदावत में मुझ पर बोहतान बांधे । 
 हज़रते अमीरुल मोअमिनीन अली  रदि अल्लाहु अन्हू  के इस इरशाद से मालूम हुवा कि राफ़िज़ी व ख़ारिजी दोनों गुमराह हैं और  हलाकत की राह चलते हैं , तरीके क़वीम और सिराते मुस्तकीम पर अहले सुन्नत हैं जो महब्बत भी रखते हैं और हद से तजावुज़ भी नहीं करते ।  


 बैअत व शहादत 

इब्ने सअद के कौल पर हज़रते अमीरुल मोअमिनीन उस्माने गनी रदि अल्लाहु अन्हू की शहादत के दूसरे रोज़ अमीरुल मोअमिनीन अली मुर्तजा रदि अल्लाहु अन्हू के दस्ते मुबारक पर मदीनए तय्यिबा में तमाम सहाबा किराम ने जो वहाँ मौजूद थे बैअत की । 
सन 36 हिजरी में जन्गे जमल का वाकिआ पेश आया और सफ़र सन  37 हिजरी में जन्गे  सिफ्फीन हुई जो एक सुलह पर ख़त्म हुई और हज़रते अली मुर्तजा । रदि अल्लाहु अन्हू ने कूफ़ा की तरफ़ मुराजअत फ़रमाई और उस वक्त खवारिज ने सरकशी शुरू की और लश्कर जमअ कर के चढ़ाई की ।


 हज़रते अमीरुल मोअमिनीन रदि अल्लाहु अन्हू ने हज़रते इब्ने अब्बास रदि अल्लाहु अन्हू , को उन के मुकाबले के लिये भेजा , आप रदि अल्लाहु अन्हू उन पर गालिब आए और उन में से कौमे कसीर वापस हुई और एक कौम साबित रही और उन्हों ने निहरवान की तरफ़ जा कर राहज़नी शुरू की । 
हज़रते अमीरुल मोअमिनीन रदि अल्लाहु अन्हू इस फ़ितने की । मुदाफ़अत के लिये उन की तरफ़ रवाना हुए  सन 38 हिजरी में आप ने उन को निहरवान में क़त्ल किया ।


 इन्हीं में जिस्सदया को भी क़त्ल किया जिस के खुरूज की ख़बर हुजूरे अकदस स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम ने दी थी , ख़वारिज में से एक ना मुराद अब्दुर्रहमान बिन मुलजिम मुरादी था 
उस ने बर्क बिन अब्दुल्लाह तमीमी ख़ारिजी और अम्र बिन बकीर तमीमी  खारिजी को मक्कए मुकर्रमा में जमा कर के हज़रते अमीरुल मोअमिनीन अली मुर्तजा और हज़रते मुआविया बिन अबी सुफियान और हज़रते अम्र बिन आस ( रदि अल्लाहु अन्हुम ) के कत्ल का मुआहदा किया और हज़रते अमीरुल मोअमिनीन अली मुर्तज़ा रदि अल्लाहु अन्हू के क़त्ल के लिये र इब्ने मुलजिम आमादा हुवा और एक तारीख़ मुअय्यन कर ली गई ।


 मुस्तदरक में सुदी से मन्कूल है कि अब्दुर्रहमान बिन मुलजिम एक ख़ारिजी औरत किताम नामी पर आशिक था । उस नाशाद की शादी का महर तीन हज़ार दिरहम और हज़रते अली रदि अल्लाहु अन्हू को क़त्ल करना करार पाया    
 अब इब्ने मुलजिम कूफ़ा पहुंँचा और वहाँ के ख़वारिज से मिला और उन्हें दर पर्दा अपने नापाक इरादे की इत्तिलाअ दी , खवारिज उस के साथ मुत्तफ़िक हुए 


शबे जुमुआ 17 रमजानुल मुबारक सन 40 हिजरी  को अमीरुल मोअमिनीन हज़रते मौला अली मुर्तजा रदि अल्लाहु अन्हू सेहरी के वक्त बेदार हुए , उस रमज़ान में आप रदि अल्लाहु अन्हू का येह दस्तूर था कि एक शब हज़रते इमामे हुसैन रदि अल्लाहु अन्हू के पास , एक शब हज़रते इमामे हसन रदि अल्लाहु अन्हू के पास , एक शब हज़रते अब्दुल्लाह बिन जा'फ़र रदि अल्लाहु अन्हू के पास इफ्तार फ़रमाते और तीन लुक्मों से ज़ियादा तनावुल न फ़रमाते थे कि मुझे येह अच्छा मा'लूम होता है कि अल्लाह • तआला से मिलने के वक़्त मेरा पेट ख़ाली हो ।
 आज की शब तो येह हालत रही कि बार बार मकान से बाहर तशरीफ़ लाए और आसमान की तरफ़ नज़र फ़रमाते और फ़रमाते कि बा खुदा ! 
मुझे कोई खबर झूटी नहीं दी गई यह वही रात है जिस का वादा दिया गया है । 


