importance of hijab in islam |हिजाब पर कुरान और इस्लाम क्या कहता है, इसकी शुरुआत कैसे हुई? | quran me hijab ka zikr | hijab in quran and hadith| इस्लाम में औरत का पर्दा
हिजाब कपडे का टुकडा नहीं बल्के ये औरत के किरदार का एहाता करता है
"हिजाब" यानी पर्दा अपने अंदर बहुत गहरे मायनी रखता है।
ये एक पूरा सिस्टम है जो पूरे मुआशरे को बाहया बनाने में अहम किरदार अदा करता है। इससे बेशर्मी और गुनाहों पर पाबंदी लगता है।
ये औरत के लिए पुर सुकून और बा वक़ार ज़िंदगी गुज़ारने की फितरी तदबीर और यक़ीनी ज़मानत है।
इसलिए अल्लाह तआला ने मर्द व औरत दोनों को पर्दे का हुक्म दिया है। कुरआन मजीद में फरमाया गया।
"ऐ नबी ! मोमिन मर्दो से फरमा दें के वो अपनी निगाहें नीचे रखा करें, और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त किया करें, ये उनके लिए बडी पाकीज़ा बात है। बेशक अल्लाह उन कामों से अच्छी तरह ख़बरदार है जो ये कर रहे हैं।" (सूरे अन्नूर)
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया
"अगर अचानक किसी गैर महरम औरत पर नज़र पड जाए तो नज़र फेर लो।" और यही हुक्म कुछ इज़ाफे के साथ औरतों के लिए भी आया है।
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पर्दे का मक़्सद -
इस्लाम मुआशरे यानी समाज को पाकीज़ा बनाना चाहता है।
इसी लिए अल्लाह तआला ने मर्द और औरत के कुदरती रुज्हानात को अपनी जगह बाक़ी रखते हुए कुछ हुदूद और आदाब तय किए हैं।
मिसाल के तौर पर हुस्न व जमाल, सजना संवरना सिर्फ शौहर के लिए हो।
औरतें ज़माना ए जाहिलियत की तरह बनाव सिंघार दिखाती ना फिरें वगैरह।
सूरे अहज़ाब में अल्लाह तआला फरमाता है
"ऐ नबी! अपनी बीवीयों और बेटियों और अहले ईमान की औरतों से कह दो के अपने ऊपर चादरों के पल्लू लटका लिया करें ये ज़्यादा मुनासिब तरीक़ा है ताके वो पहचान ली जाएं और ना सताई जाएं।"
क्या पर्दा तरक़्क़ी की राह में रूकावट है?
ऐसा समझना ना समझी की वजह से है। हिजाब अक़्ल को नहीं ढांपता।
दुनिया में लाखों बा हिजाब औरतें मुख्तलिफ मैदानों में नुमाया कार करदगी का मुज़ाहेरा कर रही हैं।
ख़वातीन शरई हद में रह कर ना सिर्फ ये के तालीम हासिल कर सकती हैं।
- बल्के तिजारत (कारोबार) भी कर सकती हैं।
- वो डॉक्टर भी बन सकती हैं।
- साइन्टिस्ट और इंजिनिअर भी।
- जज भी बन सकती हैं।
- और खिलाडी भी।
हमारे समाज में ऐसी मिसालें भी मौजूद हैं जिन से साबित होता है के हिजाब तरक़्क़ी की राह में रूकावट नहीं है।
बे पर्दगी की बुनियादी वजह
इन्सान की फितरत में तारीफ, ख़ुद की नुमाइश, ख़्वाहिशत और सिन्फे मुखालिफ के लिए कशिश है।
बेपर्दगी से शैतान इन्सान की इस फितरत से फायदा उठाता है और उसे तारीफ और खुद की नुमाइश के लिए उक्साता है।
इसके बरअक्स हया ईमान का हिस्सा है।
इस्लाम हया को बाक़ी रखते हुए मआशी और समाजी ज़रूरतों को फितरत के तक़ाज़ों के मुताबिक़ पूरा करने के उसूल व ज़वाबित देता है।
अल्लाह तआला का इरशाद है।
ऐ औलादे आदम! हम ने तुम पर लिबास नाज़िल किया है ताके तुम्हारे जिस्म के क़ाबिले शर्म हिस्सों को ढाँकने और तुम्हारे लिए जिस्म की हिफाज़त और ज़ीनत का ज़रीया भी होगा और बेहतरीन लिबास तक़्वा है।" (सूरे आराफ)
औरत चूंके घर की बुनियाद है, इन्सानी तहज़ीब व तमद्दन का अटूट हिस्सा है। घर की हिफाज़त और बच्चों की परवरिश उसी के कंधों पर है।
एक अच्छे किरदार व अख़लाक़ वाली मां ही बच्चों की अच्छी परवरिश कर सकती है। इसलिए ज़रूरी है के औरत की इज़्ज़त, अज़मत और पाकदामनी महफूज़ रहे।
औरत नफ्सियाती तौर पर हस्सास होती है। वो अपनी बेइज़्ज़ती हरगिज़ बर्दाश्त नहीं कर सकती ।
बेपर्दगी की शकल में उसकी तरफ उठने वाली बुरी नज़रें और उसके बारे में कहने वाले नाज़ेबा अल्फाज़ उसकी सेहत और जज़्बात को ज़ख़्मी करने का सबब बनते हैं,
जिससे उसे अपनी ज़िम्मेदारियों को निभाने में मुश्किल पेश आती है। लिहाज़ा औरत का हिजाब में रहना ज़रूरी है।
मिन जानिब - आलिम साहब दादर गांव
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