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 कज़ा नामज़ का बयान qaza namaz kaise padhe jati hai,kajaye umri namaz ka tarika in hindi


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kajaye umri namaz ka tarika in hindi

कज़ा नामज़ का बयान  kaza namaz ka bayan

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हदीस न .1 : - गज़वए खन्दक में हुजूर अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की चार नमाज़ मुशरिकीन की वजह से जाती रहीं यहाँ तक कि रात का कुछ हिस्सा चला गया ।
 हज़रत बिलाल रदियल्लाहु तआला अन्हु को हुक्म फरमाया , उन्होंने अजा़न व इकामत कही । हुजूर सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम ने जोहर की नमाज़ पढ़ी फिर इकामत कही तो अस्र की पढ़ी फिर इकामत कही तो मगरिब की पढ़ी फिर इकामत कही तो इशा की पढ़ी । 
हदीस न .2 : - इमाम अहमद ने अबी जुमआ हबीब इब्ने सब्बान से रिवायत की कि ग़ज़वए अहज़ाब में मगरिब की नमाज़ पढ़ कर फारिग हुए तो फरमाया किसी को मालूम है मैंने अस्र की नमाज़ पढी है ?

 लोगों ने अर्ज की नहीं पढ़ी । मुअज़्जिन को हुक्म फरमाया उसने इकामत कही । हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने अस्र की नमाज़ पढ़ी फिर मगरिब का इआदा किया यान दोबारा पढ़ी । 

तबरानी व बहकी इब्ने उमर रदियल्लाहु तआला अन्हुम से रावी फरमाया जो शख्स को भूल जाये और याद उस वक़्त आये कि इमाम के साथ हो तो पूरी करे फिर भूली हुई पढ़े फिर उसको पढ़े जिस को इमाम के साथ पढ़ा । 
सही बुखारी मुस्लिम में है कि हुजूर फरमाते हैं ।

 सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जो नमाज़ मे सो जाये या भूल जाये तो जब याद आये पढ़ ले कि वही उसका वक्त है । 

सही मुस्लिम शरीफ की रिवायत में यह भी है कि सोते में ( अगर नमाज़ जाती रही ) तो कुसूर नहीं कुसूर तो बेदारी में है ।
 
मसअला : बिला उज्रे शरई नमाज़ कज़ा कर देना बहुत सख्त गुनाह है उस पर फर्ज़ है कि उसकी कज़ा पढ़े और सच्चे दिल से तौबा करे । तौबा या हज्जे मकबूल से गुनाह माफ हो जायेगा

 मसअला : तौबा जब ही सही है कि कज़ा पढ़ ले उसको तो अदा न करे तौबा किये जाये यह तौबा नहीं कि वह नमाज़ जो उसके जिम्मे थी उसका न पढ़ना तो अब भी बाकी है और जब गुनाह से बाज़ न आया तौबा कहाँ हुई । ( दुर्रेमुखतार मअ रदुल मुहतार  ) 
हदीस में फरमाया गुनाह पर काइम रहकर इस्तिगफार करने वाला उसके मिस्ल है जो अपने रब से ठट्ठा करता है । 

Namaj kaja karne ka ujar|namaz kaza karne ka uzar नमाज कज़ा करने के उज्र 

मसअला : दुश्मन का खौफ नमाज़ कज़ा कर देने के लिए उज्र है । मसलन मुसाफिर को चोर और डाकूओं का सही अंदेशा है तो इसकी वजह से वक्ती नमाज़ कज़ा कर सकता है बशर्ते कि किसी तरह नमाज़ पढ़ने पर कादिर न हो 

और अगर सवार है और सवारी पर पढ़ सकता है अगर्चे चलने ही की हालत में यां बैठ कर पढ़ सकता है तो उज्र न हुआ , यूँही अगर किब्ले को मुँह करता है तो दुश्मन का सामना होता है तो जिस रूख बन पड़े पढ़ ले हो जायेगी वर्ना नमाज़ कजा करने का गुनाह हुआ । ( दुर्रेमुखतार मअ रदुल मुहतार  ) 

मसला : - जनाई ( दाई ) नमाज़ पढ़ेगी तो बच्चे के मर जाने का अंदेशा है नमाज़ कज़ा करने के लिए यह उज्र है । 
बच्चे का . सर बाहर आ गया और निफास से पहले वक्त खत्म हो जायेगा तो इस हालत में भी माँ पर नमाज पढ़ना फर्ज है न पढ़ेगी गुनाहगार होगी । 

किसी बर्तन में बच्चे का सर रख कर जिससे उसको सदमा न पहुँचे नमाजे पढ़े मगर इस तरकीब से पढ़ने में भी बच्चे के मर जाने का अंदेशा हो तो ताखीर ( देर ) मुआफ है निफास खत्म हो जाने के बाद इस नमाज की कजा पढ़े ( दुर्रे मुखतार मअ रद्दुल मुहतार  )


मसअला :  जिस चीज़ का बन्दों पर हुक्म है उसे वक्त पर बज़ा लाने को अदा कहते हैं और वक्त के बाद अमल में लाना कजा है और उस हुक्म में बजा लाने में कोई खराबी पैदा हो जाये तो दोबारा वह खराबी दफा करने के लिए करना इआदा है । ( दुर्रेमुखतार मअ रदुल मुहतार  ) 

मसअला: वक्त में अगर तहरीमा बाँध लिया नमाज़ कजा न हुई बल्कि अदा है ( दुर्रेमुखतार ) मगर नमाजे फज्र व जुमा व ईदैन की इनमें सलाम से पहले भी अगर वक़्त निकल गया नमाज़ जाती रही  
मसअला : सोते में या भूल से नमाज कजा हो गई तो उसकी कज़ा पढ़नी फर्ज है अलबत्ता कज़ा का गुनाह उस पर नहीं मगर बेदार होने और याद आने पर अगर वक्ते मकरूह न हो ।
तो उस वक्त पढ़ ले ताखीर ( देर करना ) मकरूह है कि हदीस में इरशाद फरमाया नमाज़ से भूल जाये या सो जाये तो याद आने पर पढ़ ले कि वही उसका वक्त है । ( आलमगीरी वगैरा ) 

