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 आज हम जानेंगे कि जिहाद क्या है जिहादियों की जिन्दगी कैसी होती है आखिर एक तरफ मुस्लिमों को जिहादी बता कर लोग क्या साबित करना चाहते हैं की वह लोग अनपढ़, क्रूर, झगड़ालू,गुस्सैले,फसादी होते हैं हमको यही नहीं समझ में आता है 

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JIHAD meaning hindi

लोग जैसे ही जिहाद शब्द सुनते हैं मुल्लों को फौरन याद करके गाली देना शुरू कर देते हैं मैं आपको विस्तार पूर्वक बताता हूं की जिहाद क्या है

 जिहाद का मतलब है जिद्दो जहद करना यानी कोशिश करना जिहाद एक अरबी भाषा है जिसका हिन्दी अनुवाद कोशिश करना है

और मुस्लिम लोग भी इसे गाली की तरह क्यों समझते हैं

islam Dharm kaisa hai इस्लाम धर्म कैसा है पढ़ने के लिए किलिक करें

इसका मतलब वो इस बात से नावाकिफ हैं आज हम आपको पूरा ज्ञान देंगे।

लोगों के अन्दर डर का माहौल बना कर कुछ लोग अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने में लगे रहते हैं और मजे की बात यह अनपढ़ पब्लिक उनके झांसों में आ जाती है

 और एक वर्ग विशेष को दुश्मनी की नजरों से देखने लगती है लेकिन पढ़ें लिखे लोग जिनको दुनिया समझदार कहती है । वो लोग ऐसा नहीं सोचते

जैसे ही उन्हें कोई बात अटपटी लगती है या नयी बात होती है फौरन उस पर रिसर्च खोज बीन करते है और ऐसे लोगों को होशियार कहा गया है मेरे दोस्तो यहां तो जैसे ही जिहाद शब्द सुनते हैं गाली गलौज करने लगते हैं लेकिन उनका भी इसमें कोई कसूर नहीं होता है

jihad kise kahate hain जिहाद के बहुत से मतलब होते हैं 

लोगों को सिर्फ एक जिहाद के बारे में जानकारी दी जाती है और उसके और जानकारी को छुपायी जाती है या उनको मालूम नहीं होता है जिस के वजह से कोई और जिहादियों की जानकारी मुहय्या नहीं करा पाते।

अल्लाह के प्यारे नबी हज़रत मोहम्मद स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि अपने मां बाप की खिदमत करना जिहाद का काम होता है ।

अब बताओ आज तक आप ने जिहाद को सिर्फ लड़ाई तक ही जानते होंगे की ये जिहादी बड़े क्रूर लोग होते हैं

 जिहाद 6 किस्म के होते हैं पोस्ट पूरा पढ़ते पढ़ते आप लोगों को मालूम हो जाएगा।

जिन भाई मित्रों को ज्यादा जानकारी चाहिए तो जरूर पढ़ें पूरा पोस्ट

एक जिहाद का नाम है जिहाद ए बिल क़लम इसका मतलब यह है कि पढ़ाई 

पढ़ने को अहमियत जिहाद से दी गई है अब बताओ दोस्तो यहां अभी तक लड़ाई को ही जिहाद समझ रहे थे।तो आप को ज्ञान कम है जिहाद के बारे में

इस्लाम में एक जिहाद लडाई भी है लेकिन अपनी स्वयं के लिए नहीं है जब तुम पर कसरत से जुल्म होने लगे तब जिहाद का हुक्म है।

और जिहाद कहीं फ़र्ज़ ए ऐन होता है मतलब करना ही पड़ेगा और कहीं पर जिहाद फ़र्ज़ ए किफाया होता है मतलब कुछ लोगों ने जिहाद किया तो सब लोग को शामिल होने की जरूरत नहीं है वो सब के तरफ से हो जाता है

अब मेरे दोस्तो आप लोग खुद समझदार हो फैसला करने के लिए लेकिन कुछ सवाल मै आप से करूंगा मुस्लिम हो नान मुस्लिम सब दोस्तों से मुझे मालूम है कि आपको जानकारी की नियत से पढ़ रहे हैं जानकारी लेने के लिए

अब मेरा सवाल सुनिए क्या मां बाप की सेवा करने से किसी को कुछ नुकसान हुआ है

मां बाप की खिदमत सेवा करना इस्लाम में जिहाद है अब इस जिहाद को आप किस नजरिया से देखते हैं क्या यह जिहाद दुनिया के लोग नहीं कर रहे हैं अपने मां बाप की सेवा करना लेकिन इसी मुल्के हिन्दुस्तान में मां बाप को कुछ नादान और नासमझ लोग बोझ समझते हैं

 ऐसे लोगों को संदेश है उन बच्चों से की अपनी माता पिता की सेवा कर लो और स्वर्ग में अपना जगह बना लो क्योंकि मां बाप का खिदमत करना इस्लाम में जिहाद कहलाता है मैं और देश के बारे में नहीं जानता लेकिन इस मुल्क में रह रहा हूं वहां की जानकारी है

और मुस्लिम बड़े शौक से इस जिहाद को करते नजर आएंगे।

दूसरा सवाल क्या पढ़ें लिखे लोग ज्यादा समझदार होते हैं या अनपढ़।

पढाई को भी इस्लाम में जिहाद कहा गया है !

इस्लाम का फरमान है :- तुअल्लिमुल इल्मा वा अल्लिमूहुन नास जिसका मतलब है इल्म सीखो और दूसरों को सिखाओ यानी पढाई करो और दूसरों को पढ़ाओ ।

यहां पर एक बात और अरबी भाषा जानने वाले जानते हैं कि यहां पर इस्लाम का हुक्म है खुद इल्म (ज्ञान) सीखो और लोगों को ज्ञान सिखाओ यहां पर यह शब्द नहीं लिखा गया है वा अल्लिमूहुल मुस्लिमीन की ज्ञान लो और मुस्लिमों को ज्ञान सिखाओ बल्कि यहां पर लोगों को सिखाने की बात कही गई है अगर मुस्लिमों को सिखाने का या पढ़ाने का हुक्म होता तो लोग कह सकते थे यह एक वर्ग विशेष के लिए हुक्म है यहां पर इन्सानियत को ज्ञान सिखाओ का हुक्म है और इस्लाम में इसे जिहाद कहा गया है 

मुझे मेरे एक मित्र ने बहुत गहरी बात कह दी जो की आज तक मैंने संभाल कर रखा है और बहुत प्यारी बात कही है एक बार पढ़ लें बात चल रही थी पढ़ाई की सब लोग अपनी अपनी राय और मशवरा दे रहे थे 

ऐसे ही जब उनकी बारी आयी तो उन्होंने कहा भाई अगर हम किसी होटल में जायें और अगर कोई वेटर चाय ला रहा हो और अगर इत्तेफाक से चाय हम में से किसी के ऊपर वेटर चाय गिरा डाला तो आप लोग क्या करेंगे तो हम लोगों ने कहा आप क्या करेंगे पहले आप अपनी राय दें

उन्होंने कहा कि मैं वेटर को फौरन माफ कर दूंगा और समझाऊंगा की दोस्त आराम से अपना कार्य करो हमें कोई जल्दी नहीं है

कुछ लोगों ने कहा हम तो वेटर के ऊपर अपना हाथ साफ करना शुरू कर देंगे कुछ लोगों ने कहा कि हम इसके बदले में अपना बिल नहीं देंगे ऐसी हरकत के वजह से

कुछ लोगों ने कहा दोबारा उस होटल में नहीं जायेंगे सब बैठे बैठे अपनी अपनी राय दे रहे थे इतने में उस मित्र ने सबको रोक कर अपना जवाब को विस्तार से बताया की मै उस वेटर को इस लिए माफ कर दूंगा की वह गरीब और अनपढ़ हैं 

अगर गरीब ना होता तो होटल में वेटर की नौकरी कभी नहीं करता हमारी तुम्हारी तरह ऐश से जिन्दगी गुजार रहा होता

और अगर पढा लिखा होता तो कोई मल्टीनैशनल कम्पनी में या अपना खुद का बिजनेस करता 

आप लोगों के साथ भी कभी ऐसा हो तो माफ़ कर दे उन अनपढ़ और गरीब व्यक्ति का एक दिन की सैलरी कटने से महफूज कर दें वरना आपके वजह से किसी गरीब का या तो उसे नौकरी से निकाल दिया जायेगा या एक दिन की तनख्वाह काट दी जायेगी

दुकानदार मालिक का बहाना यह हो जाएगा तेरे वजह से मेरे कस्टमर नाराज हो गये क्या भरोसा अब वो दोबारा मेरे होटल या रेस्टोरेंट में आते भी है कि नहीं

जो पढ़ा लिखा व्यक्ति होगा वो अपने समझदारी और सूझ बूझ से काम लेगा

तो पढाई के इतने फायदे हैं मेरे उस प्यारे मित्र का नाम अनुभव शुक्ला है बात मध्यप्रदेश की एक छोटे से गांव की है जब मैं वहां रहता था उनकी इस बात ने मुझे बहुत प्रभावित किया और आज भी उनके प्रति मेरे दिल में सम्मान उतना ही है अनुभव भाई अगर आप मेरा लेख पढ़ रहे हो तो मैं अपने लेख के माध्यम से आपको धन्यवाद देता हूं 

आप ने ज्ञान की इतनी बड़ी बात हम लोगों के साथ मजाक मजाक मे कह कर ज्ञान के प्रति सम्मान बढ़ाया 

