shab-e-meraj the complete story in hindi

shab-e-meraj the complete story in Hindi 

इस साल 1442 सने हिजरी के रजबुल  मुरज्जब की 27 वीं शब हम सब को इबादत करने की तौफीक अता फरमाये , अल्लाह तबारक व तआला का लाख लाख शुक्र कि जिस ने हमें एक मरतबा फिर अजीमुश्शान फ़ज़ाइल व बरकात वाली मुक़द्दस रात नसीब फ़रमाये , 
Shabe meraj The complete story in Hindi
Shabe meraj

यह वो अजीम रात है कि जिस में ख़ालिके  काइनात  ने हमारे आका , हजरत मुहम्मदे मुस्तफा , हबीबे किब्रिया , शबे अस्रा  के दूल्हा हुजूर स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम को एक अज़ीम मो'जिज़ा अता फ़रमाया , 

इस नूरानी रात में क्या क्या वाक़िआत रूनुमा हुवे , क्या क्या अन्वारो तजल्लियात की बारिशें हुई , आज के बयान में मुख़्तसरन पढ़ने की सआदत हासिल करेंगे , 
निहायत ही तवज्जोह और दिलजमई के साथ पढे़ं 
 मेअराज  के दूल्हा हुज़ूर स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम की मुहब्बत दिल में मजीद उजागर होगी । 
 प्यारे आका का अजीम मोअजिजा बिअसते नबवी के बारहवें साल जब कि प्यारे आका , मदीने वाले  मुस्तफ़ा स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम  की उम्र मुबारक इक्कावन '(51)  साल हो चुकी थी
अल्लाह ने अपने महबूब , दानाए गुयूब स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम को मेअराज का अज़ीम मोअ'जिज़ा अता फ़रमाया 
और आप स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम को रात के एक हिस्से में न सिर्फ मस्जिदे हराम से मस्जिदे अक्सा की बल्कि सातों  आस्मानों की भी सैर कराई , इसके इलावा  अल्लाह ने हबीबे मुकर्रम नूरे मुजस्सम स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम को अपने अन्वारो तजल्लियात के मुशाहदात कराए 
और अपने दीदार व हम कलामी से भी सरफ़राज़ फ़रमाया  मेअराज शरीफ़ का येह वाकिआ रजबुल रज्जब की 27 तारीख को पेश आया । 
 सहीह कौल के मुताबिक़ हुजूर सरकारे दो आलम स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम को बिअसत के बारहवें साल या'नी हिजरत से एक (1)  बरस  क़ब्ल , हप्ता या पीर की रात , मशहूर रिवायत के मुताबिक़ सत्ताईस रजबुल  मुरज्जब को रातों रात अल्लाह ने सैर ( या'नी मे'राज ) कराई । 
शबे मेअराज हज़रते सय्यिदुना जिब्राईल अलैहिस सलाम ने नबिय्ये पाक , साहिबे लौलाक स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम के सीनए पुर सकीना को शक फ़रमाया । 
आप के कल्बे अतहर को बाहर निकाला और ज़मज़म शरीफ़ से भरे हुवे सोने के एक थाल में रख कर धोया फिर ( आप स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम के शायाने शान मजीद )  हिक्मत , ईमान और नूरे नबुव्वत उस में भरा और सीनए मुबारक में उसे रख कर सूई से सी दिया । उलमाए किराम  ) फ़रमाते हैं कि रसूले | करीम , रऊफुर्रहीम स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम की उम्र मुबारक में चार मरतबा शक्के  सद्र हुवा और मेअराज शरीफ़ की रात को पेश आने वाला इन में से चौथा था । 
पहली मरतबा आप स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम की विलादते बा सआदत के  वक्त , 
दूसरी बार जब आप स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम की उम्र मुबारक दस बरस थी | 
और तीसरी दफा गारे हिरा में कुरआने मजीद की पहली वही के मौक़ पर । 
मेराज के दुल्हा की सुवारी हज़रते सय्यिदुना अनस बिन मालिक रदिअल्लाहु अन्हू से मरवी है कि 
प्यारे आका , शबे अस्रा के दुल्हा स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया : 
मेरे पास बुराक ( जिस का नाम जारूद था ) लाया गया , जो गधे से बड़ा और खच्चर से छोटा इन्तिहाई सफ़ेद रंग का लम्बे कद वाला चोपाया था  उस का क़दम नज़र की
इन्तिहा पर पड़ता था 
 मैं उस पर सुवार हो कर बैतुल मक्दस तक पहुंचा और जिस जगह अम्बियाए किराम  अपनी सुवारियों को बांधते थे , 
वहां मैं ने उस को बांध दिया , फिर मैं मस्जिदे ( अक्सा ) में |दाखिल हुवा और उस में दो रक्अत नमाज़ अदा की । 
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अम्बियाए किराम  की इमामत 

इस नमाज़ में आप  तमाम अम्बियाए किराम  के इमाम थे ।क्यूंकि  प्यारे आका  की शाने आली के इज़हार के लिये बैतुल मक्दस में तमाम अम्बियाए किराम  को जमा किया गया था जब आप  यहां तशरीफ़ लाए तो इन सब हज़रात ने आप  को देख कर खुश आमदीद कहा 
और नमाज़ के वक्त सब ने आप  को इमामत के लिये आगे किया 
फिर हज़रते जिब्राईल  ने दस्ते मुबारक पकड़ कर आगे बढ़ा दिया और आप  ने तमाम अम्बियाए किराम की इमामत फ़रमाई । 

या'नी बैतुल मुक्द्दस में तमाम अम्बिया व रुसुल  ने आप  को आगे किया , जैसे मखदूम अपने ख़ादिमों के आगे होता है । क्या खूब नमाज़ है कि तमाम अम्बिया व रुसुल  मुक्तदी , हमारे प्यारे आका , इमामुल अम्बिया  इमाम और पहला क़िब्ला जाए नमाज़ है 
यक़ीनन कायेनात में ऐसी नमाज़ पहले कभी नहीं हुई , फ़लक ने ऐसा नजारा कभी नहीं देखा  शबे अस्रा के दुल्हा  के अव्वल और आख़िर होने का उक्दा  भी खुल गया , इस के राज़ से भी पर्दा उठ गया और मा'ना रोजे रोशन की तरह वाज़ेह हो गए  
क्यूंकि आज आप  जो कि सब से  आख़िरी रसूल हैं , पहले के अम्बिया और रसूलों की इमामत फ़रमा रहे हैं । 
इसी राज़ को बयान करते हुवे आ'ला हज़रत , इमामे अहले सुन्नत , मौलाना शाह इमाम अहमद रज़ा खान  फ़रमाते हैं : 
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नमाजे अक्सा में था येही सिर , इयां हों मानए अव्वल आखिर 
कि दस्त बस्ता हैं पीछे हाज़िर  जो सल्तनत आगे कर गए 


