Namaz ki sunnaten,नमाज की सुन्नतें
Mustahibbate namaz,मुस्तहिब्बाते नमाज़,Makruhat e namaz,मकरूहाते नमाज़,Jamat wa imamat ka bayan,जमात वा इमामत का बयान,Sajda e sahw ka bayan,सज्द ए सह् व का बयान
(1) तकबीरे तहरीमा के लिए हाथ उठाना !
(2) हाथों की उंगलियां अपने हाल पर छोड़ना !
(3) तकबीर के वक्त सर ना झुकाना !
(4) तकबीर के बाद फौरन हाथ बाँध लेना !
(5) पहले सना यानी सुब्हानका फिर अउजु बिल्लाह और बिस्मिल्लाह पढ़ना !
(6) अल्हम्दु के खत्म पर आमीन आहिस्ता से कहना !
(7) रुकूअ में घुटनों पर हाथ रखना और उंगलियां ना फैलाना रुकूअ मे कम से कम तीन (3) बार सुब्हाना रब्बियल अजी़म कहना !
(8) रुकूअ में जाने के लिए अल्लाह हू अकबर कहना रुकूअ मे सिर्फ इस कदर झुकना कि हाथ घुटनों तक पहुंच जाए !
(9) रुकूअ से उठते वक्त समीअल्लाहु लिमन हमिदह कहना सजदे के लिए और सज्दे से उठने के लिए अल्लाह हू अकबर कहना !
(10) सज्दे में हाथ जमीन पर रखना कम से कम 3 बार सुब्हाना रब्बियल अआला कहना !
(11) सजदे में जाने के लिए ज़मीन पर पहले दोनों घुटने तक एक साथ रखना फिर हाथ फिर नाक फिर पेशानी और सजदा से उठते वक्त इसके बरअक्स उल्टा करें यानी पहले पेशानी उठाएं फिर नाक फिर हाथ फिर घुटने !
(12) सिमटकर सजदा करना !
(13) दोनों सज्दों के दरमियां तशह्हुद की तरह बैठना !
(14) दूसरी रकात के लिए जो केवल घुटनों पर हाथ रख कर उठना !
(15) दूसरी रकात के सज्दों से फारिग होकर या पाँव बिछाकर दाहिना खड़ा करके बैठना और औरत के लिए दोनों पांव दाहिनी जानिब निकालकर बायें सुरीन पर बैठना !
(16) दाहिना हाथ दाहिनी रान पर रखना और बाँया बायीं पर उंगलियों को अपने हाल पर छोड़ ना और उनके किनारे घुठनो के पास होना !
(17) शहादत पर इशारा करना !
(18) तशह्हुद के बाद कायदा ए अखीरा में दूरुद पढ़ना !(19) दरूद शरीफ के बाद अरबी में दुआ करना अब बेहतर वह दुआएं हैं जो बुजुर्गों से मनकूल है !
(20) अस्सलामु अलैइकुम व रहमतुल्लाह दो बार कहना पहले दाहिनी तरफ फिर बाईं तरफ !
(21) जोहर ,मगरिब, इशा के बाद मुखतसर दुआ करके सुन्नतों के लिए खड़ा हो जाना वरना सुन्नतों का सवाब कम हो जाएगा !
(दूर्रे मुख्तार ,आलम गीरी वगैरह )
(1) कयाम की हालत में सजदा की जगह नजर रखना
(2) रुकूं में पांव को पीठ की तरफ सजदा में नाक की तरफ और कादा में गोद की तरफ नजर रखना !
(3) पहले सलाम में दाहिने शाने की तरफ दूसरे में बाएं तरफ नजर रखना !
(4) जमाई आए तो मुंह बंद किए रहना अगर ना रुके तो होंठ दांत के नीचे दबाए और इससे भी ना रुके तो कयाम में दाहिने हाथ की पोस्ट से ढक लें और कयाम में ना हो तो बाएं हाथ की पुश्त से और बिला जरूरत हाथ या कपड़ा से मुंह ढकना मकरूह है उठाना है !
(5) तहरीमा के वक्त कपड़े से बाहर निकालना औरतों के लिए तकबीर तहरीमा के वक्त हाथ कपड़े के अंदर रखना !(6) जहां तक बन पडे खाँसी को रोकना कयाम की हालत में दोनों पंजों के दरमियान चार अंगुल का फासिला होना!
(आलमगीरी)
(2) किसी आस्तीन का आधी कलाई से ज्यादा चढ़ाना!
(3) कपड़े समेटना !