अब चलते हैं अपने सवाल पर क्या पढ़ाई लिखाई करना कोई ग़लत काम है मेरे हिसाब से कोई भी गलत काम नहीं लगता है अब इस्लाम ने पढ़ाई लिखाई करने को जिहाद कहा गया है मेरे हिसाब से यह जिहाद मुस्लिम नान मुस्लिम सब को करना चाहिए आप लोगों को क्या लगता है।

और एक जिहाद का फतवा जब अंग्रेजों ने हिन्दुस्तान में कब्जा कर लिया और हिन्दुस्तानियों पर ज़ुल्मो सितम के पहाड़ तोड़े जा रहे थे । इन सब परिस्थितियों से हिन्दुस्तानी परेशान हो गए थे ऐसे समय में अल्लामा फज्ले हक खैराबादी ने फतवा ए जिहाद का फतवा जारी किया गया था । उसके बाद मुसलमानों ने अंग्रेजों से लडने में जी जान लगा दिया था और सवाब की उम्मीद से अंग्रेजी हुकूमत से भिड़ गए थे किसके वजह से इस फतवा ए जिहाद के वजह से मुसलमानों में यह पहला फतवा ए जिहाद अल्लमा मौलाना मुफ्ती फज्ले हक खैराबादी ने दी थी।

इसके बदले में उन्हें काला पानी की सज़ा सुनाई गई और बाद में फांसी पर भी चढ़ाया गया था

उन्होंने ने फांसी चढ़ने से पहले ये शायरी पढ़ी थी। जो आज तक हमारे दिलों में उनकी शायरी के वजह से और भी ज्यादा मशहूर हुए

शायरी यह है एक कडी याद है बाकी किताबों से देखें या Youtbe पर सुन लें।

कोई गुल बाकी रहेगा ना चमन रह जायेगा

पर रसूलल्लाह का दीने हसन रह जायेगा।

 Aaj ham Neeche likhe jihad ke alag alag topic par baat kanrenge ki ye lagatar aaye din ham log jihad word sunte hain wo hai keya uska matlab keya keya hote hain ye sab jannenge ki jihad meaning Hindi english urdu language me thoda thoda sabhi language me jaanne ki koshish karenge. 

Ye sab question Hain Jo mujhe mere friends ne mail whatsapp call ke jariye poonchna chaha to mai sab ko ek date bata diya ki kis kis ko jihad ka matalab bata paunga mai khud pareshan ho jaunga is liye sabka answer aaj le kar hajir hun

 agar padhne ke baad aap logon ke knowledge me badotri ho to apne infomgm friend ko yaad karna aour kuch doston me share kar dena.

(1) jihad meaning ?

(2) jihad meaning in hindi?

(3) jihad meaning ?

(4) jihad meaning in hindi ?

(5) jihad meaning in english ?

(6) jihad meaning in urdu ?

(7) jihad meaning in islam?

(8) jihadi ka matlab ?

(9) jihadi ka ?

(10) jihadi kaun hote hain ?

(11) jihad kab farz hota hai ?

(12) jihad ka matlab kya hai?

(13) जिहाद का हिन्दी अर्थ ?

(14) लव जिहाद का अर्थ हिंदी में ?

(15) जिहाद का असली अर्थ?

(16) लव जिहाद का कारण in English ?

(17) जिहाद meaning in English ?

(18) भारत में इस्लामिक जिहाद ?

(19) Jihad meaning ?

(20) लव जिहाद रोकने के उपाय ?

(21) जिहाद का नारा किसने दिया?

(22) jihad ?

(23) jihad meaning ?

(24) jihad meaning in hindi?

(25) jihad keya ?

(26) jihad kya hai ?

(27) love jihad kya hai?

(28) jihad kise kahate hain ?

(29) jihad ki dua ?

(30) jihad ki fazilat ?

(31) jihad kise kahte hai?

(32) jihad ki ahmiyat ?

(33) islam mein jihad ki ahmiyat in urdu ?

(34) jihad ki zaroorat o ahmiyat?

Ye sab question aap doston ne padha ab iska answer bhi padh le

(1) jihad meaning ?

Answer:- jihad ka meaning koshish karna

(2) jihad meaning in hindi?

Answer :- jihad meaning hindi me paryash karna

(3) jihad meaning ?

Answer :- koshish karte rahna

(4) jihad meaning in hindi ?

Answer:- Use ji jaan se us kaam ko karna arbi me jihad kahlata hai

(5) jihad meaning in english ?

Answer:- jihad meaning in english - To try , 

ALTERNATE TRANSLATION VERB

endeavor , seek ,essay, endeavour, strive

(6) jihad meaning in urdu ?

Answer :- Mehnat se us kaam ko mukammal karna

(7) jihad meaning in islam?

Answer:- according To islam jihad apne nafash par control karna

(8) jihadi ka matlab ?

Answer:- Allah ke khushi ke liye us ke ahkamon par amal karna

(9) jihadi ka ?

(10) jihadi kaun hote hain ?

Answer:- Jihad ka matalab koshish karna paryash karna hota hai jo ki arbi word Hai aour Quran me jihad ke aayte nazil hui hai jisse log musalmano ko jihadi kaha jaata hai

(11) jihad kab farz hota hai ?

Answer :- jab islami nizam ko log darham barham karne lag jayen mai example deta hun hazrat imam e husain ki aap ke zamane me jab jo cheezen haram thi use halal kaha jaane laga aise waqt me imam e husain ne yazid se jihad kiya tha aour aise maouke par jihad farz hota hai

(12) jihad ka matlab kya hai?

Answer :- jihad ka matlab koshish karna hota hai

(13) जिहाद का हिन्दी अर्थ ?

Answer :- जिहाद एक अरबी भाषा का शब्द है जिसका हिन्दी अर्थ कोशिश करना है।

(14) लव जिहाद का अर्थ हिंदी में ?

Answer :- लव जिहाद का मुझे नहीं मालूम है जो लोग इस शब्द को समाज में फैलाये हैं वो उन्हीं से जानकारी प्राप्त हो सकती है जो मेरे ज्ञान में है वह मै न्यूज चैनल समाचार एवं सोशल मीडिया के जरिए इस लव जिहाद का नाम सुना हूं ऐसी कोई भी किताब मेरी नज़रों से नही गुजरी है ना ही पढ़ी है

(15) जिहाद का असली अर्थ?

Answer :- जिहाद का असली अर्थ कोशिश करना है जिहाद की 6 किस्में हैं आगे विस्तार पूर्वक लिखा जायेगा।

(16) लव जिहाद का कारण in English ?

(17) जिहाद meaning in English ?

Answer :- जिहाद meaning in English is to try, endeavor , seek ,essay, endeavour, strive

(18) भारत में इस्लामिक जिहाद ?

Answer :- सबसे पहले हम सब हिन्दुस्तानी परेशान हाल हो जाते हैं जिहाद शब्द सुनते ही और वो सब न्यूज चैनल को देखते हैं तब और मन मे ना जाने कितने गालियां बकने लगते हैं वो भी बिना सोंचे समझे जिहाद के बहुत से अर्थ होते हैं लेकिन न्यूज चैनल समाचार मीडिया एक वर्ग विशेष को टारगेट करता है अपनी कमाई के चक्कर में जिहाद की पूरी जानकारी ना होने के वजह से हम ऐसा सोचने लगते हैं लेकिन हम आगे विस्तार से जानकारी देंगे।

(19) Jihad meaning ?

Answer :- jihad meaning to try, endeavor , seek ,essay, endeavour, strive

(20) लव जिहाद रोकने के उपाय ?

Answer :- यह एक सवाल अच्छा लगा मुझे पर्सनल मै मुस्लिम हूं खुद लेकिन जब ऐसा सुनने में आता है फला आदमी की लड़की एक मुल्ला के साथ भाग गयी है या कोर्ट मैरिज कर ली है और कानून का फायदा उठा रहे हैं या फला आदमी की लड़की एक हिन्दू लड़के के साथ भाग गयी है या कोर्ट मैरिज कर ली है और कानून का फायदा उठा रहे हैं ।

ये जानने के बाद बड़ी तकलीफ़ होती है वे लोग जो ऐसा करते हैं वो अक्सर देखने में यह आता है कालेज स्टूडेंट्स होते हैं ये पढ़ें लिखे लोग अपने आप को काबिल और समझदार समझते हैं लेकिन मेरे नज़रों में ये ऐसा कृत्य करके सबसे बड़े अनपढ़ होने का सबूत देते हैं

इससे अच्छा तो वह लोग होते हैं जो अनपढ़ होते हुए भी ऐसा घिनौना कृत्य नहीं करते वे लोग अपने समाज रिति रिवाज को अहमियत देते हैं ऐसे अनपढ़ लोग मेरे नज़रों में हीरो है।

एक माता पिता बचपन से ही उसे बडे़ नाजों के साथ पालते पोसते है।

लेकिन जब शादी की बारी आती है ऐसे समय माता पिता दुश्मन की तरह लगने लगते हैं ऐसे लोग मेरे हिसाब से कभी भी सुख प्राप्त नहीं कर सकते जो अपने माता पिता के दिलों के अरमानों फर पानी फेर देते हैं चाहे वह मुस्लिम हो चाहे वह हिन्दू हो चाहे वह दुनियां के किसी भी मजहब (धर्म) Religion से बेलांग करता हो।

लव जिहाद रोकने के उपायों मे इन बातों का ध्यान रख कर हम लोग लव जिहाद हिन्दू समाज का व्यक्ति करे या मुस्लिम समाज का व्यक्ति करे दोनों में यह उपाय करके बहुत हद तक बचाव किया कर सकते हैं ।

(1) ऐसे लोगों को अपने समाजों से बायकाट कर देना चाहिए।

(2) उनको कभी भी किसी तरीके की सहायता नहीं करनी चाहिए।

(3) और अपने रिश्तेदारों जान पहचान वालों तक खबर पहुचानी चाहिए ऐसे लोगों की हरगिज सहायता नहीं करनी चाहिए।

(4) अपने बच्चों से खुल कर अपनी बातों को कहना चाहिए के बेटा या बेटी ऐसा कोई कार्य मत करना जिससे हम दुखी हो।

(5) शादी की उम्र होते ही जल्द से जल्द रिश्ता तलाश करके अपने बच्चों की शादी कर देनी चाहिए।

(7) समय समय पर अपने बच्चों से पूंछना चाहिए के बेटा या बेटी अब शादी का समय हो गया है बेहतर होता कि आप का शादी कर दें आप की क्या मर्जी है।

(9) अपने बच्चों से खुल कर या एक दोस्त की तरह पूंछने मे हरगिज शर्म नहीं करना चाहिए की बेटी या बेटा तुम्हारे मन में कोई बात हो तो शेयर कर सकते हो we are friends and we are family.

