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फतवा लिखने में जल्दबाजी क्यों?

आज हम हिन्दी और उर्दू और अंग्रेजी भाषा में कुछ रोचक जानकारी फतवा के बारे में पढ़ेंगे कि और कुछ प्रश्न के उत्तर भी देंगे ।

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FATWA

Question 1 :- फतवा क्या है fatwa kya hai ? 

Answer :- फतवा एक इस्लामी ज्ञान का संग्रह होता है जो कि कुरआन और हदीस सहाबा उल्मा का कौल और फेल के हिसाब से इस्लामी विद्वान लिखित में जारी करता है जिसे इस्लाम में फतवा कहा जाता है। उदाहरण के लिए जब अंग्रेजों ने हिन्दुस्तान पर कब्जा कर लिया गया था उस वक्त उनके जुल्म और ज्यादती को देख कर हिन्दुस्तान में सबसे पहले उनके जुल्म का मुंह तोड जवाब देने के गरज से अल्लामा फज्ले हक खैराबादी ने फतवा जारी किया कि अंग्रेजों से लड़ना जिहाद के जैसे है?

Question 2 :- fatwa kya hota hai फतवा क्या होता है?

 Answer :- फतवा एक इस्लामी ज्ञान का संग्रह होता है जो कि कुरआन और हदीस सहाबा उल्मा का कौल और फेल के हिसाब से इस्लामी विद्वान लिखित में जारी करता है लेकिन इसे सब जारी नहीं कर सकते इसके लिए कुछ नियम व शर्तें है ?

Question 3 :- fatwa ka matlab फतवा का मतलब ?

Answer :- फतवा का मतलब एक शख्स प्रश्न पूछने पर इसलामी विद्वान लिखित में जो उत्तर देता है या मौखिक उसे फतवा कहा जाता है ?


Question 4 :- fatwa ki kitab फतवा की किताब ?

यूं तो फतवा की बहुत सी किताबें हैं आज के समय सबसे ज्यादा मशहूर फतवा की किताब का नाम फतावा रजविया है उसके अलावा भी बहुत सी किताबें हैं जैसे फतावा आलमगीरी,दुर्रे मुख्तार,फतावा अफ्रीका वगैरह लेकिन फतावा रजविया जो किताब है उसमें सबका संग्रह है और बहुत मजबूत किताब इस किताब को इस्लामी दुनिया के सबसे बड़े विश्वविद्यालय जामेअ अल अज़हर काहिरा मिस्र जैसे युनिवर्सिटी में रखा गया है 

और हमे सबसे ज्यादा खुशी इस बात की वह किताब कोई विदेशी इस्लामी विद्वान ने नहीं लिखा है बल्कि हमारे हिन्दुस्तान के मशहूर इस्लामी विद्वान ने लिखा है जिन्हें दुनिया आला हजरत इमाम अहमद रज़ा बरैलवी के नाम से जाना जाता है

और इससे यह बात भी स्पष्ट हो गया कि हमारे देश में भी इसलाम के बड़े बड़े विद्वान गुज़रे हैं

आप उनकी ज्ञान का अंदाजा इससे ही लगा सकते हैं कि आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने आक्सफोर्ड डिक्शनरी में बरेली का अर्थ लिखा है बरेली आला हजरत का जन्म स्थान है।

Question 5 :- fatwa ka arth फतवा का अर्थ ?

Answer :- फतवा का अर्थ इस्लाम के अनुसार इसलामी जानकारी देने को फतवा कहते हैं 

Question 6 :- fatwa ka news फतवा का न्यूज ?

Answer :- अकसर हम सब फतवा को न्यूज और समाचारों के वजह से ही जाने है फिर इसमें रूचि हुवा की इसकेे बारे में जानकारी जुटाया जाये ये है क्या आये दिन कुछ नया फतवा के बारे में सुनते रहते हैं की मुसलमानों के मौलवी ने यह फतवा दिया क्या यह सही किया कि नहीं इस तरीके के कुछ न्यूज।

Question 7 :- fatwa kya hai in urdu फतवा क्या है उर्दू ?