मगर दुखूले वक्त के बाद ( यानी वक्त शुरू होने के बाद ) सो गया फिर वक्त निकल गया तो कतअन गुनहगार हुआ जबकि जागने पर सही एअतिमाद न हो या जगाने वाला मौजूद न हो बल्कि फज्र में दुखूले वक्त से पहले भी सोने की इजाजत नहीं हो सकती

 जबकि अक्सर हिस्सा रात का जागने में गुज़रा और जन है ( यानी गालिब गुमान है ) कि अब सो गया तो वक़्त में आँख न खुलेगी तो भी सोने की इजाजत नहीं । 

मसअला : - कोई सो रहा है या नमाज़ पढ़ना भूल गया तो जिसे मालूम हो उस पर वाजिब है कि सोते को जगा दे और भूले हुए को याद दिला दे । ( दुर्रेमुखतार मअ रदुल मुहतार  ) 

मसला : - जब यह अंदेशा हो कि सुबह की नमाज़ जाती रहेगी तो बिला ज़रूरत शरइय्या उसे रात देर तक जागना मना है । ( दुर्रेमुखतार मअ रदुल मुहतार  ) 

मसअला : - फर्ज की कजा फर्ज है और वाजिब की कज़ा वाजिब और सुन्नत की कज़ा सुन्नत यानी वह सुन्नतें जिनकी कजा है मसलन फज की सुन्नतें जबकि फर्ज भी फौत हो गया हो और जोहर की पहली सुन्नतें जबकि जोहर का वक्त बाकी हो । ( दुर्रेमुखतार मअ रदुल मुहतार ) 

मसअला : कजा के लिए कोई वक़्त मुअय्यन ( मुकर्रर ) नहीं । उम्र में जब भी पढ़ेगा बरीउज़्ज़िम्मा हो जायेगा । तुलू व गुरूब और जवाल के वक्त कि इन तीन वक्तों में नमाज जाइज नहीं । यानी इन तीन वक्तों के अलावा उम्र में किसी भी नमाज़ की कज़ा किसी भी वक्त पढ़ सकता है ( आलमगीरी ) 

मसअला : - मजनून ( पागल ) की हालते जुनून ( पगलई ) में जो नमानें फौत हुई अच्छे होने के बाद उनकी कज़ा वाजिब नहीं जबकि जुनून नमाज़ के छह वक्ते कामिल तक ( यानी पूरे छ : वक़्त ) जुनून बराबर रहा हो । ( आलमगी ) 

मसला : - जो शख्स मआजल्लाह मुरतद हो गया फिर इस्लाम लाया तो ज़मानए इर्तेदाद ( इस्लाम से फिर जाने के जमाना ) की नमाजों की कजा नहीं और मुर्तद होने से पहले जमानए इस्लाम में जो नमाजें जाती रही थीं उनकी कज़ा वाजिब है । ( दुर्रेमुखतार मअ रदुल मुहतार  ) 

मसला : - दारुलहरब में कोई शख्स मुसलमान हुआ और अहकामे शरीअत यानी नमाज , रोज़ा जकात वगैरा की उसको इत्तिला न हुई तो जब तक वहाँ रहा उन दिनों की कज़ा उस पर वाजिब नहीं और जब दारुल इस्लाम में आ गया 

तो अब जो नमाज़ कज़ा होगी उसे पढ़ना फर्ज है कि दारुलइस्लाम में अहकाम का न जानना उज्र नहीं और किसी एक शख्स ने भी उसे नमाज़ फर्ज होने की इत्तिला दे दी अगचे फासिक या बच्चा या औरत या गुलाम ने तो अब जितनी न पढ़ेग उनकी कजा वाजिब है ।

 दारुल इस्लाम में मुसलमान हुआ तो जो नमाजें फौत हुई उसकी कज वाजिब है अगर्चे कहे कि मुझे इसका इल्म न था ( दुर्रेमुखतार मअ रदुल मुहतार  ) 


मसअला : - ऐसा मरीज़ कि इशारे से भी नमाज़ नहीं पढ़ सकता अगर यह हालत पूरे छः वक्त तक रही तो इस हालत में जो नमाजें फौत हुई उनकी कजा वाजिब नहीं । ( आलमगीरी )

 मसअला : -- जो नमाज़ जैसी फौत हुई उसकी कजा वैसी ही पढ़ी जायेगी मसलन सफर में नमाज़ कज़ा हुई तो चार रकअत वाली दो ही पढ़ी जायेंगी अगर्चे इकामत की हालत में पढ़े और हालत इकामत में फौत हुई तो चार रकअत वाली की कज़ा चार रकअत हैं अगर्चे सफर में पढ़े । 

अलबत्ता कजा पढ़ने के वक्त कोई उज़ है तो उसका एअतिबार किया जायेगा मसलन जिस वक्त फौत हुई थी उस वक्त खड़ा होकर पढ़ सकता था और अब कियाम नहीं कर सकता तो बैठ कर पढ़े या इस वक्त इशारे ही से पढ़ सकता है तो इशारे से पढ़े और सेहत के बाद उसका इआदा नहीं ( आलमगीरी . )

 मसअला : लड़की इशा की नमाज़ पढ़ कर या बे पढ़े सोई आँख खुली तो मअलूम हुआ कि पहला हैज़ आया तो उस पर वह इशा फर्ज नहीं और एहतिलाम में बालिग हुई तो उसका हुक्म वह है जो लड़के का है पौ फटने से पहले आँख खुली तो उस वक्त की नमाज़ फर्ज है 

अगर्चे पढ़ कर सोई और पौ फटने के बाद आँख खुली तो इशा की नमाज़ लौटाये और उम्र से बालिग हुई यानी उसकी उम्र पूरे पन्द्रह साल की हो गई तो जिस वक्त पूरे पन्द्रह साल की हुई उस वक्त की नमाज़ उस पर फर्ज़ है अगर्चे पहले पढ़ चुकी हो । ( आलमगीरी वगैरा ) 

