islam kaisa dharm hai | इस्लाम कैसा धर्म है

Aaj ham jaanege ki islam kaisa dharm hai, इस्लाम कैसा धर्म है ?

इस्लाम धर्म कैसा है बहुत से लोग यह जानना चाहते हैं हम निम्नलिखित विशेषताएं लिख रहे हैं

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मुसलमान लोग यह गुमान क्यों करते हैं कि उन्हीं का धर्म सच्चा है? क्या उनके पास इसके संतोषजनक कारण हैं?

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

हर प्रकार की प्रशंसा और स्तुति अल्लाह के लिए योग्य है।

पहले पहल तो आप का प्रश्न एक ऐसे व्यक्ति की तरफ से जो इस्लाम धर्म में प्रवेश नहीं किया है उचित प्रतीक होता है, किन्तु जो आदमी इस धर्म को व्यवहार में ला चुका है, इसके अंदर जो चीज़ें हैं उन पर उसका विश्वास और आस्था है और वह उस के अनुसार कार्य कर रहा है, तो उसे पूर्णतया उस नेमत की मात्रा का पता है जिस में वह जीवन यापन कर रहा है और वह इस धर्म की छत्र छाया में रह रहा है, इसके बहुत सारे कारण हैं जिन में से कुछ निम्नलिखित हैं:


1- मुसलमान केवल एक मा’बूद (पूज्य) की उपासना करता है जिसका कोई साझीदार नहीं, जिसके सुंदर नाम और उच्चतम गुण हैं। चुनाँचि मुसलमान की दिशा और उसका उद्देश्य एक होता है, वह अपने पालनहार और सृष्टिकर्ता पर विश्वास रखता और उसी पर भरोसा करता है, और उसी से मदद, सहायता और समर्थन मांगता है, वह इस बात पर विश्वास रखता है कि उस का पालनहार हर चीज़ पर सक्षम और शक्तिवान है, उसे बीवी और बच्चे की आवश्यकता नहीं है, उस ने आसमानों और धरती को पैदा किया, वही मारने वाला, जिलाने वाला, पैदा करने वाला और रोज़ी देने वाला है। अत: मुसलमान बन्दा उसी से रोज़ी मांगता है। वह अल्लाह सुनने वाला क़बूल करने वाला है, अत: बन्दा उसी को पुकारता (दुआ करता) और क़बूलियत की आशा रखता है। वह अल्लाह तौबा स्वीकार करने वाला, क्षमा करने वाला दयावान् है 

अत: बन्दा जब पाप करता है और अपने रब की इबादत में कोताही करता है, तो उसी के सामने तौबा करता है। वह अल्लाह सर्वज्ञानी, सब चीज़ों की सूचना रखने वाला, और देखने वाला है जो कि दिल की इच्छाओं, भेदों और सीने की बातों को भी जानता है, अत: बन्दा गुनाह के पास जाने से शर्म करता है और अपने नफ्स पर या किसी दूसरे पर ज़ुल्म नहीं करता है, क्योंकि वह जानता है कि उसका पालनहार उस से अवगत है और उसे देख रहा है। वह जानता है कि उस का रब हकीम (तत्वदर्शी) है, ग़ैब (प्रोक्ष) की बातों का जानने वाला है, अत: जो कुछ अल्लाह ने उसके लिए चयन किया है और उस के बारे में मुक़द्दर किया है, उस पर विश्वास और भरोसा करता है, और इस बात को मानता है कि उसके रब ने उस पर ज़ुल्म नहीं किया है, और उस ने उसके लिए जो भी फैसला किया है वह उसके लिए बेहतर है, अगरचे बन्दे को उसकी हिकमत (तत्वदर्शिता) का ज्ञान न हो।


2- मुसलमान की आत्मा पर इस्लामी उपासनाओं के प्रभाव : नमाज़ बन्दा और उसके पालनहार के बीच संपर्क का एक साधन है, जब वह विनम्रता के साथ नमाज़ में प्रवेश करता है तो सुकून (शान्ति), इत्मेनान (संतुष्टि) और आराम का अनुभव करता है, क्योंकि वह एक मज़बूत स्तंभ का शरण लेता है और वह अल्लाह अज्ज़ा व जल्ल है, इसीलिए इस्लाम के पैग़म्बर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम कहा करते थे : हमें नमाज़ के द्वारा राहत पहुँचाओ, और जब आप को कोई मामला पेश आता था तो आप नमाज़ की तरफ भागते थे। हर वह आदमी जो किसी मुसीबत में पड़ गया और नमाज़ को आज़माया तो उसे जो मुसीबत पहुँची है उस से ढारस (सांत्वना) और धैर्य की सहायता का अनुभव हुआ है। इस का कारण यह है कि वह नमाज़ में अपने रब के कलाम (वाणी) को पढ़ता है और रब के कलाम (वाणी) के प्रभाव की तुलना किसी मनुष्य के कलाम के प्रभाव से नहीं की जा सकती। जब कुछ मनोवैज्ञानिकों के कलाम से कुछ राहत मिल सकती है तो जिसने मनोवैज्ञानिक को पैदा किया है उसके कलाम का प्रभाव कितना व्यापक होगा।


और जब हम ज़कात की ओर आते हैं जो कि इस्लाम का एक स्तंभ है, तो वह आत्मा को कंजूसी और लालच से पाक करने, दानशीलता की आदत डालने, गरीबों और ज़रूरतंमदों की सहायता करने के लिए है और एक अज्र व सवाब है जो अन्य इबादतों के समान क़ियामत के दिन लाभ देगा, मानव द्वारा लगाये जाने वाले करों के समान कठोर और बोझ नहीं है, यह एक हज़ार (1000) में केवल 25 है जिसे एक सच्चा मुसलमान इच्छापूर्वक अदा करता है, वह उस से भागता नहीं है, यहाँ तक कि अगर कोई उसके पीछे लगने वाला न हो।


जहाँ तक रोज़ा का संबंध है तो वह अल्लाह की उपासना के स्वरूप खाने पीने की चीज़ों और संभोग से रूक जाना है, और इस में भूखे और वंचित लोगों की भावनाओं का एहसास होता है, तथा सृष्टि पर सृष्टिकर्ता की नेमतों को याद दिलाना है तथा इस में अनगिनत अज्र व सवाब (पुण्य) है।


अल्लाह के पवित्र घर का हज्ज (तीर्थ यात्रा) जो इब्राहीम अलैहिस्सलाम के द्वारा बनाया गया था, यह अल्लाह के आदेश का अनुपालन, दुआ की क़ुबूलियत और दुनिया भर के मुसलमानों से मिलने का शुभ अवसर है।


