shadi ke liye istikhara kaise kare

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शादी के लिए इस्तिखारा Judging from Omens or Augury for Marriage 

किसी नए काम को शुरू करने से पहले इस्तिख़ारा करना चाहिए । 

इस्तखारा उस अमल को कहते हैं जिसके करने से गैबी तौर पर ये मालूम हो जाता है कि फुलाँ काम करने में फायदा है या नुक्सान ? 

और अगर वह काम आपके लिए अच्छा है तो इस्तिख़ारा की बरकत से गैब से असबाब पैदा हो जाते हैं और अगर वह काम आप के लिए बेहतर नहीं है तो कुदरती तौर पर इंसान उस काम से बाज़ रहता है ।

 इस्तिख़ारा और शगून में बहुत फर्क है । 

  1. शगून जादूगरों , 
  2. सितारों से , 
  3. तीरों से परिंदों से , 
  4. सिफली इल्म जानने वालों से , 
  5. नजूमियों , 
  6. काहिनों , 
  7. ज्योतिषियों वगैरा और इस तरह की दूसरी चीज़ों के जरीए लेते हैं । 
  8. जादूगरों , नजूमियों , ज्योतशियों और 
  9. सिफली इल्म जानने वालों के पास आगे पेश आने वाले हालात जानने के लिए जाना और उनकी बातों पर यकीन करना कुफ्र है । 


हदीस :- हुजूर अकरम स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम इरशाद फ़मराते हैं : जो किसी काहिन के पास जाए और उसकी बात सच्ची समझे तो वह काफिर हुआ उस चीज़ से जो मुहम्मद स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम पर नाज़िल हुई । ( अबूदाऊद शरीफ जिल्द - 3 बाब - 203 हदीस 507 सफ़ा - 182 ) 

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हदीस :- और फरमाते हैं नबी करीम स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम जो किसी काहिन के पास जाए और उससे कोई गैब की बात पूछे तो उसकी चालीस (40) दिन तौबा कुबूल न हो और अगर काहिन की बात पर यकीन रखे तो काफिर हो गया । ( मुअज्जम कबीर तिबरानी शरीफ बहवालए फतावा अफ्रीका सफा 176 )



फतावा तातार ख़ानिया में है :- जो कहे मैं छुपी हुई चीजों को जान लेता हूँ या जिनके बताने से बता देता हूँ तो वह काफिर है( फतावा तातार ख़ानिया बहवाला फतावा अफ्रीका सफा 176 ) 


इसी तरह शगुन लेना शरीअते इस्लामिया में शिर्क बताया गया है । शिर्क वह गुनाह है जिसे अल्लाह तआला कभी मआफ़ नहीं फरमाएगा । शिर्क करने वाला हमेशा हमेशा जहन्नम में रहेगा ।



हदीस :- हजरत इब्ने मसऊद रदि अल्लाहु तआला अन्हु ने रसूले करीम का ये इरशाद बयान किया है : शगुन लेना शिर्क है । शगुन लेना शिर्क है । अगरचे अक्सर लोग शगुन लेते हैं । ( मिश्कात शरीफ़ जिल्द - 2 हदीस 4380 सफा- 376 ) 


हज़रत इमाम अहमद बिन हंबल रदि अल्लाहु तआला अन्हु ने लिखा है : शगुन लेना शिर्क है । तिबरानी ने हज़रत इब्न उमर रदि अल्लाहु अन्हु के हवाले से लिखा है : शगुन लेना शिर्क है और ये अलफ़ाज़ तीन (3) मरतबा अदा किए । 

फिर कहा सफर को जाने वाला किसी शगुन की वजह से लौट आए तो उसने रसूलुल्लाह स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम पर नाज़िल शुदा अहकाम इलाही यानी कुरआन करीम का इनकार किया । ( तिबरानी शरीफ ) 


जो शख़्स किसी शगुन की रू से अपना काम न कर सका तो यकीनन उसने शिर्क किया ( मा सबता बिसन्नह फी अय्यामीस्सुन्नह सफा - 63 ) 


