roza rakhne ki dua roza rakhne ki niyat Ramdan,ramzan,zakat,zaqat ka masla
( 1) जिस ने रमज़ान में किसी मुसलमान भाई की हाजत पूरी की , कयामत में अल्लाह तआला उस की हज़ार हाजतें पूरी करेगा । ( तोहफतुल वाइज़ीन )( 2 ) हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा कहते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं : कब्रों से उठने के वक़्त तीन फिर्कों से फ़रिश्ते मुसाफ़हा करेंगेः एक शहीद , दूसरे रमज़ान में इबादत करने वाले और तीसरे अरफे के दिन रोज़ा रखने वाले । ( जुब्दतुल वाइज़ीन )
( 3 ) कहा गया है कि सौम में तीन हुरूफ हैं : सॉद दलालत करता है नफ़्स की सियानत पर यानी गुनाहों से हिफ़ाज़त , वाव नफ़्स की विलायत पर कि अंगों को इताअत पर लगाए और मीम रोजे की हमेशगी पर मौत के वक्त तक ( समए सनाबिल शरीफ )
( 4 ) नबीये करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः भूखे पेट हंसना पेट भरे रोने से अच्छा है । ( तोहफ्तुल वाइज़ीन )
( 5 ) हदीस शरीफ़ में है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने सफ़र और इकामत में हर माह की 13 , 14 , 15 तारीखों के रोजे तर्क न फरमाते और आप फ़रमाते कि यह रोजे मेरे हैं , जो कोई यह रोज़ रखे , वह दस हज़ार साल की इबादत का सवाब पाएगा । यह रोजे दिलों को मुनव्वर और चेहरों को नूरानी करते हैं । ऐसा रोज़ेदार कल हश्र के दिन जन्नती ऊंटनियों पर सवार होगा और उस का चेहरा चौदहवीं के चाँद से ज़्यादा रौशन होगा । ( सब्ए सनाबिल शरीफ )
( 6 ) किसी ने हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से पूछाः मैं नफ़्ली रोजा किस तरह रखू ? फरमायाः अगर हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम का रोज़ा रखना चाहो तो एक दिन रोज़ा रखो दूसरे दिन खोल दो और अगर उन के बेटे हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम का रोज़ा रखना चाहो तो हर माह के पहले तीन रोजे रखो और अगर ख़ातूने जन्नत हज़रत मरयम रज़ियल्लाहु अन्हा का रोज़ा रखना चाहो तो दो रोज़ रोज़े रखो और एक रोज़ खोल दो ।
और अगर उन के बेटे हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम का रोज़ा रखना चाहो तो हमेशा रोज़ेदार रहो । और अगर रसूले खुदा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का रोज़ा रखना चाहो तो हर माह की 13 , 14 और 15 के रोजे रखो इस लिये कि हदीस में आया है . कि जो शख्स अय्यामे बैज़ का पहला रोज़ा रखता है , उस के तिहाई गुनाह मिटा दिये जाते हैं और जो दो रोज़े रखता है उस के दो तिहाई गुनाह माफ कर दिये जाते हैं और जब वह तीसरे दिन का रोज़ा रखता
है तो वह तमाम गुनाहों से ऐसे पाक हो जाता है जैसा उस दिन माँ के पेट से पैदा हुआ हो । ( सब्ए सनाबिल शरीफ )
( 7 ) शैतान मलऊन का कौल है कि लोगों के आमाल में मुझे सब से ज़्यादा गुस्सा दिलाने वाली दो चीजें हैं : एक अय्यामे बैज़ के रोजे दूसरे नमाज़े चाश्त । ( सबए सनाबिल शरीफ़ )
( 8 ) हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि नबीये करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः अगर किसी को जुमे के दिन का रोज़ा रखना हो तो एक दिन पहले भी रोज़ा रखे या इस के बाद रोज़ा रखे । ( यानी फकत एक रोज़ा रखना मकरूह है । ) ( तोहफतुल वाइज़ीन )
