ilm keya hai | Talib e ilm ka matalab keya hota hai Aaj ham jaanege
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इल्म और उल्मा की फजी़लत ilm aour ulma ki fazilat
Ham yahan kuch fazilat bayan karte hain
TALIB E ILM |
(1) Farman - E - Mustafa Sallallahu Ta'ala Alahi Wasallam Jo Shakhs Talibe Ilm Ke Liye Ghar Se Nikala To Jab Tak Wapas Na Ho Allah Ki Rah Me Hai ( Tirmizi )
(2) ilm Sikhne Ke Liye Safar Karna Buzurgo Ki Sunnat Hai ( Tirmizi )
(3) Talib - E - ilme Deen Ke Kaam Se Razi Ho Kar Uske Liye Firishte Apne Baju Bicha Dete Hain ( Nuzhatul Majalis )
(4) ilm Ki Majalis Me Hazir Hona 1000 Rakat Aur 1000 Mariz Ki Eyadat Aur 1000 Janazo Me Sharik Hone Se Afzal Hai ,
Sahab - E - kiram Ne Arz Kiya , Ya Rasool Allah Sallallahu Ta'ala Alahi Wasallam Aur Quran Padhne Se Bhi To Aap Ne Farmaya , Kya Quran Padhna Bagair ilm Ke Mufid Ho Sakta Hai ( Nuzhatul Majalis )
(5) Ek Ghadi Raat Me Padhna Padhana Sari Raat ibadat se afzal Hai ( Darimi )
(6) Jab Koi Talib - E - Ilm Kisi Gaon mohalla kasba ya basti Me Se Guzarta Hai , To Allah Ta'ala Waha Ke Qabristan Me Se 40 Din Ke Liye Azab - E - Qabr Utha Leta Hai ( Kashful Gumma )
Talib - E - ilm Ke Liye Sab Darinde Dua - E - Magfirat Karte Hai ( Nuzhatul Majalis )
(7) Jis Shakhs Ka ilm Ki Talab Me Inteqal Hua ho Woh Shahid Ka Rutba Pata Hai , Aur ilm Ki Talab Me Jiske Kadam Khaak Alud Hote hain Allah Ta'ala Uske Badan Ko Dozakh Par Haram Kar Deta Hai , Aur Dono Firishte Uske Liye Dua - E - Magfirat Karte Hain ,
Aur Uski Qabr Jannat Ke Bago Me Se Ek Bagh Hoti Hai , Aur Padhosiyo Ki 40 Qabre Daye Aur 40 Qabre Baye Aur Age Piche Ki 40 Qabre Roshan Ho Jati Hai .. ( Nuzhatul Majalis )
(8) Allah ke rasul sallallahu alaihi wasallam ne farmaya ki Jis Shakhs Ke Saath Allah Ta'ala Bhalayi Ka Irada Karta Hai , Usko Deen Ka Faqih / Alim Banata Hai , Aur Mai Taqsim Karta Hu Aur Allah Deta Hai .. ( Bukhari Sharif , Muslim sharif )
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talib e dua meaning in english Your blessings
talib e dua meaning in hindi aap ka aashirwad
talib e dua meaning in Urdu duaon ka talabgar
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talib e ilm meaning in hindi Chatra yani viddyarthi
तालिबे इल्म का हिंदी अनुवाद मतलब अर्थ होता है छात्र ( ज्ञान प्राप्त करने वाला )
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talib e ilm meaning in english student ( the gainer of knowledge )
Talib e ilm ki jama in Urdu,Plural of talib e ilm in Urdu
Talib e ilm ki jama in Urdu TOLBA hota hai
Talib meaning in English
Talib meaning in English ( to like )
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talib e dua meaning duaon ka talabgar
Talib - E- Ilm Ki Fazilat, talib e ilm ke faraiz, talib e ilm ke fazilat
तालिबे इल्मी के जमाने में तालिबे इल्म को कौन कौन सी बातें का ध्यान रखना चाहिए
अल्लाह ने मुझ पर यह करम किया है कि मैं इल्म हासिल कर रहा हूँ। अतः वह कौन से आदाब (शिष्टाचार) हैं जिनसे सुसज्जित होने के लिए आप मुझे सलाह देते हैं?