3- इस्लाम ने प्रत्येक भलाई का आदेश किया है और प्रत्येक बुराई से रोका है, सभी आचरण व व्यवहार और शिष्टाचार का ओदश दिया है, जैसे सच्चाई, विवेचना, सहनशीलतान विनम्रता, नम्रता, नरमी, शर्म व हया, वादा पूरा करना, गरिमान दया, न्यायन साहसन धैर्य, मित्रता, सन्तुष्टि, सतीत्वता, शुद्धता, एहसान व भलाई, आसानी, विश्वस्नीयता (अमानतदारी), एहसान वा भलाई का आभारी होना, क्रोध को दबा लेना (गुस्सा पी जाना)। तथा माता-पिता के साथ सदव्यवहार करने, रिश्तेदारों के साथ संबंध बनाये रखने, पीड़ितों और ज़रूरतमंदों की मदद करने, पड़ोसी के साथ अच्छा व्यवहार करने, अनाथ की संपत्ति की रक्षा और उसकी देख-रेख करने, छोटों पर दया करने, बड़ों का सम्मान करने, नौकरों और जानवरों के साथ कोमलता बरतने, रास्ते से हानिकारक और कष्टदायक चीज़ों को हटाने, मीठी बोल बोलने, बदला लेने की ताकत के बावजूद माफ कर देने, एक मुसलमान का अपने मुसलमान भाई के प्रति शुभ चिंतक होने और उसे नसीहत करने, मुसलमानों की आवश्यकताओं को पूरा करने, क़र्ज चुकाने में असमर्थ व्यक्ति को मोहलत (छूट) देने, अपने ऊपर दूसरे को वरीयता देने, ढारस बंधाने और दिलासा देने, हँसते हुए चेहरे के साथ लोगों का अभिवादन करने, पीड़ित की मदद करने, बीमार का दौरा करने, अत्याचार से ग्रस्त लोगों की सहायता करने, दोस्तों को उपहार देने, मेहमान का मान सम्मान करने, पत्नी के साथ अच्छा रहन सहन करने, उस पर और उसके बच्चों पर खर्च करने, सलाम को फैलाने, अन्य व्यक्ति के घर में प्रवेश करने से पहले अनुमति लेने का आदेश किया है ताकि आदमी घर वालों के निजी और पर्दा करने की चीज़ों को न देखे।


जब कुछ गैर मुस्लिम इन में से कुछ चीज़ों को करते हैं, तो वे ऐसा केवल सामान्य शिष्टाचार के रूप में करते हैं, किन्तु उन्हें अल्लाह से बदले, पुण्य और प्रलय के दिन कामयाबी और सफलता की आशा नहीं होती है।


जब हम उन चीज़ों की तरफ आते हैं जिन से इस्लाम ने रोका है, तो हम उन्हें व्यक्ति और समाज के हित में पाते हैं, सभी निषिद्ध बातें अल्लाह और बन्दे के बीच, तथा मनुष्य और स्वयं उसके नफ्स के बीच तथा मनुष्यों में से एक दूसरे के बीच संबंध की रक्षा करने के लिए हैं, उद्देश्य को स्पष्ट करने के लिए आईये हम ढेर सारे उदाहरण लेते हैं:


इस्लाम ने अल्लाह के साथ शिर्क करने और अल्लाह को छोड़ कर दूसरे की पूजा करने से रोका है, और यह कि अल्लाह के सिवा दूसरे की इबादत करना दुर्भाग्य और बिपदा है, तथा नुजूमियों और ज्योतिशियों के पास जाने और उनकी पुष्टि करने से रोका है, इसी तरह जादू से मना किया है जो दो व्यक्तियों के बीच जुदाई डालने या उनके बीच संबंध पैदा करने के लिए किया जाता है, लोगों के जीवन और संसार की घटनाओं में तारों और सितारों के प्रभाव के बारे में आस्था रखने से, ज़माने को बुरा भला कहने (गाली देने) से मना किया है क्योंकि अल्लाह ही ज़माने को उलट फेर करता है, तथा बुरा शकुन लेने से रोका है, क्योंकि यह अंधविश्वास और निराशावाद है।


इस्लाम ने नेकियों और अच्छे कामों को रियाकारी (दिखावा), शोहरत की इच्छा और किसी पर एहसान जतलाने के द्वारा नष्ट करने से रोका है।


अल्लाह को छोड़ कर किसी अन्य को सज्दा करने के लिए झुकने (शीश नवाने), मुनाफिक़ो (पाखंडियों) या फासिक़ों (पापियों) के साथ, उनसे मानूस होते हुये या उन्हें मानूस करते हुए, बैठने से रोका है।


तथा आपस में एक दूसरे को अल्लाह की फटकार, या उसके क्रोध, या नरक के द्वारा धिक्कार करने (ला’नत भेजने) से मनाही किया है।


स्थिर (ठहरे हुये) पानी में पेशाब करने, सार्वजनिक रास्ते, लोगों के छाया हासिल करने की जगहों और पानी के घाट पर शौच करने से रोका है, तथा पेशाब या पैखाना करते समय क़िब्ला (मक्का में अल्लाह के घर) की ओर मुँह या पीठ करने से रोका है, पेशाब करते समय आदमी को दाहिने हाथ से अपने लिंग को पकड़ने से रोका है, जो आदमी शौच कर रहा हो उस को सलाम करने से रोका है, तथा नींद से जागने वाले आदमी को बर्तन में अपना हाथ डालने से रोका यहाँ तक कि वह उसे धुल ले।


तथा सूरज के उगते समय, उसके ढलते समय और उसके डूबते समय नफ्ल नमाज़ पढ़ने से रोका है, क्योंकि वह शैतान की दो सींगों के बीच उगता और डूबता है।


तथा जब आदमी के सामने भोजन तैयार हो और वह उसके खाने का इच्छुक हो, तो उस हालत में नमाज़ पढ़ने से रोका है, इसी तरह आदमी को ऐसी स्थिति में नमाज़ पढ़ने से रोका है जब वह पेशाब, पैखाना और हवा (गैस) को रोक रहा हो, क्योंकि यह सभी स्थितियाँ नमाज़ी को अपेक्षित एकाग्रता और ध्यान से विचलित कर देती हैं।


तथा नमाज़ी को नमाज़ के अंदर अपनी आवाज़ को ऊँची करने से रोका है ताकि दूसरे मोमिनों को इस से कष्ट न पहुँचे, तथा जब आदमी ऊँघ रहा हो तो उसेक़ियामुल्लैल (तहज्जुद) को जारी रखने से रोका है, बल्कि उसे सो जाना चाहिए फिर उठ करक़ियामुल्लैल करना चाहिए, इसी तरह पूरी रात जाग कर इबादत करने से रोका है विशेषकर जब यह निरंतर हो।


इसी तरह नमाज़ी को मात्र वुज़ू टूटने का शक हो जाने के कारण अपनी नमाज़ से बाहर निकलने से रोका है यहाँ तक कि वह हवा निकलने की आवाज़ सुन ले या बदबू महसूस करे।


मिस्जदों में खरीदने बेचने और गुमशुदा चीज़ का एलान करने से रोका है क्योंकि ये इबादत और अल्लाह के ज़िक्र के स्थान हैं, इसलिए इन में दुनियावी काम करना उचित नहीं है।


जब नमाज़ की जमाअत खड़ी हो जाये तो तेज़ चलकर आने से रोका है, बल्कि सुकून और वक़ार के साथ चलना चाहिये, इसी तरह मिस्जदों के विषय में आपस में गर्व करने और उसे लाल या पीले रंग, या चमक दमक की चीज़ों से सजाने और हर उस चीज़ से रोका है जो नमाज़ियों के ध्यान को बांट देते हैं।


तथा एक दिन के रोज़े को दूसरे दिन के रोज़े से उनके बीच में इफ्तारी किए बिना मिलाने से रोका है, इसी तरह महिला को अपने पति की उपस्थिति में उसकी अनुमति के बिना नफ्ली रोज़ा रखने से रोका है।


क़ब्रों पर निर्माण करने, या उसे ऊँची करने, उस पर बैठने, जूता-चप्पल पहन कर उनके बीच चलने फिरने, उस पर रौशनी करने, उस पर कोई चीज़ लिखने और उसे उखाड़ने से रोका है, इसी तरह क़ब्रों को मिस्जदें (पूजास्थल) बनाने से मना किया है।


तथा किसी आदमी के मर जाने पर नौहा करने (रोने-पीटने), कपड़ा फाड़ने, बाल खोलने से मना किया है, जाहिलियत के काल के लोगों की तरह मरने की सूचना देने से मना किया है, किन्तु किसी के मरने की मात्र सूचना देने में कोई हरज (आपत्ति) नहीं है।

