ikhtiyar e mustafa

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इख़्तियारे मुस्तफ़ा आयाते कुरआनिया की रौशनी में 


दलील नं .1  

( सूरए निसाअ , आयत नं . 59 ) ऐ ईमान वालो ! हुक्म मानो अल्लाह का और हुक्म मानो रसूल का और उनका जो तुम में हुकूमत वाले हैं । ( कन्जुल ईमान ) 


साहिबे तफ़सीरे ख़ाज़िन अल्लामा अलाउद्दीन अली बिन मुहम्मद बिन इब्राहीम बग़दादी अलैहि रहमतो रब्बिहिल बारी फ़रमाते हैं : 

यानी अल्लाह की इताअत यह है कि उसने जिस बात का हुक्म दिया है उसे मान ले और अल्लाह की इताअत तमाम मखलूक पर वाजिब है । 

यूँ ही उसके रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की इताअत भी वाजिब है ।


 क्योंकि अल्लाह फ़रमाता है हुक्म मानो अल्लाह का और हुक्म मानो रसूल का । तो अल्लाह ने अपने रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की इताअत मखलूक़ पर लाज़िम फ़रमा दी । ( तफ़सीरे ख़ाज़िन , जिल्द . अव्वल , सफा . 392 ) 


फिर अल्लामा मौसूफ़ अपनी इस तफ़सीर की ताईद में यह हदीसे पाक पेश करते हैं । 

तर्जमा : हज़रत अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है उनका बयान है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि जिसने मेरी इताअत की उसने अल्लाह ही की इताअत की और जिसने मेरी ना फ़रमानी की 

उसने अल्लाह की ना फ़रमानी की और जिसने अमीर की इताअत की उसने मेरी इताअत की और जिसने अमीर की ना फ़रमानी की उसने मेरी ना फ़रमानी की । ( तफ़सीरे ख़ाज़िन , सफा . 392,393 / 1 , मुस्नद इमाम अहमद बिन हंबल , सफा . 338,362 , 419,511,615 / 2 ) 


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इस आयते करीमा से ब ख़ूबी वाज़ेह हो गया कि हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की इताअत अल्लाह ही की इताअत है और आपकी ना फ़रमानी अल्लाह की ना फ़रमानी है।

और इससे यह भी ज़ाहिर हो गया कि हुज़ूर सरवरे आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम मुख्तारे कायनात हैं क्योंकि इताअत साहिबे इख़्तियार ही की की जाएगी , बे इख़्तियार क़ाबिले इताअत नहीं होता । 


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दलील नं . 2 

 ( सूरए निसाअ , आयत नं . 65 ) तर्जमा : तो ऐ महबूब ! तुम्हारे रब की क़सम वह मुसलमान न होंगे जब तक अपने आपस के झगड़े में तुम्हें हाकिम न बनाएं फिर जो कुछ तुम हुक्म फ़रमा दो अपने दिलो में उससे रुकावट न पाएं और जी से मान लें । ( कन्जुल ईमान ) 


इमाम जलालुद्दीन सुयूती रहमतुल्लाहि तआला अलैह इमाम इब्ने अबी हातिम और इमाम इब्ने मरदुविया के हवाले से लिखते हैं : 

यानी हज़रत अबुल असवद रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने फ़रमाया कि दो आदमियों ने हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की ख़िदमते अक़दस में अपना मुक़दमा पेश किया तो आपने उनके दरमियान फ़ैसला फ़रमा दिया । 


जिसके ख़िलाफ़ फ़ैसला हुआ था उसने कहा आप हमें हज़रत उमर के पास भेज दें । 

हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ठीक है तुम दोनों उमर के पास चले जाओ । 

जब वह दोनों हज़रत उमर के पास आए तो ( वह शख़्स जिसके हक़ में हुज़ूर ने फ़ैसला फ़रमाया था ) उसने कहा , 

ऐ इब्ने ख़त्ताब ! रसूले पाक सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने मेरे हक़ में फ़ैसला फ़रमा दिया है , मगर इसने कहा हमें उमर के पास भेज दें , तो हुज़ूर ने हमें आपके पास भेज दिया ।

 हज़रत फ़ारूक़े आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने उस शख़्स से पूछा क्या यह ठीक कह रहे हैं , उसने कहा हाँ यह ठीक कह रहे हैं ।

फ़ारूक़े आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने फ़रमाया में तुम दोनों यहीं ठहरो मैं अभी आकर तुम्हारा फ़ैसला किये देता हूँ , फिर हज़रत उमर उनके पास तलवार लेकर आए और हुज़ूर का फ़ैसला क़ुबूल न करने वाले की गरदन मार दी । ( तफ़सीर दुर्रे मन्सूर , जिल्द . दुव्वम , सफा . 322 ) 


इससे मालूम हुआ कि हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की शाने आली यह है कि आपके हर फ़ैसले को बे चूनो चरा कुबूल किया जाए । 

आपके किसी फ़ैसले को न मानने वाला या उसमें चूं चरा करने वाला इस्लाम से ख़ारिज हो जाएगा । 