Answer :- इस्लामी विद्वान से सवाल करना और उसके जवाब में इस्लामी विद्वान का उत्तर देना फतवा कहलाता है।

Question 8 :- fatwa ke news फतवा के न्यूज में ?

Answer :- फतवा पर्सनल लाइफ की जानकारी पर इस्लामी अनुसार से पूछा जाता है जैसा कि हम और सब Indian आर टी आई RTI right to information ke liye application देते हैं और जिस प्रक्रिया से होता है सब वैसे ही है लेकिन ऐसा नहीं है कुछ लोग अपने ज्ञान का गलत इस्तेमाल कर के पैसों के खातिर फतवा दे रहे हैं कुछ बेवकूफी करने के लिए जिससे समाज में गलत मैसेज जाता है और मीडिया उस पर सोने पर सुहागा करती है तड़का मार कर बढ़ा चढ़ाकर दिखाना एक समाज को जलील करना मकसद होता है और ये सब हमारे और आपके ऊपर है जैसे हम चाहे करें हम चाहे तो उस फतवे को accept करें चाहे reject करें । 

उदाहरण स्वरुप किसी ने एक जिला में अपील की हम सब मिलकर हर महीना कहीं पर भी रहे महीना के आखरी तारीख को 5 ₹ donation दान में दिया करें जिससे हम किसी गरीब व्यक्ति को दान का जमा रुपए दे दिया जाया करेंगे 

अब इसमें हम सब मर्जी जो चाहे दे जो चाहे ना दे क्योंकि यह एक अपील थी ।

सुई injection लगाने वाला दुश्मन नहीं होता

फतवा लिखना एक महत्वपूर्ण धार्मिक कर्तव्य है जो हमें धार्मिक मुद्दों से अवगत कराता है और लोगों को इसका पूरा लाभ मिलता है।

लेकिन ध्यान रहे कि यह कोई सामान्य जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि एक बड़ा मामला है जिसके लिए अल्लाह अपने विशेष सेवकों को चुनता है ।

लेकिन एक मुफ्ती और एक जिम्मेदार विद्वान होने के नाते, हमें दूरदर्शिता के साथ कार्य करना चाहिए और जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दबाजी और जल्दबाजी से बचना चाहिए। संभव है। दुर्भाग्य से, हमारी स्थिति इस चीज़ के बिल्कुल विपरीत दिखती है। जैसे ही कोई समस्या का पता चलता है, हम बिना किसी विचार के उस पर अपनी राय देते हैं। 

इसके अनुसार कोई न्यायशास्त्रीय पाठ है या नहीं, जिसका परिणाम है कि कभी-कभी समस्या स्वयं ही बदल जाती है और हमारे ज्ञान का स्तर विद्वानों की नज़रों में गिर जाता है क्योंकि वे जानते हैं कि न्यायशास्त्र के विज्ञान में हमारी क्या स्थिति है ।

इसलिए प्रत्येक समस्या का उत्तर देना बुद्धिमानी नहीं है, लेकिन यह ध्यान में रखना चाहिए कि समस्या ज्ञात होने पर भी प्रत्येक समस्या का उत्तर नहीं देना चाहिए, क्योंकि कभी-कभी समस्या का उल्लेख करना समीचीनता के विरुद्ध होता है।

फतवा के संबंध में चारों इमामों का आचरण (तरीका) देखें:

सिराज-उलम्माह इमाम आज़म अबू हनीफ़ा रहमतुल्लाह अलैह कहते हैं:

अगर अल्लाह के तरफ डर से ज्ञान खत्म होने का डर नहीं होता तो मैं फतवा नहीं जारी करता। लोगों के लिए खुशी है और मुझ पर एक बोझ बाकी है।

जब इमाम शाफ़ई रहमतुल्लाह अलैह से एक समस्या के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। इस संबंध में जब उनसे आगे पूछा गया तो उन्होंने कहा: मैं इस सवाल का जवाब तब तक नहीं दूंगा जब तक मैं यह नहीं जानता कि इस मुद्दे पर चुप रहना बेहतर है या जवाब देना।

