Islami jankari in hindi daily question answer

Islami jankari in hindi daily question answer

Islami jankari in hindi daily question answer
Quiz

Question

मुफ्ती साहब गैर ए सहाबा को रदी अल्लाहु तआला अन्हु लिखना कैसा है क्या ऐसा बोलना या लिखना सिर्फ सहाबा के लिए खास है?

 जवाब:

 गैर ए सहाबा के लिए रज़ी-अल्लाहु तआला अन्हु का लफ़्ज़ इस्तेमाल करना जायज़ है।


 दुर्र ए मुख्तार मअ शामी जिल्द 5 सफहा नम्बर 480 में है "सहाबा के लिए रज़ी-अल्लाहु तआला अन्ह कहना मुस्तहब है और ताबेईन वगैरह के लिए रहमतुल्लाह तआला अलैह कहना मुस्तहब है ।

और इसका उल्टा कहना भी दुरुस्त है। रहमतुल्लाह तआला अलैह और ताबे'ईन और उन के आलावा उल्मा और मशाइख के लिए राजेह मजहब पर रजी-अल्लाहु तआला अन्ह भी जाएज है।


 हज़रत अल्लामा शहाबुद्दीन ख़ीफ़ाजी रहीमहुल्लाह नसीमुर रियाज़ में फरमाते हैं "अम्बिया ए किरम अलैहिमुस्सलातो वस्सलाम के आलावा अइम्मा वगैरा उलमा ओ मशाइख को गुफ़रान ओ रज़ा से याद किया जाए तो गफ़रल्लाहु रज़िया-अल्लाह तआला अन्हू "


 लिहज़ा मा'लूम हुआ के गैर ए सहाबा के लिए भी रज़ी-अल्लाहु तआला अन्हु का इस्तमाल जायज़ और दुरूस्त है।


 इसी वजह से शैख अब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी रहिमहुल्लाह ने आशि अतुल लमआत में हज़रत अवैस ए क़रनी रज़ी-अल्लाहु तआला अन्हु लिखा है जब के आप ताबई हैं।


 हज़रत इमाम ए आज़म अबू हनीफ़ा और इमाम शाफ़ई को अल्लामा इब्न ए अबिदीन शामी रहिमहुल्लाह ने शामी में कई जगहों पर रज़ी-अल्लाहु अन्हु लिखा है .. हांलां के इमाम शाफ़ई ताबई भी नहीं हैं।


 अल्लामा इब्न ए हज़र अस्कलानी ने फतहुल बारी शरह ए बुखारी में इमाम ए बुखारी को रज़ी-अल्लाहु तआला अन्हु लिखा है ।


 इमाम नववी ने शरह ए मुस्लिम में इमाम मुस्लिम को रज़ी-अल्लाहु तआला अन्हु लिखा है।


 अल्लामा ख़ीफ़ाजी ने अल्लामा काज़ी अयाज़ को नसीमुर रियाज़ में रज़ी-अल्लाहु अन्हु लिखा है।


 हज़रत शैख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी ने आशियतुल लमआत और अखबारुल अख़्यार में कई मुक़ामात पर हुज़ूर गौस ए पाक को रज़ी-अल्लाहू तआला अन्हु लिखा है।


 अल्लामा अबुल हसन अली बिन युसूफ शुतूनी रहीमहुल्लाह ने बहज्जतुल असरार शरीफ में बहुत से मक़मात पर गैर ए सहाबा को रज़ी-अल्लाहु तआला अन्हु लिखा है।


 हिदाया में साहिब ए हिदाया को उन के शागिर्द ने काई मक़ामात पर रज़ी-अल्लाहु तआला अन्हु लिखा है ।


 इन तमाम शवाहिद से रोज़ ए रौशन की तरह वाज़ेह हो गया के "रज़ी-अल्लाहु तआला अन्हु" का लफ़्ज़ सहाबा ए किरम के साथ खास नहीं है ।

अगर ये लफ़्ज़ उन के साथ खास होता है यानि गैर-ए सहाबा को रदि अल्लाहु तआला अन्हु लिखना जायज़ ना होता तो इतने बड़े बड़े मुहक़क़ीक़ीन जो अपने ज़माने में इल्म के आफ़ताब ओ महताब थे ये लोग गैर ए सहाबा को रज़ी-अल्लाहू तआला अन्हु हर गिज़ न लिखते।


 यहाँ तक आम देवबंदी वहाबी जो रज़ी-अल्लाहु तआला अन्हु को सहाबा के साथ खास समझते हैं और गैर ए सहाबा को रज़ी-अल्लाहु तआला अन्ह कहने पर लड़ते झगड़ते हैं 

उन के पेशवा कासिम गंगोही और रशीद अहमद गंगोही को रदि अल्लाहु तआला अन्हुमा लिखा गया है ।

 जैसा के तज़किरतुर रशीद जिल्द 1 सफा 38 पर है के "मौलाना मुहम्मद कासिम साहब ओ मौलाना रशीद अहमद साहब रज़ी-अल्लाहु अन्हुमा चंद रोज़ के बाद ऐसे हम सबक बने के बहुत न कुछ में "...


