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Eid ul-fitr prayer
Eid ki namaz ka tarika नमाजे ईद का तरीका यह है कि 

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लाकडाउन में ईद की नमाज घर पर कैसे पढ़ें या अदा करें 

आज के समय का माहौल

आज के present Time  इस कोरोना महामारी मुहलिक वबा बीमारी फैली है जिसमें हुकूमत ने  पाबन्दियां lockdown आइद कर रखी है ।
ऐसे आलम में जो ईद की नमाज जमात बना कर पढ़ सकता है घरों में उनके लिए दुरुस्त और बेहतर है की घरों में जमात बना कर नमाजे ईद पढ़ ले ।

और जिनका मन ना माने की ईद की नमाज सिर्फ और सिर्फ मस्जिद और ईदगाह के आलावा कहीं और नहीं होती है या उसे जायज ना समझते हों तो ऐसे लोगों के लिए नफ्ल नमाज शुक्राने के पढे । क्यों की हुकूमत की पाबंदी है और बाहर निकलना खतरा है । 

पहली बात तो पुलिस का खतरा और दूसरी बात ये बीमारी खुदा ना करे कोई बीमार हो और ज्यादा जमात होने पर वो बीमारी एक दूसरे को लगने का डर है इसलिए ऐसे वक्त में इजाजत है
और बाज लोगों का कहना है कि किताब में दिखाओ की अगर मसला लिखा होगा तो हम भी पढ़ लेंगे उन लोगों के लिए जुमा की नमाज़ शहर वाला मसला से रेफरेंस लिया गया है और उन को कैसे समझाए की यह बीमारी हाल में हो रही है तो किताबों में इसका मसला कैसे लिखा होगा ।

 वो उस जमाने में जो बीमारी फैली थी उस हिसाब से मसायल को लिखा गया है अब कोरोना जैसी बीमारी का मसला अब जो किताबे आइन्दा छपेगी यह मसला का तजकिरा उस में किया जायेगा वल्लाहु आलम बिस्सवाब ।
बाकी सबकि अपनी अपनी मर्ज़ी है बताना अपना काम है। जिस को बुरा लगे वो माफ करे और जो भाई को समझ में आया है वो और लोगों को शेयर करें ताकि उनकी इल्म में इजाफा हो।
और आप लोगों को ईद की मुबारकबाद खुश रहें दूरी बनाए रखें दो गज है जरूरी मास्क है जरूरी। ईद के दिन दूर से ही ईद की मुबारकबाद पेश कर लें मुसाफा और गले मिलने से बचे

खुतबा मसअला : - खुतबए जुमे में शर्त यह है कि 

  1. .वक़्त में हो ।
  2.  नमाज़ से पहले ।
  3. ऐसी जमाअत के सामने हो जो जुमे के लिए शर्त है यअनी कम से कम खतीब के सिवा तीन मर्द हों । 
  4. इतनी आवाज़ से हो कि पास वाले सुन सकें अगर कोई अम्र माने न हो तो अगर ज़वाल से पहले खुतबा पढ़ लिया या नमाज़ के बअद पढ़ा या तन्हा पढ़ा या औरतों बच्चों के सामने पढ़ा तो इन सब सूरतों में जुमा न हुआ ।


और अगर बहरों या सोने वालों के सामने पढ़ा या हाज़िरीन दूर हैं कि सुनते नहीं या मुसाफ़िर बीमारों के सामने पढ़ा या जो आकिल बालिग मर्द हैं तो हो जायेगा । ( दुर्रे मुख्तार )

मसला : - खुतबा ज़िक्र इलाही का नाम है अगचें सिर्फ एक बार ' अलहम्दुलिल्लाह या सुब्हानल्लाह'या लाइला - ह - इल्लल्लाह ' कहा इसी कद्र से फर्ज़ अदा हो गया मगर इतने ही पर इक्तिफा करना मकरूह है । ( दुर्रे मुखतार वगैरा )

जुमा में खुत्बा पढ़ना फर्ज है और ईदैन में सुन्नत है बहारे शरीअत हिस्सा 4

शहर में जुमा के दिन ज़ोहर पढ़ने के मसाइल 

मसअला जिस पर जुमा फ़र्ज़ है उसे शहर में जुमा हो जाने से पहले ज़ोहर पढ़ना मकरूहे तहरीमी है बल्कि इमाम इब्ने हुमाम रदियल्लाहु तआला अन्हु ने फ़रमाया हराम है और पढ़ लिया जब भी जुमे के लिए जाना फ़र्ज़ है ।
और जुमा हो जाने के बाद ज़ोहर पढ़ने में कराहत नहीं बल्कि अब तो ज़ोहर ही पढ़ना फ़र्ज़ है अगर जुमा दूसरी जगह न मिल सके मगर जुमा तर्क करने का गुनाह उसके सर रहा । ( दुर्रे , मुख्तार , रद्दुल मुहतार ,बहारे शरीअत हिस्सा 4)

Eid ul fitr namaz ki niyat, Eid ki niyat ईद की नमाज़ की नियत

नियत इस तरह करें :-

नियत की मै दो रकात नमाज ईदुल फित्र की वाजिब मअ जाइद छः तकबीर के मुंह मेरा काबा शरीफ़ के पीछे इस इमाम के अल्लाहु अकबर।

दो रकअत वाजिब ईदुल फित्र की नियत करके कानों तक हाथ उठाये और ' अल्लाहु अकबर ' कह कर हाथ बाँध ले फिर सना पढ़े 


फिर कानों तक हाथ उठाये और ' अल्लाहु अकबर कहता हुआ हाथ छोड़ दे फिर हाथ उठाये और ' अल्लाहु अकबर कहकर हाथ छोड़दे फिर हाथ उठाये और अल्लाह हुअकबर कह कर हाथ बाँध ले यअनी पहली तकबीर में हाथ बाँधे उसके बद दो तकबीरों में हाथ लटकाये 


फिर चौथी तकबीर में बाँध ले इसको यूँ याद रखें कि जहाँ तकबीर के बाद कुछ पढ़ना है वहाँ हाथ बाँध लिये जायें और जहाँ पढ़ना नहीं वहाँ हाथ छोड़ दिये जायें फिर इमाम ' अऊजुबिल्लाह और बिस्मिल्लाह आहिस्ता पढ़कर जहर ( यअनी बलन्द आवाज ) के साथ सूरए फातिहा और सूरत पढ़े


 फिर रूकूअ करे और दुसरी रकात में पहले सूरए फातिहा और सूरत पढ़े फिर तीन बार कान तक हाथ ले जाकर ' अल्लाहु अकबर ' कहे और हाथ न बाँधे और चौथी बार बगैर हाथ उठाये ' अल्लाहु अकबर ' कहता हुआ रूकूअ में जाये इस से मालूम हो गया कि ईदैन में ज़ाइद तकबीरें छह (6) हुई तीन पहली में किरात से पहले और तकबीरे तहरीमा के बाद और तीन दूसरी में किरात के बाद और तकबीरे रूकू से पहले और इन सभी छः तकबीरों में हाथ उठाये जायेंगे और हर दो तकबीरों के दरमियान तीन तस्वीह की कद्र ठहरे । ( दुर्रे मुख्तार वगैरा ,बहारे शरीअत हिस्सा 4)