तथा सूद खाना निषिद्ध है, तथा हर वह क्रय-विक्रय जो अज्ञानता, धोखा-धड़ी पर आधारित हो वह निषिद्ध है, खून, शराब, सुअर और मूर्तियाँ बेचने से मना किया है, तथा जिस चीज़ को भी अल्लाह तआला ने हराम घोषित किया है, उसकी क़ीमत भी हराम है चाहे उसे बेचा जाये या खरीदा जाये, इसी तरह नज्श से रोका गया है और वह यह है कि जो आदमी खरीदना नहीं चाहता है वह सामान की क़ीमत को बढ़ा दे जैसाकि बहुत सी नीलामी की बोलियों में होता है, इसी तरह किसी सामान को बेचते समय उसके ऐब को छिपाने से रोका है, इसी तरह आदमी जिस चीज़ का मालिक नहीं है उस को बेचना तथा किसी चीज़ को अपने क़ब्ज़े में करने से पहले बेच देना निषिद्ध है, इसी तरह आदमी का अपने भाई के बेचने पर बेचना, अपने भाई की खरीद पर खरीद करना, और अपने भाई के भाव ताव पर भाव ताव करना निषिद्ध है। फलों को बेचने से रोका है यहाँ तक कि उसका पकना ज़ाहिर हो जाये और आफत ग्रस्त होने से सुरक्षित हो जाये, नाप और तौल में कमी करने से, ज़खीरा करने से, तथा ज़मीन या खजूर के बाग इत्यादि में हिस्से दार को अपने शेयर को बेचने से मना किया है यहाँ तक कि उसे अपने साथी पर पेश कर दे, यतीमों के माल को जुल्म करके खाने से से रोका है, जुवा (लाटरी) का धन खाने से परहेज़ करने का हुक्म दिया है, लूट खसूट और जुवा से, रिश्वत (घूँस) लेने और देने, लोगों का माल छीनने, लोगों का माल अवैध रूप से खाने, इसी तरह उसे नष्ट कर देने के इरादे से लेने से मना किया है, लोगों की चीज़ों में कमी करने (हक़ मारने), गिरी पड़ी चीज़ को छिपाने और गायब कर देने, गिरी पड़ी चीज़ को उठाने से रोका है सिवाय इसके कि वह उसकी पहचान (ऐलान) करवाये, हर प्रकार की धोखा-धड़ी, ऐसा क़ज़Z लेने से जिसे चुकाने का इरादा न हो, इसी तरह अपने मुसलमान भाई का माल उसकी खुशी के बिना लेने से मना किया है, इसी तरह शर्म व हया के तलवार से लिया गया माल हराम है, तथा सिफारिश के कारण उपहार स्वीकार करने से रोका है।


ब्रह्मचर्य और बधिया हो जाने से मना किया है, रिश्तेदारी के संबंधों को तोड़ने के डर से दो सगी बहनों को एक साथ शादी में रखने तथा किसी औरत और उसकी फूफी को और किसी औरत और उसकी खाला को एक साथ शादी में रखने से मना किया है, "शिगार" नामी (अर्थात् अदले बदले की) शादी से रोका है, और वह इस प्रकार है कि उदाहरण के तौर पर आदमी कहे कि तुम मुझ से अपनी बेटी या बहन की शादी कर दो और मैं अपनी बेटी या बहन की शादी तुम से कर दूँगा, 

इस प्रकार यह औरत दूसरी के बदले में हो, तो यह अन्याय और हराम है। तथा मुत्आ (अस्थायी शादी) से रोका है, जो कि दो पक्षों के बीच पारस्परिक सहमति से एक निर्धारित अवधि तक के लिए होता है और अवधि समाप्त होने पर उस शादी का अंत हो जाता है। मासिक धर्म की अवधि में बीवी से संभोग करने से रोका है, बल्कि जब वह पवित्र हो जाये तो उस से सहवास करे, तथा औरत के गुदा (पाखाने के रास्ते) में संभोग करना निषिद्ध है, अपने भाई के शादी के पैग़ाम (प्रस्ताव) पर शादी का पैग़ाम (प्रस्ताव) देना निषिद्ध है

 यहाँ तक कि वह उसे छोड़ दे या उसे अनुमति दे दे, पहले से शादीशुदा (जैसे बेवा या तलाक़शुदा) औरत की शादी उसकी सलाह व मश्वरा के बिना और कुँवारी औरत की शादी उसकी अनुमति लिए बिना करना निषिद्ध है, नवविवाहित जोड़े को एक खुशहाल जीवन और बेटे की बधाई देने से मना किया है, क्योंकि यह जाहिलियत के समय के लोगों की शुभकामना है जो लड़कियों से नफरत करते थे, तलाक़शुदा औरत को अपने गर्भ को छुपाने से रोका है, पति और पत्नी के बीच संभोग से संबंधित जो बातें होती हैं 

उन्हें दूसरों से बयान करने से रोका गया है, बीवी को उसके पति के खिलाफ भड़काने और तलाक़ से खिलवाड़ करने से रोका है, किसी औरत के लिए निषिद्ध है कि वह अपने बहन के तलाक़ का मुतालबा करे चाहे वह (पहले से उसकी) बीवी हो या शादी के लिए प्रस्तावित हो, उदाहरण के तौर पर एक औरत किसी मर्द से यह मांग करे कि वह अपनी बीवी को तलाक़ दे दे ताकि यह औरत उस से शादी कर ले, औरत को बिना इजाज़त अपने पति के धन से खर्च करने से मना किया है, औरत को अपने पति के बिस्तर को छोड़ने से रोका है, और यदि बिना किसी शरई कारण के ऐसा करती है तो फरिश्ते उस पर लानत भेजते हैं, आदमी को अपने बाप की बीवी से शादी करने से रोका है, 

आदमी को ऐसी औरत से संभोग करने से रोका है जो किसी दूसरे आदमी से गर्भवती हो, आदमी को अपनी आज़ाद बीवी से उसकी अनुमति के बिना अज़्ल करने से रोका गया है (अज़्ल कहते हैं कि संभोग के दौरान आदमी पत्नी की यौनि से बाहर वीर्यपात करे), आदमी को यात्रा से लौटते समय अचानक रात के समय अपनी पत्नी के पास आ धमकने से रोका है, हाँ अगर अपने आने के समय की पूर्व सूचना दे दे तो कोई बात नहीं, पति को अपनी पत्नी के मह्र को उसकी सहमति के बिना लेने से रोका है, तथा पत्नी को इस उद्देश्य से परेशान करने और हानि पहुँचाने से रोका है ताकि वह परेशान होकर अपना धन देकर उस से छुटकारा हासिल करे।


महिलाओं को अपने श्रृंगार का प्रदर्शन करने से रोका है, औरत के खतने में अति करने से रोका है, औरत को अपने पति के घर में उसकी अनुमति के बिना किसी दूसरे को प्रवेश दिलाने से रोका है, अगर शरीअत का विरोध न होता हो तो सामान्य अनुमति काफी है, माँ और उसके बच्चे के बीच जुदाई पैदा करने से रोका है, तथा दय्यूसियत (निर्लज्जता, अपने परिवार में अनैतिक कार्य देखकर चुप रहने) से रोका है, परायी महिला को नज़र उठाकर देखने, और एक आकस्मिक झलक के बाद दुबारा देखने से मना किया है।