 क़ुरान ए करीम से भी इस बात की ताईद होती है के रज़ी-अल्लाहु तआला अन्ह का लफ़्ज़ साहब ए किराम के साथ खास नहीं है।


 सूरह अल बैय्येनह मे है


 "رضي الله انهم ورضو عنه لك لمن ي ربه"


 यानि रज़ी-अल्लाहु अन्हुम वा रज़ू अन्हु उन लोगो के लिए है जो अपने रब से डरें ।

जैसा के तफ़सीर में वही है के "रज़ा यानि रज़ी-अल्लाहु अन्हुम वा रज़ू अन्ह उन लोगो के लिए है जिन के दिल में रब की ख़ासियत "



 और रब की खासियत उलमा ही का खासा है बल्कि अइम्मा फारमाते हैं के आलिम सिर्फ वही शख्स है जिसे खुदा ए अज्जा वा जल्ला की खासियत हासिल हो (तफसीर ए खज़िन, मुलीमुत तंज़ील वगैराह)


 सबित हुआ के रज़ी-अल्लाहु तआला अन्ह सिर्फ़ बा अमल उल्मा ओ मशाइख के लिए हैं ... मगर ये लफ़्ज़ चूंकी उरफ़ ए आम में बड़ा मुक़र्र है यहाँ तक के बहुत से लोग समझते हैं कि इसे सहाबा ए किराम ही के लिए खास हैं। 

लिहाजा इसे हर एक के लिए ना इस्तमाल किया जाए बल्कि इसे बड़े बड़े उलेमा ओ मशाइख ही के लिए इस्तेमाल किया जाए जैसे हमारे बुजर्गो ने किया है।

 वा-अल्लाहु तआला आलम।


 सावल -

 कुछ किताबो में ये तज़किरा है के हुज़ूर गौस ए पाक या हुज़ूर ग़रीब नवाज़ की मुलाकात कुछ दिनों के लिए हुयी थी

 कुछ किताबो में मुलाकात का ज़िक्र नहीं हो

 मगर इन दोनोंनो बुज़ुर्गो का डोर एक ही तो है।

 मुलाकात वाली रिवायत सही है हजरत रहनुमाई फरमायें ?

 

 जवाब:

 मुलाकात से मुताल्लिक रिवायत मैं ने नहीं देखी है.... हां ये रिवायत जरूर मिली है के जिस वक्त हुजूर गौस ए पाक रदी-अल्लाहु ता'आला अन्हु ने जिस वक्त ऐलान फरमाया था के मेरा कदम तमाम अल्लाह के वालियो की गर्दन पर है उस वक्त हज़रत ग़रीब नवाज़ खुरासान में मौजूद थे।


सवाल

 हज़रत एक सवाल है अगर पेशाब के कुछ कतरा खड़ा होते निकल जाये जैसे एक बुंद आया तो गुस्ल वाजिब होगा हा नहीं और ऐसा हमेशा होता है वजाहत फरमाए?


 जवाब

 पेशाब के अपने मखराज से निकलने की वजह से वजू टूटेगा इस की वजह से गुस्ल वाजिब नहीं होगा। हां जिस जगह वो निजासत लगी हो उस जगह को पानी बहा कर पाक किया जाए।


Question

 सरमाया ए अहलेसुन्नत रहनुमाई फरमाये इस मसल में के;


 "ज़रूरत के बिना, आलिमों सवाल पूंछना कैसा है?


 जवाब:

 बे ज़रुरत के सवाल पूछने का मक़सद क्या है

 अगर इल्म में इज़ाफ़ा मकसद हो या दूसरों की तालीम की नियत से हो तो मुस्तहसन है


और अगर सवाल से किसी आलिम की सलाहियत या इम्तिहान या लोगो के सामने जलील करना हो तो ना जाएज ओ हराम है 


सवाल

 सैय्यदि आला हज़रत के ताल्लुक से मशहूर है के दोनों हाथो से लिखा करते थे और करामत ये थी के पहले पेज का जहां खत्म होता था दूसरा पेज वही से पहले से शुरू होता है..



 मौलाना हसन रज़ा पीएचडी और मौलाना हमदानी साहब की तकरीरें में सुना गया था क्या किसी के पास ऐसी तस्दीक या हवाला मिल सिकता है?


 जवाब:

 इस बारे में मैं भी काफ़ी सुना है

 मगर हमारे अकाबिर ने की तस्दीक नहीं फरमाई है... के उल्टे हाथ से लिखना क़रीन ए क़यास नहीं लगता..