अतहर कहते हैं: मैं इमाम अहमद इब्न हनबल से मिला रहमतुल्लाह अलैह

मैंने उसे (समस्याओं के जवाब में) अक्सर यह कहते हुए देखा है कि वह नहीं जानता।

हैथम इब्न जमील कहते हैं: मैं इमाम मलिक की सेवा में था:

जब आपसे 48 प्रश्न पूछे गए, तो आपने 32 प्रश्नों के उत्तर मे यह कह दिए: मुझे नहीं पता

इमाम मलिक रहमतुल्लाह अलैह

 उनसे यह भी कहा जाता है कि कभी-कभी आपसे पचास या पचास प्रश्न पूछे जाते थे लेकिन आप एक भी प्रश्न का उत्तर नहीं देते थे और वह कहते थे: जो एक प्रश्न का उत्तर देगा वह पहले अपना जीवन स्वर्ग और नरक में डालेगा। प्रस्तुत करें और विचार करें कि कैसे प्राप्त करें इससे छुटकारा पाना। इस विचार के बाद उत्तर दें।

अल्लाह के ज्ञान के कितने बड़े पहाड़ हैं, जिनके कदमों में हम अपनी सुबह और शाम बिताते हैं, जिनका जीवन हमारे लिए एक प्रकाशस्तंभ है, जिन्होंने जीवन के हर क्षेत्र में हमारा मार्गदर्शन किया है, जिन्हें हम अपना इमाम मानते हैं। सब कुछ जानने के बावजूद, जुबान पर आलस्य की बातें और दिल में अल्लाह का इतना डर... अल्लाह अल्लाह।

 लेकिन हम इतने निडर, निडर और निडर हैं कि जब कोई सवाल पूछा जाता है, तो वह बारिश के मेंढक की तरह टपकता है। सूफियान इब्न अय्यिनाह रहमतुल्लाह अलैह के अधिकार पर वर्णित है कि जितना अधिक फतवा पढ़ता है, उतना कम इसके बारे में जानता है।

इस संबंध में बहारे शरीयत के लेखक हजरत अल्लामा मुफ्ती अमजद अली आज़मी रहमतुल्लाह अलैह ने ऐसा अच्छा मार्गदर्शन दिया है। आप कहते हैं:

   अगर हम अकाबिर के बुजुर्गों और इमामों के जीवन को देखें, तो यह स्पष्ट है कि इज्तिहाद की मजबूत नींव होने के बावजूद, उन्होंने कभी यह स्पष्ट करने की हिम्मत नहीं की कि मैं नहीं जानता। हम इन नौसिखिए मौलवियों को सलाह देते हैं कि दर्से निज़ामी के बाद फ़िक़्ह, उसुल, कलाम, हदीस और तफ़सीर का अध्ययन करें और धर्म के मामलों में हिम्मत न करें ताकि किसी धर्म के शब्दों को उनके सामने प्रकट किया जा सके। समझाएं और ध्यान से सोचें कि समस्याएं कहां हैं उठो। यदि आप स्पष्ट नहीं हैं, तो दूसरों की ओर मुड़ें। ज्ञान मांगने में आपको कभी शर्म नहीं करनी चाहिए। (बहार शरीयत, खंड III, भाग 15, पृष्ठ 202)

ध्यान दें :-

 याद रहे कि मेरे लिखने का मकसद किसी को डांटना या किसी के काम में दखल देना नहीं है, बल्कि एक याचिका (अपील) है कि हमें अपना कर्तव्य निभाना चाहिए और अपने ज्ञान से लोगों का भला करना चाहिए, लेकिन भगवान न करे। उपयोगी ज्ञान और अल्लाह हम सभी को (हिदायत) आशीर्वाद दे

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Why the hurry to write a fatwa?

 Today we will read some interesting information in Hindi and Urdu and English language that what is fatwa, what is fatwa kya hai?