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
तमाम तारीफें अल्लाह जल्ला मज्दहुल करीम के लिए है
बिला शुब्हा इल्म हासिल करने के कुछ शिष्टाचार (आदाब) हैं जिनसे इल्म हासिल करने वाले को मालूम होना चाहिए। अतः इल्म हासिल करने के हवाले (संबंध) में आपके लिए यह कुछ सलाह और आदाब (शिष्टाचार) हैं, शायद इसके जरिए अल्लाह आपको फायदा (लाभ) पहुँचाए :
सबसे पहले : धैर्य यानी सब्र :
First: Patience
मेरे प्यारे भाई! इल्म हासिल करना बेहतरीन अमल में से एक है। और ऊंचाइयों को कड़ी मेहनत ही से हासिल किया जा सकता है। शायर अबू तम्माम खुद को संबोधित करते हुए कहता है :
शायरी का भावर्थ : मुझे उन ऊंचाइयों को हासिल करने दे जिन्हें हासिल नहीं किया जा सकता, ऊंचाई व बुलन्दी कठिनाई का मेहनत है, इसलिए इसको हासिल करने में मुश्किल ही मुश्किल है और आसान और कमतर चीजों को हासिल करना आसान व सरल है।
तू ऊंचाइयों को बिना किसी मेहनत के आसानी से हासिल करना चाहता है जबकि शहद पाने के लिए मधुमक्खियों का डंक सहना ज़रूरी है। लिहाज़ा ऊंचा स्थान पाने के लिए तकलीफ़ सहना जरूरी है।
और एक दूसरा शायर कहता है :
शायरी का भावर्थ : तू रहमत हासिल करने के लिए धीरे-धीरे चल रहा है, जबकि दूसरे लोग उसके लिए दौड़कर जाने वाले हैं। तथा उन्हों ने भरपूर मेहनत किया है और इस रहमत के पीछे अपनी पूरी ताकत लगा दी है।
उन्होंने रब की रहमत के लिए मुश्किलों का सामना किया है, यहाँ तक कि उनमें से ज्यादातर ने अपना हिम्मत ही खो दिया, लेकिन जिसने भरपूर मेहनत किया और सब्र से काम लिया उसने रब की रहमत को हासिल कर लिया।
रब की रहमत कोई खजूर नहीं है कि जिसे तू खाले, याद रख जब तक कि तू “एलोवेरा” (एक कड़वी दवा) नहीं चखेगा मतलब मुसीबत नहीं उठाएगा, रब की रहमत को नहीं पा सकता है।
इसलिए सब्र रखो और बढ़-चढ़कर सब्र दिखाओ, यदि जिहाद एक घंटे का सब्र है तो तालिबे इल्म (विद्यार्थी) का सब्र जिन्दगी के आखिर तक होता है। अल्लाह तआला ने फरमाया :
يَاأَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اصْبِرُوا وَصَابِرُوا وَرَابِطُوا وَاتَّقُوا اللَّهَ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ(200) [سورة آل عمران]
''ऐ ईमान लाने वालो! सब्र से काम लो और (मुक़ाबिले में) बढ़-चढ़कर सब्र दिखाओ और जुटे तथा डटे रहो और अल्लाह से डरते रहो ताकि तुम सफल हो सको।'' (सूरत आल-इमरान : 200).