Kaja namajon me tarteeb wajib hai | kaza namazon me tartib wajib hai  कजा नमाजों में तरतीब वाजिब है 

मसअला : पाँचों फज़ों में ' बाहम ( यानी आपस में ) और फर्ज व वित्र में तरतीब ज़रूरी है कि पहले फज्र फिर जोहर फिर अस्र फिर मगरिब फिर इशा फिर वित्र पढ़े ख्वाह यह सब कज़ा हों 

या बअज ( कुछ ) अदा बाज़ कज़ा मसलन जोहर की कज़ा हो गई तो फर्ज है कि इसे पढ़कर अस्र पढ़े या । वित्र कज़ा हो गया तो उसे पढ़कर फज्र पढ़ें अगर याद होते हुए अस्र या फज्र की पढ़ ली तो नाजाइज़ है । ( आलमगीरी वगैरा ) 

मसला : - अगर वक्त में इतनी गुंजाइश नहीं कि वक़्ती और कज़ायें सब पढ़ ले तो वक़्ती और कज़ा नमाज़ों में जिस की गुंजाइश हो पढ़े बाकी में तरतीब साकित है मसलन इशा व वित्र कज़ा हो गये और फज्र के वक्त में पाँच रकअत की गुंजाइश है तो वित्र व फज्र पढ़े और छह रकअत की वुसअत है तो इशा व फज्र पढ़ें । ( शरहे बकाया ) 

मसला : - तरतीब के लिए मुतलक वक्त का एअतिबार है मुस्तहब वक्त होने की ज़रूरत नहीं तो . जिसकी जोहर की नमाज़ कज़ा हो गई ।
और आफताब ज़र्द होने से पहले जोहर से फारिग नहीं हो सकता मगर आफताब डूबने से पहले दोनों पढ़ सकता है तो ज़ोहर पढ़े फिर अस्र । ( दुर्रे मुखतार मअ रद्दुल मुहतार  ) 

मसअला : - अगर वक्त में इतनी गुन्जाइश है कि मुख्तसर तौर पर पढ़े तो दोनों पढ़ सकता है और उमदा तरीके से पढ़े तो दोनों नमाज़ों की गुंजाइश नहीं ।
तो इस सूरत में भी तरतीब फर्ज़ है और बकद्रे जवाज़ जहाँ तक इख्तिसार कर सकता है करे । ( आलमगीरी ) 

मसअला : वक्त की तंगी से तरतीब साकित होना उस वक्त है कि शुरू करते वक्त , वक्त तंग  हो अगर शुरू करते वक़्त गुन्जाइश थी ।
और यह याद था इस वक़्त से पहले की नमाज़ कजा हो गई है और नमाज़ में तूल दिया ( बढ़ाया ) कि अब वक़्त तंग हो गया ।

तो यह नमाज़ न होगी हाँ अगर तोड़ कर फिर से पढ़े तो हो जायेगी और अगर कज़ा नमाज़ याद न थी और वक्ती नमाज में तूल दिया कि वक़्त तंग हो गया अब याद आ गई तो हो गई , कता न करे यानी तोड़े नहीं । ( आलमगीरी ) 

मसाला : - वक्त तंग होने न होने में इसके गुमान का एअतिबार नहीं बल्कि यह देखा जायेगा कि हकीकतन वक्त तंग था या नहीं ।
मसलन जिसकी नमाज़े इशा कज़ा हो गई और फज्र का वक़्त तंग होना गुमान कर के फज्र की पढ़ ली फिर यह मालूम हुआ कि वक़्त तंग न था तो नमाजे फज्र न हुई 
अब अगर दोनों की गुन्जाइश हो तो इशा पढ़कर फिर फज्र पढ़ें वर्ना फज्र पढ़ ले । 
अगर दो बारा फिर गलती मालूम हुई तो वही हुक्म है।
 यानी दोनों पढ़ सकता है तो दोनों पढ़े वर्ना सिर्फ फज्र पढ़े और अगर फज्र को न लौटाया इशा पढ़ने लगा और बकद्रे तशहहुद बैठने न पाया था कि आफताब निकल आया तो फज्र की नमाज़ जो पढ़ी थी हो गई । 

यूँ ही अगर फज्र की नमाज़ कजा हो गई और ज़ोहर के वक्त में दोनों नमाजों की गुन्जाइश उसके गुमान में नहीं है और ज़ोहर पढ़ ली फिर मलूम हुआ कि गुन्जाइश है।

तो ज़ोहर न हुई फज्र पढ़ कर ज़ोहर पढ़े यहाँ तक कि अगर फज्र पढ़ कर ज़ोहर की एक रकअत पढ़ सकता है तो फज्र पढ़कर ज़ोहर शुरू करे ( आलमगीरी )  
मसअला : जुमे के दिन फज्र की नमाज़ कज़ा हो गई अगर फज्र पढ़ कर जुमे में शरीक हो सकता है तो फ़र्ज़ है कि पहले फज्र पढ़े अगरचे खुतबा होता हो और अगर जुमा न मिलेगा मगर जोहर का वक्त बाकी रहेगा जब भी फज्र पढ़ कर ज़ोहर पढ़े ।

और अगर ऐसा है कि फज्र पढ़ने में जुमा भी जाता रहेगा और ' जुमे के साथ वक़्त भी खत्म हो जायेगा तो जुमा पढ़ ले। फिर फज्र पढ़े इस सूरत में तरतीब साकित है यानी अब तरतीब की ज़रूरत नहीं । ( आलमगीरी )

 मसअला : - अगर वक़्त की तंगी के सबब तरतीब साकित हो गई और वक़्ती नमाज़ पढ़ रहा था कि इसी बीच नमाज़ ही में वक्त खत्म हो गया तो तरतीब अदा न करेगी यानी वक्ती नमाज़ हो गई । ( आलमगीरी )

मगर फज्र व जुमे में कि वक़्त निकल जाने से यह खुद ही नहीं हुई । 

मसअला : - कज़ा नमाज़ याद न रही और वक्तिया ( यानी जिस नमाज़ का वक्त था ) पढ़ ली , पढ़ने के बाद याद आई तो वक्तिया हो गई और पढ़ने में याद आई तो गई । 

