Namaz Awabeen Namaz Awwabin

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नमाजे़ अव्वाबीन अदा करने का तरीका हिन्दी में

सवाल :- नमाजे अव्वाबीन किसे कहते हैं ? नीज़ इसे अदा करने मतलब पढ़ने का तरीका भी बयान फ़रमा दीजिये । 

जवाब :-  बहारे शरीअत  जिल्द अव्वल सफा नम्बर 666 पर है : बादे नमाज़ ए मगरिब मतलब मग़रिब के नमाज़ पढ़ने के बाद (6) छ: रकाअतें नमाजे़ अव्वाबीन पढ़ना मुस्तहब हैं।

इस नमाज़ को सलातुल अव्वाबीन कहते हैं ।

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Namaz Awabeen Namaz Awwabin

 ख्वाह एक सलाम से नमाजे़ अव्वाबीन सब पढ़ लें मतलब (6)  छ: रकाअत एक साथ पढ़ें।

 या (2) दो सलाम से यानी (4) चार रकाअत नमाजे़ अव्वाबीन की नियत से पढ़ लें।

या फिर दो (2-2) रकाअत करके  तीन (3) सलाम से नमाज़ ए अव्वाबीन पढ़े ।

 और (3) तीन सलाम से नमाज़ अव्वाबीन मतलब हर (2) दो रकात पर सलाम फेरना अफ़ज़ल है । 

अगर कोई एक ही सलाम से ही नमाज़े अव्वाबीन पढ़ना चाहे तो इस का तरीका यह है कि ।

नमाज़ ए मगरिब की तीन रकाअत फ़र्ज़ पढ़ने के बाद छ: (6) रकाअत एक ही निय्यत से नमाजे़ अव्वाबीन पढ़े ।

हर दो (2) रकाअत पर का़एदा करे और उस में अत्तहिय्यात , दुरूदे इब्राहीम और दुआ पढ़े ।

पहली , तीसरी और पांचवीं रकात की इब्तिदा में सना और  तअव्वुज़ व तस्मिया  भी पढ़े । 

छटी रकाअत के का़एदे के बाद सलाम फेर दे । 

हमारे कुछ पोस्ट के लिंक इन्हें पढ़ सकते हैं हिन्दी में।





दुआ में खुशूओ खुजूअ कैसे अपनाया जाए ? 

सवाल :-  दुआ में खुशूअ़ और खुजूअ़ कैसे अपनाया जाए ?

 जवाब :-  दुआ में खुशूअ़ और खुजूअ़ अपनाने के लिये इस की अहमियत व इफ़ादियत को पेशे नज़र रखना और इस के आदाब का जानना ज़रूरी है । 

जिस तरह इन्सान को किसी दुनियावी बादशाह या किसी भी ओहदे दार वगैरा से कोई गरज या हाजत होती है।

तो वोह उस के सामने ख़ाशिआना अन्दाज़ इख़्तियार करता है , 

अदबो एहतिराम और इन्तिहाई तवज्जोह के साथ उस की बारगाह में अपनी दरख्वास्त पेश करता है ।

क्यूं कि उसे मालूम है कि अगर ला परवाई और ग़फ़लत से काम लिया तो बात नहीं बनेगी ।

जब दुनियावी बादशाहों और ओहदे दारों के पास जाने और उन की बारगाहों के आदाब बजा लाने का यह आलम है।

 तो अल्लाह जो बादशाहों का भी बादशाह है।

 उस की बारगाह में अपनी हाजत पेश करने और उस की बारगाह के आदाब बजा लाने का किस क़दर एहतिमाम होना चाहिये।

 यह हर जी शऊर समझ सकता है । मगर अफ़सोस ! सद करोड़ अफ़सोस ! 

हम इस से गाफ़िल हैं , जब दुआ का वक्त आता है हम अपनी हाजात अहकमुल हाकिमीन की बारगाह में पेश कर रहे होते हैं।

 मगर हमें मालूम ही नहीं होता कि हम क्या मांग रहे हैं ?

 ला परवाई के साथ इधर उधर देख रहे होते हैं , उंग्लियों , नाखुनों या दाढ़ी के बालों से खेल रहे होते हैं।

 बल्कि बहुत सारे लोग तो नाखुनों से मैल निकाल रहे होते हैं । 

और उनको यह सब करना टाइम पास लगता है कि कब दुआ पूरी कब घर भागें।

और फिर शिक्वा यह होता है कि हमारी दुआ ही क़बूल नहीं होती !