 सैय्यदी आला हज़रत की हर अदा सुन्नत ए मुस्तफा हुआ करती थी तो आप बायां हांथ से किस तरह तहरीर फरमा सकते हैं जब के अच्छे काम दहिने हाथ से ही करना सुन्नत है ..


सवाल

खुत्बे में पढ़ा जाता है

 जामिउल कुरआन हज़रत उस्मान बिन अफ़्फ़ान रदिअल्लाहु अन्हो लेकिन हज़रत ज़ैद बिन सबित रदियाल्लाहु अन्हो से क़ुरआन जमा हुआ है ऐसा लिखा है रहनुमाई फरमाये ?


 जवाब:

 हज़रत ज़ैद और हज़रत सिद्दीक़े अकबर और दीगर सहाबा ए किराम जिन्हों ने क़ुरआन शरीफ़ जमा करने के लिए मदद की वह सब हज़रात भी जामेअ क़ुरआन हैं।


 मगर हज़रत उस्माने गनी की हुकुमत के वक्त ये बहुत बड़ा फ़ितना बरपा हो गया था मुशाफ़ शरीफ़ के हमें अज़ीम फ़ितने को खत्म करने की वजह से जामेय 'कुरान हुए या ये भी कई काम हम बदशाह की तराफ मनसूब होते हैं हालां के काम अंजाम देने वाले अफराद दूसरे होते हैं।


 सरकारे अक़दास सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम ने मुख्तलिफ़ क़बीलों को उनके कबीले पुरुषों जिस तरह अरबी बोली जाती थी उस तरह क़ुरान पढ़ने की इज़ाज़त दी थी।



 या कुछ कबीलों के अफराद ने अपने कबीले की ज़बान के मुवाफ़िक़ नुस्खा भी तरतीब दे कर रखे थे।


 जब हज़रत उस्मान गनी की खिलाफत का ज़माना आया तो कबीलों के इख़तिलाफ़ हुआ या हर क़बीला वाले ये कहते की हमारी ज़बान में क़ुरान नज़िल हुआ है तो हज़रत उस्माने गनी ने वह सब नुस्खे मंगवा कर रख ली।


 चूंकि क़ुरान क़ुरैश की ज़बान नज़िल हुआ है या सिद्दीक़े अकबर के वक़्त का नुस्खा क़ुरैश की ज़बान पर तरतीब था हज़रत हफ़्सा से मंगवाकर उसकी नकल को तमाम जिल्दे इस्लाम में जारी फरमाया


 हज़रत उस्माने गनी ने मुशफ पर सारे मुसल्मानो को जमा फरमा दिया इसी लिए जामेअ क़ुरान कहे जाते हैं


 सावल 

 हजरत इस पोस्ट में जो लिखा है कि हज़रत ज़ैद बिन सबित ने ये काम किया है क्या ये सही है?


 जवाब:

 जी हज़रत उस्मान ए गनी रदी-अल्लाहु तआला अन्ह ने हज़रत ए ज़ैद को बुलाया और जितने भी मकतूबात थी उन में जो सही लफ़्ज़ होते उन पर हज़रत ए ज़ैद से दरियाफ़्त फरमाते ... क्यूंकि के हज़रत ज़ैद कातिब ए वही थे उन को याद था के किन हुरूफ के साथ नुजूल हुआ है।


 लेहाज़ा कहाँ अलिफ़ होना चाहिए कहाँ नहीं

 इस तरह की बहुत से उमूर हज़रत ज़ैद के फरमान के मुताबिक ही लिखे गए


सवाल

इंसान के इंतकाल के बाद जो तीजा का खाना है। उस खाने पर किसका हक है और उससे कौन खा सकता है?


 जवाब:

 फुकरा ओ मसाकीन का हक है। गनी के लिए मुनासिब नहीं .तीजा और चालीसवां वगैरह का खाना अगर गनी भी खा लें तो गुनाहगर नहीं मगर इस तरह के खाने से गनी को बचना चाहिए।

 अगर मलिक ने सिर्फ फकीरों के लिए खाने का इंतजाम किया हो अब गनी को खाना जायज नहीं।

 यूं ही अगर इन मौकों' पर बतौरे दावत खिलाई जाए जब भी अमीर दौलतमंद को खाना जायज नहीं ।


 सावल: - 

हज़रत इस्लाम में खून (रक्त) दान करना कैसा है .. शरियत में इसका क्या हुक्म है, और जो शख्स खून दान करता है उसे क्या हुक्म होगा रहनुमाई फरमाये ?


