Ulma ki fazilat,Ilm sikhane ki fazikat,इल्म सिखाने की फजीलत .

ULMA KI FAZILAT, علماء کی فضیلت کا بیان 
Ilmsikhane ki fazikat इल्म सिखाने की फजीलत .

Ulma ki fazilat,Ilmsikhane ki fazikat,इल्म सिखाने की फजीलत .
Ulma ki fazilat,Ilmsikhane ki fazikat,इल्म सिखाने की फजीलत 


Ilm sikhane ki fajilat par mushtamil 6 farmane khuda wandi
इल्म सिखाने की फजीलत पर मुश्तमिल 6 फ़रामीने बारी तआला 

Ulma ki fazilat,Ilmsikhane ki fazikat,इल्म सिखाने की फजीलत .
Ulma ki fazilat,Ilmsikhane ki fazikat,इल्म सिखाने की फजीलत 


(1) तर्जमए कन्जुल ईमान : और वापस आ कर अपनी   कौम को डर सुनाएं इस उम्मीद पर कि वोह बचें । इस आयते मुबारका में कौम को डराने से मुराद उन्हें इल्म सिखाना और उन की राहनुमाई करना है ।

Ulma ki fazilat,Ilmsikhane ki fazikat,इल्म सिखाने की फजीलत .
Ulma ki fazilat,Ilmsikhane ki fazikat,इल्म सिखाने की फजीलत 


(2) तर्जमए कन्जुल ईमान : और याद करो जब अल्लाह ने अहद लिया उन से जिन्हें किताब अता हुई कि तुम ज़रूर इसे लोगों से बयान कर देना  और न छुपाना । इस आयते मुबारका से इल्म सिखाने का वुजूब षाबित होता है । 
 
Ulma ki fazilat,Ilmsikhane ki fazikat,इल्म सिखाने की फजीलत .
Ulma ki fazilat,Ilmsikhane ki fazikat,इल्म सिखाने की फजीलत 


(3) तर्जमए कन्जुल ईमान : और बेशक इन में एक   गुरौह जान बूझ कर हक छुपाते हैं । इस आयते मुबारका से पता चला कि इल्म छुपाना हराम है । जैसा कि शहादत के बारे में इरशादे बारी तआला है : 


Ulma ki fazilat,Ilmsikhane ki fazikat,इल्म सिखाने की फजीलत .
Ulma ki fazilat,Ilmsikhane ki fazikat,इल्म सिखाने की फजीलत 


 तर्जमए कन्जुल ईमान : और जो गवाही छुपाएगा तो अन्दर से उस का दिल गुनहगार है । 

Ulma ki fazilat,Ilmsikhane ki fazikat,इल्म सिखाने की फजीलत .
Ulma ki fazilat,Ilmsikhane ki fazikat,इल्म सिखाने की फजीलत 


(4) तर्जमए कन्जुल ईमान : और उस से ज़ियादा | किस की बात अच्छी जो अल्लाह की तरफ़  बुलाए और नेकी करे ।

Ulma ki fazilat,Ilmsikhane ki fazikat,इल्म सिखाने की फजीलत .
Ulma ki fazilat,Ilmsikhane ki fazikat,इल्म सिखाने की फजीलत 


( 5)  तर्जमए कन्जुल ईमान : अपने रब्ब की राह की तरफ़ बुलाओ पक्की तदबीर और अच्छी नसीहत से ।

Ulma ki fazilat,Ilmsikhane ki fazikat,इल्म सिखाने की फजीलत .
Ulma ki fazilat,Ilmsikhane ki fazikat,इल्म सिखाने की फजीलत 


( 6 )  तर्जमए कन्जुल ईमान : और उन्हें तेरी किताब और पुख्ता इल्म सिखाए ।
Ulma ki fazilat,Ilmsikhane ki fazikat,इल्म सिखाने की फजीलत .


Ilm sikhane ki fazilat par mushtamil 17 farmane Mustafa इल्म सिखाने की फजीलत पर मुश्तमिल 17 फ़रामीने मुस्तफा : 

(1)  अल्लाह ने जिसे भी इल्म अता फ़रमाया उस से वोह अहद लिया जो अम्बियाए किराम - से लिया कि वोह इसे लोगों से बयान करे और न छुपाए ।

 (2)  मक्की मदनी सरकार स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम - ने हज़रते सय्यिदुना मुआज रदिअल्लाहु अन्ना को यमन भेजा तो इरशाद फ़रमाया : अल्लाह तेरे जरीए किसी एक को हिदायत दे दे तो येह तेरे लिये दुनिया व माफ़ीहा ( या'नी दुनियां और जो कुछ इस में है ) से बेहतर है ।