शे'र की वज़ाहत : शबे मेअराज , मस्जिदे अक्सा में सय्यिदे अम्बिया  ने सारे नबियों की इमामत फ़रमाई और उन को नमाज़ पढ़ाई ,इस में राज़ येह था कि अव्वल आख़िर ( या'नी पहले और आखिरी ) का फ़र्क  वाज़ेह हो जाए , येह वाज़ेह हो जाए कि सब नबियों के आखिर में तशरीफ़ लाने  वाले नबी  किसी नबी से शानो अज़मत में कम नहीं बल्कि शानो अज़मत में सब से बढ़ कर हैं , 
इस की दलील येह है कि वोह सारे नबी जो पहले अपनी नबुव्वतों का एलान कर चुके , वोह सारे के सारे हाथ बांध कर मक्के मदीने के ताजदार  के पीछे खड़े हैं । हदाइके बखशिश , हिस्सए अव्वल , स . 232

नमाज़ के बाद मदीने के ताजदार , रसूलों के सालार   ने वहां मौजूद अम्बियाए किराम  से मुलाकात फ़रमाई तो ( बारी  बारी ) सब ने अल्लाह की तारीफ़ व सना बयान की चुनान्चे , हज़रते सय्यिदुना इब्राहीम अलैहिस सलाम ने फ़रमाया : तमाम खूबियां अल्लाह के लिये जिस ने मुझे ख़लील किया और मुझे मुल्के  अज़ीम इनायत फ़रमाया नीज़ अपना फ़रमां बरदार और लोगों का इमाम बनाया कि मेरी इक्तिदा की जाए और मुझे आग से बचाया और इसे मेरे लिये ठन्डा और सलामती वाला कर दिया  
इस के बाद हज़रते मूसा अलैहिस सलाम खड़े हुवे और अपने रब  की तारीफ़ फ़रमाई : तमाम खूबियां अल्लाह के लिये हैं जिस ने मुझे अपना कलीम बनाया और मेरे हाथों फ़िरऔन को हलाक किया और बनी इस्राईल को नजात दी और मेरी उम्मत ( के एक गुरौह ) को ऐसी कौम बनाया कि वोह हक़ की राह बताते हैं और हक़ के साथ इन्साफ़ करते हैं । 
फिर हज़रते सय्यिदुना दाऊद अलैहिस सलाम ने अल्लाह की तारीफ़ बयान करते हुवे फ़रमाया : तमाम खूबियां अल्लाह के लिये हैं जिस ने मुझे बहुत बड़ी बादशाहत दी और मुझे ज़बूर का इल्म दिया और मेरे हाथ में लोहा नर्म किया और मेरे लिये पहाड़ों और परिन्दों को मुसख्खर किया जो ( मेरे साथ ) अल्लाह की पाकी बयान करते हैं और मुझे हिक्मत और कौले फैसल ( फैसला करने का इल्म ) अता फ़रमाया । 
फिर हज़रते सय्यिदुना सुलैमान अलैहिस सलाम ने अल्लाह की तारीफ़ बयान करते हुवे फ़रमाया : तमाम खूबियां अल्लाह के लिये हैं जिस ने मेरे लिये हवाओं को मुसख्खर किया और जिन्नात को मेरा  ताबेअ बना दिया , जो मेरी मर्जी के मुताबिक़ ऊंचे ऊंचे महल्लात  बड़े हौज़ों के बराबर लगन ( तश्त ) और लंगर दार देगें बनाते हैं  इसी तरह मुझे परिन्दों की बोली सिखाई और अपने फ़ज़्ल से मुझे हर चीज़ अता की
और अपने बहुत से ईमान वाले बन्दों पर फ़ज़ीलत बख़्शी और मुझे ऐसी सल्तनत दी जो मेरे बाद किसी को लाइक न हो और मेरी बादशाहत को ऐसा कर दिया कि इस का कोई हिसाब नहीं । 
 इस के बाद हज़रते ईसा अलैहिस सलाम ने अल्लाह की तारीफ़  बयान करते हुवे फ़रमाया : तमाम खूबियां अल्लाह के लिये हैं , जिस ने मुझे अपना कलिमा करार दिया और इस बात में मुझे भी आदम अलैहिस सलाम की  तरह किया कि उन्हें मिट्टी से बनाया और फ़रमाया  हो जा  तो वोह हो गए और मुझे किताब व हिक्मत और तौरैत व इन्जील का इल्म अता फ़रमाया और मुझे येह कमाल बख़्शा कि मैं मिट्टी से परिन्दो की सी मूरत ( सूरत ) बनाता हूं , फिर उस में फूंक मारता हूं 
तो वोह अल्लाह के हुक्म से फ़ौरन परिन्दे हो जाती है और येह कमाल भी दिया कि मैं शिफ़ा देता हूं मादर ज़ाद अन्धे और सपेद दाग ( बर्स ) वाले को और मुर्दे जिलाता हूं , 
अल्लाह के हुक्म से और मुझे ( बिगैर मौत के आस्मान पर ) उठा लिया और मुझे पाक किया ( काफ़िरों से ) और मुझे और मेरी मां को शैतान मर्दूद के शर से पनाह अता फ़रमाई , 
लिहाज़ा हमारे ख़िलाफ़ शैतान के लिये कोई रास्ता नहीं । जब सब अम्बियाए किराम  अल्लाह की हम्दो सना और उस की वोह नेअमतें बयान कर चुके जो उन्हें अता हुई थीं , 
तो नबिय्ये आखिरुज्जमां , शहनशाहे कौनो मकां स्वललल्लाहो  अलैहि वसल्लम खड़े हुवे और अल्लाह की हम्दो सना बयान करते हुवे इरशाद फ़रमाया : तमाम खूबियां अल्लाह के लिये हैं , 
जिस ने मुझे सारे जहान के लिये रहमत बना कर भेजा और मुझे खुश खबरी सुनाने वाला और डर सुनाने वाला बना कर भेजा और मुझ पर कुरआन नाज़िल किया , जिस में हर चीज़ का रोशन 
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बयान है और मेरी उम्मत को तमाम उम्मतों से अफ्ज़ल बनाया 
मेरी उम्मत ही सब से आख़िरी उम्मत है और ( जन्नत में दाखिल होने वाली उम्मतों में ) यही सब से पहली उम्मत होगी और अल्लाह ने ( हिदायत व मा'रिफ़त और  इल्मो हिक्मत के लिये ) मेरा सीना कुशादा किया और ( उम्मत के हक में मेरी  शफाअत क़बूल कर के ) मेरा बोझ उतार दिया और मेरे लिये मेरा ज़िक्र बुलन्द  कर दिया 
और मुझे आख़िरी नबी बना कर भेजा निबय्ये करीम , रऊफुर्रहीम स्वललल्लाहो  अलैहि वसल्लम की गुफ़्तगू मुकम्मल होने के बाद हज़रते सय्यिदुना इब्राहीम अलैहिस सलाम ने खड़े हो कर इरशाद फ़रमाया कि यही वोह अज़ीमुश्शान अवसाफ़ व कमालात हैं , जिन की वजह से सय्यिदुल मुर्सलीन , खातमुन्नबिय्यीन स्वललल्लाहो  अलैहि वसल्लम का मर्तबा हम सब से अफ़ज़ल व आ'ला है ।  
सब से औला व आ'ला हमारा नबी 
सब से बाला व वाला हमारा नबी 
बज़्मे आख़िर का शम्अ फ़रोज़ां हुवा 
नूरे अव्वल का जल्वा हमारा नबी 
खल्क से औलिया औलिया से रुसुल 
और रसूलों से आला हमारा नबी 
मुल्के कौनैन में अम्बिया ताजदार
ताजदारों का आका हमारा नबी 

