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किन से निकाह करना जायज़ है और किन से निकाह करना हराम है मतलब महरम का बयान
kin se nikah haram hai |
अल्लाह अज़्ज़ व जल्ल फ़रमाता है कुरआनी आयत अरबी ।
kin aurton se nikah haram hai |
हिन्दी कुरआन की आयत
वला तनकिहु मा नकहा आबाउकुम मिनन निसाई इल्ला मा कद सलफा इन्नहु काना फाहिशथन व मकतन व साआ सबीला
हुर्रिमत अलैइकुम व उम्महातुकुम व बनातुकुम व अखवातुकुम व अ़म्मातुकुम व खलातुकुम व बनातुल अखि व बनातुल उखति व उम्मुहातुकुल लाती अरद्वनकुम व अखवातुकुम मिनर रदाअति
व उम्महातु निसाइकुम व अरबाइकुमल लाती पी हुजूरिकुम मिन निसाइकुमल लाती दखलतुम बिहिन्ना फइल्लम तकूनू दखलतुम बिहिन्ना फला जुनाहा अलैइकुम व हलाइला अबनाइकुमल लजीना
मिन असलाबिकुम व अन तजमऊ बइनल उखतायइनि इल्ला मा कद सलफ इन्नल लाहा काना ग़फूरर रहीमा
वल मुहसिनातु मिनन निसाई इल्ला मा म ल क त अइमानुकुम किताबल लाही अलैइकुम व उहिल्ला लकुम मा वराआ जालिकुम अन तबतगु़ बिअमवालिकुम मोहसिनीना गैइरा मुसाफिहीन •
तर्जुमा :- उन औरतों से निकाह न करो जिन से तुम्हारे बाप दादा ने निकाह किया हो।
मगर जो गुज़र चुका बेशक यह बेहयाई और ग़ज़ब का काम है।
और बहुत बुरी राह तुम पर हराम हैं तुम्हारी माऐं और बेटियाँ और बहनें और फूफियाँ और ख़ालायें।
और भतीजियाँ और भानजियाँ और तुम्हारी वह मायें जिन्हों ने तुम्हें दूध पिलाया है।
और दूध की बहनें और तुम्हारी औरतों की मायें और उन की बेटियाँ।
जो तुम्हारी गोद में हैं उन बीवियों से जिन से तुम जिमाअ कर चुके हो।
और अगर तुम उन से जिमाअ (हमबिस्तरी) न किया हो तो उन की बेटियों में गुनाह नहीं।
और तुम्हारे नस्ली बेटों की बीवियाँ और दो (2) बहनों को इकट्ठा करना।
मगर जो हो चुका बेशक अल्लाह बख़्शने वाला महेरबान है और हराम हैं शौहर वाली औरतें।
मगर काफिरों की औरतें जो तुम्हारी मिल्कियत में आ जायें यह अल्लाह का नवाजिश है।
और उन के सिवा जो रहीं वह तुम पर हलाल हैं ।
कि अपने मालों के एवज़ तलाश करो पारसाई चाहते ।
और अल्लाह पाक फरमाता है ।
वला तनकिहुल मुशरिकाती हत्ता यूअमिन्न
वला अमतुन मिम मुशरिकातिंव वलउ अ़अ जबतकुम वला तुनकिहुल मुशरिकीना हत्ता यूमिनू
वला अ़बदुम मूमिनुन खैइरम मिम मुशरिकिंव वलउ अ़अ जबकुम
उलाइका यदऊना इलन नारी वल्लाहु यदऊ इलल जन्नती वल मग़फिरती
बिइजनिही व यु बय्यिनू आयातिही लिन नासी लअ़ल्लहुम यतज़क्करून •
तर्जुमा : - मुशरिक औरतों से निकाह न करो जब तक ईमान न लायें बेशक मुसलमान बाँदी मुशरिका से बेहतर है।
अगर्चे तुम्हें यह भली मालूम होती हो और मुशरिकों से निकाह ना करो।
जब तक ईमान न लायें बेशक मुसलमान गुलाम मुशरिक से बेहतर है।
अगर्चे तुम्हें यह अच्छा मालूम होता हो यह दोज़ख़ की तरफ बुलाते हैं।
और अल्लाह बुलाता है जन्नत व मग़फिरत की तरफ।
अपने हुक्म से और लोगों के लिए अपनी निशानियाँ ज़ाहिर फरमाता है ताकि लोग नसीहत मानें।
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हदीस शरीफ़ की रोशनी में शादी निकाह किस से करें और किस से ना करें।
किन औरतों से निकाह करना जायज नहीं, निकाह
क़ुरआन और सुन्नत के आईने में, महरम का बयान यानी जिन औरतों से निकाह करना हराम है?
कुछ हदीस शरीफ़ से भी पढ़ें इस के बाद मसायले फिकह के बारे में लिखते हैं
हदीस नम्बर 1 :- सहीह बुख़ारी व मुस्लिम में हज़रत अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया
कि औरत और उस की फूफी को जमअ ना किया जाये और ना औरत और उस की ख़ाला को ।
हदीस नम्बर 2 :- अबू दाऊद व तिर्मिज़ी व दारमी व निसाई की रिवायत उन्हीं से है कि हुजूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम ने उस से मना फरमाया
कि फूफी के निकाह में होते उस की भतीजी से निकाह किया जाये।
या भतीजी के होते हुए उस की फूफी से।
या ख़ाला के होते हुए उसकी भांन्जी से।
या भान्जी के होते हुए उस की खाला से ।
हदीस नम्बर 3 :- इमाम बुखारी हज़रत आइशा सिद्दीका रदियल्लाहु तआला अन्हा से रावी है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया
जो औरतें विलादत ( नसब से हराम हैं वह रदाअत ( दूध पिलाने का रिश्ता ) से भी हराम हैं ।
हदीस नम्बर 4 :- सहीह मुस्लिम में मौला अली रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया
बेशक अल्लाह तआला ने रदाअत से उन्हें हराम कर दिया जिन्हें नसब से हराम फरमाया ।
मसाइलें फ़िकहिया
मसला किन से निकाह कर सकता है और किन से निकाह नहीं कर सकता
महरमात किन औरतों को कहते हैं?