( 3)  जिस ने इल्म का एक बाब इस लिये सीखा कि लोगों को सिखाएगा तो उसे (70) सत्तर सिद्दीक़ीन का सवाब दिया जाएगा । 
हज़रते ईसा रूहुल्लाह  से मन्कूल है कि जिस ने इल्म हासिल किया , इस पर अमल किया और दूसरों को सिखाया तो आस्मानों की सल्तनत में उसे अजीम कहा जाता है ।
Ulma ki fazilat,Ilmsikhane ki fazikat,इल्म सिखाने की फजीलत .
( 4 ) जब क़ियामत के दिन अल्लाह आबिदों और मुजाहिदों से फ़रमाएगा कि जन्नत में दाखिल हो जाओ तो उल्मा अर्ज करेंगे : हमारे इल्म के तुफैल वोह आबिद और मुजाहिद बने ( वोह जन्नत में गए और हम रह गए ) ? अल्लाह इरशाद फ़रमाएगा : तुम मेरे नज़दीक 
मेरे बा'ज़ फ़िरिश्तों की तरह हो , तुम शफाअत करो , तुम्हारी शफ़ाअत क़बूल होगी । चुनान्चे , वोह [ शफ़ाअत करेंगे फिर वोह जन्नत में दाखिल होंगे । येह उस इल्म की बदौलत होगा जो दूसरों को सिखाया होगा , उस के बदले नहीं जो दूसरों  तक नहीं पहुंचाया । 

अल्लाह 5 लोगों को इल्म अता करने के बाद वापस नहीं लेगा बल्कि उल्मा के  उठ जाने से इल्म जाता रहेगा । पस जब कभी कोई आलिम दुनियां से जाएगा उस के साथ उस का इल्म भी चला जाएगा यहां तक कि सिर्फ जाहिल सरदार रह जाएंगे । अगर उन से मसाइल पूछे जाएं तो बिगैर इल्म के फ़तवा देंगे , खुद भी गुमराह होंगे और दूसरों को भी गुमराह करेंगे ।


( 5 ) जिस ने इल्म सीख कर छुपाया अल्लाह - उसे बरोजे कियामत आग की लगाम डालेगा । 

( 6 )  इल्मो हिक्मत की बात बेहतरीन हदिया व तोहफ़ा है जिसे सुन कर तू याद कर ले फिर अपने मुसलमान भाई को सिखाए तो येह एक साल की इबादत के बराबर है । 

( 7 ) दुनियां और जो कुछ इस में है सब मलऊन है सिवाए ज़िक्रे इलाही के और उस के जो कुर्खे इलाही का सबब बने और इल्म सीखने वाले और सिखाने वाले के ।

(8 ) बेशक अल्लाह उस के फ़िरिश्ते और आस्मान व जमीन की मख्लूक हत्ता कि च्यूंटियां अपने बिलों में और मछलियां समुन्दर में लोगों को भलाई ( या'नी इल्मे दीन ) सिखाने वाले पर दुरूद भेजते हैं । 

(9) मुसलमान अपने भाई को इस से ज़ियादा अफ़्ज़ल फ़ाइदा नहीं दे सकता कि उसे कोई अच्छी बात पहुंचे तो वोह अपने भाई को पहुंचा दे ।

(10)  नेकी की बात जिसे मुसलमान सुने फिर दूसरों को सिखाए और इस पर अमल करे उस के लिये साल भर की इबादत से बेहतर है ।

( 11 ) एक दिन हुजूर नबिय्ये अकरम , नूरे मुजस्सम स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम  बाहर तशरीफ़ लाए । देखा कि दो हल्के हैं । एक हल्के के लोग अल्लाह से दुआ मांग रहे हैं और उस की तरफ़ मुतवज्जेह हैं जब कि दूसरे हल्के वाले लोगों को इल्म सिखा रहे हैं तो इरशाद फ़रमाया : येह लोग अल्लाह से मांग रहे हैं , वोह चाहे तो उन्हें अता करे और चाहे तो न करे और येह लोगों को इल्म सिखा रहे हैं और मुझे मुअल्लिम बना कर भेजा गया है । 
Ulma ki fazilat,Ilmsikhane ki fazikat,इल्म सिखाने की फजीलत .
( 12 ) फिर उन की तरफ़ चल दिये और उन के साथ तशरीफ़ फ़रमा हो गए ।

 जिस हिदायत व इल्म के साथ अल्लाह ने मुझे मबऊस फ़रमाया इस की मिसाल उस बारिश की तरह है जो ज़मीन पर बरसी तो एक हिस्से ने उसे जज्ब कर के घास और बहुत सा चारा उगाया , एक हिस्से ने उसे जम्अ कर लिया और लोगों ने उस से फाइदा उठाया कि इस में से पिया , पिलाया और खेतों को सैराब किया जब कि एक हिस्सा चटियल मैदान था कि जिस में न तो पानी जम्अ होता है और न ही घास उगता है । 