दूसरा :काम या कार्य में निष्ठा औऱ ईमानदारी:
Second: Integrity and honesty in work or work
आप अपने काम में निष्ठा एवं ईमानदारी अपनाएं। आपका मकसद या उद्देश्य अल्लाह की प्रसन्नता और आख़िरत (परलोक) का घर हो। तथा आप दिखावा व पाखंड तथा प्रदर्शित होने और साथियों पर अहंकार करने से बचें। क्योंकि अल्लाह के पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया है : (जो शख्स या व्यक्ति विद्वानों (आलिमों) से बहस करने, मूर्खों से झगड़ा करने तथा लोगों का ध्यान अपनी तरफ फेरने के लिए इल्म हासिल करे तो अल्लाह उसे आग (अर्थात नरक) में दाखिल करेगा।) इस हदीस को तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 2654) ने रिवायत किया है और शैख अल्बानी ने “सहीह तिर्मिज़ी” में इसे “हसन” क़रार दिया है।
मतलब सारांश यह है कि : आप अपने ज़ाहिर एवं बातिन (प्रोक्ष और प्रत्यक्ष) को सभी प्रकार के बड़े एवं छूटे पापों से पवित्र और शुद्ध रखें।
तीसरा :इल्म के एतबार से काम करना या ज्ञान के अनुसार कार्य करना :
Third: To act according to knowledge or to act according to knowledge:
आप जान लें कि इल्म (knowledge) के अनुसार कार्य करना इल्म(knowledge) का फल है। अतः जो शख्स इल्म रखने के बावजूद उसके मुताबिक काम न करे, तो वह उन यहूदियों की तरह है जिनकी अल्लाह ने अपनी किताब में बहुत बुरी मिसाल दी है। अल्लाह ने फरमाया :
مَثَلُ الَّذِينَ حُمِّلُوا التَّوْرَاةَ ثُمَّ لَمْ يَحْمِلُوهَا كَمَثَلِ الْحِمَارِ يَحْمِلُ أَسْفَارًا بِئْسَ مَثَلُ الْقَوْمِ الَّذِينَ كَذَّبُوا بِآيَاتِ اللَّهِ وَاللَّهُ لَا يَهْدِي الْقَوْمَ الظَّالِمِينَ(5) سورة الجمعة
''जिन लोगों पर तौरात का भार डाला गया किन्तु उन्होंने उसे न उठाया (अर्थात तदानुसार कर्म नहीं किया) उनकी मिसाल उस गधे की सी है जो पुस्तकें लादे हुए हो, बहुत ही बुरी मिसाल है उन लोगों की जिन्होंने अल्लाह की आयतों को झुठला दिया, अल्लाह अत्याचारियों को सीधा मार्ग नहीं दिखाया करता।'' (सूरतुल-जुमुआ़ : 05).
और जो व्यक्ति बिना ज्ञान के कार्य करे, तो वह ईसाइयों के समान है, और ये वही पथ-भ्रष्ट (भटके हुए) लोग हैं जिनका सूरतुल बक़रह में उल्लेख किया गया है।
रही बात उन पुस्तकों की जिन का आपको अध्ययन करना चाहिए तो उनके संबंध में प्रश्न संख्या : (20191) में उल्लेख किया गया है। कृपया उस प्रश्न को देखें क्योंकि यह महत्वपूर्ण है।
चौथा : सदैव इस बात को ध्यान में रखना कि अल्लाह देख रहा है :
Fourth: Always keep in mind that Allah is watching:
आपको हमेशा जागरूक होना चाहिए कि अल्लाह आपको गुप्त और खुले हर स्थिति में देख रहा है। आप अपने पालनहार की ओर भय और आशा के बीच की स्थिति में अग्रसर हों। क्योंकि ये दोनों एक मुसलमान के लिए पक्षी के दो पंखों के समान हैं। (अतः मुसलमान को हमेशा भय और आशा के बीच संतुलित होना चाहिए)। आप सर्वथा अल्लाह की ओर ध्यान गम्न हों. और आपका दिल उसकी महब्बत से भरा होना चाहिए, आपकी ज़ुबान अल्लाह के ज़िक्र (जाप) से परिपूर्ण हो, और अल्लाह सुब्हानहु व तआला के प्रावधानों तथा हिक्मतों से आनन्दित और हर्षित हो।
