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इख़्तियारे मुस्तफ़ा अहादीसे तय्यबा की रौशनी में
इमामे अहले सुन्नत मुजद्दिदे दीनो मिल्लत सय्यिदना इमाम अहमद रज़ा ख़ान अलैहिर्रहमतो वरिज़वान फ़रमाते हैं कि
अहकामे इलाहिया की दो क़िस्में हैं ।
(1) अव्वल , तकवीनिय्यह :
- मिस्ल एहया ( ज़िन्दा करना )
- इमातत ( मौत देना )
- क़ज़ाए हाजत ,
- दफ़्ए मुसीबत ,
- अताए दौलत ,
- रिज़्क़ ,
- नेअमत ,
- फ़तह और
- शिकस्त वग़ैरहा आलम के बन्दोबस्त
(2) दुवम , तशरीइय्यह : कि किसी फ़ेल को फ़र्ज़ , या हराम या वाजिब या मकरूह या मुस्तहब या मुबाह करना ।
मुसलमानों के सच्चे दीन में इन दोनों हुक्मों की एक ही हालत है कि ग़ैरे ख़ुदा की तरफ़ बवजहे जाती ( जाती तौर पर ) अहकामे तशरीई की इस्नाद ( निस्बत ) भी शिर्क
अल्लाह फ़रमाता है : ( सूरए शूरा , आयत नं . 21 ) क्या उनके लिये ख़ुदा की उलूहियत में कुछ शरीक हैं जिन्होंने उनके वास्ते दीन में वह राहें निकाल दीं जिनका ख़ुदा ने हुक्म न दिया ।
और बर वजहे अताई ( अताई तौर पर ) उमूरे तक्वीन की इस्नाद भी शिर्क नहीं ।
power of prophet muhammad |
अल्लाह फ़रमाता है : ( सूरए नाज़िआत , आयत नं . 5 ) क़सम उन मक़बूल बन्दों की जो कारोबारे आलम की तदबीर करते हैं ।
हज़रत शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिसे देहलवी तोहफ़ए इस्ना अशरिय्यह में फ़रमाते हैं
हज़रत अली मुश्किल कुशा और उनकी औलादे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हुम को तमाम उम्मत अपने मुर्शिद जैसा समझती है।
और उमूरे तक्वीनिय्यह को उन से वाबस्ता जानती है और फ़ातिहा दुरूद , सदक़ात और उनके नामों की नज्र वग़ैरह देना राइजो मामूल है ।
कि मगर कच्चे वहाबी इन दो क़िस्मों में फ़र्क़ करते हैं अगर कहिये रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यह बात फ़र्ज़ की या फ़लां काम हराम कर दिया तो शिर्क का सोदा नहीं उछलता ।
और अगर कहिये रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने नेअमत दी या ग़नी कर दिया तो शिर्क सूझता है ।
यह उनका निरा तहक्कुम ही नहीं खुद अपने मज़हबे ना मुहज़्ज़ब में कच्चा पन है जब जाती व अताई का फ़र्क़ उठा दिया फिर अहकाम में फ़र्क़ कैसा सबका यकसां शिर्क होना लाज़िम । ( अल अमनो वल उला , सफा 170 )
मदीना तैय्यिबा को हरम बनाया | madina tayyaba ko huzoor ne haram banaya
हदीस नं . 1 :- हज़रत अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है , उनका बयान है कि रसूले अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने अपने रब के हुज़ूर अर्ज़ किया इलाही ! मैं मदीनए तैरियबा के दोनों पहाड़ों के बीच को हरम बनाता हूँ ,
जिस तरह हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलातो वस्सलाम ने मक्का को हरम बनाया । ( सही बुख़ारी , सफा 816/2 , सही मुस्लिम , सफा 441/1 , मुस्नद इमाम अहमद बिन हम्बल , सफा 195 / 3 , अत्तरग़ीब वत्तरहीब , सफा 229 / 2 कन्जुल उम्माल सफा 109 / 12 , हदीस नं . 34867 )
इमाम अहमद रज़ा बरैलवी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फ़रमाते हैं :-
इस मतलब की हदीसें सिहाह , सुनन और मसानीद वग़ैरहा में ब कसरत हैं , जिनमें हुज़ूर सय्यिदुल आलमीन सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने साफ़ साफ़ हुक्म फ़रमा दिया कि मदीनए तैय्यिबा और उसके गिर्दो पेश के जंगल का वही अदब किया जाए जो मक्कए मुअज़्ज़मा और उसके जंगल का है ।
यही मज़हब अइम्मए मालिकिया व शाफ़इय्या व हंबलिया और ब कसरत सहाबा व ताबिईन रिज़वानुल्लाहि तआला अलैहिम अजमईन का है ।
हुज़ूर नेअमत देते हैं |huzoor nemat dete hain
हदीस नं . 2 :- हज़रत उसामा बिन ज़ैद रज़ियल्लाहु तआला अन्हुमा से मरवी है , उनका बयान है कि मैं रसूले अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के काशानए अक़दस के क़रीब बैठा था कि हज़रत अली व हज़रत अब्बास रज़ियल्लाहु तआला अन्हुमा हुज़ूर की बारगाहे आलिया में हाज़री की ग़रज़ से तशरीफ़ लाए इन दोनों ने फ़रमाया।
ऐ उसामा !