(13 ) पहली मिसाल नफ्अ उठाने वाले शख्स की है , दूसरी जिस ने दूसरों को नफ्अ पहुंचाया और तीसरी मिसाल उस शख्स की है जो दोनों से महरूम रहा ( या'नी खुद नफ्अ उठाया न दूसरों को पहुंचाया ) । 

(14 )  जब आदमी मर जाता है तो इस के अमल का सिलसिला मुन्कतअ हो जाता है सिवाए तीन चीज़ों के ( इन में से एक ) इल्मे नाफ़ेअ है । 


( 15 )  भलाई की तरफ़ राहनुमाई करने वाला भलाई करने वाले की तरह है । 

( 16 )  दो के इलावा किसी पर रश्क जाइज़ नहीं एक वोह शख्स जिसे अल्लाह ने | पुख्ता इल्म से नवाज़ा वोह इस से फैसले करता और लोगों को सिखाता है और दूसरा वोह शख्स | जिसे अल्लाह ने माल दिया फिर नेकी के कामों में खर्च करने की तौफ़ीक़ भी अता फ़रमाई । 

( 17 )  हुजूर नबिय्ये रहमत , शफ़ीए उम्मत स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम ने दुआ फ़रमाई कि मेरे नाइबों पर अल्लाह की रहमत हो । किसी ने अर्ज की : आप .स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम के नाइबीन कौन लोग हैं ? इरशाद फ़रमाया : वोह जो मेरी सुन्नत से महब्बत करते और इसे अल्लाह के बन्दों को सिखाते हैं । 
Ulma ki fazilat,Ilmsikhane ki fazikat,इल्म सिखाने की फजीलत .

Ilm sikhane ki fazilat par 12 akwale bujirgane deen
 इल्म सिखाने की फजीलत पर मुश्तमिल 12 अकवाले बुजुर्गाने दीन : 

(1) अमीरुल मोअमिनीन हज़रते सय्यिदुना उमर फारूके आ'ज़म रदिअल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया : जिस ने हदीस बयान की फिर इस पर अमल किया गया तो उस बयान करने वाले को अमल करने वालों के बराबर सवाब मिलेगा ।
(2 )   हज़रते सय्यिदुना इब्ने अब्बास  ने फ़रमाया : लोगों को इल्मे दीन सिखाने वाले के लिये हर चीज़ हुत्ता कि समुन्दर में मछलियां भी इस्तिगफार करती हैं । 

(3)  बा'ज़  उलमा ने फ़रमाया : आलिम अल्लाह और उस की मख्लूक के दरमियान वासिता होता है तो उसे गौर करना चाहिये कि वासिता कैसा होना चाहिये ।

(4 )  हज़रते सय्यिदुना सुफ़्यान सौरी  अस्कलान तशरीफ़ लाए और कुछ अर्सा ठहरे रहे लेकिन किसी ने भी आप  , से कोई मस्अला दरयाफ्त नहीं किया तो आप  ने फ़रमाया : मुझे किराया दो ताकि मैं इस शहर से चला जाऊं क्यूंकि यहां इल्म मर चूका है । 

येह इस लिये फ़रमाया कि आप  इल्म सिखाने की फ़ज़ीलत हासिल करने और इस के जरीए बकाए इल्म की हिर्स रखते थे । 
Ulma ki fazilat,Ilmsikhane ki fazikat,इल्म सिखाने की फजीलत .
( 5)  हज़रते सय्यिदुना अता  , ने फ़रमाया : मैं हज़रते सय्यिदुना सईद बिन | मुसय्यब  , के पास गया तो वोह रो रहे थे । मैं ने रोने का सबब पूछा तो फ़रमाया : कोई मुझ से मस्अला दरयाफ्त नहीं करता । 


( 6 )  मन्कूल है कि उ - लमा ज़मानों के चराग हैं और हर आलिम अपने ज़माने का चराग है | जिस से इस के अहले ज़माना ( इल्म की ) रोशनी हासिल करते हैं । 

( 7)  हज़रते सय्यिदुना हसन बसरी ने फ़रमाया : अगर उलमा न होते तो लोग चोपायों की मिस्ल होते ।

मतलब येह कि उ - लमा लोगों को इल्म सिखा कर हैवानिय्यत से निकाल कर इन्सानिय्यत में दाखिल करते हैं । 

( 8 ) ..... हज़रते सय्यिदुना इकरमा  ने फ़रमाया : बेशक इस इल्म की कीमत है । पूछा गया : इस की कीमत क्या है ? फ़रमाया : येह कि तुम इसे उस शख्स तक पहुंचाओ जो इसे अच्छी तरह याद रखे और जाएअ न करे । 