 A fatwa is a collection of Islamic knowledge issued by Islamic scholars according to the Qur'an and the Hadith of the Sahaba Ulma in writing, which is called a fatwa in Islam. For example, when India was occupied by the British, seeing their atrocities and excesses, Allama Fazle Haq Khairabadi, the first in India to give a befitting reply to their atrocities, issued a fatwa that fighting the British was the basis of jihad. like is it?

 What is fatwa?

 A fatwa is a collection of Islamic knowledge that Islamic scholars issue in writing according to the Qur'an and Hadith of Sahaba Ulma, but not all can issue it, there are some terms and conditions for this?

 meaning of fatwa?

 Meaning of fatwa When a person asks a question, the answer given by an Islamic scholar in writing or verbally is called a fatwa?

 fatwa book?

Although there are many books of fatwa, today the name of the most famous fatwa book is Fatawa Razviya, apart from that there are many books like Fatawa Alamgiri, Durre Mukhtar, Fatawa Africa etc. Very strong book This book has been kept in the largest university of the Islamic world like Jamia Al Azhar Cairo Egypt

 And we are most happy that that book has not been written by any foreign Islamic scholar, but by the famous Islamic scholar of our India, who is known to the world by the name of Hazrat Imam Ahmed Raza Barailvi.

 And this also made it clear that great scholars of Islam have also passed in our country.

 You can guess his knowledge only from this that Oxford University has written the meaning of Bareilly in the Oxford Dictionary, Bareilly is the birth place of Ala Hazrat.

  needle injection is not the enemy

 Writing fatwa is an important religious duty which makes us aware of religious issues and people get full benefit of it.

  But keep in mind that this is not a general responsibility, but a larger matter for which Allah chooses His special servants.

 But being a mufti and a responsible scholar, we must act with foresight and avoid haste and haste as soon as possible. possible. Unfortunately, our situation seems to be the exact opposite of this. As soon as a problem is detected, we give our opinion on it without any thought.

 According to it whether there is any jurisprudence text or not, the result is that sometimes the problem itself gets changed and our level of knowledge falls in the eyes of the scholars because they know what is our position in the science of jurisprudence.

 So it is not wise to answer every problem, but it should be kept in mind that not every problem should be answered even if the problem is known, because sometimes it is against expediency to mention the problem.

  See the conduct (way) of the four Imams in this regard:


 Siraj-Ulammah Imam Azam Abu Hanifa Rahmatullah Alaih says:

 I would not have issued a fatwa if it was not for fear of losing knowledge because of fear of Allah. There is happiness for the people and there is a burden left on me.


  When Imam Shafai Rahmatullah Alaih was asked about a problem, he did not answer. When asked further in this regard, he said: I will not answer this question until I know whether it is better to remain silent on this issue or to answer.

   Athar says: I met Imam Ahmad ibn Hanbal, Rahmatullah alayh

  I have seen him often say (in response to problems) that he does not know.

  Haitham ibn Jameel says: I was in the service of Imam Malik:

  When you were asked 48 questions, you answered 32 questions by saying this: I don't know

Imam Malik Rahmatullah Alaih

  He is also told that sometimes you were asked fifty or fifty questions but you did not answer a single question and he used to say: He who answers one question will first put his life in heaven and hell. Present and consider how to get rid of it. Reply after this thought.

  How great are the mountains of the knowledge of Allah, in whose feet we spend our mornings and evenings, whose life is a beacon for us, who has guided us in every sphere of life, whom we consider to be our Imam. In spite of knowing everything, the words of laziness on the tongue and so much fear of Allah in the heart... Allah Allah.

  But we are so fearless, fearless and fearless that when a question is asked, it drips like a rain frog. Sufiyan ibn Ayyinah narrated on the authority of Rahmatullah 'alaih that the more one reads the fatwa, the less one knows about it.