अम्बियाए किराम  से मुलाकात के बाद जब हुजूरे अकरम , नूरे मुजस्सम स्वललल्लाहो  अलैहि वसल्लम  बैतुल मुकद्दस से आगे आस्मानों की तरफ रवाना हुवे तो आप स्वललल्लाहो  अलैहि वसल्लम-
की बारगाह में शराब और दूध का बरतन पेश किया गया । 
चुनान्चे दो जहां के आका शबे अस्रा के दुल्हा स्वललल्लाहो  अलैहि वसल्लम  ने इरशाद  फ़रमाया जिब्राईले अमीन  मेरे पास एक बरतन में शराब और एक में दूध ले कर आए , 
मैं ने दूध ले लिया इस पर हज़रते जिब्राईल अलैहिस सलाम ने कहा  तमाम तारीफें  
अल्लाह के लिये जिस ने फ़ितरत की जानिब आप  की रहनुमाई फ़रमाई , 
अगर आप स्वललल्लाहो  अलैहि वसल्लम शराब का प्याला कबूल फ़रमाते तो आप स्वललल्लाहो  अलैहि वसल्लम की उम्मत गुमराह हो जाती । 
नबिय्ये करीम , रऊफुर्रहीम स्वललल्लाहो  अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं कि फिर मुझे आस्मान की तरफ़ ले जाया गया । हजरते जिब्राईले अमीन ने आसमान का दरवाज़ा खट - खटाया पूछा गया कि आप कौन हैं ? 
उन्हों ने कहा : मैं जिब्राईल हूं , 
पूछा गया : आप के साथ कौन हैं ? 
उन्हों ने कहा : यह हज़रत  मुहम्मद स्वललल्लाहो  अलैहि वसल्लम हैं , 
पूछा गया : क्या इन्हें बुलाया गया है ? 
उन्हों ने  कहा : हां इन्हें बुलाया गया है । 
हुजूर स्वललल्लाहो  अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया फिर हमारे लिये दरवाज़ा खोल दिया गया , 
वहां हज़रते आदम से मेरी मुलाकात हुयी , उन्हों ने मुझे मरहबा कहा और दुआ दी । 
फिक्रे अवलाद में गिर्या व जारी सय्यिदे आलम , नूरे मुजस्सम स्वललल्लाहो  अलैहि वसल्लम ने हज़रते आदम अलैहिस सलाम के दाएं बाएं कुछ लोगों को मुलाहज़ा फ़रमाया , जब आप  अपनी दाई जानिब देखते तो हंस पड़ते हैं और जब बाई जानिब देखते 
तो रो पड़ते हैं  हज़रते जिब्राईल  ने अर्ज़ किया : इन के दायीं और बायीं जानिब जो येह सूरतें हैं येह इन की औलाद हैं , दाई जानिब वाली जन्नती हैं  और बाई जानिब वाले जहन्नमी हैं फ़रमाया कि फिर मुझे दूसरे आसमान पर ले जाया गया , 
जिब्राईले अमीन ने दरवाज़ा खट - खटाया , पूछा गया कि आप कौन हैं ? 
उन्हों ने कहा :  जिब्राईल हूं , 
पूछा : तुम्हारे साथ कौन हैं ? 
कहा : येह हज़रत मुहम्मद स्वललल्लाहो  अलैहि वसल्लम हैं , 
पूछा : क्या इन्हें बुलाया गया है ? 
कहा : हां इन्हें बुलाया | गया है , हुजूर स्वललल्लाहो  अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया फिर हमारे लिये दरवाज़ा खोल 
दिया गया और वहां दो ख़ालाज़ाद भाइयों हज़रते ईसा बिन मरयम और हज़रते यहूया बिन जकरिय्या  से मेरी मुलाकात हुई , 
उन दोनों ने मुझे  मरहबा कहा और दुआ दी , फिर हमें तीसरे आस्मान पर ले जाया गया , जिब्राईल ने दरवाजे पर | दस्तक दी , आवाज़ आई : आप कौन हैं ? 
कहा : जिब्राईल हूं , 
पूछा : आप के साथ कौन हैं ? 
कहा : येह हज़रत मुहम्मद स्वललल्लाहो  अलैहि वसल्लम हैं , 
पूछा गया :  क्या इन्हें बुलाया गया है ? 
कहा : हां इन्हें बुलाया गया है । हुजूर स्वललल्लाहो  अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया फिर हमारे लिये दरवाज़ा खोल दिया गया और वहां मेरी मुलाकात हज़रते यूसुफ़  से हुई जिन्हें हुस्न का आधा हिस्सा अता किया गया है । 
उन्हों ने मुझे मरहबा कहा और दुआ दी । फिर मुझे चौथे आस्मान पर ले जाया गया , जिब्राईल ने आस्मान के  दरवाजे पर दस्तक दी , 
पूछा गया : कौन है ? कहा : जिब्राईल हूं , 
पूछा आप के साथ कौन हैं ? कहा : येह हज़रत मुहम्मद स्वललल्लाहो  अलैहि वसल्लम हैं , 
पूछा : क्या  इन्हें बुलाया गया है ? 
कहा : हां बुलाया गया है  रसूलुल्लाह स्वललल्लाहो  अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया : फिर हमारे लिये दरवाज़ा खोल दिया गया तो मेरी मुलाकात हज़रते इदरीस  से हुई उन्हों ने मुझे मरहबा कहा और दुआ दी । 