मुर्दार खाने से रोका है, चाहे वह डूब कर मरा हो, या गला घोंटने से, या शाट (सदमा) से, या ऊँची जगह से गिरने से, तथा खून, सुअर के मांस से, और जो जानवर अल्लाह के अलावा किसी और के नाम पर ज़ब्ह किया गया हो, और जो मूर्तियों के लिए ज़ब्ह किया गया है, इन सब से रोका है।


ऐसे जानवरों का मांस खाने और उनका दूध पीने से रोका है जो गंदगियों और कचरों का आहार लेते हैं, इसी तरह नुकीले दाँत वाले मांसभक्षी जानवरों और पंजे से शिकार करने वाले परिंदों का गोश्त खाने, और पालतू गदहे का मांस खाने से मना किया है, जानवरों को तकलीफ देकर मारने अर्थात् उसे बांध कर किसी चीज़ से मारना यहाँ तक कि वह मर जाये, या उसे चारा (भोजन) के बिना बांधे रखने से मना किया है, दांत या नाखुन से जानवर को ज़ब्ह करने, दूसरे जानवर के सामने किसी जानवर को ज़ब्ह करने, या जानवर के सामने छुरी तेज़ करने से मना किया हैं।


कपड़े और अलंकरण के छेत्र में


लिबास और पहनावे में अपव्यय करने और पुरूषों को सोना पहनने से मना किया है, नग्न होने, नंगे चलने फिरने, रान को खोलने, टखनों से नीचे कपड़ा लटकाने, या गर्व के तौर पर कपड़ा घसीटने, और शोहरत (दिखावे) के कपड़े पहनने से मना किया है।


झूठी गवाही से, पाकदामन औरत पर आरोप लगाने से, निर्दोष पर आरोप लगाने से और बुहतान अर्थात् किसी पर झूठ गढ़ने से मना किया है।


ऐब टटोलने, त्रुटियाँ निकालने, बुरे उपनाम के द्वारा बुलाने, गीबत, चुगलखोरी, मुसलमानों का उपहास करने, हसब व नसब पर गर्व करने, नसब में ऐब लगाने, गाली गलोज बकने, बुरी बात कहने, अश्लील और असभ्य तरीक़े से बात करने, ऊँची आवाज़ में बुरी बात कहने से मना किया है सिवाय उसके जिस पर अत्याचार किया गया हो।


झूठ बोलने से मना किया है और सबसे सख्त छूठ सपने के बारे में झूठ बोलना है, उदाहरण के तौर पर कोई प्रतिष्ठा, या भौतिक लाभ प्राप्त करने, या जिस से उसकी दुश्मनी है उसे भयभीत करने के लिए झूठा सपना गढ़ना।


आदमी को स्वयं अपनी प्रशंसा करने से मना किया है, सरगोशी (चुपके चुपके वार्तालाप) करने से मना किया है, अत: तीसरे को छोड़ कर दो आदमियों को सरगोशी नहीं करनी चाहिए ताकि वह चिंता ग्रस्त न हो, मोमिन (विश्वासी) पर अभिशाप करने या ऐसे आदमी को अभिशाप करने से मना किया है जो शापित किये जाने का योग्य नहीं है।


मृतकों की बुराई करना निषिद्ध है, तथा मौत की दुआ करने, या किसी मुसीबत से पीड़ित होने के कारण मौत की कामना करने, अपने ऊपर, संतान, नौकरों, और धन-संपत्ति पर शाप (बद-दुआ) करने से मना किया है।


जो खाना दूसरों के सामने है उस में से खाने से, तथा खाने के बीच में से खाने से मना किया है, बल्कि किनारे से खाना चाहिए क्योंकि बर्कत खाने के बीच में उतरती है, टूटे हुए बर्तन के टूटे हुए हिस्से से नहीं पीना चाहिए ताकि इस से उसे नुकसान न पहुँचे, बर्तन के मुँह से नहीं पीना चाहिए, तथा बर्तन में सांस लेने और पेट के बल लेट कर खाना खाने से मना किया है, ऐसे दस्तरख्वान पर बैठने से मना किया है जिस पर शराब पी जाती है।


सोते समय घर में आग को जलती छोड़ने से मना किया है, पेट के बल सोने से मना किया है, तथा इस बात से मना किया है कि आदमी बुरा सपना बयान करे या उसकी व्याख्या करे, क्योंकि यह शैतान की चाल है।

जो खाना दूसरों के सामने है उस में से खाने से, तथा खाने के बीच में से खाने से मना किया है, बल्कि किनारे से खाना चाहिए क्योंकि बर्कत खाने के बीच में उतरती है, टूटे हुए बर्तन के टूटे हुए हिस्से से नहीं पीना चाहिए ताकि इस से उसे नुकसान न पहुँचे, बर्तन के मुँह से नहीं पीना चाहिए, तथा बर्तन में सांस लेने और पेट के बल लेट कर खाना खाने से मना किया है, ऐसे दस्तरख्वान पर बैठने से मना किया है जिस पर शराब पी जाती है।


सोते समय घर में आग को जलती छोड़ने से मना किया है, पेट के बल सोने से मना किया है, तथा इस बात से मना किया है कि आदमी बुरा सपना बयान करे या उसकी व्याख्या करे, क्योंकि यह शैतान की चाल है।


किसी को बिना अधिकार के क़त्ल करने से मना किया है, गरीबी के डर से बच्चों का क़त्ल करने से मना किया है, आत्म-हत्या करना निषिद्ध किया है, व्यभिचार, लौंडेबाज़ी (समलैंगिकता) करने, शराब पीने, उसे निचोड़ने, उसे उठाने और उसे बेचने से मना किया है,

 अल्लाह को नाराज़ करके लोगों को खुश करने से मना किया है, माता-पिता को डांट डपट करने और उफ तक कहने से भी मना किया है, बच्चे को अपने बाप के अलावा किसी और की तरफ मंसूब होने से मना किया है, आग के द्वारा सज़ा देने से रोका है, जीवितो और मृतकों को आग के द्वारा जलाने से मना किया है, मुस्ला (शव को विकृत) करने से मना किया है, गलत काम, पाप और अत्याचार पर सहयोग करने से मना किया है, अल्लाह की अवज्ञा में किसी आदमी का पालन करने से मना किया है, 

झूठी क़सम खाने और विनाशकारी शपथ लेने से मना किया है, लोगों की अनुमति के बिना छुप कर उनकी बातें सुनने से रोका है, लोगों के निजी अंगों को देखने से मना किया है, ऐसी चीज़ का दावा करने से जो उसका नहीं है और जो चीज़ आदमी के पास नहीं है उसके होने का इज़हार करने से, और आदमी जो नहीं किया है उस पर प्रशंसा किए जाने का प्रयास करने से मना किया है, किसी के घर में उनकी अनुमति के बिना देखने या झांकने से मना किया है, फुज़ूल खर्ची और अपव्यय से मना किया है, पाप करने की क़सम खाने, जासूसी करने, नेक पुरूषो और महिलाओं के बारे में बदगुमानी करने से मना किया है, एक दूसरे से ईर्ष्या, नफरत, द्वेष करने और पीठ फेरने से मना किया है, बातिल पर जमे रहने, तथा गर्व, घमण्ड, खुदपसन्दी, तथा स्वाभिमानता के तौर पर मस्ती करने और खुशी का प्रदर्शन करने से मना किया है, 