हदीस एक बार बारिश हुई तो मस्जिद में हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने ईद की नमाज़ पढ़ी ।
 हदीस : सहीहैन में इब्ने अब्बास रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से रावी कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने ईद की नमाज़ दो रकअत पढ़ी न इसके कब्ल नमाज़ पढ़ी न बाद ।

मसाइले फिक्हिय्या 

Eid ki namaz kya hai ईद की नमाज़ क्या है।

ईदैन की नमाज़ वाजिब है मगर सब पर नहीं बल्कि उन्हीं पर जिन पर जुमा वाजिब है और इसकी अदा की वही शर्ते हैं जो जुमे के लिए हैं ।
सिर्फ इतना फर्क है कि जुमे में खुतबा शर्त है और ईदैन में सुन्नत अगर जुमे में खुतबा न पढ़ा तो , जुमा न हुआ और इसमें न पढ़ा तो नमाज़ हो गई मगर बुरा किया । 


दूसरा फर्क यह है कि जुमे का खुतबा नमाज़ से पहले है और ईदैन का नमाज के बाद अगर पहले पढ़ लिया तो बुरा किया मगर नमाज़ हो गई लौटाई नहीं जायेगी और खुतबे को भी नहीं दोहराया जायेगा ।
और ईदैन में न ' अज़ान है न इकामत सिर्फ दो बार इतना कहने की इजाज़त है ' अस्सलातु जामिअह ' ( आलमगीरी , दुरै मुलतार वगैरहुमा ) बिला वजह ईद की नमाज छोड़ना गुमराही व बुरी बिदअत है ।

मसअला :- ईद के दिन यह काम करना मुस्तहब हैं ।.

  1. हजामत बनवाना ।
  2. नाखून तरशवाना ।
  3. गुस्ल करना ।
  4. मिस्वाक करना ।
  5. अच्छे कपड़े पहनना नया हो तो नया वरना धुला हुआ।  
  6. अँगूठी पहनना ।
  7. खुश्बू लगाना ।
  8. सुबह की नमाज़ मस्जिदे मुहल्ला में पढ़ना ।
  9. ईदगाह जल्द जाना ।
  10. नमाज़ से पहले सदकए फित्र अदा करना । 
  11. ईदगाह को पैदल जाना । 
  12. दूसरे रास्ते से वापस आना । 
  13. नमाज़ कों जाने से पहले चन्द खजूर खा लेना तीन , पाँच सात या कम या ज्यादा मगर ताक ( बे जोड़ ) हों , खजूरे न हों तो कोई मीठी चीज़ खा ले नमाज़ से पहले कुछ न खाया तो गुनहगार न हुआ मगर इशा तक न खाया तो इताब किया जायेगा ।  
Eid ul-fitr prayer eid ul fitr namaz ki niyat
Eid ul-fitr prayer eid ul fitr namaz ki niyat 

Eidain ka bayan ईदैन का बयान 

अल्लाह तआला फरमाता है : 
वलि तुकमिलुल इद्दता वलि तुकब्बिरुल्लाहा अला मा हदाकुम । 
وَلِتُكْمِلُوا الْعِدَّةَ وَلِتُكَبِّرُوا اللَّهَ عَلَى مَا هَدَاكُمْ وَلَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ

तर्जमा : - रोज़ों की गिनती पूरी करो और अल्लाह की बड़ाई बोलो कि उसने तुम्हें हिदायत फरमाई और फरमाता है । 
फस्वल्ली लिरब्बिका वनहर ।
فَصَلِّ لِرَبِّكَ وَٱنْحَرْ

तर्जुमा : - अपने रब के लिए नमाज़ पढ़ और कुर्बानी कर । 
हदीस नम्बर .1 :- इने माजा अबू उमामा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं जो ईदैन की रातों में कियाम करे उसका दिल न मरेगा जिस दिन लोगों के दिल मरेंगे । 

हदीस नम्बर .2 : - अस्बहानी ने हज़रत मआज इब्ने जबल रदियल्लाहु तआला अन्हुम से रावी है कि फरमाते हैं जो (5) पाँच रातों में शब बेदारी करे उसके लिए जन्नत . वाजिब है ज़िलहिज्जा की आठवीं , नवीं , दसवीं , रातें और ईदुलफित्र की रात और शाबान की पन्द्रहवीं यअनी शबे बरात । 

हदीस नम्बर .3 : - अबू दाऊद ने हज़रत अनस रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी है कि हुजूर ए अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जब मदीने में तशरीफ लाये उस ज़माने में अहले मदीना साल में दो दिन खुशी करते थे मेहरगान ( पतझड़ का मौसम ) व नैरोज़ फरमाया यह क्या दिन हैं लोगों ने अर्ज़ किया जाहिलियत में हम इन दिनों में खुशी करते थे । 
फरमाया अल्लाह तआला ने उनके बदले में इन से बेहतर दो दिन तुम्हें दिये ईदुल अज़हा और ईदुल फित्र का दिन । 

हदीस नम्बर .4 और 5 : - तिर्मिज़ी व इब्ने माजा व दारमी  हज़रत बुरीदा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी हैं कि हुजूरे अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ईदुल फित्र के दिन कुछ खाकर नमाज़ के लिए तशरीफ ले जाते ।
और ईदुल अज़हा को ना खाते जब तक नमाज़ ना पढ़ लेते और बुखारी शरीफ की रिवायत में हज़रत अनस रदियल्लाहु तआला अन्हु से कि ईदुल फित्र के दिन तशरीफ न ले जाते जब तक चन्द खजूर ना तनावुल फरमा लेते और खजूरें ताक ( बेजोड़ ) होती यानी तीन ; पाँच , सात वगैरा । 

हदीस नम्बर .6 : - तिर्मिज़ी व दारमी ने अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की कि ईद को एक रास्ते से तशरीफ़ ले जाते और दूसरे से वापस होते । 

हदीस नम्बर .7 : - अबू दाऊद व इने माजा की रिवायत उन्हीं से है कि एक मर्तबा ईद के दिन बारिश हुई तो मस्जिद में हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने ईद की नमाज़ पढ़ी । 

हदीस नम्बर .8 : - सहीहैन में हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से रावी हैं कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने ईद की नमाज़ दो रकात पढ़ी ना इसके कब्ल नमाज़ पढ़ी ना बाद में । 

हदीस नम्बर .9 :- सही मुस्लिम शरीफ में है की हजरत जाबिर इब्ने समुरा रदियल्लाहु तआला अन्हु कहते हैं मैंने हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के साथ ईद की नमाज़ पढ़ी एक दो मर्तबा नहीं ( बल्कि बारहा ) न अज़ान हुई न इकामत । 

Masaile fikhiya eidain ki namaz मसाइले फ़िहिय्या ईदैन की नमाज़ 


ईदैन की नमाज़ वाजिब है मगर सब पर नहीं बल्कि उन्हीं पर जिन पर जुमा वाजिब है और इसकी अदा की वही शर्ते हैं जो जुमे के लिए हैं सिर्फ इतना फर्क है कि जुमे में खुतबा शर्त है और ईदैन में सुन्नत अगर जुमे में खुतबा न पढ़ा तो , जुमा न हुआ और इसमें न पढ़ा तो नमाज़ हो गई मगर बुरा किया ।

