सुअर का नाम लेने से क्या जुबान नापाक हो जाता है क्या 40 दिन तक उसकी दुआएँ कुबूल नहीं होती
ये था आपका सवाल
इसका जवाब पढेंजवाब
सुअर का नाम लेने से जुबान नापाक नहीं होता वो तो एक जानवर का नाम है चाहे हम उसे उर्दू में खिन्जीर कहें या इंग्लिश में पिग कहें इशारा उसी जानवर के तरफ है अलबत्ता इसे इस्लाम में हराम करार दिया गया है जैसे इसे पालना इसका कारोबार करना इसका गोस्त खरीदना या बेचना या खाना सब हराम है
लेकिन इसका मतलब ये हरगिज नहीं की इसका नाम लेने को हराम करार दिया गया है
ऐसा हरगिज नहीं है ये जहालत का काम है
मै तफ्सील से इसके हवाले से समझाता हूँ बस इसे पूरा पढना आखिर तक
(1) अगर नाम लेना हराम होता तो इसे इसलामी किताबों में कभी भी जिक्र नहीं किया जाता
क्यों कि अगर किताबों में इस का जिक्र लिखा होगा तो उस्ताज और शागिर्द अगर पढेंगें उस्ताज समझायेगा की सुअर खाना हराम है इसका पालना हराम है वगैरह - वगैरह
तो ऐसे मे सारे पढने वाले तालिबे इल्म और पढाने वाले का जबान नापाक हो गया
उन लोग तो दीन का इल्म लेने गये और जबान नापाक कर लिए ऐसा नही है
(2) अब रेफ्रेन्स लो कानूने शरीअत मे इस जानवर का नाम लिखा गया है किस सेक्शन में
हराम जानवरों का बयान में
(3) बहारे शरीअत मे इस जानवर का नाम लिखा गया है किस सेक्शन में
इसमे भी हराम जानवरों का बयान में लिखा है
नोट:- छोटी किताबों का हवाला इसलिये है कि बडी किताबों तक आवाम की रसाई नहीं है क्यों कि वो किताब या तो अरबी में या फारसी में है
(4) इस जानवर के हराम होने का जिक्र हदीसों मे है
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अब अगर इसका नाम लेने से जबान नापाक हो जाता तो नमाजी लोग कभी भी इस आयत को ना पढते
लेकिन अगर कुरान मे इसका जिक्र आ गया तो अब इसे पढने से सवाब मिलेगा
मै दलील देता हूँ इसका
जैसा की हम सब जानते हैं कि इब्लीस अल्लह के बारगाह से मल ऊन करार पाया लेकिन उसका जिक्र अल्लाह करीम ने जब आयात नाजिल फरमायी तो इसका पढना सवाब हो जाता है
कब पढने से सवाब मिलता है
जब कुरआन की आयते करीमा पढी जाये और इस बीच मे वो आयात आये तब पढने मे सवाब होता है बाकी वक्त नहीं ऐसे ही खिन्जीर का मसला है
लेकिन इसका मतलब हरगिज़ ये नहीं है कि बाकि टाइम जबान हराम हो जाये
वल्लाहु आलम बिस्सवाब
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