( 9 ) नबीये करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अरफे का रोज़ा मैदाने अरफात में रखने से मना फरमाया है । ( तफसीरे नईमी )
( 10 ) नबीये करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः अगर मेरी उम्मत को यह मालूम हो जाए कि रमज़ान क्या है तो मेरे उम्मती यह तमना करें कि सारा साल रमज़ान ही हो जाए । ( जुब्दतुल वाइज़ीन )
( 11 ) एक रिवायत है कि अल्लाह तआला रमज़ान में अर्श के उठाने वाले फरिश्तों को हुक्म देता है कि अपनी अपनी इबादतें छोड़ कर रोज़ेदारों की दुआओं पर आमीन कहो । ( तोहफ़तुल वाइज़ीन )
( 12 ) जिस साल नबीये करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का विसाल हुआ था उस साल आप ने बीस रोज़ का एतिकाफ फरमाया था । ( बुख़ारी शरीफ )
( 13 ) नफ्ल एतिकाफ यह है कि इन्सान जब भी मस्जिद में आए तो दाएं पा से दाख़िल हो और यह कह लें कि मैं ने एतिकाफ की नियत की । अब जब तक वह मस्जिद में रहेगा , एतिकाफ का सवाब पाएगा । दूसरे मस्जिद में खाना पीना भी जाइज़ हो जाएगा , तीसरे मस्जिद में सो सकेगा , चौथे मस्जिद में दुनिया की बातें कर सकेगा । ( बहारे शरीअत )
( 14 ) शरीअत में इबादत की नियत से मस्जिद में ठहरने का नाम एतिकाफ है । यह बहुत पुरानी इबादत है , पिछले नबियों रसूलों के दीन में भी जारी थी । ( तफसीरे नईमी )
( 15 ) एतिकाफ करने वाला ऐसे भिखारी की तरह है जो ग़नी के दरवाजे पर अड़ कर बैठ जाए और कहे कि मैं तो लेकर ही टलूंगा । ( तफसीरे नईमी )
( 16 ) इमाम शाफई रहमतुल्लाहि अलैहि के नज़दीक रोजे में दोपहर के बाद मिस्वाक करना मम्नूअ और मकरूह है । इमाम अबू हनीफा रहमतुल्लाहि अलैहि के नज़दीक बिला कराहत जाइज़ है बल्कि वुजू की सुन्नत है । ( तफसीरे नईमी )
क्या आप जानते हैं
( 17 ) रोजे नबुब्बत के 15 वें साल यानी दस शव्वाल सन दो हिजरी को फर्ज हुए । पहले सिर्फ एक रोज़ा यानी आशूरे के दिन का फर्ज हुआ था फिर यह मन्सूख़ हो कर चाँद की 13 वी , 14 वीं और 15 वीं तारीख़ों के रोज़े फर्ज हुए ।
फिर यह भी मन्सूख़ होकर माहे रमज़ान के रोजे फर्ज हुए मगर लोगों को इख़्तियार था कि चाहे रोज़ा रखें चाहे फिदिया अदा करें यानी हर रोजे के बदले आधा साअ यानी 175 रुपया अठन्नी भर गेहूँ सदका करें ।
फिर यह इख़्तियार मन्सूख हो कर रोज़े लाज़िम हुए मगर यह पाबन्दी रही कि रात को सोने से पहले जो चाहे खा लो , सोकर कुछ भी नहीं खा सकते ।
फिर सुब्ह तक खाने पीने का इख्तियार दिया गया मगर औरत से हमबिस्तरी फिर भी हराम रही । फिर हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु का वाकिआ पेश आने पर रात में यह भी हलाल कर दिया गया । ( तफसीरे अहमदी )
( 18 ) इन्सानों के तीसरे बादशाह तहमूरस के ज़माने में सख़्त कहत साली हुई तो मालदारों को रोजे का हुक्म दिया गया और उन से कहा गया कि तुम दोपहर का खाना फकीरों को दो ताकि शाम को तुम और वह दोनों खाना खा सकें । ( तफसीरे रूहुल बयान )
( 19 ) नमाज़ सज्दा वगैरा फरिश्ते और दूसरी मखलूक भी अदा करते हैं मगर रोज़ा सिर्फ इन्सानों ही की इबादत है ।. फ़रिश्ते और दूसरी मखलूक बल्कि जिन्नात पर भी रोज़ा फर्ज़ नहीं । ( तफसीरे नईमी )
( 20 ) माहे रमज़ान के कुल चार (4) नाम हैं :
(1) माहे सब्र ,
( 2) माहे मवासात ,
(3) माहे वुसअते रिज्क और
(4) माहे रमज़ान
रमज़ान या तो रहमान की तरह अल्लाह का नाम है । चूंकि इस माह में रात दिन अल्लाह की इबादत होती है इस लिये इसे माहे रमज़ान यानी अल्लाह का महीना कहा जाता है ।