 दूसरा फर्क यह है कि जुमे का खुतबा नमाज़ से पहले है और ईदैन का नमाज़ के बाद अगर पहले पढ़ लिया तो बुरा किया मगर नमाज़ हो गई लौटाई नहीं जायेगी और खुतबे को भी नहीं दोहराया जायेगा और ईदैन में ना अज़ान है न इकामत सिर्फ दो बार इतना कहने की इजाजत है ' अस्सलातु जामिअह ( आलमगीरी , दुर्रे मुख्तार वगैरहुमा ) 

मसअला :- बिला वजह ईद की नमाज छोड़ना गुमराही व बुरी बिदअत है । 

मसअला :- गाँव में ईदैन की नमाज़ पढ़ना मकरूहे तहरीमी है । ( दुर्रे मुखतार ) 

मसअला : - ईद के दिन यह उमूर ( काम ) मुस्तहब हैं । 
1.हजामत बनवाना ।
2.नाखून तरशवाना ।
3. गुस्ल करना ।
4. मिस्वाक करना ।
5. अच्छे कपड़े पहनना नया हो तो नया वरना धुला हुआ । 
6. अंगूठी पहनना ।
7. खुश्बू लगाना ।
8. सुबह की नमाज़ मस्जिदे मुहल्ला में पढ़ना ।
9.ईदगाह जल्द जाना ।
10.नमाज़ से पहले सदकए फित्र अदा करना ।
11. ईदगाह को पैदल जाना ।
12. दूसरे रास्ते से वापस आना ।
13. नमाज़ कों जाने से पहले चन्द खजूरें खा लेना । 

तीन , पाँच सात या कम या ज्यादा मगर ताक ( बे जोड़ ) हों , खजूरे न हों तो कोई मीठी चीज़ खा ले नमाज़ से पहले कुछ न खाय तो गुनहगार न हुआ मगर इशा तक न खाया तो इताब किया जायेगा । ( कुतुबे कसीरह ) 

मसला : - सवारी पर जाने में भी हरज नहीं मगर जिसकों पैदल जाने पर कुदरत हो उसके लिए पैदल जाना अफज़ल है और वापसी में सवारी पर आने में हरज नहीं । ( आलमगीरी जोहरा ) 

मसला : - ईदगाह को नमाज़ के लिए जाना सुन्नत है अगर्चे मस्जिद में गुन्जाइश हो और ईदगाह में मिम्बर बनाने या मिम्बर ले जाने में हरज नहीं । ( दुर्रे मुखतार मअ रदहुल मुहतार वगैरा ) 

मसअला : - खुशी जाहिर करना , कसरत से सदका देना , ईदगाह को इत्मीनान और वकार और नीची निगाह किये जाना , आपस में मुबारक बाद देना मुस्तहब है और रास्ते में बलन्द आवाज़ से तकबीर न कहे । ( दुर्रे मुखतार , रदहुल मुहतार ) 

मसला : - नमाज़े ईद से कब्ल ( पहले ) नफ्ल नमाज़ मुतलकन मकरूह है ईदगाह में हो गया घर उस पर ईद की नमाज वाजिब हो या नहीं यहाँ तक कि औरत अगर चाश्त की नमाज़ घर में पढ़ना चाहे तो नमाज़ हो जाने के बाद पढ़े , और नमाज़े ईद के बाद ईदगाह में नफ्ल पढ़ना मकरूह है ( दुर्रे मुखतार रदहुल मुहतार ) 

मसला : - नमाजे ईद का वक़्त बकद्रे एक नेज़ा आफताब बलन्द होने से ज़हवए कुबरा यानी निस्फुन्नहार शरई तक है मगर ईदुल फित्र में देर करना और ईदुल अज़हा में जल्द पढ़ लेना मुस्तहब है और सलाम फेरने के पहले ज़वाल हो गया तो नमाज़ जाती रही । ( दुर्रे मुख्तार वगैरा ) 

Namaz Eid Ka Tarika नमाजे ईद का तरीका 

नमाज ए ईद का तरीका यह है कि दो रकअत वाजिब ईदुल फित्र या ईदुल अज़हा की नियत करके कानों तक हांथ उठाये और ' अल्लाहु अकबर ' कह कर हाथ बाँध ले ।

फिर सना पढ़े फिर कानों तक हांथ उठाये और ' अल्लाहु अकबर कहता हुआ हाथ छोड़ दे फिर हाथ उठाये और ' अल्लाहु अकबर कहकर हाथ छोड़दे फिर हाथ उठाये और अल्लाहु अकबर कह कर हाथ बाँध ले ।

यानी पहली तकबीर में हाथ बाँधे उसके बद दो तकबीरों में हाथ लटकाये फिर चौथी तकबीर में बाँध ले इसको यूँ याद रखें कि जहाँ तकबीर के बाद कुछ पढ़ना है वहाँ हाथ बाँध लिये जायें और जहाँ पढ़ना नहीं वहाँ हाथ छोड़ दिये जायें ।

फिर इमाम ' अऊजुबिल्लाह और बिस्मिल्लाह ' आहिस्ता पढ़कर जहर ( यानी बलन्द आवाज ) के साथ सूरए फातिहा और सूरत पढ़े फिर रूकू करे और दुसरी रकात में पहले सूरए फातिहा और सूरत पढ़े फिर तीन बार कान तक हाथ ले जाकर ' अल्लाहु अकबर कहे और हाथ न बाँधे और चौथी बार बगैर हाथ उठाये ' अल्लाहु अकबर ' कहता हुआ रूकूअ में जाये ।

इस से मालूम हो गया कि ईदैन में ज़ाइद तकबीरें छह हुई तीन पहली में किरात से पहले और तकबीरे तहरीमा के बाद और तीन दूसरी में किरात के बाद और तकबीरे रूकूअ से पहले और इन सभी (6) छः तकबीरों में हाथ उठाये जायेंगे ।

और हर (2) दो तकबीरों के दरमियान तीन तस्बीह की कद्र ठहरे और ईदैन में मुस्तहब यह है कि पहली में ' सूरए जुमा ' दूसरी में सूरए मुनाफिकून ' पढ़े या पहली में ' सूरए अअला ' और दूसरी में ' सूरए गाशिया पढ़ें या जो याद हो वही पढ़ लें । ( दुर्रे मुख्तार वगैरा ) 

मसअला : - इमाम ने छह तकबीरों से ज़्यादा कहीं तो मुकतदी भी इमाम की पैरवी करे मगर तेरह से ज़्यादा में इमाम की पैरवी नहीं । ( रद्दुल मुहतार ) 

मसअला : - पहली रकअत में इमाम के तकबीरें कहने के बअद मुक्तदी शामिल हुआ तो उसी वक़्त तीन से ज़्यादा कही हों और अगर इसने तकबीरें न कहीं कि इमाम रूकू में चला गया . 
तो खड़े खड़े न कहे ।