 दुआ कैसे क़बूल हो हमें मांगने का तरीका ही नहीं आता ।

लिहाज़ा जब भी दुआ मांगें तो इन्तिहाई तवज्जोह और यक्सूई के साथ अपने दिलो दिमाग को हर चीज़ से फ़ारिग कर के दुआ के आदाब को बजा लाते हुए दुआ मांगें ।

खुशूओ खुजूअ भी हासिल होगा और दुआ भी क़बूल होगी ।

खुशूअ़ और खुजूअ़ कैसे बर क़रार रखा जाए ? 

सवाल :- नमाज़ में खुशूओ खुजूअ कैसे बर क़रार रखा जाए ? 

जवाब :- नमाज़ में खुशूओ खुजूअ पैदा करने और इसे बर क़रार रखने के लिये अल्लाह की अजमतो़ बुजुर्गी को पेशे नज़र रखा जाए । 

सूरए फ़ातिहा और कुरआने पाक की वोह मख्सूस सूरतें जो आप नमाज़ में पढ़ते हैं उन का तर्जुमा “ कन्जु़ल ईमान " से अच्छी तरह याद कर लीजिये ।

 इसी तरह अत्तहिय्यात , दुरूदे इब्राहीमी और दुआए कुनूत वगैरा का तर्जुमा भी अच्छी तरह जहेन नशीन कर लीजिये ।

और इन्हें पढ़ते वक्त इन के मआनी व मतालिब पर गौर करते चले जाइये ।

अपने आप ही खुशूओ खुजूअ पैदा होगा जैसा कि हज़रते सय्यिदना इमाम अबू मुहम्मद हुसैन बिन मसऊद बगवी रहमतुल्लाहि अलैह फ़रमाते हैं : 

नमाज़ में खुशूअ यह है कि इन्सान अपनी सारी तवज्जोह नमाज़ में मरकूज़ रखे ।

 उस के सिवा हर चीज़ से मुंह फेर ले और अपनी ज़बान से जो किरत और ज़िक्र कर रहा है उस के मतलब में गौरो फ़िक्र करे । 

नमाज़ और दुआ का क़िब्ला और उसके अहकाम ।

सवाल :- नमाज़ और दुआ का क़िब्ला क्या है ? 

और इन के अहकाम भी बयान फ़रमा दीजिये । 

जवाब :- नमाज़ का क़िब्ला खानए काबा है । 

अगर कोई ऐसी जगह पर है जहां खानए काबा उस की निगाहों के सामने है ।

तो ऐन खानए काबा की तरफ़ मुंह कर के नमाज़ पढ़ना ज़रूरी है ।

और जहां खानए काबा सामने न हो तो जिहते काबा ही क़िब्ला है । 

अगर किसी ने बिला उज्रे कि़ब्ले से 45 दरजे मुन्हरिफ़ हो कर नमाज़ अदा की तो उस की नमाज़ न होगी ।

या दौराने नमाज़ जान बूझ कर क़िब्ला से सीना फेर दिया तो उस की नमाज़ टूट जाएगी । 

यूं ही नमाज़ में बगैर उज्र के क़िब्ले से चेहरा फेरना भी मकरूहे तहरीमी है ।

 बहारे शरीअत जिल्द अव्वल सफ़हा 491 पर है :  मुसल्ली मतलब नमाज़ी  ने किब्ले से बिला उज्र कस्दन सीना फेर दिया।

 अगर्चे फौरन ही कि़ब्ले की तरफ़ हो गया , नमाज़ फ़ासिद हो गई यानी टूट गई  ।

और अगर बिला कस्द यानी बगैर इरादे के फिर गया और ब कदर तीन तस्बीह  की मिक्दार  के वफा न हुवा तो नमाज़  हो गई । 

अगर सिर्फ मुंह क़िब्ले से फेरा , तो उस पर वाजिब है कि फ़ौरन क़िब्ला  की तरफ़ कर ले और नमाज़ न जाएगी ।

मगर बिला उज्र मकरूह रही ।

बात दुआ के क़िब्ले की तो वोह आसमान है लिहाज़ा जब भी दुआ मांगें हथेलियां आसमान की तरफ़ फैली रखें कि यह दुआ के आदाब में से है ।

जैसा कि रईसुल मु - तकल्लिमीन हज़रते अल्लामा मौलाना नकी अली खान  दुआ के आदाब बयान करते हुए फरमाते हैं : 

दुआ में  हथेलियां फैली रखे ।

इस के हाशिये में सरकार आला हज़रत  फ़रमाते हैं  यानी उन में खम  झुकाव  न हो।

 कि आसमान क़िब्लए दुआ है , सारी कफ़े दस्त मुवाजहे आसमान रहे । 

 यानी पूरी हथेली आसमान की तरफ़ रहे । 

अगर किसी ने दुआ में क़िब्ले यानी आसमान  की तरफ़ कस्दन भी अपनी हथेलियां न की तो भी शरअन कोई गुनाह नहीं दुआ हो जाएगी ।

नमाज़ में आंखें बन्द रखना कैसा है ?