(10) अपने बच्चों से खुल कर बात करने से बहुत से फायदे होते हैं अब मेरी माता मुझसे हमेशा शादी की बातें करती हैं की शादी कर लो कहीं उम्र ना निकल जाए रिश्तेदारों से कहलवाती है की उसके मन मे आखिर क्या चल रहा है की वो शादी के लिए तैयार नहीं होता है

कहीं कोई चक्कर तो नहीं और उनको डर भी लगता होगा की कहीं किसी लड़की को अचानक भगा कर ना लेकर आ जाये उनका डरना भी गलत नहीं है लेकिन जब मेरे फैमिली में मुझे खुल कर पूंछने से उनका डर खत्म हो गया तो दूसरी तरफ मै उनको यकीन दिलाया कि भरोसा रखो ऐसा कोई कार्य नहीं करुंगा जिससे मेरी फैमिली का सर शरम से नीचे हो जाये

कहने का तात्पर्य यह है कि आपको अपने बच्चों को दोस्त की तरह ट्रीट करना चाहिए।

इन सब उपायों से लव जिहाद से 90% तक बचाव किया जा सकता है

(21) जिहाद का नारा किसने दिया?

Answer :- जिहाद का नारा राजनीतिक लोगों के तरफ़ से दिया गया है

(22) jihad ?

(23) jihad meaning ?

Answer:- jihad meaning To try, endeavor , seek ,essay, endeavour, strive

(24) jihad meaning in hindi?

Answer :- Jihad meaning in hindi paryash karna

(25) jihad keya ?

Answer :- jihad koshish karne ko jihad kaha gaya according to Wikipedia and islamic books hadis

(26) jihad kya hai ?

Answer :- jihad paryash karte rahne ko jihad kaha gaya hai

(27) love jihad kya hai?

Answer:- love jihad koi islamic name ya islamic word nahi hai ye to India ke politics ne ise name de kar apni rajniti rotiyan senk rahe hain aisa name sun kar hum khud hairan rah gaye the ki kaise kaise jhoonth bol kar logon jhansa dete hain 

(28) jihad kise kahate hain ?

Answer:- jihad arbi word hai jiska matlab koshish karna hai jihad ke bahut se type hai hum use aage jaanege

(29) jihad ki dua ?

Answer:- jihad ki dua tuallimul ilma wa allimoohun naas matlab ilm sikho aour doosron ko sikhao ye ilm ke liye hukm huwa 

(30) jihad ki fazilat ?

Answer:- jihad ki fazilat yah hai allah ne jihad karne ka hukam diya hai wajah keya thi es ke baare mein charcha karte hain jab muslamano ke uper zulmo tashaddud ke pahad tode jaa rahe the 

aise me farman hua jo allah ki raza aour khushnudi ke liye jihad kare use azar hai Ye ek type ka jihad ka tazkira yahan likh raha hun aage tafseel se padhen.

(31) jihad kise kahte hai?

Answer :- jihad apne nafas par control karne ka name jihad hai

(32) jihad ki ahmiyat ?

Answer:- Jihad ki ahmiyat islam me bahut jeyada hai ise sawab se ujar dena hua to iski ahmiyat badh gayi

(33) islam mein jihad ki ahmiyat in urdu ?

Answer :- islam mein jihad ki ahmiyat in urdu Jihad ki ahmiyat islam me bahut jeyada hai ise sawab se ujar dena hua to iski ahmiyat badh gayi

(34) jihad ki zaroorat o ahmiyat?

Answer:- jihad ki zaroorat o ahmiyat islam me bahut wasiy hai ise tafsil se padhe hamre post me

jihadi ka matlab
इस्लामी जिहाद का वास्तविक अर्थ जिहाद का असली अर्थ जिहाद का हिन्दी अर्थ 

इंसानी नस्ल आरम्भ ही से अच्छाई व बुराई , सच और झूठ , प्रकाश और अंधकार से संघर्ष करते आयें है । और यह जामीन इन दोनों अच्छे और बुरे की रहने की जगह और लड़ने की जगह है । 

एक दूसरे पर काबू पाने का कठोर प्रयास का यह सिलसिला रहती दुनिया तक जारी रहेगा । ईमानदारी सही राह और गुमराही दोनों के हामी व समर्थक अपनी - अपनी राह चलते रहेंगे और अपनी राह को पत्थर हटाने में उनकी ताकत खर्च होती रहेंगी , उन्हें इस काम से आज तक ना कोई रोक सका और ना रोक सकेगा ।

क्योंकि खुदा की इच्छा कुछ ऐसी है कि इन्सान को पैदा करके उसे दुनिया में नेक व बद और अच्छे व बुरे के चुनाव का उसने अधिकार दे रखा है । 

अपनी प्रकृति व स्वभाव से हर इन्सान अपने लिये अच्छी या बुरी राह का चुनाव करता है और फिर इसी के अनुसार वह दुनिया और आख़िरत ( हिसाब और किताब का दिन ) में सवाब और अज़ाब का हक़दार बनता है । 

हक और सच्चाई का मिशन फैलाने वाले अंबिया व मुर्सलीन अलैहिमुस्सलातु वत्तस्लीम जिनकी बेअसत ( अल्लाह के पैग़म्बर होने की घोषणा ) का सिलस्लिा हज़रत आदम अलैहिस्सलाम से शुरू होकर हज़रत मोहम्मद स्वल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर समाप्त हो गया । 

उनकी रहमत , अमन दोस्ती , सुलह जोई , जज़्बए खैर सगाली , और इन्सानी हमदर्दी व ग़मगुसारी सारी कायनात के लिये रहनुमा उसूल है । 

उन्होंने अल्लाह का संदेश उसके प्राणी तक पहुंचाने और उसे राहे रास्त पर चलाने के लिये अपनी अपनी ज़िन्दगियां लगा दी । प्रेम व आचरण और योजना व बुद्धिमानता के वह सच्चे अलमबर्दार थे । 

फिर भी उन्हें अनेक कठिनाइयों और रूकावटों का सामना करना पड़ा । और कुछ ऐसे अवसर और संकट भी आये कि द्वेष पूर्ण व अशांति प्रिय व्यक्तियों के षडयंत्रों के मुकाबला में उन्हें कठोर निर्णय लेने पड़े।

 और जुबान के बजाये ताक़त व तलवार का सहारा लेना पड़ा । युद्ध के मैदान में आकर उन्हें शिर्क व कुफ्र और बदी की ताक़तों से जंग करनी पड़ी । 

अपनी दिलेरी व बहादुरी के उन्होंने जौहर भी दिखाये और शहादत के दरजे से सरफ़राज़ भी हुए । यही तारीख और यही जिहाद का कानून है 

और अंबिया व मुर्सलीन अलैहिमुस्सलाम की बेहतरीन सुन्नत है । क़ुरआने हकीम इरशाद फ़रमाता है । 

और बहुत से अंबिया ने जिहाद किया । उनके साथ बड़ी तादाद में अल्लाह वाले थे । तो वह अल्लाह की राह में पेश आने वाली मुसीबतों से न सुस्त पड़े न कमज़ोर हुए न दबे ( पारह ४ -- सूरह आल इमरान , आयत १४६ ) 

जिहाद हजरत मोहम्मद स्वल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उम्मत ( अनुयायी ) पर भी फर्ज किया गया है । 

पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद रसूलुल्लाह स्वलल्लाहो अलैहे वसल्लम ने स्वयं जिहाद किया । उनके सहाबा ने भी जिहाद किया , और जिहाद का हुक्म क़ुरआन के मुताबिक है ।

 इसलिये इसका इरशाद है ! 

ऐ नबी ईमान वालों को जिहाद के लिए राज़ी करो । ( पारा , १० - सूराः अनफाल - आयत ६५ ) 

दूसरी जगह इरशाद है । 

ऐ नबी काफ़िरों और मुनाफ़िकों से जिहाद और उन पर सख्ती करो ( पारह २८ सूरह तहरीम , आयत ६ ) । 

तुम पर भी अल्लाह की राह में जिहाद करना फर्ज किया गया । ( पारह २ - सूरह बकरा - आयत २१६ ) 

यह जिहाद सिर्फ अल्लाह की राह में है । उसकी खुशी के लिये है । अपनी जात अपनी हुकूमत अपनी शोहरत और माले गनीमत ( युद्ध से जीता हुआ माल ) के लिये नहीं । 

जैसा कि पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद रसूलुल्लाह स्वल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का फरमान है कि

 जिहाद वही हे जो कल्मए हक की बुलंदी के लिये हो । दुनिया पाने के लिये न हो । 

हज़रत अबू मूसा अशअरी रदिअल्लाहु अन्हु बयान करते हैं । एक व्यक्ति नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम के दरबार में उपस्थित हुआ और उसने निवेदन किया । 

आदमी लड़े माले गनीमत के लिये और नामवरी के लिये और बहादुरी दिखाने के लिये तो उन में से अल्लाह की राह में लड़ने वाला कौन है ? 