 जवाब

 इंसान अपने जिस्म के हिस्से का मलिक नहीं है इसी वजह से वो अपना खून डोनेट नहीं कर सकता है के ये नजाएज है।


 इन्सान अपने आ'ज़ा शरीर के अंगों का मालिक नहीं है ... अपने आ'ज़ा बिला ज़रुरत ए शरीयाह तल्फ़ करना ना जायज़ ओ हराम है । 

अगर सख़्त ज़रुरत हो जैसे अपने किसी मुसलमान के जान जाने का और बेगैर ब्लड दिए हमें उस की जान बचाना मुश्किल हो तो इस सूरत में ब्लड दे सकता है।आम तौर पर ब्लड डोनेट करना हराम है।


 क्या सूरत में अगर इस्तेमाल भी खून के इलावा चारा नहीं तो कहीं से ब्लड हासिल करने की कोशिश करे.. अगर ना मिले तो खुद दे और बाद में तौबा ओ इस्तेगफार करे।


 सवाल 

वाट्स एप में इस्लामी ग्रुप में (आदमी) औरत बुर्का पहन कर

 नसीहत (वाज़) करते है ऐसा वीडियो क्लिप भेजे जाते हैं

 तो ऐसा भेजना कैसा है रहनुमाई फरमाये?

 हज़रत क्यों की हदीसे पाक में है की

औरत की आवाज़ औरत है हवाला के साथ बतायेगा

 किसी ने पूंछा है?


 जवाब:

 एक मसला ये है जिस तरह ख्वातीन अपने जिस्म को ना महरम मर्दों से छुपाना जरूरी है। इसी तरह अपनी आवाज को भी ना महरम मर्दों तक पहुंचने से बचने की कोशिश करनी चाहिए।


 अलबत्ता जहां जरूरी हो वहां ना महरम मर्द से परदे के पीछे से बात कर सकती है।

हां ये है के ना महरम से बात करते वक्त औरत अपनी आवाज की कुदरती लचक और नरमी को खत्मम कर के जरा खुश लहजे में बात करे ताकी क़ुदरती लचक और नरमी ज़हीर ना होने पाए और ना महरम भी और ना महरम भी किसी गुनाह की लज्जत लेने का मौका न मिले ।

 कुरान ए पाक में इरशाद हुआ

 لاتخضعن بالقول يطمع الذي ي لبه مرض


 बात में ऐसी नरमी ना करो के दिल का रोगी कुछ लालच करे


 यहां अल्लाह ने उन उम्माहत उल मुमिनीन को ये हुक्म फरमाया जो पाक हैं और फितने से दूर भी हैं के बात को नरमी से न करो के सामने वाले के दिल में कुछ गलत शैतानी ख्याल आ जाए।


 तो आज की औरतो के लिए क्यों ना हुकम होगा के आज तो फितना ज्यादा है।


 सावल

 क्या ये बात कहना दुरुस्त है के किसी दुसरे धर्म (मजहब) को बुरा ना कहो...उनका अदब करो उनकी इज्जत करो?


 क्या उनकी इज्जत करना सही है और शरीयत से हदीस के हवाला से जवाब इनायत फरमाये जज़ाक अल्लाह ?


 जवाब:

 जो बातिल मजाहिब हैं उन्हे बुरा नहीं तो और क्या कहेगा, मगर गालियां देने से मना किया गया है कि कुरान ए पाक का इरशाद है


 ولا تسبوا الذين يدعون من دون الله يسبوا الله دوا بغير لم


 और उने गली ना दो वो जिन को वो अल्लाह के सिवा पूजते हैं के वो अल्लाह की शान में बे अदबी करेंगे ज्यादती और जिहालत से।


 मफ़हूम ये हुआ के उन के बातिल खुदाओ को अगर तुम गाली दोगे तो वो दुश्मनी ओ अदावत में अल्लाह को गली देंगे।


 लिहाजा ये कहना के सब मजहब सही हैं और उन की इज्जत करनी चाहिए ये बड़ा सख्त जुमला है ऐसा कहने वाला तौबा करे, हां उन्हें गलियां न दी जायें ।


 सावल

 हज़रत आपने फरमाया की सबी मज़हब सही या उनकी इज्जत करने को कहना गलत है, यह सही है फिर भी अगर दोसरे किसी मज़हब को सही गलत अपने दिल या जुबान से ना कहीं या फिर गलत बोले तो रहनुमाई फरमायें?


 जवाब:

 जब तक ज़ाहीर ना होगा कोई हुक्म ना होगा, हां बात चीत से बद मज़हबो की मुवाफ़िक़त होती हो तो सख़्त हुक्म होगा।


 यानि किसी पर हुक्म उस वक्त दिया जाएगा जब के हम में मुराद ज़ाहीर हो जाएंगे। अब अगर कोई कफीरों को कुछ कहता नहीं तो मुतलकन उस पर कोई हुक्म न होगा। हां बात चीत से जब जहीर हो जाए के इस के दिल में क्या है तो उसी के मुताबिक हुक्म भी होगा।


सवाल

 आज कल यूट्यूब और सोशल मीडिया पर एक मनकबत बहुत चलाई जा रही है जिसके लिए,

 "आंखें मेरी अबतक है चौखट पे धरी ख्वाजा...

