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अज़ान और नमाज़ के संबंध में ज्ञान न होने के कारण बड़ी भ्रान्तियाँ ( भ्रम ) पाई जाती हैं ।
यह बात उस समय और अधिक दुखद हो जाती है जब बिना सही जानकारी के इस्लाम की इस पवित्र एवं कल्याणकारी उपासना के संबंध में निसंकोच अनुचित टीका - टिप्पणी तक कर दी जाती है।
और उसके बारे में सही जानकारी प्राप्त करने का कष्ट तक नहीं किया जाता । इस नीति को अपनाने वाले समाज के अनेक वर्गों के लोग हैं ।
शिक्षित लोग भी हैं और जन - सामान्य भी । बहुत से लोग अज्ञानतावश यह समझते हैं कि अज्ञान में अकबर बादशाह को पुकारा जाता है ।
कबीरदास जैसे महापुरुष तक ने भी अपनी अनभिज्ञता के कारण अज़ान के संबंध में कह डाला :
कंकर पत्थर जोर के मस्जिद लिया बनाय ।
तापे मुल्ला बांग दे , क्या बहरा हुआ ख़ुदाय ।
आज बहुत - सी समस्याओं का मूल कारण एक - दूसरे के बारे में सही जानकारी का न होना है ।
यह अत्यन्त दुखद स्थिति है कि जानकारी हासिल करने के इतने अधिक संसाधन उपलब्ध होते हुए भी हम सभ्य एवं शिक्षित कहे जाने वाले लोग परस्पर एक - दूसरे के संबंध में अंधकार में रहते हैं ।
अनभिज्ञता और द्वेष के कारण ऐसा भी होता है कि मनुष्य ऐसी बात का दुश्मन हो जाता है जो वास्तव में उसके कल्याण की है ।
ऐसा ही कुछ इस्लाम और उसकी शिक्षाओं के साथ है और निरन्तर हो रहा है ।
नमाज़ का महत्व इस्लाम में
namaz padhne ka mahatva
- हमें और सम्पूर्ण जगत को सर्वशक्तिमान ईश्वर ने पैदा किया है ।
- जीवन - यापन के लिए हमें जितनी चीज़ों की आवश्यकता है उन सभी को उसी ने जुटाया है ।
- जीवन और मृत्यु उसी के हाथ में हैं । वही पालनहार है ।
- जीविका उसी के दिए मिलती है ।
- विनती और प्रार्थनाओं का सुनने वाला और मुसीबत में मदद करने वाला वही है ।
- वास्तव में उसके सिवा कोई हमें लाभ या हानि पहुँचाने की शक्ति नहीं रखता ।
- दुनिया में जो कुछ है उसका वास्तविक स्वामी ईश्वर ही है ।
- वास्तविक शासक भी वही है ।
- दुनिया का यह कारखाना उसी के चलाए चल रहा है ।
- उस सर्वशक्तिमान ईश्वर का कोई साझीदार नहीं ,
- न उसके अस्तित्व में ,
- न उसके गुणों में और न उसके अधिकारों में मृत्यु के पश्चात हमारे जीवन का हिसाब भी वही लेगा
- और कर्म के अनुसार बदला देगा ।
- हम मनुष्यों के मार्गदर्शन और पथप्रदर्शन के लिए ईश्वर ने अपने सन्देष्टा और पैग़म्बर भेजे ।
- इन पैग़म्बरों ने ईश्वर के आदेशानुसार मानवों को जीवन यापन का ढंग बताया ।
इन सभी पैग़म्बरों की शिक्षा एक ही थी , अर्थात ईश्वर का आज्ञा पालन और समर्पण ।
हमारे पालनहार प्रभु ने हज़रत मुहम्मद ( सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) को अपना अन्तिम सन्देष्टा बनाकर भेजा
और उनके द्वारा कुरआन रूपी ग्रंथ प्रदान करके हमारे पूर्ण मार्गदर्शन और पथ - प्रदर्शन की व्यवस्था की । इसी मार्गदर्शन का नाम इस्लाम है ।
