Farz wajib mubah haram makruh sunnat Mustahab

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शरीअत के मसायल बयान करने व समझने के लिए कुछ ख़ास अल्फाज़ मुक़र्रर हैं जिन की जानकारी रखना बेहद ज़रूरी है ।

 जो लोग इसका मतलब नहीं समझते , वह इन लफ़्ज़ों का मतलब कुछ का कुछ समझ लेते हैं । 

इसी ज़रूरत के तहत हम यहां कुछ लफ़्ज़ों के बारे में जानकारी देने की कोशिश कर रहे हैं।

फ़र्ज़ 

farz kise kahate hain

इस्लाम में फ़र्ज़ किसे कहते हैं?

शरीअत में कुछ चीजें फ़र्ज़ हैं । फ़र्ज़ उसे कहते है जो कुरआन व हदीस से साबित हो ।

 ऐसे काम का करना ज़रूरी है और बिना किसी मजबूरी में उसे छोड़ने वाला फासिक और जहन्नमी है और उसका इन्कार करने वाला काफिर है । 

जैसे नमाज़ , रोज़ा , वगैरा इबादतें ।

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यह फ़र्ज़ हैं न पढ़ने वाले फासिक हैं । इसी लिए बेनमाजी़ की गवाही मक़बूल नहीं । 

farz e ain and farz e kifaya in hindi 

फ़र्ज़ दो तरह के हैं ( 1 ) फ़र्ज़े ऐन ( 2 ) फर्ज़े किफाया । 

farz e ain meaning in hindi

फ़र्ज़े ऐन वह काम है जिसका करना हर समझदार , बालिग़ मुसलमान पर लाज़िम है ।

 जैसे पांच वक़्त की नमाज़ , रमजान के रोज़े वगैरा । 

farz e kifaya meaning in hindi

फ़र्ज़े किफाया वह काम है जो फ़र्ज़ तो है , लेकिन सब को करना ज़रूरी नहीं बल्कि कुछ लोगों के कर लेने से सब की तरफ़ से अदा हो जाएगा , लेकिन कोई न करे तो सारे लोग गुनहगार होंगे ।

 जैसे नमाज़े जनाज़ा । 

जिन लोगों को ख़बर मिली , उन में से अगर कुछ लोगों ने भी मैय्यत की नमाज़े जनाज़ा अदा कर ली तो काफ़ी है । सब का फ़र्ज़ अदा हो गया । 

और अगर किसी ने नहीं पढ़ी तो जिन - जिन को ख़बर लगी थी , सभी - गुनाहगार हुए ।

वाजिब 

wajib kise kahate hain

वाजिब किसे कहते हैं?

शरीअत का वह हुक्म जो शरीअत की किसी दलील से साबित हो । उसका करना ज़रूरी है और बिना किसी ' मजबूरी के उसे छोड़ने वाला फ़ासिक् , गुनहगार और जहन्नम के अज़ाब का हक़दार है ।

लेकिन उसका इन्कार करने वाला काफ़िर नहीं बल्कि ऐसे आदमी को गुमराह , बद मज़हब कहा जाएगा । 

जैसे वित्र की नमाज़ , कुर्बानी , फ़ितरा वगैरा जैसे नेक व सवाब के काम । 

sunnat e muakkadah and ghair muakkadah difference

सुन्नते मुवक्किदा 

sunnat e muakkadah

सुन्नते मुवक्किदा किसे कहते हैं?

सुन्नते मुवक्किदा वो काम हैं जिन्हें हमारे प्यारे आका ने हमेशा किया हो , हां कभी कभार छोड़ दिया हो ताकि लोग उसे फर्ज़ न समझ बैठें । 

ऐसे कामों को अदा करने का बहुत बड़ा सवाब है और कभी कभार छोड़ देने से अल्लाह व रसूल नाराज़ होते हैं । 

और जिसने उसे हमेशा छोड़ देने की आदत ही बना ली हो तो वह जहन्नम की सज़ा का हक़दार होगा । 

