बिदअत और बिदअती | bidat meaning in islam in hindi| बिद'अत के हिंदी अर्थ
आज हम सिर्फ़ "बिदअत का मअनी" और "बिदअत की बुराई" समझने की कोशिश करेंगे इन शा अल्लाह अगले पार्ट मैं "बिदअत की ख़ुदसाख़्ता तक़्सीम" पर चर्चा करेंगे ।
बिदअत का मअनी (मतलब)?
लुग़त (डिक्शनरी) में बिदअत का मतलब कोई चीज़ ईजाद करना या नये सिरे से बनाना होता है ।
और शरई इस्तेलाह में 'बिदअत' सवाब हासिल करने की ग़रज़ से दीन में किसी ऐसी चीज़ (बात) का बढ़ाना है ।
जिसकी बुनियाद असल सुन्नत में मौजूद न हो। यानी हर वह चीज़ जिसको दीन में अल्लाह का तक़र्रुब हासिल करने के लिए ईजाद किया गया हो और उसकी सेहत पर कोई दलील न अल्लाह की किताब से हो, न सुन्नत रसूल (ﷺ) से और न ही सहाबा किराम (रदि अल्लाहु अन्हु) ने उस काम को किया हो, बिदअत कहलाती है ।
bidat meaning in islam in hindi |
- हज़रत आइशा (रज़ि.) से रिवायत है कि नबी (ﷺ) ने फ़र्माया जिसने मेरे दीन में कोई चीज़ ईजाद की जो उसमें से नहीं है तो वह चीज़ मरदूद (रद्द) है।
(बुख़ारी: 2697, मुस्लिम)
- हज़रत आइशा ( रज़ि ) से मरवी है कि रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया जिसने कोई ऐसा काम (अमल) (दीन में) किया जिसके करने का मैंने हुक्म नहीं दिया तो वह काम मरदूद (रद्द) है।
( मुस्लिम )
बिदअत की बुराई ?
- हज़रत जाबिर (रज़ि.) से रिवायत है कि रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया बेहतरीन बात अल्लाह की किताब है और बेहतरीन हिदायत मुहम्मद (ﷺ) की हिदायत है और बदतरीन काम दीन में नई बात ईजाद करना है ।और नई चीज़ बिदअत है और हर बिदअत गुमराही है। (मुस्लिम 1471, इब्नेमाजा: 045) और हर गुमराही आग में ले जाने वाली है। (नसई: 1581)
- हज़रत अली (रज़ि.) से रिवायत है कि नबी (ﷺ) ने फ़र्माया- अल्लाह ने लअनत की है उस शख़्स पर जो ग़ैरुल्लाह के नाम पर जानवर ज़िब्ह करे, जो ज़मीन की हदें तब्दील करे, जो अपने वालिद पर लअनत करे और जो बिदअती को पनाह दे। (मुस्लिम)
- अनस इब्ने मालिक (रज़ि.) से रिवायत है कि रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया- अल्लाह तआला बिदअती की तौबा क़ुबूल नहीं करता जब तक कि वह बिदअत को छोड़ न दे। (तबरानी - तरग़ीब व तरहीब अल्बानी : 052)
- अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास (रज़ि.) से मरवी है कि नबी (ﷺ) ने फ़र्माया अल्लाह तआला बिदअती का कोई अमल कुबूल नहीं करता, यहां तक कि वह अपनी बिदअत छोड़ दें और तौबा कर ले । (इब्ने माजा: 50 (ज़ईफ़)
- हज़रत सहल बिन सअद (रज़ि.) से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ने फ़र्माया- मै हौज़े - क़ौसर पर तुम्हारा मेज़बान होऊंगा। जो वहा आयेगा, पानी पियेगा और जिसने एक बार पी लिया उसे कभी प्यास नहीं लगेगी। कुछ लोग ऐसे भी आयेंगे जिन्हें मैं पहचानूंगा और वह भी मुझे पहचानेंगे कि मैं उनका रसूल हूँ। फ़िर उन्हें मुझ तक आने से रोक दिया जायेगा। मैं कहूंगा यह तो मेरे उम्मती है लेकिन मुझे बतलाया जायेगा कि मुहम्मद (ﷺ) आप नहीं जानते कि आपके बाद इन लोगों ने कैसी-कैसी बिदअते जारी की है। फ़िर मैं कहूंगा- दूरी हो, दूरी हो ऐसे लोगो के लिये जिन्होंने मेरे बाद दीन को बदल डाला। (बुख़ारी : 6584, 7051, मुस्लिम)
- हज़रत आसिम (रजि.) ने कहा कि मैंने हज़रत अनस (रज़ि.) से पूछा- क्या रसूलुल्लाह (ﷺ) ने मदीना को 'हरम' क़रार दिया है? उन्होंने कहा- हाँ। फ़लां जगह से फ़लां जगह तक कोई पेड़ न काटा जाये न कोई बिदअत जारी की जाये। इसके अलावा नबी (ﷺ) ने फ़र्माया- जो शख़्स यहां कोई बिदअत जारी करे, उस पर अल्लाह की, फ़रिश्तों की और सारे लोगों की लअनत है। (मुस्लिम बुख़ारी 1867, 7306)
- जरीर बिन अब्दुल्लाह (रजि.) से रिवायत है कि रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया- 'जिसने मेरी सुन्नत से कोई एक सुन्नत ज़िन्दा की और लोगों ने उस पर अमल किया तो सुन्नत ज़िन्दा करने वालों को भी उतना ही सवाब मिलेगा जितना उस सुन्नत पर अमल करने वाले तमाम लोगों को मिलेगा जबकि लोगों के अपने सवाब में से कोई कमी नहीं की जायेगी और जिसने कोई बिदअत जारी की और फ़िर उस पर लोगों ने अमल किया तो बिदअत जारी करने वाले पर उन तमाम लोगों का गुनाह होगा जो उस बिदअत पर अमल करेंगे जबकि बिदअत पर अमल करने वाले लोगों के अपने गुनाहों की सज़ा से कोई चीज़ कम नहीं होगी ।' (इब्ने माजा: 203, मुस्लिम, तिर्मिजी: 2460)
- हज़रत अबू हुरैरा (रज़ि.) से रिवायत है कि रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया - जिस शख़्स ने लोगों को हिदायत की दअवत दी उसे उस हिदायत पर अमल करने वाले तमाम लोगों के बराबर सवाब मिलेगा और हिदायत पर अमल करने वालों का अन (सवाब) भी कम नहीं होगा। इसी तरह जिस शख़्स ने लोगों को गुमराही (बिदअत) की तरफ़ बुलाया उस शख़्स पर उन तमाम लोगों का गुनाह होगा जो उस गुमराही पर अमल करेंगे जबकि गुनाह करने में से कोई कमी नहीं की के जायेगी । (Jami ' at - Tirmidhi 2674)
- सुफ़यान बिन सीरीन (रह.) कहते हैं कि शुरू-शुरू में लोग हदीस की सनद के बारे में सवाल नहीं करते थे लेकिन जब फ़ला (बिदआत और मनघड़त रिवायत) का फैलना शुरू हुआ तो लोगों ने हदीस की सनद पूछना शुरू कर दी। (और यह उसूल भी बना लिया) कि देखा जाये कि अगर हदीस बयान करने वाले अहले सुन्नत है तो उनकी हदीस क़ुबूल की जायेगी अगर अहले-बिदअत है तो उनकी हदीस क़ुबूल नहीं की जायेगी। (मुस्लिम - मुक़दमा बाब- बयानुल असानीद पेज 33)
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