' इस्लाम ' नाम किसी व्यक्ति विशेष , किसी देश या किसी अन्य वस्तु के नाम पर नहीं , बल्कि विशेष गुणों के कारण रखा गया है । इस्लाम का शाब्दिक अर्थ होता है आज्ञा पालन और समर्पण ।
इस्लाम वास्तव में नाम है स्वयं को ईश्वर के प्रति समर्पित होने और उसके आदेशों का स्वेच्छा पूर्वक पालन का।
इस्लाम की मूल शिक्षा यह है कि
- बन्दगी और आज्ञापालन केवल ईश्वर ही का किया जाए ।
- ईश्वर ही को अपना उपास्य बनाया जाए।
- उसी की पूजा और उपासना की जाए ।
- किसी अन्य के आगे अपना सिर न झुकाया जाए ।
- और सम्पूर्ण जीवन प्रेमपूर्वक ईश्वर की दासता और उसके आज्ञापालन में व्यतीत हो ।
- इन बातों को सदैव याद रखने , ईश्वर की दासता का कर्तव्य निभाने ।
- उसके उपकारों पर आभार व्यक्त करने।
- ईश्वर के समक्ष अपनी दासता का प्रदर्शन करने तथा ईश्वर की महानता और सत्ता को स्वीकार करने की अभिव्यक्ति के लिए ' इस्लाम ' ने जो उपासना - पद्धति निर्धारित की है उसमें सबसे महत्वपूर्ण उपासना नमाज़ है ।
नमाज़ का महत्व और उसकी आवश्यकता का उल्लेख ईश्वरीय ग्रन्थ कुरआन में और पैग़म्बर मुहम्मद ( सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) के वचनों में बहुत ज़्यादा हुआ है ।
दिन में पाँच (5) बार नमाज़ पढ़नी इस्लाम के प्रत्येक अनुयायी ( स्त्री और पुरुष ) के लिए अनिवार्य है ।
इस्लाम के किसी अनुयायी के लिए नमाज़ का छोड़ना अधर्म ठहराया गया है । सच्ची बात तो यह है कि नमाज़ के बिना इस्लाम का अनुयायी होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती ।
नमाज़ अगर सोच - समझकर और पूरे होश के साथ पढ़ी जाए तो वह न केवल यह कि मनुष्य के आध्यात्मिक जीवन को विकसित करती है।
- उसे ईश्वर का सामीप्य प्रदान करती और उसका प्रिय उपासक बनाती है
- बल्कि यह नमाज़ मनुष्य के सांसारिक जीवन को बुराइयों और दुर्गुणों से मुक्त करने और उसे एक उत्तरदायी और सज्जन पुरुष बनाने की भी अपने अन्दर शक्ति रखती है ।
सच तो यह है कि नमाज़ मानव को इस योग्य बना देती है कि वह अपना पूरा जीवन अपने स्रष्टा और पालनहार ईश्वर के आदेशों और निर्देशों के अनुसार सहज रूप से व्यतीत कर सके ।
यह तथ्य नमाज़ के पूरे स्वरूप से अभिलक्षित होता है । क़ुरआन में नमाज़ का उद्देश्य बताते हुए ईश्वर ने कहा है :
निसंदेह नमाज़ अश्लील कर्मों और बुरी बातों से रोक देती है। ( कुरआन , 29 : 45 )
जो लोग यूं देखने में तो नमाज़ पढ़ते हैं किन्तु नमाज़ की आत्मा और उसकी अपेक्षाओं से अनभिज्ञ और बेपरवाह हैं उनके सम्बन्ध में क़ुरआन कहता है :
तबाही है ऐसे नमाज़ियों के लिए जो अपनी नमाज़ों ( की अपेक्षाओं ) से बेपरवाह हैं । ऐसे लोग मात्र दिखावा करनेवाले हैं । और उनका हाल यह है कि ( ज़रूरतमंदों को ) छोटी - छोटी चीजें तक देने से इंकार कर देते हैं । " ( कुरआन , 107 : 47 )
पैग़म्बर मुहम्मद ( सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) का कथन है :
जिसकी नमाज़ ने उसे अश्लील और बुरे कर्मों से न रोका , उससे तो वह ईश्वर से और अधिक दूर हो गया ।
- इस्लाम को अपेक्षित यह है कि मानव जीवन नमाज़ के अनुकूल हो ।