महरमात वह औरतें हैं जिन से निकाह हराम है और हराम होने के चन्द सबब हैं लिहाज़ा इस बयान को आठ (8) किस्म पर तकसीम किया जाता है ।
(1) पहली किस्म :-
नस्ब इस किस्म में सात औरतें हैं
- माँ ।
- बेटी ।
- बहन ।
- फूफ़ी ।
- ख़ाला।
- भतीजी ।
- भान्जी ।
मसला :- दादी , नानी , पर दादी , पर नानी , अगर्चे कितनी ही ऊपर की हो सब हराम हैं।
और यह सब माँ में दाख़िल हैं।
यह बाप या माँ या दादा , दादी , नाना, नानी की मायें हैं ।
कि माँ से मुराद वह औरत है जिसकी औलाद में यह है बिला वास्ता या ब वास्ता
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मसला :- बेटी से मुराद वह औरतें हैं जो उसकी औलाद हैं।
लिहाज़ा पोती , नवासी , पर पोती, पर नवासी अगर्चे दरमियान में कितनी ही पुश्तों को फासिला हो सब हराम हैं ।
मसला :- बहन ख़्वाह हकीकी (सगी) हो मतलब एक माँ बाप से या सौतेली कि बाप दोनों का और मायें दो या माँ एक है और बाप दो सब हराम हैं ।
मसला :- बाप , माँ , दादा , दादी , नाना नानी , वगैरा उसूल की फूफियाँ या ख़ालायें अपनी फूफियों और ख़ाला के हुक्म में हैं।
ख़्वाह यह हकीकी (सगी) हों या सोतेली यूँ ही हकीकी या अल्लाती फूफी की फूफी या हकीकी या अख्याफी ख़ाला की ख़ाला इन सब से निकाह हराम है।
मसला :- भतीजी, भानजी से भाई, बहन की औलादें मुराद हैं उन की पोतियाँ नवासियाँ भी उसी में शुमार हैं इन सब से निकाह हराम है।
मसला :- ज़िन से बेटी , पोती , बहन , भानजी भी महरमात में शामिल हैं ।
मसला :- जिस औरत से उस के शौहर ने लिआन किया अगर्चे उसकी लड़की अपनी माँ की तरफ मन्सूब हो गई मगर फिर भी उस शख़्स पर वह लड़की हराम है। (रददुल मुहतार)
(2) दूसरी किस्म
मुसाहिरत
- जौजा मौतूहा ( वह बीवी जिस से मियाँ बीवी के सम्बन्ध स्थापित हुए हों ) की लड़कियाँ ।
- ज़ौजा की माँ दादियाँ नानियाँ ।
- बाप दादा वग़ैरा उसूल की बीवियाँ।
- बेटे पोते वगैरा फुरुअ़ की बीवियाँ
मसला :- जिस औरत से निकाह किया और वती ( सम्भोग, हमबिस्तरी ) न की थी कि जुदाई हो गई उस की लड़की उस पर हराम नहीं ।
नीज़ हुरमत उस सूरत में है कि वह औरत मुश्तहात हो उस लड़की का उस की परवरिश में होना ज़रूरी नहीं
और ख़लवते सहीहा भी वती ही के हुक्म में है मतलब अगर ख़लवते सहीहा औरत के साथ हो गई।
उसकी लड़की हराम हो गई अगर्चे वती न की हो। ( रद्दुल मुहतार )
मसला :- निकाहे फासिद से हुरमते मुसाहिरत साबित नहीं होती जब तक वती न हो।
लिहाज़ा अगर किसी औरत से निकाहे फासिद किया तो औरत की माँ उस पर हराम नहीं।
और जब वती हुई तो हुरमत साबित हो गई कि वती से मुतलकन हुरमत साबित हो जाती है।
ख़्वाह वती हलाल हो या शुबह व ज़िना से मसलन बैअ फासिद से खरीदी हुई कनीज़ से।
या कनीज़ मुश्तरक या मुकातिबा या जिस औरत से जिहार किया ।
या मजूसिया बाँदी या अपनी ज़ौजां से हैज़ व निफास में एहराम व रोज़ा में
गर्ज़ किसी तौर पर वती हो हुरमते मुसाहिरत साबित हो गई ।
लिहाज़ा जिस औरत से जिना किया। उस की माँ और लड़कियाँ उस पर हराम है।
यूँ ही वह औरत ज़ानिया उस शख़्स के बाप दादा और बेटों पर हराम हो जाती है । ( आलमगीरी सफा 274 रददुल मुहतार 304 )
मसअला :- हुरमते मुसाहिरत जिस तरह वती से होती है।
यूँ ही बशहवत छूने और बोसा लेने और फर्जे दाखिल ( र्शम गाह ) की तरफ नज़र करने।
और गले लगाने और दाँत से काटने और मुबाश यहाँ तक कि सर पर जो बाल हों उन्हें छूने से भी हुरमत हो जाती है ।
अगर्चे कोई कपड़ा भी हाइल हो मगर जब इतना मोटा कपड़ा हाइल हो कि गर्मी महसूस न हो ।
यूँ हीं बोसा ( किस,चुम्मी ) ने में भी अगर बारीक निकाब हाइल हो तो हुरमत साबित हो जायेगी ।
ख़्वाह यह बातें जाइज़ तौर पर हों । मसलन मनकूहा या कनीज़ है ।
या नाजाइज़ तौर पर जो बाल सर से लटक रहे हों उन्हें बशहवत छुआ तो हुरमत मुसाहिरत साबित न हुई। ( आलमगीरी सफा 274 रददुल मुहतार सफा 304 वगैरा )
मसला :- फर्जे दाखिल (शर्मगाह) की तरफ नज़र करने की सूरत में अगर शीशा दरमियान में हो।
या औरत पानी में थी उस की नज़र वहाँ तक पहुँची जब भी हुरमत साबित हो गई।
अल्बत्ता आईना या पानी में अक्स दिखाई दिया तो हुरमते मुसाहिरत नहीं । ( दुर्रे मुख्तार सफा 304 आलमगीरी सफा 274 )
मसला :- छूने और नज़र के वक़्त शहवत न थी बाद को पैदा हुई यानी जब हांथ लगाया उस वक्त न थी।
हाथ जुदा करने के बाद हुई तो उस से हुरमत नहीं साबित होती।