हज़रत फ़ारूक़े आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के अमल ने बता दिया कि हुज़ूर के फैसले को न मानने वाला मुसलमान नहीं है , इसी लिये आपने उस शख़्स की गरदन मार दी ।


साहिबे तफ़्सीर ख़ज़ाइनुल इरफ़ान सदरुल अफ़ाज़िल हज़रत अल्लामा मुफ़्ती मुहम्मद नईमुद्दीन मुराद आबादी रहमतुल्लाहि अलैह फ़रमाते हैं : 

इस आयते करीमा के मतलब यह हैं कि जब तक आपके फ़ैसले और हुक्म को सिदक़ दिल से न मान लें , मुसलमान नहीं हो सकते ( तफ़सीर ख़ज़ाइनुल इरफ़ान , सफा . 141 ) 


और साहिबे तफ़्सीर नूरुल इरफ़ान हकीमुल उम्मत हज़रत अल्लामा मुफ़्ती अहमद यार ख़ान नईमी अलैहिर्रहमा लिखते हैं : 

इससे चन्द मसअले मालूम हुए।

  1. एक यह कि हुज़ूर के फ़ैसले हमारे लिये बरहक़ वाजिबुल अमल हैं । 
  2.  दूसरे यह कि हुज़ूर के फ़ैसले पर ज़बाने एतिराज़ करना या न मानना कुनो इरतिदाद है ।  
  3. तीसरे यह कि अगर कोई मजबूरन हुज़ूर का फ़ैसला मान तो ले , मगर दिल से राज़ी न हो वह भी काफ़िर है । 
  4.  चौथे यह कि मुतलक़ अम्र वुजूब के लिये होता है । ( तफ़्सीर नूरुल इरफ़ान , स . 139 ) 

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इससे यह भी मालूम हो गया कि हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को अल्लाह तआला ने हर चीज़ का मालिको मुख़्तार बनाया है ।

और आप अपने रब की अता से साहिबे इख़्तिार हैं , क्यों कि अल्लाह तआला ने फ़रमा दिया कि जब तक आपका फ़ैसला न मान लें वह मुसलमान नहीं । 

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क्या किसी बे इख़्तियार को यह इख़्तियार दिया जाता है ? 

दलील नं . 3 ( सूरह निसाअ आयत नं . 80 ) तर्जमा : जिसने रसूल का हुक्म माना बे शक उसने अल्लाह का हुक्म माना और जिसने मुंह फेरा तो हमने तुम्हें उनके बचाने को न भेजा । ( कन्जुल ईमान ) 


इस आयते करीमा का सबबे नुज़ूल बयान करते हुए साहिबे तफ़्सीरे ख़ाज़िन लिखते हैं : यानी इस आयते करीमा का सबबे नुज़ूल यह है कि।

 हुज़ूरे अक़दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया जिसने मेरी इताअत की तो बेशक उसने अल्लाह की इताअत की और जिसने मुझसे मोहब्बत की तो बेशक उसने अल्लाह से मोहब्बत की । 


इस पर बाज़ मुनाफ़िक़ीन बोले कि यह आदमी तो यही चाहता है कि जिस तरह नसारा ने ईसा इब्ने मरयम को रब बना लिया उसी तरह हम भी इसे रब बना लें । 

इस पर अल्लाह तआला ने यह आयते करीमा नाज़िल फ़रमाई कि जिसने रसूल के हुक्म देने और मना करने में उनकी इताअत की तो उसने मेरी इताअत की । 


यानी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की इताअत हक़ीक़तन अल्लाह ही की इताअत है । 

और इमाम हसन बसरी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने फ़रमाया कि अल्लाह ने अपने रसूल की इताअत को अपनी इताअत फ़रमाया । इससे मुसलमानों पर दलील क़ायम हो गई । 


और इमाम शाफ़ई रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फ़रमाते हैं कि वह तमाम फ़राइज़ जिनको अल्लाह तआला ने अपनी किताब में फ़र्ज़ फ़रमाया है जैसे 

  • हज्ज , 
  • नमाज़ ,
  • और ज़कात । 


तो अगर हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इनके मुतअल्लिक़ वजाहत न फ़रमाते तो हमें इनके अदा करने का तरीक़ा ही मालूम न होता और न हम कोई इबादत कर पाते । 

और चूँकि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इतने बलन्द मरतबे पर फ़ाइज़ हैं तो उनकी इताअत हक़ीक़तन अल्लाह ही की इताअत होगी। ( तपसीरे ख़ाज़िन , स . 400 / 1 ) 


इमाम जलालुद्दीन सियूती रहमतुल्लाहि तआला अलैह इमाम इब्ने मुन्ज़िर और ख़तीब के हवाले से लिखते हैं : 

यानी हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हुमा से मरवी है , उनका बयान है कि हम सहाबा की एक जमाअत में हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के साथ थे ।

तब आपने फ़रमाया क्या तुम नहीं जानते हो कि मैं तुम्हारी तरफ़ अल्लाह का रसूल बनकर तशरीफ़ लाया।