- नमाज़ जीवन का सारांश औरं मानव जीवन नमाज़ की व्याख्या सिद्ध हो ।
- इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आवश्यक है कि नमाज़ समझ - बूझकर पढ़ी जाए ।
- नमाज़ पढ़ते समय मनुष्य को यह ध्यान रहे कि वह अपने पालनहार प्रभु के समक्ष खड़ा है और उसी से वह विनती प्रार्थना कर रहा है।
- यह ध्यान तो अवश्य मन में रहना चाहिए कि ईश्वर उसे देख रहा है और उसकी बातें सुन रहा है ।
नमाज़ से पूरा लाभ उठाने के लिए यह भी आवश्यक है कि।
- मनुष्य अपना आत्मनिरीक्षण भी करता रहे । नमाज़ में उसने अपने प्रभु को जो भी वचन दिए हैं उनको पूरा करने का भरसक प्रयत्न करे ।
- नमाज़ पढ़ने के लिए मन की शुद्धता के अतिरिक्त मनुष्य के शरीर और वस्त्र और स्थान का स्वच्छ होना भी अनिवार्य है ।
- अज़ान और नमाज़ में जो कुछ पढ़ा जाता है मूल सहित उसका हिन्दी अनुवाद अगले पृष्ठों पर प्रस्तुत किया जा रहा है ।
अज़ान दिन में पाँच बार प्रत्येक नमाज़ से पूर्व अज़ान दी जाती है ।
कुछ लोग अपनी अनभिज्ञता के कारण यह समझते हैं कि अज़ान में चीख - चीखकर ईश्वर को पुकारा जाता है ।
यह विचार सर्वथा ग़लत और अज्ञानता पर आधारित है ।
परिभाषा में अज़ान का अर्थ है लोगों को नमाज़ के लिए बुलाना । एक व्यक्ति , जिसे ' मुअज़्ज़िन ' ( अजान देने वाला ) कहा जाता है , बलन्द आवाज़ से ईश्वर का वास्ता देकर लोगों को पुकारता है ।
azan ka tarjuma | azan ka arth
अज़ान के बोल
अजान देने वाला अजान में निम्न बोल बोलता है :
- अल्लाहु अकबर । अल्लाहु अकबर ।
ईश्वर ही महान है । ईश्वर ही महान है ।
- अश्हदु अल्ला इला - हा इल्लल्लाह , अश्हदु अल्ला इला - हा इल्लल्लाह
मैं साक्षी हूँ कि ईश्वर के सिवा कोई पूज्य - प्रभु नहीं है । मैं साक्षी हूँ कि ईश्वर के सिवा कोई पूज्य - प्रभु नहीं है ।
- अश्हदु अन - ना मुहम्मदर्रसूलुल्लाह । अश्हदु अन - ना मुहम्मदर्रसूलुल्लाह ।
मैं साक्षी हूँ कि मुहम्मद ईश्वर के सन्देष्टा हैं । मैं साक्षी हूँ कि मुहम्मद ईश्वर के सन्देष्टा हैं ।
- हय - या अलस्सलाह हय - या अलस्सलाह ।
आओ नमाज़ की ओर आओ नमाज़ की ओर ।
- हय - या अलल फ़लाह हय - या अलल फलाह ।
आओ सफलता एवं कल्याण की ओर । आओ सफलता एवं कल्याण की ओर ।
- अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर ।
ईश्वर ही महान है । ईश्वर ही महान है ।
- ला इलाहा इल्लल्लाह
ईश्वर के सिवा कोई पूज्य - प्रभु नहीं है ।
नोट :- सूर्योदय से पूर्व की नमाज़ के लिए जो अज़ान दी जाती है उसमें ये बोल शामिल किए जाते हैं :
- अस्सलातु खैरुम्मिनन्नौम , अस्सलातु खैरुम्मिनन्नौम
नमाज़ नींद से उत्तम है । नमाज़ नींद से उत्तम है ।
यह है अज़ान और उसके मंगलकारी बोल । इसके द्वारा उन समस्त लोगों को नमाज़ के लिए पुकारा जाता है।
जो एक ईश्वर में आस्था रखते हैं और मुहम्मद ( सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) को ईश्वर का पैग़म्बर और सन्देष्टा मानते हैं ।
नमाज़ में क्या पढ़ते हैं ?