अल्लाह ने हज़रते इदरीस  के बारे में फ़रमाया हम ने इन को बुलन्द मकाम अता फ़रमाया है  फिर मुझे पांचवें आस्मान की तरफ़ ले जाया गया , जिब्राईल ने दरवाजे  पर दस्तक दी , पूछा गया : कौन है ? 
कहा : जिब्राईल हूं , पूछा : आप के साथ कौन हैं ? 
कहा : येह हज़रत मुहम्मद स्वललल्लाहो  अलैहि वसल्लम हैं , 
पूछा : क्या इन्हें बुलाया गया है ? 
कहा : हां बुलाया गया है ।
 हुजूरे अकरम , नूरे मुजस्सम स्वललल्लाहो  अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया : फिर हमारे लिये आस्मान का दरवाज़ा खोल दिया गया और हज़रते हारून  से मेरी मुलाकात हुई उन्हों ने मुझे मरहबा कहा और दुआ दी  फिर मुझे छटे आसमान पर ले जाया गया  जिब्राईल ने दरवाज़ा खट - खटाया तो पूछा गया : कौन है ? 
उन्हों ने कहाः मैं जिब्राईल हूं , पूछा : आप के साथ कौन हैं ? कहा : येह हज़रत मुहम्मद स्वललल्लाहो  अलैहि वसल्लम हैं  
पूछा : क्या इन्हें बुलाया गया ? 
कहा : हां बुलाया गया है । हुजूर स्वललल्लाहो  अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया फिर हमारे लिये दरवाज़ा खोल दिया | गया और मेरी मुलाक़ात हज़रते मूसा  से हुई , उन्हों ने मुझे खुश आमदीद कहा : और दुआ दी । 
फिर मुझे सातवें आसमान पर ले जाया गया , जिब्राईल . ने दरवाज़ा खट - खटाया , पूछा गया : कौन है ? 
कहा : मैं जिब्राईल हूं , 
पूछा : आप के साथ कौन हैं ? 
कहा : येह हज़रत मुहम्मद स्वललल्लाहो  अलैहि वसल्लम हैं , 
पूछा : क्या इन्हें बुलाया गया है ? 
उन्हों ने कहा : हां इन्हें बुलाया गया है फिर हमारे लिये दरवाज़ा खोल दिया गया , और हज़रते इब्राहीम  से मेरी मुलाकात हुई , जो बैतुल मा'मूर से टेक लगाए हुवे थे और उस बैतुल मा'मूर में हर रोज़  सत्तर ( 70 ) हज़ार फ़िरिश्ते जाते हैं और जो फ़िरिश्ता एक बार हो आए उस को  दोबारा मौका नहीं मिलता । 
 हज़रते जिब्राईल  ने ( हज़रते इब्राहीम  के बारे में  से ) अर्ज़ किया : येह आप स्वललल्लाहो  अलैहि वसल्लम के वालिद हैं , इन्हें सलाम कहिये आप स्वललल्लाहो  अलैहि वसल्लम ने  सलाम कहा , 
उन्हों ने सलाम का जवाब दिया , फिर आप स्वललल्लाहो  अलैहि वसल्लम को  खुश आमदीद करते हुवे कहा : "  सालेह बेटे और सालेह नबी को खुश आमदीद । 
सातवें आस्मान पर हज़रते इब्राहीम खलीलुल्लाह  से मुलाकात फ़रमाने के बाद सय्यिदे वाला तबार , दो आलम के ताजदार  सिद्रतुल मुन्तहा के पास तशरीफ़ लाए ।
यह एक नूरानी बैरी का दरख्त है , 
जिस की जड़ छटे आस्मान पर और शाखें सातवें आस्मान के ऊपर है , इस के फल मकामे हिज्र के मटकों की तरह बड़े बड़े और पत्ते हाथी के कानों की तरह हैं । 
हज़रते जिब्राईल  ने अर्ज किया : 
यह सिद्रतुल मुन्तहा है प्यारे आका  ने  सिद्रतुल मुन्तहा से आगे बढ़े तो हज़रते जिब्राईल  वहीं ठहर गए और आगे जाने से मा'ज़िरत ख़्वाह हुवे ।  
शैख़ अब्दुल हक मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल लाहि फ़रमाते हैं कि बा'ज़ रिवायतों में आया है कि सय्यिदे आलम , नूरे मुजस्सम स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम ने जिब्रीले अमीन से फ़रमाया : अगर तुम्हारी कोई हाजत है तो मुझ से अर्ज करो , मैं अल्लाह की बारगाह में पेश कर दूंगा । 
हज़रते जिब्रीले अमीन  ने अर्ज़ किया : बारगाहे इलाही  में मेरी येह तमन्ना बयान कर दीजियेगा कि वोह रोजे कियामत मेरे बाजूओं को और भी ज़ियादा कुशादा फ़रमा दे ताकि मैं आप स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम की उम्मत को अपने बाजूओं के जरीए पुल सिरात से गुज़ार सकू । 
आ'ला हज़रत इमामे अहले सुन्नत , मौलाना शाह इमाम अहमद रज़ा खान बरैलवी फ़रमाते हैं : 
 