मसला : - अपने को बा वुजू गुमान कर के जोहर पढ़ी फिर वुजू करके अस्र पढ़ी फिर मालूम हुआ कि ज़ोहर में वुजू न था तो उन की हो गई सिर्फ जोहर को लौटाये । ( आलमगीरी ) 

मसला : - फज्र की नमाज़ कज़ा हो गई और याद होते हुए जोहर की पढ़ ली फिर फज्र की पढ़ ली तो ज़ोहर की न हुई । अस्र पढ़ते वक्त जोहर की याद थी मगर अपने गुमान में जोहर को जाइज़ समझा था तो अदा की हो गई ।

 गरज़ यह है कि फर्जियत की तरतीब से जो नावाकिफ है उसका हुक्म भूलने वाले की मिस्ल है कि उसकी नमाज़ हो जायेगी । ( दुर्रेमुखतार मअ रद्दुल मुहतार  ) 

मसअला : -  (6) छः नमाजें जब कि कज़ा हो गई कि छटी का वक़्त खत्म हो गया उस पर तरतीब फर्ज नहीं । अब अगर्चे बावजूद वक्त की गुंजाइश और याद के वक्ती पढ़ेगा हो जायेगी  वह सब एक साथ कजा हुई 

मसलन एक दम से (6) छः वक्तों की न पढ़ीं या मुतफर्रिक तौर पर कजा हुई ( यानी अलग -अलग दिनों या वक्तों में ) मसलन छह दिन फज्र की नमाज़ न पढ़ी और बाकी नमाजें पढ़ता रहा।

मगर इनके पढ़ते वक्त वह कज़ायें भूला हुआ था ख्वाह वह सब पुरानी हों या बाज ( कुछ ) नई और बाज़ पुरानी मसलन एक महीने की नमाज न पढ़ी फिर पढ़नी शुरू की फिर एक वक़्त की कज़ा हो गई तो उसके बाद की नमाज़ हो जायेगी अगर्चे इसका कज़ा होना याद हो । ( दुर्रेमुखतार मअ रद्दुल मुहतार ) 

मसला : - जब छ : नमाजें कज़ा होने के सबब तरतीब साकित हो गई तो उन में से अगर बअज़ पढ़ली कि (6)छः से कम रह गई तो वह तरतीब अदा न करेगी यानी अगर उन में से दो बाकी हों तो बावुजूद याद के वक्ती नमाज़ हो जायेगी 

अलत्ता अगर सब कजाएं पढ़ली तो अब फिर साहिबे तरतीब हो गया कि अब अगर कोई नमाज़ कज़ा हो तो गुजरी हुई शर्तों के साथ उसे पढ़े वर्ना न होगी । ( दुर्रेमुखतार मअ रदुल मुहतार  ) 

मसअला : - यूँ हीं अगर भूलने या वक़्त की तंगी के सबब तरतीब साकित हो गई तो वह भी औद न करेगी यानी अब तरतीब का हुक्म फिर नहीं होगा मसलन भूल कर नमाज़ पढ़ ली अब याद आया तो नमाज़ का लौटाना नहीं अगर्चे वक्त में बहुत कुछ गुंजाइश हो । ( दुर्रेमुखतार मअ रदुल मुहतार  ) 

मसअला : - बावुजूद ' याद और गुन्जाइशे वक्त के वक्ती नमाज़ की निस्बत जो कहा गया कि न होगी उससे मुराद यह है कि वह नमाज़ मौकूफ है अगर वक़्ती पढ़ता गया और कज़ा रहने दी तो  जब दोनों मिलकर (6) छ : हो जायेंगी यानी छठी का वक्त ख़त्म हो जायेगा तो सब सही हो गई 
और इस दरमियान में कज़ा पढ़ ली तो सब गईं यानी नफल हो गईं सब को फिर से पढ़े । ( दुर्रेमुखतार मअ रद्दुल मुहतार ) 

मसअला : - बाज ( कुछ ) नमाज़ पढ़ते वक़्त कज़ा याद थी और बअज़ में याद न रही तो जिन में  कजा याद है उन में पाँचवीं का वक़्त ख़त्म हो जाये यानी कज़ा समेत छठी का वक़्त हो जाये तो अब सब हो गई और जिनके अदा करते वक्त कज़ा की याद न थी उनका एअतिबार नहीं । ( दुर्रेमुखतार मअ रदुल मुहतार  ) 

मसअला : - औरत की एक नमाज़ कज़ा हुई उसके बाद हैज़ आ गया तो हैज़ से पाक होकर पहले कज़ा पढ़ ले फिर वक़्ती पढ़े अगर कज़ा याद होते हुए वक़्ती पढ़ेगी न होगी जबकि वक़्त में गुन्जाइश हो । ( आलमगीरी )

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Kaza e umari namaj ke masail|kaja e umri  namaj ka masla  कज़ा - ए - उम्री नमाज़ के मसाइल 

मसला : - जिसके जिम्मे कज़ा नमाजें हों अगर्चे उनका पढ़ना जल्द से जल्द वाजिब है मगर बाल बच्चों की परवरिश वगैरा और अपनी ज़रूरियात की फराहमी के सबब ताखीर ( देर ) जाइज़ है तो 
कारोबार भी करे और जो वक़्त फुर्सत का मिले उसमें कज़ा पढ़ता रहे यहाँ तक कि पूरी हो जायें । ( दुर्रेमुखतार मअ र्दुल मुहतार  ) 

मसअला : - कज़ा नमाज़ नवाफिल से अहम हैं यानी जिस वक़्त नफ़्ल पढ़ता है उन्हें छोड़ कर उनके बदले कज़ायें पढ़े कि बरीउज़्ज़िम्मा हो जाये अलबत्ता तरावीह और बारह रकअतें सुन्नते मुअक्कदा की न छोड़े । ( दुर्रेमुखतार मअ रद्दुल मुहतार  ) 

