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 मजा़रात पर हाज़री दलील की रौशनी में

 मजा़रों पर हाज़री दलील की रोशनी में

Kya MURDE SUNTE Hain

अगर मुर्दे नहीं सुनते तो सलाम किस को किया जाता है जो सुन सके कब्रिस्तान में जाकर सबसे पहले सलाम तमाम मुर्दों को किया जाता है उन के अल्फाज़ ये हैं।

अस्सलामु अलैइकुम या अहलल कुबूर।

 सवाल :- मजा़रात ए औलिया पर जाना कैसा है?

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 जवाब :- मज़ारात ए औलिया पर जाना जाइज़ और मुस्तहब काम है, जैसा के हज़रत बुरीदा रदी अल्लाहु ता'आला अन्हु से रिवायत है के रसूल अल्लाह स्वलल्लाहो अलैही व सल्लम ने फरमाया के मैं ने तुम्हे कबरों में कि ज़ियारत से मना किया था लेकिन अब ज़ियारत किया करो। (मुस्लिम शरीफ, किताब अल जनाईज, हदीस नं. 2260, मत्बू'ए दारुल इस्लाम, रियाद सऊदी अरब)

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 सवाल:- क्या हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम भी मज़ारात पर तशरीफ़ ले जाया करते थे?


 जवाब:- हुज़ूर स्वलल्लाहो अलैही वा सल्लम भी मज़ारात पर तशरीफ़ ले जया करते थे जैसा के मुस्लिम शरीफ़ में हज़रत अबू हुरैरा रदी अल्लाहू ताआला अन्हु से रिवायत है के,

 हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी वालिदा की क़ब्र की जियारत की आप स्वलल्लाहो अलैही वा सल्लम ने वहां गिर्या फरमाया और जो सहाबा आप स्वलल्लाहो अलैहि वा सल्लम के साथ थे वो भी रोए।

(मुस्लिम शरीफ, किताब अल जनाईज, हदीस नंबर 2258, मतबुए दारुल इस्लाम, रियाद सऊदी अरब)

 

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 फ़िक़्ह हन्फ़ी की मायनाज़ (मशहूर ए ज़माना) किताब दुर्रे अल मुख्तार में हुज़ूर ख़ातिम अल मुहक़्क़ीक़ीन इब्न आबिदीन शामी अलैही रहमा (विसाल 1252 हिजरी) फरमाते हैं:

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 इमाम बुखारी अलैहिर रहमा के उस्ताद इमाम इब्न अबी शैबा से रिवायत है के हुज़ूर अलैहिस्सलाम हर साल शोहदा ए उहद की मजारात पर तशरीफ ले जाते थे। (दुर्रे अल मुख्तार, बाब मतलुब फ़ि ज़ियारत अल क़ुबूर, मत्बू'ए दारुल फ़िक्र, बैरूत)

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 इमाम फखरुद्दीन राज़ी अलैहिर रहमा (सन विसाल 606 हिजरी) अपनी तफ़्सीर में फरमाते हैं: हुज़ूर स्वलल्लाहो अलैही वा सल्लम हर साल शोहदा ए उहद के मज़ारात पर तशरीफ़ ले जाते और आप स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम के बाद खुल्फा ए राशिदीन रिदवानुल लाही तअला अलैहिम भी ऐसा ही करते थे (तफ़्सीर कबीर, ज़ेरे तहेत ए आयत नं. 20, अल रअद)

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 सवाल:- क्या साहबा किराम अलैहिम अल रिदवान भी किसी के मजार पर जाते थे?

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 जवाब:- जी हां! साहबा किराम अलैहिम अल रिदवान हुज़ूर स्वलल्लाहो अलैहि सल्लम के मज़ार ए अक़दास पर हज़ारी दिया करते थे। 

 जैसा के हज़रत मालिक बिन दिनार रदी अल्लाह तआला अन्हु से रिवायत है के हज़रत उमर बिन खत्ताब रदि अल्लाहू ताआला अन्हु के ज़माने में लोग कहत में मुबतला हो गए,

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 एक सहाबी, नबिये करीम स्वलल्लाहो अलैहि व सल्लम के मजार पर आये और 'अर्ज किया- या रसूल अल्लाह स्वलल्लाहो अलैहि व सल्लम आप अपनी उम्मत के लिए बारिश मांगिए क्योंकि वो हलाक हो गई।(किताब अल फ़ज़ाल, मुसन्निफ़ इब्न अबी शैबा, हदीस नंबर 32002, मकतब अल रशद, रियाद सऊदी अरब)


 फ़ायदा:- ज़ियारत ए मज़ार के साथ, साहिब ए मज़ार से मदद तलब करना साहबा का तरीका़ है।

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 हज़रत दाऊद बिन स्वालेह से मरवी है के वो बयान करता है के एक रोज़ मरवान आया और हमने देखा के एक आदमी हुज़ूर नबी ए करीम स्वलल्लाहो अलैही वा सल्लम के मज़ार पर अपना मुंह रखा है तो मरवान ने कहा:- 

क्या तू जनता है के तू क्या कर रहा है?  