पुल से उतारो राह गुज़र को ख़बर न हो 
जिब्रील पर बिछाएं तो पर को खबर न हो 

फिर आप स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम ( तन्हा ) आगे बढ़े और बुलन्दी की तरफ़ सफ़र फ़रमाते हुये एक मकाम पर तशरीफ़ लाए 
जिसे मुस्तवा कहा जाता है , यहां आप स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम ने कलमों की चर - चराहट समाअत फ़रमाई । 
येह वोह कलम थे जिन से फ़िरिश्ते रोज़ाना के अहकामे इलाहिय्या लिखते हैं और लौहे महफूज़ से एक साल के वाक़िआत अलग अलग सहीफ़ों में नक्ल करते हैं 
और फिर येह सहीफे शा'बान की पन्दरहवीं शब मुतअल्लिक हुक्काम फ़िरिश्तों के हवाले कर दिये जाते हैं ।  

अर्श उला से भी ऊपर 

फिर मुस्तवा से आगे बढ़े तो अर्श आया , आप स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम इस से भी ऊपर तशरीफ़ लाए और फिर वहां पहुंचे जहां खुद " कहां " और  " कब " भी ख़त्म हो चुके थे , क्यूंकि येह अल्फ़ाज़ जगह और ज़माने के लिये बोले जाते हैं और जहां हमारे हुजूरे अन्वर स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम रौनक अफ़रोज़ हुवे वहां ना जगह थी ना ज़माना । 
इसी वजह से उसे ला मकां कहा जाता है । 
सुरागे ऐनो मता कहां था , 
निशाने कैफ़ो इला कहां था
न कोई राही न कोई साथी 
न संगे मन्ज़िल न मरहले थे
 शे'र की वज़ाहत : शबे मे'राज , हबीबे किब्रिया स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम कहां गए ? 
कब गए ?
कैसे गए ? 
कहां तक गए ? 
इन सवालात का जवाब कोई क्या बताए ! 
क्यूंकि जहां महबूबे रहमान स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम शबे मेअराज पहुंचे , वहां कब और कहां का तसव्वुर भी नहीं कैसे और कहां का निशान नहीं  
कोई आप के साथ नहीं  न कोई मन्ज़िल का निशां  येह सारी बातें वहां से  तअल्लुक रखती हैं  जो आलम ही कुछ और था 
यहां अल्लाह रब्बुल इज्जत - ने अपने प्यारे महबूब स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम को वोह कुर्बे ख़ास अता फ़रमाया कि न किसी को मिला न मिले ।
चुनान्चे , पारह 27 , सूरतुन्नज्म की आयत नम्बर  8,9,10 में इरशादे खुदावन्दी है :  
तर्जमए कन्जुल ईमान : फिर वोह जल्वा नज़दीक हुवा फिर खूब उतर  आया तो उस जल्वे और उस महबूब में  दो हाथ का फ़ासिला रहा बल्कि इस से भी कम 
अब वही फ़रमाई अपने बन्दे को जो वही फ़रमाई । 
आशिके माहे रिसालत , आ'ला हज़रत  क़सीदए मेअराजिय्या में इन मुबारक घड़ियों के बारे में लिखते हैं , कि जिस घड़ी प्यारे नबी स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम को कुर्बे खास अता फ़रमाया गया , उस वक्त क्या समां  था , लिखते हैं : 
बढ़ ऐ मुहम्मद , करी हो अहमद , करीब आ सरवरे मुमज्जद 
निसार जाऊं येह क्या निदा थी , येह क्या समां था , येह क्या मज़े थे 
तबारकल्लाह शान तेरी तुझी को जै बा है बे नियाजी 
कहीं तो वोह जोशे लन तरानी कहीं तकाजे विसाल के थे 

ख़िरद से कह दो कि सर झुका ले गुमां से गुज़रे गुज़रने वाले 

पड़े हैं यां खुद जिहत को लाले किसे बतायें किधर गए थे 
उधर से पैहम तकाजे आना इधर था मुश्किल कदम बढ़ाना 

जलाल व हैबत का सामना था जमाल व रहमत उभारते थे 
बढ़े तो लेकिन झिझकते डरते हया से झुकते अदब से रुकते 

जो कुर्ब इन्हीं की रविश पे रखते तो लाखों मन्ज़िल के फ़ासिले थे 
वोही है अव्वल वोही है आख़िर वोही है बातिन वोही है ज़ाहिर 

उसी के जल्वे उसी से मिलने उसी से उस की तरफ़ गए थे 

सलामे रज़ा में है : 
किस को देखा येह मूसा से पूछे कोई 
आंखों वालों की हिम्मत पे लाखों सलाम 