 सवाल :-  नमाज़ के दौरान आंखें बन्द रखना कैसा है ? 

जवाब :- नमाज़ में आंखें बन्द रखना मकरूहे तन्जीही है ।

अलबत्ता अगर आंखें बन्द रखने से नमाज़ में खुशूओ खुजूअ ज़्यादा आता हो।

 तो अब नमाज़ में आंखें बन्द रखना बेहतर है ।

जैसा कि दुर्रै मुख़्तार में है : नमाज़ में आंखें बन्द रखना मकरूह है। 

मगर जब खुली रहने में खुशूअ न होता हो तो बन्द करने में हरज नहीं । 

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Namaz Awabeen padhne ka tarika 

Question :- Namaz Awabeen kise kahate hain ? 

Aour ise Ada karane ka matalab padhane ka tarika bhi bayaan farama deejiye . 

Answer :- bahaare shareeat jild 1 page number 666 par hai : baade namaz e magarib matalab magarib ke namaaz padhane ke baad 

(6) six rakaaten namaaje avvaabeen padhana mustahab hain.

 is namaaz ko salaatul awabeen kahate hain .

 khwah ek salaam se namaz awabeen sab padh len matalab (6) chh: rakaat ek saath padhen.

 ya (2) do salaam se yaanee (4) chaar rakaat namaz awabeen kee niyat se padh len.

ya phir do (2-2) rakaat karake teen (3) salaam se namaz e awabeen padhe .

 aur (3) teen salaam se namaz e awabeen matalab har (2) do rakaat par salaam pherana afazal hai . 

agar koee ek hee salaam se hee namaz e  awabeen padhana chaahe to is ka tareeka yah hai ki 

namaaz e magarib kee teen rakaat farz padhane ke baad six (6) rakaat ek hee niyyat se namaz e  awabeen padhe .

har do (2) rakaat par qaeda kare aur us mein attahiyyaat , duroode ibraaheem aur dua padhe .

pahali , teesri aur panchwin rakaat kee ibtida mein sana aur tawuz va tasmiya bhi padhe . 

chhathi rakaat ke qaede ke baad salaam pher de . 

Dua mein khushoo khujoo kaise apanaaya jae ? 

Question :- Dua mein aajizi aour inksari kaise apanaaya jae ?

 Answer :- Dua mein aajizi aour inksari apanaane ke liye is kee ahamiyat wa ifaadiyat ko peshe nazar rakhana aur is ke aadaab ka janna zaroori hai . 

jis tarah insaan ko kisi duniyawi baadashaah ya kisi bhee ohade daar vagaira se koi garaj ya haajat hoti hai.

to woh us ke saamane khashiana andaaz ikhtiyaar karata hai , 

Adbo Ehatiraam Aour intihaee Tawajjoh ke saath us ki baaragaah mein apanee darakhwaast pesh karata hai .

kyoon ki use maaloom hai ki agar la parawahi aur gaflat se kaam liya to baat nahin banegi .

jab duniyawi baadashaahon aur ohade daaron ke paas jaane aur un ki baaragahon ke aadaab baja laane ka yah aalam hai.

 to allaah jo badashahon ka bhee baadashaah hai.

 us kee baaragaah mein apanee haajat pesh karane aur us ki baaragaah ke 

aadaab baja laane ka kis qadar ehatimaam hona chaahiye.

 yah har jee shoor samajh sakata hai . 

magar afasos ! sad karod afasos ! 

ham is se gaafil hain , jab dua ka waqt aata hai 

ham apanee haajaat ahakamul haakimeen kee baaragaah mein pesh kar rahe hote hain 

magar hamen maaloom hi nahin hota ki ham kya maang rahe hain ?

 la parawahi ke saath idhar udhar dekh rahe hote hain ,

 ungliyon , naakhuno ya daadhi ke baalon se khel rahe hote hain

 balki bahut saare log to naakhunon se mail nikaal rahe hote hain . 

aur unako yah sab karana taim paas lagata hai ki kab dua poori kab ghar bhaagen.

aur phir shiqwa yah hota hai ki hamaaree dua hee qabool nahin hotee !

 dua kaise qabool ho hamen maangane ka tareeka hee nahin aata lihaaza jab bhee dua maangen to

 intihaee tavajjoh aur yaksooee ke saath apane dilo dimaag ko har cheez se faarig kar ke dua ke aadaab ko baja laate hue dua maangen

  aajizi aour inksari bhi haasil hoga aur dua bhee qabool hogi .

khushoo aour khuzoo kaise bar qaraar rakha jaey ? 