आप ने इरशाद फ़रमाया ! अल्लाह की राह में जिहाद करने वाला वही है जो कल्मए हक की बुलंदी के लिये लड़ता है ( सहीह बुख़ारी )

 रसूलुल्लाह स्वल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम मैदाने जंग में जिहाद की प्रार्थमिकता के बारे में इरशाद फ़रमाते हैं कि दुश्मनो से मुकाबला की तमन्ना न करो । 

हज़रत अबू हुरैरा रदि अल्लाहु अन्हु ने बयान किया । नबी ए करीम स्वल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमायाः

 दुश्मन से मुकाबला की तमन्ना न करो । लेकिन जब उनसे तुम्हारा मुकाबला हो जाये तो डटे रहो । ( सहीह बुखारी ) 

जिहाद में आवश्यकता अनुसार औरतों की भी भागीदारी है । हज़रत आइशा , हज़रत उम्मे सलमा , हज़रत उम्मे सलीत वगैरह ग़ज़वए उहद में शामिल थीं ।

 मश्कीज़ों ( चमड़े की थैली ) में पानी भर भर कर लाती थीं और प्यासों को पिलाती थीं । ज़ख़मियों की मरहम पट्टी करती थीं । 

रुबय्या बिन्ते मुअब्वज़ ब्यान करती हैं । रसूलल्लाह स्वल्लल्लाहु अलैहे । वसल्लम के साथ हम औरतें जिहाद में जाया करती थीं । गाज़ियों को पानी पिलाती थीं । 

उनकी खिदमत करती थीं , जख्मियों और शहीदों को उठाकर मदीना लाया करती थीं । ( सहीह बुखारी ) 

किसी भी तरह से मुजाहदीन की मदद करना जिहाद ही का एक हिस्सा है ।

हज़रत जैद बिन ख़ालिद बयान करते हैं । रसूलुल्लाह स्वल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया । जो व्यक्ति अल्लाह की राह में जिहाद करने वाले के लिये कुछ सामान का इंतज़ाम करे उसने जैसे स्वयं जिहाद किया ! 

और जिसने अल्लाह की राह में जिहाद करने वाले के घर बार की देख रेख की वह भी उस जिहाद करने वाले की तरह है । ( सहीह बुख़ारी ) 

जिहाद का अव्वल व आखिर मक़सद अल्लाह की खुशी चाहना है । जिस का सबक हमें रसूलुल्लाह स्वल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम के इस तर्जे अमल से मिलता है । 

हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा बयान करते हैं । नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम जब जिहाद से वापस लौटते तो तीन बार तकबीर कहते । फिर कहते । हम इन्शाअल्लाह इस तरह वापस हुए कि तौबा करने वाले हैं । इबादत करने वाले हैं ।

 हम्द ( तारीफ़ ) बयान करने वाले हैं अपने रब की , और उसके लिये सज्दा करने वाले हैं । अल्लाह ने अपना वादा सच कर दिखाया । अपने बन्दे की मदद की । और दुश्मन को पराजय दी । ( सहीह बुख़ारी ) 

जिहाद के बाद अमनो अमान और इन्सानियत की दोस्ती का एक रौशन तारीख़ी नमूना वह है जिसे द्वितीय ख़लीफ़ा हज़रत उमर बिन ख़त्ताब रज़ियलल्लाहु अन्हु ने बैतुल मुक़द्दस की विजय के बाद पेश किया । 

समस्त ईलिया ( यूरे शलम के निवासी ) के लिये उन्हों ने यह अमान नामा जारी फ़रमाया ।

 बिस्मिल्ला हिर्रहमा निर्रहीम अल्लाह के बन्दा उमर ने जो अमीरूल मोमिनीन है अहले ईलिया ( यूरेशलम के निवासी ) को यह सुरक्षा दी , उनकी जान और माल , उनके इबादत खानों और सलिबों के लिये सुरक्षा है । 

उनकी सारी मिल्लत के लोग चाहे तंदुरुस्त हों या बीमार सबको अमान है । उनकी इबादत गाहें ना रिहाइश (रहने) के लिये इस्तेमाल की जायेंगी ना उन्हें तोड़ा जायेगा ।

 इबादत गाहों और उनसे संबंधित को ना उनकी सलिबों को ना उनकी संपत्तियों को कुछ नुकसान पहुंचाया जायेगा ।

 न उनके दीन में कोई ज़ोर ज़बरदस्ती की जायेगी , न उनमें से किसी को तकलीफ भी नहीं पहुंचायी जायेगी । ( तारीखे तबरी ) 

अमन और जंग दोनों हालतों में जुल्म व ज़ियादती से कुरआने हकीम ने ईमान वालों को बार बार रोका है । नाहक कत्ल खून रेज़ी से मना फरमाया है । जैसा कि अल्लाह तआला का इरशाद है ।

 जिस जान की अल्लाह ने हुर्मत रखी है उसका नाहक कत्ल ना करो ( ( पारह .८ सूरह अनआम - आयत १५१ - पारह .१५ - बनी इसराईल.आयत ३३ ) 

जिसने कोई जान कत्ल की बगैर किसी जान के बदले या ज़मीन में किसी झगड़े के बगैर तो जैसे उसने सारे इन्सानों का कत्ल किया । और जिस ने किसी एक जान को मरने से बचा लिया तो जैसे उसने सारे इन्सानों को बचा लिया ( पारह ६ - सूरह माइदा - आयत ३२ ) 

किसी को आग में जलाने की सख्त मनाही है । दो आदमियों के बारे में रसूलुल्लाह स्वल्लल्लाहु अलैहि ने अपना हुक्म वापस लेते हुए फरमाया कि आग से जलाना सिर्फ अल्लाह के लिये ख़ास है । और उसी को इसका इख्तियार है । 

हज़रत अबू हुरैरा रजिअल्लाहु अन्हु ने बयान किया । रसूलुल्लाह स्वल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने हमें एक बार यह फ़रमाते हुए भेजा कि : फला और फलां को पाओ तो उन दोनो को आग में जला देना । 

हम जब रवाना होने लगे तो आपने फ़रमाया मैंने फलां और फलां के लिये हुक्म दिया था कि उन्हें आग में जला देना लेकिन आग का अज़ाब तो अल्लाह ही देता है । इसलिये उन दोनों को पाओ तो कत्ल कर देना । ( सहीह बुख़ारी ) 

औरतों और बच्चों को कत्ल करने से भी मना किया गया है । हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा ने बयान किया कि किसी जंग में एक औरत कत्ल की हुई पाई गई , तो रसूलल्लाह स्वल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया । औरतों और बच्चों को क़त्ल न किया जाए । ( सहीह बुख़ारी )

 मज़दूरों का क़त्ल भी मना किया गया है । हज़रत हंज़ला अलकातिब रज़िअल्लाहु अन्हु ने बयान किया । रसूलुल्लाह स्वल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ हम लोग एक जिहाद में गये । एक मकतूल ( जिसका क़त्ल किया गया हो ) औरत के करीब से हम लोग गुज़रे जिसके गिर्द बहुत से लोग जमा थे । आप को देखते ही लोगों ने रास्ता दिया । आप ने उसे देख कर फ़रमाया । यह तो लड़ने वाले दुश्मनों में शामिल ना थी । 

उसके बाद एक शख्स को हज़रत ख़ालिद बिन वलीद के पास कहला भेजा कि बच्चों और मजदूरों को कत्ल ना किया जाये । ( सुनन इब्ने माजा ) 

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बूढ़ों के बारे में भी यही हुक्म है । हज़रत अनस विन मालिक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु । बयान करते हैं । रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया कि बहुत बूढ़े को और औरतों बच्चों को कत्ल न किया जाये । ( अबू दाऊद ) 

गोशा नशीन आबिदों ( सनन्याशियों ) का भी यही हुक्म है । अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा ने बयान किया । नबीए करीम स्वल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम ने इरसाद फरमाया । बच्चों और इबादत खानों के गोशा नशीन लोगों को कत्ल न करो । ( नैलुल औतार )

 जिहाद के आदाब में यह भी शामिल है कि जानवरों को न मारा जाये । हरी भरी खेतियों और फल दार पेड़ों को न बर्बाद किया जाये । जो लोग जंग में शामिल नहीं उन्हें कष्ट न पहुंचाया जाये । किसी मकतूल की सूरत ना बिगाड़ी जाये । 

लोगों के साथ बद अहदी और बेईमानी न की जाये । खलीफ़ए अव्वल हज़रत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु ने हज़रत यज़ीद बिन अबू सुफियान को मुल्क शाम में एक लश्कर के साथ भेजते वक़्त यह नसीहत की ।

 कोई फलदार पेड़ न काटना , कोई आबाद जगह वीरान न करना , खजूर का पेड़ न काटना न उसे डुबोना । ( मोअता इमाम मालिक )

Jihad kab Farz hota hai

 जिहाद की शर्ते जब पाई जायेंगी उस वक्त जिहाद मुसलमानों पर वाजिब होगा । और वह भी उन पर जिन्हें जिहाद की क़ुदरत व हैसियत हासिल है ।