उस मकाम पर शहवत के मतलब यह हैं कि उसकी वजह से इन्तिशारे आला हो जायें ( प्राइवेट पार्ट टाइट हो जाये ) और अगर पहले से इन्तिशार मौजूद था तो अब ज़्यादा हो जाये यह जवान के लिए है ।
बूढ़े और औरत के लिए शहवत की हद यह है। कि दिल में हरकत पैदा हो और पहले से हो तो ज़्यादा हो जाये महज़ मिलाने नफ्स का नाम शहवत नहीं । ( दुर्रे मुख्तार स 304 )
मसअला :- नज़र और छूने में हुरमत जब साबित होगी कि इन्ज़ाल न हो और इन्ज़ाल हो गया तो हुरमत मुसाहिरत न होगी ( दुर्रे मुख्तार )
मसला :- औरत ने शहवत के साथ मर्द को छुआ या बोसा लिया या उस के आला (प्राइवेट पार्ट ) के तरफ नज़र की तो उस से भी हुरमते मुसाहिरत साबित हो गई ( दुर्रै मुख्तार 304 आलमगीरी 274 )
मसला :- हुरमते मुसाहिरत के लिए शर्त यह है कि औरत मुश्तहात हो यानी नौ (9) साल से कम उम्र की न हो नीज़ यह कि ज़िन्दा हो तो अगर नौ (9) बरस से कम उम्र की लड़की या मुर्दा औरत को बशहवत छुआ या बोसा लिया तो हुरमत साबित न हुई ( दुर्रै मुख्तार 350 )
मसला :- औरत से जिमाअ किया मगर दुखूल ( प्राइवेट पार्ट दाखिल ) ना हुआ तो हुरमत साबित न हुई।
हाँ अगर उस को हमल रह जाये तो हुरमते मुसाहिरत हो गई ( आलमगीरी सफा 274 )
बुढ़िया औरत के साथ यह अफ़आल वाकई हुए या उस ने किये तो मुसाहिरत हो गई।
उस की लड़की उस शख्स पर हराम हो गई वह उस के बाप दादा पर भी हाराम हो गई। ( दुर्रै मुख्तार स 350 )
मसला :- वती से मुसाहिरत में यह शर्त है कि आगे के मुका़म में हो अगर पीछे में हुई मुसाहिरत न होगी। ( दुर्रे मुख्तार सफा 305 )
मसला :- अगलाम ( गुलामों ) से मुसाहिरत नहीं साबित होती। ( रद्दुल मुहतार सफा 300 )
मसला :- मुराहिक ( वह लड़का कि अभी बालिग न हुआ मगर उस के हम उम्र बालिग हो गये हों उसकी मिकदार बारह (12) साल की उम्र है ) ने अगर वती की या शहवत के साथ छुआ या बोसा लिया तो मुसाहिरत हो गई । ( रद्दुल मुहतार सफा 306 )
मसला :- यह अफ़आल कस्दन हों या भूल कर या गलती से या मजबूरन बहर हाल मुसाहिरत साबित हो जायेगी।
मसलन अँधेरी रात में मर्द ने अपनी औरत को जिमाअ़ के लिए उठाना चाहा
गलती से शहवत के साथ मुश्तहात लड़की पर हांथ पड़ गया उस की माँ हमेशा के लिए उस पर हराम हो गई।
यूँ ही अगर औरत ने शौहर को उठाना चाहा और शहवत के साथ हाथ लड़के पर पड़ गया जो मुराहिक था हमेशा को अपने उस शौहर पर हराम हो गई। ( रद्दुल मुहतार सफा 308 )
मसला :- मुँह का बोसा लिया तो मुतलकन हुरमते मुसाहिरत साबित हो जायेगी अगर्चे कहता हो कि शहवत से न था।
यूँ ही अगर इन्तिशार आला था तो मुतलकन किसी जगह का बोसा लिया हुरमत साबित हो जायेगी।
और अगर इन्तिशार न था और रुखसार या ठोड़ी या पेशानी या मुँह के अलावा किसी और जगह का बोसा लिया और कहता है कि शहवत न थी तो उस का कौ़ल मान लिया जायेगा।
यूँ ही इन्तिशार की हालत में गले लगाना भी हुरमत साबित करता है अगर्चे शहवत का इन्कार करे। ( रद्दुल मुहतार सफा 306 )
मसला :- चुटकी लेने दाँत काटने का भी यही हुक्म है कि शहवत से हो तो हुरमत साबित हो जायेगी।
औरत की शर्मगाह (लेडीज के प्राइवेट पार्ट) को छुआ या पिस्तान (दूध) को और कहता है कि शहवत न थी तो उस का कौल मोतबर नहीं। ( आलमगीरी , 274 दुर्रे मुख्तार 307 )
मसला :- नज़र से हुरमत साबित होने के लिये नज़र करने वाले में शहवत पाई जाना ज़रूरी है।
और बोसा लेने , गले लगाने , छूने वगैरा में उन दोनों में से एक को शहवत हो जाना काफी है अगले दूसरे को न हो। ( दुर्रे मुख्तार से 307 रद्दुल मुहतार )
मसला :- मजनून (पागल) और नशा वाले से यह अफ़आल हुए या उन के साथ किये गये जब भी वही हुक्म है।
कि और शर्तें पाई जायें तो हुरमत हो जायेगी ( दुर्रे मुख्तार 307 )
मसला :- किसी से पूछा गया तूने अपनी सास (Mother in law) के साथ क्या किया उस ने कहा जिमा किया तो हुरमते मुसाहिरत साबित हो गई।
अब अगर कहे मैंने झूट कह दिया था नहीं माना जायेगा बल्कि अगर्चे मज़ाक में कह दिया हो जब भी यही हुक्म है। ( आलमगीरी , वगैरा )
मसला :- हुरमते मुसाहिरत मसलन शहवत से बोसा लेने या छूने या नज़र करने का इक़रार किया तो हुरमत साबित हो गई।
और अगर यह कहे कि उस औरत के साथ मैंने निकाह से पहले उसकी माँ से जिमा किया था जब भी यही हुक्म रहेगा।
मगर औरत का महर उस से बातिल न होगा वह बदस्तूर वाजिब रहेगा। (रद्दुल मुहतार 308 )
मसला :- किसी ने एक औरत से निकाह किया और उस के लड़के ने औरत की लड़की से निकाह किया जो दूसरे शौहर से है तो हर्ज नहीं।