नमाज़ के लिए खड़े होने के बाद सबसे पहले दिल में यह इरादा किया जाता है कि हम दुनिया से कटकर ईश्वर के सामने नमाज़ के लिए खड़े हैं ।
फिर नमाज़ शुरू की जाती है । नमाज़ में जो कुछ पढ़ा जाता है , उसके अरबी बोल और उनका अनुवाद प्रस्तुत किया जा रहा है :
खड़े होकर पढ़ते हैं :
अल्लाहु अकबर ईश्वर ही महान है ।
sana dua in namaz hindi | sana in namaz
सुब्हान कल्ला हुम - मा वबि हमदि - का व तबार कस्मु - का व तआला जददु - का वला इला - हा ग़ैइरुका ।
अर्थ :- परमेश्वर , तू महिमावान है । प्रशंसा तेरे ही लिए है । तेरा नाम शुभ और मंगलकारी है । तेरी शान सर्वोच्च है । तेरे सिवा कोई पूज्य- प्रभु नहीं है ।
tauz tasmia | tauz and tasmia meaning
अऊजु बिल्लाहि मिनश्शैतानिर्रजीम
अर्थ :- मैं धुतकारे हुए शैतान से बचने के लिए ईश्वर की शरण में आता हूँ ।
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
अर्थ :- शुरू कृपा शील दयावान ईश्वर के नाम से ।
surah fatiha | surah fatiha in hindi
अलहम्दु लिल्लाहि रब्बिल आ - लमीन , अर्रहमानिर्रहीम , मालिकि यौमिद्दीन इय्या - का - नअबुदु व इय्या - का - नस्तईन । इहदिनस्सिरातल मुस्तकीम सिरातल्लज़ी - न अन अम - ता अलैइहिम , ग़ैइरिल मग़दूबि अलैहिम वलद्दवाल्लीन ।
अर्थ :- स्तुति एवं प्रशंसा ईश्वर ही के लिए है , जो सारे जहानों का रब ( स्वामी , पालनहार एवं शासक ) है । अत्यन्त कृपाशील बड़ा ही दयावान है । फ़ैसले के दिन ( प्रलय दिवस ) का स्वामी वही है ।
( हे प्रभु ! ) हम तेरी ही उपासना करते हैं और तुझी से सहायता चाहते हैं । हमें संमार्ग दिखा । उन लोगों का मार्ग जिनपर तेरी अनुकम्पा रही , जिनपर तेरा प्रकोप नहीं हुआ और जो पथभ्रष्ट नहीं हुए । आमीन ऐ प्रभु ऐसा ही हो ! हमारी प्रार्थना सुन ले ।
इसके बाद क़ुरआन का कुछ भाग पढ़ते हैं । यहाँ कुरआन के कुछे अंश प्रस्तुत हैं :
surah asr in hindi
बिसमिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम वल अस्री , इन्नल इन्सान लफ़ी खुस्र इल्लल लज़ीन आ - मनू व अमिलुस्सालिहात व तवासौ बिलहक्कि व तवासौ बिस्सब्र ।
अर्थ:- ईश्वर के नाम से जो अत्यन्त कृपाशील बड़ा ही दयावान है । ज़माना साक्षी है कि मनुष्य वास्तव में बड़े घाटे में है । सिवाय उन लोगों के जो आस्थावान हैं और भले और अच्छे कर्म करते हैं । एक दूसरे को सत्य का उपदेश देते हैं और धैर्य का उपदेश देते हैं ।
surah ikhlas | surah ikhlas in hindi
बिसमिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम कुल हुवल्लाहु अहद । अल्लाहुस्समद । लम यलिद व - लम यूलद । व - लम यकुल्लहु कुफ़ुवन अहद ।
