Quraan ilm aour ulma कुरआन इल्म और उल्मा
( 1 ) नबिय्ये अकरम स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम का इरशाद है कि जिस ने कुरआने मजीद की तिलावत की फिर यह समझा कि किसी को इस से भी उम्दा चीज़ दी गई है तो गोया उस ने अल्लाह तआला की अज़मत को मामूली समझा है ।
( 2 ) इरशादे नबवी है कि अल्लाह तआला के पास कुरआने मजीद से ज़ियादा मर्तबे वाला कोई शफ़ीअ नहीं है ।
( 3 ) एक और फ़रमान है कि मेरी उम्मत की बेहतरीन इबादत कुरआने मजीद की तिलावत है ।
( 4 ) एक और इरशाद है कि तुम में से ज़ियादा बेहतर वोह है जो कुरआने मजीद पढ़े और पढ़ाए
( 5 ) मज़ीद फ़रमाया कि दिलों को जंग इस तरह लग जाता है जैसे लोहे को , अर्ज किया गया : इस की चमक - दमक फिर कैसे लौटती है ? आप ने फ़रमाया : तिलावते कुरआन और मौत को याद करने से ।
हज़रते फुजैल बिन इयाज़ का कौल है कि कुरआने करीम का इल्म रखने वाला इस्लाम का झन्डा उठाने वाला है लिहाजा उस के लिये येह मुनासिब नहीं कि वोह लह्वो लइब में मश्गूल लोगों के साथ मिल कर लह्वो लड़ब में मश्गूल हो जाए , भूलने वाले के साथ भूले नहीं और बेहूदा लोगों के साथ मिल कर बेहूदगी न करे क्यूंकि येह कुरआने मजीद की ता'ज़ीम के ख़िलाफ़ है
आप ने मजीद फ़रमाया : जो सुब्ह करते ही सूरए हश्र की आख़िरी आयात की तिलावत करता है , अगर वोह उसी दिन मर जाए तो उसे शुहदा में लिखा जाता है और उस पर शहीदों की मोहर लगाई जाती है और जो शख्स इन को रात की इब्तिदा में तिलावत करता है और अगर वोह उसी रात मर जाए तो उस पर शहीदों की मोहर लगाई जाती है ।
ilm aour ulma ki fazilat,इल्म और उलमा की फजीलत,علم اور علماء کی فضیلت
इस सिलसिले में बहुत ही कसरत से अहादीस वारिद हैं चुनान्चे ,
( 1 ) हुजूर स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं कि अल्लाह तआला जिस शख्स से भलाई का इरादा फ़रमाता है उसे दीन की समझ देता है और उसे राहे रास्त की हिदायत फ़रमाता है ।
( 2 ) नीज़ इरशादे गिरामी है कि उलमा , अम्बियाए किराम के वारिस हैं ।
( 3 ) और येह बदीही बात है कि अम्बियाए किराम से बढ़ कर किसी का रुत्बा नहीं और अम्बियाए किराम के वारिसों से बढ़ कर किसी वारिस का मर्तबा नहीं है । फ़रमाने नबवी है कि सब लोगों से अफ्ज़ल वोह मोमिन आलिम है कि जब उस की तरफ़ रुजू किया जाए तो वोह नफ्अ दे और जब उस से बे नियाज़ी बरती जाए तो वोह भी बे नियाज़ हो जाए ।
( 4 ) नीज़ इरशाद फ़रमाया कि मर्तबए नुबुव्वत से सब से ज़ियादा करीब , आलिम और मुजाहिद हैं ।
( 5 ) उल्मा इस लिये कि इन्हों ने रसूलों के पैगामात लोगों तक पहुंचाए और मुजाहिद इस लिये कि इन्हों ने अम्बियाए किराम के अहकामात को ब ज़ोरे शम्शीर पूरा किया और उन के अहकामात की पैरवी की , मजीद इरशाद है कि पूरे कबीले की मौत एक आलिम की मौत से आसान है ।
( 6 ) और फ़रमाया कि क़ियामत के दिन उलमा की सियाही की दवातें शुहदा के खून के बराबर तोली जाएंगी ।
Quraan ilm ulma कुरआन इल्म और उल्मा |
( 7 ) हुजूर स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम का फरमान है कि आलिम इल्म से कभी सैर नहीं होता यहां तक कि जन्नत में पहुंच जाता है ।
मजीद फ़रमाया कि
( 1 ) मेरी उम्मत की हलाकत दो चीज़ों में है , इल्म का छोड़ देना और माल का जमअ करना
( 2 ) एक और इरशाद है कि आलिम बन या मुतअल्लिम , या इल्मी गुफ़्त्गू सुनने वाला या इल्म से महब्बत करने वाला बन और पांचवां या'नी इल्म से बुग्ज़ रखने वाला न बन कि हलाक हो जाएगा ।
( 3 ) और फ़रमाया कि तकब्बुर इल्म के लिये बहुत बड़ी मुसीबत है ।
( 4 ) हुकमा का कौल है कि जो सरदारी के हुसूल के लिये इल्म हासिल करता है वोह तौफ़ीक़ और रइय्यत दारी का एहसास खो देता है ।
फ़रमाने इलाही है :
तर्जमए कन्जुल ईमान : और मैं अपनी आयतों से उन्हें फेर दूंगा जो ज़मीन में नाहक अपनी बड़ाई चाहते हैं । अलबत्ता मैं अपनी निशानियों से ऐसे लोगों को फेर दूंगा जो दुन्या में तकब्बुर करते हैं ।
हज़रते शाफेई का कौल है कि जिस ने कुरआन का इल्म सीखा उस की कीमत बढ़ गई , जिस ने इल्मे फ़िक़ह सीखा उस की क़द्र बढ़ गई , जिस ने हदीस सीखी उस की दलील क़वी हुई , जिस ने हिसाब सीखा उस की अक्ल पुख्ता हुई , जिस ने नादिर बातें सीखीं उस की तबीअत नर्म हुई और जिस शख्स ने अपनी इज्जत नहीं की उसे इल्म ने कोई फ़ाइदा न दिया ।
हज़रते हसन बिन अली का इरशाद है कि जो शख्स उलमा की महफ़िल में अक्सर हाज़िर होता है उस की ज़बान की रुकावट दूर होती है , ज़ेह्न की उलझनें खुल जाती हैं और जो कुछ वोह हासिल करता है उस के लिये बाइसे मसर्रत होता है । उस का इल्म उस के लिये एक विलायत है और फाइदामन्द होता है ।
(5 ) फ़रमाने नबवी है कि अल्लाह तआला जिस बन्दे को रद्द कर देता है , इल्म को उस से दूर कर देता है ।
( 6 ) एक और इरशाद में है कि जहालत से बढ़ कर कोई फ़क्र नहीं है ।
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