Fazail e Ramazan – फ़ज़ाइले रमजान शरीफ एक बार ज़रूर पढ़ें रमजान क्यों मनाया जाता है ramzan sharif ki fazilat
fazail e ramzan hindi
फज़ाइले रमज़ान:- ऐ ईमान वालों तुम पर रोज़े फर्ज़ किये गए हैं जैसा कि तुम से पहले लोगों पर रोज़े फर्ज़ थे। ताकि तुम मुत्तकी हो जाओ (अल् कुरआन)
हदीस :- रोज़ा मेरे लिये है, और मैं ही उसकी जज़ा हूँ ।
मसअला : रोज़ा अल्लाह तआला की इबादत की नियत से सुबह सादिक से लेकर सूरज डूबने तक। खाने-पीने और जिमाअ से रूके रखना।
मसअला : औरत हैज़ व निफास से पाक होने पर इन दिनों के रोज़े कि कज़ा रखे नाबालिग पर रोजा फर्ज़ नहीं । (आम्माए कुतुब )
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मसअला : रोज़ा की हालत में तेल या सुरमा या इत्र लगाने से रोज़ा नहीं टूटता बाल कटवाना नाखून काटना रोज़े की हालत में भी जाइज़ है।
फज़ाइले सेहरी।
हदीस :- रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फरमाया सेहरी खाओ सहरी खानें में बरकत है।
रोज़ा रखने की नियत roza rakhne ki dua
नवैइतु अन असूमा गदन लिल्लाहि तअला मिन फरजि रमज़ान हाजा।
फज़ाइले इफ्तार ।
हदीस:- रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फरमाया जब कोई इफ्तार करे तो खजूर या छुआरे से करे कि इसमें बरकत है, या पानी से ।
रोज़ा इफ्तार करने का तरीका व दुआ
पहले बिस्मिल्लाह पढ़ कर अफ्तार खोलें
फिर यह दुआ पढ़े।
iftar ki dua hindi
अल्ला हुम्मा लका सुमतु व बिका आमन्तु व अलैइका तवक्कलैतु व अला आली रिज़किका अतरतू।
तरावीह travi
मसअला:- तरावीह की नमाज़ जिस तरह मर्दों के लिए सुन्नते मुअक्किदा है, इसी तरह औरतों के लिए भी सुन्नते मुअक्किदा है, इसका छोड़ना जाइज़ नहीं ।
तस्बीह ए तरावीह तरावीह की दुआ हिन्दी में | travi namaz ki dua
सुबहान जिल मुल्कि वल म ल कूत सुब्हान ज़िल इज्जती वल अ-ज़-मति वल-हैबति वल कुदरति वल-किब्रियाइ वल-ज-ब रुत सुब्हा-नल मलिकिल हैय्यिल्लजी ला यनामु व ला यमूतू सुब्बुहुन कुसुन रब्बुना व रब्बुल मलाइकति वरूह अल्लाहुम्मा अजिरना मिनन्नारि या मुजीरु या मुजीरु या मुजीर।
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ज़कात का बयान zakat ka bayan
अल्लाह तआला फरमाता है
भलाई पाते हैं वो लोग जो ज़कात अदा करते हैं,
और फरमाता है जो कुछ तुम खार्च करोगे, अल्लाह | तआला इसकी जगह और देगा, अल्लाह तआला बेहतर रिज़्क देने वाला है
और फरमाता है जी सोना चांदी जमा करते और अल्लाह तआला की राह में खार्च नहीं करते, उन्हें दर्दनाक अज़ाब की खुश- खबरी सुना दी। (अल् कुरआन )
मसअला : ज़कात वाजिब होने की शर्तें ।
1. मुसलमान होना।
2. बालिग होना।
3. आकिल होना।
4. आज़ाद होना।
5. मालिके निसाब होना।
6. पूरे तौर पर मालिक होना।
7. दैन से फारिग होना।
8. हाजते असलिया से फारिग होना।
9. पूरा साल गुज़ारना।
ज़कात के मसाएल:- हर आक़िल व बालिग़ मुसलमान मर्द व औरत जिस के पास, हाजते असलिया के अलावा साढ़े सात (7.50 )तोला सोना या साढ़े बावन (52.50) तोला चाँदी या उसके बराबर रकम हो वो साहिबे निसाब है ।
उस पर माल चालीसवाँ (40) हिस्सा यानी (100₹) सौ रुपये पर ढाई रुपये (2.50₹)अदा करना वाजिब है, दूसरी चीजें भी दे सकते हैं मगर कीमत उसके बराबर हो।
ज़कात माँ, बाप, दादा, दादी, नाना, नानी, बेटा, बेटी, पोता, पोती, नवासा,नवासी को देना जाएज़ नही उसी तरह शौहर बीवी एक दूसरे को ज़कात नही दे सकते।
मसअला : सोने का निसाब साढ़े (7.50 )सात तोला सोना और चांदी का निसाब (52.50) साढ़े बावन तोला है ।
सद्का-ए-फित्र sadqa fitr ki miqdar
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फरमाया बन्दे का रोज़ा आसमान और ज़मीन के बीच में रूका रहता है जब तक सद्का-ए-फित्र अदा न करें।
सदकए फित्रः- हर साहिबे निसाब मुसलमान मर्द व औरत पर अपनी और अपनी नाबालिग़ औलाद की तरफ से फी आदमी 2 किलो 45 ग्राम गेहूँ या उसकी कीमत अदा करे।
सदकए फित्र नमाज़े ईद से पहले अदा करना सुन्नत है। न दिया तो बाद में देदे अदा हो जायगा। सदकए फित्र गैर मुस्लिम को देना जायज नही।
अपील:- अलहम्दुलिल्लाह जमुडी मदरसा में 37 बच्चे कुरआन शरीफ पढ़ रहे हैं आप अपना सदका जकात अपने मदरसा में देकर व अपने मरहूमीन के नाम से सदका ए जारिया की नियत से तआउन करके मदरसे को आगे बढ़ाने में मदद करें।
और मस्जिद में वजू खाना और मस्जिद की बाउंड्री होना बहुत जरूरी है जिससे जानवर मस्जिद की सेहन में आने से रुक जाये आप अपना सदका जकात से व अतियात से अपने मदरसा को बढ़ायें।
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