हमारे लिये हुज़ूर से हाज़री की इजाज़त ले लो ।
मैंने सरकार की ख़िदमत में हाज़िर होकर अर्ज़ किया या रसूलल्लाह !
हज़रत अली और हज़रत अब्बास रज़ियल्लाहु तआला अन्हुमा आपकी बारगाह में हाज़री चाहते हैं ।
फ़रमाया जानते हो यह दोनों किस लिये आए हैं ?
मैंने अर्ज़ किया नहीं ।
आपने फ़रमाया , लेकिन मैं जानता हूँ , आने दो ।
दोनों ने हाज़िर होकर अर्ज़ किया या रसूलल्लाह !
हम यह पूछने आए हैं कि आपको अपने अहले बैत में कौन ज़्यादा महबूब है ।
फ़रमाया फ़ातिमा बिन्ते मुहम्मद उन्होंने अर्ज़ किया हम आपके ख़ास घर की बात नहीं कर रहे हैं , फ़रमाया मुझे क़राबत दारों में वह ज़्यादा महबूब है जिस पर अल्लाह तआला ने इनआम फ़रमाया और मैंने इनआम किया ।
यानी उसामा इब्ने ज़ैद उन्होंने अर्ज़ किया फिर कौन ज़्यादा महबूब है ।
आपने फ़रमाया अली बिन अबी तालिब यह सुनकर हज़रत अब्बास ने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह !
क्या आपके चचा का मक़ाम बाद में है।
फ़रमाया हां क्योंकि अली ने तुम पर हिजरत में सबक़त कर ली । ( सुनने तिर्मिज़ी , स . 223 /2 )
अल्लामा अली क़ारी अलैहि रहमतु रब्बिहिल बारी फ़रमाते हैं :
सहाबा में कोई भी ऐसा नहीं है जिस पर अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इनआम न हो , मगर यहाँ वह मुराद हैं जिनकी सराहत कुरआने पाक में मौजूद है ।
और वह ख़ुदावन्द कुद्दूस का यह इरशाद है कि जब फ़रमाता था तू उससे जिसे अल्लाह तआला ने नेअमत दी और ऐ नबी तूने उसे नेअमत दी , और वह ज़ैद बिन हारिसा हैं ।
इसमें न किसी को इख़्तिलाफ़ है और न कोई शक अगर चेह यह आयते करीमा हज़रत जैद के हक़ में नाज़िल हुई है ।
मगर हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इसका मिस्दाक़ हज़रत उसामा बिन ज़ैद रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को ' ठहराया क्योंकि बेटा बाप के ताबेअ होता है ।
आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा |
इमाम अहमद रज़ा फ़ाज़िले बरैलवी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फ़रमाते हैं
न सिर्फ़ सहाबए किराम बल्कि तमाम अहले इस्लाम अव्वलीन व आख़िरीन सब ऐसे ही हैं जिन्हें अल्लाह अज़्ज़ व जल्ला ने नेअमत दी और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने नेअमत दी ।
पाक कर देने से बढ़ कर और क्या नेअमत होग़ी जिस का ज़िक्र आयते करीमा में बारहा सुना होगा कि :
( सूरए बक़रह , आयत 129 , सूरए आले इमरान , आयत 164 ) यानी उन्हें पाक और सुथरा कर देता है बल्कि ला वल्लाह ( ख़ुदा की क़सम ) तमाम जहान में कोई शै ऐसी नहीं जिस पर अल्लाह का एहसान न हो और अल्लाह के रसूल का एहसान न हो ।
अल्लाह फरमाता है : ( सूरए अंबिया , आयत नं . 107 ) हमने न भेजा तुम्हें मगर रहमत सारे जहान के लिये ।
जब वह तमाम आलम के लिये रहमत हैं तो सारे जहान पर उनकी नेअ़मत है सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ।
अहले कुफ़्र और अहले कुफ़ान ( काफ़िर और ना शुक्री करने वाले ) न मानें तो क्या नुक़सान । ( अल अमनु वल उला , स . 135 136 )
हुज़ूर ने जन्नत अता फ़रमाई | jannat ke malik hamare nabi hain
हदीस नं . 3 :- हज़रत रबीआ बिन कअब रज़ियल्लाहु अन्हु से मरवी , उनका बयान है कि मैंने एक रात सरकार की ख़िदमत में गुज़ारी।
( फिर आप जब सुबह तहज्जुद के वक़्त बेदार हुए तो मैं ) आपके वुज़ू वग़ैरह के लिये पानी लाया तो हुज़ूर रहमते आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझसे फ़रमाया , मांग क्या मांगता है ।
( ताकि मैं तुझे अता फ़रमाऊँ ) तो मैंने अर्ज़ की या रसूलल्लाह !