सहाबा ने अर्ज किया क्यों नहीं ( यानी हम यक़ीनन जानते हैं कि आप हमारी तरफ़ अल्लाह के रसूल बनकर तशरीफ़ लाए )

 फिर फ़रमाया क्या तुम नहीं जानते कि अल्लाह तआला ने अपनी किताबे मुक़द्दस में यह हुक्म नाज़िल फ़रमाया है कि जिसने मेरी इताअत की तो यक़ीनन उसने अल्लाह की इताअत की । 

सहाबा ने अर्ज़ किया क्यों नहीं । 

हम गवाही देते हैं कि बेशक जिसने आपकी इताअत की उसने यक़ीनन अल्लाह की इताअत की और अल्लाह की इताअत आपकी इताअत है । 

तो आपने फ़रमाया कि अल्लाह की इताअत यह है कि तुम मेरी इताअत करो और मेरी इताअत यह है कि तुम अपने अइम्मा की इताअत करो । ( तफ़सीर दुर्रे मन्सूर , सफा . 331/2 ) 


इमाम अहमद रज़ा बरैलवी रज़ियल्लाहु अन्हु इस आयते करीमा की तफ़्सीर में फ़रमाते हैं :

 रब तबारक व तआला ( इस आयते पाक और इस जैसी दूसरी आयतों में ) नबी का हुक्म बिऐनिही अपना हुक्म और नबी की इताअत बिऐनिही अपनी इताअत बताता है तो तमाम अहकाम कि अहादीस में इरशाद हुए सब कुरआने अज़ीम साबित हैं । 

जो अख़लाक़ी हुक्म हदीस में है , किताबुल्लाह उससे हरगिज़ ख़ाली नहीं अगरचेह बज़ाहिर तसरीहे जुज़इय्या हमारी नज़र में न हो । ( फ़तावा रज़वियह मुतरजम , जिल्द . नं . 22 , सफा . 628 ) 

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इस आयते करीमा से ख़ूब वाज़ेह हो गया कि अल्लाह तआला ने अपने महबूब सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की इताअत व फ़रमां बरदारी को अपनी इताअत व फ़रमां बरदारी करार दिया है ।

तो जो शख्स उसके महबूब की इताअत नहीं करता वह अपने ख़ालिक़ो मालिक की इताअत से गुरेज़ाँ ( मुँह मोड़े हुए ) है और जो उसकी इताअत से गुरेज़ाँ हो ( मुँह मोड़ ले ) उसका दोनों जहाँ में कहीं ठिकाना नहीं और इससे आपका मालिको मुख़्तार होना भी साबित है । 

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दलील नं . 4 

 ( सूरह मायदह , आयत नं . 92 ) तर्जमा : और हुक्म मानो अल्लाह का और हुक्म मानो रसूल का और होशियार हो फिर अगर तुम फिर जाओ तो जान लो कि हमारे रसूल का जिम्मा सिर्फ़ वाज़ेह तौर पर हुक्म पहुँचा देना है । ( कन्जुल ईमान ) 


साहिबे तफसीरे ख़ाज़िन लिखते हैं : यानी अल्लाह तआला का इरशादे पाक : अल्लाह व रसूल तुम्हें जिन बातों का हुक्म दें और जिन बातों से मना फ़रमाएं उन बातों में तुम अल्लाहो रसूल जल्ला जलालुहू व सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का हुक्म .मानो और अम्रो नहीं में अल्लाहो रसूल की मुख़ालफ़त करने से बचो।


अगर तुम ने अल्लाहो रसूल के अम्र व नही से मुंह मोड़ा तो जान लो कि हमारे रसूल का ज़िम्मा सिर्फ़ वाज़ेह तौर पर हुक्म पहुँचा देना है । और यह वईद व तहदीद है अल्लाहरसूल के अम्र व नही से एतराज़ करने वालों के लिये ।

गोया कि अल्लाह तआला ने इरशाद फ़रमाया कि तुम इन्कार करने और मुंह मोड़ने के सबब अज़ाब के मुस्तहिक़ हो गए । ( तफ़सीर खाजिन , जिल्द . 2. सफा . 76 ) 


तफ़सीर नूरुल इरफ़ान में है : अल्लाह की इताअत सिर्फ़ उसके अहकाम में है , रसूल की इताअत क़ौली अहकाम में भी है और अमली सुन्नतों में भी कि जिसका हुक्म दें वह फ़र्ज़ या वाजिब है जो हमेशा अमल करें वह सुन्नते मुअक्कदह ।


 इससे ( यह भी ) मालूम हुआ कि लोगों के न मानने से हुज़ूर पुर नूर पर कोई असर नहीं पड़ता । 

सूरज के इनकार से उसकी रोशनी में कमी नहीं आ जाती , क्योंकि उन पर तब्लीग़ लाज़िम थी जो उन्होंने बदरजए अतम फ़रमा दी । हम उनके हाजत मन्द हैं वह हमारे हाजत मन्द नहीं । ( तफ़्सीर नूरुल इरफ़ान , सफा . 195 ) 


इस आयते करीमा में ख़ालिक़े कायनात जल्ला मजदुहू ने अपने रसूल के हुक्म की मुखालफ़त करने वालों के लिये अज़ाब का ख़ौफ़ दिलाया है ।