 इस के लिये हथियार बंद व्यक्तिों और साज व सामान की तैय्यारी के साथ अमीरे जिहाद होना भी शर्त है । कोई दुशमन मुल्क या कौम किसी मुस्लिम मुल्क या मुस्लिम आबादी पर हमला आवर हो जाये तो मुसलमानों के दीन व ईमान व इज़्ज़त व आबरू और जान व माल की सुरक्षा के लिये जिहाद की शर्ते पाये जाने की सूरत में उन पर जिहाद वाजिब हो जायेगा । 

हालात और कैफियात के पेशे नज़र जिहाद कभी फर्जे ऐन होगा यानी हर मुसलमान को जिहाद में शामिल होना होगा । 

और कभी फर्जे किफाया होगा यानी कुछ मुजाहदीन का जिहाद सारे मुसलमानों की तरफ़ से काफ़ी होगा । 

जिस तरह जान के साथ जिहाद किया जाता है कि जान की क़ुरबानी खुदा की राह में पेश की जाती है इसी तरह माल की क़ुरबानी भी है कि जब जब और जहां जहां ज़रूरत पड़े अपना माल खुदा की राह में खर्च किया जाये । 

जान और माल दोनों के साथ जिहाद का क़ुरआने हकीम में अलग अलग जगहों पर ज़िक्र है । ऐसे लोगों का दरजा काफी बुलन्द है । उन्हें खुदा की रहमत का हकदार बताया गया है और उनकी मगफिरत की बशारत ( अच्छी ख़बर ) दी गई है । 

Jihad ka Keya matlab hai जिहाद का क्या मतलब है

 जिहाद और मुजाहिदा का माद्दह जुहद ( कड़ी मेहनत ) है । जिसका मतलब है । कोशिश , मेहनत , सई , जिद्दो जहद । अल्लाह तबारक व तआला की राह में उसकी चाह में उसकी रज़ा के लिये जो भी जिहाद व मुजाहिदा जो भी कोशिश की जाये वह अफ़ज़ल और बेहतर है । 

और ऐसी जिद्दो जहद करने वाले की राहें अल्लाह तबारक व तआला विस्तृत कर देता है । इसलिये क़ुरआने हकीम में है ।

 और जिन्हों ने हमारी राह में जिहाद ( कोशिश ) किया हम उन्हें ज़रूर अपने रास्ते दिखा देंगे । और अल्लाह नेकी करने वालों के साथ है ( पारह , २१ सूरह मुम्तहिना । आयत ६६ ) 


जिहाद सिर्फ तलवार से जंग करने का नाम नहीं है । इसे समझने समझाने में बहुत से लोग ठोकर खा जाते हैं । ज़रूरत है कि जिहाद का वास्तविक अर्थ और फिर उसकी व्याख्या को गहरी नजर से देखा जाये । 

उसे समझने के लिये यह हदीसे रसूल मुलाहज़ा फरमायें । हज़रत आइशा बिन्ते तलहा बयान करती हैं : उम्मुल मोमिनीन हज़रत आइशा सिद्दीका ने रसूलुल्लाह स्वल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम से एक बार जिहाद में हिस्सा लेने की इजाज़त तलब की । आप ने इरशाद फ़रमाया । तुम औरतों का बेहतरीन जिहाद हज करना है । ( सहीह बुख़ारी ) 

मां - बाप की ख़िदमत करना भी जिहाद है । हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़िअल्लाहु अन्हुमा ने बयान किया । एक व्यक्ति रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्म की सेवा में उपस्थित हुआ और उसने जिहाद में शामिल होने की इजाजत चाही ।

 आपने पूछा क्या तुम्हारे मां - बाप जिन्दा हैं ? 

उसने कहा हां ! आपने फ़रमाया उनकी ख़िदमत करो , यही तुम्हारा जिहाद है । ( सही बुख़ारी ) 

हज़रत मुआविया बिन जाहिमा सलमी रज़ियल्लाहु अन्हा ने भी एक बार जिहाद में शामिल होने की इजाज़त चाही तो रसूलुल्लाह स्वल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम ने उनसे सवाल फ़रमाया । क्या तुम्हारी माँ जिन्दा हैं ? 

उन्हों ने कहा हाँ या रसूलल्लाह ! आप ने इरशाद फरमाया । जाओ ! अपनी माँ के पांव से लगे रहो । वहीं तुम्हारी जन्नत है । ( सुनन इबने माजा ) 

जिहाद कितने किस्म के होते हैं 

राहे हक में जिहाद के विभिन्न तरीकों में से चन्द तरीके यहां निम्नलिखित हैं :

What are the types of Jihad? Type of jihad

 ( 1 ) जिहाद बिलकल्ब

( 2 ) जिहाद बिल - अक्ल

( 3 ) जिहाद विल - इल्म !

( 4 ) जिहाद विल्लिसान

 ( 5 ) जिहाद विल - खुल्क

( 6 ) जिहाद विल - कलम

अब इन जिहाद के बारे में विस्तार पूर्वक लिखा जाता है।

 ( 1 ) jihad bil qalb जिहाद बिलकल्ब !

 दिल को गंदगियों से साफ़ सुथरा रखकर उसे पाकीज़ा एहसासात व जज़्बात का केंद्र बनाये रखना बहुत बड़ा जिहाद है ।

 इसी दिल के बारे में रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम ने इरशाद फरमाया है । जिस्म के अन्दर एक ऐसा टुकड़ा है कि अगर वह सही है तो सारा जिस्म सही है । और अगर वह ख़राब है तो सारा जिस्म खराब है । वह टुकड़ा दिल है । ( सहीह बुखारी )

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 यह दिल शरीर के अंगों का सम्राट है । जिस्म के जिस हिस्से को अच्छा या बुरा जैसा हुक्म देगा उसी पर वह अमल करेगा । इस लिये इस दिल की इस्लाह व सफाई का जिहाद हर मुसलमान के ऊपर जरूरी है । 

( 2 ) jihad bil aqal जिहाद बिल - अक्ल !

 इन्सान को हैवान से अलग करने वाली अक्ल अच्छा बुरा और सही व गलत का फ़िकरी व नज़रियाती सतह पर फैसला करती है । 

इस मीज़ान व तराजू की सेहत व संतुलन का आदर करना जिहाद का एक अहम तरीका है । इसी लिये समझदारी व सावधानी व दूर अंदेशी की कुरआने हकीम में जगह - जगह ताकीद भी की गई है । 

( 3 ) jihad bil ilm जिहाद बिल - इल्म !

 इल्म हासिल करना और उसके अनुसार खुद अमल करना । और दूसरों को उसकी दावत देना । जिहाद का एक अनमोल हिस्सा है । 

यह इल्म ही अल्लाह से करीब होने का माध्यम है । और इस इल्म ही से खुदा का खौफ़ और उसका डर दिल के अन्दर पैदा होता है । कुरआने हकीम में फ़रमाया गया है कि अल्लाह तआला से उसके वही वन्दे डरते हैं जो इल्म ( ज्ञान ) वाले हैं । 

( 4 ) jihad bil lisan जिहाद बिल्लिसान ! 

जुबान को बूरी और झूटी वातों से बचाकर उस से वही बातें कहलवाना जो हक़ व सही हों । यह भी एक बड़ा जिहाद है । हिदायत व रहनुमाई के लिये हज़रत आदम अलैहिस्सलाम से लेकर आज तक इसी जुबान को बातचीत का माध्यम और धर्मोपदेश का साधन बनाया गया है ।

 जुबान की हिफ़ाज़त और इसके मुनासिब व सही मुनासिब इस्तेमाल के लिये लम्बे जिहाद व मुजाहिदा की ज़रूरत पड़ती है ।

 ( 5 ) jihad bil khulq जिहाद बिलल - खुल्क !

 सुन्दर चरित्र व आचरण इंसानी ज़िन्दगी का जौहर है । और रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम की पूरी ज़िन्दगी क़ुरआनी आचरण व आभास का आला नमूना और रौशन आइना है । 

इस लिये बुरे आचरण से दूर रह कर व उत्तम व सुंदर आचरण का पैकर बनना एक अमली जिहाद है । जो दूसरों के लिये आकर्षण और खिंचाव का कारण बनता है । 

( 6 ) jihad bil qalam जिहाद बिल - कलम ! 