बल्कि इमाम के साथ रूकूअ में जाये और रूकूअ में तकबीर कह ले और अगर इमाम को रुकूअ में पाया और गालिब गुमान है कि तकबीरें कह कर इमाम को रुकूअ में पा लेगा तो खड़े - खड़े तकबीरें कहे फिर रुकूअ में जाये वरना अल्लाहु अकबर ' कह कर रुकूअ में जाये औ तीन तकबीरें कह ले अगर्चे इमाम ने किरात शुरू कर दी हो और तीन ही कहे ।

अगर्चे इमाम ने रुकू में तकबीरें कहे फिर अगर इसने रुकूअ में तकबीरें पूरी न की थीं कि इमाम ने सर उठा लिया तो बाकी साकित हो गई और अगर इमाम रूकू से उठने के बद शामिल हुआ तो अब तकबीरें न कहे ।

बल्कि जब अपनी पढ़े उस वक्त कहे और रुकूअ में जहाँ तकबीर कहना बताया गया उसमें हाथ न उठाये और अगर दूसरी रकअत में शामिल हुआ तो पहली रकात की तकबीरें अब न कहे बल्कि जब अपनी फौत शुदा ( छूटी हुई ) पढ़ने खड़ा हो उस वक्त कहे और दूसरी रकअत की तकबीरें अगर इमाम के साथ पा जाये तो बेहतर वरना इसमें भी वही तफसील है जो पहली रकअत के बारे में ज़िक्र की गई । ( आलमगीरी , दुर्रे मुखतार )

मसअला : - जो शख्स इमाम के साथ शामिल हुआ फिर सो गया या उसका वुजू जाता रहा अब जो पढ़े तो तकबीरें उतनी कहे जितनी इमाम ने कहीं अगर्चे उसके मज़हब में उतनी न थीं ( आलमगीरी ) 

मसअला : - इमाम तकबीर कहना भूल गया और रुकूअ में चला गया तो कियाम की तरफ न लौटे न रुकूअ में तकबीर कहे । दुर्रे मुखतार ) 

मसअला : - पहली रकाअत में इमाम तकबीरें भूल गया और किरात शुरू कर दी तो किरात के बाद कह ले या रूकूअ में और किरात का इआदा न करे यअनी लौटाये नहीं । ( गुनिया , आलमगीरी ) 

मसअला : - इमाम ने तकबीराते जवाइद ( यानी वह छः तकबीरें जो ईदैन की नमाज़ में ज़्यादा है ) में हाथ न उठाये तो मुकतदी उसकी पैरवी न करें बल्कि हाथ उठायें । ( आलमगीरी वगैरा ) 

मसअला : - नमाज़ के बाद इमाम दो खुतबे पढ़े और खुतबए जुमा में जो चीजें सुन्नत है इसमें भी सुन्नत हैं और जो वहाँ मकरूह यहाँ भी मकरूह सिर्फ दो बातों में फर्क है एक यह कि जुमे के 1 पहले खुतबे से पेश्तर खतीब का बैठना सुन्नत था और इसमें न बैठना सुन्नत है । 

दूसरे यह कि इसमें पहले खुतबे से पेश्तर नौ बार और दूसरे के पहले सात बार और मिम्बर से उतरने के पहले चौदह बार ' अल्लाहु अकबर'कहना सुन्नत है और जुमे में नहीं । ( आलमगीरी , दुर्रे मुखतार ) 

मसअला :- ईदुल फित्र के खुतबे में सदकुए फित्र के अहकाम की तअलीम करे वह पाँच बातें हैं । 
1.किस पर वाजिब है । 
2.किस के लिए वाजिब है ।
3.कब वाजिब है ।
4.कितना वाजिब है . ।
5. और किस चीज से वाजिब है ।
बल्कि मुनासिब यह है कि ईद से पहले जो जुमा पढ़े उसमें भी यह अहकाम बता दिये जायें कि पहले से लोग वाकिफ हो जायें और ईदुल अजहा के खुतबे में कुर्बानी के अहकाम और तकबीराते तशरीक की तालीम की जाये । ( दुर्रे मुख्तार, आलमगीरी ) 

नोट :- तकबीराते तशरीक उन तकबीरों को कहते हैं जो बकरईद के महीने में (9) नौ तारीख की फज्र से (13) तेरह तारीख़ की अस्र तक हर फर्ज नमाज़ के बाद तीन मरतबा कही जाती हैं । 

मसअला : - इमाम ने नमाज़ पढ़ ली और कोई शख्स बाकी रह गया ख्वाह वह शामिल ही न हुआ था या शामिल तो हुआ था मगर इसकी नमाज़ फासिद हो गई तो अगर दूसरी जगह मिल जाये पढ़ ले वरना नहीं पढ़ सकता । 
हाँ बेहतर यह है कि यह शख्स चार रकअत चाश्त की नमाज़ पढ़े (दुर्रे मुखतार ) 

मसअला : -  किसी ' उज्र के सबब ईद के दिन नमाज़ न हो सकी ( मसलन सख्त बारिश हुई या बादल के सबब चाँद नहीं देखा गया और गवाही ऐसे वक़्त गुज़री कि नमाज़ न हो सकी या बादल था और नमाज़ ऐसे वक्त खत्म हुई ।
कि ज़वाल हो चुका था तो दूसरे दिन पढ़ी जाये और दुसरे दिन भी न हुई तो ईदुल फित्र की नमाज़ तीसरे दिन नहीं हो सकती , 
और दूसरे दिन भी नमाज़ का वही वक्त है जो पहले दिन था यानी एक नेजा . 
आफताब बलन्द होने से निसफुन्नहारे शरई तक और बिला उज्र ईदुल फित्र की नमाज़ पहले दिन न पढ़ी तो दूसरे दिन नहीं पढ़ सकते ( आलमगीरी , दुर्रे मुखतार )

 मसअला : - ईद अज़हा तमाम अहकाम में ईदुल फित्र की तरह है सिर्फ बाज़ बातों में फर्क है इसमें मुस्तहब यह है कि नमाज़ से पहले कुछ न खाये अगर्चे कुर्बानी न करे और खा लिया तो कराहत नहीं ।
और रास्ते में बुलन्द आवाज़ से तकबीर कहता जाये और ईद अजहा की नमाज़ उज्र की वजह से बारहवीं तक बिला कराहत मुअख्खर कर सकते हैं ।
यानी बारहवीं तक पढ़ सकते हैं , बारहवीं के बअद फिर नहीं हो सकती और बिला उज्र दसवीं के बाद मकरूह है । ( आलमगीरी वगैरा ) 

मसअला : - कुर्बानी करनी हो मुस्तहब यह है कि पहली से दसवीं ज़िलहिज्जा तक न हजामत बनवाए न नाखुन तरशवाए । ( रद्दुल मुहतार ) 

मसअला : -- अर्फे के दिन यअनी नवीं (9) जिलहिज्जा को लोगों का किसी जगह जमा हो कर हाजियों की तरह वुकूफ करना और ज़िक़्र वा दुआ में मशगूल रहना सही यह है कि कुछ मुजायका ( हरज ) नहीं ।
जब कि लाज़िम व वाजिब न जाने और अगर किसी दूसरी गरज से जमा हुए मसलन नमाजे इस्तिस्का पढ़नी है जब तो बिला इख्तिलाफ जाइज़ है और असलन ( बिल्कुल ) हरज नहीं (दुर्रे मुखतार ) 