 बिगड़ी के बनने में क्यों देर लगी ख्वाजा..."


 हुज़ूर क्या इस तरह के आसार पढ़ना दुरुस्त है क्या इसमे सरकार सैय्यदी ख़्वाजा गरीब नवाज़ रज़ी अल्लाहू तआला अन्हो की बरगाह में शिकवा नहीं है?


 जवाब

 ये किसी आलीम का लिखा हुआ शायरी हरगिज़ नहीं मालूम होता

 मोअतबर सुन्नी सहीह उल अकीदा मुसलमानों की लिखी हुई नात ओ मनकबत पडी़ जाए। और इस तरह की मनकबतों से एतराज किया जाए जिस में अदाबी का शायबा हो।


 सावल

 क्या मर्द अपने चेस्ट (छाती) के बाल काट सकते हैं


 जवाब :

 सीने के बाल अगर इतने ज्यादा हों के गुसल में मुश्किल आती हो तो कोई हरज नहीं। वर्ना मकरूह ए तंजीही है।


 सावल:-

रजब के कुंडे 22 को मनाया करते हैं कुछ लोग कहते हैं मत करो हरगिज़ नहीं करने चाहिए तो हम 22 को करना चाहते हैं क्या करें हज़रत ?


 जवाब :-

 22 रजब को भी की जाए तो हरज नहीं। हां फ़ातिहा में इमामे जाफ़र ए सादिक के साथ हज़रत अमीर ए मुआविय्या के नाम भी इसाल ए सवाब करें ताके शियों का रद्द भी हो और उन से किसी तरह की मुशबाहत भी ना बाकी रहे।

 बरतन हो और जिस जगह बने उसी जगह खाया जाए फिर बरतन को फेक दिया जाए वगैरा ये सब खुराफात और बिदअत ओ ना जायज़ हैं


 सवाल

 क्या फरमाते हैं उलमाये किरम वा मुफ्तियाने इस मसले में की अगर कोई मर्द या औरत एक दूसरे को मुंह बोला भाई-बहन का रिश्ता बना कर एक दूसरे से बात चीत करें क्या एक दुसरे को सलाम कलाम कर सकते हैं या नहीं या फिर सिर्फ और सिर्फ दीनी इल्म पर बात कर सकते हैं या नहीं

 


 जवाब :-

 रिश्ता या तो नसब के एतेबार से होता है या फिर दूध का रिश्ता होगा ।

किसी को अपनी बहन बनाना या लड़की का किसी को अपना भाई बना लेने से जो अहकामे शरीयत की पबंदियां हैं वो उन से नहीं उठेगा।


 अगर सिर्फ दीनी मसला के लिए जरूरी है बात चीत होती है.. के वो किसी औरत से नहीं समझ में आते तो हम तक पहुंच जाती है जब के फितने का और ए कवी ना हो।


क्या फरमाते हैं उलामा ए दिन वा मुफ्तियाने इकराम इस पर सवाल है कि आज कल फेसबुक और इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप पे लोग अपनी अपनी या अपने दोस्त अहबाब या रिश्ते के साथ फोटो खिंचाते है और शेयर करते हैं तो इन तीनो में माशा अल्लाह, सुभानअल्लाह, ये एक विकल्प होता है की लाइक करने का हमें पे क्लिक करते हैं


 ऐसे में क्या हुक्म लगेगा जो जैसा करता है ए या माशा अल्लाह, सुभानअल्लाह कहता है और जो ये तस्वीर खिचा कर फॉरवर्ड करता है?


 जवाब

 जानदार की तस्वीर की हुरमत पर इतनी कसरत से हदीस मरवी हैं के वो हद ए तवातुर को पहुंच गई। के इस का इंकार करने वाला गुमराह है। कुछ अहदीस पेश हैं

 हज़रत सईद बिन अबुल हसन रदी-अल्लाहु अन्हु से रिवायत है उन्हो ने कहा की मैं हज़रत इब्ने अब्बास रदी-अल्लाहु अन्हु के पास हज़ीर था तो अचानक एक आदमी आया और कहने लगा के ऐ इब्ने अब्बास! मेरा ज़रिया मेरे हाथ की कारीगर है और वो ये के मैं तस्वीरे बनाया करता हूं”।

 हज़रत इब्ने अब्बास रदी अल्लाहु अन्हु ने फरमाया: "मैं तुमसे वही हदीस बयान करता हू जिस्को खुद मैंने नबी ए पाक से सुना है के

 जो शख्स कोई तस्वीर बनायेगा तो अल्लाह तआला उसको हमें उस वक्त तक आजाब देता रहेगा जब तक के वो तस्वीर में रूह ना फूंक दे और वो उसमे कभी रूह नहीं फूंक सकेगा" वो आदमी लरज से कांपने लगा और 

 हज़रत इब्ने अब्बास ने फरमाया: "तुम पर अफसोस है अगर तुम तस्वीर बनाना नहीं छोड़ सकते तो दरख़्त और ऐसी चीज़ों की तस्वीर बनायें जिन में रूह नहीं है" !!