अर्थ:- ईश्वर के नाम से जो अत्यन्त कृपाशील बड़ा ही दयावान है ।
कहो वह परमेश्वर है अकेला ( उस जैसा कोई अन्य नहीं ) परमेश्वर किसी का मोहताज नहीं । ( और सब उसके मोहताज हैं । ) उसके कोई संतान नहीं और न वह किसी की संतान है । उसके समकक्ष कोई नहीं ।
surah falaq | surah falaq in hindi
बिसमिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम । कुल अऊजु बि रब्बिल फ़लक़ , मिन शर्रि मा खलक़ व मिन शर्रि ग़ासिकिन इज़ा वक़ब , वमिन शर्रिन्नफ़्फ़ा - साति फ़िल उक़द , वमिन शर्रि हासिदिन इज़ा हसद ।
अर्थ :- ईश्वर के नाम से जो अत्यन्त कृपा शील बड़ा ही दयावान है । कहो , मैं शरण लेता हूँ सुबह के रब की , हर उस वस्तु की बुराई से बचने के लिए , जो उसने पैदा की ।
और रात के अंधकार की बुराई से बचने के लिए , जबकि वह छा जाए , और गांठों में फूकने वालों ( फूकने वालियों ) की बुराई से और ईर्ष्या करनेवाले की बुराई से बचने के लिए , जब वह ईष्या करें ।
surah nas | surah naas in hindi
बिसमिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम । कुल अऊजु बि रब्बिन्नास , मलिकिन्नास , इलाहिन्नास मिन शर्रिल वस्वासिल खन्नास , अल्लज़ी युवस्विसु फ़ी सुदूरिन्नास , मिनल जिन्नति वन्नास ।
अर्थ:- ईश्वर के नाम से जो अत्यन्त कृपाशील बड़ा ही दयावान है । कहो , मैं शरण लेता हूँ मनुष्यों के प्रभु की , मनुष्यों के सम्राट की , मनुष्यों के उपास्य की ,
उस वसवसे ( भ्रष्ट विचार ) डालने वाले की बुराई से बचने के लिए जो बार बार पलटकर आता है , जो मनुष्यों के मन में वसवसे ( भ्रष्ट विचार ) डालता है । चाहे वह जिन्न हो या मनुष्य ।
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यह पढ़ने के बाद अल्लाहु अकबर ईश्वर ही महान है ।
कहते हुए ईश्वर के समक्ष घुटनों पर हाथ रखकर झुक जाते हैं और निम्न शब्दों में प्रभु का गुणगान करते हैं :
ruku ki dua | ruku ki dua in hindi
सुब्हान रब्बियल अज़ीम सुब्हान रब्बियल अज़ीम सुब्हा - न रब्बियल अज़ीम ।
मेरा महान प्रभु बड़ा महिमावान है । मेरा महान प्रभु बड़ा महिमावान है । मेरा महान प्रभु बड़ा महिमावान है ।
ruku se uthne ki dua | ruku se uthne ki dua in hindi
फिर खड़े होते हुए यह पढ़ते हैं : समिअल्लाहु लिमन हमिदह
ईश्वर ने उसकी सुन ली जिसने उसका गुणगान एवं स्तुति की ।
ruku aur sajde ke darmiyan ki dua
फिर खड़े - खड़े प्रभु का इन शब्दों में गुणगान एवं स्तुति करते हैं : रब्बना वलकल हम्द । हे हमारे प्रभु ! तेरे ही लिए प्रशंसा है ।
अब अल्लाहु अकबर ईश्वर ही महान है । कहते हुए अपने सम्पूर्ण अस्तित्व को प्रभु के समक्ष डाल देते हैं और अपना माथा धरती पर टेक कर ईश्वर का गुणगान इन शब्दों में करते हैं :