मुसलमान को अपने दान को वापस लेने से रोका है, भले ही उस को खरीद कर ही क्यों न हो, मज़दूर से पूरा काम लेने और उसे पूरी मज़दूरी न देने से रोका है, बच्चों को उपहार देने में न्याय से काम न लेने से रोका है, अपनी संपूर्ण संपत्ति की वसीयत कर देने और अपने वारिसों को भिखारी छोड़ देने से रोका है, अगर कोई आदमी ऐसा करता है तो उसकी वसीयत को केवल एक तिहाई माल में ही लागू किया जाये गा, पड़ोसी के साथ दुर्व्यवहार करने से रोका है, वसीयत में किसी को नुक़सान पहुँचाने से रोका है, बिना किसी शरई कारण के मुसलमान से तीन दिन से अधिक बातचीत करना छोड़ देने से रोका है, दो अंगुलियों के बीच कंकरी रख कर मारने से रोका गया है, क्योंकि इस से नुकसान पहुँचने का डर है जैसे कि आँख फूट जाना या दाँत टूट जाना, किसी वारिस के लिए वसीयत करने से रोका है क्योंकि अल्लाह तआला ने हर वारिस को उसका हक़ दे दिया है, पड़ोसी को कष्ट पहुँचाने से रोका है, एक मुसलमान को अपने मुसलमान भाई की ओर हथियार के द्वारा संकेत करने से मना किया है, तलवार को मियान से बाहर लेकर चलने से मना किया है ताकि किसी को नुक़सान न पहुँचे, 

दो आदमियों के बीच उनकी अनुमति के बिना जुदाई पैदा करने से रोका है, उपहार को यदि उसमें कोई शरई आपत्ति न हो तो उसे लौटाने से मना किया है, मूर्ख लोगों को धन देने से रेका है, अल्लाह तआला ने कुछ पुरूषों और महिलाओं को दूसरों पर जो प्रतिष्ठा प्रदान किया है उसकी कामना करने से मना किया है, एहसान जतलाकर और कष्ट पहुँचाकर सद्क़ात व खैरात को नष्ट करने से रोका है, गवाही को छिपाने से मना किया है, अनाथ को दबाने और मांगने वाले को डाँट-डपट करने से रोका है, अशुद्ध और अपवित्र दवा के द्वारा उपचार करने से मना किया है क्योंकि अल्लाह तआला ने उम्मत की शिफा उस चीज़ के अंदर नहीं रखा है जिसे उस पर हराम कर दिया है, युद्ध में बच्चों और महिलाओं को क़त्ल करने से मना किया है, किसी आदमी को किसी पर गर्व करने से रोका है, वादा तोड़ने से मना किया है, अमानत में खियानत करने से मना किया है, 

बिना ज़रूरत लोगों से मांगने से रोका है, मुसलमान को इस बात से रोका है कि वह किसी मुसलमान को भयभीत करे या हंसी मज़ाक या गंभीरता में उसका सामान ले ले, आदमी को इस बात से रोका है कि वह अपने हिबा या अनुदान को वापस ले ले सिवाय बाप के जो उस ने अपने बच्चे को दिया है (उस को वापस ले सकता है), बिना अनुभव के हकीम बनने से रोका है, चींटी, शहद की मक्खी और हुदहुद (हुपु पक्षी) को क़त्ल करने से मना किया है, पुरूष को पुरूष के निजी भाग और महिला को महिला के निजी भाग को देखने से मना किया है, 

दो लोगों के बीच उनकी अनुमति के बिना बैठने से मना किया है, केवल जाने पहचाने लोगों को सलाम करने से मना किया है, बल्कि आदमी जिस को जानता पहचानता है और जिस को नही जानता पहचानता है, हर एक को सलाम करेगा, आदमी को शपथ और अच्छे अमल के बीच क़सम को रूकावट नहीं बनाना चाहिये, बल्कि जो अच्छा हो उसे करना चाहिए और क़सम का कफ्फारा देना चाहिए, क्रोध की हालत में दो पक्षों के बीच फैसला करने, या दूसरे पक्ष की बात को सुने बिना किसी एक पक्ष के हक में फैसला करने से मना किया है,

 आदमी को अपने साथ ऐसी चीज़ लेकर बाज़ार में से गुज़रने से मना किया है जिस से मुसलमानों को तकलीफ पहुँच सकती है जैसे कि बिना कवर के धार वाले सामान, आदमी को इस बात से मना किया है कि वह दूसरे आदमी को उसकी जगह से उठा दे फिर स्वयं उस जगह बैठ जाये, आदमी को अपने भाई के पास से उसकी अनुमति के बिना उठकर चले जाने से मना किया है।


इनके अतिरिक्त अन्य आदेश और प्रतिषेध भी हैं जो मनुष्य और मानवता के सौभाग्य के लिए आये हैं, तो क्या ऐ प्रश्नकर्ता तू ने इस धर्म के समान कोई अन्य धर्म देखा या जाना है?


इस उत्तर को फिर से पढ़, फिर अपने आप से प्रश्न कर : क्या यह घाटे की बात नहीं है कि तू इस धर्म की एक अनुयायी नहीं है?


अल्लाह तआला महान क़ुर्आन में फरमाता है :"और जो व्यक्ति इस्लाम के सिवा कोई अन्य धर्म ढूंढ़े गा, तो वह (धर्म) उस से कदापि स्वीकार नहीं किया जायेगा, और वह आखिरत में घाटा उठाने वालों में से होगा।" (सूरत आल-इम्रान:85)


अंत में, मैं तुम्हारे लिए और इस उत्तर को पढ़ने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए यह कामना करता हूँ कि उसे सीधे मार्ग पर चलने और सत्य का अनुपालन करने का शुभ अवसर प्राप्त हो।


(1) इस्लाम एक अच्छा धर्म है लेकिन इस्लाम धर्म में ईश्वर ( अल्लाह ) एक है यह सिखलाता है एक ईश्वर (अल्लाह ) के आलावा दुनिया ब्रह्मांड का दूसरा कोई ईश्वर नहीं है और हज़रत मोहम्मद स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम ईश्वर (अल्लाह ) के आखिरी दूत ( पैगम्बर ) और उसके बन्दे हैं।


(2) इस्लाम के अनुसार सब मुस्लिमों को आपस में एक बराबर के दर्जा दिया गया है।

जैसा कि आज हम आपको देखने को मिलता है कि लोगों का सोचना है खान,सय्यद,अन्सारी,शैख आदि बहुत से लोग ऊंचे मुस्लिम होते हैं ऐसा कुछ भी नहीं है


(3) इस्लाम के अनुसार खानदान के वजह से कोई किसी से ऊंचा नीचा नहीं है बल्कि इस्लाम के वज़ह से सब बराबर के दर्जा रखते हैं । चाहे भिखारी हो या राजा सब को एक दर्जा दिया गया है।


(4) इस्लाम में साफ सफाई रखने को ईमान का आधा हिस्सा का उदाहरण देकर सबको साफ सफाई रखने पर हद दर्जा ज़ोर दिया गया है।


(5) इस्लाम में ज्ञान को बहुत महत्वपूर्ण दर्जे पर रखा गया है 

और एक हदीस में यह कहा गया है कि इल्मे दीन हासिल करना हर मुसलमान मर्द और औरत पर फर्ज है यानी कम्पल्सरी। इसलिए जो ज्ञान वाला होता है उसको सम्मान ज्यादा दिया जाता है।


(6) इस्लाम के अनुसार भूंखों को खाना खिलाना सवाब (पुण्य)का कार्य माना जाता है ।


(7) इस्लाम के अनुसार प्यासों को पानी पिलाना सवाब (पुण्य)का कार्य माना जाता है ।


(8) इस्लाम के अनुसार पेड़ लगाने पौधे लगाने पर सवाब (पुण्य)का कार्य माना जाता है ।


(9) इस्लाम के अनुसार अपने पड़ोसियों का हक अदा करने पर (पुण्य)का कार्य माना जाता है । 

जैसे आपका पड़ोसी भूखे ना सो जाये,उसका ख्याल रखना,उसकी परेशानियों में उसका साथ देना आदि।