हदीस में आया है कि यह न कहो कि रमज़ान आया और रमज़ान गया बल्कि यूं कहो कि माहे रमज़ान आया और गया ।
या यह रमज़ाउन से मुश्तक है । रमज़ाउन ख़रीफ़ मौसम की बारिश को कहते हैं इस से ज़मीन धुल जाती है और रबीअ की फ़स्ल खूब होती है ।
चूंकि यह महीना भी दिल के गर्द व गुबार को धो देता है और इस से आमाल की खेती हरी भरी रहती है इस लिये इसे रमज़ान कहा गया ।
या यह रमजुन से बना है जिस के मानी है गर्मी या जलना । चूंकि इस ज़माने में मुसलमान भूख और प्यास की शिद्दत बरदाश्त करते हैं या यह गुनाहों को जला डालता है इस लिये इसे रमज़ान कहते हैं । कुछ ने कहा कि जब महीनों के नाम रखे गए तो जो महीना जिस मौसम में पड़ा उस का नाम उसी मुनासिबत से रख दिया गया जो महीना गर्मी में था उस को रमज़ान
का दिया गया । इस महीने का दूसरा नाम माहे सब्र है । रोज़ा सब्र है जिस की जजा रब है। रोजा इसी महीने में रखा जाता है इस लिये इसे माहे सब्र कहा गया मवासात के मानी हैं भलाई करना । चूंकि इस महीने में सारे मुसलमानों से खास कर करीबी रिश्तेदारों से भलाई करना ज़्यादा सवाब का काम है इस लिये इसे माहे मवासात कहते हैं ।
इस में रिज्क की फराखी भी होती है कि गरीब भी नेअमतें खा लेते हैं । इसी लिये इस का नाम माहे वुसअते रिज्क रखा गया । ( तफसीरे नईमी )
( 21 ) रमज़ान में पांच हुरूफ हैं : रे , मीम , जॉद , अलिफ , नूना रे से मुराद है रहमते इलाही , मीम से मुराद है मुहब्बते इलाही , जॉद से मुराद है ज़माने इलाही , अलिफ से मुराद है अमाने इलाही , नून से मुराद है नूरे इलाही । रमज़ान में पांच इबादतें मखसूस हैं : रोज़ा , तरावीह , तिलावते कुरआन , एतिकाफ और शबे कद्र की इबादत ।
जो कोई सच्चे दिल से यह पांच इबादतें अदा करे वह इन पांच इन्आमों का मुस्तहिक है जो रमज़ान के हुरूफ से मन्सूब हैं । ( तोहफतुल वाइज़ीन )
( 22 ) रमज़ान के चाँद में एक मुसलमान की गवाही भी मानी जा सकती है । अगर काज़ी उस की गवाही को न माने तो सिर्फ उस देखने वाले पर ही रोज़ा वाजिब होगा मगर शब्बाल के चाँद में कम से कम दो गवाह ज़रूरी हैं क्योंकि पहले इबादत में दाखिल होना था और यहाँ फर्ज़ से निकलना है और इबादत का सुबूत आसान है । ( तफसीरे नईमी )
( 23 ) अगली शरीअतों में इफ्तार के बाद इशा तक खाना पीना और औरतों से हमबिस्तरी करना हलाल था । नमाजे इशा के बाद यह सब चीजें रात में भी हराम हो जाती थीं ।
इस्लाम के शुरू में भी यही हुक्म रहा । फिर सरमह इब्ने कैस अन्सारी रज़ियल्लाहु अन्हु का वाकिआ पेश आ जाने से सुब्ह तक खाना पीना दुरुस्त हुआ । ( तफसीरे नईमी )
( 24 ) सरमह इब्ने कैस अन्सारी रज़ियल्लाहु अन्हु का वाकिआ यूँ है कि आप बड़े मेहनती इन्सान थे , दिन भर मेहनत करते थे , थक जाते थे ।
एक दिन रोजे की हालत में काम किया , रात को घर आए । बीवी से खाना मांगा , वह पकाने में मसरूफ हुई , यह लेट गए । थके तो थे ही , आँख लग गई ।
जब बीवी ने खाना तय्यार कर लिया और उन्हें बेदार किया तो उन्हों ने खाने से इन्कार कर दिया क्योंकि सोने के बाद खाना हराम हो चुका था । हज़रत सरमह ने उसी हालत में दूसरा रोज़ा रख लिया जिस से बहुत कमज़ोर हो गए । दोपहर को गशी आ गई । इस वाकए के बाद सुब्ह तक खाना पीना हलाल कर
दिया गया । ( ख़ज़ाइनुल इरफान )