तथा अपने सज्दों में अल्लाह से अधिक दुआ करें कि अल्लाह आप पर ज्ञान के द्वार खोल दे और आपको लाभदायक ज्ञान प्रदान करे। क्योंकि यदि आप अल्लाह के साथ सत्यनिष्ठा से काम लेते हैं तो अल्लाह आपको तौफीक़ देगा, आपकी मदद करेगा और आपको अल्लाह वाले विद्वानों में से बनाएगा।
पांचवां : समय का सबसे अच्छा उपयोग करना :
Fifth: Making the best use of time
ऐ बुद्धिमान!.... आप अपनी जवानी तथा अपने जीवन काल को ज्ञान सीखने में लगाएँ, टाल-मटोल और विलंब के छल से धोका न खायें, क्योंकि आपके जीवन का जो समय भी बीत जाता है उसका कोई विकल्प और बदल नहीं है। ध्यान भंग करने वाले संबंधों तथा पूर्ण रूप से ज्ञान प्राप्त करने से रोकने वाली बाधाओं से यथाशक्ति संबंध काट लें, उनसे कोई संबंध न रखें और ज्ञान की प्राप्ति में पूरी कोशिश, प्रयास और गंभीरता से काम लें, क्योंकि निःसंदेह ये लुटेरों के समान हैं। इसीलिए हमारे पूर्वजों ने परिवार से दूर रहने और देश से दूरी बनाने को पसंद किया है; क्योंकि सोच जब बंट जाती है तो व्यक्ति तथ्यों के बोध और सूक्ष्म मुद्दों की अस्पष्टता को समझने में विफल रहता है। इसलिए कि अल्लाह ने किसी व्यक्ति के सीने में दो दिल नहीं रखा है। इसी प्रकार कहा जाता है कि ज्ञान आपको अपना कुछ हिस्सा भी नहीं देगा जब तक कि आप उसे अपना सब कुछ न दे दें।
जब तुम ज्ञान की राह में अपना सब कुछ क़ुर्बान कर दोगे तब कहीं तुम्हें ज्ञान का कुछ हिस्सा प्राप्त होगा।
छठवां : चेतावनी :
Sixth: Warning:
आप ज्ञान प्राप्त करने की शुरूआत में विद्वानों के बीच या सामान्य रूप से लोगों के बीच पाए जाने वाले मतभेदों में व्यस्त होने से बचें। इसलिए कि यह मन को चकरा देगा और बुद्धि को चकित कर देगा। इसी प्रकार भारी भरकम पुस्तकों का अध्ययन करने से सावधान रहें क्योंकि यह आपके समय बर्बाद कर देगा है और आपके मन को अस्त व्यस्त कर देगा। बल्कि आप जिस किताब को पढ़ रहे हैं या जिस विषय का अध्ययन कर रहे हैं उसी को अपना पूरा समय दें यहाँ तक कि आपको उसमें महारत हासिल हो जाए। तथा अकारण एक पुस्तक से (उसका पूर्ण रूप से अध्ययन करने से पूर्व) दूसरी पुस्तक की ओर स्थानान्तरित होने से सावधान रहें; क्योंकि यह ऊब (बोरियत) और विफलता का संकेत है। तथा आप को चाहिए कि आप ज्ञान की प्रत्येक शाखा में से सबसे महत्वपूर्ण फिर महत्वपूर्ण ज्ञान पर ध्यान दें।
सातवाँ : अच्छी तरह से याद करना और सुरक्षित रखना :
Seventh: Remembering well and keeping safe
आप जो कुछ याद करना चाहते हैं उसे अच्छी तरह से सत्यापित करने के इच्छुक बनें; चाहे किसी अध्यापक से हो या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा जो उसमें आपकी मदद कर सकता हो। फिर आप उसे ठीक से याद कर लें और लगातार उसे दोहराएँ तथा प्रत्येक दिन विशिष्ट समय पर उसे दोहराते रहें, ताकि ऐसा न हो कि आप याद की हुई चीज़ भूल जाएं।
आठवाँ : पुस्तकों का अध्ययन करना :
Eighth: Studying books:
जब आप संक्षिप्त पुस्तकों को याद कर लें, और उनकी व्याख्या के साथ उनमें महारत हासिल कर लें और उसमें मौजूद कठिन परिच्छेद तथा महत्वपूर्ण लाभदायक बातों को अच्छी तरह समझ लें, तो इसके बाद विस्तृत पुस्तकों की ओर स्थानान्तरित हों और सदैव उसका अध्ययन करें। तथा अध्ययन के दौरान, ज्ञान की सभी शाखाओं में आप जिन उपयोगी बातों, सूक्ष्म मसायल (मुद्दों), विचित्र बातों, समस्याओं के समाधान और समान चीज़ों के प्रावधानों के बीच अंतर से गुज़रें तो आप उन्हें नोट कर लिया करें। तथा आप कोई लाभदायक बात सुनते हैं या कोई मौलिक नियम (सिद्धांत) समझते हैं तो आप इसी पर निर्भर न रहें, बल्कि उसे नोट करने और उसे याद करने में जल्दी करें।
शिक्षा प्राप्त करने में आपका महत्वाकांक्षा ऊँचा होना चाहिए; अतः अधिक शिक्षा पाने की संभावना के होते हुए थोड़े से ज्ञान पर संतुष्ट न हों, और संदेष्टाओं की विरासत में से थोड़े से हिस्से पर संतोष न करें, जिस उपयोगी बात को प्राप्त करने में आप सक्षम हों उसके सीखने में आप देर न करें और न ही टाल-मटोल तथा विलंब से काम लें क्योंकि देर करना आपदाएं लाने का कारण है। और इसलिए कि यदि आप उसे वर्तमान समय में प्राप्त कर लेते हैं तो आने वाले दूसरे समय में कुछ अन्य ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।
बेरोजगारी के लक्षणों या सत्ता की बाधाओं से पहले, अपने खाली समय, अपनी सक्रियता, अपने स्वास्थ के समय, अपनी किशोरावस्था, अपने दिमाग़ की ताज़गी और अपनी कम व्यस्तता का अधिकतम लाभ उठाएं।
आपके लिए उचित है कि अपनी आवश्यकतानुसार जितना हो सके किताबों को संग्रह करें; क्योंकि ये ज्ञान प्राप्त करने के उपकरण हैं। परंतु (बिना लाभ के) अधिक से अधिक किताबें प्राप्त करने को ज्ञान से अपना हिस्सा न बनाएं तथा किताबें संग्रह करने को समझ से अपना हिस्सा न बनाएं, बल्कि आपको चाहिए कि किताबों से अपनी यथाशक्ति लाभ उठाएँ।
नौवां : साथी चुनना :
Ninth: Choosing a partner:
आप नेक एवं धार्मिक दोस्त चुनने का प्रयास करें, जो ज्ञान की तलाश में व्यस्त हो, अच्छे स्वभाव वाला हो, आपके उद्देश्य को प्राप्त करने में आपकी सहायता कर सकता हो, आपके पहले से प्राप्त किए हुए लाभों को परिपूर्ण करने में आपका सहयोग कर सकता हो, आपको अधिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करे, आपकी बोरियत और उकताहट को दूर कर सके, जो अपनी धार्मिकता, ईमानदारी तथा शिष्टाचार में विश्वसनीय हो, तथा वह अल्लाह के प्रति शुभचिंतक हो,
तथा बुरे साथी से सावधान रहें; क्योंकि बुरा दोस्त अपनी बुराई से आपको प्रभावित कर सकता है, इसलिए कि प्रकृति और स्वभाव एक दूसरे से प्रभावित होती हैं और लोग पंक्षियों के झुंड़ के समान हैं जो एक दूसरे की समानता व छवि अपनाने की प्रकृति के साथ पैदा किए गए हैं। अतः इस तरह के लोगों के साथ मिश्रण करने से सावधान रहें, क्योंकि यह एक बीमारी है, और उपचार से बचाव ज़्यादा आसान है।
दसवां और अंतिम : अध्यापक के साथ अच्छा व्यवहार करना :
Tenth and final: Behaving well with the teacher:
चूंकि आरंभतः ज्ञान पुस्तकों से नहीं लिया जाता है, बल्कि एक गुरू (अध्यापक) का होना अनिवार्य है जिसके पास आप ज्ञान प्राप्ति की कुंजियों (प्रमुख सूत्रों) में महारत हासिल कर सकें, ताकि आप त्रुटियों से सुरक्षित रहें। इसलिए आप के लिए अनिवार्य है कि आप उनके साथ अदब (शिष्टता) से पेश आएँ। क्योंकि यह सफलता, कामयाबी, ज्ञान प्राप्ति ताथा तौफीक़ का शीर्षक है। इसलिए आपके गुरू आपकी ओर से आदर, सम्मान, विनम्रता के योग्य हैं। अतः आप अपने अध्यापक के साथ बैठने और उनसे बात-चीत करने में शिष्टाचार के सर्वोच्च मानक का प्रदर्शन करें, अच्छे ढंग से प्रश्न पूछें, ध्यान से उनकी बातें सुनें, उनके सामने पुस्तक का अध्ययन करते समय शिष्टाचार का पालन करें, घमंड व अहंकार और उनके
सामने बहस करने से उपेक्षा करें, उनके साथ वार्तालाप करने में पहल न करें या उनके आगे न चलें या उनके पास बहुत अधिक न बोलें, या उनकी बात-चीत और शिक्षण के दौरान अपनी बात के द्वारा उन्हें बाधित न करें या उन्हें उत्तर देने के लिए आग्रह न करें, उनसे बहुत ज़्यादा सवाल करने से बचें विशेष रूप से अन्य लोगों के सामने; क्योंकि यह आपके लिए घमंड और उनके लिए ऊब का कारण होगा। उन्हें सीधे उनके नाम या उपनाम द्वारा न बुलाएं बल्कि उन्हें “मेरे गुरू जी” या “ऐ हमारे गुरू जी” कह कर बुलाएं।
यदि आपको लगता है कि गुरू से ग़लती या भूल हो रही है फिर भी आप उन्हें अपनी नज़रों से न गिराएं अर्थात उनके सम्मान में कमी न आने दें क्योंकि ऐसा करना आपके उनके ज्ञान से वंचित होने का कारण बनेगा। और कौन है जो त्रुति से पूरी तरह सुरक्षित है?” देखिए : शैख़ बक्र अबू ज़ैद की पुस्तक “हिल्यतो तालिबिल-इल्म”।
हम अल्लाह से दुआ करते हैं कि वह हमें और आपको तौफीक़ तथा स्थिरता प्रदान करे, और हमें वह दिन दिखाए जब आप मुसलमानों के विद्वानों में से एक विद्वान, अल्लाह के धर्म के विषय में एक स्रोत और अल्लाह का डर रखने वालों के इमामों में से एक इमाम होंगे। आमीन (अल्लाह स्वीकार फरमाए) . . आमीन (अल्लाह स्वीकार फरमाए) . . जल्द ही मिलने की आशा करते हैं। वस्सलाम
ilm ki fazilat in english
What things should be taken care of by Talibe Ilmi in the time of Talibe Ilmi
Allah has done this act on me that I am gaining knowledge. So what are the etiquettes that you advise me to be equipped with?
All praise and praise deserves only Allah Ta'ala.
All praises are to Allah Jalla Majdahul Kareem
Bila shubha There are certain etiquettes (adaab) of acquiring knowledge that one should know. So here are some advice and adab (courtesy) for you in regards to gaining knowledge, perhaps through this Allah may benefit you:
First of all: Patience means patience:
My dear brother! Gaining knowledge is one of the best practices. And heights can be achieved only through hard work. The poet Abu Tammam while addressing himself says:
Meaning of Shayari : Let me achieve those heights which cannot be achieved, height and height are hard work of difficulty, so it is difficult to achieve it and easy and lesser things are easier and easier to achieve.