यूँ ही अगर लड़के ने औरत की माँ से निकाह किया जब भी यही हुक्म है। ( आलमगीरी सफा 277 )
मसला :- औरत ने दावा किया कि मर्द ने उस के उसूल या फुरुआ को ब शहवत छुआ या बोसा लिया या कोई और बात की है।
जिस से हुरमत साबित होती है और मर्द ने इन्कार किया तो क़ौल मर्द का लिया जायेगा यानी जब कि औरत गवाह न पेश कर सके।
अगर औरत ने गवाह पेश कर दिया तो हुरमत साबित हो जायेगी। ( दुर्रे मुख्तार 307 )
(3) तीसरी किस्मै : -
जमअ बैनल महारिम
मसला :- वह दो (2) औरतें कि उन में जिस एक को मर्द फ़र्ज़ करें दूसरी उस के लिए हराम हो।
मसलन दो (2) बहनें कि एक को मर्द फ़र्ज़ करो तो भाई बहन का रिश्ता हुआ ।
या फूफी, भतीजी कि फूफी को मर्द फर्ज़ करो तो चाचा, भतीजी का रिश्ता हुआ।
और भतीजी को मर्द फ़र्ज़ करो तो फूफी भतीजे का रिश्ता हुआ।
या ख़ाला भानजी कि ख़ाला को मर्द फ़र्ज़ करो तो मामू ,भानजी का रिश्ता हुआ।
और भानजी को मर्द फ़र्ज़ करो तो भानजे ख़ाला का रिश्ता हुआ।
ऐसी दो (2) औरतों को निकाह में जमअ नहीं कर सकता।
बल्कि अगर तलाक दे दी हो अगर्चे तीन तलाकें तो जब तक इद्दत न गुज़ार ले।
दूसरी से निकाह नहीं कर सकता बल्कि अगर एक बाँदी है और उस से वती की तो दूसरी से निकाह नहीं कर सकता यूँ ही अगर दोनों बाँदी हैं ।
और उस से वती कर ली तो दूसरी से वती नहीं कर सकता ( आम्मए कुतुब )
मसला :- ऐसी दो (2) औरतें जिन में उस किस्म का रिश्ता हो जो ऊपर मजकूर हुआ।
वह नसब के साथ मख़सूस नहीं बल्कि दूध के ऐसे रिश्ते हों जब भी दोनों का जमअ करना हराम है।
जमअ से मुराद एक साथ दोनो को नहीं रख सकते।
मसलन औरत और उसकी रज़ाई बहन या ख़ाला या फूफी ( आलमगीरी सफा 277 )
मसला :- दो (2) औरतों में अगर ऐसा रिश्ता पाया जाये कि एक को मर्द फर्ज़ करें तो दूसरी उस के लिए हराम हो और दूसरी को मर्द फ़र्ज़ करें तो पहली हराम।
न हो तो दो (2) औरतों के जमअ करने में हरज नहीं।
मसलन औरत और उस के शौहर की लड़की कि उस लड़की को मर्द फ़र्ज़ करें तो वह औरत उस पर हराम होगी।
कि उस की सौतेली माँ हुई और औरत को मर्द फ़र्ज़ करें तो लड़की से कोई रिश्ता पैदा न होगा यूँ ही औरत और उस की बहू ( दुर्रें मुख्तार 308,309 )
मसला:- बाँदी से वती की फिर उसकी बहन से निकाह किया तो यह निकाह सही हो गया मगर अब दोनों में से किसी से वती नहीं कर सकता।
जब तक एक को अपने ऊपर किसी ज़रीआ से हराम न कर ले।
मसलन मन्कूहा को तलाक दे दे या वह खुला करा ले और दोनों सूरतों में इद्दत गुज़र जाये।
या बाँदी को बेच डाले या आज़ाद कर दे ख़्वाह पूरी बेची या आज़ाद की या उस का कोई हिस्सा निस्फ़ वगैरा या उस को हिबा कर दे।
और कब्ज़ा भी दिला दे या उसे मकातिब कर दे या उस का किसी से निकाहे सहीह कर दे ।
और अगर निकाहे फासिद कर दिया तो उसकी बहन यानी मनकूहा से वती नहीं हो सकती।
मगर जब कि निकाहे फासिद में उस के शौहर ने वती भी कर ली तो चूँकि अब उस की इद्दत वाजिब होगी ।
लिहाज़ा मालिक के लिए हराम हो गई और मनकूहा से वह जाइज़ हो गई और बैअ वग़ैरा की सूरत में अगर वह फिर उस की मिल्कियत में वापस आई ।
मसलन बैअ फिस्ख़ हो गई या उस ने फिर खरीद ली तो अब फिर बदस्तूर दोनों से वती हराम हो जायेगी जब तक फिर सबबे हुरमत न पाया जाये ।
बाँदी के एहराम व रोज़ा व हैज़ व निफास व रहन व इजारा से मनकूहा हलाल न होगी।
और अगर बाँदी से वती न की हो तो उस मनकूहा से मुतलकन वती जाइज़ है। ( दुर्रे मुख्तार 300 रद्दुल मुहतार )
मसअला:- मुकद्दमाते वती मसलन शहवत के साथ बोसा लिया या छुआ या उस बाँदी ने अपने मौला को शहवत के साथ छुआ या बोसा लिया तो यह भी वती के हुक्म में हैं।
कि इन अफ़आल के बाद अगर उस की बहन से निकाह किया तो किसी से जिमाअ जाइज़ नहीं। ( दुर्रे मुख्तार 310 )
मसअला :- ऐसी दो (2) औरतें जिन को जमा करना हराम है।
अगर दोनों से एक अक़्द के साथ निकाह किया तो किसी से निकाह न हुआ।
फर्ज़ है कि दोनों को फौरन जुदा कर दे और दुखूल न हुआ तो महर भी वाजिब न हुआ।
और दुखूल हुआ हो तो मिस्ल और बँधे हुए महर में जो कम हो वह दिया जाये।
अगर दोनों कि साथ दुखूल किया तो दोनों को दिया जाये और एक के साथ किया तो एक को ( आलमगीरी दुर्रे मुख्तार 310 )
मसला :- अगर दोनों से दो अक़्द के साथ किया तो पहली से निकाह हुआ और दूसरी का निकाह बातिल।
लिहाज़ा पहली से वती जाइज़ है मगर जबकि दूसरी से वती कर ली तो अब जब तक उस की इद्दत न गुज़र जाये पहली से भी वती हराम है ।
