nikah ka bayan in hindi

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निकाह का बयान 

आला हज़रत इमाम रजा खाँ फाजले बरेलवी रदि अल्लाहु तआला अन्हु इरशाद फरमाते हैं 

  कुछ लोगों का ख्याल है कि निकाह मोहर्रम के महीने में नहीं करना चाहिए ये ख़्याल  ग़लत है । निकाह किसी महीने में मना नहीं । ( फतावा रिज़विया जिल्द - 5 सफ़ा - 179 )


 मसला :- अक्सर लोग माहे सफर में शादी ब्याह नहीं करते । खुसूसन माह सफर की इब्तिदाई तेरह (13) तारीखें बहुत ज्यादा मनहूस मानी जाती हैं और उनको " तेरा तेज़ी ' कहते हैं । ये सब जिहालत की बातें हैं ।

पढ़ने के लिए और पोस्ट के लिंक।

(1) शादी में सेहरा पहनना जायज़ है कि नहीं?

(2) शादी के लिए इस्तिखारा कैसे करें?

(3) शादी,निकाह के हवाले से हदीस क्या कहती है?

 इदीसे पाक में फरमाया कि सफर कोई चीज़ नहीं  यानी लोगों का उसे मनहूस समझना गलत है । उसी तरह जीकादा के महीना को भी बहुत लोग बुरा जानते हैं।

 और उसको " खाली का महीना " कहते हैं और उस माह में भी शादी नहीं करते । 

ये भी जिहालत व लगवियात हैं । गर्ज कि शादी हर माह की हर तरीख़ को हो सकती है । ( बहारे शरीअत जिल्द - 2 हिस्सा - 16 सफ़ा- 159 )

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लोगों में ये भी मशहूर है कि हर माह की चाँद की पन्द्रह (15) तारीख के बाद निकाह नहीं करना चाहिए जिसे वह अपनी ज़बान मे " उतरता चाँद " कहते हैं ।

और इन तारीख़ों को मुबारक नही जानते बल्कि चाँद की एक (1) तारीख से पन्द्रह (15) तारीख़ तक की तारीखों को मुबारक माना जाता है और उसे चढ़ता चाँद कहते हैं । ये सब जिहालत व लगवियात है । इस्लाम में इसकी कोई असल नहीं ।


 शरीअते इस्लामी के मुताबिक किसी महीने की कोई तारीख मनहूस नहीं होती बल्कि हर दिन , हर तारीख़ अल्लाह अज्ज़ावजल की बनाई हुई हैं गर्ज़ कि हर महीने की किसी भी तारीख़ को निकाह करना दुरुस्त है ।


 हुजूर सय्यदना गौसुल आज़म शैख़ अब्दुल कादिर जीलानी बग़दादी रदि अल्लाहु तआला अन्हु नक्ल फरमाते हैं : निकाह जुमेरात या जुमा को करना मुस्तहब है । जुमेरात की बजाए आप किसी दिन के वक्त निकाह करना बेहतर हैं । ( गुनयतुत्तालिबीन बाब -5 सफा - 115 )


 आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा ख़ाँ बरेलवी रदि अल्लाहु अन्हु  फतावा रिजविया में नक्ल फरमाते है : 

जुमा के दिन अगर जुमा की अज़ान हो गई हो तो उसके बाद जब तक नमाज़ न पढ़ ली जाए निकाह की इजाजत नहीं कि अज़ान होते ही जुमा की नमाज के लिए जल्दी करना वाजिब है । 

फिर भी अगर कोई अजान के बाद निकाह करेगा तो गुनाह होगा मगर निकाह तो सही हो जाएगा । ( फतावा रिजविया जिल्द - 5 सहा- 158 ) 


दूल्हा दुल्हन दोनों के माँ बाप का या फिर किसी ज़िम्मादार रिश्तेदार को फर्ज़ है कि निकाह के लिए सिर्फ और सिर्फ सुन्नी आलिम या काज़ी को ही बुलवाऐं । काज़ी वहाबी , देवबंदी , मौदूदी , नेचरी गैर मुकल्लिद वगैरा न हो ।