तो मालूम हुआ कि जो रसूले अकरम अलैहिस्सलातु वत्तस्लीम के हुक्म की मुख़ालफ़त करे वह मुसलमान नहीं और जो मुसलमान है वह अल्लाहो रसूल के हुक्म से हरगिज़ एतराज़ नहीं । 

करेगा ( मुँह नहीं फेरेगा ) इससे यह भी साबित हुआ कि आक़ाए कायनात सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम मुख़्तारे कायनात हैं ।

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दलील नं . 5 

( सूरतुल अअराफ़ . आयत नं . 157 ) तर्जमा : 

वह उन्हें भलाई का हुक्म देगा और बुराई से मना फ़रमाएगा और सुथरी चीज़ें उनके लिये हलाल फ़रमाएगा और गन्दी चीज़ें उन्हें हराम फ़रमाएगा और उन पर से वह बोझ और गले से के फन्दे जो उन पर थे उतारेगा । ( कन्जुल ईमान ) 


अल्लामा ख़ाज़िन इस आयते करीमा की तफ़सीर में फ़रमाते हैं : यानी अल्लाह तआला के इरशाद , 

 यह हैं कि वह अल्लाह पर ईमान लाने और उसकी वहदानियत का हुक्म देंगे और बुराइयों से रोकेंगे यानी अल्लाह के साथ शिर्क करने से मना करेंगे और जो पाकीज़ा चीज़ें उन पर तौरेत में हराम थीं उन्हें यह नबी अपनी उम्मत पर हलाल फ़रमाएंगे जैसे 

  • ऊंट का गोश्त और बकरी , 
  • भेंड़ और गाय की चरबी । 


( यह चीज़े बनी इस्राईल ( यहूदियों ) पर हराम थीं , मगर हुजूरे अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उम्मते मुहम्मदिया पर हलाल फ़रमा दीं ) और उन पर गन्दी चीजें हराम फ़रमाईं ।

 हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु तआला अन्हुमा फ़रमाते हैं , इससे मुराद

  •  मुरदार ,
  •  खून और 
  • ख्रिन्जीर का गोश्त है 
और कहा गया है कि इससे मुराद वह तमाम चीजें हैं जिनसे तबीअत घिन करे और नफ़्स ना पसन्द करे । ( तफ़सीर खाजिन , जिल्द . 2. सफा . 258 )


 हकीमुल उम्मल हज़रत अल्लामा मुफ़्ती अहमद यार खान साहब नईमी अलैहिर्रहमा फ़रमाते हैं ,

 यानी जो हलाल व तैय्यब चीजें बनी इस्राईल पर उनकी ना फ़रमानी की वजह से हराम हो गई थीं वह नबिय्ये आखिरुज्ज़मां सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम उन्हें . हलाल फ़रमा देंगे और ख़बीस व गन्दी चीज़ों को हराम फ़रमाऐंगे । 

ख़याल रहे कि ख़ुदा ने सिर्फ़ चन्द चीज़ों को हराम फ़रमाया 

  1. सुअर , 
  2. मुरदार वग़ैरह , 
  3. बाक़ी तमाम ख़बाइस हुज़ूर ने हराम फ़रमाए ।
  4.  कुत्ता , 
  5. बिल्ली वग़ैरह । 
  6. ( और ) वह रसूल उन ख़बीस व गन्दी चीज़ों को हराम करेंगे जिनमें से बाज़ पिछली शरीअतों में हलाल थीं 
  7. जैसे शराब वग़ैरह । 

मालूम हुआ कि रब ने हुज़ूर को हराम व हलाल फ़रमाने का इख़्तियार दिया है । यहाँ हराम फ़रमाने वाला हुज़ूर को क़रार दिया । ( तफ़सीर नूरुल इरफ़ान , सफा . 270 ) 


इस आयते करीमा और तफ़्सीरी इबारात से पूरी तरफ़ ज़ाहिर हो गया कि हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को मुकम्मल तशरीई इख़्तियारात हासिल हैं कि जिन चीज़ों को चाहें अपनी उम्मत पर हलाल फ़रमा दें और जिन चीज़ों को चाहें हराम फ़रमा दें । 

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दलील नं . 6

 ( सूरए अनफ़ाल , आयत 17 ) तर्जमा : और ऐ महबूब वह ख़ाक जो तुमने फेंकी , वह तुमने न फेंकी थी बल्कि अल्लाह ने फेंकी थी । ( कन्जुल ईमान )

 तफ़सीर कबीर में है तर्जमा , हज़रत मुजाहिद ने फ़रमाया कि यौमे बद्र के बारे में सहाबा में मुख़्तलिफ़ राएं हो गईं , 

  • तो कोई कहता मैंने फ़लां को मारा तो 
  • दूसरा कहता मैंने फ़लां काफ़िर को क़त्ल किया
  •  तो अल्लाह तआला ने यह आयते करीमा नाज़िल फ़रमाई जिसमें इरशाद हुआ कि तुम इस फ़तहो नुसरत को अपने कुव्वते बाज़ू का नतीजा न समझो ,
  •  यह तो अल्लाह तआला की मदद से हासिल हुई है ।