   In this regard, the author of Bahare Shariat, Hazrat Allama Mufti Amjad Ali Azmi Rahmatullah Alaiah has given such a good guidance. you say:

    If we look at the life of Aqabir's companions and Imams, it is clear that despite having a strong foundation of Ijtihad, he never dared to clarify that I do not know. We advise these novice clerics to study Fiqh, Usul, Kalam, Hadith and Tafseer after Darse Nizami and do not dare in matters of religion to reveal the words of any religion to them. Explain and think carefully about where the problems arise. If you are unclear, turn to others. You should never be ashamed to ask for knowledge. (Bahar Shariat, Volume III, Part 15, p. 202)

 attention:

  Remember that the purpose of my writing is not to scold anyone or interfere in someone's work, but a petition (appeal) that we should do our duty and do good to people with our knowledge, but God forbid. Useful knowledge and may Allah bless all of us (Hidayat)

فتوٰی نویسی میں جلد بازی کیوں؟

 نشتر جو لگاتا ہے وہ دشمن نہیں ہوتا

فتویٰ نویسی ایک اہم دینی فریضه ہے کہ اس سے ہم لوگوں کو دینی مسائل سے روشناس کراتے ہیں اور عوام غایت درجہ اس سے مستفیض و مستنیر بھی ہوتے ہیں....

لیکن خیال رہے کہ یہ کوئی عام ذمہ داری نہیں ہے بلکہ ایک امر عظیم ہے جس کے لئے الله تبارک و تعالیٰ اپنے مخصوص بندوں کو چن لیتا ہے...... مگر ایک مفتی اور ذمہ دار عالم ہونے کی وجہ سے ہمیں مصلحت اور دور اندیشی سے کام لینا چاہئے عجلت اور جلد بازی سے حتی الامکان گریز کرنا چاہئے.. افسوس کہ ہمارا حال بالکل ہی اي شي کے بر عکس نظر آتا ہے جیسے ہی کوئی مسئلہ دریافت ہو بغیر کسی غور و فکر کے اس پر اپنی رائے پیش کردیتے ہیں چاہے اس کے موافق کوئی فقہی عبارت ملے یا نہ ملے جس کا خمیازہ یہ ہوتا ہے کہ کبھی کبھی تو نفس مسئلة ہی بدل جاتا ہے اور اہل علم حضرات کے نزدیک ہمارا علمی معیار گر جاتا ہے کیونکہ ان کو معلوم ہو جاتا ہے کہ علم فقہ میں ہمارا مقام کیا ہے.....

اس لئے ہر مسئلے کا جواب دینا یہ کوئی دانشمندی نہیں بلکہ یہ بات ذہن نشیں رکھنی چاہیے کہ اگر چہ مسئلہ معلوم ہو تب بھی ہر مسئلے کا جواب نہیں دینا چاہیے کہ بعض اوقات کسی مسئلے کا بیان کرنا مصلحت کے خلاف ہوتا ہے۔

اس سلسلے میں ائمة أربعة کا طرز عمل ملاحظه فرمائیں :


 سراج الأمة امام اعظم ابو حنیفة رضی الله تعالٰی عنه فرماتے ہیں :

اگر الله تعالیٰ کی طرف سے یہ ڈر نہ ہوتا کہ علم ضائع ہو جائے گا تو میں فتوی نہ دیتا۔ لوگوں کے لئے تو خوشی ہوتی ہے اور میرے اوپر بوجھ رہ جاتا ہے ۔


امام شافعی رحمة الله تعالى علیه سے کسی مسئلے کے بارے میں پوچھا گیا تو انہوں نے جواب نہ دیا ۔ ان سے اس سلسلے میں مزید کہا گیا تو ارشاد فرمایا : میں اس مسئلہ کا جواب اس وقت تک نہ دوں گا جب تک کہ یہ نہ جان لوں کہ اس مسئلے میں خاموش رہنا بہتر ہے یا جواب دینا ۔

 اثرم کہتے ہیں : میں نے امام احمد بن حنبل رحمة الله تعالى علیه

 کو (مسائل کے جواب میں) کثرت سے لا ادری یعنی میں نہیں جانتا کہتے ہوئے دیکھا ہے۔

هیثم بن جمیل کہتے ہیں : میں امام مالک کی خدمت میں موجود تھا :

 آپ سے اڑتالیس 48 مسائل پوچھے گئے تو آپ نے بتیس 32 مسائل کے جواب میں فرمایا : میں نہیں جانتا