मैं जन्नत में आपकी रिफ़ाक़त चाहता हूँ आपने फ़रमाया इसके अलावा भी कुछ चाहिये ?
मैंने अर्ज़ की मुझे तो यही काफ़ी है ।
तो आपने मुझसे फ़रमाया तू अपने नफ़्स की इस्लाह में कसरते सुजूद के ज़रीए मेरी मदद कर । ( सही मुस्लिम , सफा 193/1 मुस्नदे इमाम अहमद बिन हंबल , सफा 74/4 सुनने अबी दाऊद जिल्द अव्वल , सफा 203/1 सुनने नसाई , सफा 171 / 1 उत्तरग़ीब वत्तरहीब . सफा 250 / 1 कन्जुल उम्माल , सफा 124 / 7 हदीस 19002 )
हज़रत अल्लामा अली क़ारी अलैहि रहमतुल बारी फ़रमाते हैं :
यानी हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने मुतलक़न तलब करने का हुक्म दिया इससे यह बात साबित होती है कि अल्लाह तआला ने हुज़ूर को यह इख़्तियार अता फ़रमाया है कि वह अल्लाह तआला के ख़ज़ानों में से जो चाहें अता फ़रमा दें ।
इसी वजह से हमारे अइम्मा ने आपकी एक खुसूसियत यह भी बयान की है कि आप जिसे जो चाहें बख़्श दें ।
फिर फ़रमाते हैं इब्ने सबअ वग़ैरह उलमाए किराम ने हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की ख़ुसूसियत में से एक ख़ुसूसियत यह भी बयान की है कि अल्लाह तआला ने जन्नत की ज़मीन हुज़ूर की जागीर कर दी है कि इसमें से जो चाहें जिसे चाहें दे दें । ( मिरक़ातुल मफ़ातीह , स . 615/2 )
हज़रत शाह अब्दुल हक़ मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाहि अलैह अशिअतुल लम्आत शरह मिश्कात में लिखते हैं :
यानी मुतलक़ सवाल से फ़रमाया मांग और किसी मतलूब की तख़सीस न की , इससे मालूम हुआ कि सब के सब काम आपके क़ब्ज़ा व इख़्तियार में हैं कि आप जो चाहें जिसके लिये चाहें अपने रब की अता से देते हैं
क्योंकि दुनियां व आख़िरत की नेअ़मतें आपकी जूदो सख़ा का एक ज़र्रा हैं और लौहो क़लम का इल्म आपके उलूम का एक हिस्सा है । ( अशिअ अतुल लम्आत , सफा 396/1 )
हुज़ूर हाफ़िज़ो नासिर हैं | keya huzoor hafizo nasir hain
हदीस नं . 4 :- अमीरुल मोमिनीन सरियदुना उमर फ़ारूक़े आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है ।
इनका बयान है कि रसूले पाक सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया जिसका कोई मददगार नहीं , अल्लाहो रसूल उसके मददगार हैं । ( सुनने तिर्मिज़ी , सफा 31 / 2 सुनने इब्ने माजह , सफा 201 , मुस्नद इमाम अहमद बिन हंबल , सफा 36 / 2 सुनने दार कुतनी , सफा 47/4 )
इमाम अहमद रज़ा बरैलवी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फ़रमाते हैं
हाफ़िज़ो नासिर है । अल्लाह तआला क़ुरआने करीम में इरशाद फ़रमाता है ( सूरए मायदह , आयत नं . 55 ) ऐ मुसलमानो !