शगुन लेना इसलिए शिर्क है कि उसमें किसी गैरुल्लाह को मुअस्सर हक़ीकी माना जाना है अगर किसी गैरुल्लाह को मुअस्सर हकीकी न माना जाए तो वह शिर्क नहीं , हराम है । 


याद रहे शगुन और फॉल में बहुत फर्क है जैसा कि फॉल और शगुन में फर्क है । हज़रत अनस रदि अल्लाहु अन्हु ने हुजूरे अकरम स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम का ये इरशाद बयान किया है " छूत और शगुन कोई चीज़ नहीं अलबत्ता फॉल पसंदीदा है । " सहाबए किराम ने दरयाफ्त किया । 


 या रसूलल्लाह ! फॉल किसे कहते हैं ? 

इरशाद फरमायाः वह अच्छी बात है । ( मा सबता बिसलुन्नह की अय्यामीस्सुन्नह सफ़हा- 57 ) 


शगुन और फ़ॉल के मुतअल्लिक मज़ीद तफ़सीलात जानने के ( लिए हज़रत मुहक्किक शाह अब्दुलहक मुहद्दिस देहलवी रदि अल्लाहु अन्हु की तसानीफ लतीफ़ " मासब्त बिसिन्ना की अयामुस्सिन्ना की तरफ रुजूअ करें। 

इस्तिख़ारा में किसी नए काम के शुरू करने से पहले अल्लाह तआला से दुआ करना और उसकी रज़ा मालूम करना मक्सद होता है ।


 ये हुजूर सैयद आलम स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम की सुन्नत और सहाबए किराम व बुजुर्गाने दीन का तरीका है । 

हदीसः- हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह रदि अल्लाहु अन्हु फरमाते हैं : रसूल अल्लाह स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम हमें हर काम में इसतिखारा करने की ऐसी तलक़ीन फरमाते थे जैसे कुरआन की कोई सूरत सिखाते । ( बुखारी शरीफ जिल्द 1 बाब 738 हदीस 1088 सफा 455 + र्तिमिज़ी शरीफ जिल्द 1 बाब 343 हदीस 2463 सफा 292 )

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 हदीसः- सरकार मदीना स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमायाः अल्लाह तआला से इस्तिख़ारा करना औलादे आदम ( यानी इंसानों ) की खुश बख़्ती है और इस्तिख़ारा न करना बदबख़्ती है ।

  इस्तिख़ारा किसी भी नए काम को शुरू करने से पहले करना है चाहिए जैसे 

  • नया कारोबार शुरू करना हो , 
  • मकान बनाना या खरीदना हो , 
  • किसी सफर पर जाना है , 
  • कोई नई चीज़ ख़रीदना है वगैरा वगैरा । इन सब में नुक्सान होगा या फाएदा ? 


ये जानने के लिए इस्तिख़ारा का अमल किया जाना चाहिए । अब चूँकि शादी एक ऐसा काम है जिस पर सारी ज़िन्दगी की सुकून व आराम व मुसर्रत का दारोमदार है । 

बीवी अगर नेक , परहेजगार मुहब्बत करने वाली खुश मज़ाज होगी तो ज़िन्दगी खुशियों से भरी होगी और अपने वाली नस्ल भी एक बेहतर नस्ल साबित होगी । 


लेकिन अगर बीवी बदमिज़ाज , बदकार , बेवफा हुई तो सारी ज़िन्दगी झगड़ों से भरी और सुकून से ख़ाली होगी । यहाँ तक कि फिर तलाक तक नौबत पहुंच जाएगी ।

 लिहाजा ज़रूरी है कि शादी से पहले ही मालूम कर लिया जाए कि जिस लड़की या औरत को अपनी शरीके ज़िन्दगी बनाना चाहता है वह दीन व दुनिया के एतेबार से बेहतर साबित होगी या नहीं ? 