मसअला :- ईद की नमाज़ के बाद मुसाफहा व मुआनका यानी गले मिलना जैसा उमूमन मुसलमानों में रिवाज है बेहतर है कि इसमें अपनी खुशी का इजहार है । ( विशाहुलजय्यद ) 

Taqbir e Tashreeq ke masayal तकबीरे तशरीक के मसाइल 

मसअला:- नवीं (9) जिलहिज्जा की फज्र से तेरहवीं (13) की अस्र तक हर नमाजे फर्जे पंजगाना के बाद जो जमाअत मुस्तहब्बा के साथ अदा की गई एक बार तकबीर बलन्द आवाज़ से कहना वाजिब है और तीन बार अफजल , इसे तकबीरे तशरीक कहते हैं वह यह है : ( तनवीरुल अबसार ) 

अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर ला इलाहा इल्लल्लाहु वल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर वलिल लाहिल हम्द ।

 मसअला : - तकबीरे तशरीक सलाम फेरने के बाद फौरन वाजिब है यानी जब तक कोई ऐसा फेअल न किया हो कि उस नमाज़ पर बिना न कर सके । अगर मस्जिद से बाहर हो गया या कस्दन ( जानबुझ कर ) वुजू तोड़ दिया या कलाम किया अगर . सहवन ( भूलकर ) तो तकबीर साकित हो गई और बिला कस्द यानी बिला इरादा वुजू टूट गया तो कह ले । ( दुर्रे मुख्तार , रद्दुल मुहतार ) 

मसला : - तकबीरे तशरीक उस पर वाजिब है जो शहर में मुकीम हो या जिसने उसकी इक्तिदा की अगर्चे औरत या मुसाफिर या गाँव का रहने वाला और अगर उसकी इक्तिदा न करें तो इन पर वाजिब नहीं । ( दुर्रे मुख्तार ) 

 मसला : - नफ्ल पढ़ने वाले ने फर्ज़ वाले की इकितदा की तो इमाम की पैरवी में इस मुकतदी पर भी वाजिब है अगर्चे इमाम के साथ इसने फर्ज़ न पढ़े और मुकीम ने मुसाफिर की इक्तिदा की तो मुकीम पर वाजिब है अगर्चे इमाम पर वाजिब नहीं । ( दुर्रे मुख्तार रद्दुल मुहतार ) 

मसअला : - गुलाम पर तकबीरे तशरीक वाजिब है और औरतों पर वाजिब नहीं अगर्चे जमाअत से नमाज़ पढ़ी । हाँ अगर मर्द के पीछे औरत ने पढ़ी और इमाम ने उसके इमाम होने की नियत की तो औरत पर भी वाजिब है मगर आहिस्ता कहे । यूँ ही जिन लोगों ने बरहना नमाज़ पढ़ी उन पर भी वाजिब नहीं अगर्चे जमाअत करें कि उनकी जमाअत जमाअते मुस्तहब नहीं । दुर्रे मुख्तार मअ रद्दुल मुहतार वगैरहुमा ) 

मसअला : - नफ्ल व सुन्नत व वित्र के बद तकबीर वाजिब नहीं और जुमे के बाद वाजिब है और नमाजे ईद के बाद भी कह ले । ( दुर्रे मुख्तार ) 

मसअला :- मसबूक ( जिसकी शुरू से रकअत छूटे ) व लाहिक ( जिसकी दरमियान से रकअत छूटे ) पर तकबीर वाजिब है मगर खुद सलाम फेरें उस वक्त कहें और अगर इमाम के साथ कह ली तो नमाज फासिद न हुई और नमाज़ खत्म करने के बाद तकबीर का इआदा भी नहीं यानी लौटाना भी नहीं । ( रद्दुल मुहतार ) 

मसअला :- और दिनों में नमाज़ कजा हो गई थी अय्यामे तशरीक में उसकी कज़ा पढ़ी तो तकबीर वाजिब नहीं । यूँ ही इन दिनों की नमाजें और दिनों में पढ़ें जब भी वाजिब नहीं । यूहीं गुजरे हुए साल के अय्यामे तशरीक की कज़ा नमाजें इस साल के अय्यामे तशरीक में पढ़ें जब भी वाजिब नहीं हाँ अगर इसी साल के अय्यामे तशरीक की कज़ा नमाजें इसी साल के इन्हीं दिनों में जमात से पढ़े तो वाजिब है । ( रद्दुल मुहतार ) 

नोट : - वह दिन , जिनमें तकबीरे . तशरीक कही जाती है उन्हें अय्यामे तशरीक कहते हैं ।

 मसला : - मुनफरिद यानी तन्हा नमाज़ पढ़ने वाले पर तकबीर वाजिब नहीं ( जौहरा नय्यिरा ) मगर मुनफरिद भी कह ले कि साहिंबैन के नजदीक इस पर भी वाजिब है ।

 मसअला :- इमाम ने तकबीर ना कही जब भी मुकतदी पर कहना वाजिब है अगर्चे मुक़तदी मुसाफ़िर या देहाती या औरत हो । ( दुर्रे मुखतार ) 

मसअला : - इन तारीख़ों में अगर आम लोग बाज़ारों में एलान के साथ तकबीरें कहें तो उन्हें मना न किया जाये । ( दुर्रे मुख्तार )

Aaj ham janenge ki lockdown me eid ki namaz, lockdown me eid essay in hindi, lockdown me eid, how to pray eid in lockdown janenge

 Eid ul-fitr prayer

 Eid ki namaz ka tarika The way to pray Eid is that


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 how to read or offer eid namaz at home in lockdown

 present time environment


 In today's present time, this corona epidemic has spread the disease in which the government has imposed restrictions and lockdown.

 In such a situation, those who can offer Eid prayers by forming a Jamaat, it is better and better for them to make a Jamaat in their homes and offer Eid prayers.


 And those who do not believe that Eid prayer is not held anywhere other than only mosque and Idgah or do not consider it justified, then for such people read Nafl Namaz Shukran.  Because there is a restriction of the government and there is a danger to exit.


 First thing is the danger of the police and secondly, God should not let this disease if someone is sick and there is a fear of getting that disease to each other if there is more group, so it is allowed in such times.

 And the people say that show in the book that if the issue is written, then we will also read it, for those people the reference has been taken from the city issue and how to explain to them that this disease is happening recently.  How would I write this issue?


 According to the disease that was spread in that era, it has been written to Masail, now the issue of corona-like disease will be published in the books that will be published in the future, Valahu Alam Biswab.

 Everyone else is their own choice, it is your job to tell.  Forgive the one who feels bad and share what brother has understood so that their knowledge increases.

 And happy Eid to you guys, stay happy, keep distance, two yards are necessary, masks are necessary.  On the day of Eid, present Eid greetings from afar, avoid hugging and hugging

 .


 Khutba Masala :- The condition in Khutbay Juma is that

 .Be in time.

 before prayer.

 Be in front of such a Jamaat which is a condition for Jummah, that is, there should be at least three men other than Khateeb.

 It should be loud enough to be heard by those close to it, if someone does not believe in Amr, then if one reads the Khutba before the prayer, or reads it after the prayer, or reads it alone, or if women read it in front of children, then in all these cases there is no Juma.