( 25 ) जैसे सुब्ह से रोज़ा शुरू कर देना फर्ज़ है , ऐसे ही रात आने पर इफ्तार करना फर्ज है । कुछ सूरतों में खाना पीना शरई फर्ज है । एक जब भूख प्यास की शिद्दत से जान जाने का ख़तरा हो क्योंकि जान की हिफाज़त फर्ज़ है ।
दूसरे , रोज़ा इफ्तार के वक्त कि रोज़े पर रोज़ा रखना हराम है । तीसरे जब किसी को सरकार सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हुक्म दें और हुक्म भी शरई हो , महज़ मशवरा न हो । मरन ब्रत रख कर जान देना या भूख हड़ताल करना सख़्त मना है । ( तफसीरे नईमी )
( 26 ) बीसवीं रमज़ान की अस्त्र से ईद का चाँद देखने तक एतिकाफ़ करना सुन्नते मुअक्कदा अलल किफ़ाया है कि अगर एक बस्ती में एक ने कर लिया तो सब बरी हो गए । ( तफसीरे नईमी )
( 27 ) एतिकाफ में औरतों से हमबिस्तरी करना , लिपटना चिपटना , बोसा वगैरा सब हराम है । ( तफसीरे नईमी )
( 28 ) सुन्नत एतिकाफ की मुद्दत नौ या दस दिन है इस में रोज़ा भी शर्त है । फर्ज़ एतिकाफ नज़्र का एतिकाफ है इस की मुद्दत कम से कम एक दिन है , इस में भी रोज़ा शर्त है । ( बहारे शरीअत , शामी वगैरा )
( 29 ) नफ़्ली रोज़ा भी शुरू कर देने से वाजिब हो जाता है और इस का पूरा करना फर्ज हो जाता है । ( तफ़सीरे नईमी )
( 30 ) रोज़ए विसाल यानी रोज़े पर रोज़ा रखना मना है । हुजूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर यह हुक्म जारी नहीं । आप ने सब से पहले सात दिन का रोज़ा रखा फिर पांच दिन का फिर तीन दिन का ।
जब सहाबए किराम ने भी ऐसा रोज़ा रखना चाहा तो उन्हें मना फरमा दिया और फरमायाः तुम में कौन हम जैसा है ? हमें तो रब खिलाता पिलाता है । ( तफसीरे नईमी )
( 31 ) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः जन्नत में एक नहर का नाम रजब है इस का पानी दुध से ज़्यादा सफेद और शहद से ज़्यादा मीठा है । अल्लाह तआला इस में से उसे पिलाएगा जिस ने रजब में एक दिन का भी रोज़ा रखा होगा । ( तोहफतुल वाइज़ीन )
( 32 ) सरकारे मदीना सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाते हैं : रजब अल्लाह का , शअबान मेरा और रमज़ान मेरी उम्मत का महीना है । ( तफसीरे नईमी )
( 33 ) मशायख ने लिखा है कि शबे कद्र में हर चीज़ सज्दा करती है यहाँ तक कि दरख्त ज़मीन में गिर जाते हैं और फिर अपनी जगह खड़े हो जाते । ( तफसीरे नईमी )
( 34 ) हज़रत दाऊद ताई रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि एक बार मुझे रमज़ान की पहली रात में नींद का ग़लबा हुआ । ख्वाब में मुझे जन्नत दिखाई दी ।
मैं ने अपने आप को जन्नत में याकूत और मोतियों की एक नहर के किनारे बैठा हुआ देखा और वहाँ जन्नत की हूरें नज़र पड़ी जिन के चेहरे सूरज से ज़्यादा चमक रहे थे ।
मैं ने कहा ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर रसूलुल्लाह ।
इस के जवाब में उन्हों ने भी कलिमए शहादत दोहराया और कहा कि हम खुदा की तारीफ करने वालों , रोज़ेदारों और रमज़ान में रुकूअ और सुजूद करने वालों के लिये हैं । ( तोहफतुल वाइज़ीन )
( 35 ) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः जन्नत चार तरह के आदमियों की मुश्ताक है : कुरआने मजीद पढ़ने वालों की , बेहूदा बातों से ज़बान को रोकने वालों की , भूखों को खाना खिलाने वालों की और रमज़ान के रोज़ेदारों की । ( रौनकुल मजालिस , गुल्दस्तए तरीकत )