Question :- namaaz mein khushooo khujoo kaise bar qaraar rakha jae ? 

Answer :- namaaz mein khushoo aour khujoo paida karane aur ise bar qaraar rakhane ke liye

 allaah kee azamato bujurgi ko peshe nazar rakha jaey . 

soorah faatiha aur Quran e paak ki woh makhsoos sooraten jo aap namaaz mein padhate hain 

un ka tarjuma “ kanzul imaan " se achchhi tarah yaad kar leejiye .

 isee tarah attahiyyaat , duroode ibraaheemi aur dua e qunoot wagaira ka tarjuma bhee achchhi tarah jahen nasheen kar l8jiye .

aur inhen padhate waqt in ke mayni wa matlab par gaur karate chale jaiye .

apane aap hi khushooo khujoo paida hoga 

jaisa ki hazarate sayyidna imaam abu muhammad husain bin masood rahamatullaahi alaih faramaate hain : 

namaz mein khushoo ye hai ki insaan apanee saari tawajjoh namaz mein marakooz rakhe .

 us ke siwa har cheez se munh pher le 

aur apanee zabaan se jo qiraat aur zikr kar raha hai us ke matalab mein gauro fikr kare . 

namaaz aur dua ka Qibla aour ahakaam 

Question :- namaaz aur dua ka Qibla kya hai ? 

aur in ke ahakaam bhee bayaan farama deejiye . 

Answer :- namaaz ka Qibla khaana e kaaba hai , 

agar koee aisee jagah par hai jahaan khaana e kaaba us ki nigaahon ke saamane hai .

to ain khaana e kaaba ki taraf munh kar ke namaaz padhana zaroori hai .

aur jahaan khaana e kaaba saamane na ho to jihate kaaba hi Qibla hai . 

agar kisi ne bila ujre kible se 45 daraje munharif ho kar namaz ada kee to us kee namaz na hogi .

ya daurane namaz jaan boojh kar Qibla se seena fer diya to us ki namaz toot jayegi . 

yoon hi namaz mein bagair ujr ke Qible se chehara ferana bhi makaroohe tahareemee hai .

 bahaare shareeat jild awwal page number 491 par hai : " musalli matalab namaazi ne Qible se bila ujr kasdan seena fer diya.

 agar ke fauran hi Qible ki taraf ho gaya , namaaz faasid ho gayi yaani toot gayi .

aur agar bila kasd  yaani bagair iraade ke  fir gaya aur ba kadar teen tasbeeh  ki miqdaar  ke wafa na huwa to namaaz ho gayi . 

agar sirf munh Qible se fera , to us par waajib hai ki fauran Qibla ki taraf kar le aur namaaz na jaegee .

magar bila ujr makarooh rahi

 baat dua ke Qible ki to woh aasmaan hai 

Lihaaza jab bhi Dua maangen hatheliyan aasmaan ki taraf failayi rakhen ki yeh Dua ke aadaab mein se hai .

jaisa ki raeesul mu - takallimeen hazarate allaama maulaana nakee alee khaan dua ke aadaab bayaan karate hue faramaate hain : 

dua mein hatheliyaan failayi rakhe .

is ke haashiye mein sarakaaraala hazarat faramaate hain 

 yanee un mein kham jhukaaw na ho ki aasmaan Qibla e dua hai , 

saaree kafe dast muwaajahe aasamaan rahe . 

 yaanee poori hatheli aasamaan kee taraf rahe . 

agar kisi ne dua mein qible yaani aasamaan ki taraf kasdan bhee apani hatheliyaan na ki to bhee sharan koi gunaah nahin dua ho jayegi. 

namaaz mein aankhen band rakhana kaisa hai ?

 Question :- namaz ke dauraan aankhen band rakhana kaisa hai ? 

Answer :- namaaz mein aankhen band rakhana makaroohe tanjeehee hai .

alabatta agar aankhen band rakhane se namaaz mein khushoo khujoo zyaada aata ho

 to ab namaaz mein aankhen band rakhana behatar hai .

jaisa ki durre mukhtaar mein hai : 

namaaz mein aankhen band rakhana makarooh hai. 

magar jab khulee rahane mein khushoo na hota ho to band karane mein haraj nahin . 

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