जब मरवान हमारे तरफ बढ़ा तो देखा वो सहाबी ए रसूल स्वलल्लाहो अलैही वा सल्लम अबू अय्यूब अंसारी रदी अल्लाहु तआला अन्हु हैं वे उन्हें जवाब दिया। हां मैं जनता हूं।  

मैं रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वा सल्लम के पास आया हूं'' मैं किसी पत्थर के पास नहीं आया हूं।(मुसनद इमाम अहमद बिन हम्बल, हदीस नंबर 23646, मत्बू'ए दारुल फ़िक्र, बैरूत)

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 सवाल:- हदीस शरीफ में है के तीन (3) मस्जिद (मस्जिद अल हरम, मस्जिद अल अक्सा, और मस्जिद ए नबवी शरीफ) के सिवा किसी जगह का सफर ना किया जाए।

 फिर लोग मजा़र ए औलिया पर हाजरी की नियत से सफर क्यों करते हैं?


 जवाब:- हदीस का मतलब ये है के उन तीनो मस्जिदों में नमाज़ का अज्रो सवाब ज्यादा मिलता है

 मस्जिद अल हराम में एक नमाज़ का सवाब एक लाख के बराबर, मस्जिद अल अक्सा और मस्जिद ए नबवी में एक नमाज़ का अज्रो सवाब 50 हजार के बराबर है

 लिहाजा उन मसाजिद में ये नियत करके दूर से आना चूंके फायदेमंद है। 

 लेकिन किसी और मस्जिद की तरफ़ सफ़र करना "ये समझ कर" के वहां सवाब ज़्यादा मिलता है, ये नज़ायज़ है

क्योंकि हर जगह की मस्जिद में सवाब यकसां है और हदीस में इस नियत से सफ़र तय करना मना है। 

 आज लोग तिजारत के लिए सफर करते हैं, इल्म ए दीन के लिए सफर करते हैं,

 तबलीग के लिए सफर करते हैं और बेशुमार दुनियावी कामों के लिए मुखतलिफ किस्म के लिए सफर के लिए जाते हैं

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क्या ये सब सफर हराम हो गये हैं?  

हरगिज़ नहीं, बल्की ये सारे सफ़र जायज़ हैं, और इनका इंकार कोई भी नहीं कर सकता। तो फिर मजारात ए औलिया के लिए सफर करना नाजायज क्यों हो गया 

 बल्कि लाखो शाफ़इयों के पेशवा इमाम शाफ़ई अलैही रहमा (सान विसाल 204 हिजरी) फरमाते हैं: मैं इमाम अबू हनीफ़ा रदी अल्लाहू ता'आला अन्हु से बरकत हासिल करता हूं और उनके मज़ार पर आता हूं।  

अगर मुझे कोई हाजत दरपेश होती है तो 2 रकातें नमाज़ पढता हूं और उनके मजा़र के पास जाकर अल्लाह से दुआ करता हूं तो हाजत जल्द पूरी हो जाती है।(दुर्रे अल मुख्तार, बेरूत)

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 फ़ायदा:- इमाम शाफ़ई अलैहिर रहमा अपने वतन फलस्तीन से इराक का सफर करके इमाम साहब की मजार पर तशरीफ लाते थे और मजार से बरकते भी हासिल करते थे। 

 क्या उनका ये सफर करना भी नाजायज था?

 मुहम्मद बिन मुअम्मर से रिवायत है के कहते हैं: इमामुल मुहद्दिसीन अबू बकर बिन खुजैमा अलैहिर रहमा, शैखुल मुहद्दीसीन अबू अली सक्फी अलैहिर रहमा और उन के साथ के मशायख इमाम अली रजा बिन मूसा रदि अल्लाहु तआला अन्हु के मज़ार पर हाज़िर हुए और ख़ूब ताज़ीम फरमाई।

(हर्फ़ुल 'ऐन अलमहमलाह, तहज़ीब अल तहज़ीब, मत्बू'ए दारुल फ़िक्र, बेरुत)

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 अगर मजार ए औलिया पर जाना शिर्क होता तो...!