sajde ki dua | sajda ki dua
सुब्हान रब्बियल आला । सुब्हान रब्बियल आला सुब्हान रब्बियल आला ।
अर्थ :- मेरा सर्वोच्च प्रभु बड़ा महिमावान है । मेरा सर्वोच्च प्रभु बड़ा महिमावान है । मेरा सर्वोच्च प्रभु बड़ा महिमावान है ।
इसके बाद अल्लाहु अकबर ईश्वर ही महान है । कहते हुए धरती से माथा उठाते हैं और बैठकर प्रभु से प्रार्थना करते हैं :
dono sajdon ke darmiyan ki dua
अल्लाहुम्मग़ फ़िरली वर हमनी वहदिनी व आफ़िनी वर्जुकनी ।
अर्थ:- हे परमेश्वर , मुझे क्षमा कर और मोक्ष प्रदान कर , मुझ पर दया कर , मुझे संमार्ग पर रख , मुझे शान्ति और सुरक्षा जीविका प्रदान कर दे और मुझे अपने पालनहार प्रभु , वास्तविक शासक और स्वामी से यह विनती और प्रार्थना करने के पश्चात अल्लाहु अकबर ईश्वर ही महान है ।
कहते हुए उस वास्तविक सम्राट के आगे फिर माथा टेक देते हैं और उसका गुणगान करते हैं :
sajde ka dua | sajda ka dua
सुब्हा - न रब्बियल आअला । सुब्हान रब्बियल आअला । रब्बियल आअला ।
अर्थ:- मेरा सर्वोच्च प्रभु बड़ा महिमावान है । मेरा सर्वोच्च प्रभु बड़ा महिमावान है । मेरा सर्वोच्च प्रभु बड़ा महिमावान है ।
इसके पश्चात अल्लाहु अकबर ईश्वर ही महान है । कहते हुए बैठ जाते हैं और फिर यह पढ़ते हैं :
attahiyat ki dua | attahiyat namaz ki dua | attahiyat lillahi wa salawatu
अत्तहिय्यातु लिल्लाहि वस्स ल वातु वत्तय्यिबातु अस्सलामु अलैइका अय्युहन नबीयु व रहमतुल्लाहि व बरकातुह - अस्सलामु अलैइना व अला इबादिल्लाहिस्सालिहीन , अश्हदु अल्ला इलाहा इल्लल्लाहु व अश्हदु अनना मुहम्मदन अब्दुहू व रसूलुह ।
अर्थ:- समस्त मौखिक उपासनाएँ , समस्त शारीरिक उपासनाएँ और समस्त आर्थिक उपासनाएँ ईश्वर के लिए हैं । हे सन्देष्टा , आपपर सुख - शान्ति हो और ईश्वर की कृपा और उसकी अनुकम्पा हो ।
सुख शान्ति हो हमपर और ईश्वर के समस्त सदाचारी भक्तों पर । मैं साक्षी हूँ कि ईश्वर के सिवा कोई पूज्य - प्रभु नहीं है और मैं साक्षी हूँ कि मुहम्मद उसके ( भक्त ) और सन्देष्टा हैं ।
darood sharif | durood e ibrahim | durood e ibrahim in hindi translation
अल्लाहुम - म सल्लि अला मुहम्मदिंव व अला आलि मुहम्मदिन कमा सल्लैइता अला इब्राहीम व अला आलि इब्राहीम इन्नका हमीदुम मजीद ।
अर्थ :- हे परमेश्वर , दया और अनुकम्पा कर मुहम्मद पर और उनकी संतान और अनुयाइयों पर , जिस प्रकार तूने दया और अनुकम्पा की इबराहीम पर और इबराहीम की संतान और अनुयाइयों पर । निसंदेह तू सर्वथा प्रशंसनीय और महान है ।
namaz me padhne ka darood