फिर उस सूरत में अगर यह याद न रहा कि पहले किस से हुआ तो शौहर पर फर्ज़ है कि दोनें को जुदा कर दे।
और अगर वह खुद जुदा न करे तो काज़ी पर फर्ज़ है कि तफ़रीक कर दे।
और यह तफरीक तलाक शुमार की जायेगी फिर अगर दुखूल से पेशतर तफरीक़ हुई तो निस्फ महर में दोनों बराबर बाँट ले अगर दोनों का बराबर मुकर्रर हो।
और अगर दोनों के महर बराबर न हों और मालूम है कि फुलानी का इतना था और फुलानी का उतना।
तो हर एक को उस के महर की चौथाई मिलेगी और अगर यह मालूम है कि एक का इतना है।
और एक का उतना मगर यह मालूम नहीं कि किस का इतना है किस का उतना तो जो कम है
उस के निस्फ़ में दोनों बराबर तकसीम कर लें और अगर महर मुकर्रर ही न हुआ था तो एक मुतअ ( मुतअ के मतलब महर के बयान में आयेंगे ) वाजिब होगा जिस में दोनों बाँट लें।
मसला:- अगर दुखूल के बाद तफरीक़ हुई तो एक एक को उस का पूरा महर वाजिब होगा।
यूँ ही अगर एक से दुखूल हुआ तो उस का पूरा महर वाजिब होगा और दूसरी को चौथाई ( दुर्रै मुख्तार सफा 310 रद्दुल मुहतार 311)
मसला:- ऐसी दो औरतों से एक अक्द के साथ निकाह किया था फिर दुखूल से कब्ल तफरीक हो गई।
अब अगर उस में से एक के साथ निकाह करना चाहा तो कर सकता है।
और दुखूल के बाद तफरीक हुई तो जब तक इद्दत न गुज़र जाये निकाह नहीं कर सकता।
और अगर एक की इद्दत पूरी हो चुकी दूसरी की नहीं तो दूसरी से कर सकता है।
और पहली से नहीं कर सकता जब तक दूसरी की इद्दत न गुज़ार ले और अगर एक से दुखूल किया है तो उस से निकाह कर सकता है।
और दूसरी से निकाह नहीं कर सकता जब तक मदख़ूला की इद्दत न गुज़ार ले।
और उस की इद्दत गुजरने के बाद जिस एक से चाहे निकाह करे। ( आलमगीरी 278 )
मसला :- ऐसी दो (2) औरतों ने किसी शख़्स से एक साथ कहा कि मैं ने तुझ से निकाह किया उस ने एक का निकाह कबूल किया तो उस का निकाह हो गया।
और अगर मर्द ने ऐसी दो (2) औरतों से कहा कि मैं ने तुम दोनों से निकाह किया
और एक ने कबूल किया दूसरी ने इन्कार किया तो जिस ने कबूल किया उस का निकाह भी न हुआ। ( आलमगीरी 276 )
मसला :- ऐसी दो (2) औरतों से निकाह किया और उन में एक इद्दत में भी थी तो जो ख़ाली है उस का निकाह सहीह हो गया।
और अगर वह उसी की इद्दत में थी तो दूसरी से भी सहीह न हुआ । ( आलमगीरी 278 )
(4) चौथी किस्मे : - हुरमत बिल मिल्क
मसला :- औरत अपने गुलाम से निकाह नहीं कर सकती ख़्वाह वह तन्हा उसी की मिल्क में हो या कोई और भी उस में शरीक हो ( आलमगीरी , 282 दुर्रे मुख्तार 313 )
मसला :- मौला अपनी बाँदी से निकाह नहीं कर सकता अगर्चे वह उम्मे वलद या मकातिबा या मुदब्बरा हो या उस में कोई दूसरा भी शरीक हो।
मगर बनज़रे एहतियात मुतअख्ख़िरीन ने बाँदी से निकाह करना मुस्तहसन है ( बेहतर ) बताया है। ( आलमगीरी 282 )
मगर यह निकाह सिर्फ बर बिनाए एहतियात है ।
कि अगर वाके में कनीज़ नहीं जब भी जिमाअ जाइज़ है लिहाज़ा समराते निकाह इस निकाह पर मुरत्तब नहीं।
न महर वाजिब होगा न तलाक हो सकेगी न दीगर अहकामे निकाह जारी होंगे ।
मसला :- अगर ज़न व शौहर में से एक दूसरे का या उस के किसी जुज़ का मालिक हो गया तो निकाह बातिल हो जायेगा।( आलमगीरी 282 )
मसला :- माजून या मुदब्बर या मुकातिब ने अपनी ज़ौजा को ख़रीदा तो निकाह फासिद न हुआ।
यूं हीं अगर किसी ने अपनी ज़ौजा को ख़रीदा और बैअ में इख़्तियार रखा कि अगर चाहेगा तो वापस कर देगा तो निकाह फासिद ना होगा।
यूँ ही जिस गुलाम का कुछ हिस्सा आज़ाद हो चुका है वह अगर अपनी मन्कूहा को ख़रीदे तो निकाह फ़ासिद न हुआ । ( आलमगीरी , रद्दुल मुहतार 313 )
मसला :- मकातिब या माजून की कनीज़ से मौला निकाह नहीं कर सकता। ( आलमगीरी )
मसला :- मकातिब ने अपनी मालिका से निकाह किया फिर आजाद हो गया तो वह निकाह अब भी सहीह न हुआ हाँ अगर अब जदीद निकाह करे तो कर सकता है। ( आलमगीरी 283 )
मसला :- गुलाम ने अपने मौला की लड़की से उस की इजाज़त से निकाह किया तो निकाह सहीह हो गया मगर मौला के मरने से यह निकाह जाता रहेगा।
और अगर मकातिब ने मौला की लड़की से निकाह किया था तो मौला के मरने से फ़ासिद न होगा।
अगर बदले किताबत अदा कर देगा तो निकाह बर करार रहेगा और अगर अदा न कर सका और फिर गुलाम हो गया तो अब निकाह फ़ासिद हो गया । ( आलमगीरी 283 )
(5) पाँचवीं किस्म : - हुरमत बिश शिर्क