You want to achieve heights easily without any effort whereas to get honey it is necessary to bear the sting of a bee. Therefore, it is necessary to suffer in order to attain a high position.
And another poet says:
Meaning of poetry: You are walking slowly to gain mercy, while others are about to run for it. And they have worked hard and put all their strength behind this mercy.
They have faced difficulties for the mercy of the Lord, even most of them lost their courage, but the one who worked hard and was patient, achieved the Lord's mercy.
The Lord's mercy is not a date that you eat, remember that unless you taste "aloe vera" (a bitter medicine), that means you will not take trouble, you cannot get the Lord's mercy.
So be patient and show your patience, if jihad is for an hour, then the patience of a student is till the end of life. Allah Ta'ala said:
al quran
"O you who believe! Be patient and show patience (in comparison) with increased patience and persevere and persevere and fear Allah so that you may be successful.” (Surat al-Imran: 200).
Second: Integrity and honesty in work or work:
You have integrity and honesty in your work. May your aim or purpose be the pleasure of Allah and the house of the Hereafter. And you should avoid showing off and hypocrisy and appearing and being arrogant on your companions. Because the Prophet of Allah, Hazrat Muhammad (peace and blessings of Allaah be upon him) said: (Whoever acquires knowledge to argue with scholars, quarrel with fools and divert people's attention, then Allah will fire him (that is, hell). ).) This hadith is narrated by Tirmizi (Hadith No.: 2654) and Shaykh Albani has called it "Hasan" in "Sahih Tirmidhi".
Meaning the summary is this: You keep your jahir and batin (proksh and pratyak) pure and pure from all kinds of major and untouched sins.
Third: To act according to knowledge or to act according to knowledge:
You should know that acting according to knowledge is the fruit of knowledge. Therefore, a person who does not act according to his knowledge, he is like those Jews whom Allah has set a very bad example in his book. Allah said:
al quran
"The example of those on whom the burden of the Taurat was imposed but did not carry it (that is, did not act accordingly) is like a donkey carrying books, a very bad example is those who disbelieve the verses of Allah." , Allah does not show the oppressors the straight path.” (Suratul-Jumuah: 05).
And the person who acts without knowledge, he is like a Christian, and these are the same misguided people who are mentioned in Surat-ul-Baqarah.
Fourth: Always keep in mind that Allah is watching:
You should always be aware that Allah is watching you secretly and openly in every situation. You move towards your Lord in a state between fear and hope. Because these two are like two wings of a bird to a Muslim. (Therefore a Muslim must always balance between fear and hope). May you be completely devoted to Allah. And your heart should be filled with His love, your tongue be filled with zikr (jap) of Allah, and be rejoiced and rejoiced by the provisions and wisdom of Allah Subhanahu and Ta'ala.
And pray more to Allah in your prostration that Allah may open the doors of knowledge on you and give you beneficial knowledge. Because if you act faithfully with Allah, then Allah will give you taufiq, will help you and make you among the scholars of Allah.
Fifth: Making the best use of time:
O wise one!... devote your youth and your life time to learning knowledge, do not be deceived by the deceit of procrastination and procrastination, for there is no substitute for whatever time passes in your life. Cut as far away as possible from distracting relationships and obstacles that prevent you from attaining full knowledge, do not have any relation with them and work your best, effort and seriousness in the pursuit of knowledge, because they are undoubtedly like robbers. That is why our ancestors have preferred to stay away from the family and distance from the country; Because when thinking is divided, one fails to understand the facts and the ambiguity of subtle issues. Because Allah has not placed two hearts in a person's chest. Similarly it is said that knowledge will never give you a part of yourself unless you give it your all.
When you will sacrifice everything in the path of knowledge, then somewhere you will get some part of knowledge.