अल्लाहुम्मा बारिक अला मुहम्मदिंव व अला आलि मुहम्मदिन कमा बारकता अला इब्राहीमा व अला आलि इब्राहीमा इन्नका हमीदुम मजीद ।
अर्थ :- हे परमेश्वर , बरकत कर मुहम्मद स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम पर और उनकी सन्तान और अनुयायियों पर , जिस प्रकार तूने बरकत की इबराहीम पर और इबराहीम की सन्तान और अनुयायियों पर निसन्देह तू प्रशंसनीय और महान है ।
इसके बाद क़ुरआन और हदीस में उल्लिखित दुआओं में से कोई दुआ माँगते हैं । जैसे :
duae masura | dua e masura in namaz
रब्बना आतिना फ़िद दुनियां ह - स - न - तवं व फ़िल आखिरति ह - स - न - तवं व क़िना अज़ाबन्नार ।
अर्थ :- हे हमारे प्रभु , हमें दुनिया में भी भलाई दे और परलोक में भी भलाई दे , और हमें नरक की यातना से बचा ।
इसके तत्पश्चात दाईं और बाईं ओर मुँह करके कहते हैं ।
salam pherne ki dua | salam pherne waqt kya padhe
अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह । अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह ।
अर्थ:- सुख शान्ति हो तुम पर और ईश्वर की कृपा ।
सुख शान्ति हो तुम पर और ईश्वर की कृपा ।
इस प्रकार नमाज़ पूर्ण हो जाती है । सूर्यास्त के लगभग डेढ़ घंटे बाद दिन भर की अन्तिम नमाज़ ( इशा की नमाज़ ) में सोने से पूर्व अपने स्रष्टा , पालनहार अन्तर्यामी परमेश्वर के सामने गिड़ गिड़ाकर यह प्रतिज्ञा भी करते हैं :
duae qunoot | duae qunoot in hindi
अल्लाहुम - म इन्ना नस्तईनुका , व नस्तग़ाफ़िरुका , व नुअमिनु बिका वना - त - वक्कलु अलैइका , व नुस्नी अलैइकल खैर , व नशकुरु - का , वला नक़फ़ुरु - का , नखलउ व नतरुकु मैय्यफ़ जुरु - का , अल्लाहुम - म इय्या - का नअबुदु वला कनुसल्ली व नस्जदु ,इलैइका नसआ व नहफ़िदु , व नरजू रहमतका व नखशा अज़ाब का , इन्ना अज़ाबका बिल कुफ़्फ़ारि मुलहिक़ ।
अर्थ :- परमेश्वर , हम तुझी से सहायता चाहते हैं । तुझी से क्षमा और मोक्ष माँगते हैं । तुझमें आस्था रखते हैं । तुझपर ही भरोसा करते हैं । भलाई के साथ तेरा ही गुणगान करते हैं । तेरा आभार प्रकट करते हैं । तेरी अवज्ञा नहीं करते और जो तेरी अवज्ञा करता है उसका संग हम छोड़ देते हैं और उससे अलग हो जाते हैं ।
हे परमेश्वर , हम तेरी ही उपासना करते हैं । तेरे ही लिए नमाज़ पढ़ते हैं । तेरे समक्ष ही माथा टेकते हैं । हम तेरी ही ओर लपकते हैं और तेरी ही आज्ञा पूरी करते हैं । हम तेरी अनुकम्पा की आशा रखते हैं । हम तेरी यातना से डरते हैं निस्सन्देह तेरी यातना उन लोगों को मिलकर रहेगी जो तेरी बात नहीं मानते हैं ।
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