रिवायत में है कि ( हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सहाबा के साथ तशरीफ़ फ़रमा थे कि ) आपने लश्करे कुरैश को देख कर फ़रमाया ऐ अल्लाह यह कुरैश अपने सवारों और बहादुरों के साथ आ रहे हैं , यह तेरे रसूल को झुटलाते हैं । 


ऐ अल्लाह! तूने जिस मदद का जिस मदद का वादा फ़रमाया था वही मदद हमें अता फ़रमा उस वक़्त हज़रत जिब्रईल अलैहिस्सलाम ने हाज़िरे बारगाह होकर अर्ज़ किया कि आप एक मुट्ठी मिट्टी ले लें । 

तो जब दोनों फ़ौजें मुक़ाबले पर आईं , हुज़ूर ने हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु से फ़रमाया मुझे एक मुट्ठी कंकरीली मिट्टी दे दो । 


फिर आपने उस मिट्टी को कुफ़्फ़ार की तरफ़ फेंक कर फ़रमाया शाहतिल वुजूह चेहरे बिगड़ जाएं । ( आपकी फेंकी हुई मिट्टी ) तमाम मुकीन की आँखों में पहुँच गई और वह आँख मलते रहे इस तरह वह हार गए । ( तफ़्सीरे कबीर , सफा . 466/5 ) 


तफ़सीर नूरुल इरफ़ान में है । इससे मालूम हुआ कि महबूबों का फ़ेल रब का फेल होता है और मोमिन ख़ुदाई ताक़त से काम करता है कि उसके हाथ पांव में रब की ताक़त होती है । ( तफ़सीर नूरुल इरफ़ान , सफा . 284 ) 


इससे मालूम हुआ कि अल्लाह तआला ने अपने महबूब सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को जो ताक़तो कुव्वत अता फ़रमाई है कायनात में किसी को हासिल नहीं । 

ख़याल करें कि एक मुट्ठी मिट्टी वहां मौजूद सारे कुफ़्फ़ारो मुश्रिकीन की आँख में पहुँच गई यह यक़ीनन इख़्तियारे मुस्तफ़ा की खुली दलील है । 

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दलील नं . 7 

( सूरए तौबह , आयत नं . 74 ) तर्जमा : और उन्हें क्या बुरा लगा यही ना कि अल्लाहो रसूल ने उन्हें अपने फ़ज़्ल से ग़नी कर दिया । ( कन्जुल ईमान )


 इस आयते करीमा की तफ़्सीर में मुफ़्ती अहमद यार खां नईमी अलैहिर्रहमा फ़रमाते हैं इससे चन्द मस्अले मालूम हुए 

( 1 ) एक यह कि हुज़ूर ऐसे ग़नी हैं कि दूसरों को भी ग़नी कर देते हैं जो उन्हें फ़क़ीर कहे वह बे अदब और बद नसीब है अगर तौहीन की नियत से कहे तो काफ़िर है रब फ़रमाता है : ( सूरतुदुहा आयत नं . 8 )  रब उन्हें ग़नी कर चुका । 


( 2 ) दूसरे यह कि किसी का अल्लाहो रसूल पर कुछ हक़ नहीं उन्होंने जिसे जो दिया अपने फ़ज़्ल से दिया रब की मखलूक़ उनके दर की भिकारी है । 


( 3 ) तीसरे यह कि यह कहना जाइज़ है कि अल्लाह व रसूल नेअमतें देते हैं ।


 ( 4 ) चौथे यह कि बेईमान अल्लाहो रसूल की ने अमतें पाकर सरकश हो जाते हैं । ( तफ़सीर नूरुल इरफ़ान , स . 316 ) 


और अल्लामा करम शाह अज़हरी लिखते हैं : उन एहसान फ़रामोशों को देखो कि 

  • क़र्ज़ के बोझ तले दबे जा रहे थे , 
  • खाने तक को मयस्सर नहीं था , 
  • मेरा रसूल मदीने में तशरीफ़ फ़रमा हुआ तो उसकी बरकत से कारोबार में बरकत हुई , 
  • खेतियों में अनाज पैदा होने लगा , 
  • माले गनीमत में उनको भी हिस्सा मिलता रहा , 
  • अब जब माली हालत अच्छी हो गई तो बजाए इसके कि अल्लाह और उसके रसूल ने उन्हें जिन नवाज़िशात से मालामाल फ़रमाया उसका शुक्रिया अदा करते , 
  • उल्टा मुखालफ़त पर आमदा हैं । 
  • यह बि ऐनिही इस तरह है जिस तरह हम उर्दू में कहते हैं कि मेरा इसके सिवा और या कुसूर है कि मैंने इसे मुसीबत से निजात दिलाई । ( तफ़सीर जियाउल कुरआन , सफा . 234 / 2 ) 


इससे यह बात रोज़े रौशन की तरह ज़ाहिर है कि हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ग़नी व साहिबे फ़ज़्ल हैं और ऐसे ग़नी हैं कि अपने फ़ज़्ल से दूसरों को ग़नी फ़रमा रहे हैं और ग़नी व साहिबे फ़ज़्ल यक़ीनन बा इख़्तियार होता है । 