( 9)  हज़रते सय्यिदुना यहया बिन मुआज़  , ने फ़रमाया : उ - लमा इस उम्मत पर मां बाप से ज़ियादा मेहरबान हैं । पूछा गया : वोह कैसे ? फ़रमाया : इस लिये कि मां बाप दुन्या की आग से मुहफूज रखते हैं जब कि उ - लमा इन्हें आख़िरत की आग से बचाते हैं । 



(10) मन्कूल है कि इल्म का पहला दर्जा खामोशी है , फिर गौर से सुनना , फिर याद करना , फिर अमल करना और फिर इसे फैलाना ।

( 11 ) ...... मन्कूल है कि अपना इल्म उसे सिखाओ जिसे इल्म नहीं और खुद उस से सीखो जो उन बातों को जानता हो जिन्हें तुम नहीं जानते । इस तरह तुम जो नहीं जानते उसे जान लोगे और जो जानते हो उसे याद कर लोगे ।  

(12 ) हज़रते सय्यिदुना मुआज़  , से मरफूअन रिवायत है कि इल्म सीखो ! क्यूंकि अल्लाह की रिज़ा के लिये इल्म सीखना खुशिय्यत , इस की जुस्त्जू इबादत , उस की तकरार तस्बीह , इस के मुतअल्लिक़ बहूस करना जिहाद , जो नहीं जानता उसे इल्म सिखाना सदक़ा और इसे इस के अहल पर खर्च करना नेकी है । 
इल्म तन्हाई में मूनिस , खल्वत में रफ़ीक़ , दीन पर राहनुमा , खुशी व तंगी में सब्र देने वाला , दोस्तों के हां नाइब , अजनबियों के पास रिश्तेदार और राहे जन्नत का रोशन मीनार है । 
इल्म के जरीए अल्लाह कौमों को बुलन्दी अता फ़रमा कर उन्हें नेकी में मुक़तदा व पेशवा और राहनुमा बना देता है । उन की पैरवी की जाती है । उन्हें नेकी की राह दिखाने वाला बना दिया जाता है । 
उन के नक्शे कदम पर चला जाता है । उन के अफ़्आल को बगौर देखा जाता है । 
फ़िरिश्ते उन की दोस्ती में रगबत रखते और अपने परों से उन्हें छूते हैं । हर खुश्को तर हत्ता कि समुन्दर की मछलियां , कीड़े मकोड़े , खुश्की के दरिन्दे , जानवर , आस्मान और इस के सितारे इल्म सीखने वाले के लिये मगफिरत का सुवाल करते हैं । 
क्यूंकि इल्म दिलों को अन्धेपन से जिला बख़्शता है । आंखों से अन्धेरे दूर कर के इन्हें रोशनी देता है । बदनों की कमजोरी दूर कर के इन्हें ताक़तवर बनाता है । इस के जरीए बन्दा नेक लोगों की मनाज़िल और बुलन्द दर्जात तक पहुंच जाता है । 
इस में गौरो फ़िक्र करना रोजों के बराबर और इस की तकरार रात की इबादत के बराबर है । इसी के जरीए अल्लाह की इताअत व इबादत की जाती है । इसी से खौफे खुदा मिलता है । 
इसी से अल्लाह की बुजुर्गी और वहदानिय्यत का शऊर हासिल होता है । इसी से परहेज़गारी मिलती है । इसी से सिलए रहूमी का जज़्बा मिलता है । 
येही हलाल व हराम की पहचान का ज़रीआ है । इल्म इमाम है और अमल इस के ताबेअ । इल्म खुश नसीबों को अता होता है जब कि बद बख़्त इस से महरूम रहते हैं । 
 हम अल्लाह से हुस्ने तौफ़ीक़ का सुवाल करते हैं । 
Ulma ki fazilat,Ilmsikhane ki fazikat,इल्म सिखाने की फजीलत .
Ulma ki fazilat,Ilmsikhane ki fazikat,इल्म सिखाने की फजीलत .
Ulma ki fazilat,Ilmsikhane ki fazikat,इल्म सिखाने की फजीलत 

ilm ki fazilat par aqli dalail इल्म की फजीलत पर अक्ली दलाइल . 

याद रहे ! इस बाब का मक्सूद येह है कि इल्म की फ़ज़ीलत और उमदगी मा'लूम हो और दर हकीकृत फ़ज़ीलत का मफ़हूम और मुराद जाने बगैर यह मा'लूम नहीं किया जा सकता कि फ़ज़ीलत का होना इल्म के लिये या किसी और ख़स्लत के लिये वस्फ़ है । पस वोह शख़्स ज़रूर बहक जाता है जो येह जानना चाहता है कि जैद हकीम है या नहीं लेकिन वोह अभी तक हिक्मत के मा'ना और इस की हक़ीक़त से ना बलद है ( इस लिये हम पहले | फजीलत का मा'ना और मुराद बयान करते हैं । ) चुनान्चे , 
Ulma ki fazilat,Ilmsikhane ki fazikat,इल्म सिखाने की फजीलत .