मसला : - मन्नत की नमाज में किसी खास वक्त या दिन की कैद लगाई तो उसी वक़्त या दिन में पढ़नी वाजिब है वर्ना कजा हो जायेगी और वक्त या दिन मोअय्यन नहीं तो गुन्जाइश है । ( दुर्रेमुखतार मअ रदुल मुहतार  ) 

मसअला : किसी शख्स की एक नमाज़ क़ज़ा हो गई और यह याद नहीं कि कौन सी नमाज़ थी तो एक दिन की सब नमाजें पढ़े । 
यूँ ही अगर दो नामजें दो दिन में कज़ा हुई तो दोनों दिनों की सब नमाजें पढ़े । यूँही तीन दिन की सब नमाजें और पाँच दिन की सब नमाजें । ( आलमगीरी )

 मसला : - एक दिन अम्र की और एक दिन जोहर की कज़ा हो गई और यह याद नहीं कि पहले दिन की कौन नमाज़ है तो जिधर तबीअत जमे उसे पहली करार दे और किसी तरफ दिल नहीं जमता तो जो चाहे पहले पढ़े मगर दूसरी पढ़ने के बाद जो पहले पढ़ी है फेरे और बेहतर यह है
 कि पहले ज़ोहर पढ़े फिर अस्र फिर ज़ोहर का इआदा करे यानी लौटाये और अगर पहले अम्र पढ़ी फिर जोहर फिर अस्र का इआदा किया तो भी हरज नहीं । ( आलमगीरी )
 
मसअला : अस्र की नमाज़ पढ़ने में याद आया कि नमाज़ का एक सजदा रह गया मगर यह याद नहीं कि इसी नमाज़ का रह गया या ज़ोहर का तो जिधर दिल जमे उस पर अमल करे 
और किसी तरफ़ दिल न जमे तो अम्र पूरी कर के आखिर में एक सजदए सहव करे फिर ज़ोहर का इआदा करे फिर अम्र का और इआदा न किया तो भी हरज नहीं ( आलमगीरी ) 

Namaz ke fidiya ke  masaiyl | namaj ke fidiya ka masla keya hai|नमाज़ के फिदया के मसाइल 

मसला : -  जिसकी नमाजें कज़ा हो गई और इन्तिकाल हो गया तो अगर वसीयत कर गया और माल भी छोड़ा तो उसकी तिहाई से हर फर्ज व वित्र के बदले निस्फ साधु गेहूँ या एक साअ जौ तसद्दुक ( सदका ) करें । 
और माल न छोड़ा और दुरसा फिदया देना चाहें तो कुछ माल अपने पास से या कर्ज लेकर मिस्कीन पर तसद्दुक करके उसके कब्जे में दें और मिस्कीन अपनी तरफ से उसे हिबा कर दे और यह कब्ज़ा भी कर ले फिर यह मिस्कीन को दे , 
यूँही लौट फेर करते रहें यहाँ तक कि सबका फिदया अदा हो जाये और अगर माल छोड़ा मगर वह नाकाफी है जब भी यही करें और अगर वसीयत न की और वली अपनी तरफ से बतौरे एहसान फिदया देना चाहे तो दे और अगर माल की तिहाई बकद्रे काफ़ी है 
और वसीयत यह की कि इसमें से थोड़ा लेकर लौट फेर करके फिदया पूरा कर लें और बाकी को दुरसा या और कोई ले ले तो गुनाहगार हुआ।(दुर्रेमुखतार मअ रदुल मुहतार ) 

मसअला : - मय्यत ने वली को अपने बदले नमाज़ पढ़ने की वसीयत की और वली ने पढ़ भी ली तो यह नाकाफी है । यूँही अगर मरज़ की हालत में नमाज़ का फिदया दिया तो अदा न हुआ ।(दुर्रेमुखतार मअ रदुल मुहतार  ) 

मसला : -  बाज नावकिफ यूँ फिदया देते हैं नमाज़ों के फिदये की कीमत लगाकर सबके बदले में कुआन मजीद दे देते हैं । इस तरह कुल फिदया अदा नहीं होता यह सिर्फ बे - अस्ल बात है बल्कि सिर्फ उतना ही अदा होगा जिस कीमत का मुसहफ शरीफ़ है । 

मसला : - शाफई मज़हब की नमाज़ कज़ा हुई उसके बाद हनफी हो गया तो हनफियों के तौर पर कजा पढ़े । ( आलमगीरी ) 

मसअला : - जिसकी नमाज़ों में नुकसान व कराहत हो वह तमाम उम्र की नमाजें फेरे तो अच्छी बात है और कोई खराबी न हो तो न चाहिये और करे तो फज अम्र के बाद न पढ़े और तमाम रकअतें भरी पढ़े और वित्र में कुनूत पढ़ कर तीसरी के बाद कश्दा करे फिर एक और मिलाये कि चार हो जायें । 
यह इसलिए है कि अब जो नामजें पढ़ रहा है वह नफ्ल की तरह हैं लिहाज़ा नफ्ल के अहकाम लागू होंगे और नफ्ल नमाज़ में हर दो रकअत के बाद कदा ज़रूरी है लिहाजा तीन रकअत को चार बना लेना चाहिए । (आलमगीरी ) 

मसअला : कज़ाए उमरी कि शबे कद्र या रमज़ान के आखिरी जुमा में जमाअत से पढ़ते हैं और यह समझते हैं कि उम्र भर की कज़ाएं इसी एक नमाज़ से अदा हो गई यह सिर्फ गलत अकीदा है ।

QAZA E UMRI KI NAMAZ KIS TARAH PADHEY 


Sawal:-   Zaid Ne Sawal kiya hai ke wo Umre Kaja ki Namaz Adda Karna Chata he Wo Kaise Adda Kare Kuch Rahenumai Farmade 

JAWAB :-  bagair uzr e sharai ke namaz Qaza kar dena gunahe kabeera hai .
farz ki Qaza farz hai , aur wajib ki Qaza wajib hai.