सुबह को जब बेदार हुए तो अपने फ़रज़न्दे अरजुमन्द अमीरुल मोअमिनीन इमामे हसन रदि अल्लाहु अन्हू से फ़रमाया : आज शब मैं ने है हबीब अकरम स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम की ज़ियारत की और अर्ज़ किया : है या रसूलल्लाह स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम मैं ने आप स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम की  उम्मत से आराम न पाया 


 फ़रमाया : इन्हें बद दुआ करो मैं ने दुआ की , कि या रब मुझे इन के इवज़ इन से बेहतर अता फ़रमा और । इन्हें मेरी जगह इन के हक में बुरा दे । और फज्र की नमाज के वक्त आप जामे शहादत नोश फरमायें आपकी जनाजे की नमाज हजरत इमामे हसन ने पढाई 



अली इब्न अबी तालिब

इस्लाम के चौथे खलीफा और  इस्लाम के पहले इमाम
अली इब्ने अबी तालिब (अरबी : علی ابن ابی طالب) का जन्‍म 17 मार्च 600 (13 रज्जब 24 हिजरी पूर्व) मुसलमानों के तीर्थ स्थल काबा के अन्दर हुआ था। वे पैगम्बर मुहम्मद (स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम ) के चचाजाद भाई और दामाद थे और उनका चर्चित नाम हज़रत अली है।वे मुसलमानों के ख़लीफ़ा के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने 656 से 661 तक  ख़िलाफ़त के चौथे ख़लीफ़ा के रूप में शासन किया, और  इस्लाम के अनुसार वे 632 से 661 तक पहले इमाम थे। उन्‍होंने वैज्ञानिक जानकारियों को बहुत ही रोचक ढंग से आम आदमी तक पहुँचाया था।

अली इब्न अबी तालिब
Rashidun Caliph Ali ibn Abi Talib - علي بن أبي طالب

शासनावधि - 656–661[1]
पूर्ववर्ती - उस्मान बिन अफ़्फ़ान
उत्तरवर्ती - हसन इब्न अली
 इस्लाम के अनुसार पहले इमाम
उत्तरवर्ती
हसन इब्न अली (2nd Imam)

उत्तरवर्ती
इब्न अली (1st Imam)
जन्म - 15 सितम्बर 601 (13 रजब 21 हिजरी पूर्व in the ancient Arabic calendar)
काबा, मक्का, हिजाज़, अरब महाद्वीप
निधन 29 जनवरी 661 (21 रमज़ान AH 40)
(आयु 59)
कूफ़ा, इराक़, 
समाधि
इमाम अली मस्जिद, नजफ़, इराक़
पत्नियां
फ़ातिमा
उम्मह बिन्त ज़ैनब
उम्म उल-बनीन
लैला बिन्त मसऊद
Asma bint Umays
Khawlah bint Ja'far
Al Sahba' bint Rabi'ah
संतान अली की संतान
अल-हसन
अल-हुसैन
ज़ैनब
उम्म कुलसुम
मोहसिन
मुहम्मद
अब्बास
अब्दुल्ला
हिलाल
मुहम्मद इब्न अबी बक्र(दत्त पुत्र)
पूरा नाम
'अली इब्न अबी तालिब अरबी: علي ابن أبي طالب‎
जनजाति - क़ुरैश (बनू हाशिम)
पिता - अबू तालिब इब्न अब्दुल मुत्तलिब
माता - फ़ातिमा बिन्त असद
धर्म -(610 में)/इस्लाम


हमारे दूसरे पोस्ट के पढने के  लिए नीचे लिस्ट लिन्क कर 
दी गई है 







































































पोस्ट अच्छी लगे तो अपने दोस्तों के साथ शेयर करे और दूसरों की रहनुमाई करें हमारे पोस्ट को दूसरों तक पहुंचाने में शामिल हों और एक बेहतरीन जानकारी देने में हिस्सा लें
अगर आप सभी दोस्तों कों हमारी जानकारी अच्छी लगी हो तो हमारी माली मदद कर सकते हैं जिससे हम और भी अच्छे तरीके से अपने मित्रों के साथ अपनी पोस्ट  साझा करने में खुशी होगी
अगर आप हमारे पोस्ट को पढतें हैं और अगर पढने के बाद समझ में नहीं आये तो कमेन्ट करें हम जरुर उसका जवाब देगें
मदद करने के लिए इस लिंक पर जायें 
                       
Donations 

https://jilanidhanpuri.blogspot.com/p/donations.html?m=1


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