Fazilat ka lugwi aour istlahi mana
फजीलत का लुग्वी और इस्तिलाही मा’ना : 


फ़जीलत फ़ज़्ल से माखूज़ है और फ़ज़्ल ज़ियादती को कहते हैं ।
 जब दो चीजें किसी बात में मुश्तरक हों और उन में एक किसी इज़ाफ़ी बात से ख़ास हो तो कहा जाता है कि येह से अफ़्ज़ल है और इसे उस पर फ़जीलत हासिल है 
जब कि वोह इज़ाफ़ी बात इस में मौजूद हो जो इस के लिये कमाल की बात हो ।
 जैसा कि कहा जाता है : घोड़ा गधे से अफ़ज़ल है । क्यूंकि बोझ उठाने की कुव्वत में तो घोड़ा गधे का शरीक है लेकिन हम्ला करने , दौड़ने , सख़्त हम्ला आवर होने की कुव्वत और हुस्ने सूरत की खूबियां घोड़े में इज़ाफ़ी हैं । अब अगर बिल फ़र्ज़ गधे को इज़ाफ़ी सामान के साथ खास किया जाए तो येह नहीं कहा जा सकता कि वोह घोड़े से अफ़ज़ल हो गया क्यूंकि येह जिस्मानी इज़ाफ़ा है 
जब कि हकीक़त में कमी जो कि कोई कमाल की बात नहीं , इस लिये कि हैवान में जिस्म नहीं बल्कि मा'नविय्यत ( या'नी अस्लिय्यत ) और उस की सिफ़ात मक्सूद होती हैं । 
Ulma ki fazilat,Ilmsikhane ki fazikat,इल्म सिखाने की फजीलत .

Ilm ki akli fazilat 
इल्म की अक्ली फजीलत :

 येह समझने के बाद तुम पर पोशीदा न रहा कि इल्म की निस्बत अगर दूसरे औसाफ़ की तरफ़ की जाए तो उस की एक फ़ज़ीलत है जिस तरह दीगर तमाम हैवानों की बनिस्बत घोड़े की एक फ़ज़ीलत है , बल्कि सख़्त हम्ला आवर होना घोड़े की ( इज़ाफ़ी ) फ़ज़ीलत है मुतलक फ़ज़ीलत नहीं जब कि इल्म को अपनी ज़ात के ए'तिबार किसी की तरफ़ इज़ाफ़त किये बिगैर मुतलकन फ़ज़ीलत हासिल है क्यूंकि येह अल्लाह का वस्फे कमाल , अम्बियाए किराम और मलाइकए उज्जाम  का शरफ़ है बल्कि सधाया हुवा घोड़ा बे सधाए घोड़े से अच्छा है । लिहाजा इल्म को बिगैर किसी इज़ाफ़त के मुतलकन फ़ज़ीलत हासिल है ।
Ulma ki fazilat,Ilmsikhane ki fazikat,इल्म सिखाने की फजीलत .

Margoob ashiya ki kisme aour inki misalen
मरगूब अश्या की अक्साम और इन की मिसालें : 


जान लीजिये ! उम्दा और नफ़ीस चीज़ जिस में रगबत की जाती है इस की तीन किस्में हैं । 
( 1 )  जिस की तलब का सबब कोई अमे गैर हो 
( 2 )   जिस की तलब का सबब खुद उस की जात हो और 
( 3 )   जिस की तलब खुद उस की ज़ात की वजह से भी हो और किसी दूसरे सबब की वजह से भी । 
दूसरा पहले से अफ़्ज़ल व अशरफ़ है । 
पहले की मिसाल : दिरहमो दीनार हैं कि येह दर हक़ीक़त दो बे फ़ाइदा पत्थर हैं अगर अल्लाह इन के जरीए हाजात की तक्मील को आसान न फ़रमाता तो येह दोनों पत्थर और कंकर बराबर होते । 
दूसरे की मिसाल : उख़रवी सआदत और दीदारे इलाही की लज्जत है । तीसरे की मिसाल : बदन की सलामती है । मसलन पाँव की सलामती इस लिये मतलूब होती है कि बदन तक्लीफ़ से बचे और इस लिये भी कि  इस के जरीए चल कर ज़रूरियात तक रसाई हो । 
अब इस ए'तिबार से इल्म को देखो तो वोह फ़ी नफ़्सीही ( या'नी अपनी ज़ात के ए'तिबार से ) लज़ीज़ है
 लिहाजा वोह दूसरी किस्म में शामिल है ( जो पहली से अफ़ज़ल है ) नीज़ वोह आख़िरत और इस की सआदत का वसीला और कुर्बे इलाही का ज़रीआ है कि बिगैर इस के कुर्बे इलाही हासिल नहीं होता । 
आदमी के हक में सआदते अबदी का मर्तबा बुलन्द है और इस का वसीला सब चीज़ों से अफ़ज़ल है और सआदते अबदी बिगैर इल्मो अमल के हासिल नहीं हो सकती और अमल की कैफ़िय्यत का इल्म न हो तो अमल तक रसाई नहीं होती । 
पता चला कि दुनिया व आख़िरत की अस्ल सआदत इल्म है इसी लिये येह सब से अफ़्ज़ल है ।
 Ulma ki fazilat,Ilmsikhane ki fazikat,इल्म सिखाने की फजीलत .