तुम्हारा मददगार नहीं मगर अल्लाह और उसका रसूल और वह ईमान वाले जो नमाज़ क़ाइम रखते हैं और ज़कात देते हैं और वह रुकू करने वाले हैं ।
अकूलु , ( मैं कहता हूँ ) यहाँ अल्लाह व रसूल और नेक बन्दों में मदद को मुनहसिर फ़रमाया कि बस यही मददगार हैं ।
तो ज़रूर ये मददे ख़ास है जिस पर नेक बन्दों के सिवा और लोग क़ादिर नहीं , वर्ना आम मददगारी का इलाक़ा तो हर मुसलमान के साथ है । ( अल अमनु वल उला , सफा 103 )
हुज़ूर जन्नत के मालिक हैं | keya huzoor jannat ke malik hain
हदीस नं . 5 :- हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु तआला अन्हुमा से मरवी है उनका बयान है कि रसूले पाक सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया क़ियामत के दिन तमाम अगलों पिछलों को जमा किया जाएगा फिर नूर के दो मिंबर लाए जाऐंगे ।
जिन्हें अर्श के दाहिने बाएं नसब कर दिया जाएगा और उन दोनों मिंबरों पर दो शख़्स चढ़ेंगे , फिर अर्श के दाहिनी जानिब वाला शख़्स पुकारेगा ऐ गिरोहे मख़लूक !
जिसने मुझे पहचाना उसने पहचाना और जिसने न पहचाना ( वह अब पहचान ले ) में दारोग़ए जन्नत रिज़वान हूँ ।
मुझे अल्लाह अज़्ज़ व जल्ला ने हुक्म दिया है कि जन्नत की कुन्जियाँ हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के सुपुर्द कर दूँ । और हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने मुझे हुक्म दिया है कि मैं वह कुन्जियाँ अबू बक्र व उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हुमा को दे दूँ ताकि वह अपने मुहिब्बीन को जन्नत में दाख़िल कर लें ।
सुनते हो गवाह हो जाओ । फिर अर्श के बाएं जानिब वाला शख़्स पुकारेगा ऐ गिरोहे मखलूक !
जिसने मुझे पहचाना उसने पहचाना । और जिसने न पहचाना ( वह अब पहचान ले ) मैं दारोग़ए जहन्नम मालिक हूँ ।
अल्लाह तबारक व तआला ने मुझे हुक्म दिया है कि मैं जहन्नम की कुन्जियाँ मुहम्मदे अरबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को दे दूँ ।
और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझे हुक्म दिया है कि मैं वह चाबियाँ अबू बक्र व उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हुमा के सुपुर्द कर दूँ ।
ताकि वह अपने दुश्मनों को जहन्नम में भेज दें । ( तारीख़े दमिश्क़ , सफा 231/4 अतहाफुस्सादतिल मुत्तक़ीन , सफा 176/9
हुज़ूर दाफ़िए बलय्यात हैं | huzoor dafa e bala han
हदीस नं . 6 : - हज़रत वहब बिन मुम्बह रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है , इनका बयान है कि रसूले पाक सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि
अल्लाह तबारक व तआला ने हज़रत शभ्या अलैहिस्सलातु वस्सलाम की तरफ़ वही भेजी कि मैं एक नबिय्ये उम्मी को भेजने वाला हूँ जिसके ज़रीए बहरे कान , ग़िलाफ़ चढ़े दिल ( बन्द दिल ) और अन्धी आँखें खोल दूँगा ।
- उसी के सबब गुमराही के बाद हिदायत दूँगा ,
- उसी के ज़रीए जहालत के बाद इल्म दूँगा , उसी के वसीले से गुमनामी के बाद नेक नामी दूँगा ,
- उसी के वास्ते से आम आदमी को नामवर कर दूँगा ,
- उसी के जरीए से क़िल्लत को कसरत में बदल दूँगा ,
- उसी की वजह से तंगदस्ती को कुशादगी में बदल दूँगा ,
- उसी के सबब बिछड़ों को मिला दूँगा और उसी के वसीले से दिलों में महब्बत पैदा करूँगा
- और मुख़्तलिफ़ ख़्वाहिशात रखने वालों और मुख़्तलिफ़ क़ौमों में इत्तिफ़ाक़ काइम करूँगा ।
हुज़ूर ईमान वालों के जिस्मो जान के मालिक हैं
हदीस नं . 7 : - हज़रत अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया , मैं दुनियां व आख़िरत में हर मोमिन से ज़्यादा उसका मालिक हूँ।
चाहो तो इस सिलसिले में इस आयते करीमा से इस्तिदलाल कर लो ( ख़ुदा फ़रमाता है सूरए अहज़ाब , आयत नं . 6 ) नबी मुसलमानों का उनकी जान से ज़्यादा मालिक हैं । ( सही बुख़ारी , सफा 705/2 सही मुस्लिम सफा 36 / 2 मुस्नदे इमाम अहमद बिन हंबल , सफा 446 / 2 )
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