Qaza k liye koi waqt motaiyyan nahi jab bhi umr me padhna chahe padh sakta hai .
magar jaldi karni chahiye . aur tulu , zawal , ghoroob k waqt na padhe k in waqton me namaz jayz nahi .
jo namaz jaysi chooti wo wayse hi padhi jaygi 

masalan safar me namaz Qaza hui ab us ko jab b hi padhe ga qasr hi padhe ga .
gar che iqamat ( jo k musafir e sharai na ho ) ki halat me padhe .

aur jo namaz iqamat ki halat me qaza hui wo namaz jab b padhe ga poori padhe ga gar che safar ( 92 kilo miter k safar k irade se apni basti se bahar hua ) me padhe .

magar qaza padhne k waqt gar koi uzr hai to us uzr ka lehaz kiya jay ga .
jab qaza hui thi to khada ho kar namaz padh sakta tha magar ab jab us qaza ko ada karna chahta hai to payr se mazoor hai . 

to bayth kar hi padhe ga  ya ishare se padh sakta hai to ishare padhe ga aur sehat hone k bad iaadah nahi hai .
Ek ya chand ( 6 waqt ki namazon se kam ) chooti to pahle qaza ko ada karna zaroori hai
Agar bahot si chooti haink use yaad b nahi k kitni chootin hai.

To apne baligh honek zamane ko yaad kare aur fir gaur kare andaza lagay k kitni padhi hon gi aur kitni chooti .

 jo chootin hain un me se kitni safari hain aur kitni hazari  aur fir jitne pe dil jam jaay us se kuch zyadah padh jaaye  tarteeb yeh ho gi k pahle farz namazen mukammal kare fir wajib .

Aour ek ek namaz padhta jay  aur niyat qaza ki kare aur mukhtasar andaaz me padhe k jaldi jaldi sab ada ho jayen .

Qaza namaz ka mukhtasar tariqa 

Har roz ki namaz ki qaza 20 Rekaato ki hoti hai , Fajr ki 2 rekaat farz , 4 rekaat zohar , 4 rekaat asr , 3 rekaat Magrib , 4 rekaat Isha ke Farz aur Isha ke 3 Vitr . 

Qaza namaz ki niyat

Qaza me yu Niyyat karni zaruri hai k Niyyat ki Mai ne pehli Fajr jo Mujh se qaza hui ya pehli zohar jo mujh se qaza hui . Isi tarah hamesha har namaz me kiya kare .

aur Jis par qaza namaz bahot kasrat se hain wo asani ke liye agar yu bhi ada kare to jaayez hai k har Ruku aur har sajde me 3,3 baar سبحان ربی العظیم ،سبحان ربی الاعلیٰ (subhana rabbi yal azim,subhana rabbi yal aala) tour ki jagah sirf ek baar hi kahe 

magar ye hamesha har namaz me yaad rakhna chahiye k jab Admi ruku me pura pahoch jaaye us waqt subhana se shuru kare aur jab Rabbi yal azim par khatam kare us waqt ruku se sar uthaaye . 

Isi tarah sajde me bhi jab pura pahoch jaaye us waqt tasbeeh shuru kare aur jab tasbeeh khatam ho jaaye us waqt sajda se sar uthaaye .

 Dosri takhfeef ye k farzo ki teesri aur chauthi rekaat me surah Fatiha ki jagah sirf "  subhan allah " teen baar keh kar ruku me chale jaayen magar wahi khayal zaruri hai ke seedhe khade ho kar tasbeeh shuru karen .

aur tasbeeh puri khade khade keh kar ruku ke liye sar jhukaayen . Ye takhfeef sirf farzo ki teesri aur chauthi rekaat me hai . 

witron ki teeno rekaato me Surah Fatiha aur Surah dono zaruri parhi jaayen .
Teesri takhfeef ye ke pichli " التحیات " Tashahud yaani .

attahiyat ke baad dono duroodo aur dua ki jagah sirf " اللھم صلی علی محمد وآلہ   " allahumma swalle ala mohammad wa aalehi Keh kar salam pher den . 

Chauthi takhfeef witro ki teesri rekaat me dua e qunoot ki jagah " اللہ اکبر " allahu akbar keh kar sirf " اللھم اغفرلی " allahummag firli kahe .

qaza namaz kaise padhe

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 Statement of qaza nomaz


 Hadith no.1: - The four prayers of Huzur Akdas Sallallahu ta'ala alaihi wasallam in Ghazweye Khandak went on because of Mushriqin, even some part of the night went away.  Hazrat Bilal Radiyallahu Ta'ala Anhu ordered, he said Ajan and Iqamat.  Huzoor Sallallaho ta'ala alaihi wasallam read the prayer of Zohar, then said iqamat, then I prayed for Asr, then Iqamat, but I read iqamat and then Ikamat, Iha read

 Hadith no.2: - Imam Ahmad told Abi Jumah Habib Ibne Sabban that if Gazwai was recited after praying the prayer of the Maghrib in Ahza, then someone knows that I have read the prayer of Asr?  People did not read Arj.  He ordered Mu'azhin he ordered.  Huzoor Sallallahu ta'ala alaihi wasallam recited the prayer of Asr, and then recited the prayer of Maghrib.

 Tabrani and Bahki Ibne Umar Radiallahu Ta'ala Anhum made Ravi who forgets the person and remember that when he is with the Imam, he should complete it, then forget it, then read it and read it with the Imam.

 It is right in Bukhari Muslim that Huzoor says.  Sallallahu ta'ala alaihi wasallam who sleeps in namaz or forgets, remember when you read that it is his time.  It is also in the custom of the right Muslim that while sleeping (if the namaz goes on), then it is not saffron, but kusoor.

 Masala: Bila Ujre Shara'i Namaz is very strict to give Kazaa, it is a duty on him to read his Qazaah and to be honest.  The crime will be forgiven by either Tauba or Hajje Maqbool.

 Masala: When it is right that you do not read Kazaa, you should not be paid to it. It is not possible that you do not read the prayer that was responsible for it, and when the hawk did not come from the crime, where did it go.  (Durremukhtar ma Radul Muhtar)

 In the hadith, he is the one who misses by keeping a chime on the crime, and ridicules his god.