Ilm ki ukhrawi faeyda
इल्म का उखरवी फाइदा : 

इल्म इस वजह से भी अफ़ज़ल है कि तुम जानते हो किसी चीज़ का नतीजा जितनी अज़मत व शान वाला होगा वोह शै भी उतनी ही फ़ज़ीलत वाली होगी 
और तुम जान चुके हो कि इल्म का उख़रवी फ़ाइदा रब्बुल आलमीन का कुर्ब और फ़िरिश्तों और मलाए आ'ला ( या'नी आस्मानी मख्लूक ) से मिल जाना है
 जब कि दुन्या में इस का फाइदा येह है कि इज्जत व वकार में इज़ाफ़ा , बादशाहों पर हुक्म का नफ़ाज़ और तबीअतों में ज़रूरी तौर पर एहतिराम करना पाया जाता है 
हत्ता कि तुर्की के कुन्द ज़ेहन और अरबों के सख्त मिज़ाज लोग भी तबीअतों के हाथों अपने बड़ों की इज्जत व तौकीर करने पर मजबूर हैं 
इस लिये कि वोह तजरिबे से हासिल होने वाले ज़ियादा इल्म के साथ ख़ास होते हैं बल्कि जानवर भी तबई , तक़ाज़ों की वजह से इन्सान की इज्जत करते हैं
 क्यूंकि इन्हें इस बात का शुऊर है कि इन्सान , कमाल की वजह से इन से ज़ियादा दर्जे का हामिल है 
सब से येह मुतलक इल्म की फजीलत है  फिर उलूम मुख़्तलिफ़ हैं जैसा कि अन करीब आएगा  
लिहाज़ा ज़रूरी है कि इन के फ़ज़ाइल भी मुख़्तलिफ़ हों । इल्म सिखाने और सीखने , की ( मन्कूली ) फजीलत तो इस से ज़ाहिर है जो हम बयान कर आए । ( और अक्ली फ़ज़ीलत येह है कि ) जब इल्म अफ़्ज़ल उमूर में से है तो इसे हासिल करना अफ़ज़ल काम की जुस्तजू करना और सिखाना अफ्ज़ल काम का फाइदा पहुंचाना ठहरा । 
Ulma ki fazilat,Ilmsikhane ki fazikat,इल्म सिखाने की फजीलत .

Baargah e ilahi tak rasai ka jariya 
बारगाहे इलाही तक रसाई का जरिया

 मलूक को दीनी व दुन्यावी दोनों तरह की हाजात दरपेश होती हैं । 
दुन्या का निज़ाम चले बिगैर दीन का निज़ाम नहीं चल सकता क्यूंकि दुन्या आख़िरत की खेती है । 
जो इसे अल्लाह तक पहुंचाने का ज़रीआ और अपनी मन्ज़िल करार दे 
येह उसी के लिये अल्लाह तक पहुंचने का ज़रीआ है न कि उस के लिये जो इसे अपना मुस्तकिल | ठिकाना और वतन बना ले । 
दुन्या का इन्तिज़ाम इन्सानों के आ'माल से ही चलता है और इन्सानों के आ'माल , पेशे और सनअतों की तीन किस्में हैं : उसूल जिन के बगैर दुनियां का निज़ाम नहीं चल सकता । येह चार हैं : 
( 1 )  ज़राअत : खाने के लिये 
( 2 )  कपड़ा बुनाई : पहनने के लिये है । 
( 3 )  ता'मीर : रिहाइश के लिये और 
( 4 )  हिक्मते अमली व तदबीर : बाहमी उल्फ़त , इत्तिहाद और अस्बाबे मईशत की मजबूती पर एक दूसरे के साथ तआवुन के लिये बुन्याद है । 
वोह उमूर जो इन तमाम सनअतों की तय्यारी के काम आते और इन के लिये ख़ादिम की हैसियत रखते हैं : 
जैसे आहन गरी ( या'नी लोहार का पेशा ) ज़राअत बल्कि दीगर सनअतों के भी काम आता है कि खेती बाड़ी करने के औज़ार इसी से तय्यार होते हैं 
और जैसे रूई धुनकना और धागे बनाना यह दोनों कपड़ा बुनने की सनअत में काम आते हैं कि इस के लिये अश्या तय्यार करते ( या'नी सूत वगैरा मुहय्या करते ) हैं । 
 वोह उमूर जो उसूल को पूरा करते और इन की आराइश व जैबाइश करते हैं : जैसे आटा और रोटी ज़िराअत के लिये और कपड़ों की सफ़ेदकारी और सिलाई का पेशा कपड़े बुनाई के लिये । 