दलील नं . 8 

( सूरए अहज़ाब , आयत नं . 36 )  : तर्जमा और न किसी मुसलमान मर्द न मुसलमान औरत को पहुँचता है कि जब अल्लाह व रसूल कुछ हुक्म फ़रमा दें तो उन्हें अपने मुआमले का कुछ इख़्तियार है और जो हुक्म न माने अल्लाह और रसूल का वह बेशक सरीह गुमराही में बेहका । ( कन्जुल ईमान ) 


अल्लामा अलाउद्दीन अली बिन मुहम्मद बिन इब्राहीम बग़दादी फ़रमाते हैं : यानी यह आयते मुक़द्दसा हज़रत ज़ैनब बिन्ते जहश  उनके भाई अब्दुल्लाह बिन जहश और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की फूफी उमय्यह रज़ियल्लाहु तआला अन्हुम के मुतअल्लिक़ नाज़िल हुई।


और यह वाक़िआ इस तरह है कि 

हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने हज़रत ज़ैनब बिन्त जहश को अपने आज़ाद कर्दा गुलाम हज़रत ज़ैद बिन हारिसा के लिये निकाह का पैग़ाम भेजा हुज़ूर ने हज़रत ज़ैद को ऐलाने नुबुव्वत से पहले बाज़ारे उक्काज़ से ख़रीद कर आज़ाद करके अपना बेटा बना लिया था । 

जब हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने हज़रत ज़ैनब को निकाह का पैग़ाम दिया तो उन्होंने यह समझकर कि हुज़ूर अपने लिये पैग़ाम दे रहे हैं

यह पैग़ाम कुबूल कर लिया लेकिन जब उन्हें इस बात का इल्म हुआ कि हुज़ूर ने हज़रत ज़ैद बिन हारिसा के लिये पैग़ाम दिया है तो उन्होंने इन्कार कर दिया और कहा या रसूलल्लाह ! 


मैं आपकी फूफी ज़ात बहन हूँ , अपने लिये इन्हें पसन्द नहीं करती , हज़रत जैनब बहुत ख़ूबसूरत थीं और उनके मिज़ाज में तेज़ी भी थी । 

इसी तरह उनके भाई हज़रत अब्दुल्लाह बिन जहश ने भी अपनी बहन के लिये यह रिश्ता ना पसन्द किया तब अल्लाह तआला ने यह हुक्म नाज़िल फ़रमाया कि 

किसी मोमिन यानी अब्दुल्लाह बिन जहश और किसी मोमिना यानी उनकी बहन ज़ैनब को , जब अल्लाह व रसूल किसी मुआमले यानी ज़ैनब के लिये ज़ैद के निकाह का हुक्म फ़रमा दें तो उन्हें अपने मुआमले यानी किये गए फ़ैसले पर कुछ इख़्तियार नहीं है । 


मअना यह है कि वह अल्लाह के हुक्म के ख़िलाफ़ करना चाहें और अल्लाहो रसूल ने जिस काम का हुक्म फ़रमाया है उससे मना कर दें तो जो हुक्म न माने अल्लाह व रसूल का बेशक वह सरीह गुमराही में बहका । यानी उसने बिल्कुल ज़ाहिर ख़ता की । 


 जब हज़रत ज़ैनब और उनके भाई हज़रत अब्दुल्लाह ने यह हुक्म सुना तो इस रिश्ते को कुबूल कर लिया 

और अपना मुआमला हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के सुपुर्द कर दिया तो हुज़ूर ने उनका निकाह हज़रत ज़ैद बिन हारिसा से कर दिया 

और हुज़ूर ने उनके महर में 

  1. दस (10) दीनार ,
  2.  साठ (60) दिरहम , 
  3. एक (1) जोड़ा कपड़ा ,
  4.  पचास (50) मुद ( एक पैमाने का नाम है ) खाना , 
  5. तीस (30) साअ ( साअ का वज़न चार किलो नव्वे ( 4.90 ) ग्राम होता है ) खजूरें अता फ़रमाईं । ( तफ़सीरे खाजिन , स . 426 , 427/3 ) 


इमाम अहमद रज़ा बरैलवी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु इस आयते करीमा की तफ़सीर में फ़रमाते हैं , 

ज़ाहिर है कि किसी औरत पर अल्लाह अज़्ज़ व जल्ला की तरफ़ से फ़र्ज़ नहीं कि फलां से निकाह पर ख़ाही न ख़ाही राज़ी हो जाए ।


खुसूसन जब कि वह उसका कुफ़्व न हो खुसूसन जब कि औरत की शराफ़ते ख़ानदान कवाकिबे सुरय्या ( सुरैया सितारों ) से भी बलन्दो बाला तर हो बईं हमा ( इन तमाम चीज़ों के बावजूद ) 

अपने हबीब सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का दिया हुआ पैगाम न मानने पर रब्बुल इज़्ज़त जल्ला जलालुहु ने बि ऐनिही वही अलफ़ाज़ इरशाद फ़रमाए ।