( 36 ) हदीस शरीफ में है कि जब रमज़ान शरीफ़ का चाँद नज़र आता है तो अर्श , कुर्सी और फरिश्ते बलन्द आवाज़ से कहते हैं : उम्मते मुहम्मदिया को उस बुजुर्गी की बशारत हो जो अल्लाह तआला ने उन के लिये रख छोड़ी है और उन के लिये शैतान को छोड़ कर चाँद , सूरज , सितारे , परिन्दे , मछलियां और हर जानदार रात दिन मगफिरत . मांगता है और पहली तारीख़ की सुबह को अल्लाह तआला एक एक करके सब को बख्श देता है ।
और अल्लाह तआला फरिश्तों को हुक्म देता है कि तुम रमज़ान में अपनी इबादत और तस्बीह का सवाब उम्मते मुहम्मदिया के नाम कर दो । ( तोहफतुल वाइज़ीन )
( 37 ) हज़रत उमर फारूके आज़म रज़ियल्लाहु अन्हु रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से रिवायत करते हैं कि जब रमज़ान में रोज़ेदार नींद से जागता है और बिस्तर पर करवटें बदलता है तो एक फरिश्ता कहता है : खुदा तुझे बरकत दे और तुझ पर रहम करे , उठ खड़ा हो ।
फिर जब वह नमाज़ की नियत से खड़ा हो जाता है तो बिस्तर उसके लिये दुआ करता है और कहता है : इलाही इसे जन्नत के उमदा फर्श इनायत फरमा ।
फिर जब वह कपड़े पहनता है तो वह यह दुआ करता है कि इलाही इसे जन्नत का लिबास अता फरमा ।
जब वह जूते पहनता है तो जूते कहते हैं कि इलाही तू इसे पुले सिरात पर साबित कदम रखा
जब पानी का बरतन लेता है तो वह बरतन यह दुआ करता है कि इलाही तू इसे जन्नत के कूजे अता फरमा ।
जब वजू करता है तो पानी यह दुआ करता है कि इलाही इसे गुनाहों और ख़ताओं से पाक साफ तो घर यह दुआ करता है कि कर दे ।
जब नमाज़ के लिये खड़ा होता
इलाही तू इस की कब्र को फराख़ और लहद को नूरानी कर दे और अपनी रहमत नाज़िल फ़रमा । फिर अल्लाह तआला उस पर रहमत की नज़र फरमाता है और दुआ के वक़्त यह फरमाता है कि ऐ बन्दे तेरी तरफ से दुआए हाजत , हमारी तरफ से कुबुलियत , तेरी तरफ से सवाल हमारी तरफ़ से अता , तेरी तरफ से इस्तिग़फ़ार , हमारी तरफ से बेशुमार मगफिरता ( जुब्दतुल वाइज़ीन )
( 38 ) हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से रमज़ान की फजीलत व बरकत के बारे में सवाल किया गया तो आप ने फ़रमायाः रमज़ान की
1 पहली रात में मोमिन बन्दा अपने गुनाहों से ऐसा पाक हो जाता है जैसे आज माँ के पेट से पैदा हुआ है ।
2 दूसरी रात में उस की और उस के मुसलमान माँ बाप की मगफिरत हो जाती है ।
3 तीसरी रात में फरिश्ता अर्श के नीचे से पुकारता है कि अब नए सिरे से अमल कर क्योंकि तेरे पिछले गुनाह माफ़ हो चुके हैं ।
4 चौथी रात में उसे तौरात , इन्जील , ज़बूर और कुरआने मजीद पढ़ने का सवाब मिलता है ।
5 पांचवीं रात में अल्लाह तआला उसे उस शख़्स का सवाब अता करता है . जिस ने मस्जिदे नबवी , मस्जिदे हराम और मस्जिदे अक्सा में नमाज़ अदा की हो ,
6 छटी रात में बैतुल मअमूर के तवाफ करने वाले की बराबर संवाब मिलता है और तमाम पत्थर और ढेले उस की मगफिरत चाहते हैं ,
7 सातवीं रात में इतना सवाब मिलता है गोया हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से मुलाकात और फ़िरऔन के मुकाबले में उन की मदद की ।
8 आठवीं रात में उसे इतना सवाब मिलता है जितना हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को मिला ।
9 नवीं रात में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इबादत का सवाब मिलता है ,
10 दसवीं रात में दीन दुनिया की बेहतरी इनायत करता है ,
11 ग्यारहवीं रात में दुनिया से इस तरह अलग हो जाता है गोया आज माँ के पेट से पैदा हुआ है ,