लिखने की योग्यता रखने वाले इन्सान अपने कलम को विचार व आचरण के दोष से सुरक्षित और उसे काबू में रखकर जिहाद का अहम कत्वर्य अन्जाम दें । कलम की अजमत व हुर्मत का यही तकाज़ा है । 

कलम और इसकी तहरीर ( लेख ) का कुरआन में भी जिक्र है । ताकत व हुकूमत के असरात से बे खबर होकर सच्ची बात कहना श्रेष्ठ जिहाद है 

जैसा कि रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम ने इरशाद फरमाया । ज़ालिम शासक के सामने हक बात कहना श्रेष्ठ जिहाद है । ( कन्जुल उम्माल , अव्वल ) और सबसे बड़ा जिहाद तो यह है कि नफ्स ( इन्द्रि ) की अनुचित मांग और चाहत व इच्छा को रद्द करते हुए खुद अपने नफ्स से जिहाद किया जाये ।

 नफ़्स की इच्छाओं से इन्सान का दिन व रात का संबंध है । नफ़्सानियत से उसकी हर क्षण शत्रुता रहती है । इस लिये मुजाहिदए नफ़्स को सब से बड़ा जिहाद कहा गया है ।

हज़रत जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु ने बयान किया कि एक जिहाद से वापसी के बाद | रसूलुल्लाह स्वल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम ने सहाबा को संबोधित करते हुए फ़रमाया । 

तुम्हारी वापसी मुबारक हो । तुम छोटे जिहाद से बड़े जिहाद की | तरफ़ आये हो । नफ़्स की इच्छाओं से लड़ना बन्दा का बड़ा जिहाद है । ( कन्जुल उम्माल , दोम ) इन्सान का नफ्स उसका सब से बड़ा दुश्मन है जो न्याय व सच्चाई और खुदा की राह का बड़ा रोड़ा है । इस लिये इस से जिहाद करने वाला सही मानों में मुजाहिद है । 

रसूले अकरम स्वल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया । मुजाहिद वह है जो अल्लाह के मामले में खुद अपने नफ़्स से जिहाद करे । 

और मुहाजिद वह है जो अल्लाह की मना की हुई बातों से दूर हो जाये । ( कन्जुल उम्माल , अव्वल ) 

अपने नफ़्स से जिहाद का नमूना इस्लाम चौथे ख़लीफ़ा हज़रत अली मुर्तज़ा के उस वाकिया में मिलता है जो तारीखे इस्लाम में काफी गशहूर है ।

 जिहाद के दौरान एक बार आप ने एक काफ़िर को पछाड़ा और उसके सीना पर सवार हो गये । अपनी तलवार से उसका किस्सा तमाम ( कत्ल ) करना ही चाहते थे कि गुस्सा और तिलमिलाहट में उसने आप के मुंह पर थूक दिया । 

यह देखकर आप उस से हाथ खींच लिया । और उसके कत्ल का इरादा छोड़ दिया । वह काफ़िर हैरान रह गया कि आखिर यह अली ऐसा क्यों कर रहे हैं ? उस से रहा नहीं गया तो उसने आप से सवाल किया कि आखिर 

 आप ने ऐसा क्यों किया ? हज़रत अली मुर्तजा ने जवाब दिया । खुदा और रसूल का दुश्मन समझ कर मैं ने तेरा काम तमाम करने का इरादा किया था लेकिन जब तूने मेरे मुंह पर थूक दिया तो अब मेरा नफ्स उसके अन्दर शामिल हो गया । 

और अपने नफ़्स के लिये नहीं बल्कि अल्लाह व रसूल के लिये मैं जिहाद कर रहा था इस लिये मैं ने तुझसे हाथ रोक लिया । 


विभिन्न हदीसों में आया है कि कयामत के रोज़ नमाज़ के बाद कत्ल व खूरेज़ी के बारे में बन्दा से सब से पहले सवाल किया जायेगा । 

खुदा व रसूल की राह में रज़ाये खुदा व रसूल के लिये उसने किसी का खून बहाया होगा तो ठीक है और अगर नफ़्सानी इच्छाओं की पैरवी के लिये और दुनियावी मकसद के लिये नाहक किसी की खूरेज़ी की होगी तो बारगाहे रब से उसे सख्त सज़ा मिलेगी । 


हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं । नबीए करीम स्वल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया । कयामत के रोज़ एक व्यक्ति एक कातिल का हाथ पकड़ कर लायेगा और कहेगा ऐ मेरे रब ! 

इस ने मुझे कत्ल किया था । कातिल से रब्बे काइनात पूछेगा तुमने इसे क्यों कत्ल किया था ? 

वह कहेगा । परवरदिगार ! इसे तो मैंने तेरी इज़्ज़त व बुलंदी के लिए कत्ल किया था । रब फरमायेगा ! इज़्ज़त तो मेरे ही लिये है । 

एक दूसरा व्यक्ति एक कातिल का हाथ पकड़कर लाएगा और कहेगा कि परवरदिगार ! इसने मुझे क़त्ल किया था । अल्लाह तआला उससे सवाल फ़रमायेगाः तूने इसे कत्ल क्यों किया था ? वह कहेगा मैंने फला हाकिम की इज्जत के लिये क़त्ल किया था । रब फ़रमाएगा फलां के लिये इज्जत नहीं । 

फिर कातिल के ज़िम्मा उसका गुनाह होगा । निष्कर्ष यह हुआ कि उचित विश्वास व कल्पना , स्वस्थ्य सोच व विचार के साथ नीजि व व्यक्तिगत स्वार्थ और नाम व दिखावा से बे लौस होकर सिर्फ अल्लाह की खुशी की नीयत से स्वाभाविक धर्म हक़ व सच्चाई इंसानी सम्मान व महानता उच्च चरित्र व आचरण और अमन व सलामती की स्थापना व उन्नित के लिये जब जिस वक़्त जो भी जिद्दो जेहद की जाये । 

उसी का नाम जिहाद है । और यह जिहाद कयामत तक जारी रहेगा । ( माहनामा कंजुल ईमान , दिल्ली , संस्करण मार्च , २००२ ) 

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What is jihad in islam

इस्लाम को आम तौर पर गलत समझा जाता है, 

विशेष रूप से पश्चिमी दुनिया में, और कोई भी इस्लामी शब्द अधिक व्यापक रूप से गलत नहीं समझा जाता है और जिहाद शब्द जैसी मजबूत प्रतिक्रियाओं को जन्म देता है। जिहाद का अर्थ अक्सर 'पवित्र युद्ध' के रूप में गलत अनुवाद किया जाता है, और कुछ गैर-मुसलमान इस शब्द को गलत समझते हैं कि अविश्वासियों के खिलाफ युद्ध छेड़ने का मतलब या तो उन्हें इस्लाम में परिवर्तित करना या उन्हें मारना है। अक्सर जिहाद शब्द को आतंकवाद का पर्याय माना जाता है। वास्तव में, यह सच्चाई से आगे नहीं हो सकता।


 जिहाद एक अरबी शब्द से आया है जिसका अर्थ है 'प्रयास करना' या 'लक्ष्य की ओर प्रयास करना'। जिहाद शब्द का अर्थ है 'स्वयं को परिश्रम करना' या 'संघर्ष करना।' इस्लामी संदर्भ में, इसका अर्थ है किसी की बुराई के खिलाफ संघर्ष करना। झुकाव। इसलिए, आत्म-सुधार का कोई भी प्रयास, चाहे वह किसी की आध्यात्मिकता, शिक्षा, या वित्तीय स्थिति में सुधार के रूप में हो, जिहाद का कार्य है। पवित्र कुरान यह स्पष्ट करता है कि जिहाद का अर्थ 'प्रयास' या 'प्रयास' करने के लिए किया गया है।


 "हम निश्चित रूप से उन लोगों का मार्गदर्शन करेंगे जो हमारे मार्ग के लिए हमारे कारण के लिए प्रयास करते हैं। ईश्वर निश्चय ही नेक लोगों के साथ है" (कुरान 29:69)


 यह श्लोक उन लोगों पर लागू होता है जो आध्यात्मिक रूप से ईश्वर के साथ निकटता प्राप्त करने और उसका आनंद लेने के लिए संघर्ष करते हैं।


 जिहाद विभिन्न रूपों में आता है। जिहाद का सबसे आवश्यक प्रकार, जिसे मेजर जिहाद के रूप में लेबल किया जा सकता है, जिहाद अन-नफ्स (आत्मा का जिहाद) है। यह मनुष्य के भीतर दो शक्तियों के बीच आध्यात्मिक संघर्ष है; आत्मा और शरीर। स्वयं के भीतर से, बाहरी प्रभावों से, या दोनों से उत्पन्न होने वाले भ्रष्टाचार के साथ, आत्मा भ्रष्ट होने की संभावना है।


 "वास्तव में, आत्मा बुराई के लिए इच्छुक है" (कुरान 12:53)


 इस्लाम एक व्यक्ति को शुद्ध करने, शुद्ध करने और अपनी पापी इच्छाओं को प्रस्तुत करने से रोकने के महत्व को व्यक्त करता है। उनसे अवज्ञा के कार्यों से बचने की अपेक्षा की जाती है और उनसे आज्ञाकारिता के कार्य करने की अपेक्षा की जाती है जो भगवान को प्रसन्न करते हैं। इस्लाम अपने अनुयायियों से अपेक्षा करता है कि वे अपनी आत्मा और अपने विवेक को अपने शरीर और इच्छाओं पर वरीयता दें, उनके आग्रहों और आंतरिक प्रलोभनों का विरोध करने का प्रयास करते हुए।


 "और जो कोई प्रयास करता है वह केवल [अपने लाभ] के लिए प्रयास करता है। वास्तव में, अल्लाह संसारों की आवश्यकता से मुक्त है" (कुरान 29:6)


 इस्लाम आत्म-सुधार, आत्म-विकास, आत्म-संयम और आत्म-नियंत्रण पर बहुत जोर देता है, किसी के जीवन को अपने लाभ और बड़े पैमाने पर समाज के लाभ के लिए सर्वोत्तम तरीके से आकार देता है। इस जिहाद का उद्देश्य आत्मा को शुद्ध करना है और इसमें सांसारिक उद्देश्यों, अहंकार, अभिमान, ईर्ष्या, ईर्ष्या, घृणा, पाखंड, जिद, घमंड, संकीर्णता और अन्य बुरे लक्षणों के लालच के खिलाफ संघर्ष करना शामिल है, जिसका उपयोग शैतान मानवता को विनाश में भटकाने के लिए करता है। प्रत्येक मुसलमान के लिए यह अनिवार्य है कि वह अपनी क्षमता के अनुसार इन बुराइयों को दूर करने के लिए प्रतिदिन संघर्ष करें और प्रयास करें। आत्मा के जिहाद में ईश्वर की खातिर अच्छे कर्म करने, उसे खुश करने और उसके करीब होने का संघर्ष भी शामिल है। अल्लाह अपनी किताब में कहता है:


 "वह सफल हुआ है जो इसे शुद्ध करता है" (कुरान 91: 9)


 विद्वानों का कहना है कि यह पद जिन उत्तराधिकारियों का उल्लेख कर रहा है वे वे व्यक्ति हैं जो ईश्वर की आज्ञा का पालन करते हुए और पापों और बुरे कामों से रोककर अपनी आत्मा को शुद्ध करने में संलग्न हैं।


 जिहाद का अन्य प्रमुख प्रकार जिहाद अल-शैतान (शैतान के खिलाफ जिहाद) है। शैतान का मुख्य उद्देश्य ईश्वर में उनके विश्वास के बारे में लगातार फुसफुसाते हुए मानव जाति के धर्म को नष्ट करना है और जब पूजा में लोगों को परमेश्वर के मार्गदर्शन से दूर भ्रष्ट और गुमराह करना है।


 "हे, तुम जिन्होंने विश्वास किया है, पूरी तरह से [और पूरी तरह से] अधीनता में प्रवेश करो और शैतान के नक्शेकदम पर मत चलो। वास्तव में, वह तुम्हारे लिए एक स्पष्ट दुश्मन है" (कुरान 2:208)


 शैतान की फुसफुसाहट पवित्र और धर्मी लोगों और दुष्ट और दुष्ट व्यक्तियों तक आ सकती है। ये फुसफुसाते हुए व्यक्ति के आध्यात्मिक, भावनात्मक, शारीरिक और मनोवैज्ञानिक कल्याण के लिए हानिकारक हो सकते हैं, इसलिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति शैतान से लड़ने का प्रयास करे; उन शंकाओं को दूर करने के लिए कि शैतान भड़काता है जो परमेश्वर में किसी के विश्वास को कमजोर करता है और भ्रष्ट इच्छाओं को दूर करने के लिए जिसे वह भड़काता है।


 ये दो प्रकार के जिहाद अन्य सभी प्रकार के जिहाद की नींव हैं और सभी के लिए जवाबदेह हैं। यदि कोई इस प्रकार के जिहाद में शामिल नहीं होता है, तो वह जिहाद के दूसरे दायरे में प्रवेश नहीं कर सकता है, जिसमें बाहरी दुश्मनों के खिलाफ लड़ाई शामिल है।


 यह हमें जिहाद की दूसरी किस्म से परिचित कराता है: मुसलमानों के खिलाफ साजिश रचने वालों के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष, जिसे माइनर जिहाद के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। जब मुसलमानों या उनके धर्म या क्षेत्र पर हमले का खतरा होता है, तो मुसलमानों को अपना बचाव करने की अनुमति होती है। यह जिहाद अपने जीवन, परिवार, विश्वास, धन और संपत्ति की रक्षा के लिए आत्मरक्षा में लड़ने के लिए युद्ध के मैदान में प्रयास करने का कार्य है। इसमें बुराई के खिलाफ लड़ाई, ऑपरेशन, और अत्याचार का बचाव करने के लिए जो सही है और उत्पीड़न का मुकाबला करना भी शामिल है। यह जिहाद समाज को सुधारने का प्रयास और संघर्ष है।


 जैसा कि पहले कहा गया है, जिहाद का मतलब पवित्र युद्ध नहीं है। पवित्र युद्ध के लिए अरबी शब्द 'हरबुन मुकद्दस' है। जिहाद शब्द का अर्थ पवित्र युद्ध नहीं है, और 'पवित्र युद्ध' शब्द पवित्र कुरान या किसी प्रामाणिक हदीस (पैगंबर मुहम्मद की बातें) में बिल्कुल भी मौजूद नहीं हैं। निर्दोष लोगों की हत्या - चाहे मुस्लिम हो या गैर-मुसलमान - की इस्लाम में निंदा की जाती है और इसे एक बड़ा पाप माना जाता है। इस्लाम मुसलमानों को गैर-मुसलमानों के खिलाफ लड़ने की अनुमति नहीं देता है, केवल उनके विश्वास के आधार पर।


 इस्लाम शांति, दया और क्षमा का धर्म है। किसी को भी इस्लाम कबूल करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।


 "धर्म की [स्वीकृति] में कोई बाध्यता नहीं होगी। गलत से सही रास्ता साफ हो गया है। तो, जो कोई झूठे देवताओं पर विश्वास नहीं करता और अल्लाह पर विश्वास करता है, उसने सबसे भरोसेमंद हाथ पकड़ लिया है, उसमें कोई रुकावट नहीं है। और अल्लाह सुनने वाला और जानने वाला है" (कुरान २:२५६)


 मुसलमानों को लोगों को इस्लाम के सबूत और सबूत बताना और स्थापित करना चाहिए ताकि उन्हें झूठ से अलग किया जा सके। इस्लाम अपने संदेश और मिशन के संदर्भ में स्पष्ट है, जिसे स्वीकार करने के लिए कोई भी बाध्य नहीं है। जो कोई अपनी स्वीकृति में हठी या अहंकारी नहीं है वह इस्लाम में प्रवेश करेगा और स्वीकार करेगा, और जो सत्य को अस्वीकार करता है वह ऐसा कर सकता है। कोई भी किसी को धमकी या नुकसान नहीं पहुंचा सकता क्योंकि वे इस्लाम स्वीकार नहीं करना चुनते हैं। अगर किसी को इस विश्वास को स्वीकार करने के लिए मजबूर किया जाता है, तो वह दिल से सच्चा मुसलमान नहीं है।


 इस्लाम गैर-लड़ाकों की लड़ाई की अनुमति नहीं देता है। सैन्य संघर्षों को केवल लड़ने वाले सैनिकों के खिलाफ निर्देशित किया जाना चाहिए, न कि निर्दोष नागरिकों के खिलाफ। उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका में 9/11 को किए गए कृत्यों को इस्लाम में एक बड़े पाप के रूप में वर्गीकृत किया गया है और मृत्युदंड दिया जाता है।


 "... जो कोई भी आत्मा को मारता है, जब तक कि आत्मा या देश में भ्रष्टाचार [किया] नहीं - मानो उसने मानव जाति को पूरी तरह से मार डाला। और जिसने किसी को बचाया - मानो उसने मानव जाति को पूरी तरह से बचा लिया ..." (कुरान 5:32)


 किसी के लिए किसी भी तरह से खुद को नुकसान पहुंचाने या मारने की भी मनाही है। इस्लाम में आत्महत्या एक गंभीर पाप है, अविश्वास की स्थिति है, और विश्वास की हानि है जिसकी कुरान द्वारा निंदा की गई है।


 "... अपने [अपने] हाथों से [अपने आप को] विनाश में न फेंके। और अच्छा करो; निश्चय ही अल्लाह भलाई करने वालों से प्रीति रखता है" (कुरान २:१९५)


 दुर्भाग्य से, ब्रेनवॉश किए गए मुस्लिम युवाओं की एक श्रेणी है जो गुमराह आतंकवादी समूहों में शामिल हो जाते हैं, जो मानते हैं कि खुद को विस्फोट करने पर वे शहीदों के रूप में मर जाएंगे और सीधे स्वर्ग भेज दिए जाएंगे। इस्लाम इसके विपरीत किसी भी रूप में आत्महत्या की निंदा करता है।


 यदि हमला किया जाता है, तो आत्मरक्षा में वापस लड़ने की अनुमति दी जाती है। मुसलमानों को अपनी रक्षा करने और अपने जीवन की रक्षा करने के लिए उत्सुक होना चाहिए।


 “अनुमति [लड़ने] उन लोगों को दी गई है जो लड़े जा रहे हैं क्योंकि उनके साथ अन्याय हुआ है। और निश्चय ही अल्लाह उन्हें विजय प्रदान करने के योग्य है" (22:39)


 हालाँकि, यदि दूसरा पक्ष आक्रामकता से परहेज करता है और शांति प्रदान करता है, तो मुसलमानों से अपेक्षा की जाती है कि वे बदले में शांति के लिए अपना हाथ बढ़ाएँ।


 "और यदि वे शान्ति की ओर प्रवृत्त हों, तो उसकी ओर भी झुकें और अल्लाह पर भरोसा रखें। वास्तव में वही है जो सुनने वाला, जानने वाला है" (कुरान 8:61)


 हमारे पैगंबर और उनके अनुयायियों द्वारा लड़ी गई पहली लड़ाई, जिसे बद्र की लड़ाई कहा जाता है, मुसलमानों के खिलाफ युद्ध की साजिश रचने और छेड़ने वाले समूह के खिलाफ बचाव का कार्य था। रक्षा में लड़ते समय, पवित्र कुरान मुसलमानों को चेतावनी देता है कि वे अपने सैन्य कार्यों को उचित सीमा से अधिक न करें।


 "अल्लाह की राह में उन लोगों से लड़ो जो तुमसे लड़ते तो हैं लेकिन उल्लंघन नहीं करते। वास्तव में। अल्लाह अपराधियों को पसंद नहीं करता" (कुरान २:१९०)


 इस प्रकार की लड़ाई की अनुमति है, क्योंकि यह एक कम बुराई है जिसे दुनिया को एक बड़ी बुराई से छुटकारा दिलाने के लिए डिज़ाइन किया गया है। यह सही को आज्ञा देने और गलत को मना करने के उद्देश्य से प्रतिबद्ध है। यह इस्लाम को फैलाने के बजाय उसकी रक्षा के लिए लड़ने का कार्य करता है।


