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दूल्हे को तोहफे और दहेज देने का बयान

दूल्हे को तोहफे और दहेज देना कैसा है?

दूल्हे दुल्हन को तोहफे और दहेज देना सुन्नत है।

हदीस :- हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह रदि अल्लाहु अन्हु से रिवायत है :  

हज़रत आएशा रदि अल्लाहु तआला अन्हा ने एक यतीम बच्ची का निकाह किया जिसे आप ने पाला था तो रसूल अल्लाह स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम ने उसको अपने पास से जहेज़ दिया( मुसनद इमाम आज़म बाब 122 सफ़ 214 ) 

इस हदीस से मालूम हुआ कि जहेज़ देना सुन्नते रसूल है मगर ज़रूरत से ज़्यादा देना और कर्ज लेकर देना दुरुस्त नहीं । 


जहेज़ के लिए भी कोई हद होनी चाहिए कि जिसकी हर गरीब व अमीर पाबंदी करे । अमीरों को चाहिए कि वह अपनी बेटियों को बहुत ज्यादा जहेज़ न दें । सजा सजा कर दिखा दिखा कर दहेज़ देना बिल्कुल मुनासिब नहीं । 


नामवरी के लालच में अपने घर को आग न लागऐं । याद रखिए कि नाम और इज़्ज़त तो अल्लाह तआला और रसूल अल्लाह की पैरवी में है । 

 रिवायत : हज़रत इमाम मुहम्मद रदि अल्लाहु अन्हु के पास एक शख़्स आया और अर्ज करने लगा कि मैंने कसम खाई थी कि अपनी बेटी को दहेज़ में देना की हर चीज़ दूँगा और दुनियां की हर शैय तो बादशाह भी नहीं दे सकता । 

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Dahej Lena in islam

अब मैं क्या करूँ कि मेरी ये कसम पूरी हो जाए । आप ने फरमाया कि तू अपनी लड़की को दहेज़ में कुरआने करीम दे दे क्योंकि कुरआन शरीफ में हर चीज़ है । ( तफसीर रूहूल बयान पारा -11 सूरह यूनुस आयत - 1 ) 


लड़के वालों को चाहिए कि लड़की वाले अपनी हैसीयत के मुताबिक जिस कदर भी दहेज दें , उसे खुशी खुशी कुबूल कर लें कि जहेज दर असल तोहफा है , किसी किस्म की तिजारत नहीं । 


लड़के वालों का अपनी तरफ से माँग करना कि ये चीज दो , वह , चीज दो , किसी हटधर्मी भिकारी के भीक माँगने से किसी तरह कम नहीं ।


मसला :- दहेज़ के तमाम माल पर ख़ास औरत का हक है । दूसरे का उसमें कुछ हक नहीं । ( फतावा रिज़विया जिल्द -5 सपहा - 529 ) 


हमारे मुल्क में ये रिवाज हर क़ौम में पाया जाता है कि निकाह के बाद दुल्हन वाले दूल्हे को कुछ तोहफे देते हैं जिसमें कपड़े का जोड़ा , सोने की अंगूठी और घड़ी वगैरा होती हैं । तोहफा देने में कोई हर्ज नहीं लेकिन उसमें चंद बातों की एहतियात बहुत ज़रूरी है । 


मसलन आप जो अंगूठी दूल्हे को दें वह सोने की न हो । 

मसलाः- मर्द को किसी भी धात को ज़ेवर पहनना जाइज़ नहींऔरत को सोने की अंगूठी और सोने चाँदी के दूसरे ज़ेवर पहनना जाइज़ है । 

मर्द सिर्फ चाँदी की एक ही अंगूठी पहन सकता है लेकिन उसका वज़न साढ़े चार माशा से कम होना चाहिए ।

 दूसरी धातें जैसे लोहा , पीतल , ताँबा , जस्ता वगैरा इन धातों की अंगूठी मर्द और औरत दोनों को पहनना नाजाइज है । ( कानूने शरीअत जिल्द - 2 सफा - 196 ) 


हदीस :- हज़रत अब्दुल्लाह बिन बुरीदा रदि अल्लाहु अन्हु अपने वालिदे माजिद से रिवायत करते हैं एक शख़्स हुजूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में पीतल की अंगूठी पहन कर हाज़िर हुए ।

 सरकार स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमायाः क्या बात है कि तुम से बुतों की बू आती है । उन्होंने वह अंगूठी फेंक दी । 