 क्या हुज़ूर स्वलल्लाहो अलैही वा सल्लम अपनी वालिदा मजीदा और शोहदा ए उहद के मज़ारों पर तशरीफ़ ले जाते?


 क्या सहाबा ए किराम हुज़ूर स्वलल्लाहो अलैही वा सल्लम के मज़ारे पुर अनवर पर हज़ारी देते?  

क्या ताबईन, मुहद्दिसीन, मुफस्सरीन, मुजतहिदीन मजारत ए औलिया पर हजारी के लिए सफर करते?


 पता चला मजारात पर हाजरी हुजूर स्वलल्लाहो अलैह सल्लम, आप के असहाब और उम्मत के मुजतहिदीन, मुहद्दिसीन और माफस्सिरीन की सुन्नत है और यहि अहले इस्लाम का तरीका रहा है और मुबारक अमल पर जाने वाले हैं।

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 उनकी रविश ने उनके हम ख्याल दहशत गर्द गिरोह, को तशद्दुद की राह दी और आज मजारात ए औलिया को वहाबी दहशत गर्द बमों से शहीद कर रहे हैं। 

 जब के वहाबियो ने हरमैन के क़ब्रिस्तान में सहाबा ए किराम वा अका़बिरीन की मजारात को जमीन बोस कर दिया।


 मजारत ए औलिया पर होने वाली खुराफात

 अक्सर मुखालिफ़ीन मज़ारात ए औलिया पर होने वाली खुराफ़ात को इमाम अहमद रज़ा ख़ान फ़ाज़िल बरेलवी अलैही रहमा की तरफ़ मनसूब करते हैं

जबके हकीकत ये है के मज़ारात ए औलिया पर होने वाली खुराफ़ात वा जमात त से अहले सुन्नत वल जमात से कोई ताल्लुक नहीं है

 बाल्की इमामे अहले सुन्नत अश शाह इमाम अहमद रज़ा ख़ान फ़ाज़िल ए बरेलवी अलैही रहमा ने अपनी तसनीफ़ में उन का रद फ़रमाया है।

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 औरतों का मजार पर जाना ना जायज है: सिवाये रौजा ए रसूल स्वलल्लाहो अलैही वा सल्लम के किसी मजार पर जाने की इजाज़त नहीं है। (फतवा रज़्विया जिल्द 9 सफा 541)


मजा़रात ए औलिया ए किराम में सिर्फ एक चादर ही चढ़ाई जाये उससे ज्यादा नहीं 

मुझे सिर्फ हिन्दुस्तान में आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मोहद्दिस बरैलवी के मजार पर गया हूं 

दिल को सुकून मिला और वाकई शरीअत के ऐतबार से सब काम किया जाता है।

लेकिन दूसरे दरगाह और मजारों पर जाओ तो सिर्फ मजार के नाम पर अपना धंधा लेकर बैठे हुए हैं।

मुझे अब तक सिर्फ नागपुर में दरगाह ए बाबा ताजुद्दीन औलिया और बरेली में अच्छा लगा।

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MAZAARAAT PAR HAAZRI Dalaael ki roshni mein


MAZAARAAT PAR HAAZRI Dalaael ki roshni mein


Sawaal :- Mazaraat e Auliya pe jana kaisa hai?


Jawaab :- Mazaraat e Auliya par jana jaaiz aur mustahab kaam hai, jaisa ke Hazrat Buraida Radi Allahu Ta'ala Anhu se riwayat hai ke Rasool Allah Sallal Laahu 'Alaihi ‎ Wa Sallam ne farmaya ke Main ne tumhe qabron ki ziyarat se mana kiya tha; ab ziyarat kiya karo.

(Muslim Shareef, kitaab Al Janaaiz, Hadees No. 2260, Matbu'e Darul Islaam, Riyaadh S'audi Arab)



Sawaal :- Kya Huzoor Sallal Allahu Alaihi Wa Sallam bhi mazaaraat par tashreef le jaya karte the?


Jawaab :- Huzoor Sallal Allahu Alaihi Wa Sallam bhi mazarat par tashreef le jaya karte they jaisa ke Muslim Shareef me Hazrat Abu Huraira Radi Allahu Ta'ala Anhu se riwayat hai ke, Huzoor Sallal Allahu Alaihi Wa Sallam ne apni Waalida ki qabr ki ziyarat ki.  