जैसे फ़ज्र की दो सुन्नत , ज़ोहर में फ़र्ज़ से पहले 4 रकात सुन्नत और फ़र्ज़ के बाद दो रकात सुन्नत , मग़रिब में फ़र्ज़ के बाद दो रकात सुन्नत और इशा की नमाज़ में फर्ज़ के बाद दो रकात सुन्नत । 

इस तरह पांच नमाज़ों में कुल 12 रकातें सुन्नते मुवक्किदा हैं जिन्हें पढ़ना ज़रूरी है । 


सुन्नते गैर मुवक्किदा 

sunnat e ghair muakkadah list 

सुन्नते गैर मुवक्किदा किसे कहते हैं?

वह काम हैं जिन्हें सरकार ने किया हो और बिना किसी मज्बूरी के कभी - कभी छोड़ भी दिया हो इसे अदा करने वाला सवाब पाएगा । लेकिन अदा न करने वाला गुनहगार नहीं होगा । 

जैसे- अस्र में फ़र्ज़ से पहले 4 रकात सुन्नत । इसी तरह इशा के फर्ज़ के पहले 4 रकात सुन्नत । 

यह सब सुन्नते गैर मुवक्क्दिा हैं । इसे सुन्नते जाएदा भी कहा जाता है । 


मुस्तहब 

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वह काम जो शरीअत में पसन्द हो लेकिन उसे न करना बुरा भी न समझा जाता हो । चाहे उसे अल्लाह के रसूल ने किया हो या न किया हो । 

हदीसों में उसका बयान न हो लेकिन अल्लाह के नेक बन्दों ने किया हो । ऐसे काम मुस्तहब कहलाते हैं जिसे करने वाला सवाब का हक़दार होगा । लेकिन न करने पर कोई गुनाह नहीं होगा । 

जैसे क़िब्ला की तरफ चेहरा करके वज़ू करना , खुत्बा में खुल्फाए राशेदीन का ज़िक्र करना , मीलाद शरीफ़ की महफ़िलें सजाना , बुजुर्गों के बताए वज़ीफे पढ़ना वगैरा । 


मुबाह 

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वह काम जिसका करना और न करना दोनों बराबर हो । जिस के करने में न तो कोई सवाब और न करने में कोई गुनाह नहीं जैसे अच्छे खाने खाना गुनाह नहीं जैसे कपड़े पहनना । इसे जायज़ भी कहते हैं । 


हराम 

Haram meaning in Islam in Hindi

वह काम या चीज़ जो शरीअत की यक़ीनी दलील से साबित हो उसे छोड़ना , न करना ज़रूरी है । 

इसे छोड़ देने पर सवाब भी मिलेगा और जान बूझ कर एक बार भी वह काम करने वाला फासिक , जहन्नमी और गुनाहे कबीरा का मुजरिम और उसका इन्कार करने वाला काफ़िर है । 

जिस तरह फ़र्ज़ का करना ज़रूरी है उसी तरह हराम को न करना ज़रूरी है । 

makruh meaning in islam

मकरुहे तहरीमी 

makruh tahrimi meaning in hindi

वह काम , तरीका जो शरीअत की किसी दलील से साबित हो उसका छोड़ना लाज़िम और सवाब का काम है और उसे करने वाला गुनाहगार है लेकिन इसका गुनाह हराम से कम है , मगर बार - बार करने की आदत बना लेना गुनाहे कबीरा है । 

जिस तरह वाजिब को करना ज़रूरी , उसी तरह मुकरूहे तहरीमी को न करना ज़रूरी है । 

जिस काम के लिए बताया जाए कि यह मकरूहे तहरीमी है तो समझ लेना चाहिए कि वह काम नहीं करना है । 

जैसे हलाल जानवरों की ओझड़ी खाना , कपड़ों में लिपट कर नमाज़ पढ़ना । 


मकरुहे तन्ज़ीही 

makruh tanzihi meaning in hindi

वह काम जो शरीअत में पसन्द नहीं लेकिन करने वाले पर अज़ाब नहीं होगा । 

जैसे रूकू - सज्दे में तीन से कम बार तस्बीह पढ़ना वगैरह।

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