मसला :- मुसलमान का निकाह मजूसिया बुत परस्त आफताब परस्त सितारा परस्त औरत से नहीं हो सकता ख़्वाह यह औरतें हुर्रा हों या बाँदियाँ गर्ज़ किताबिया के सिवा किसी काफ़िरा औरत से निकाह नहीं हो सकता।
मसला :- मुरतद व मुरतद्दा का निकाह किसी से नहीं हो सकता अगर्चे मर्द व औरत दोनों एक ही मज़हब के हों। ( खानिया वगैरहा )
मसला :- यहूदिया और नसरानिया से मुसलमान का निकाह हो सकता है मगर चाहिए नहीं कि उस में बहुत से मफासिद (फसाद) का दरवाज़ा खुलता है। ( आलमगीरी स 287 वगैरा )
मगर यह जवाज़ उसी वक़्त तक है जब तक अपने उसी मज़हब यहूदियत या नसरानियत पर हों।
और अगर सिर्फ नाम की यहूदी, नसरानी हों और हकीकतन नेचरी और दहरिया मज़हब रखती हों।
जैसे आज कल के उमूमन नसारा का कोई मज़हब ही नहीं तो उन से निकाह नहीं हो सकता।
न उन का ज़बीहा नाजाइज़ बल्कि उन के यहाँ तो ज़बीहा होता भी नहीं ।
मसला :- किताबिया से निकाह किया तो उसे गिरजा ( चर्च ) जाने और घर में शराब बनाने से रोक सकता है ( आलमगीरी 281 )
मसला :- किताबिया से दारुल हर्ब में निकांह कर के दारुल इस्लाम में लाया तो निकाह बाकी रहेगा।
और खुद चला आया उसे वहीं छोड़ दिया तो निकाह टूट गया। ( आलमगीरी सफा 281 )
मसअला:- मुसलमान ने किताबिया से निकाह किया था फिर वह मजूसिया हो गई तो निकाह फिस्ख़ हो गया।
और मर्द पर हराम हो गई और अगर यूहदिया थी अब नसरानिया हो गई या नसरानिया थी यहूदिया हो गई तो निकाह बातिल न हुआ। ( आलमगीरी सफा 281 )
मसला :- किताबी मर्द का निकाह मुरतद्दा के सिवा हर काफिरा से हो सकता है ।
और औलाद किताबी के हुक्म में है मुसलमान किताबिया से औलाद हुई तो औलाद मुसलमान कहलायेगी। ( आलमीगरी 201 )
मसला :- मर्द व औरत काफिर थे दोनों मुसलमान हुए तो वही निकाहे साबिक ( पहला बाकी है।
जदीद निकाह की हाजत नहीं और अगर सिर्फ मर्द मुसलमान हुआ तो औरत पर इस्लाम पेश करें और अगर मुसलमान हो गई तो ठीक वरना तफ़रीक ( जुदाई ) कर दें।
यूँ ही अगर औरत पहले मुसलमान हुई तो मर्द पर इस्लाम पेश करें अगर तीन (3) हैज़ आने से पहले मुसलमान हो गया तो निकाह बाकी है।
वरना बाद को जिस से चाहे निकाह कर ले कोई उसे मना नहीं कर सकता। ( आलमगीरी सफा 279 )
मसला :- मुसलमान औरत का निकाह मुसलमान मर्द के सिवा किसी मज़हब वाले से नहीं हो सकता।
और मुसलमान के निकाह में किताबिया है उस के बाद मुसलमान औरत से निकाह किया या मुसलमान औरत निकाह में थी उस के होते हुए किताबिया से निकाह सही है। ( आलमगीरी 2002 )
(6) छटी किस्म हुर्रा निकाह में होते हुए बाँदी से निकाह करना।
मसला:- आज़ाद औरत निकाह में है और बाँदी से निकाह किया सहीह न हुआ ।
यूँ ही एक अक्द में दोनों से निकाह किया हुर्रा का सहीह हुआ बाँदी से न हुआ। ( आलमगीरी सफा 279 )
मसला:- एक अक़्द में आज़ाद औरत और बाँदी से निकाह किया और किसी वजह से आज़ाद औरत का निकाह सहीह न हुआ तो बाँदी से निकाह हो जायेगा। ( आलमगीरी 279 )
मसला :- पहले बाँदी से किया फिर आज़ाद से तो दोनों निकाह हो गये।
और अगर बाँदी से बिला इजाज़त मालिक निकाह किया। और दुखूल न किया था फिर आज़ाद औरत से निकाह किया अब उसके मालिक ने इजाज़त दी तो निकाह सहीह न हुआ।
यूँ ही अगर गुलाम ने बगैर इजाज़त मौला हुर्री से निकाह किया और दुखूल किया फिर बाँदी से निकाह किया।
अब मौला ने दोनों निकाह कि इजाज़त दी तो बाँदी से निकाह न हुआ। ( आलमगीरी रहुल , मुहतार 316 )
मसला :- आज़ाद औरत को तलाक दे दी तो जब तक वह इद्दत में है बाँदी से निकाह नहीं कर सकता अगर्चे तीन (3) तलाकें दे दी हों। ( आलमगीरी स 207 )
मसला :- अगर हुर्रा निकाह में न हो तो बाँदी से निकाह जाइज़ है अगर्चे इतनी इस्तिताआत है कि आज़ाद औरत से निकाह कर ले। ( दुर्रे मुख्तार 318 वगैरा )
मसला :- बाँदी निकाह में थी उसे तलाके रजई देकर आज़ाद से निकाह किया फिर रजअत कर ली तो वह बाँदी बदस्तूर ज़ौजा हो गई। ( दुर्रै मुख्तार 310 )
मसला :- अगर चार (4) बाँदियों और पाँच (5) आज़ाद औरतों से एक अक्द में निकाह किया तो बाँदियों का हो गया और आज़ाद औरतों का न हुआ।
और दोनों चार चार (4 - 4) थीं तो आज़ाद औरतों का हुआ बाँदियों का न हुआ। ( दुर्रे मुख्तार सफा 316 )
(7) सातवीं किस्म :- हुरमत व वजह तअल्लुके हके गैर
मसला :- दूसरे की मनकूहा से निकाह नहीं हो सकता बल्कि अगर दूसरे की इद्दत में हो जब भी नहीं हो सकता।
इद्दत तलाक़ की हो या मौत की या शुबहा निकाह या निकाहे फासिद में दुख़ूल की वजह से ।