 Namaj kaja karne ka ujar | namaz kaza karne ka uzar

 Masala: The fear of the enemy is desolate to offer prayers.  For example, Musafir is rightly suspected of thieves and bandits, because of this, the person can pray prayer provided that the prayer is not in any way, and if the rider is there and can read on the ride, then in the condition of walking, he can read it.  Could not have been desolate, if the enemy faces Kibble, then the enemy is faced, then the attitude which has been made will be read, otherwise it is a crime to offer prayers.  (Durremukhtar ma Radul Muhtar)

 Issue: - If the Janai (midwife) recites the Namaz, the child is expected to die;  Child's.  Sir came out and before nifas time will be over, even in this condition it is a duty to read namaz on mother, she will not be guilty.  Put the head of the child in a vessel so that it does not shock him, but read the prayers, but even in this way, if there is a possibility of the child dying, read the takheer (late), after the Nifas is over, read the prayer of this Namaz (Durremukhtar Ma  Radul muhtar)


 Masala: The thing which is ordered by the prisoners is called Adaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaa.  .  (Durremukhtar ma Radul Muhtar)

 Masala: If the prayer was not performed in time, it is not adoration but it is ada (Durremukhtar) but even before the salute of Namaj Fajr and Zuma and Eidan, if the time went out the prayers continued

 Masala: If the prayer is done in sleep or by mistake, it is obliged to read his Qazaah, but the sin of Kazaa is not on him, but if he is not bespectacled and remembers the speech then read it at that time.  If Irshad forgets the prayer or falls asleep, then read it on remembering that it is his time.  (Alamgiri Wagaira) But after the painful time (ie after the time has started), I have fallen asleep, then when the time is out, there is a lot of wrongdoing, when there is not a true awakening or awakener is present in the wake, but in the fajr to sleep before the painful time  Can not be allowed, while often part of the night is awake and people (ie, Ghalib is proud) that if you are asleep now, you will not be allowed to sleep even if you do not open your eyes in time.

 Masala: - If someone is sleeping or has forgotten to offer namaz, then anyone who knows it is right to wake up the sleeping person and remind the forgotten.  (Durremukhtar ma Radul Muhtar)

 Issue: - When it is expected that the morning prayers will go away, then it is forbidden to stay awake till late in the night.  (Durremukhtar ma Radul Muhtar)

 Masala: - The Qaja of Farz is the duty and the Qazaa of Wajab and the Sunnah of Wajaab means the Sunnah which is the Qajna like the Sunnah of Faj, while the Furj is also broken and the first Sunnah of Zohar while the time of Zohar is left.  (Durremukhtar ma Radul Muhtar)

 Masala: There is no time for Muja (mukrarr).  Whenever you read in age, you will get married.  At the time of Tulu and Gurub and Jawal that in these three times, Namaz is not allowed.  That is, apart from these three times, anyone can pray at any time in his age (Alamgiri).

 Masala: - After the praise of Majnoon (mad) in the recent passion (Paglai), his prayers are not good, while the passion of the prayer is equal to six times Kamil (ie, the whole six times).  (Allegory)

 Issue: - The person who died Muzallah Muratad then brought to Islam, then Zamayne Irtadad (the era of going back to Islam) is not allowed to pray and the prayers that were offered in Islam before their death are valid.  (Durremukhtar ma Radul Muhtar)

 Issue: - In Darulharb, a person became a Muslim, and he did not notice the Ahkame Shariat i.e. Namaz, Roza Zakat Wagaira, so till the time there remained, the Qazaa of those days was not valid on him and when Darul came to Islam, the prayer that would be offered to him  It is a matter of reading that in Darul Islam, not knowing about Ahkam is not there, and even one person has given him the information to be a prayer; the foremost fascist or child or woman or slave has no right to read them.  If Muslim became a Muslim in Darul Islam, then the prayer that was done is reasonable.

 Masala: - Such a patient can not even offer namaz by the gesture, if this condition lasts for the whole six times, then the prayers that were offered in this condition are not valid.  (Alamgiri)

 Masala: - The prayer that has been performed like prayer will be read in the same way, for example, if there is prayer in the journey, only two of the four Rakat will be read;  Study in the next journey.  However, if someone is old at the time of reading Kaja, then it will be performed, for example, at the time when there was a break, you could stand and read it and if you cannot do it now, you can sit and read it or read it with a gesture at this time.  After health, he is no better (Alamgiri.)

 Masala: The girl opened her eyes after reading the prayer of Isha or read that the first haze came, she did not believe in it and if she was attentive in Ehtilam, her command is that the boy's eye is opened before it bursts.  The prayer of time is obliged; after reading the forehead, slept and after opening the eyes, if the eye is opened, return the prayer of Isha and become old, that is, the age of fifteen years, then the prayer of the time when it was fifteen years.  Have read the foreword earlier.  (Alamgiri Wagaira)

 Kaja namajon me tarteeb wajib hai |  kaza namazon me tartib wajib hai

 Masala: In the five fazs, 'Baham (ie, interconnected) and the order of duty and recitation is necessary to first read Fudge then Johar then Un then Magarib then Isha then Vritra, whether it be all Qaza or Baaz (some) Ad Baz Qaza like Johar  If it is Kaza, it is a duty to read it or read it.  If a friend is dead, then read the fuzz after reading it, if remembering amr or faj is memorized.  (Alamgiri Wagaira)

 Issue: - If there is not enough scope in time to read all the time and prayers, then the time and prayers are there in the prayers, in which the scope is read, for example, Isha and Vritra have become Kaja and there is a scope of five Rakat in the time of Faz.  Read Vritra and Fudge and if there is a vassat of six Rakyat, then read Isha and Fudge.  (Eyes outstanding)

 Issue: - There is a time of needless time for order, if there is no need to have a must.  Whose Zohar prayer is done and Aftab cannot stay away from Zohar before he becomes gold, but Aftab can read both before drowning, then read Zohar then Amr.  (Durremukhtar ma Radul Muhtar)

 Masala: - If there is so much scope in time that both you can read mainly and if you read it properly then there is no scope for both the prayers, then even in this case, there is an order and Bakdre Jawaz can do as much as possible.  (Alamgiri)