इन्सानी आ'जा की अक्साम : मजकूरा तीन उमूर की निस्बत दुन्या के ज़रूरी इन्तिज़ाम की तरफ़ ऐसी है जैसी इन्सान के आ'ज़ा की इस के पूरे बदन की तरफ़ । क्यूंकि आ'जाए इन्सानी भी तीन तरह के हैं : 
( 1 ) उसूल : जैसे दिल , जिगर , दिमाग 
( 2 )  जो उसूल के ख़ादिम हैं : जैसे मे'दा , रगें , शिरयानें , पढ़े और गर्दन की रगें 
( 3 )  इन्हें मुकम्मल करने वाले और इन की जीनत का बाइस बनने वाले : जैसे नाखुन , उंगलियां और अब्रू ।
 इन तीनों में अफ़्ज़ल सनअत उसूल ( बुन्याद ) हैं 
और उसूल में अफ़्ज़ल हिक्मते अमली और तदबीर है जिस से लोगों में उन्स व महब्बत पैदा हो 
और उन की इस्लाह इसी लिये जैसा कमाल इस सनअत वाले के लिये दरकार होता है दूसरी सनअत वालों में मतलूब नहीं होता नीज़ इस सनअत का मालिक दूसरी सनअत वालों से ख़िदमत लेता है । 

Hikmat e amali ke maratib
हिक्मते अमली के मरातिब :

 मलूक की इस्लाह चाहने और दुन्या व आख़िरत में नजात देने वाले सिराते मुस्तकीम की तरफ़ राहनुमाई करने वाली हिक्मते अमली के चार मरातिब हैं : | 
(1) अम्बियाए किराम  की हिक्मते अमली और तदबीर : येह सब से बुलन्द है । इन का हुक्म हर ख़ासो आम के ज़ाहिरो बातिन पर चलता है । 

(2) खुलफ़ा और बादशाहों की हिक्मते अमली : इन का हुक्म भी हर आम व खास पर जारी होता है लेकिन सिर्फ ज़ाहिर पर न कि बातिन पर । 
 जाते बारी तआला और दीने इस्लाम का इल्म रखने वाले (3) वारिसीने अम्बिया की हिक्मते अमली : इन का हुक्म सिर्फ खास लोगों के बातिन पर ही चलता है । आम लोगों की समझ इन से इस्तिफ़ादा करने तक रसाई नहीं पाती और न ही इन्हें लोगों के ज़ाहिर पर कोई हुक्म नाफ़िज़ करने या किसी चीज़ से मन्अ करने या कोई हुक्म जारी करने की कुव्वत हासिल है । 
(4) वाइज़ीन की हिक्मते अमली : इन का हुक्म सिर्फ अवाम के बातिन पर चलता है । 
Ulma ki fazilat,Ilmsikhane ki fazikat,इल्म सिखाने की फजीलत .
Ulma ki fazilat,Ilmsikhane ki fazikat,इल्म सिखाने की फजीलत .
Ulma ki fazilat,Ilmsikhane ki fazikat,इल्म सिखाने की फजीलत 


Nubbowwat ke baad sab se afzal amal
नबुव्वत के बाद सब से अफ्जल अमल : 

इन चारों में से नबुव्वत के बाद सब से अफ़्ज़ल अमल , इल्म का फाइदा पहुंचाना , । 
लोगों के दिलों को हलाक कर देने वाली बुरी आदतों से पाक करना , अच्छी और बाइषे सआदत खस्लतों की तरफ़ इन की राहनुमाई करना है ।
 इल्म सिखाने से येही मुराद है । 
हम ने इसे तमाम , सनअतों और पेशों से अफ़्ज़ल इस लिये कहा क्यूंकि किसी भी सनअत व हिरफ़त की अज़मत , तीन बातों से पहचानी जाती है : 
(1) या तो इस ख़स्लत व फ़ितरत को देखा जाता है जिस
के जरीए इस फ़न की मा'रिफ़त हासिल होती है : 
जैसे उलूमे अकलिया उलूमे लुगविया से इस लिये अफ़ज़ल हैं कि हिक्मत के हुसूल का ज़रीआ अक्ल है जब कि लुगत समाई चीज़ है ( या'नी इस का तअल्लुक कुव्वते हिसया [ एहसास की ताकत ] से है ) और अक्ल समाअत से अफ़ज़ल है । 