मसला :- दूसरे की मनकूहा से निकाह किया और यह मालूम न था कि मनकूहा है तो इद्दत वाजिब है और मालूम था तो इद्दत वाजिब नहीं। ( आलमगीरी 280 )
Keya Pregnant Girl Or Ladies Se Shadi Ho Sakti Hai islam Me
क्या हामिला औरत से निकाह हो जायेगा की नहीं?
मसला :- जिस औरत को ज़िना का हमल है उस से निकाह हो सकता है फिर अगर उसी का हमल है तो वती भी कर सकता है।
और अगर दूसरे का है तो जब तक बच्चा न पैदा हो वती जाइज़ नहीं । ( दुर्रे मुख्तार 319 )
मसला :- जिस औरत का हमल साबितुन्नसब है उस से निकाह नहीं हो सकता। ( आलमगीरी स 290 )
मसला :- किसी ने अपनी उम्मे वल्द हामिला का निकाह दूसरे से कर दिया तो सहीह न हुआ।
और हमल न था तो सहीह हो गया ( अलमगीरी स 280 )
मसला :- जिस बाँदी से वती करता था उसका निकाह किसी से कर दिया निकाह हो गया मगर मालिक पर इस्तिबरा वाजिब है ।
यानी जब उसका निकाह करना चाहे तो वती छोड़ दे यहाँ तक कि उसे एक (1) हैज़ आ जाये बादे हैज़ निकाह कर दे और शौहर के जिम्मे इस्तिबरा नहीं।
लिहाज़ा अगर इस्तिबरा से पहले शौहर ने वती कर ली तो जाइज़ है मगर न चाहिए और अगर मालिक बेचना चाहता है तो इस्तिबरा मुस्तहब है।
वाजिब नहीं ज़ानिया से निकाह किया तो इस्तिबरा की हाजत नहीं । ( दुर्रे मुख्तार 317 )
मसला :- बाप अपने बेटे की कनीजे श र ई से निकाह कर सकता है। ( आलमगीरी 281 )
islam me kitne nikah jaiz hai
(8) आठवीं किस्म : - हुरमते मुतअल्लिक व अदद
मसअला :- आज़ाद शख़्स को एक वक़्त में चार (4) औरतों और गुलाम को दो (2) से ज़्यादा निकाह कर ने की इजाज़त नहीं और आज़ाद मर्द को कनीज़ का इख़्तियार है उस के लिए कोई हद नहीं। ( दुर्रें मुख्तार 316 )
मसला :- गुलाम को कनीज़ रखने की इजाज़त नहीं अगर्चे उसके मौला ने इजाज़त दे दी हो। ( दुर्रे मुख्तार 316 )
मसला :- पाँच (5) औरतों से एक अक्द के साथ निकाह किया तो किसी से निकाह न हुआ।
और अगर हर एक - एक से अलाहिदा - अलाहिदा अक्द किया तो पाँचवें का निकाह बातिल है।
बाकियों का सही है यूँ ही गुलाम ने तीन (3) औरतों से निकाह किया तो उसमें भी वही दो सूरतें हैं ( आलमगीरी स 277 )
मसला :- काफिर हर्बी ने पाँच (5) औरतों से निकाह किया फिर सब मुसलमान हुए अगर आगे पीछे निकाह हुआ तो चार (4) पहली बाकी रखी जायें और पाँचवीं को जुदा कर दे।
और एक अक्द था तो सब को अलाहिदा कर दे । ( आलमगीरी 277 )
मसला :- दो (2) औरतों से एक अक़्द में निकाह किया उन में एक ऐसी है जिस से निकाह नहीं हो सकता तो दूसरी का हो गया ।
और जो महर मजकूर हुआ वह सब उसी को मिलेगा। ( दुर्रे मुख्तार 381 )
मसला :- मुतअ़ ( निकाह में वक़्त की कैद हो ) हराम है। यूँ ही अगर किसी खास वक़्त तक के लिए निकाह किया तो यह निकाह भी न हुआ अगर्चे दो सौ (200) साल के लिए करे। ( दुर्रे मुख्तार 318 )
मसला:- किसी औरत से निकाह किया कि इतने दिनों के बाद तलाक दे देगा तो यह निकाह सही है।
अपने ज़हेन में कोई मुद्दत ठहरा ली हो कि इतने दिनों के लिए निकाह करता हूँ मगर जुबान से कुछ न कहा तो यह निकाह भी हो गया। ( दुर्रे मुख्तार 318 )
मसला :- हालते अहराम में निकाह कर सकता है मगर न करना चाहिए यूँ ही मुहरिम उस लड़की का भी निकाह कर सकता है जो उसकी विलायत में है ( आलमगीरी 283 )
Kin Logo se Nikah karna Jaiz Nahi, ISLAM KIN LOGON SE NIKAH KARNE KI IJAAZAT DETA HAI AUR KINSE NAHIN, kin se nik, kin cheezon se nikah toot jata hai, kin aurton se nikah haram hai, kin aurton se nikah jaiz hai, kin rishton se nikah jaiz hai, kin cheezon se nikah toot jata hai, mamu ki ladki se nikah jaiz hai, zina karne se nikah toot jata hai, kin rishton se nikah jaiz hai, kin cheezon se nikah toot jata hai, mamu ki ladki se nikah jaiz hai, zina karne se nikah toot jata hai, behan se nikah jaiz hai, chacha ki beti se nikah jaiz hai, islam me kitne nikah jaiz hai, cousin ki beti se nikah jaiz hai, Kin se nikaah karna jaiz nahi | किन औरतों से निकाह करना जायज नहीं, निकाह : क़ुरआन और सुन्नत के आईने में, महरम का बयान (यानी जिन औरतों से निकाह करना हराम है),
महरम का बयान (यानी जिन औरतों से निकाह करना हराम है)
कुरआन शरीफ में सूरह निसाअ की आयत नम्बर 23वीं और 24वीं आयात में अल्लाह तआला ने उन औरतों का ज़िक्र फरमाया है जिनके साथ निकाह करना हराम है, वह नीचे लिखे जा रहे हैं।
नसबी रिशते?