12 बारहवीं रात में यह फजीलत मिलती है कि उस का चेहरा कियामत के दिन चौदहवीं के चाँद की तरह रौशन रहेगा ।
13 तेरहवीं रात की बरकत से कियामत में उसे हर तरह की बुराई से अम्न मिलेगा ।
14 चौदहवीं रात की इबादत से फरिश्ते उस की इबादत की गवाही देंगे और अल्लाह तआला कियामत के हिसाब से आज़ाद कर देगा ।
15 वीं रात में फ़रिश्ते और अर्श और कुर्सी उठाने वाले फ़रिश्ते उस पर रहमत भेजते हैं ,
16 सोलहवीं रात में अल्लाह तआला दोज़ख़ से आज़ादी और जन्नत में दाखिल होने का परवाना लिख देता है ,
17 वी रात में नबियों के बराबर सवाब मिलता है ,
18 वीं रात में एक फरिश्ता पुकारता है कि ऐ खुदा के बन्दे तुझ से और तेरे माँ बाप से खुदा रज़ी है ।
19 वीं रात में अल्लाह तआला जन्नतुल फिरदौस में उस के दर्जे बलन्द कर देता है ,
20 बीसवीं रात में शहीदों और नेकों का सवाब मिलता है ,
21 इक्कीसवीं रात में अल्लाह तआला उस के लिये जन्नत में एक महल तय्यार करता है ,
22 वीं रात में यह बरकत हासिल होती है कि वह कियामत के दिन हर तरह के ग़म और अन्देशे से बेख़ौफ रहेगा ।
23 वी रात में अल्लाह तआला उस के लिये जन्नत में एक शहर तय्यार करता है ,
24 वीं रात में चालीस साल की इबादत का सवाब मिलता है ,
25 वीं रात में उस से कब्र का अज़ाब उठा लिया जाता है ,
26 वीं रात में चालीस साल की इबादत का सवाब मिलता है ,
27 वीं रात की फजीलत से वह पुले सिरात पर से कौंदती हुई बिजली की तरह गुज़र जाएगा ,
28 वीं रात में अल्लाह तआला उस के लिये जन्नत में हज़ार दर्जे बलन्द कर देता है ,
29 वीं रात में हज़ार मकबूल हज का सवाब मिलता है ,
30 तीसवीं रात में अल्लाह तआला फरमाता है : ऐ मेरे बन्दे जन्नत के मेवे खा और सलसबील के पानी में नहा और आबे कौसर पी । मैं तेरा रब हूँ और तू मेरा बन्दा । ( नुजहतुल मजालिस )
( 39 ) हज़रत इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः जिस ने रमज़ान के बाद शव्वाल के छ : रोजे रख लिये वह गुनाहों से ऐसा पाक हो जाता है जैसे माँ के पेट से आज ही पैदा हुआ है । ( तोहफतुल वाइज़ीन )
( 40 ) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः जो शख़्स रमज़ान के पूरे रोजे रख कर शव्वाल के छः रोजे रखता है अल्लाह तआला उसे छ : पैग़म्बरों का सवाब देता है जिन में पहले हज़रत आदम हैं , दूसरे हज़रत यूसुफ , तीसरे हज़रत यअकूब , चौथे हज़रत मूसा , पांचवें हज़रत ईसा , छटे हज़रत मुहम्मद , अला नबिय्यिना व अलैहिमुस्सलातो वस्सलामा ( जुब्दतुल वाइज़ीन )
( 41 ) हदीस शरीफ में है कि कियामत के दिन रमज़ान निहायत अच्छी सूरत में हो कर अल्लाह तआला को सज्दा करेगा । वहाँ उसे हुक्म होगाः ऐ रमज़ान , मांग क्या मांगता है और जिस ने तेरा हक अदा किया हो उस का हाथ पकड़ ले ।
रमज़ान अपना हक अदा करने वालों का हाथ पकड़ कर हुजूर में खड़ा हो जाएगा ।
फिर हुक्म होगाः ऐ रमज़ान , तू क्या चाहता है ? रमज़ान अर्ज करेगाः इलाही जिस ने मेरा हक अदा किया है उस के सर पर इज्जत और वकार का ताज रख दे ।
चुनान्चे अल्लाह तआला उसे एक हज़ार ताज अता फरमाएगा और सत्तर हज़ार गुनाहे कबीरा करने वालों की बाबत उस की शफाअत कबूल फ़रमाएगा . और ऐसी एक हज़ार हूरों के साथ उस का निकाह कर देगा जिन में एक एक हूर के आगे सत्तर सत्तर हज़ार लौंडियां होंगी ।
फिर उसे बुराक पर सवार करा के पूछेगाः ऐ रमज़ान , अब तू क्या चाहता है ?