Sixth: Warning:
You avoid getting busy with the differences found between scholars or among people in general in the beginning of acquiring knowledge. Because it will baffle the mind and astonish the intellect. Similarly beware of studying heavy books as it will waste your time and disturb your mind. Rather, give your full time to the book you are reading or the subject you are studying till you get mastery in it. And beware of shifting from one book to another without reason (before studying it thoroughly); Because it is a sign of boredom and failure. And you should focus on the most important then important knowledge from each branch of knowledge.
Seventh: Remembering well and keeping safe:
Be willing to thoroughly verify what you want to remember; Whether from a teacher or someone else who can help you with that. Then you memorize it properly and repeat it continuously and keep repeating it at specific times every day, so that it does not happen that you forget the thing that you have memorized.
Eighth: Studying books:
When you have memorized the short books, and mastered them with their explanation and understood the difficult passages and important useful things in them well, then move to the detailed books and study them always. And in the course of study, note down the useful things, subtle issues (issues), strange things, solutions to problems and differences between provisions of similar things in all branches of knowledge. And if you hear some useful thing or understand any fundamental rule (principle), then you should not depend on it, but be quick to note it down and remember it.
You must have high ambitions in pursuing education; So don't be content with a little knowledge, in spite of the possibility of getting more education, and don't be content with a small portion of the message's legacy, don't delay in learning what you're capable of achieving, and don't Only act procrastinating and late because delay is the reason for bringing disasters. And so that if you acquire it in the present time, you can acquire some other knowledge in the coming time.
Make the most of your free time, your activism, your health, your teen years, your freshness of mind and your low engagement, before the symptoms of unemployment or power constraints.
It is advisable for you to collect as many books as you need; Because they are tools for acquiring knowledge. But don't make your share of knowledge to get more and more books (without profit) and don't make collecting books your share of understanding, rather you should take advantage of books as much as you can.
Ninth: Choosing a Partner
Try to choose a virtuous and religious friend, who is busy in the quest for knowledge, is of good nature, can help you in achieving your objective, can help you in fulfilling your already achieved gains. May he encourage you to gain more knowledge, remove your boredom and boredom, who is faithful in his righteousness, honesty and manners, and is a well-wisher of Allah,
And beware of the bad partner; Because a bad friend can affect you with his evil, because nature and nature are influenced by each other and people are like a flock of birds, born with the nature to embody each other's likeness and image. So beware of mixing with people like this, as it is a disease, and prevention is easier than cure.
Tenth and final: Behaving well with the teacher:
Since initially knowledge is not derived from books, it is imperative to have a guru (teacher) with whom you can master the keys to knowledge (major sutras), so that you are safe from errors. Therefore it is imperative for you to treat them with courtesy. Because it is the title of success, success, attainment of knowledge and taufiq. That's why your Guru deserves respect, respect, humility from your side. Therefore, you should demonstrate the highest standard of etiquette in sitting and interacting with your teacher, ask questions well, listen carefully to them, observe etiquette while studying the book in front of them, avoid arrogance and arrogance and their
Avoid arguing in front of them, don't take the initiative or walk in front of them or talk too much to them, or interrupt them with your talk during their talk and teaching, or ask them to answer. Don't insist, avoid asking them too many questions especially in front of other people; Because it will be a cause of pride for you and boredom for them. Do not call him directly by his name or surname, but by saying "My Guruji" or "O our Guruji".
Even if you feel that Guru is making a mistake or mistake, still you do not bring him down from your sight, that is, do not let his respect diminish because doing so will cause you to deprive him of his knowledge. Who else is completely safe from error?" See: "Hilyato Talibil-ilm" by Shaykh Bakr Abu Zaid.
We pray to Allah to grant us and you taufiq and stability, and show us the day when you will be one of the scholars of the Muslims, a source on the religion of Allah and one of the imams of those who fear Allah. There will be an imam. Amen (May Allah accept). . Amen (May Allah accept). . Hope to meet you soon. salute
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