(4) जिस्म के कपड़े से खेलना !
(5) अंगुलियां चटखाना !
(6) दाएं बाएं गर्दन मुड़ना !
(7) मर्द को जूड़ा गूंध कर नमाज पढ़ना !
(8) अंगड़ाई लेना!
(9) कुत्ते की तरह बैठना !
(10)मर्द को सजदे में हाथ जमीन पर बिछाना !
(11) सजदे में मर्दो के लिए पेट रानों से मिलाना !
(12) बगैर उज्र के चार जानू आलती पालती मारकर बैठना !(13) इमाम के मेहराब के अंदर खड़ा होना !
(14) कंकरिया हटाना मगर जब की जरूरत हो तो एक बार जायज है !
(15) सामने या सर पर तस्वीर होना !
(16) कंधों पर चादर या कोई कपड़ा लटकाना !
(17) पेशाब पाखाना या ज्यादा भूँक का तकाजा होते हुए नमाज पढ़ना !
(18) सर खोलकर नमाज में खड़ा होना !
(19) आंखें बंद करके नमाज पढ़ना !
(20) अंगुलियां चटखाना या कैंची बाँधना !
(21) कमर पर हाथ रखना !
(22) धात या चैन वाली घड़ी पहन कर नमाज पढ़ना !
(23) फासिद या मोअलिन के पीछे नमाज पढ़ना मसलन जो बिल उज्र जमात या नमाज तर्क करता हो उसके पीछे नमाज मकरुह है !
जमात की बड़ी ताकीद आई है और इसका सवाब बहुत ज्यादा है यहां तक कि बे जमात की नमाज से जमात वाली नमाज का 27 गुना है!
(मिस्कात शरीफ)
(रद्दुल मुहतार जिल्द 1 सफा 371)
रमजान शरीफ में वित्र को जमात से पढ़ना मुस्तहब है
सुन्नतों और नफिलों में जमात मकरूह है !
बाँया पीछे खड़ा होना मकरूह है दो(2) मुक्तदी हो तो पीछे खड़े हों इमाम के बराबर खड़ा होना मकरूह तनजीही है
दो (2 ) से ज्यादा का इमाम के बगल में खड़ा होना मकरूहे तहरीमी है ! (दुर्रे मुख्तार सफहा 383 )
गर्ज ये के आदमी बराबर दर्जे के हों तो उनमें से सरा इ हैसियत से फौकियत रखता हो वही ज्यादा हकदार है !
(दुर्रे मुख्तार जिल्द1 सफहा 373)
(दूर्रे मुख्तार जिल्द 1 सफा 376)
किरात यानी कुरान शरीफ पढ़ने में इतनी आवाज होना चाहिए कि अगर बहरा ना हो और शोर गुल ना हो तो खुद अपनी आवाज सुन सके अगर इतनी आवाज भी ना हुई तो किरात नहीं हुई और नमाज ना होगी!
( दुर्रे मुख्तार जिल्द 1 सफा नंबर 356)
और मगरिब की तीसरी रकात में और इशा की तीसरी और चौथी रकात में और जोहर व अस्र की सब रकातों में आहिस्ता पढ़ना वाजिब है!
( दुर्रे मुख्तार जिल्द 1 सफा नंबर 358 )
( दुर्रे मुख्तार सफहा 398 )
यह की पहली रकात में कुलहुवल्लाह दूसरी में तब्बत यदा !
( दुर्रे मुख्तार सफहा 368 )
जैसे वत्तीन के बाद इन्ना अनज्लनाहु पढने मे कोई हरज नही और इजा जाआ के बाद कुल हुवल्लाहु पढ़ना नहीं चाहिए !(दुर्रे मुख्तार जिल्द 1 सफा नंबर 368 )
जो चीजें नमाज में वाजिब है अगर उनमें से कोई वाजिब भूल से छूट जाए तो पूरी करने के लिए सज्द ए सह् व वाजिब है और इसका तरीका यह है कि नमाज के आखिर में अत्तहियात के बाद दाहिनी तरफ सलाम फेरने के बाद दो(2) सजदा करें और फिर अत्तहियात दरूद शरीफ और दुआ पढ़कर दोनों तरफ सलाम फेर दें
अगर कस्दन किसी वाजिब को छोड़ दिया तो सजदा ए सह् व काफी नहीं बल्कि नमाज को दोहराना वाजिब है!