सूरए नज्म में इरशाद होता है : मा जागल बसरू वमा तगा  तर्जमए कन्जुल ईमान : आंख न  किसी तरफ़ फिरी न हद से बढ़ी 
हज़रते इमाम जा'फ़र सादिक रदिअल्लाहु ने फ़रमाया कि अल्लाह  तआला ने अपने बन्दे को वही फ़रमाई जो वही फ़रमाई येह वही बे वासिता थी 
कि अल्लाह तआला और उस के हबीब के दरमियान कोई वासिता न था और यह खुदा और रसूल के दरमियान के असरार हैं जिन पर उन के सिवा किसी को इत्तिलाअ नहीं ।  ( राज़ की बातों के इलावा ) अल्लाह ने अपने महबूब  से इरशाद फ़रमाया कि जिब्रीले अमीन की वोह हाजत जिस के बारे में तुम से अर्ज़ किया था वोह क्या है ? 
आप स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम ने अर्ज़ किया : ऐ अल्लाह  तू उसे खूब जानता है । 
अल्लाह ने फ़रमाया : ऐ महबूब ! मैं ने उस की हाजत कबूल फ़रमाई लेकिन उन लोगों के हक़ में जो तुम से महब्बत करते , तुम्हें दोस्त रखते और तुम्हारी सोहबत में  रहते हैं ।  
हुजूरे अकरम , नूरे मुजस्सम स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि : अल्लाह ने मुझ पर एक दिन और रात में पचास ( 50 ) नमाजें फ़र्ज़ की , जब मैं हज़रते मूसा अलैहिस सलाम के पास पहुंचा तो उन्हों ने कहा : आप के रब ने आप की उम्मत पर क्या फ़र्ज़ किया है ? 
मैं ने कहा : हर दिन रात में पचास ( 50 ) नमाजें फ़र्ज़ फ़रमाई हैं ।
 हज़रते मूसा अलैहिससलाम ने कहा : अपने रब के पास जा कर तख्फ़ीफ़ ( या'नी कमी ) का सुवाल कीजिये , क्यूंकि आप की उम्मत पचास नमाजें न पढ़ सकेगी , मैं बनी इस्राईल को आजमा चुका हूं , ( प्यारे आका स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ) मैं अपने रब  के पास लौट कर गया और अर्ज़ की : ऐ मेरे रब मेरी उम्मत पर कुछ तख़्फ़ीफ़ फ़रमा , 
अल्लाह ने पांच नमाजें कम कर दीं , मैं मूसा अलैहिससलाम के पास पहुंचा और कहा कि अल्लाह ने पांच नमाजें कम कर दी हैं । 
हज़रते मूसा .अलैहिससलाम ने कहा : आप की उम्मत इतनी नमाजें भी न पढ़ सकेगी जाइये और जा कर मजीद कमी का सुवाल कीजिये , रसूलुल्लाह स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया : हज़रते मूसा अलैहिससलाम के पास से अल्लाह की बारगाह में जाने आने का सिलसिला जारी रहा ( या'नी अल्लाह की बारगाह से हर बार नमाजों में कुछ तख्फीफ़ हो जाती मगर इस के बा वुजूद हज़रते मूसा अलैहिससलाम मजीद कमी करवाने के लिये मुझे दोबारा अल्लाह की बारगाह में भेजते रहे ) हत्ता कि ( जब सिर्फ पांच नमाजें रह गई ) 
अल्लाह ने फ़रमाया : ऐ मुहम्मद स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम दिन और रात की येह पांच नमाजें हैं और इन में से हर नमाज़ का दस गुना अज्र मिलेगा लिहाज़ा ( अज्रो सवाब के ए'तिबार से ) येह पचास नमाजें हो जाएंगी , और ( मजीद  करम येह है कि ) जो शख्स नेक काम की निय्यत करे फिर वोह नेक काम न कर पाए तो उस के लिये ( सिर्फ अच्छी निय्यत की वजह से ) एक नेकी लिख दी जाएगी और अगर वोह उस नेकी को कर गुज़रे तो दस ( 10 ) नेकियां लिखी जाएंगी और जो शख़्स बुरे काम का कस्द करे और वोह बुरा काम न करे तो उस के नामए आ'माल में ( बुरी निय्यत के जुर्म में ) कोई गुनाह नहीं लिखा जाएगा । अलबत्ता अगर वोह बुरा काम कर लेगा तो अब उस की एक बुराई लिखी जाएगी 
इस के बा'द रसूलुल्लाह स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि फिर मैं हज़रते मूसा अलैहिससलाम के पास पहुंचा और उन को इन अहकाम की खबर दी तो उन्हों ने अब की बार भी येही कहा कि अपने रब के पास जा कर मजीद तख़्फ़ीफ़ का सुवाल कीजिये , रसूलुल्लाह स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया : मैं ने हज़रते मूसा अलैहिससलाम से कहा कि ( नमाज़ों में कमी करवाने के लिये ) मैं इतनी  मरतबा अपने रब की बारगाह में जा चुका हूं कि अब ( इस काम के लिये  जाने में ) मुझे हया आती है ।
 कुरआने पाक के पन्दरहवें पारे में सूरए बनी इस्राईल की पहली  आयत में अल्लाह ने अपने महबूब , दानाए गुयूब स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम के इस सफ़रे मेअराज के इब्तिदाई हिस्से का तजकिरा करते हुवे इरशाद फ़रमाया :  तर्जमए कन्जुल ईमान : पाकी है उसे जो रातों रात अपने बन्दे को ले  गया मस्जिदे हराम से मस्जिदे अक्सा ( बैतुल मक्दस ) तक । 
याद रहे कि हमारे प्यारे आका , मक्की मदनी मुस्तफ़ा , शबे अस्रा के दुल्हा स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम का सफ़रे मेअराज मस्जिदे हराम से शुरू हो कर  मस्जिदे अक्सा पर ख़त्म नहीं हुवा था 
बल्कि कुरआनो हदीस से साबित है कि नबिय्ये करीम , रऊफुर्रहीम स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम ने मेअराज शरीफ़ की रात न सिर्फ सातों आस्मानों की सैर फ़रमाई बल्कि इस से भी वराउल वरा  जहां तक अल्लाह ने चाहा तशरीफ़ ले गए । 
चुनान्चे , आ'ला हज़रत , इमामे अहले सुन्नत , मुजद्दिदे दीनो मिल्लत , परवानए  शम्ए रिसालत , मौलाना शाह अहमद रज़ा खान मोहद्दिस बरेल्वी फ़तावा रज़विय्या शरीफ़ में शर्हे हमज़िय्या के हवाले से नक्ल फ़रमाते हैं : जब हज़रते मूसा
अलैहिससलाम को दौलते कलाम अता हुई , हमारे नबी स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम को वैसी ही शबे अस्रा मिली और ज़ियादते कुर्ब  और चश्मे सर  से दीदारे इलाही इस के इलावा  और भला कहां कोहे तूर जिस पर हज़रते मूसा  से मुनाजात हुई और कहां मा फौकुल अर्श ( अर्श से भी ऊपर ) जहां हमारे नबी स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम से कलाम हुवा । shab-e-meraj the complete story in hindi
इसी किताब के हवाले से मजीद फ़रमाते हैं कि नबी  ने अपने जिस्मे पाक के साथ बेदारी में शबे अस्रा ( या'नी मेअराज की रात ) आस्मानों तक तरक्की फ़रमाई , फिर सिद्रतुल मुन्तहा , फिर मकामे मुस्तवा , फिर अर्श व रफ़ - रफ़ व दीदारे इलाही तक । ( फ़तावा रविय्या , 30/646 ) 

अलबत्ता आयते मुबारका में जिस हिस्सए मेअराज का बयान किया गया  सिर्फ वोही हिस्सा भी ब ज़ाते खुद निहायत ही हैरत अंगेज़ मोअ'जिज़ा है 
क्यूंकि मस्जिदे हराम और मस्जिदे अक्सा के दरमियान अच्छा खासा फ़ासिला था , 
 लिहाज़ा किसी आम शख्स का मस्जिदे अक्सा तक जाना और फिर रातों रात वापस भी आ जाना तो बहुत दूर की बात है एक रात में सिर्फ यक तरफ़ा फ़ासिला तै करना भी मुमकिन न था जैसा कि साहिबे रूहुल बयान हज़रते अल्लामा इस्माईल हक्की  फ़रमाते हैं अक्सा तक का जिक्र इस वजह से किया गया कि उस ज़माने में मस्जिदे अक्सा से दूर कोई और मस्जिद न थी , मक्कए मुकर्रमा से सब से ज़ियादा दूर येही मस्जिद थी , मस्जिदे हराम व मस्जिदे अक्सा के दरमियान एक महीने से भी ज़ियादा मसाफ़त का फ़ासिला था । 