- मां (हकीकी मां या सौतेली मां, इसी तरह दादी या नानी) ।
- बेटी (इसी तरह पोती या नवासी)।
- बहन (हकीकी बहन, मां शरीक बहन, बाप शरीक बहन) ।
- फूफी (वालिद की बहन खाह सगी हो या सौतेली) ।
- खाला (मां की बहन ख्वाह सगी हो या सौतेली) ।
- भतीजी (भाई की बेटी ख्वाह सगी हो या सौतेली)।
- भांजी (बहन की बेटी ख्वाह सगी हो या सौतेली)
रिज़ाई रिशते?
नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि जिन औरतों से नसब की वजह से निकाह नहीं किया जा सकता है।
रिज़ाअत (दूध पीने) की वजह से भी उन्हीं रिश्तों में निकाह नहीं किया जा सकता है।
(बुखारी व मुस्लिम)
- गरज़ रिज़ाई मां,
- रिज़ाई बेटी,
- रिज़ाई बहन,
- रिज़ाई फूफी,
- रिज़ाई खाला,
- रिज़ाई भतीजी
- और रिज़ाई भांजी से निकाह नहीं हो सकता है।
अज़दवाजी रिशते?
- बीवी की मां (सास)।
- बीवी की पहले शौहर से बेटी, लेकिन ज़रूरी है कि बीवी से सोहबत कर चुका हो।
- बेटे की बीवी (बहू) (यानी अगर बेटा अपनी बीवी को तलाक़ दे दे या मर जाए तो बाप बेटे की बीवी से शादी नहीं कर सकता।
- दो बहनों को एक साथ निकाह में रखना इसी तरह खाला और उसकी भांजी, फूफी और उसकी भतीजी को एक साथ निकाह में रखना मना है।
आम रिशते?
किसी दूसरे शख्स की बीवी अल्लाह तआला के इस वाज़ेह हुकुम की वजह से एक औरत बयक वक़्त एक से ज़ायद शादी नहीं कर सकती है।
वज़ाहत
1) बीवी के इंतिक़ाल या तलाक़ के बाद बीवी की बहन (साली), उसकी खाला, उसकी भांजी, उसकी फूफी या उसकी भतीजी से निकाह किया जा सकता है।
2) भाई, मामू या चाचा के इंतिक़ाल या उनके तलाक़ देने के बाद भाभी, मुमानी और चाची के साथ निकाह किया जा सकता है।
औरत का जिन मर्दों से परदा नहीं है और उनके साथ सफर किया जा सकता है।
वह नीचे लिखे जा रहे हैं जैसा कि सूरह नूर की आयत 31 और सूरह अहज़ाब की आयत 55 में मज़कूर है।
नसबी रिशते?
- बाप (इसी तरह दादा या नाना)।
- बेटा (इसी तरह पोता या नवासा)।
- भाई (हक़ीक़ी भाई, मां शरीक भाई, बाप शरीक भाई)।
- चाचा (वालिद के भाई चाहे सगे हों या सैतेले)।
- मामू (वालिदा के भाई चाहे सगे हों या सैतेले)।
- भतीजा (भाई का बेटा चाहे सगा हो या सौतेला)।
- भांजा (बहन का बेटा चाहे सगा हो या सौतेला)।
रिज़ाई रिशते?
- रिज़ाई बाप,
- रिज़ाई बेटा,
- रिज़ाई भाई,
- रिज़ाई चाचा,
- रिज़ाई मामू,
- रिज़ाई भतीजा
- और रिज़ाई भांजा।
इज़देवाजी रिशते
- शौहर।
- शौहर के वालिद या दादा।
- शौहर की पहली/दूसरी बीवी का बेटा
- दामाद।
वज़ाहत
- खूनी या रिज़ाई या इज़देवाजी रिशते न होने की वजह से औरत को अपने बहनोई, देवर या जेठ, खालू या फूफा से शरई एतेबार से परदा करना चाहिए ।
- और उनके साथ सफर भी नहीं करना चाहिए। गरज़ ये कि मर्द अपनी साली या भाभी के साथ सफर नहीं कर सकता है।
- औरतों को अपने चचा ज़ाद, फूफी ज़ाद, खाला ज़ाद और मामू ज़ाद भाई से परदा करना चाहिए और उनके साथ सफर भी नहीं करना चाहिए,
- क्योंकि औरत की अपने चचा ज़ाद, फूफी ज़ाद, खाला ज़ाद और मामू ज़ाद भाई से शादी हो सकती है।
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