 And if you read in front of the deaf or those who are sleeping or are far away from hearing or the passengers read in front of the sick or those who are only adult men, then it will happen.  (Durrey Mukhtar)


 Masla: - Khutba zikr is the name of Ilahi, only once said 'Alhamdulillah or Subhanallah' or Laila-ha-Illallah', with this respect the duty has been paid, but to do iqtifah on this is Makrooh . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .  (Durrey Mukhtar etc.)


 It is obligatory to read the Khutba in Juma and Sunnah in Eidain Bahare Shariat part 4

 Time to read Zohar in the city on the day of Zuma

 Maqrooh e Tahrimi is to be recited by the person on whom Zuma is obligatory before Zuma is over in the city, but Imam Ibn Humam radiallahu ta'ala anhu said it is haram and recited whenever it is obligatory to go for Jummah.

 And after the juma is over, there is no moaning in reading the Zohar, but now it is a duty to read the Zohar only if juma cannot be found elsewhere, but the crime of reasoning juma remains on his head. 
 (Durre, Mukhtar, Raddul Muhtar, Bahare Shariat Part 4)

 Eid ul fitr namaz ki niyat, Eid ki niyat Eid prayer schedule

 Set it like this :-


 I decided that I would pray two rak'ats of Eid-ul-Fitr, may Allahu Akbar of this Imam behind my Kaaba Sharif in the mouth of six takbirs.


 Assigning two rak'ahs of obligatory Eid-ul-Fitr, raise your hands up to your ears and say 'Allahu Akbar' and tie your hands and then recite Sana'a.



 Then raise your hands to the ears and drop your hands saying 'Allahu Akbar, then raise your hands and release your hands after saying 'Allahu Akbar, then raise your hands and tie your hands after saying Allahu qbar, that is, tie your hands in the first takbir and then hang your hands in two takbirs.



 Then tie it in the fourth takbir, remember it like this that where there is something to be recited after the takbir, 
the hands should be tied and where there is no reading, the hands should be left, then after reciting the Imam 'Aujubillah and Bismillah slowly, with poison (yaani baland voice) Surah Fatiha  read more surah



 Then do ruku and in the second rakat, first recite surah Fatiha and surah, then say 'Allahu Akbar' by taking your hands up to the ear three times and say 'Allahu Akbar' without tying your hands and for the fourth time without raising your hands, go to Ruku saying 'Allahu Akbar'.  

That in Idain there were six (6) Zaid Takbirs, three in the first before Kirat and Takbire after Tahrimah and three in the second after Kirat and Takbire before Ruku and in all these six Takbirs hands will be raised and three Tasweeh between every two Takbirs  Be valued. 
 (Durre Mukhtar, etc., outside Shariat part 4)



 Hadith: Once it rained, Huzoor sallallaahu 'alayhi wa sallam offered the Eid prayer in the mosque.

 Hadith: Ibn Abbas radiyallahu taala anhuma in Sahihain narrates that Huzur Sallallahu Ta'ala 'alaihi wa sallam offered two rak'ats of Eid prayer, neither after it nor after.

 masail e fikhahiya

 Eid ki namaz kya hai What is Eid prayer?


 Eidain prayer is permissible but not on all but only those on whom Jumah is obligatory and the conditions for its payment are the same as for Jumah.

 The only difference is that Khutba is a condition in Jummah and Sunnah in Eidain, if Khutba is not read in Jummah, then Juma is not performed and if you do not read it, then there is prayer but you have done bad.



 The second difference is that the Khutba of Jummah is before the prayer and if you read it first after the Eid prayer, then you have done the wrong thing but the prayer is done, it will not be returned and the Khutba will not be repeated.

 And in Idain there is neither Azaan or Iqamat, it is permissible to say 'Asalatu Jamiah' 
(Alamgiri, Durai Multar etc.)

 without reason, leaving Eid prayers is a mistake and a bad bidaat.

 Issue:- It is mustahabb to do this work on the day of Eid.

 1.To shave

 2.Get your nails done.

 3.To gulp

 4.To misbehave

 If it is new to wear good clothes, then it is new or else it has been washed.

 wear a ring

 To smell

 Reading the morning prayers in mosques, mohallas.

 Go to Idgah soon.

 Paying Sadaqe Fitr before the prayer.

 Walking to Idgah.

 come back the other way.

 Before going to the prayer, eat a few dates, three, five, seven or more or less but stare, if there are no dates, then eat any sweet thing, 
if you do not eat anything before the prayer, then it is not a sin but if you do not eat it till Isha  It will be done.

 Eid ul-fitr prayer eid ul fitr namaz ki niyat

 Eidain ka bayan Eidain's statement

 Allah Ta'ala says:

 Wali tukmilul iddata wali tukbbirullaha ala ma hadakum.

 وَلِتُكْمِلُوا الْعِدَّةَ وَلِتُكَبِّرُوا اللَّهَ َلَى مَا َدَاكُمْ وَلَعَلَّكُمْ َشْكُرُونَ


 Tarjama: - Complete the number of fasts and praise Allah that He has instructed and directs you.

 Fasvalli Lirbbika Vanhar.

 َصَلِّ لِرَبِّكَ وَٱنْحَر


 Tarjuma: - For your Lord, offer prayers and sacrifices.

 Hadith No.1 :- ibne Maaja Abu Umama radiyallahu taala anhu narrates that Rasulullah sallallaahu ta'ala alaihi wa sallam says that the one who works during the nights of Eid, his heart will not die on the day people's hearts die.


 Hadith No.2 : - Asbahani has narrated from Hazrat Ibn Jabal (Radiyallahu Ta'ala Anhum) that it is said that the one who performs Shabbat in five nights, Paradise for him.  Wajib is the eighth, ninth, tenth, nights of Zilhijjah and the night of Eid-ul-Fitr and the fifteenth Yaani Shabe Barat of Sha'baan.


 Hadith No.3 :- Abu Dawood has narrated from Hazrat Anas radiallahu ta'ala anhu that when Huzoor-e-Aqdas sallallaahu taala alaihi wa sallam brought glory to Medina, in that time, in the first Medina, two days in a year used to be happy, Mehr Nairogan (Pataj)  He said, what a day people have applied, we used to rejoice in these days.

 Said Allah Ta'ala gave you two better days than these in return, the day of Eid-ul-Adha and Eid-ul-Fitr.


 Hadith No.4 and 5: - 'Tirmizi and Ibn Majah and Darmi' are narrated from Hazrat Burida radiallahu ta'ala anhu that Huzoor Akdas Sallallahu Ta'ala Alaihi Wasallam used to eat something on the day of Eid-ul-Fitr and take Tashrif for prayer.

 And do not eat Eid-ul-Adha until the prayers are offered and according to the narration of Bukhari Sharif from Hazrat Anas radiallahu ta'ala anhu that on the day of Eid-ul-Fitr, he would not have taken Tasharif until a few dates were taken and the dates were unmatched, that is, three  ;  Five, seven etc.


 Hadith No.6: - Tirmizi and Darami narrated from Abu Hurairah radiallahu ta'ala anhu that on the occasion of Eid they would have taken Tashreef through one way and returned by another.