हदीसः- हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने उमर , हज़रत सुहैल बिन सअद रदि अल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि हुजूर अकरम स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमायाः अगर नहूसत किसी चीज में है तो वह घर , औरत और घोड़ा है । ( यानी अगर दुनिया में कोई चीज़ मनहूस होती तो ये हो सकती थी लेकिन होती नहीं है ( मुसनद इमाम आज़म बाब 121 मालिक जिल्द 2 किताबुलउस्तज़ान सफा 807 + बुख़ारी शरीफ जिल्द 3 सफा 61+ र्तिमिजी शरीफ जिल्द- 2 सफा 295+ इब्ने माजा जिल्द 1 सफा 555 मिश्कात शरीफ जिल्द - 2 हदीस- 2953 सफा- 70 + मा सबता बिस्सुन्नह सफा 60 ) सफा - 211 मोत्ता इमाम बाब - 8 हदीस 21 बाब 47 हदीस 86 बाब 327 हदीस 730 )


हज़रत सैयद इमाम तिरमिजी  इस हदीस के मुतअल्लिक रशाद फरमाते है : यानी ये हदीस हसन सही है । ( हदीस- 2064 र्तिमिजी शरीफ जिल्द - 2 सफ़हा- 295 )


 ये हदीस पाक अहादीस की और दीगर किताबों में जैसे मुस्लिम शरीफ , तिबरानी इमाम अहमद , बजाज , हाकिम वगैरा में भी नक़्ल है । इससे पहले हम ने ये हदीस बुख़ारी शरीफ के अलफ़ाज़ में नक़्ल की थी । इस बार मजीद हवाला जात बढ़ा दिए गए हैं ।

 आप ऊपर पढ़ चुके कि ये एक हदीस है जो सहाबी रसूल हज़रत इब्न उमर व हज़रत सुहैल बिन सईद रदि अल्लाहु अन्हु से रिवायत किया और उसे अइम्मा सिहाह सित्ता के अलावा कई मुहद्दिसीन ने नक़्ल किया है । 


अलबत्ता उस हदीस में लफ़्ज़ " नहूसत " से क्या मुराद है ? 

उसकी तशरीहात आगे आ रही हैं । इस हदीस की शरह में बाज़ अइम्मा ए मुहद्देसीन ने ये बयान किया है कि अगर नहूसत होती तो वह 

  1. घर 
  2. औरत 
  3. और घोड़े में हो सकती थी 
लेकिन नहूसत कोई चीज़ ही नहीं । 


अइम्मा मुहद्देसीन के अक़वाल के तफ़सील देखने के लिए हजरत शाह अब्दुल हक मुहद्दिस देहलवी रदि अल्लाहु अन्हु की तसनीफ तलीफ " मा सबत बिस्सुन्नह की अय्यामेस्सुन्नह " का मुताला करें । यहाँ उसकी तफसील बयान कर पाना पोस्ट बड़ा होने का सबब हैं ।


 इसी हदीस की तशरीह में हमारे प्यारे इमाम , इमामे आज़म अबू हनीफा रदि अल्लाहु अन्हु अपनी मसनद में सहाबिये रसूल हज़रत इब्न बुरीदा रदि अल्लाहु अन्हु से रिवायत करते हैं :

  •  घर की नहूसत ये है कि वह तंग हो और पड़ोसी बुरे हों । 
  • घोड़े की नहूसत ये है कि सरकश हो।
  • और औरत की नहूसत ये है कि बदअखलाक हो । 


 इमाम आज़म फरमाते हैं हज़रत इमाम हसन बिन सुफियान रदि अल्लाहु अन्हु अपनी मसनद में इसमें इजाफा किया और कहा कि बद अखलाक और बाँझ हो । (मुसनद इमाम आज़म बाब - 121 सफा - 212 )


इस हदीस में औरत की नहूसत से मुराद बाँझ होना जो आया है हज़रत इमाम हसन बिन सुफियान रदि अल्लाहु अन्हु की अपनी जाती राय है । 

उसे हज़रत हसन बिन सुफियान रदि अल्लाहु तआला अन्हु ने अपनी मुसनद नक्ल किया है और इमाम आज़म अबू हनीफा ने उसे रिवायत किया । 


मसला नहूसत के बारे में रिवायात मुख़्तलिफ़ अलफ़ाज़ से वारिद हैं और उसकी तशरीहात में भी उलमाए किराम की राए मुखतलिफ है ।

 लिहाजा इस सिलसिले में हज़रत हसन बिन सुफियान के कौल की तावील करना ही मुनासिब है और उससे वह चीज़ मुराद नहीं ली जा सकती जो बज़ाहिर नज़र आ रही है । 

 अब रहा ये कि अका़बिर उलमा के नज़दीक औरत की नहूसत से क्या मुराद है ? 