जो किसी फ़र्ज़े इलाही के तर्क पर फ़रमाए जाते और रसूल के नामे पाक के साथ अपना नामे अक़दस भी शामिल फ़रमाया यानी रसूल जो बात तुम्हें फ़रमाएं वह अगर हमारा फ़र्ज़ न थीं तो अब उनके फ़रमाने से फ़र्जे क़तई हो गई मुसलमानो को उसके न मानने का असलन इख़्तियार न रहा।


जो न मानेगा सरीह गुमराह हो जाएगा । देखो रसूल के हुक्म देने से काम फ़र्ज़ हो जाता है।

अगरह फ़ी नफ़सेही ख़ुदा का फ़र्ज़ न था एक मुबाह व जाइज़ अम्र था व लिहाज़ा अइम्मए दीन , ख़ुदा व रसूल के फ़र्ज़ में फ़र्क़ फ़रमाते हैं कि ख़ुदा का किया हुआ फ़र्ज़ उस फ़र्ज़ से अक़वाह है ।


जिसे रसूल ने फ़र्ज़ किया और अइम्मए मुहक्क़िक़ीन तसरीह फ़रमाते हैं कि अहकामे शरीअत हुज़ूर सय्यिदे आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को सुपुर्द हैं।

जो बात चाहें वाजिब कर दें , जो चाहें नाजाइज़ फ़रमा दें , जिस चीज़ या जिस शख़्स को जिस हुक्म से चाहें मुस्तस्ना ( अलग ) कर दें । ( अल अमनो वल उला , स . 171,172 ) 1 आयत नं .90463 ) ( सूरए फ़तह आयत नं . 10 ) 


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दलील 9

तर्जमा : बैअत करते हैं वह तो अल्लाह ही से बैअत करते हैं उनके हाथों पर अल्लाह का हाथ है । ( कन्जुल ईमान ) 


तफ़्सीर ख़ाज़िन में है यानी ऐ महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जो लोग आपसे इस बात की बैअत कर रहे हैं कि वह जंग से भागेंगे नहीं बल्कि दुश्मनों से लड़ते रहेंगे )

 वह हक़ीक़त अल्लाह से बैअत कर रहे हैं क्योंकि उन्होंने अपनी जानें जन्नत के बदले अल्लाह अज़्ज़ व जल्ला को बेच दीं । ( तफसीरे खाजिन , स . 156/4 ) 


तफ़्सीरे मदारिक में है यानी इस आयते करीमा में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बैअत को अल्लाह की बैअत फ़रमा कर इसमें ताकीद पैदा की गई है । फिर फ़रमाया ( उनके हाथों पर अल्लाह का हाथ है ) 

इसके मअना यह हैं कि रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का दस्ते पाक जो बैअत करने वालों के हाथों के ऊपर है

वह हक़ीक़तन अल्लाह का हाथ है मगर चूँकि अल्लाह तआला जिस्म व जिस्मानियात से पाक है इस लिये ब तौरे वज़ाहत उसका इरादा यह है कि हुज़ूर के साथ अख़दे मीसाक़ करना अल्लाह के साथ वादा करने के बराबर है

जैसा कि उसका इरशाद है : हज्ज यानी जिसने रसूल की इताअत की उसने यक़ीनन अल्लाह की इताअत की ( तफसीरे मदारिक , स . 158/4 , तफ़सीरे कश्शाफ़ जिल्द चहारुम , स . 336 , तफ़सीरे अबुस्सऊद , स . 598 / 5 ) 


तफ़सीर नूरुल इरफ़ान में है इससे चन्द मस्अले मालूम हुए 

( 1 ) एक यह कि तमाम सहाबा खुसूसन बैअते रिज़वान वाले बड़े ही शान वाले हैं , उनकी तादाद 1400 है।

( 2 ) दूसरे यह कि हुज़ूर को वह कुर्बे इलाही हासिल है कि हुज़ूर से बैअत रब से बैअत है हुज़ूर का हाथ रब का हाथ है । ( तफ़सीर नूरुल इरफ़ान , स . 816 ) 

इस आयते करीमा से ब ख़ूबी वाज़ेह हो रहा है कि हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम मालिको मुख्तारे कायनात हैं . क्योंकि आपके दस्ते पाक पर ख़ुदाई कुदरत जलवा फ़रमा है । 


दलील नं . 10 

( सूरए हश्र , आयत नं . 7 ) तर्जमा : और जो कुछ तुम्हें रसूल अता फ़रमाएं वह लो और जिससे मना फ़रमाएं बाज़ रहो और अल्लाह से डरो बेशक अल्ला का अज़ाब सख़्त है । ( कन्जुल ईमान ) 


तफ़सीरे ख़ाज़िन में है : यानी यह आयते करीमा अगर चे माले ग़नीमत के बारे में नाज़िल हुई है मगर यह उन तमाम चीज़ों के बारे में आम है ।