(10) इस्लाम के अनुसार मेहमानों का स्वागत सत्कार करना सवाब (पुण्य)का कार्य माना जाता है ।


(11) इस्लाम के अनुसार हर व्यक्ति को शादी करना सवाब (पुण्य)का कार्य माना जाता है ।


(12 ) इस्लाम के अनुसार अपने बच्चों की परवरिश करना शिक्षा देना सवाब (पुण्य)का कार्य माना जाता है ।


(13) इस्लाम के अनुसार मरीजों को देखने जाना उनका हाल खबर पूंछना सवाब (पुण्य)का कार्य माना जाता है ।


(14) इस्लाम के अनुसार किसी के तकलीफ़ को दूर करना सवाब (पुण्य)का कार्य माना जाता है ।


(15) इस्लाम के अनुसार दिन भर में पांच समय अपने ईश्वर की इबादत करना ( उपासना करना ) सवाब (पुण्य)का कार्य माना जाता है ।आदि

और बहुत सारी बातें है फिर किसी पोस्ट में विस्तार पूर्वक लिखा जायेगा।

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Islam qabool karne ka sabse aasan aour behtar tarika ye hai ki 

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2. Jaise hi aap ko lage ki mai islam qabool karna chata hun faouran ye kalma dil se padhe 

3. La ilaha illallau mohammadur rasoolallah padh kar iman laana

4.uska matlab jaan na ki kalma ya shahadat ka keya matlab hota hai

Uska matlab hota hai ki mai Allah ko ek maanta hun aour hazrat mohammad Swallallaho Alaihi Wasallam Allah ke rasool aour uske bande Hain


5. do muslim logon ke saamne kalma padhna yani ailan karna jeyada behtar hai taaki wo gawahi de saken ki ye hamare samne kalma yani shahadat diya hai ya di hai


6. Baad me kisi bhi aalim e deen ke saamne kalma padhen

7. islam qabool karna koi mushkil kaam nahi hai bas inhi step ko follow karne in me se koi bhi ek step karne se islam qabool ho jayega wallahu aalam bissawab

इस्लाम कैसे कबूल करें, इस्लाम कैसे बनाते हैं, इस्लाम कैसे बनता है, इस्लाम कैसे बनती है?

आपके कहने का मतलब ये है कि इस्लाम में कैसे दाखिल होते हैं या मुस्लिम कैसे बनते हैं ?

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

इस्लाम धर्म की सुन्दरता और उस की अच्छाईयों में से यह तथ्य है कि इस में एक व्यक्ति और उस के परमेश्वर के बीच संबंध में कोई मध्यस्थ नहीं है। 

तथा इस धर्म की सुन्दरता और अच्छाईयों में से यह भी है कि इस में प्रवेष करने के लिए किसी व्यक्ति के सामने किसी कार्रवाई या प्रक्रिया की ज़रूरत नहीं होती है और न ही कुछ विशिष्ट लोगों की सहमति की आवश्यकता होती है, बल्कि इस्लाम में प्रवेश करना बहुत आसान है और किसी भी इंसान के लिए ऐसा करना सम्भव है चाहे वह किसी जंगल (मरूस्थल) या बन्द कमरे में अकेला ही क्यों न हो। इस के लिए पूरी प्रक्रिया मात्र दो सुन्दर वाक्य का कहना है 

जो दोनों इस्लाम के सम्पूर्ण अर्थ को शामिल हैं, इंसान के अपने पालनहार की दासता और बन्दगी के इक़रार, उस के सामने अपने आप को समर्पित करने और इस बात को स्वीकारने पर आधारित हैं कि वही (अल्लाह) उस का पूज्य, उस का स्वामी, और उस के बारे में जो चाहे फैसला करने वाला है, 

और यह कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अल्लाह के बन्दे (उपासक, दास) और पैगंबर हैं जिन की उन चीज़ों में पैरवी करना अनिवार्य है जिस की उन के परमेश्वर ने उनकी तरफ प्रकाशना की है, 

और आप का आज्ञा पालन सर्वशक्तिमान अल्लाह के आज्ञापालन में दाखिल है।जिस व्यक्ति ने इन दोनों शहादतों (अर्थात "ला इलाहा इल्लल्लाह" की शहादत और "मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह" की शहादत) को उन पर यक़ीन और विश्वास रखते हुये अपनी ज़ुबान से अदा कर दिया तो वह मुसलमान और मुसलमानों के अफ्राद में से एक फर्द हो गया, उस के लिए वे सभी अधिकार हैं 

जो मुसलमानों के लिए हैं, और उस के ऊपर वे सभी कर्तव्य अनिवार्य हैं जो अन्य मुसलमानों पर हैं।


इस के तुरन्त बाद वह उन धार्मिक कर्तव्यों का पालन शुरू कर दे जिन्हें अल्लाह तआला ने उस के ऊपर अनिवार्य कर दिया है जैसे कि पाँच दैनिक नमाज़ें उन के ठीक समय पदर अदा करना, रमज़ान के महीने में रोज़े रखना और इन के अलावा अन्य कर्तव्यों का पालन करना। इस से, ऐ बुद्धिमान प्रश्नकर्ता! आप के लिए स्पष्ट हो जाता है कि आप तुरन्त मुसलमान हो सकती हैं, अत: आप उठें और स्नान करें, फिर यह वाक्य कहें : "अश्हदो अन् ला इलाहा इल्लल्लाह व अश्हदो अन्ना मुहम्मदन अब्दुहू व रसूलुह" (मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं और मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद उस के दास (उपासक) और सन्देष्टा हैं।)

अल्लाह तआला आप को हर भलाई की तौफीक़ दे, आप के क़दम को शुद्ध मार्ग पर क़ायम रखे और आप को लोक और परलोक में कल्याण और सौभाग्य प्रदान करे, तथा सहीह मार्गदर्शन का पालन करने वाले पर शान्ति अवतरित हो।

इस्लाम क़बूल करने का सबसे आसान और बेहतर तारिका ये है की

 1.शहादत देना मतलब गवाही देना ।

 2. जैसे ही आप को लगे की मैं इस्लाम कबूल करना चाहता हूं फौरन ये कलमा दिल से पढे ।

 3. ला इलाहा इल्लल्लाहु मुहम्मदुर रसूलल्लाह पढ़ कर ईमान लाना ।

 4.उसका मतलब जानना की कलमा या शहादत का क्या मतलब होता है ।

 उसका मतलब होता है की मैं अल्लाह को एक मानता हूं और हज़रत मोहम्मद स्वल्लाहो अलैही वसल्लम अल्लाह के रसूल और उसके बंदे हैं ।

 5. या मुस्लिम लोगों के सामने कलमा पढना यानि ऐलान करना ज्यादा बेहतर है ताकी वो गवाही दे सकें की ये हमारे सामने कलमा यानि शहादत दिया है या दी है ।

 6. बाद में किसी भी आलिम ए दीन के सामने कलमा पढे

 7. इस्लाम क़बूल करना कोई मुश्किल काम नहीं है बस में इनमें से कोई एक स्टेप को फॉलो करना इनमें से कोई भी एक स्टेप करने से इस्लाम क़बूल हो जाएगा वलाहू आलम बिस्साब ।

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How is Islam religion Many people want to know we are writing the following features

 (1) Islam is a good religion but God (Allah) is one in Islam, it teaches that apart from one God (Allah), there is no other God in the world and Hazrat Muhammad swallallaho alayhi wa sallam is the last messenger of God (Allah). Prophet) and his servants.


 (2) According to Islam, all Muslims have been given equal status among themselves.