 Masala: It is time to get ready by the tightness of time that when starting, time is tight if at the time of starting there was a buzz and it was remembered that the prayer before this time has been chanted and added to the prayer (enhanced) that now  If the time is tight then it will not be a prayer, if it is broken then it will be done again and if the prayer was not memorized, and the teacher said in the prayer that the time was tight, then it was remembered, it should be done, do not cry  No .  (Alamgiri)

 Masala: - In the absence of tight time, it will not be seen that the time of reality is tight or not, for example, whose prayer is like Isha Kaza and the time of Faja is tight, it is learned that after reading Faja  If the time was not tight, then the prayers did not fade, now if both of them had the opportunity, then read Isha and then read the fuzz or else read the fuzz.  If two Baras come to know about the mistake, then it is the same order, that is, both can read, then both read or else only read Fudge and if Fudge did not return, Isha started reading and Bakdre had not been able to sit Tashahud that Aftab came out, then the prayer of Fudge which was read  happened .  As a result, if the prayer of the fajj is done, and in the time of Zohar, the praise of both the namaz is not in its pride and read the poison, then it is known that there is gunjish, then it is not the poison, read the faj, read the zohar, even if it is the zohar by reading the faj  If one can read Rakat, then start the poison by reading Fudge (Alamgiri)

 Masala: On the day of Jumm, the prayer of Fudge has become difficult, if the Fuzz can be read and attended, then it is a matter of fact that the first reading of Fudge is an early affair and if Zuma will not be found, but the time of Zohar will remain, whenever you read the Fazh  And if it is so that fudge will continue to be read and the time will end with juma, then read jumma, then read fuzz, in this case the order is true, that is, there is no need for order.  (Alamgiri)

 Masala: - If the order of the time was tightened and the prayer was praying that in the meantime the time was over in the Namaz itself, then the order would not stop, that is, the prayer became prayer.  (Alamgiri) But it did not happen by itself at the time of fudge and gambling.

 Masala: - The Qaza namaaz could not be remembered and read the vaitiya (ie, the time of prayer), I missed the time of reading, then the time has passed and I missed the reading.

 Issue: - Having vanquished himself, he read the Johar, then after studying Wuju, he came to know again that if there was no Wuju in the Zohar, it was only for Anu to return to Johar.  (Alamgiri)

 Issue: - Fajr's prayer was done and remembering Zohar, remembering Fajr and then Zohar was not done.  Johar was remembered while reading Amra, but in his guise, Johar was considered as a legitimate person.  It is a matter of fact that the person who is unaware of the order of forgiveness, forgets the command that he will be prayed.  (Durremukhtar ma Radul Muhtar)

 Masala: - Six Namaz, while it is clear that the time of the sixth has ended, there is no order on it.  Now even though the scope of time and the words of remembrance will be read, it will not be read all together, for example, for six days at a time, or it is exquisitely (ie in different days or times) for six days.  Did not recite namaz and continued to offer prayers

 But while reading these, the sentences were forgotten, whether they are old or eagle (something) new and hawk old, for example, did not read the namaz for a month, then started to study, then after a period of time, then the prayer will be done after that.  Remember to be Kazaa.  (Durremukhtar ma Radul Muhtar).

 Issue: - When the six prayers become true because of the Qaza, then if the interest of them is read that it is less than six, then it will not perform the order, i.e. if there are two of them then the prayers of remembrance will be prayed.  If Alta read all the books, then again it was a matter of order that if there is any prayer, then it will not be read with the conditions passed.  (Durremukhtar ma Radul Muhtar)

 Masala: - If there is a failure due to forgetting or lack of time, then it will not do any work, that is, the order of the order will not happen again, for example, after reading the prayer after forgetting, now remember that there is not much scope for the prayer in the future  Ho .  (Durremukhtar ma Radul Muhtar)

 Masala: - In spite of the absence of 'Namaz and Gunjishe in times of prayer, it is said that it will not be possible that the prayer is foolish if the time is read and allowed to remain.  When both of them will become six, that is, the time of the sixth will end, then everything is correct and in the meantime, when they read Kazaa, all of them went away, that they failed, read them all again.  (Durremukhtar ma Radul Muhtar)

 Masala: - While reading the prayer (some) prayer, Kaja was remembered and if I did not remember in the interest.  Kaja remembers that the time of the fifth time is over, that is, when it is the time of the sixth with Kazaa, then all is done, and those who did not remember Kaja while paying, did not have a date.  (Durremukhtar ma Radul Muhtar)

 Masala: - If the woman has a prayer, then after the haze has come, then after cooking with the haz, read the Qaza first, then read the time if remembering the Qaza, the time will not be read while there is time.  (Alamgiri)


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 Kaza e umari namaj ke masail | kaja e umri namaj ka masla Qazaa - e - Umri prayers

 Issue: - For those who are responsible for the Qazma prayers, the study of them is possible as soon as possible, but because of the upbringing of the children's children and the Takhir (late) of their need, they should also do business and keep studying in the time when they get free time  Even be complete.  (Durremukhtar ma Radul Muhtar)

 Masala: - Qaza naman is important to the Nawafil i.e. leave the time when nafl is read, instead of them, read the chants so that the barauzzimma should be done;  (Durremukhtar ma Radul Muhtar)

 Issue: - If you are imprisoned for a particular time or day in the prayer, then it is appropriate to study at the same time or day, otherwise it will become difficult and if there is no time or day, there is guilt.  (Durremukhtar ma Radul Muhtar)

 Masala: A prayer has been performed by a person and if you do not remember which prayer was there, then read all the prayers in one day.  If two Namaz were born in two days, then read all the Namaz on both days.  Just three days of all prayers and five days of prayers.  (Alamgiri)

 (Alamgiri)










 In this way, total pay is not paid, it is just a rude thing but it will be paid only for the price of which the Musaf Sharif is.

 (Alamgiri)

 This is because the names that are being read now are like Nafl, so Nafl's Ahkam will be applied and it is probably necessary after every two Rakat in Nafl prayers that three Rakat should be made four.

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