रमज़ान अर्ज करेगाः इलाही इसे अपने पैग़म्बर के पड़ोस में जगह दे । तो अल्लाह तआला उसे फिरदौस में भेज देगा और इरशाद फरमाएगा कि ऐ रमज़ान अब क्या चाहता है ? रमज़ान कहेगाः इलाही तू ने मेरी हाजत तो पूरी कर दी लेकिन इस शख़्स का सवाब , और इज्ज़त किधर है ?
चुनान्चे अल्लाह तआला उसे सुर्ख याकूत और सब्जं ज़ेबरजद के सौ शहर कि हर शहर में एक हज़ार महल होंगे और इनायत करेगा । ( तोहफतुल वाइज़ीन )
( 42 ) रोज़ा रखने की मन्नत मानी तो काम पूरा हो जाने के बाद उस का रखना वाजिब हो गया । ( कानूने शरीअत )
( 43 ) अगर किसी ने नफ्ल रोज़ा रख कर तोड़ दिया तो अब उस की कज़ा वाजिब है । ( कानूने शरीअत )
ZAKAT INFORMATION LIST
Har Malik e nisab par us maal ka saal poora hone par zakat nikalni farz hai
Zaqat kaise nikalna hai uska chart yahan maoujood hai example ke liye mujhe 100 rs. Ka zakat nikalni hai to 100 rs. Ki zaqat 2 rs. 50 paisa nikalega
🔹Rupees. Rs. Paisa
🔹100. 2. 50
🔹200 5. 00
🔹300 7. 50
🔹400. 10. 00
🔹500. 12. 50
🔹600. 15. 00
🔹700. 17. 50
🔹800. 20. 00
🔹900. 22. 50
🔹1000. 25. 00
🔹1500. 37. 50
🔹2000. 50. 00
🔹2500. 62. 50
🔹3000. 75. 00
🔹3500. 87. 50
🔹4000. 100.00
🔹4500. 112. 50
🔹5000. 125. 00
🔹5500. 137. 50
🔹6000. 150. 00
🔹6500. 162. 50
🔹7000. 175. 00
🔹7500. 187. 50
🔹8000. 200. 00
🔹8500. 212. 50
🔹9000. 225. 00
🔹9500. 237. 50
🔹10000. 250. 00
🔹15000. 375. 00
🔹20000. 500. 00
🔹25000. 625. 00
🔹30000. 750. 00
🔹35000. 875. 00
🔹40000. 1000.00
🔹45000. 1125.00
🔹50000. 1250.00
🔹55000. 1375.00
🔹60000. 1500. 00
🔹65000. 1625. 00
🔹70000. 1750. 00
🔹80000. 2000. 00
🔹90000. 2250. 00
🔹1 lakh. 2500. 00
🔹2 lakh. 5000. 00
🔹3 lakh. 7500. 00
🔹4 lakh. 10000.00
🔹5 lakh. 12500.00
🔹6 lakh. 15000.00
🔹7 lakh. 17500.00
🔹8 lakh. 20000.00
🔹9 lakh. 22500.00
🔹10 lakh. 25000.00
🔹20 lakh. 50000.00
🔹30 lakh. 75000.00
🔹40 lakh. 1 lakh.
🔹50 lakh. 1 lakh 25000
🔹1 crore. 2 lakh 50000
🔹2 crore. 5 lakh.
Hamare islamic baatein group me ek bhai ne jaankaari di usi ko ham yahan pesh kar rahe hain zakat ka chart
Please ise aage bhi forward kar de. Taaki Zakat nikalne me sahuliyat hogi muslim bhai aur bahno ko
Ramdan,ramzan,zakat,zaqat
roza rakhne ki dua roza rakhne ki niyat
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