 जिब्रीले अमीन  के नजदीक सिद्दीक़ 

हज़रते सय्यिदुना अबू हुरैरा  से रिवायत है कि जब अल्लाह के महबूब , दानाए गुयूब स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम ने मेअराज की रात सय्यिदुना जिब्रीले अमीन  से इरशाद फ़रमाया :
 ऐ जिब्रील मेरी क़ौम मुझ पर तोहमत लगाएगी और वोह मेरी तस्दीक नहीं करेगी । 
हज़रते सय्यिदुना जिब्रीले अमीन  ने अर्ज की : 
 अगर आप की कौम आप पर तोहमत लगाएगी तो क्या हुवा ? 
अबू बक्र  तो आप की तस्दीक़ करेंगे क्यूंकि वोह तो सिद्दीक़ हैं ! 
 चुनान्चे , ऐसा ही हुवा कि जब शबे मेअराज की सुब्ह हतीमे का'बा के  पास खड़े हो कर हमारे आका व मौला , शबे अस्रा के दुल्हा स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम ने लोगों के सामने इस सुहानी मेअराज का ज़िक्र किया तो अहले ईमान का ईमान तो और मज़बूत हो गया मगर मुनाफ़िक़ीन व मुशरिकीन के तो गोया पाँव तले से ज़मीन निकल गई कि एक रात में इतना तवील सफ़र कैसे तै कर लिया । 
चुनान्चे , आंखें मीच कर तस्दीक करने वाली जात मुशरिकीन दौड़ते हुये हज़रते सय्यिदुना अबू बक्र सिद्दीक़   के पास पहुंचे और कहने लगे :  क्या आप इस बात की तस्दीक कर सकते हैं जो आप के दोस्त ने कही  है कि उन्हों ने रातों रात मस्जिदे हराम से मस्जिदे अक्सा की सैर की ? " आप  ने फ़रमाया :  क्या आप स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम ने वाकेई  येह बयान फ़रमाया है ?  
उन्हों ने कहा : जी हां । आप  ने फ़रमाया   अगर आप स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम ने येह इरशाद  फ़रमाया है तो यक़ीनन सच है उन्हों ने कहा : 
 क्या आप इस हैरान कुन बात की भी तस्दीक करते हैं कि वोह आज रात बैतुल मक्दस गए और सुब्ह होने से पहले वापस भी आ गए ? " आप  ने फ़रमाया 
जी हां ! 
मैं तो हुजूरे अकरम  की आस्मानी ख़बरों की भी सुब्हो शाम तस्दीक़ करता हूं । 
यक़ीनन वोह तो इस से भी ज़्यादा हैरान कुन  बातें होती हैं । " पस इस वाकिए के बाद आप  सिद्दीक़ मशहूर हो  बा'ज़ बद बातिन लोगों ने आप  के इस अज़ीम मो'अजिजे को झुटलाने के लिये तरह तरह के सुवालात करना शुरू कर दिये । 
जैसा कि , हदीसे पाक में है अल्लाह के महबूब , दानाए गुयूब  ने इरशाद फ़रमाया : 35 कुरैश मुझ से मेरे  सफ़रे मेअराज के मुतअल्लिक सुवालात कर रहे थे । 
तो उन्हों ने मुझ से बैतुल मक्दस की ऐसी चीज़ों के मुतअल्लिक सुवालात किये , जिन्हें ( गैर ज़रूरी होने की वजह से ) मैं ने याद न रखा था । 
 मुझे इस बात से इस कदर गम हुवा कि इस से पहले मैं कभी इतना गमगीन न हुवा था ,  तो अल्लाह ने बैतुल मक्दस को मेरी ख़ातिर उठा लिया और मैं उसे देखने लगा , लिहाज़ा कुरैश मुझ से जिस जिस चीज़ के बारे में पूछते गए , 
मैं उन्हें  बताता गया  मुफस्सिरे शहीर हकीमुल उम्मत मुफ्ती अहमद यार ख़ान  मुशरिकीने मक्का के उन सुवालात के बारे में फ़रमाते हैं कि वोह सवालात भी लाया'नी ( फुजूल ) थे । 
मसलन येह कि बैतुल मक्दस में सुतून कितने हैं ? 
सीढ़ियां कितनी है ? 
मिम्बर किस तरफ़ है ? 
और ज़ाहिर है कि येह चीजें तो  बार बार देखने पर भी याद नहीं रहतीं तो एक बार देखने पर याद कैसे रहतीं ? 
कुफ्फ़ार ने कहा कि अर्श व कुरसी की बातें जो आप बयान कर रहें हैं , उन की  तो हम को ख़बर नहीं , बैतुल मुकद्दस हम ने देखा हुवा है , वहां की निशानियां आप हम को बताएं इसी लिये रब ने इस मेअराज के दो हिस्से किये ( एक मस्जिदे हराम ) से बैतुल मुकद्दस तक , 
फिर ( दूसरा ) वहां से अर्श के आगे तक ताकि लोग इस ( पहले ) हिस्सए मेअराज को बहुत दलाइल से मालूम कर लें 
 लिहाज़ा जब बैतुल मुकद्दस की कैफ़िय्यत पूछी गई तो ) नबिय्ये करीम - को कुछ तरद्दुद हुवा , 
क्यूंकि आप   बैतुल मुकद्दस में दाखिल हुवे थे लेकिन आप ने इस की कैफिय्यत के  मुतअल्लिक गहरी नज़र नहीं फ़रमाई थी , 
मजीद बर आं वोह रात भी तारीक थी । 
अल्लाह तआला ने हज़रते जिब्राईले अमीन को हुक्म फ़रमाया 
तो उन्हों ने अपने परों पर बैतुल मक्दस को उठा लिया और मक्कए मुकर्रमा में हज़रते अकील  के घर के पास रख दिया , आप स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम उसे देखते जाते और उन के सुवालों के जवाबात देते जाते । 
( याद रहे कि ) बैतुल मुकद्दस को उठा कर आप स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम की ख़िदमते आलिया में हाज़िर किया जाना आप का मो'अजिज़ा है , जिस तरह बिल्कीस का तख़्त ( उठा कर  दरबार में हाज़िर किया जाना ) हज़रते सुलैमान अलैहिस सलाम का मोअ'जिज़ा है बहर हाल प्यारे आका , मदीने वाले मुस्तफ़ा स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम ने जब बैतुल मुकद्दस के बारे में मुशरिकीने मक्का की तरफ से पूछे गए 
तमाम सवालात के जवाबात अता फ़रमा दिये तो चूंकि वोह तो हुजूरे अकरम , नूरे  मुजस्सम स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम के इस अज़ीम मो'जिजे पर ईमान लाने के बजाए  इसे अक्ल की कसोटी पर परख रहे थे 
बल्कि अपने बुग़ज़ो इनाद की वजह से  इस अज़ीमुश्शान मोअ'जिज़े को झूटा साबित करने पर कमरबस्ता थे , लिहाज़ा बैतुल मक्दस की निशानियां पूछने और इस पर मुंह की खाने के बा वुजूद भी अपनी हटधर्मी से बाज़ न आए और इमतिहान की ग़रज़ से उस काफ़िले के बारे में सुवाल करने लगे जो मक्कए मुकर्रमा से तिजारत की गरज़ से शाम की जानिब गया था चुनान्चे 
आप स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम ने उन्हें बताया कि वोह काफ़िला मक्का शरीफ़ और शाम के दरमियान फुलां जगह पर मिला था , 
उस में इतनी तादाद में पैदल आदमी हैं और इतने ऊंट हैं ।
उन्हों ने फिर आप स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम से सुवाल किया कि वोह शाम से वापसी पर किस दिन मक्कए मुकर्रमा में दाखिल होगा , 
तो आप ने उन्हें जवाबन इरशाद फ़रमाया कि बुध के दिन इस माह की फुलां तारीख को मक्कए मुकर्रमा में दाखिल होगा , 
उस के आगे आगे एक ख़ाकिस्तरी रंग का ऊंट होगा जिस के पालान के नीचे का टाट सियाह होगा और उस पर दो बोरे लदे होंगे , नबिय्ये अकरम , नूरे मुजस्सम स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम ने जिस तरह फ़रमाया था , बिऐनिही उसी तरह हुवा , 
आप के मो'आजिजात के जुहूर पर मुशरिकीन शर्मिन्दा हो गए 
लेकिन ईमान न लाए  शबे मेंअराज के मुशाहदात शबे मेअराज , हबीबे किब्रिया , मुहम्मदे मुस्तफ़ा स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम ने करोड़ों अजाइबात मुलाहज़ा फ़रमाए , 
जन्नत में तशरीफ़ ले गए , अपने उम्मतियों के जन्नती महल्लात वगैरा मुलाहज़ा फ़रमाए , जहन्नम को देखा और जहन्नमियों के दर्दनाक अज़ाबात भी देखे , फिर इन में से कुछ अपनी उम्मत की तरगीब और तरहीब के लिये बयान फ़रमा दिया 
ताकि उम्मती जहन्नमियों के दर्दनाक अज़ाबात सुन कर नेक और अच्छे आ'माल के जरीए जहन्नम से बचने की तदाबीर करें और जन्नत की ना ख़त्म होने वाली नेमतों का सुन कर उम्मती उन नेमतों को पाने के लिये कोशिश करे । 
आइये ! चन्द एक वाकिआत व मुशाहदात इख़्तिसारन पढ़ लेते हैं : शबे अस्रा के दुल्हा स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया : मैं ने शबे मे'राज जन्नत के दरवाजे पर लिखा हुवा देखा : “ सदके का सवाब 10 गुना और कर्ज का सवाब 18 गुना है 