Aap Swallal Laahu 'Alaihi Wa Sallam ne wahan Girya farmaya aur jo Sahaba Aap Sallal Laahu 'Alaihi Wa Sallam ke saath the wo bhi roye.

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(Muslim Shareef, kitaab Al Janaaiz, Hadees No. 2258, Matbu'e Darul Islaam, Riyaadh S'audi Arab)


Fiqha Hanafi ki Maynaaz kitaab Durre Al Mukhtar mein Huzoor Khaatim Al Muhaqqiqeen Ibn 'Aabideen Shaami Alaihi Rahma (wisaal 1252 Hijri) farmaate hain:


Imaam Bukhaari ‎'Alaihi Rahma ke ustaad Imaam Ibn Abi Shaiba se riwayat hai ke Huzoor Alaih Salaam har saal shohada e Uhad ke mazaraat par tashreef le jaate the.

(Durre Al Mukhtar, Baab Matlub Fi Ziyarat Al Quboor, Matboo'e Daarul Fikr, Beroot)



Imaam Fakruddin Raazi Alaih Rahma (San wisaal 606 H) apni tafseer mein farmaate hain:

 Huzoor Sallal Allahu Alaihi Wa Sallam har saal Shohdaa e Uhad ke mazaraat par tashreef le jaate

 aur Aap Swallal Laahu 'Alaihi Wa Sallam ke wisaal mubarak ke baad chaaron Khulfaa e Kiraam Alaihim Al Ridwan bhi aisa hi karte the

(Tafseer Kabeer, zer e tahet Ayat no. 20, Al Ra'ad)


Sawaal :- Kya Sahaba Kiraam Alaihim Al Ridwan bhi kisi ke mazaar par jaate the?

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Jawaab :- Jee haan! Sahaba Kiraam Alaihim Al Ridwaan Huzoor Sallal Laahu 'Alaihi Wa Sallam ke mazaar e aqdas par haazri diya karte the. Jaisa ke Hazrat Maalik Daar Radi Allahi Ta'ala Anhu se riwayat hai ke


 Hazrat Umar Bin Khattab Radil Allahu Ta'ala Anhu ke zamaane me log qehet me mubtala ho gaye, ek Sahabi, Nabiye Kareem Sallal Laahu 'Alaihi Wa Sallam ki qabr par aaye aur


 'arz kiya- Ya Rasool Allah Sallal Laahu 'Alaihi Wa Sallam AAP apni ummat ke liye Baarish maangiye kyunki wo halaak ho gayi.

(Kitaab Al Fazaail, Musannif Ibn Abi Shaiba, Hadees No. 32002, Makatab Al Rashd, Riyadh S'audi Arab)


Faayeda :- Ziyarat e mazaar ke sath, Saahib e mazaar se madad talab karna Sahaba ka tareeqa hai.


Hazrat Dawood Bin Saaleh se marwi hai ke wo bayaan karte hain ke 

ek roz Marwaan aaya aur us ne dekha ke ek aadmi Huzoor Nabi Kareem Sallal Laahu ‎'Alaihi Wa Sallam ke mazaar e Anwar par apna muh rakhe huwe hai,


 toh us (marwaan) ne kaha: 

kya tu jaanta hai ke tu kya kar raha hai?

 Jab marwaan us ki taraf badha toh dekha wo Sahabi e Rasool Sallal Laahu 'Alaihi Wa Sallam Abu Ayyub Ansaari Radi Allahu Ta'ala Anhu they aur unhone jawaab diya. 


Haan main jaanta hoon. Mai Rasool Sallal Laahu 'Alaihi Wa Sallam ke paas aaya hoon ’’لم ات الحجر‘‘ mai kisi patthar ke paas nahi aaya.

(Musnad Imaam Ahmed Bin Hambal, Hadees No. 23646, Matboo'e Darul Fikr, Beroot)


Sawaal :- ‎ Hadeese Shareef mein hai ke teen masjidon (Masjid Al Haram, Masjid Al Aqsa, aur Masjid e Nabwi Shareef) ke siwa kisi jagah ka safar na kiya jaaye.

 Phir log mazarat e Auliya par hazri ki niyat se safar kyun karte hain?

Jawaab :- Us hadees ka matlab yeh hai ke un teeno masjidon me namaz ka sawab zyada milta hai

 Masjid Al Haram me ek namaz ka sawab ek laakh ke barabar, Masjid Al Aqsa aur Masjid e Nabwi Shareed me ek namaz ka sawaab 50 hazaar ke barabar hai,


 Lihaza un masaajid mein ye niyat karke dur se aana chunke faydamand hai jaaiz hai. 