 इस्लाम ने आत्मरक्षा में दुश्मन से लड़ने के लिए दिशा-निर्देश दिए हैं। इस्लाम बच्चों, महिलाओं, बुजुर्गों, बीमारों, मठों में भिक्षुओं, रब्बियों, पूजा स्थलों पर बैठे लोगों की हत्या और किसी अन्य गैर-लड़ाकू की हत्या - यहां तक ​​​​कि युद्ध और लड़ाई की स्थिति में भी प्रतिबंधित करता है। इस्लाम युद्ध बंदियों को यातना, अंग-भंग, देशद्रोह, बलात्कार, फलदार पेड़ों को काटने, या खेती वाले खेतों या बगीचों को नष्ट करने, या संपत्ति के विनाश की अनुमति नहीं देता है। इस्लाम भी भोजन के अलावा गाय, भेड़ और ऊंट के वध की अनुमति नहीं देता है। मुसलमानों को भी घायल सैनिकों पर हमला करने से मना किया जाता है जब तक कि घायल सैनिक अभी भी आप से नहीं लड़ रहा हो। इस्लाम केवल न्यूनतम आवश्यक बल के साथ लड़ने की अनुमति देता है।


 इस्लाम के कुछ दुश्मन पवित्र कुरान और हदीस के पाठ को संदर्भ से बाहर ले जाते हैं, यह दावा करते हुए कि इस्लाम हिंसा और आतंकवाद को बढ़ावा देता है; भले ही जिहाद का खुद को या समाज को नुकसान पहुंचाने से कोई लेना-देना नहीं है। जिहाद एक नेक मामला बना हुआ है; भगवान की खातिर एक महान हड़ताल।

WHAT IS JIHAD IN ISLAM?

Islam is generally misunderstood, especially in the western world, and no Islamic term is more widely misunderstood and evokes such strong reactions as the word Jihad. Jihad is often mistranslated to mean ‘Holy War,’ and some non-Muslims misunderstand the term to mean waging war against disbelievers to either convert them to Islam or to kill them. Often the word Jihad is thought to be synonymous with terrorism. In reality, this couldn’t be further from the truth.


Jihad comes from an Arabic word meaning to ‘make an effort’ or ‘to strive towards a goal.’ The term Jihad means to ‘to exert oneself’ or ‘to struggle.’ In the Islamic context, it means to struggle against one’s evil inclination. So, any effort of self-improvement, whether in the form of improving One’s spirituality, education, or financial situation, is an act of Jihad. The Holy Quran makes it clear that Jihad has been used to mean ‘striving’ or ‘exerting.’


“We shall certainly guide those who strive for Our cause to Our path. God is certainly with the righteous ones” (Quran 29:69)


This Verse applies to ones that spiritually struggle to attain closeness to and seek the pleasure of God.


Jihad comes in different forms. The most essential type of Jihad, which can be labeled as Major Jihad, is Jihad An-Nafs (The Jihad of the soul). This is the spiritual struggle between the two powers within human beings; the soul and the body. The soul is prone to becoming corrupted, with the corruption arising from within oneself, from external influences, or both.


“Verily, the soul is inclined to evil” (Quran 12:53)


Islam expresses the importance of one to purify, to cleanse, and to restrain themselves from submitting to their sinful desires. They are expected to avoid acts of disobedience and are expected to perform acts of obedience which are pleasing to God. Islam expects its followers to give preference to their soul and their conscience over their body and desires, by striving to resist their urges and inner temptations.


“And whoever strives only strives for [the benefit of] himself. Indeed, Allah is free from need of the worlds” (Quran 29:6)


Islam places a great deal of emphasis on self-improvement, self-development, self-restraint, and self-control, shaping one’s life in the best manner for one’s benefit and the benefit of society at large. This Jihad is intended to purify the soul and involves struggling against the greed for worldly purposes, arrogance, pride, envy, jealousy, hatred, hypocrisy, insincerity, vanity, narcissism, and other evil traits which Satan uses to lead humanity astray into destruction. It is imperative for every Muslim to struggle and strive daily to overcome these evils to the best of their ability. The Jihad of the soul also includes the struggle to perform good deeds for the sake of God, to please Him and become closer to him. Allah states in His Book:


“He has succeeded who purifies it” (Quran 91:9)


Scholars state that the successors this Verse is referring to are those individuals that engage in purifying their souls by obeying God and restraining from sins and evil doing.


The other major type of Jihad is Jihad Al-Shaytan (Jihad against Satan). Satan’s main aim is to destroy the Religion of mankind by attacking them with continuous whispers regarding their belief in God and when in worship to tempt, corrupt and mislead people away from God’s guidance.


“O, you who have believed, enter into submission completely [and perfectly] and do not follow the footsteps of Satan. Indeed, he is to you a clear enemy” (Quran 2:208)


The whispers of Satan can come to pious and righteous people and to wicked and evil individuals. These whispers can be detrimental to one’s spiritual, emotional, physical, and psychological well-being, so it’s essential for one to strive to fight against Satan; to ward off doubts that Satan stirs up that undermines one’s faith in God and to ward off corrupt desires which he provokes.


These two types of Jihad are the foundation for all other varieties of Jihad and are obligatory upon everyone accountable. If one does not engage in these types of Jihad, he or she cannot venture into the other realm of Jihad, which involves battles against external enemies.


This introduces us to the other variety of Jihad: the armed struggle against those who plot against Muslims, which can be classified as Minor Jihad. When Muslims or their faith or territory is threatened under attack, Muslims are permitted to defend themselves. This Jihad is the act of striving in the battlefield, to fight in self-defense to protect one’s own life, family, faith, wealth, and property. It also includes fighting against evil, operation, and tyranny to defend what is right and to combat oppression. This Jihad is the effort and struggles to improve society.


As stated earlier, Jihad does not mean Holy War. The Arabic word for Holy War is ‘Harbun Muqaddasah.’ The word Jihad does not imply Holy War, and the words ‘Holy War’ do not exist at all in the Holy Qur’an or any authentic Hadith (Sayings of Prophet Muhammad). The killing of innocent people — whether Muslim or non-Muslim — is condemned in Islam and is considered a major sin. Islam does not permit Muslims to fight against non-Muslims, solely based on their faith.


Islam is a religion of peace, mercy, and forgiveness. No one can be compelled to accept Islam.


“There shall be no compulsion in [acceptance of] the Religion. The right course has become clear from the wrong. So, whoever disbelieves in false deities and believes in Allah has grasped the most trustworthy handhold with no break in it. And Allah is Hearing and Knowing” (Quran 2:256)


Muslims must convey and establish the proofs and evidence of Islam to people so that they can be differentiated from falsehood. Islam is clear in terms of its Message and Mission, both of which no one is compelled to accept. Whoever is not stubborn or arrogant in their acceptance will enter and accept Islam, and whoever rejects the Truth may do so. No one can threaten or harm anyone because they choose not to accept Islam. If one is compelled to accept this faith, then he/she is not a true Muslim at heart.


Islam does not allow for the fighting of noncombatants. Military conflicts are to be directed against only fighting soldiers, and not against innocent civilians. The acts such as those committed on 9/11 in the United States, for example, are classified as a major sin in Islam and carry the death penalty.


“…Whoever kills a soul unless for a soul or corruption [done] in the land — it is as if he had slain mankind entirely. And whoever saves one — it is as if he had saved mankind entirely…” (Quran 5:32)


It is also forbidden for one to harm or kill oneself by any means. Suicide is a severe sin in Islam, a state of disbelief, and a loss of faith that is condemned by the Quran.


“… do not throw [yourselves] with your [own] hands into destruction. And do good; indeed, Allah loves the doers of good” (Quran 2:195)


Unfortunately, there is a category of brainwashed Muslim youth who get drafted into misguided terrorist groups, who believe that upon exploding themselves that they would die as martyrs and get sent directly to Paradise. Islam condemns quite the contrary, suicide in any form.


If attacked, one is permitted to fight back in self-defense. Muslims should be keen to defend themselves and preserve their own lives.


“Permission [to fight] has been given to those who are being fought because they were wronged. And indeed, Allah is competent to give them victory” (22:39)


However, if the other party refrains from aggression and offers peace, then Muslims are expected to extend their hand for peace in return.


“And if they incline to peace, then incline to it [also] and rely upon Allah. Indeed, it is He who is the Hearing, the Knowing” (Quran 8:61)


The first battle fought by our Prophet and his followers, called the Battle of Badr, was an act of defense against a group who plotted and waged war against the Muslims. When fighting in defense, the Holy Koran warns Muslims not to exceed their military actions beyond the proper limits.


“Fight in the way of Allah those who fight you but do not transgress. Indeed. Allah does not like transgressors” (Quran 2:190)


This type of fighting is permitted, as it is a lesser evil designed to rid the world of a bigger evil. It is committed with the purpose of enjoining the right and forbidding the wrong. It constitutes the act of fighting to defend Islam, rather than to spread it.


Islam has provided guidelines for fighting against the enemy in self-defense. Islam prohibits the killing of children, women, the elderly, the sick, monks in monasteries, rabbis, those who are sitting in places of worship, and the murder of any other noncombatant — even in a state of war and fighting. Islam does not allow torture of prisoners of war, mutilation, treason, rape, cutting down fruitful trees, or the destroying of cultivated fields or gardens, or the destruction of property. Islam also does not allow the slaughter of cows, sheep, and camels, except for food. Muslims are also forbidden from attacking wounded soldiers unless the wounded soldier is still fighting you. Islam only allows fighting with minimum necessary force.


Some enemies of Islam take the text of the Holy Quran and Hadith out of context, claiming Islam promotes violence and terrorism; even though Jihad has nothing to do with harming oneself or society. Jihad remains a noble matter; a noble strike for the sake of God

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