 As we get to see you today that people think that many people like Khan, Sayyed, Ansari, Shaikh etc. are high Muslim, there is nothing like that.


 (3) According to Islam, no one is higher and lower than anyone because of the family, but because of Islam, all have equal status. Whether beggar or king, everyone has been given a status.


 (4) By giving the example of one-half of the faith to keep cleanliness in Islam, a degree of emphasis has been placed on keeping cleanliness for all.


 (5) Knowledge is placed at a very important position in Islam

 And in a hadith it is said that it is obligatory on every Muslim man and woman to attain Ilme Din i.e. Compulsory. That is why the one who is knowledgeable is given more respect.


 (6) According to Islam, feeding the hungry is considered an act of reward (virtue).


 (7) According to Islam, giving water to the thirsty is considered an act of reward (virtue).


 (8) According to Islam, planting trees and planting saplings is considered an act of reward (virtue).


 (9) According to Islam, paying the rights of one's neighbors is considered an act of (virtue).

 Like your neighbor does not go to bed hungry, take care of him, support him in his troubles etc.


 (10) According to Islam, welcoming guests is considered an act of reward (virtue).


 (11) According to Islam, marrying every person is considered an act of sawab (virtue).


 (12) According to Islam, raising one's children and giving education is considered an act of reward (virtue).


 (13) According to Islam, going to see patients and asking for their news is considered an act of reward (virtue).


 (14) According to Islam, removing someone's pain is considered an act of sawaab (virtue).


 (15) According to Islam, worshiping (worship) your God for five times in a day is considered an act of reward (virtue).

 And there are many other things, then it will be written in detail in a post.

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सैकड़ों साल पहले जब कि दुनिया में कहीं आने जाने और नक्ल व हरकत में कोई रुकावट नहीं थी । जिस आदमी का जब जिधर रुख हो जाता सैर व सियाहत के लिये निकल जाता , जहां चाहता रिहाईश इख्तियार कर लेता , और जब जी चाहता अपना साज़ य सामान समेटकर अपने पसंदीदा इलाका व शहर या नामालूम मंज़िल की तरफ़ चल पड़ता । 


आर्य भी बड़ी संख्या में इसी तरह हिन्दुस्तान आये और यहां के माहौल में रच बस गये । उस वक़्त इस मुल्क का क्षेत्र बहुत विस्तृत और काफ़ी फैला हुआ था । शासकों और विजेताओं का भी यही हाल और यही अंदाज़ था । 


अपनी ताक़त व कुव्वत के बल बूते पर वह जिस हिस्से को चाहते उसे अपना लेते , जिस जाति व कबीला को चाहते अपना अधीन बना लेते , और जिस बादशाह , नवाब , राजा , महाराजा पर चाहते टूट पड़ते । 


दुनिया भर का यही माहौल था । कहीं कोई अनुशासन व प्रशासन कोई कायदा कानून नहीं था । मुल्कों और रियासतों की सीमायें दिन व रात बनती बिगड़ती और टूटती बिखरती रहती थीं । 

मध्य एशिया से पंजाब होते हुए बहुत से लश्कर और काफ़ले इसी तरह हिन्दुस्तान आकर यहां की जमीन पर हमेशा के लिये बस गये । 


व्यापारी के रूप में अंग्रेज़ भी सदियों पहले हिन्दुस्तान में दाखिल हुए और सदियों की मेहनत व मंसूबाबंदी के बाद अपने असल मक़सद में उन्हें कामयाबी हासिल हुई । व्यापारिक सुविधा को उन्होंने राजनैतिक शासन का माध्यम बनाया ।


 नवाबों और राजाओं को एक के बाद एक वश में करते हुए दिल्ली तक पहुंच गये और इसके लाल किले पर ब्रिटिश साम्राज्य का परचम गाड़ दिया गया । 

लेकिन सदियों हिन्दुस्तान की फ़िज़ा में परवरिश पाने के बाद भी यह अंग्रेज़ हिन्दुस्तान से आखिरकार वापस चले गये । और उन्होंने इसे अपना स्थायी वतन नहीं बनाया । प्राचीन हिन्दुस्तानी इतिहास के आलोक में यह बात कही और लिखी जाती है कि शूद्र और दलित यहां के असल निवासी हैं ।

लेकिन वही आज तक हिन्दुस्तानी समाज के लिए बोझ समझे जाते रहे हैं । और हजारों साल से वह गरीबी का जीवन व्यतीत कर रहे हैं और ऊंची जाति की क्रूरता और शोषण का शिकार हो रहे हैं । इन्हें नीच व तुक्ष्य समझकर जानवरों की तरह इनके साथ वहशियाना व गैर इंसानी बर्ताव किया जाने लगा । 

अपनी सभाओं व समारोहों में उठने बैठने से ही नहीं बल्कि अपनी आबादी से भी उन्हें दूर रखा गया । और शिक्षा के द्वार भी उन पर बंद कर दिये गये । यहां तक कि उनके कान इस योग्य भी नहीं समझे गये कि कोई धार्मिक प्रवचन सुन सकें । 

और हद तो यह है कि पूजा स्थलों में इनका प्रवेश भी वर्जित करार दिया गया । दूसरी ओर इस्लाम ने इस देश में इंसानियत का पाठ दिया । स्नेह की वर्षा बरसाई , प्रेम व सद्भाव की सौगात बाटी , दोस्ती व मुहब्बत का संदेश दिया , जीने के ढंग सिखाये , मनुष्यता का अस्तित्व बहाल किया । 

हज़ारों लाखों इंसानों के दिलों की दुनिया बदल दी , इनकी जिन्दगी में ज़बरदस्त इंकलाब पैदा कर दिया । इन्हें पाक व साफ़ बनाया । उनके सर पर इज्जत का ताज रखा और ज़मीन की पस्तियों से निकालकर इन्हें आकाश की बुलंदियों तक पहुंचा दिया । अल्लाह तबारक व तआला इन्सानी प्रतिष्ठा व बुलंदी का इज़हार करते हुए इरशाद फ़रमाता है : 

बेशक हमने आदम की संतान को इज्जत दी और इन्हें जल - थल में सवारियां अता कीं । और इनको पाकीज़ा चीज़ों से रोज़ी दिया , और अपने बहुत से पैदा किये हुओं पर स्पष्ट श्रेष्ठता प्रदान की । ( आयत नं ० ७० . सूरः बनी इस्राईल , पारा १५ ) 

ऐ लोगो ! अपने रब से डरते रहो , जिस ने तुम्हें एक जान से पैदा किया । और उसी से इसका जोड़ा पैदा किया । और उन दोनों से बहुत से मर्द व औरत संसार में फैलाये । और अल्लाह से डरते रहो , जिसके वास्ते से तुम एक दूसरे से सवाल करते हो । और रिश्तेदारों का लिहाज़ रखो । बेशक अल्लाह तुम को हर वक़्त देख रहा है । ( आयत नं ० १ , सूरः निसा , पास ४ )

 पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इन्सानी वकार व एहतेराम इस तरह बयान फ़रमाते हैं : तुम सब आदम से पैदा हुए और आदम मिट्टी से पैदा किये गये । ( हदीस )

 सारी मखलूक अल्लाह का कुंबा है । ( हदीस )

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हिन्दुस्तान के लगभग सभी मुस्लिम शासक व अमीर इस्लाम के दूत व प्रतिनिधि नहीं बल्कि अपनी हुकूमत व सल्तनत के मुहाफिज़ व निगहबान हुआ करते थे । इन्हें इस्लाम का दायरा और मुसलमानों का हल्का फैलाने में नहीं बल्कि अपनी हुकूमत व सल्तनत और रियासत का क्षेत्र बढ़ाने में दिलचस्पी थी । वह हिन्दुस्तानी मुसलमानों के आदर्श इतिहास के किसी दौर में नहीं बन सके । 