 सब से ज़्यादा अज़ाब अल्लाह के नज़्दीक़ तस्वीर बनने वाले को होगा।

(मिशकात शरीफ)


 क़ियामत के दिन अल्लाह तआला की बरगाह में सबसे ज़्यादा सख़्त तरीन अज़ाब उन तस्वीर बनाने वाले पर है जो खुदा के बने हुए की नकल करे।

( बुखारी शरीफ )


 हुजूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते है,

 "जिस घर में कुत्ता और तस्वीर हो, उस घर में रहमत के फरिश्ते दाखिल नहीं होते"

( फतावा रज़्विया, जिल्द 9 )


 हुज़ूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम ने ये भी इरशाद फरमाया के : तस्वीर बनाने वाला और बनने वाला दोनो जहन्नमी हैं।

 इन हदीस की रौशनी में ये बात साबित हो गई के तस्वीर चाहे जिस तरह बनाया जाए वो हराम है।

 और इस की इल्लत ये है के अगले जमाने में लोग यूं ही तस्वीर बना कर रखते और बाद के लोग उनको पूजने लगते हैं । 

इसी बिना पर मुतलकन तस्वीर और जानदार को ताजीम की जगह रखना हराम है ।

 प्रोफाइल पर इंसान ऐसी ही फोटो रखता है जो अच्छी लगती है और अच्छी लगने वाली चीज को सजा कर रखा जाता है और इस तरह सजा कर रखना हराम असद हराम और जो हमें फोटो को पसन्द करना तस्वीर होने की हैसियत से तो हम पर भी वही हक होगा।  

और मना करने और नारज़गी के इज़हार पर क़ुदरत के बा वजूद खामोश रहने का गुनाह होगा बल्कि हम पर अच्छे कमेन्ट की वजह से भी गुनाह होगा।


सवाल

 हुज़ूर गौस पाक رضی اللّٰــه تعالیٰ نــــــــہ

 के वालिद माजिद को जंगी दोस्त का लक़ब कैसे मिला।


 जवाब :-

 आप खालिसन ली वजहिल्लाह नफ़्स कुशी और रियाज़त ए शरई में अपनी मिसाल आप थे नेकी के कामों के हुक्म करने और बुरे से रोकने के लिए मर्द दिलेर थे ऐसे मुआमले में अपनी जान तक की परवाह नहीं करते थे।

 बाज उलमा ने ये भी फरमाया है के आप हमेशा अपने नफ्स से जिहाद किया करते थे ।

और बाज ने ये कहा के आप जिहाद फी सबीलिल्लाह को ज़्यादा मरगू़ब रखते थे और हमेशा कलिमा ए हक की बुलंदी करते थे 


वजह कुछ भी हो इतनी बात तो साबित है के आप आरिफ ए बिल्लाह और मर्द ए मोमिन ए कामिल थे।


 सवाल

 मिलाद शरीफ की महफिल में नात शरीफ पढ़ी जा रही हो और इस बीच किसी आलिम की एंट्री हो । 

अब नात शरीफ जारी रखना चाहिए या फिर रोक कर खड़े हो गए और ऐसे इस्तकबाल करना चाहिए ?


 जवाब:

 इक़ामत ए नमाज़ के वक़्त ये हुक्म है के इस दौरन इमाम जिस सफ़ से गुज़रे सफ़ वाले खड़े हो जाये या सामने से आए तो जिस जिस की नज़र पड़े वो खड़े होते रहे।

लिहज़ा अगर नात शरीफ़ हो रही हो और कोई आलमे दीन हमारे दरमियान मजलिस में तशरीफ लाये तो एहतेरामन खड़े होना चाहिए और अगर वहां रिवाज यही है कि नात शरीफ रोक कर इस्तिक़बाल किया जाता है तो मुनासिब यही है कि ऐसा ही किया जाए, इस पर कोई हरज नहीं है।


 सावल;

 हज़रत मेरा सवाल था की...

 कुछ लोग कहते हैं के आपके वहां किसी रूह का मामला है, या तो फुला आदमी या औरत जो मर चुका/ (चुकी) है उसके कारण से आपको परशानी या तकलीफ है !