(दूर्रे मुख्तार जिल्द 1 सफा नंबर 496)
(दुर्रे मुख्तार सफा नंबर 497)
(दुर्रे मुख्तार सफा नंबर 498 )
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Namaz ki sunnaten
नमाज की सुन्नतें
(2) हाथों की उंगलियां अपने हाल पर छोड़ना !
(3) तकबीर के वक्त सर ना झुकाना !
(4) तकबीर के बाद फौरन हाथ बाँध लेना !
(5) पहले सना यानी सुब्हानका फिर अउजु बिल्लाह और बिस्मिल्लाह पढ़ना !
(6) अल्हम्दु के खत्म पर आमीन आहिस्ता से कहना !
(7) रुकूअ में घुटनों पर हाथ रखना और उंगलियां ना फैलाना रुकूअ मे कम से कम तीन (3) बार सुब्हाना रब्बियल अजी़म कहना !
(8) रुकूअ में जाने के लिए अल्लाह हू अकबर कहना रुकूअ मे सिर्फ इस कदर झुकना कि हाथ घुटनों तक पहुंच जाए !
(9) रुकूअ से उठते वक्त समीअल्लाहु लिमन हमिदह कहना सजदे के लिए और सज्दे से उठने के लिए अल्लाह हू अकबर कहना !
(10) सज्दे में हाथ जमीन पर रखना कम से कम 3 बार सुब्हाना रब्बियल अआला कहना !
(11) सजदे में जाने के लिए ज़मीन पर पहले दोनों घुटने तक एक साथ रखना फिर हाथ फिर नाक फिर पेशानी और सजदा से उठते वक्त इसके बरअक्स उल्टा करें यानी पहले पेशानी उठाएं फिर नाक फिर हाथ फिर घुटने !
(12) सिमटकर सजदा करना !
(13) दोनों सज्दों के दरमियां तशह्हुद की तरह बैठना !
(14) दूसरी रकात के लिए जो केवल घुटनों पर हाथ रख कर उठना !
(15) दूसरी रकात के सज्दों से फारिग होकर या पाँव बिछाकर दाहिना खड़ा करके बैठना और औरत के लिए दोनों पांव दाहिनी जानिब निकालकर बायें सुरीन पर बैठना !
(16) दाहिना हाथ दाहिनी रान पर रखना और बाँया बायीं पर उंगलियों को अपने हाल पर छोड़ ना और उनके किनारे घुठनो के पास होना !
(17) शहादत पर इशारा करना !
(18) तशह्हुद के बाद कायदा ए अखीरा में दूरुद पढ़ना !(19) दरूद शरीफ के बाद अरबी में दुआ करना अब बेहतर वह दुआएं हैं जो बुजुर्गों से मनकूल है !
(20) अस्सलामु अलैइकुम व रहमतुल्लाह दो बार कहना पहले दाहिनी तरफ फिर बाईं तरफ !
(21) जोहर ,मगरिब, इशा के बाद मुखतसर दुआ करके सुन्नतों के लिए खड़ा हो जाना वरना सुन्नतों का सवाब कम हो जाएगा !
(दूर्रे मुख्तार ,आलम गीरी वगैरह )
Mustahibbate namaz
मुस्तहिब्बाते नमाज़
(2) रुकूं में पांव को पीठ की तरफ सजदा में नाक की तरफ और कादा में गोद की तरफ नजर रखना !
(3) पहले सलाम में दाहिने शाने की तरफ दूसरे में बाएं तरफ नजर रखना !
(4) जमाई आए तो मुंह बंद किए रहना अगर ना रुके तो होंठ दांत के नीचे दबाए और इससे भी ना रुके तो कयाम में दाहिने हाथ की पोस्ट से ढक लें और कयाम में ना हो तो बाएं हाथ की पुश्त से और बिला जरूरत हाथ या कपड़ा से मुंह ढकना मकरूह है उठाना है !
(5) तहरीमा के वक्त कपड़े से बाहर निकालना औरतों के लिए तकबीर तहरीमा के वक्त हाथ कपड़े के अंदर रखना !(6) जहां तक बन पडे खाँसी को रोकना कयाम की हालत में दोनों पंजों के दरमियान चार अंगुल का फासिला होना!
(आलमगीरी)
Makruhat e namaz
मकरूहाते नमाज़
यह चीजें नमाज में मकरूह हैं
(1) कोख पर हाथ रखना !(2) किसी आस्तीन का आधी कलाई से ज्यादा चढ़ाना!
(3) कपड़े समेटना !
(4) जिस्म के कपड़े से खेलना !
(5) अंगुलियां चटखाना !
(6) दाएं बाएं गर्दन मुड़ना !
