नमाज़ पढ़ने का तरीका namaz padhne ka tarika hindi attahiyat in hindi दरूदे इब्राहिम दुआ ए मसुरा
सवाल:- नमाज़ पढ़ने का तरीका क्या है।
जवाब:- नमाज़ पढ़ने का तरीका यह है कि बा वजू किबला रू
दोनों पांव के पंजों में चार उंगल का फासिला करके खड़ा हो और दोनों हाथ कान तक ले जाए कि अंगूठे कान की लौ से छू जाएं ।
इस हाल में कि हथेलियां किबला रुख़ हों फिर नियत करके अल्लाहु अकबर कहता हुआ हाथ नीचे लाकर नाफ़ के नीचे बांध ले और
सना पढ़ें।
सुबहा न क अल्लाहुम्म व बिहम्दि क व तबा र कसमु क व तआला जगु क व लाइलाह गैरु क
फिर तऔउज़ यानी अऊजु विल्लाहि मिनश्शैता निरजीम
फिर तसमियह यानी बिस्मिल्लाहिर्रहमानिरहीम पढ़ कर
अलहम्दु पढ़ें आमीन आहिस्ता कहे
उसके बाद कोई सूरह या तीन आयतें पढ़ें या एक आयत जो कि छोटी तीन आयतों के बराबर हो।
तयम्मुम करने का तरीका हिन्दी में पढ़ें।
अब अल्लाहु अकबर कहता हुआ रुकू में जाए और घुटनों को हाथ से पकड़ ले इस तरह कि हथेलियां घुटने पर हों।
namaz padhne ka tarika hindi |
उंगलियां खूब फैली हों।
पीठ बिछी हो और
सर पीठ के बराबर हो ऊँचा नीचा न हो
और कम से कम तीन बार "सुबहान रब्बियल अज़ीम"कहे फिर "समि अल्लाहु लिमन हमिदह" कहता हुआ सीधा खड़ा हो जाए और अकेले नमाज़ पढ़ता हो तो उसके बाद “रब्बना लकल हम्दु" कहे फिर अल्लाहु अकबर कहता हुआ सजदा में जाए।
इस तरह कि पहले घुटने ज़मीन पर रखे फिर हाथ फिर दोनों हाथों के बीच में नाक फिर पेशानी रखे इस तरह कि पेशानी और नाक की हड्डी ज़मीन पर जमाए और बाजुओं को करवटों और पेट को रानों और रानों को पिंडलियों से जुदा रखे।
और दोनों पांव की सब उंगलियों के पेट जमे हो ।
और हथेलियां बिछी हों और उंगलियां क़िबला को हों और कम से कम तीन बार "सुबहान रब्बियल अअला" कहे फिर सर उठाए फिर हाथ।
और दाहिना कदम खड़ा करके उसकी उंगलियां किबला रुख करे और बांया कदम बिछा कर उस पर खूब सीधा बैठ जाए और हथेलियां बिछा कर रानों पर घुटनों के पास रखे।
फिर अल्लाहु अकबर कहता हुआ सजदा में जाए ओर पहले की तरह सजदा करके फिर सर उठाए फिर हाथ को घुटनों पर रख कर पंजों के बल खड़ा हो जाए
अब सिर्फ बिस्मिल्ला हिर्रहमानिर्रहीम पढ़ कर किराअत शुरू करे फिर पहले की तरह रुकू सजदा करके बायां कदम बिछा कर बैठ जाए और
तशहहुद पढ़ें
तशहहुद पढ़ते हुए जब कलिमए "ला" के क़ीब पहुंचे तो दाहिने हाथ की बीच की उंगली और अंगूठे का हल्का बनाए और छंगुलिया और उसके पास वाली को हथेली से मिलादे और लफ़्ज़े "ला” पर कलिमह की उंगली उठाए मगर उसको हिलाए नहीं।
और कलिमए "इल्ला" पर गिरा दे और सब उंगलियां फौरन सीधी कर ले अब अगर दो से ज़्यादा रक्त पढ़नी है तो उठ खड़ा हो
और इसी तरह पढ़े मगर फ़र्ज़ की उन रातों में अलहम्दु के साथ सूरत मिलाना ज़रूरी नहीं अब पिछला कादा (बैठक) जिसके बाद नमाज़ खत्म करेगा उस में तशहहुद के बाद दुरुद शरीफ़ पढ़े ।
दरूद ए इब्राहीम
"अल्लाहुम्म सल्लिअला सैय्यिदिना मुहम्मदिं० वअला आलि सैय्यिदिना मुहम्मदिन कमा सल्लै त अला सव्यिदिना इब्राहीम वज़ला आलि सय्यिदिना इब्राहीम इन्न क हमीदुम्मजीद ।
अल्लाहुम्म बारिक अला सय्यिदिना मुहम्मदिंव्वअला आलि सय्यिदिना मुहम्मदिन कमा बारक त अआ सय्यिदिना इब्राहीम व अला आलि सय्यिदिना इब्राहीम' इन्न क हमीदुम्मजीद ।
दुआ ए मसुरा कैसे पढ़ा जाता है?