 रसूले पाक सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने जिन के करने का हुक्म फ़रमाया और जिनसे मना किया ख़्वाह वह क़ौलो अमल हो या वाजिब हो या मन्दूबो मुस्तहब । ( तफ़्सीरे ख़ाज़िन , स . 270/4 , तफ़सीरे कश्शाफ़ , स . 402/4 , तफ़सीरे मदारिक , स . 240/4 ) 


फिर अपनी इस तफ़्सीर की ताईद में बुख़ारी शरीफ़ की यह रिवायत नक़्ल फ़रमाई है :

 यानी हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने मस्ऊद रज़ियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया कि 

  1. बदन गोदने वालियों , 
  2. बदन गुदवाने वालियों , 
  3. चेहरे के बाल नोचने वालियों , 
  4. खूबसूरती के लिये दांतों में खिड़कियाँ बनाने वालियों 
  5. और अल्लाह की चीज़ों को बिगाड़ने वालियों पर अल्लाह की लानत है ।

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 उम्मे याकूब नामी बनी असद की एक ख़ातून जिन्हें तिलावते कुरआने पाक से शग़फ़ था , उन्होंने हज़रत अब्दुल्लाह बिन मस्ऊद के पास जाकर पूछा कि आपने इन औरतों के बारे में ऐसा ऐसा कहा है।

 आपने फ़रमाया मैं ऐसे काम पर लअनत क्यों न करूँ जिस काम के करने पर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने भी लअनत फ़रमाई है।


 और जिसका तजकिरा कुरआने पाक में भी है । वह ख़ातून बोलीं मैंने भी कुरआने पाक पढ़ा है मुझे तो उसमें यह हुक्म नहीं मिला ।

हज़रत इब्ने मस्ऊद ने फ़रमाया अगर तुमने कुरआन पाक ग़ौर से पढ़ा होता तो तुम्हें इसका बयान ज़रूर मिल जाता । 


फिर आपने फ़रमाया क्या तुमने यह आयते करीमा नहीं पढ़ी अल्लाह अज़्ज़ व जल्ला फ़रमाता है और जो कुछ तुम्हें रसूल अता फ़रमाएं वह लो और जिससे मना फ़रमाएं बाज़ रहो। वह बोलीं हां यह आयते करीमा तो पढ़ी है ।

 तो आपने फ़रमाया बेशक हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन बातों से मना फ़रमाया है । ( तफ़सीरे खाजिन , स . 270/4 , मुस्नद इमाम अहमद बिन हंबल , सफा . 562/1 , सही बुखारी , सफा . 879 / 2 , सुनन तिर्मिज़ी , स . 102 / 2 , सुनने अबी दाऊद , सफा . 218/2 , सुनन नसाई , सफा . 292 ( 2 ) 


तफ़सीरे कश्शाफ़ में है : यानी हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है कि उन्होंने एक शख़्स से मुलाक़ात की जो हालते अएहराम में सिले हुए कपड़े पहने हुए था ।

आपने फ़रमाया यह कपड़े उतारो तो उस शख़्स ने कहा इस सिलसिले में कोई कुरआनी आयत बताइये आपने कहा ठीक है फिर आपने यही आयते करीमा तिलावत फ़रमाई । 


इसी ताअल्लुक़ से एक और हदीस मुलाहिजा फ़रमाएं हज़रते अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है उनका रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया 

मैं जिस चीज़ से तुमको मना करूँ उससे बचो और जिस चीज़ का हुक्म दूँ उस पर अपनी ताक़त के मुताबिक़ अमल करो।

क्योंकि तुमसे पहली क़ौमों को ज़्यादा सवालात करने और अंबिया की ना फ़रमानी करने की वजह से हलाक कर दिया । ( सही मुस्लिम , सफा  262/2 , सुनने कुबरा , लिल बैहक़ी , सफा  215/1 , तफ़र्सीरे कुरतबी , सफा 262/5 , तफ़सीर इब्ने कसीर , सफा  166/8 , फ़तहुल बारी , सफा . 261 / 13 मुशकिलुल आसार , स . 230/1 ) 


इससे मालूम हुआ कि अल्लाह तआला ने अपने महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को मुकम्मल इख़्तियारात अता फ़रमाए हैं कि जिस चीज़ को चाहें जाइज़ कर दें जिसे चाहें फ़र्ज़ फ़रमा दें और जिसे चाहें वाजिबो सुन्नत क़रार दे दें । 

जिसका चाहें हुक्म दे दें । और जिससे चाहें मना फ़रमा दें यह आपके इख़्तियार की बात है । 

हज़रते अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है उनका बयान है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि बन्दों के आमाल हफ़्ते में दो मरतबा पेश किये जाते हैं तो हर बन्दे की मग़फ़िरत हो जाती है सिवा उस बन्दे के जो अपने किसी से बुज़ो कीना रखता है।

उसके इन दोनों को छोड़े रहो मुसलमान भाई दिया जाता है कि दुश्मनी को ख़त्म कर लें । ( मुस्लिम शरीफ़ 317/2 ) 

उम्मीद है इन तमाम कुरआन की आयतों और हदीस से समझ गये होंगे कि रसूल अल्लाह स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम साहिबे इख्तियार हैं।

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