امام مالک رحمة الله تعالیٰ علیه

 سے یہ بھی مروی ہے کہ بعض اوقات آپ سے پچاس 50 سوال کئے جاتے لیکن آپ کسی ایک مسئلے کا بھی جواب ارشاد نہ فرماتے اور یہ ارشاد فرماتے تھے :

 جو کسی مسئلے کا جواب دے تو اس سے پہلے اپنی جان کو جنت اور جہنم میں پیش کرے اور غور و فکر کرے کہ اس کا چھٹکارا کس صورت میں ہے ۔ اس غور و فکر کے بعد جواب دے ۔

( ماخوذ از: آداب فتوٰی نویسی ص: 12 مصنف مفتی فرقان مدنی) 

الله الله علم کے اتنے بڑے بڑے جبل شامخ جن کے نقش قدم پر چل کر ہم اپنی صبح و شام گزارتے ہیں جن کی زندگی ہمارے لئے مشعل راہ ہے جنہوں نے زندگی کے ہر شعبے میں ہماری رہنمائی فرمائی ہے جن کو ہم اپنا امام مانتے ہیں ان کا یہ حال کہ سب کچھ معلوم ہونے کے باوجود زبان پر لاادری کے کلمات اور دل میں الله تعالیٰ کا اتنا خوف ...الله الله ۔

مگر ہم کتنے بے خوف، نیڈر اور بے باک وجری ہیں کہ سوال ہوتے ہی برساتی مینڈک کی طرح ٹپک پڑتے ہیں تھوڑی دیر بھی غور و فکر کرنا گوارا نہیں سمجھتے ۔ سفیان بن عیینة رضی الله تعالٰی عنه سے مروی ہے اجسر الناس علی الفتیا قلهم علما فتاویٰ پر جو جتنا زیادہ جری ہوتا ہے اس کا علم اس قدر ہی کم ہوتا ہے ۔


  اس سلسلے میں صدر الشریعة مصنف بہار شریعت حضرت علامة مفتی امجد علی اعظمی علیه الرحمة والرضوان نے کتنی اچھی رہنمائی فرمائی ہے۔ آپ فرماتے ہیں:

  صحابة کبار اور ائمة اعلام کی زندگی کی طرف اگر نظر کی جاتی ہے تومعلوم ہوتا ہے کہ زبردست پایہ اجتہاد رکھنے کے باوجود بھی وہ کبھی ایسی جرأت نہیں کرتے تھے جو بات نہ معلوم ہوتی اس کی نسبت صاف فرما دیا کرتے کہ مجھے معلوم نہیں ۔ ان نوآموز مولویوں کو ہم خیر خواہانہ نصیحت کرتے ہیں کہ تکمیل درس نظامی کے بعد فقہ ، اصول ،کلام ،حدیث اور تفسیر کا بکثرت مطالعة کریں اور دین کے مسائل میں جسارت نہ کریں جو کچھ دین کی باتیں ان پر منکشف و واضح ہو جائیں ان کو بیان کریں اور جہاں اشکال پیدا ہو اس میں کامل غور و فکر کریں خود واضح نہ ہو تو دوسروں کی طرف رجوع کریں کہ علم کی بات پوچھنے میں کبھی عار نہ کرنا چاہیے ۔(بہار شریعت جلد سوم حصة 15 ص :202 مطبوعة المکتبة المدینة)

نوٹ :

خیال رہے کہ میری اس تحریر کا مقصد نہ تو کسی کو پھٹکار لگانا ہے اور نہ ہی کسی کے کام میں دخل دینا ہے بلکہ ایک عریضہ پیش خدمت ہے کہ ہم اپنا فریضہ ضرور انجام دیں اور اپنے علم سے لوگوں کو فائدہ پہنچائیں مگر خدارا جلد بازی نہ کریں بلکہ غور و فکر اور حلم و بردباری سے کام لیں الله تبارک و تعالیٰ ہم 

سب کو علم نافع کی دولت سے مالا مال عطا فرمائے 

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