फिर दुआए मासूरा पढ़ें
“अल्लाहुम्मग फ़िली वलिवालिदय्य वलिमन तवाल दवलिजमोअिल मूमिनी 'न वलमूमिनाति वल मुसलमीन वल मुसलमातिल अहयाइ मिनहुम वल अम्वाति इन्न क मुजीबुद्दअवाति बिरह मति क या अरहमर्राहिमीन ।"
या कोई और दूसरी दुआए मासूरा पढ़े। इसके बाद दाहिने कंधे की तरफ मुंह करके अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह कहे फिर बाए तरफ़ । अब नमाज़ पूरी हो गयी ।
नमाज़ के बाद की दुआ
“अल्लाहुम्म अन्तस्सलाम वमिन कस्सलाम वइलै क यराजिउ स्सलाम फहैयिना रब्बना विस्सलाम वअदखिल ना दारस्सलाम व तबारक त रब्ना वतआलै त या जलजलालि वल इकराम ।
औरतों के लिए नमाज़ के मख़सूस मसाइल
औरतें तकबीरे तहरीमा के वक़्त कानों तक हाथ न उठायें बल्कि मोढे तक उठायें हाथ नाफ़ के नीचे न बांधें बल्कि बाईं हथेली सीना पर छाती के नीचे रख कर उसकी पीठ पर दाहिनी हथेली रखें।
रुकू में ज़्यादा न झुकें बल्कि थोड़ा झुकें यानी सिर्फ इस कदर कि हाथ घुटनों तक पहुंच जाए,
पीठ सीधी न करें और घुटनों पर ज़ोर न दें बल्कि महज़ हाथ रख दें और हाथों की उंगलियां मिली हुई रखें और पांव कुछ झुका रखें मर्दों की तरह खूब सीधा न कर दें।
औरतें सिमट कर सजदा करें यानी बाजू करवटों से मिला दें। और पेट रान से और रान पिंडलियों से पिंडलियां ज़मीन से ।
और कादा (बैठक) में बांए कदम पर न बैठें बल्कि दोनों पांव दाहिनी जानिव निकाल दें और वांए सुरीन (पुट्ठा) पर बैठें।
औरतें भी खड़ी होकर नमाज़ पढ़ें। फर्ज़ और वाजिब जितनी नमाज़ें बगैर उज्र बैठकर पढ़ चुकी हैं उनकी कज़ा करें और तौबा करें।
औरत मर्द की इमामत हरगिज़ नहीं कर सकती और सिर्फ औरतें जमाअत करें यह मकरूह तहरीमी और नाजायज़ है।
औरतों पर जुमा और ईंदैन की नमाज़ वाजिब नहीं।
नमाज़ की शर्तें
सवाल:- नमाज़ की शर्तें कितनी हैं।.
जवाब:- नमाज़ की शर्तें छः (6) हैं जिनके बगैर नमाज़ सिरे से होती ही नहीं।
(1) तहारत यानी नमाज़ी के बदन, कपड़े और उस जगह का पाक होना कि जिस पर नमाज़ पढ़े !
(2) सत्रे औरत यानी मर्द को नाफ़ से घुटनों तक छुपाना और औरत को सिवाये चेहरा, हथेली और कदम के पूरा बदन छुपाना । औरत अगर इतना बारीक दुपट्टा ओढ़ कर नमाज़ पढ़े कि जिस से बाल की स्याही चमके तो नमाज़ न होगी जब कि उस पर कोई ऐसी चीज़ न ओढ़े कि जिस से बाल का रंग छुप जाये (आलमगीरी)
(3) इस्तिक्बाले किबला यानी नमाज़ में किबला की तरफ़ मुंह करना।
अगर किबला की सम्त में शुब्हा हो तो किसी से दर्याफ्त करले अगर कोई दूसरा मौजूद न हो तो गौरो फिक्र के बाद जिधर दिल जमे उसी तरफ़ मुंह करके नमाज़ पढ़ले ।
फिर अगर बादे नमाज़ मालूम हुआ कि किब्लादूसरी सम्त था तो कोई हर्ज नहीं नमाज़ हो गई।
(4) वक़्त लिहाज़ा वक़्त से पहले नमाज़ पढ़ी तो न हुई जिसका बयान तफ्सील के साथ पहले गुज़र चुका है।
(5) नीयत यानी दिल के पक्के इरादा के साथ नमाज़ पढ़ना ज़रूरी है और ज़बान से नियत के अलफाज़ कह लेना मुस्तहब है।
इस में अरबी की कुछ तख़सीस नहीं उर्दू वगैरा में भी हो सकती है। और यूं कहे नियत की मैंने नियत करता हूं न कहे।
(6) तकबीरे तहरीमा यानी नमाज़ के शुरू में अल्लाहु अकबर कहना शर्त है।
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