 (मेरी मुराद मुसलमानो की ही बात है गैर की नहीं।)

 मुफ्ती साहब तो क्या ऐसा कहना दूरुस्त है? 


 जवाब :-

 आगर रूह किसी मुसलमान मुत्तकी़ परहेज़गा़र की है तो वो परेशान नहीं करेगा। और किसी गैर मुस्लिम या गुनाहगार की रूह है तो खुद अजा़ब में गिराफ्तार होगी तो हमारे पास आने का सवाल ही नहीं।

 हां ये हो सकता है की जिन्नाती असरात हो सकता है।वा-अल्लाहु तआला आलम।


 सावल

 जो बात है वो मुसलमान की ही है और उनकी मौत कुए में खुदकुशी करने से हुई थी। हमारे दादा की पहली औरत की बात है

कोई रास्ता बताये हजरत


 जवाब :-

 जवाब में सब की तफ़सील बयान की गई है.. किसी का खुदकुशी करना हराम है और वो मुस्तहिक़ ए आजब है। लिहाजा रूह का आना और परेशान करना सही नहीं। हां यह बहाने किसी जिन्नात की शरारत हो सकती है।


 सवाल

 कोई रास्ता है

 जवाब :-

 घर के रहने वाले नमाज़ो की पबंदी करें और रोज़ाना क़ुरान ए मजीद से कुछ तिलावत करें। सोते वक्त आयत अल कुर्सी और चारो कुल पढ़ कर दम कर लिया करें।

 

सवाल

 हज़रत कुछ लोग कहते हैं असर के बाद से मगरिब तक कुछ खाया पिया न जाए तो नफ्ल रोज़ का सवाब मिलता है? क्या ये सही है?


 जवाब :-

 ये बात मैंने कहीं नहीं देखी... हां बुज़ुर्गो के मामूलात से है के वो असर से मगरिब के दरमिया खाने पीने से बाज़ रहते हैं


सवाल

 किसी बहन का सावल है रहनुमाई फरमाए..10 साल की बच्ची अपने छोटे भाई बहन को परेशान करती है और झगडा करती है और अपनी अम्मी को भी परेशान करती है..हजरत इसके लिए कोई वजीफा बतायें जज़ाकअल्लाहु खैर?


 जवाब :-

 सूरह साफ्फह पढ़ कर बच्ची पर दम किया करें .. और रोज़ाना फज्र के वक्त में उसकी पेशानी पर हाथ रख कर और आसमान की तरफ़ मुह उठा कर 21 मरतबा या शहीदू पढ़ा करें।


सवाल

 एक संयुक्त परिवार में 3 भाई रहते हैं बड़े भाई की शादी हो चुकी है बाकी दो भाई बड़े भाई की बीवी (अपनी भाभी) से बात चीत करते हैं और चेहरे का पर्दा नहीं करते ऐसे मे उनपर क्या हुकम है ?

 क्या शरीयत में सगी भाभी से भी चेहरे का हाथ और एड़ी के पंजे का पर्दा वाजिब है?


 जवाब :-

 एक साथ रहने की वजह से हरज है यह चेहरा और हाथ और कदम का पर्दा न करे खातिर हरज नहीं... मगर तन्हाई में किसी के साथ न रहे। और फितने का अंदेशा हो तो उस से भी बच्चे।


सवाल

 क़ब्रस्तान में अभी जो रास्ता बना रखा है पहले वहां पर भी कब्रे थी कुछ सालों पहले मगर अब वहा रस्ता घास या वहां से गुजर कर ही मय्यत को दफनाने लिए जाते हैं इसके लिए क्या हुक्म होगा?


 जवाब:

 अगर वाकई जो नया रास्ता बनाया है वहां कब्रें थी अगर चे बहुत पुरानी , तो वो रास्ता बनाना न जाएज ओ हराम है, उस पर चलना फिरना बैठना सोना नमाज ए जनाजा पढ़ाना जाएज नहीं।


 क्यूं के उस रास्ते पर चलना फिरना नमाज़ वगैराह पढ़ाना दर अस्ल क़ब्र पर चलना फिरना नमाज़ वागैरा पढ़ने के बराबर होगा।



 हदीस शरीफ में है रसूल ए अकरम स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम फरमाते हैं "मुझे आग या तलवार पर चलना कब्र पर चलने से ज्यादा पसंद है" (इब्न ए माजा)


हुज़ूर सदरुस शरीयह बदरूत तारीक़ा अल्लामा मुहम्मद अमजद अली अलैहिर रहमा फरमाते हैं "कब्रिस्तान में जो नया रास्ता निकला वहां से गुज़रना ना जायज़ है ख़्वाह नया हो या पुराना इस्तेमाल ना करें (बहारे शरीयत रद्दुल मुहतार)



 जब क़ब्रिस्तान में नए रास्ते का सिर्फ़ गुमान होने पर इस पर चलना फिरना उठना जाना जायज़ नहीं 

तो जिस रास्ते के बारे में ये यक़ीन हो के कब्रो को मिस्मार कर के बनाया गया तो फिर चलने फिरने के लिए या खड़ा हुआ फिर बैठा है लिहाज़ा जो नया रास्ता कब्रो को मिस्मार कर के बनाया गया है हर गिज इस्तमाल न किया जाए.. व-अल्लाहु तआला आलम।



mufti sahab gair e sahaba ko radi allahu talaa an likhna kaisa kya esa bolna yaa likhna sirf sahaba ke liye maqsoos hai?