इमामे इश्क़ व मुहब्बत आला हजरत इमाम अहमद रज़ा ख़ाँ इरशाद फरमाते हैं : वहाबी से निकाह पढ़वाने में उसकी ताज़ीम होती है जो कि हराम है । लिहाजा इससे बचना ज़रूरी है ।  ( अलमलफूज़ जिल्द - 3 सपहा - 16 ) 


निकाह के शराइत में ये है कि दो (2) गवाह हाज़िर हों और उन दोनों गवाहों का भी सुन्नी सहीहुल अकीदा होना ज़रूरी है । 


मसला :- एक गवाह से निकाह नहीं हो सकता जब तक कि दो मर्द या एक मर्द और दो औरतें मुसलमान , सुन्नी आकिला बालिगा न हों । ( फतावा रिज़विया जिल्द - 5 सपहा -- 153 ) 


मसला :- सब गवाह ऐसे बदमजहब है कि जिनकी बदमज़हबी हदे कुफ्र तक पहुंच चुकी हो जैसे वहाबी , देवबंदी , राफिजी , नेचरी चकड़ालवी , कादियानी गैर मुकुल्लिद वगैरा तो निकाह नहीं होगा । ( फतावा अफ्रीका सफा - 61 ) 


हदीस :- हज़रत इब्ने अब्बास रदि अल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि हुजूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमायाः

   गवाहों के बगैर निकाह करने वाली औरतें ज़ानिया ( जिनाकार ) हैं । ( तिर्मिजी शरीफ जिल्द- 1 बाब - 751 हदीस -1095 सफा -563 ) 

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निकाह के बाद ! 

निकाह के बाद मिस्री व खुजूर बॉटना बेहतर है ये रिवाज हुजूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम के ज़ाहिरी ज़माने में भी था । हज़रत मुहक़किक़ शाह अब्दुल हक मुहद्दिस देहवली रदि अल्लाहु तआला अन्हु नक्ल फरमाते हैं :-

हुजूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम ने जब हज़रत अली व हज़रत फातिमा रदि अल्लाहु तआला अन्हुमा का निकाह पढ़ाया तो निकाह के बाद हुजूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम ने एक तबाक खुजूरों का लिया और जमाअते सहाबा पर बिखेर कर लुटाया । 


इसी बिन पर फुकहा की एक जमाअत कहती है कि मिस्री व बादाम वगैरह का बिखेर कर लुटाना निकाह की जियाफत में मुस्तहब है ।  ( मदारिजुन्नबुव्वत जिल्द 2 सफ़्हा - 128 )



 आला हजरत रदि अल्लाहु अन्हु इरशाद फरमाते हैं : ( निकाह के बाद ) छुहारे ( खुजूर ) हदीस में लूटने का हुक्म है और लुटाने में भी कोई हर्ज नहीं और से हदीस दारेकुतनी व बैहकी व तहतावी से मरवी ( अल मलफूज़ जिल्द - 3 सफा  15 )


 मालूम हुआ कि निकाह के बाद मिस्री व खुजूर लुटाना चाहिए । यानी लोगों पर बिखेरें लेकिन लोगों को भी चाहिए कि वह अपनी जगह पर बैठे रहें और जिस क़दर उनके दामन में गिरे वह उठा ले हासिल करने के लिए किसी पर , न गिर पड़ें । 


दुल्हन दूल्हा को मुबारकबाद 

निकाह होने के बाद दूल्हे को उसके दोस्त व अहबाब और दुल्हन को उसकी सहेलियां मुबारक बाद और बरकत की दुआ करें ।

हदीस हज़रत अबू हुरैरा रदि अल्लाहु अन्हु से रिवायत है : जो शख्स निकाह करता तो हुज़ूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम उनके लिए यूं दुआ करते थे।

बारकल्लाहु लका व बारकल्लाहु अलैइका वज मअ़ बैइनकुम बिल खैइर।

अल्लाह तआला तुम्हें मुबारक करे और तुम पर बरकत नाजि़ल फरमायें और तुम दोनों में भलाई रखे।

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