( 2 )  या नफ्अ को देखा जाता है कि किस का नफ्अ ज़ियादा है : जैसे ज़िराअत ज़रगरी ( सुनार के पेशे ) की बनिस्बत ज़ियादा फ़ज़ीलत रखती है । 
( 3 )  या उस जगह व महल को देखा जाता है जिस में तसर्रुफ़ होता है : जैसे ज़रगरी चमड़ा रंगने के पेशे से अफ़ज़ल है क्यूंकि ज़रगरी का महल सोना है 
जब कि चमड़ा रंगने का महल मुर्दार की खाल है । नीज़ येह बात ज़ाहिर  है कि उलूमे दीनिया जो तरीके आख़िरत को समझने का नाम हैं इन का हुसूल कमाले अक्ल और जहन की सफ़ाई के जरीए होता है 
और अक्ले इन्सानी सिफ़ात में से सब से अफ़ज़ल है जैसा कि इस का बयान आगे आएगा 
और इस की वजह येह है कि इसी के जरीए अल्लाह की अमानत को क़बूल किया जाता और इसी से कुर्बे इलाही तक रसाई होती है ।
जहां तक नफ्अ आम होने का तअल्लुक है तो इस में कोई शक नहीं कि इल्म का नफ्अ कसीर है 
क्यूंकि इस का नफ्अ और नतीजा आख़िरत की सआदत है 
और रहा इस के महल का मुअज्ज़ज़ होना तो येह बात किस तरह पोशीदा रह सकती है ? 
क्यूंकि मुअल्लिम ( या'नी इल्म सिखाने वाला उस्ताज़ ) इन्सानों के दिलों और नुफूस में तसर्रुफ़ करता है नीज़ ज़मीन पर मौजूद हर चीज़ से ज़ियादा शरफ़ इन्सान को हासिल है 
और इस के आ'ज़ा में से सब से अफ़ज़ल इस का दिल है और मुअल्लिम इस की तक्मील करने , इसे रोशनी पहुंचाने , ( गुनाहों की गलाज़त से ) पाको साफ़ करने और कुर्बे खुदावन्दी तक पहुंचाने में मश्गूल रहता है । 
Ulma ki fazilat,Ilmsikhane ki fazikat,इल्म सिखाने की फजीलत .

Ibadat e ilahi aour khilafat e ilahi 
इबादते इलाही और खिलाफ़ते इलाही : 


इल्म सिखाना एक हैसियत से अल्लाह की इबादत और एक ए'तिबार से अल्लाह की ख़िलाफ़त है । बल्कि येह अल्लाह की बहुत बड़ी ख़िलाफ़त है क्यूंकि अल्लाह आलिम के दिल पर अपनी सब से ख़ास सिफ़त ( या'नी इल्म ) खोल देता है । वोह अल्लाह के उम्दा ख़ज़ानों का ख़ाज़िन ( खज़ानची ) है और उसे ख़ज़ानए इल्म को हर मोहताजे इल्म पर सर्फ करने का हुक्म दिया गया है
 लिहाज़ा इस से बढ़ कर क्या रुतबा हो सकता है कि बन्दा अपने रब और उस की मलूक के दरमियान वासिता बन कर बन्दों को अल्लाह के करीब कर दे और जन्नत की तरफ़ ले जाए । 
अल्लाह अपने फज्लो करम से हमें भी इन में से कर दे और हर नेक बन्दे पर अल्लाह की रहमत हो । ( आमीन )



नोट :- यह तमाम पोस्ट अहयाउल उलूम के बाब इल्म सिखाने की फजीलत से लिखा गया है और ज्यादा पढ़ने के लिए अहयाउल उलूम का मुतालआ करें 

Ulma ki fazilat,Ilmsikhane ki fazikat,इल्म सिखाने की फजीलत .

हमारे दूसरे पोस्ट के पढने के  लिए नीचे लिस्ट लिन्क कर दी गई है 

Next post 



Best post




Best post




Next post 


New post




Next post
























































































पोस्ट अच्छी लगे तो अपने दोस्तों के साथ शेयर करे और दूसरों की रहनुमाई करें हमारे पोस्ट को दूसरों तक पहुंचाने में शामिल हों और एक बेहतरीन जानकारी देने में हिस्सा लें
अगर आप सभी दोस्तों कों हमारी जानकारी अच्छी लगी हो तो हमारी माली मदद कर सकते हैं जिससे हम और भी अच्छे तरीके से अपने मित्रों के साथ अपनी पोस्ट  साझा करने में खुशी होगी
अगर आप हमारे पोस्ट को पढतें हैं और अगर पढने के बाद समझ में नहीं आये तो कमेन्ट करें हम जरुर उसका जवाब देगें
मदद करने के लिए इस लिंक पर जायें 
                       
Donations 

https://jilanidhanpuri.blogspot.com/p/donations.html?m=1


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