bacho ki parvarish kaise kare in islam

औलाद की परवरिश स्लामी तालीमात की रौशनी में bacho ki parvarish kaise kare

अल्लाह तआला ने वालिदैन (parents) को बच्चे की क पैदाइश का जरीया बनाया है, अल्लाह है तआला फरमाता है 

"और वही (अल्लाह) व है जिसने तुम को एक जान से पैदा फरमाया और उसी में से उसका जोड़ा बनाया ताकि वो इससे सुकून हासिल करे।" (सूरह आअराफ) 

  • बच्चे की पैदाइश के बाद सबसे पहला व इस्लामी हक़ ये है के उसका अच्छा सा व इस्लामी नाम रखें। 
  • ऐसा नाम तजवीज करें व जिसके मायने भी अच्छे हों। 
  • जब बच्चा इतना प बडा हो जाए के कुछ बोलने या समझने लगे तो दीनी तालीम का एहतमाम करें। 
  • उसके साथ ही दुनियांवी तालीम की तरफ भी तवज्जोह करें। 
  • बच्चो को शुरू से ही अदब, व तमीज़ और तहज़ीब सिखाएं, 
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  • बडों की इज्जत, छोटों पर शफक़त, सलाम में पहल, भाई बहन, रिश्तेदारों से हुस्ने सुलूक, पड़ोसियों के आदाब वगैरह वगैरह, इन चीज़ों के बारे में इस्लामी तालीम की रौशनी में आगाह करते रहें। 

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  • बच्चों को अहादीसे करीमा, बुजुर्गो की सवानेह हयात और दीगर इस्लामी बातें बताते रहें। 
  • जब बच्चा सात साल (7 years) का हो जाए तो हदीस शरीफ के मुताबिक़ उसको नमाज़ पढ़ने की तवज्जो दें, जब दस साल ( 10 years) की उम्र को पहुंच जाए और फिर नमाज़ की पाबंदी ना करे तो उसे तंबीह करें।
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  •  शादी की उम्र को पहुंचे तो मुनासिब रिश्ता तलाश करके उसकी शादी कराएं।


याद रखिए ! वही औलाद फरमांबरदार होती है जिसके वालिदैन (parents) शुरू ही से अपनी औलाद की तरयिबत में कोई कमी नहीं करती, 

  1. इस्लामी मिज़ाज का दर्स और इस्लामी रंग में अपने बच्चों की तरबियत करते हैं। 
  2. इसके उल्टा औलाद वही बिगड़ती है जिसके वालदैन परवरिश और तरबियत इस्लामी तरीक़े पर नहीं करते।
  3.  एक बात ये भी है के बच्चे बड़ों की नकल करते हैं।
  4.  मिसाल के तौर पर जिनके वालिदैन नमाज़ के आदी हैं, बच्चे भी उन्हें देख कर नमाज़ की तरफ चल पडते हैं और जिनके वालिदैन बेनमाज़ हैं,
  5.  वो अगर अपनी औलाद को नमाज के लिए सख्ती भी करें, तब भी उनकी बात असरदार साबित नहीं होती। 
  6. अब ये बडों पर है के अपनी औलाद को क्या बनाना पसंद करेंगे ?

 हज़रत अबूहुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं के रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया "जब इन्सान (मर) फौत हो जाता है तो उसके आमाल रूक जाते हैं,

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 लेकिन तीन अमल नहीं रूकते, सदक़े - जारिया, नफा देने वाला इल्म और नेक औलाद जो उसके लिए दुआ करती रहती है।" (मुस्लिम शरीफ) 

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सदक़ा ए जारिया में जिन तीन चीज़ों का ज़िक्र है, उनमें नेक औलाद भी शामिल है। 

लिहाज़ा अपनी औलाद को ऐसी तालीम व तरबियत दीजिए जो ना सिर्फ ये के दुनियावी जिंदगी में आपके काम आए।

  बल्कि इन्तेक़ाल के बाद भी आपके लिए दुआए खैर करते रहें और आखिरत का फायदा देने वाले साबित हों।

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