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बल्कि इस्लाम के सच्चे प्रतिनिधि और मुसलमानों के आर्दश हर दौर में हिन्दुस्तान के अंदर तिर्फ वह बुज़ुर्ग हस्तियां रही हैं जिन के जिक्र व फिक्र , इबादत द रियाजत , तकवा व तहारत , शफकत व मुहब्दत से इस्लाम की रोशनी फैली । 

 जिन्होंने सिर्फ अपनी बातों से नहीं बल्कि अपने किरदार और अमल ने इंसानों को करीब किया , और फिर इनका हाथ पकड़ कर इन्हें अल्लाह के दरबार में पेश कर दिया । 

ऐसे महापुरुषों में से चन्द के नाम यह है 

( 1 ) हज़रत सैय्यद अली हिजवेरी रहमतुल्लाहि अलैह ,

( 2 ) हजरत खाजा मोइनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाहि अलैह,

( 3 ) हज़रत क्रुतबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाहि अलैह,

( 4 ) हजरत बाबा फ़रीद गंजे शकर रहमतुल्लाहि अलैह,

( 5 ) हज़रत मखदूम अली अहमद साबिर कलियरी रहमतुल्लाहि अलैह,

( 6 ) हज़रत महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाहि अलैह,

( 7 ) हज़रत महमूद नसीरुद्दीन शाह चिराग़ देहली रहमतुल्लाहि अलैह,

( 8 ) हज़रत बन्दा नवाज़ गेसू दराज रहमतुल्लाहि अलैह,

( 9 ) हज़रत ख़्वाजा बाकीबिल्लाह रहमतुल्लाहि अलैह,

( 10 ) हज़रत शर्फुद्दीन अहमद यहया मुनीरी रहमतुल्लाहि अलैह,

( 11 ) हजरत सैय्यद अली हमदानी रहमतुल्लाहि अलैह,

(12) हजरत दातागंज दखा लाहोरी रहमतुल्लाहि अलैह,

( 13 ) हज़रत मख़मूद सैय्यद अशरफ़ जहांगीर समनानी इत्यादि रिजवानुल्लाह अलैहिम अजमईन ।

 शासन दो तरह का होता है एक दिलों का दूसरा जिस्म का शासन होता है । दिल पर जिसकी हुकूमत कायम हो जाती है वह बहुत पायेदार होती है । और जिसकी हुकूमत सिर्फ जिस्म पर होती है वह हालात को पाबंद होती है , जहां हालात बदले कि वफादारी बदली ।

 दिलों पर जिनकी हुकूमत चलने लगती है वह उनके इस दुनिया से चले जाने के बाद भी ख़त्म नहीं होती है । दिल उनकी तरफ खिंचते रहते हैं और कदम उनकी तरफ बढ़ते रहते हैं । 

यह बात समझनी हो और दोनों तरह का दृश्य देखना हो तो नई दिल्ली की “ बस्ती हज़रत निजामुद्दीन औलिया जा कर अपने माथे की आंखों से देख लीजिये । 

एक तरफ़ हज़रत महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया की आख़री आरामगाह ( मज़ार ) है और दूसरी तरफ हुमायूं का मकबरा है । दोनों के दर्मियान कितना फ़र्क और कितना फासला है ? खुद बख़ुद समझ में आ जायेगा । 

मोहब्बत हो तो दिल सीनों से खिंचने लगते हैं नासेह । 

हकीकत खुद को मनवा लेती है मानी नहीं जाती ।।

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 Hundreds of years ago when there was no hindrance in movement and copying and movement anywhere in the world. Wherever the person turned, he would go out for a walk and study, wherever he wanted, 

and whenever he wanted to pack his belongings, he would walk towards his favorite area and city or an unknown destination. Aryans also came to India in large numbers in the same way and got settled in the atmosphere here.  

At that time the area of ​​this country was very wide and very spread. The same was the condition of the rulers and the conquerors as well.  

On the strength of his strength and ability, he would have adopted whatever part he wanted, whatever caste and tribe he wanted, he would have subjugated, and on whichever emperor, nawab, king, maharaja he would have broken. This was the situation around the world. There was no discipline and administration, there was no law and order. 

 The boundaries of the countries and princely states kept on getting worse and falling apart day and night.

  Many Lashkars and Kafales came to India in the same way from Central Asia to Punjab and settled on this land forever. 

 The British also entered India in the form of traders centuries ago and after centuries of hard work and planning, they were successful in their real purpose.

  He made commercial convenience the medium of political rule. Subduing the Nawabs and the kings one after the other, they reached Delhi and the British Empire was buried on its Red Fort.

  But even after getting upbringing in India for centuries, these Britishers finally withdrew from India.  

And they did not make it their permanent home. In the light of ancient Indian history, it is said and written that Shudras and Dalits are the real residents of this place.  

But they have been considered a burden for the Indian society till date. And for thousands of years they have been living a life of poverty and being a victim of upper caste cruelty and exploitation.  

Treating them as mean and petty animals and treating them as cruel and non-human 

Representatives and ideals of Muslims In India in every era, there have been only those elderly personalities, whose mention and concern, prayer and prayer, Taqwa and Taharat, Shafqat and love brought the light of Islam. | 

 Who not only by his words but by his character The Amal brought humans closer, and then holding their hands presented them in the court of Allah.

 The names of a few of such great men are

(1) Hazrat Syed Ali Hijveri, rahmatullahi alaih,

(2) Hazrat Dataganj baksh Lahori rahmatullahi alaih,

(3) Hazrat Khwaja Moinuddin Chishti Ajmeri rahmatullahi alaih

(4) Hazrat Krutabuddin Bakhtiyar Kaki rahmatullahi

(5) Hazrat Baba Farid Ganje Shakar, rahmatullahi alaih,

(6) Hazrat Makhdoom Ali Ahmed Sabir Kaliyari.rahmatullahi alaih,

 (7) Hazrat Mehboob E elahi Nizamuddin Auliya,rahmatullahi alaih,

(8) Hazrat Naseeruddin shah Chirag Dehli, rahmatullahi alaih,

(9) Hazrat Banda Nawaz Gesudraj, rahmatullahi alaih,

(10) Hazrat Khaja Baqi billah, rahmatullahi alaih,

(11) Hazrat Sharfaddin Ahmad Yahya Muneeri,rahmatullahi alaih,

(12) Hazrat Sayyid Ali Hamdani, rahmatullahi alaih,

(13) Hazrat Makhmood Jahangair rahmatullahi alaih  etc.  


There are two types of governance, one is the peace of hearts and the other is peace. 

 Whose rule over the heart is established, he is very obedient. And the one who rules only the jinn is restricted to the circumstances, where the circumstances change, the loyalty changes............

  Whose rule begins to rule over the hearts, it does not end even after they leave this world. Hearts keep on pulling towards them and the days keep moving towards them. 

 If you want to understand this and see both the views, then come to New Delhi's Basti Hazrat Nizamuddin Auliya and see it with the eyes of your forehead.  

On one side is the last resting place (Nazar) of Hazrat Nahwe Ilahi Nizamuddin Auliya and on the other side is Humayun's Tomb. What is the difference and what is the difference between the two? You will understand yourself. 

 If there is love, then the heart starts pulling from the chest. 

 Reality convinces itself that it is not believed. But within this Hindustan there is also such a creature of Allah who has nothing to do with reality and has nothing to do with love and death. Its intention is closed desire and effort that the funeral of reality and love should be removed from India.  

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