Lekin kisi aur masjid ki taraf safar karna "ye samajh kar" ke wahan sawaab zyada milta hai, yeh najayez hai, 

kyunki har jagah ki masjid me sawaab yaksaan hai aur hadees mein isi niyat se safar ko mana farmaya hai.  


Aaj log tijarat ke liye safar karte hai, ilm e deen ke liye safar karte hai, 

tableeg ke liye safar karte hai aur beshumaar duniyawi kaamon ke liye mukhtalif qism ke safar ke liye jaate hain, 

kya ye sab safar haraam ho gaye?

 Harghiz nahi, balki ye saare safar jayez hain, aur inka inkaar koi bhi nahi kar sakta. 

 Toh phir mazaraat e Auliya ke liye safar karna najayez kyon ho gaya.

balki laakhon Shafiyon ke peshwa Imaam Shafai Alaihi Rahma (san wisaal 204 Hijri) farmate hain: 

 Main Imaam Abu Hanifa Radi Allahu Ta'ala Anhu se barkat haasil karta aur unke mazaar par aata hoon. 

 Agar mujhe koi haajat darpesh hoti hai toh ‎2 rakaten padhta hoon aur unke mazaar ke paas jaakar ALLAH se dua karta hoon toh haajat jald puri ho jati hai.

(Matboo'e Darul Firk, muqaadema, Dur Al Mukhtaar, Beroot)


Faayeda :- Imaam Shafa'i Alaihi Rahma apne watan Falasteen se Iraaq ka safar karke Imaam Sahab ke mazaar par tashreef laate the aur mazaar se barkate bhi haasil karte the. Kya unka ye safar karna bhi najayez tha?


Muhammed Bin Mu'ammar se riwayat hai ke kehte hain: Imaam Al Muhadiseen Abu Bakar Bin Khuzaima Alaihir Rahma, 

Shaikh Al Muhadiseen Abu Ali Saqfi Alaihir Rahma aur un ke sath ke Mashaykh Imaam Ali Raza Bin Moosa Radi Allahu Ta'ala Anhuma 

ke mazaar par haazir hue aur mazaar ki khoob taazeem farmaayi.

(Harf Al 'Ain Almahmalah, Tehzeeb Al Tehzeeb, Matboo'e Darul Fikr, beroot)


Agar mazarat e Auliya par jana shirk hota toh...!


Kya Huzoor Sallal Lahu 'Alaihi Wa Sallam apni Walida Majida aur Shohdaa e Uhad ke mazaaron par tashreef le jaate?


Kya Sahaba kiraam Huzoor Sallal Lahu 'Alaihi Wa Sallam ke mazaare pur Anwaar par haazri dete? 

Kya Taba'een, Muhadiseen, Mufassireen, Mujtahideen mazarat e Auliya par haazri ke liye safar karte?


Pata chala mazaraat par haazri Huzoor Alaih Sallam , Aap ke Ashaab aur ummat ke mujtahideen, muhaddiseen aur maffasireen ki sunnat hai aur yahi Ahle Islaam ka tareeqa raha hai aur is mubarak amal par shirk ke fatwa dene wale siraat e mustaqeem se bhattke hue hain.


Unki rawish ne unke hum khayal dehshat gard giroh, ko tashaddud ki raah di aur aaj mazaraat Auliya ko Wahabi dahshat gard bamoan se shaheed kar rahe hain.

  Jab ke Wahabio ne Haramain ke qabraston mein Sahaba Kiraam wa Akaabireen ke mazaraat ko zameen bos kar diya.


Mazarat e Auliya par hone wali khuraafaat?


Aksar mukhalifeen mazarat e Auliya par hone wali khurafaat ko Imaam Ahmed Raza Khan Faazil Barelvi Alaihi Rahma ki taraf mansoob karte hain,

 jabke haqeeqat yeh hai ke Mazaraat e Auliya par hone waali khurafaat ka Ahle Sunnat Wa Jamaat se koi Ta'lluq nahi

 balki Imaame Ahle Sunnat Al Shah Imaam Ahmed Raza Khan Faazil e Barelvi Alaihi Rahma ne apni tasaneef mein un ka radd farmaaya hai.


Aurton ka mazarat par jana na-jayez hai: siwaye Roza e Rasool Sallal Laahu 'alaihi wa sallam ke kisi mazar par jaane ki ijazat nahi.

Jamal Alnoor Fi NahAlnisa Az Ziyarat Alquboor,

fatawa razwiya, jild 9, safa 541. Matb'oo

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