 Hadith No.7 : -  The narration of Abu Dawood and Inne Majah is from them that once it rained on the day of Eid, then Huzoor Sallallahu Ta'ala Alaihi Wasallam offered Eid prayers in the mosque.


 Hadith No.8: - In Sahihain it is narrated from Hazrat Ibn Abbas Radiyallahu Ta'ala Anhuma that Huzur Sallallahu Ta'ala Alaihi Wasallam offered the Eid prayer two rak'ats and did not offer the Qabla prayer after it.


 Hadith No. 9 :- It is in the right Muslim Sharif that Hazrat Jabir Ibn Samura radiallahu ta'ala anhu says that I prayed Eid prayer with Huzoor sallallahu alaihi wa sallam, not one or two times (but twelve) there was neither Azan or Iqamat.

 Masaile fikhiya eidain ki namaz Masaile fikhiya eidain prayer


 The prayer of eidain is permissible but not on all but only those on whom Juma is obligatory and the conditions for its payment are the same as for Juma,
 the only difference is that there is a condition of Khutba in Juma and Sunnah in Idain, if Khutba is not read in Juma.  If there is no Zuma and if you do not read it, then there is prayer, but you have done bad things.


 The second difference is that the khutba of Juma is before the prayer and after the prayer of Eidain, if you read it first then you have done the wrong thing but the prayer is done,
 it will not be returned and the Khutba will not be repeated and there is neither azaan or iqamat in eidain only twice.  It is permissible to say so much 'Aslatu Jamiah (Alamgiri, Durre Mukhtar etc.)


 Masla: - Leaving Eid prayers for no reason is misguided and bad bidaat.


 Masla: - It is Makrooh Tahrimi to offer Eid Namaz in the village.  (Durray Mukhtar)


 Masla: - On the day of Eid, it is Umur (work) Mustahab.

 1. Shaving.

 2. Cut the nails.

 3. Ghusl.

 4. Miswak.

 5. Wearing good clothes is new then new or washed.

 6. Wearing a ring.

 7. Fragrance.

 8. Reading the morning prayers in mosques, localities.

 9. Go to Idgah soon.

 10. Paying Saqqay Fitr before the prayer.

 11. Walking to Idgah.

 12. Coming back through another route.

 13. Eat a few dates before going to prayer.


 If you have three, five, seven or more or less but taak (unpaired), if you do not have dates, then eat any sweet thing, if you do not eat anything before the prayer, then if you do not become a criminal but do not eat till Isha, then it will be done.  (Qutabey Kaseerah)


 Masla: - There is no harm in going on a ride, but for those who have a nature to go on foot, it is safe to go on foot and there is no harm in coming on a ride in return.  (Alamgiri Zohra)


 Masla: - Going to Idgah for prayers is Sunnah if there is space in the mosque and there is no harm in making Mimbar or carrying Mimbar to Idgah.  (Durre Mukhtar Ma Radhul Muhtar etc.)


 Masla: -  To express happiness, to give sadqa with exercise, to give leisure to the Idgah and to look down and waqar, it is mustahabb to greet each other and not to say takbir with a loud voice on the way. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .  (Durre Mukhtar, Radhul Muhtar)


 Masla: - Namaze Eid Se Kabl (before) Nafl Namaz Mutlkan Makrooh is done in the Idgah, whether the Eid prayer is obligatory on him or not, even if the woman wants to offer the Chasht prayer at home, then after the prayer is done, and  Reciting Nafl in the Idgah after the Eid prayer is Makrooh (Durre Mukhtar Radhul Muhtar)


 Masla: -  The time of Eid Namaz is Bakdre a Neza Aftab, due to being strong, it is up to Kubra i.e. free of charge, but it is mustahab to delay Eid-ul-Fitr and read it early in Eid-ul-Adha, and if it is Zawal before offering Salaam, then the prayer keeps on going. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . to  (Durrey Mukhtar etc.)


 Namaz Eid Ka Tarika Way of Namaz Eid


 The method of Namaz-e-Eid is to raise one's hand to the ears and say 'Allahu Akbar' after two rak'ahs of Wajib Eid-ul-Fitr or Eid-ul-Adha.


 Then read Sana'a, then raise your hands to the ears and leave your hand saying 'Allahu Akbar, then raise your hand and release your hand saying 'Allahu Akbar, then raise your hand and tie your hand saying Allahu Akbar.


 That is, tie your hands in the first Takbir, then hang your hands in two Takbirs and then tie it in the fourth Takbeer, remembering this: Wherever something is to be recited after the Takbeer, hands should be tied and hands should be left where there is no reading.


 Then the Imam 'Aujubillah and Bismillah' slowly recite Surah Fatiha and Surat with poison (i.e. loud voice), then he should do Ruku and in the second Rakat first recite Surah Fatiha and Surah, and then three times by taking his hand to the ear, say 'Allahu Akbar and not hands.  Tie it and go to Rukua for the fourth time without raising your hand saying 'Allahu Akbar'.


 It is known from this that in Idain there are six Za'aid Takbirs, three in the first before Kirat and after Takbire Tahrima and three in the second after Kirat and Takbire before Rukua and in all these (6) six Takbirs hands will be raised.


 And between every two takbirs, three Tasbeeh should be respected and the mustahab in Eidain is to read 'Surah Juma' in the second, Surah Munafikoon in the second or 'Surah Aala' in the first and 'Surae Ghashiya in the second or recite whatever is remembered.  Yes, read that.  (Durrey Mukhtar etc.)


 Masla: - The Imam should defend the Imam in more than six takbirs, but in more than thirteen he should not advocate for the Imam.  (Radul Muhtar)


 Masala: - In the first rak'ah, after saying the Imam's takbirs, then the muktadi is included, then at the same time more than three are said and if he does not say the takbirs the imam has gone to ruku.

 So don't say standing.


 Rather, go with the Imam in Rukua and say Takbeer in Rukua and if he finds the Imam in Rukua and Ghalib believes that by saying Takbeer he will find the Imam in Rukua, then while standing and saying Takbeer,
 then go to Rukua or else by saying 'Allahu Akbar'.  
Go to Rukua and say three takbirs if the Imam has started kirat and says only three.


 If the Imam said takbirs in Ruku, then if he had not completed the takbirs in Rukua that the Imam raised his head, then the rest became aware and if the Imam joined after getting up from Ruku, then he should not say takbirs now.


 Rather, when you read it at that time and do not raise your hand in the takbeer as told in the rukua, and if you join the second rak'ah, then do not say the takbir of the first rakat, but when you stand up to recite your fathom (missed) say at that time and  It is better if the takbirs of the second rak'ah are found with the imam, otherwise it also has the same details as was mentioned about the first rak'ah.  (Alamgiri, Durre Mukhtar)


 Masla: - The person who joined the Imam, then fell asleep or continued to perform his Wudu, now who reads the takbirs, says as much as the Imam had said if he was not in his religion (Alamgiri)


 Masla: - Imam forgot to say Takbeer and went to Rukua, then did not return to Kiyam or say Takbir in Rukua.  Durre Mukhtar)


 Masla: - In the first rak'ah, the imam forgot the takbir and started the kirat, then say after the kirat or in ruqa'a and don't ask for the kirat, so don't return it . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .  (Gunya, Alamgiri)


 Masla: - If the Imam does not raise his hand in the Takbirate Jawaid (that is, the six Takbirs which are more in the Eid prayer), then do not defend him, but raise his hand.  (alamgiri etc.)