(7) मर्द को जूड़ा गूंध कर नमाज पढ़ना !
(8) अंगड़ाई लेना!
(9) कुत्ते की तरह बैठना !
(10)मर्द को सजदे में हाथ जमीन पर बिछाना !
(11) सजदे में मर्दो के लिए पेट रानों से मिलाना !
(12) बगैर उज्र के चार जानू आलती पालती मारकर बैठना !(13) इमाम के मेहराब के अंदर खड़ा होना !
(14) कंकरिया हटाना मगर जब की जरूरत हो तो एक बार जायज है !
(15) सामने या सर पर तस्वीर होना !
(16) कंधों पर चादर या कोई कपड़ा लटकाना !
(17) पेशाब पाखाना या ज्यादा भूँक का तकाजा होते हुए नमाज पढ़ना !
(18) सर खोलकर नमाज में खड़ा होना !
(19) आंखें बंद करके नमाज पढ़ना !
(20) अंगुलियां चटखाना या कैंची बाँधना !
(21) कमर पर हाथ रखना !
(22) धात या चैन वाली घड़ी पहन कर नमाज पढ़ना !
(23) फासिद या मोअलिन के पीछे नमाज पढ़ना मसलन जो बिल उज्र जमात या नमाज तर्क करता हो उसके पीछे नमाज मकरुह है !
Jamat wa imamat
ka bayan
जमात वा इमामत का बयान
(मिस्कात शरीफ)
मसअला:-
मर्दो को जमात के साथ नमाज पढ़ना वाजिब है बिला उज्र एक बार की भी जमाअत छोड़ने वाला गुनहगार है और सजा की लायक है और जमाअत छोड़ने की आदत डालने वाला फाशिक है इसकी गवाही कुबूल नहीं की जाएगी और बादशाहे इस्लाम उसको सख्त सजा देगा अगर पड़ोसियों ने सुकूत किया तो वह भी गुनहगार होंगे!(रद्दुल मुहतार जिल्द 1 सफा 371)
मसअलाः-
ईदैन (ईद-बकरीद) में जमात शर्त है यानी बगैर जमात के नमाजे होगी ही नहीं तरावीह में जमात सुन्नते किफाया है यानी मोहल्ला के कुछ लोगों ने जमात से पढ लिये तो सबके जिम्मा छोड़ने की बुराई जाती रही और अगर सब ने साथ में छोड़ दी तो सब ने बुरा कियारमजान शरीफ में वित्र को जमात से पढ़ना मुस्तहब है
सुन्नतों और नफिलों में जमात मकरूह है !
मसअला :-
औरतों को किसी नमाज में जमात की हाजिरी जायज नहीं दिन की नमाज हो या रात की जुमा की हो या ईंदैन की औरत चाहे जवान हो या बुढ़िया यूं ही औरतों को ऐसे मज्मों मे जाना भी नाजायज है जहां औरतों मर्दों का इसज्तेमा हो !(दुर्रे मुख्तार जिल्द 1 सफहा 381)मसअला :-
अकेला मुक्तदी मर्द अगर चे लड़का हो इमाम के बराबर दाहिनी तरफ खड़ा होबाँया पीछे खड़ा होना मकरूह है दो(2) मुक्तदी हो तो पीछे खड़े हों इमाम के बराबर खड़ा होना मकरूह तनजीही है
दो (2 ) से ज्यादा का इमाम के बगल में खड़ा होना मकरूहे तहरीमी है ! (दुर्रे मुख्तार सफहा 383 )
मसअला :-
इमाम होने का सबसे ज्यादा हकदार वह शख्स है जो नमाजे तहारत वगैरा के अहकाम सबसे ज्यादा जानता हो फिर वह शख्स जो किरात का इल्म रखता हो अगर कोई शख्स इन बातों में बराबर हो तो वह शख्स ज्यादा हकदार है जो ज्यादा मुत्तकी हो अगर इसमें भी बराबर हो तो ज्यादा उम्र वाला जिसका अखलाक ज्यादा अच्छा हो फिर ज्यादा तहज्जुद गुजारगर्ज ये के आदमी बराबर दर्जे के हों तो उनमें से सरा इ हैसियत से फौकियत रखता हो वही ज्यादा हकदार है !