फिर दूसरे दिन लोहे की अंगूठी पहन कर हाज़िर हुए । 

फरमायाः क्या बात है कि तुम पर जहन्नमियों का ज़ेवर देखता हूँ । 


अर्ज़ किया या रसूलुल्लाह ! फिर किस चीज़ की अंगूठी बनाऊँ ? - ( अबूदाऊद शरीफ जिल्द - 3 बाब- 292 हदीस - 821 सफ़्हा - 277 )


 मसलाः- मर्द को दो अंगूठियाँ पहनना , चाहे चाँदी की ही क्यों न हों , सख़्त नाजाइज़ है । इसी तरह एक अंगूठी में कई नग हों या साढे चार माशे से ज़्यादा वज़न की हो तो वे भी नाजाइज़ व गुनाह है। ( अहकामे शरीअत जिल्द - 2 सपहा - 160 ) 


मसला :- अंगूठी का नगीना ( नग ) हर किस्म के पत्थर का हो  सकता है । अकी़क़ , याकू़त , जुदायी , फीरोज़ी वगैरा वगैरा सबका नगीना जाइज़ है । ( दुर्रे मुख़्तार व रद्दुल मुख़्तार + कानूने शरीअत जिल्द- 2 सफा - 196 ) 


लिहाज़ा दूल्हे को सोने की अंगूठी न दे बल्कि उसकी बजाए उसकी कीमत के बराबर कोई और तोहफा या फिर चाँदी की सिर्फ एक अंगूठी एक नग वाली साढ़े चार माशा से कम वज़न की ही दें । 


वरना देने वाला और पहनने वाला दोनों गुनहगार होंगे । मुमकिन है आप के दिल में ये ख़्याल आए कि चाँदी की  अंगूठी देंगे तो लोग क्या कहेंगे ?

 बहुत ज़्यादा बदनामी होगी वगैरा वगैरा । तो होशियार ! सब शैतानी वसवसा हैं । इबलीस मरदूद इसी तरह बदनामी का ख़ौफ दिला कर लोगों से गलत काम करवाता है ।


 हम आप से एक सीधी बात पूछते हैं कि आप को अल्लाह और उसके रसूल की खुशनूदी चाहिए या लोगों की वाह ! वाह ! सोचिए और अपने ज़मीर से ही इसका जवाब तलब कीजिए । 


शादी के मौका पर अक्सर दूल्हे को घड़ी दी जाती है । घड़ी की जंजीर ( चैन ) के मुतअल्लिक चंद मसाइल यहाँ बयान किए जा रहे हैं , इन पर अमल करना ज़रूरी है । 


सरकार सय्यदी आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा ख़ाँ बरेलवी रदि अल्लाहु अन्हु अपने एक फ़तवे में इरशाद फरमाते हैं : " घड़ी की जंजीर ( चैन ) सोने , चाँदी की मर्द को हराम है और दूसरी धातों ( जैसे लोहा , पीतल , स्टील वगैरा ) की ममनूअ । 

उनको पहन कर नमाज़ . पढ़ना और इमामत करना मकरूह तहरीमी ( नाजाइज़ व गुनाह ) है । ( अहकाम शरीअत जिल्द - 2 सफ़ा- 170 ) 


हुजूर मुफ्ती ए आज़म हिन्द रहमतुल्लाह अपने फतावा में इरशाद फरमाते हैं : " वे घड़ी जिसकी चैन सोने या चाँदी या स्टील वगैरा किसी भी धात की हो उसका इस्तेमाल नाजाइज़ है ।

और इसको पहन कर नमाज़ पढ़ना गुनाह और जो नमाज़ पढ़ी वाजिबुलअदा है । ( यानी उस नमाज़ को दोबारा पढ़ना वाजिब है वरना गुनहगार होगा ) ( बहवाला माहनमा इस्तिकामत , कानपूर जनवरी 1978 ईस्वी )


 इसलिए हमेशा वही घड़ी पहने जिसका पट्टा चमड़े , पलास्टिक या रेगज़ीन , कपड़े वगैरा का हो । स्टील या किसी और दूसरी धात का न हो और शादी के मौके पर भी अगर दूल्हे को तोहफे में घडी देना हो तो सिर्फ चमड़े या पलास्टिक के पट्टे वाली ही घड़ी दें ।

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