इसी हदीस की तरह में इमाम अहलेसुन्नत आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खान फाजिल बरेलवी इरशाद फरमाते हैं : 

घर , घोड़ा और औरत मनहूस होते हैं । ये सब महज़ बातिल व मरदूद ख्यालात हिन्दुओं के हैं । शरीअत मुतहहरा में उनकी कोई असल नहीं । शरअन घर की नहूसत ये है कि तंग हो , हमसाये ( पड़ोसी ) बुरे हों । घोड़े की नहूसत ये है कि शरीर हो , दलगाम , बररिकाब हो और औरत की नहूसत ये है कि बदरूया ( बदअख़्लाक , ज़बानदराज़ ) हो

 बाकी ख़्याल कि औरत के पहरे से ये हुआ , फ़लॉ के पहरे से ये , ये सब बातिल और काफिरों के ख्याल है ।  ( फतावा रिज़विया जिल्द 9 निस्फ आखिर सपहा - 254 ) 


सदरुशशरीआ हज़रत अल्लामा मुहम्मद अमजद अली साहब अपनी शोहरए आफाक तसनीफ़  बहारे शरीअत में हदीस नक्ल फरमाते हैं : 

हज़रत सअद बिन अबी वकास रदि अल्लाहु अन्हु ने रिवायत की कि रसूलए अकरम स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया : 

तीन (3) चीजें आदमी की नेक बख़ती से हैं और तीन चीजें बदबखती है । 

  • नेक बख़्ती की चीज़ों में से नेक औरत और अच्छा मकान है यानी बड़ा हो और उसके पड़ोसी अच्छे हों और अच्छी सवारी 
  • और बदबख़ती की चीजें बदऔरत बुरा मकान , बुरी सवारी है । ( बजाज़ , हाकिम , बहवाला बहारे शरीअत सफा - 6 ) 



हदीस :- हज़रत उसामा बिन जैद रदि अल्लाहु तआला अन्हु ने रिवायत किया कि नबी करीम स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमायाः मेरे बाद कोई फ़ितना ऐसा बाकी नहीं रहा जो मर्दों पर औरत के फितने से ज़्यादा नुक्सान देह हो । ( बुख़ारी शरीफ जिल्द - 3 बाब - 47 हदीस - 87 सफा 61 + र्तिमिजी शरीफ़ बाब - 330 हदीस - 682 सफा - 279 + मिश्कात शरीफ़ जिल्द 2 हदीस 2951 सफा 70 ) 


अब आप ने जान लिया कि किसी शख़्स के लिए कोई औरत नहूसत का सबब ( यानी बदअख़लाक और ज़बानदराज़ ) भी हो सकती है और फितना भी और जाहिर है कि जो औरत बदअखलाफ ज़बानदराज़ और फितना परवर हो तो तकलीफ व परेशान का सबब ही होगी । 


लिहाजा ये जानने के लिए कि जिस लड़की से आप निकाह करना चाहते हैं वह आप के हक में बेहतर साबित होगी या नहीं । 

  • बदअखलाक व ज़बानदराज़ होगी या 
  • खुश बयान व खुश मज़ाज इज्ज़त का सबब होगी या 
  • जिल्लत का सबब , 
  • फितना होगी या 
  • मुहब्बत करने वाली , 
  • वफादार होगी या 
  • बेवफा , सब जानने की लिए इस्तिख़ारा ज़रूर करे । ( इमाम अहमद , जिल्द - 1 हिस्सा- 7)

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istikhara karne ka tarika |इस्तिखारा करने का तरीका 