(दुर्रे मुख्तार जिल्द1 सफहा 373)
मसअला :-
फाशिक मोअलिन जैसे शराबी जिना कार जुआरी सूदखोरी करने वाला इन लोगों को इमाम बनाना गुनाह है और इन लोगों के पीछे नमाज मकरूहे तहरीमी है और नमाज को दोहराना वाजिब है(दूर्रे मुख्तार जिल्द 1 सफा 376)
मसअला :-
राफेजी खारिजी दूसरे तमाम बद मज़हबों के पीछे नमाज नाजायज व गुनाह है अगर गलती से पढ़ ली तो फिर से पढ़ें अगर दोबारा नहीं पड़ेगा तो गुनहगार होगा !Kirat ka bayan
किरात का बयान
( दुर्रे मुख्तार जिल्द 1 सफा नंबर 356)
मसअला :-
फज्र में और मगरिब व इशा की पहली दो रकातों में और जुमा तरावीह और रमजान की वित्र में इमाम पर जह्र के साथ किरात करना वाजिब हैऔर मगरिब की तीसरी रकात में और इशा की तीसरी और चौथी रकात में और जोहर व अस्र की सब रकातों में आहिस्ता पढ़ना वाजिब है!
मसअला :-
जह्र के यह मायने हैं कि इतनी जोर से पढ़ें कि कम से कम में करीब के लोग सुन सकें और आहिस्ता पढ़ने के यह मायने हैं कि कम से कम खुद सुन सके!( दुर्रे मुख्तार जिल्द 1 सफा नंबर 358 )
मसअला :-
जह्री नमाजों में अकेले को अख्तियार है चाहे जोर से पड़े चाहे आहिस्ता मगर जोर से पढ़ना अफ्जल है!( दुर्रे मुख्तार सफहा 398 )
मसअला :-
कुरआन शरीफ उल्टा पढना मकरुहे तहरीमी हैयह की पहली रकात में कुलहुवल्लाह दूसरी में तब्बत यदा !
( दुर्रे मुख्तार सफहा 368 )
मसअला :-
दरमियान में एक छोटी सूरह छोड कर पढना मकरूह है जैसे पहली में कुल वल्लाह दूसरी में कुल अउजू बिरब्बिन नास और दरमियान में सिर्फ एक सूरह अउजू बिरब्बिल फलक छोड़ दी लेकिन हां अगर दरमियान की सूरते पहले से बड़ी हो तो दरमियान में एक सूरह छोड़ कर पढ सकता हैजैसे वत्तीन के बाद इन्ना अनज्लनाहु पढने मे कोई हरज नही और इजा जाआ के बाद कुल हुवल्लाहु पढ़ना नहीं चाहिए !(दुर्रे मुख्तार जिल्द 1 सफा नंबर 368 )
Sajda e sahw ka bayan
सज्द ए सह् व का बयान
अगर कस्दन किसी वाजिब को छोड़ दिया तो सजदा ए सह् व काफी नहीं बल्कि नमाज को दोहराना वाजिब है!
(दूर्रे मुख्तार जिल्द 1 सफा नंबर 496)
मसअला :-
जो बातें नमाज में फर्ज है अगर हमसे उनमें से कोई चीज छूट गई तो नमाज नहीं होगी और सजद ए सह् व से भी यह कमी पूरी नहीं हो सकती बल्कि फिर से उस नमाज को पढ़ना जरूरी है!मसअला :-
एक नमाज में अगर भूल से कई बार छूट जाए तो एक तो एक मर्तबा वही सजद ए सह् व के काफी हैं चंद बार सजद ए सह् व की जरूरत नहीं!(दुर्रे मुख्तार सफा नंबर 497)
मसअला :-
पहले कायदे में अत्तहियात पढ़ने के बाद तीसरी रकात के लिए खड़े होने में इतनी देर लगा दी कि अल्लाहुम्मा सल्ले अला मोहम्मदिन पढ़ सके तो सजद ए सह् व वाजिब है चाहे कुछ पड़े या खामोश रहे दोनों सूरत ओं में सजद ए सह् व वाजिब है इसलिए ध्यान रखो कि पहले कायदे में अत्तहिया खत्म होने तक ही फौरन तीसरी रकात के लिए खड़े हो जाओ!(दुर्रे मुख्तार सफा नंबर 498 )
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ईदुल अज्हा की नमाज पढने का आसान तरीका हिन्दी में Easy way to read Eidul Azha's Namaz in Hindi
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1 टिप्पणियाँ
Alhamdu lillah bahut achha
जवाब देंहटाएंआपके फीडबैक का हमे इन्तजार रहता है आप सब लोग अपना फीडबैक कमेन्ट के जरिए दें या Contact form या contact us में दे सकते हैं। infomgm