मोतियों से बने हुवे गुम्बद नुमा आली शान खैमे मुलाहज़ा फ़रमाए जो कि आप स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम की उम्मत के इमाम और मुअज्ज़िनीन के लिये हैं , 
चन्द बुलन्दो बाला महल्लात मुलाहज़ा फ़रमाए जो कि गुस्सा पीने वालों और अफ्वो दर गुज़र  करने वालों के लिये हैं , 
रेशम के पर्दो से सजा हुवा एक महल मुलाहज़ा फ़रमाया जो कि अमीरुल मोअमिनीन हज़रते सय्यिदुना अबू बक्र सिद्दीक़  के लिये है , 
जन्नत की सैर के दौरान हज़रते सय्यिदुना बिलाल हबशी  के क़दमों की आहट समाअत फ़रमाई , 
शबे मेअराज जन्नती हूरों ने बारगाहे रिसालत स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम में सलाम पेश किया , 
शबे मे'राज एक ऐसे शख्स के पास से गुज़र हुवा जो अर्श के नूर से छुपा हुवा था , 
येह वोह खुश नसीब था कि दुन्या में जिस की ज़बान अल्लाह तआला के ज़िक्र से तर रहती थी , इस का दिल मस्जिद में लगा रहता था , येह कभी अपने वालिदैन को बुरा कहे जाने या उन की बेइज्जती किये जाने का सबब न बना । 
शबे मेअराज जो सज़ा के इन्तिहाई दर्दनाक अज़ाबात देखे उन में येह भी देखा कि कुछ लोगों के जबड़े खोले जा रहे थे , 
उन का गोश्त काट कर खून के साथ ही उन्ही के मुंह में धकेला जा रहा था , येह वोह बद नसीब थे जो लोगों की गीबतें करते थे , 
लोगों के ऐब तलाशते थे , कुछ ऐसे मर्द और औरतों के करीब से आप का गुज़र हुवा जो अपनी छातियों के साथ लटका दिये गए थे , 
येह वोह बद नसीब थे , जो मुंह पर ऐब लगाते थे और पीठ पीछे बुराई करते  थे , 
मेअराज की रात , सरवरे काइनात स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम ने कुछ ऐसे लोगों को भी देखा , जिन के पेट मकानों की तरह बड़े बड़े थे और उन के पेट के अन्दर  सांप बाहर से नज़र आ रहे थे , 
येह बद नसीब सूदखोर थे ,
 शबे मेअराज आप स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम ऐसे लोगों के पास तशरीफ़ लाए जिन के सर पथ्थरों से कुचले जा रहे थे येह वोह बद नसीब थे , जिन के सर नमाज़ से बोझल हो जाते थे , 
उम्मत के खुतबा और अपने कहे पर अमल न करने वालों और कुरआन  पढ़ कर उस पर अमल न करने वालों को देखा कि उन के होंट आग की कैंचियों से मुसलसल काटे जा रहे थे , 
मेअराज की शब , दोज़ख़ में कुछ लोगों को आग की शाखों के साथ लटका हुवा देखा , येह वोह बद नसीब थे , जो | दुन्या में वालिदैन ( या'नी मां - बाप ) को गालियां देते थे ,
 बदकारी करने वाली और फिर अवलाद को क़त्ल करने वाली औरतों को इस हाल में देखा कि उन्हें | छातियों और पाँव से लटका दिया गया था । 
यतीमों का माल खाने वालों को  इस हाल में देखा कि उन के होंट पकड़ कर आग के बड़े बड़े पथ्थर उन के  मुंह में डाले जा रहे थे और येह पथ्थर उन के नीचे से निकल रहे थे , 
ज़कात  अदा न करने वालों को इस हाल में देखा कि वोह चोपायों की तरह जहन्नम के  ज़हरीले पौधे और जहन्नम के गर्मा गर्म पथ्थर निगल रहे थे 
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 कर ले तौबा  भाइयो ! 

ज़रा इन अज़ाबों पर गौर कीजिये और फिर अपनी नातवानी व कमज़ोरी को देखिये , 
आह ! हमारी कमज़ोरी का हाल तो येह है कि हल्का सा सर दर्द या बुखार तड़पा कर रख देता है तो फिर आख़िरत के येह दर्दनाक अज़ाब क्यूं कर बरदाश्त किये जा सकते हैं , इस लिये 
अभी वक़्त है डर जाइयें और जो फ़र्ज़ होने के बा वुजूद ज़कात अदा नहीं करते फौरन से पेशतर इस से तौबा करें और जितने सालों की ज़कात बाकी है 
हिसाब कर के जल्द अज़ जल्द अदा कर दें वरना अगर येह मौका हाँथ से  निकल गया और तौबा से पहले ही मौत ने आ लिया तो फिर मौका नहीं मिलेगा ।

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