जिससे निकाह करने का इरादा हो तो पैग़ाम या मगनी के बारे में किसी से जिक्र ना करे । अब रात को खूब अच्छी तरह वुजू कर के जितनी नफिल नमाज़ें पढ़ सकता है दो , दो रकअत कर के पढ़ें । 

फिर नमाज़ ख़त्म करने के बाद खूब खूब अल्लाह की तस्बीह बयान करे ( जो भी तस्बीह याद हो ज़्यादा से ज़्यादा पढ़े ) जैसे अल्लाहु अकबर , सुब्हान अल्लाह , अलहमदुलिल्लाह , या रहमान , या रहीम , या करीम वगैरा फिर उसके बाद ये दुआ खुजूअ व खुशूअ के साथ पढ़े : 

 

ऐ अल्लाह ! तू हर चीज़ पर कादिर है और मैं कादिर नहीं और तू सब कुछ जानता हैं , मैं कुछ नहीं जानता । बेशक तू गैब की बातों को खूब जानती है । 

अगर ( लड़की का नाम ले ) मेरे लिए मेरे दीन के एतेबार से दुनियां व आख़रत के एतेबार से बेहतर हो तो उसको मेरे लिए मिक़दार फ़रमा दे 

और ( अगर वह मेरे लिए बेहतर न हो तो ) उसके अलावा और कोई लड़की या औरत मेरे हक में मेरे दीन व आख़रत के एतेबार से इससे बेहतर हो तो उसको मेरे लिए मिकदार फरमा दे । ( हिरने हसीन अज़ हज़रत इमाम मुहम्मद विन अलजज़री शाफ़ई सफा - 160 ) 


इस तरह इस्तिख़ारा करने से इंशाअल्लाह सात (7) दिनों में जवाब या फिर बेदारी में ही अल्लाह की जानिब से ऐसा कुछ ज़ाहिर होगा या ऐसा कुछ वाकेअ होगा जिससे आप को अंदाजा हो जाएगा कि उस लड़की यो औरत से निकाह करने में बेहतरी है या नहीं । 


 कुछ उल्मा ए किराम ने इस्तिख़ारा करने का अमल इस तरह भी नक्ल किया है :

रात को पहले दो (2) रकअत नमाज़ इस तरह पढ़ें कि 

  • पहली रकाअत में सूरह फातिहा ( अलहमदु शरीफ ) के बाद 
  • सूरह काफिरून 
  •  और दूसरी रकअत में सूरह फ़ातिहा के बाद सूरह अखलास पढ़े 
  • और सलाम फेर कर दुआ पढ़ें ( वही दुआ जो हम ने ऊपर बयान की है ) 


  • दुआ से पहले और बाद में एक मरतबा सूरह फातेहा और ग्यारह (11) मरतबा दरूद शरीफ़ ज़रूर पढ़ें । 
  • बेहतर है कि ये अमल सात (7) मरतबा दोहराऐं ( यानी सात (7) रोज़ लगातार रात को इस तरह अमल करे । 
  • एक ही रात में सात (7) मरतबा भी कर सकते हैं ) इस्तिख़ारा करने के बाद फ़ौरन बातहारत कि़ब्ला की तरफ रुख कर के सो जाऐं । 
  • अगर ख़्वाब मैं सफेद या हरे रंग की कोई शै नज़र आए तो कामियाबी है यानी इस लड़की से निकाह करना ठीक होगा और अगर लाल या काली रंग की शैय नज़र आए तो समझे कि कामयाबी नहीं । यानी उसी लड़की से निकाह करने में बुराई है । ( वल्लाहु तआला आलम )

नोट :- ख्वाह लड़का हो या लड़की दोनों जानिब से इस्तखारा कर लेना ज्यादा बेहतर और अच्छा काम है। ये लड़के के लिए जरूरी नहीं है बल्कि लड़की भी अपने लाइफ पार्टनर के लिए इस्तिखारा का इस्तेमाल कर के जानकारी ले लें ताकि ज़िन्दगी प्यार मोहब्बत से बसर हो सके। 

अब आखिर में आप विजिटर की दुआओं का मुन्तजिर हूं मेरे हक में दुआ ए खैर करें। आपका अपना ब्लॉग infomgm के लिए


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