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क्या शबे कद्र या शबे बरात की मुबारक रातों में नवाफ़िल की जगह कज़़ा नमाज़ अदा करें?
जिन हज़रात के जि़म्मे में फर्ज़ व वाजिब नमाज़ें क़ज़ा हैं, और वह शबे क़दर, शबे बरात की मुबारक रातों में नफि़ल नमाज़ पढ़ते हैंं!
उनके लिए बेहतर यह है कि वह इन नवाफ़िल की जगह क़ज़ा नमाजों को ही अदा करें ... क्योंकि उनका नफि़ल नमाज़ पढ़ना मरदूद हो जाता है -
जैसा कि आला ह़ज़़रत इमाम अह़मद रज़़ा ख़ान रह़मतुल्लाहि तआ़ला अलैह फ़तावा रज़़विया शरीफ़ में फ़रमाते हैं
जो फ़र्ज़़ नमाज़ छोड़कर नफ़्ल में मशग़ूल हुआ उसकी सख़्त बुराई आई है, और उसका वह नेक काम मरदूद क़रार पाया।
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इसी त़रह़ अलमलफ़ूज़ ह़िस़्स़ा अव्वल स़फ़्हा 62 में है
जब तक फ़र्ज़़ ज़िम्मा में बाक़ी रहता है कोई नफ़िल क़ुबूल नहीं किया जाता।
हां अगर आप नफि़ल नमाज़ पढ़ने की जगह क़ज़़ा नमाज़ों को अदा करेंगे तो अल्लाह रब्बुल इ़ज़्ज़त के फ़ज़्ल व करम से उम्मीद है कि वह नफि़ल नमाज़ों के पढ़ने का भी सवाब अ़त़ा फ़रमाएगा।
जैसा कि ख़लीले मिल्लत हज़रत अल्लामा मुफ़्ती मुह़म्मद ख़लील ख़ान क़ादिरी बरकाती रह़मतुल्लाहि तआ़ला अ़लैह फ़रमाते हैं
जो शख़्स़ नफि़ल नमाज़ और नफि़ल रोज़े की जगह क़ज़ाए उ़मरी फ़र्ज़़ व वाजिब अदा करें।
वह लव लगाए रखें कि मौला तआ़ला अपने करमे ख़ास से क़ज़़ा नमाज़ों के ज़िम्न में उन नवाफि़ल का सवाब भी अपने ख़ज़ानए ग़ैब से अ़त़ा फ़रमा दे - जिनके अवक़ात में यह क़ज़़ा नमाज़ें पढ़ी गईं - वल्लाहु ज़ुल फदलिल अज़ीम
📖 सुन्नी बहिश्ती ज़ेवर 📖
नफ़्ल नमाज़ों का बयान, स़फा 240
क़ज़़ा नमाज़ अदा करने का तरीका
जो नमाज़ें क़ज़ा हैं उनकी स़िर्फ़ फ़र्ज़़ और वाजिब नमाज़ अदा करनी है, इस त़रह़ कि फजर की क़ज़़ा इ़शा के आख़िरी दो रकात नफ़्ल की जगह पढ़ लें।
जोहर की क़ज़़ा (4) चार रकात जोहर के बाद में पढ़ी जाने वाली आख़िरी दो रकात नफ़्ल की जगह पढ़ लें, इसी तरह अ़स़र की क़ज़़ा अ़स़र की (4) चार रकात सुन्नते ग़ैर मुअक्किदह की जगह पढ़ लें।
मग़रिब की क़ज़़ा मग़रिब की (2) दो रकात नफ़्ल की जगह पढ़ लें।
और इ़शा की क़ज़़ा इ़शा की (4) चार रकात पहले पढ़ी जाने वाली सुन्नते ग़ैर मुअक्किदह की जगह और वित्र की क़ज़़ा वित्र के पहले पढ़े जाने वाली नफ़्ल की जगह पढ़ लें,
इस त़रह़ का मअ़्मूल बना लेने से आसानी से रोज़ाना (5) पांच फ़र्ज़़ नमाज़ों के साथ (5) पांच क़ज़़ा नमाज़ें भी अदा हो जाया करेंगी -
क़ज़़ा नमाज़ अदा करने का आसान त़रीक़ा
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नियत इस तरह करें : निय्यत की मैं ने (2) दो रकात फ़ज्र की फ़र्ज़़ सबसे पहली क़ज़़ा नमाज़ अदा करने की जो मेरे ज़िम्मे थी वास्ते अल्लाह तआ़ला के मुँह मेरा कअ़्बः शरीफ़ की त़रफ़ अल्लाहु अकबर
इसी त़रह़ फ़र्ज़़ नमाज़ की जगह पर फ़र्ज़़ वाजिब की जगह वाजिब और दो रकात हो तो दो रकअ़्त चार रकअ़्त हो तो चार रकात कह कर निय्यत करें ...
पहली तख़फ़ीफ़ (आसानी)
जिस पर बकसरत नमाज़ें क़ज़़ा हैं वह आसानी के लिए यूं भी अदा करें तो जाइज़ है कि हर रुकूअ़् और सज्दा में (3-3) तीन-तीन बार सुब हा़ न रब्बि यल अ़ज़ीम और सुब ह़ा न रब्बि यल अअ़्ला की जगह स़िर्फ़ एक एक बार कहें।
मगर यह हमेशा याद रखना चाहिए कि जब रुकूअ़् में पहुंच जाएँ उस वक़्त सुब ह़ा न का "सीन" शुरूअ़् करें और जब अज़ीम का "मीम" कह चुके उस वक़्त रुकूअ़् से सर उठाए इसी त़रह़ सजदा में भी करें।
दूसरी तख़फ़ीफ़ (आसानी)
यह है कि फ़र्ज़़ों की तीसरी और चौथी रकअ़्त में अल ह़म्दु की जगह फ़क़त़ सुब्ह़ा नल्लाह कह कर रुकूअ़् कर लें, मगर वित्र की तीनों रकअ़्तों में अलह़म्दु शरीफ़ और सूरत ज़़रूर पढ़ें ...
तीसरी तख़फ़ीफ़ (आसानी)
यह है कि क़अ़्दए अख़ीरा में तशह्हुद यअ़्नी अ त्त ह़िय्यातु पढ़ने के बाद दुरूदे इब्राहीमी और दुआ़ ए मासूरा की जगह स़िर्फ़ अल्ला हु म्म स़ल्लि अ़ला मुह़म्मदिंव व आलिह कह कर सलाम फेर दें ...
चौथी तख़फ़ीफ़ (आसानी)
यह है कि वित्र की तीसरी रकअ़्त में दुआ़ ए क़ुनूत की जगह अल्ला हु अकबर कह कर फक़त एक बार या तीन बार रब्बिग़ फ़िरली कहें ...
[ अह़कामे शरीअ़त जिल्द 2 स़फा 140
फ़तावा रज़़विया स़फ़्ह़ः 157 ]
यह क़ज़़ा नमाज़ों के अदा करने
का निहायत आसान त़रीक़ा है !
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