 Masla: - After namaz, Imam read two khutba and the things which are Sunnah in Khutbay Juma also have Sunnah and which Makrooh there also Makrooh here also there is difference in only two things one is that sitting of Peshtar Khatib from 1st Khutb of Juma was Sunnah.  And not sitting in it is Sunnah.


 Secondly, it is Sunnah to say 'Allahu Akbar' nine times from the first Khutba and seven times before the second and fourteen times before descending from Mimbar and not in Juma.  (Alamgiri, Durre Mukhtar)


 Example: - In the khutba of Eid-ul-Fitr, there are five things that Sadkue should teach the duties of Fitr.

 1. Which is justified.

 2.Which is worth it for.

 3. When is justified.

 4. How reasonable.  .

 5. What else is worth it.

 Rather, it is appropriate that even in the Juma read before Eid, these rules should be told that people should know in advance and in the Khutba of Eid-ul-Adha, the rules of sacrifice and Takbirate should be taught.  (Durre Mukhtar, Alamgiri)


 Note: - Takbirate Tashreeq are those Takbirs which are said three times in the month of Bakraid (9) from Fajr on the 9th to (13) Asr on the thirteenth day after every Fard Namaz.


 Masla: -  The Imam has read the prayer and there is no one left, wish he had not attended or had joined but his prayer has failed, then if he is found at another place, he can read it or else he cannot read it. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

 Yes it is better that this person should pray four rak'at chasht 
(Durre Mukhtar)


 Masla: - The prayer could not be performed on the day of Eid because of any 'Ujr' (for example, it rained hard or the moon was not seen due to clouds and the testimony passed at such a time that the prayer could not be performed or it was cloudy and the prayer ended at such a time.

 If the Zawal was done, then it should be recited on the second day and if it is not done on the second day, then the prayer of Eid-ul-Fitr cannot be held on the third day.

 And on the second day also the time of prayer is the same as on the first day i.e. a Neja.

 If Aftab is closed, till Nisfunnahare Sharai and Bila Ujr Eid-ul-Fitr prayer is not offered on the first day, then you cannot read it on the second day
 (Alamgiri, Durre Mukhtar)


 Masla: - Eid Azha is like Eid-ul-Fitr in all the rules, only there is a difference in other things, the mustahab is that one should not eat anything before the prayer, if he does not sacrifice and if he eats it, then he does not moan.

 And on the way, say Takbir with a loud voice and because of the Eid-Adha prayer, you can moan till the twelfth.

 That is, one can study up to the twelfth, it cannot happen again after the twelfth, and after the tenth, Bila Ujra is Makrooh.  (alamgiri etc.)


 Masla: - The sacrifice is to be made, it is necessary that from the first to the tenth district one should neither shave nor get the nails trimmed. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .  (Radul Muhtar)


 Masla: - On the day of 'Arfa'ah, the ninth (9) of the people gathering at some place and performing Wukuf like Hajis and being busy in Zikr or Dua, it is correct that there is no Muzayaka (Haraj).

 Whilst it is not obligatory and obligatory, and if one has to offer prayers, for example, Istishka, when gathered by some other thunderstorm, then Ikhtilaaf is permissible and Aslan (Absolutely) is not Haraj 
(Durre Mukhtar)


 Masla: - After the Eid prayer, it is customary among Muslims to embrace Musafaha and Muanka i.e. hugging, it is better to express their happiness in it.  (Vishahuljayed)


 Taqbir e Tashreeq ke masayal


 Masla: -  Ninth (9) After every prayer from Fajr of Zilhijjah to Asr of thirteenth (13) it is obligatory to say Takbir with loud voice once performed with Jamaat Mustahabba and thrice Afzal, it is called Takbeer Tashreeq.  It is this: (Tanveerul Absar)


 Allahu Akbar Allahu Akbar La Ilaha Illallahu Vallahu Akbar Allahu Akbar Valil Lahil Hamd.

 Masla: - Takbeer is obligatory immediately after performing tashreeq salam, that is, until someone has not done such a failure that he cannot do without that prayer. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .  If he went out of the mosque or if Kasdan (deliberately) broke the wudu or did Kalam.  Sehvan (by forgetting) then Takbeer became aware and Bila Kasd i.e. if the intention of Wudu is broken then say.
  (Durre Mukhtar, Radul Muhtar)


 Masla: -  Takbeer Tashriq is obligatory on him who is a Muqeem in the city or who has done his iqtida if a woman or a traveler or a resident of the village and if he does not do it, then it is not obligatory on him.  
(Durrey Mukhtar)


 Masla: - If the person who reads the nfl performs the iqeedah of the one who performs the duty, then it is also obligatory on this muqtadi in the defense of the imam, if he does not recite the duty with the imam and the mukim does the iqtida to the traveler, it is obligatory on the muqeem if it is not obligatory on the imam.  
(Durre Mukhtar Radul Muhtar)


 Masla: - Takbire Tashriq is obligatory on slaves and not obligatory on women if they pray from Jamaat.  Yes, if the woman reads behind the man and the imam has decided to be her imam, then it is obligatory on the woman too,
 but she should say slowly.  In the same way, it is not obligatory on those who offer Barhna Namaz even if they do Jamaat that their Jamaat is not Jamaat Mustahab.,
(  Durre Mukhtar Ma Radul Muhtar etc.)


 Masla: - Takbeer is not obligatory in case of Nafl and Sunnah and Witr and is obligatory after Jummah and prayers should be said even after Eid.  (Durrey Mukhtar)


 Masla: - Takbeer is obligatory on Masbook (one who skips Rak'at from the beginning) and Lahik (from whose middle Rak'at is skipped) but say Salam yourself at that time and if you say it with Imam, then Namaz is not Fasid and after finishing Namaz, Takbeer is obligatory.  I don't even have the intention of returning it.  (Radul Muhtar)


 Masla: - And in the days when the prayer was done, if you read it in ayyama tashreeq, then the takbeer was not valid. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .  Just read the prayers of these days and in the days whenever it is not obligatory.  Similarly, read the Qaza prayers of the Ayyam Tashreeq of the past year in this year's Ayyam Tashreeq, 
whenever it is not obligatory, yes if the Qaza prayers of the Ayyam Tashreeq of this year are offered from the Jamaat on the same days of this year, then it is obligatory.   (Radul Muhtar)


 Note: - The day in which Takbire.  They are called Tashreeq, they are called Ayyam Tashreeq.


 Masla: -  Takbeer is not obligatory on Munfarid i.e. one who prays alone (Johra Nayyira) but Munfarid should also say that it is also obligatory on him near Sahibbain.


 Masla: - When the Imam did not say the takbir, it is obligatory to say on the muqtadi if the muqtadi is a traveler or a countryman or a woman.
  (Durray Mukhtar)


 Masla: - On these dates, if common people say takbir with announcement in the markets, then they should not be refused.  (Durrey Mukhtar)
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