Jawaab:

Gair e Sahaba ke Liye Razi-Allahu Ta'ala anh ka Lafz istemaal karna jaayez hai ..


Durr e Mukhtar Ma' Shaami Jild 5 safah 480 me hai "Shaba ke liye Razi-Allahu Ta'ala Anh kehna Mustahab hai aur Taabe'in wagaira ke liye Rahmatullah Ta'ala Alaih Mustahab hai aur is ka ulta yaani sahaba ke liye Rahmatullah Ta'ala Alaih aur Tabe'in aur un ke ilawa Ulama o Mashaikh ke liye Raajeh Mazhab par Razi-Allahu Ta'ala Anh bhi Jaayez hai ..


Hadrat Allama Shahabuddin Khifaaji Rahimahullah Naseemur Riyaz me Farmate hain "Ambiya e kiram Alayhimussalato Wassalam ke ilawa Aimma wagaira Ulama o Mashaikh ko Gufraan o Raza se Yaad kiya jaaye . To Gafarallahu Ta'ala Lahu ya Razi-Allahu Ta'ala anh kaha jaaye "


Lehaza Ma'loom hua ke Gair e Sahab ke liye bhi Razi-Allahu Ta'ala Anh ka Istemaal jaayez o durust hai..


Isi wajah se Shaikh Abdul Haq Muhaddis Dehlawi Rahimahullah ne Ashi'at ul Lam'aat me Hadrat Owais e Qarani Razi-Allahu Ta'ala Anh likha hai (jab ke aap Tabe'i hain)


Hadrat Imam e A'zam Abu Haneefa aur Imam Shafa'i ko Allama Ibn e Abideen Shami Rahimahullah ne Shami me Kai jagaho par Razi-Allahu Anh Likha hai.. Halaanke Imam Shaf'i Tabe'i bhi nahi ..


Allama Ibn e Hajr Asqalani Ne Fathul Bari Sharh e Bukhari me Imam e Bukhari ko Razi-Allahu Ta'ala Anh likha hai ..


Imam Nawavi ne Sharah e Muslim me Imam Muslim ko Razi-Allahu Ta'ala Anh likha hai..


Allama khifaaji ne Allama Qazi Eyaaz ko Naseemur Riyaz me Razi-Allahu Anh likha hai..


Hadrat Shaikh Abdul haq Muhaddis Dehlawi ne Ashi'atul Lam'at aur Akhbar ul Akhyaar me Kai Maqamaat par Huzoor Gaus e Pak ko Razi-Allahu Ta'ala Anh likha hai ..


Allama Abul Hasan Ali bin Yusuf Shutnoni Rahimahullah ne Bahjatul Asrar shareef me Bahot se Maqamaat par Gair e Sahaba ko Razi-Allahu Ta'ala Anh likha hai..


Hidaaya me Sahib e Hidaya ko un ke Shagird ne kai Maqamaat par Razi-Allahu Ta'ala Anh likha hai ......


in tamam shawahid se roz e raushan ki tarah waazeh ho gaya k "Razi-Allahu Ta'ala Anh" ka lafz sahaba e kiram ke sath khas nahi hai .. agar ye lafz un ke sath khas hota yaani gair e sahaaba ko Razi-Allahu Ta'ala Anh likhna jaayez na hota to itne bade bade Muhaqqiqeen jo apne zamaane me Ilm ke Aftab o Mahtaab the ye Log Gair e Sahaba ko Razi-Allahu Ta'ala Anh har giz na likhte ...


Yahan tak Aam deobandi wahabi jo Razi-Allahu Ta'ala Anh ko Sahaba ke sath khas samajhte hain aur Gair e Sahaba ko Razi-Allahu Ta'ala Anh kehne par ladte jhagarte hain un ke peshwa kasim nanotvi aur Raseed Gangohi ko bhi Razi-Allahu Ta'ala Anhuma likha gaya hai ... jaisa k Tazkiratur Rasheed Jild 1 safah 38 par hai k "Maulana Muhammad Kasim saheb o Maulana Rasheed Ahmad Saheb Razi-Allahu anhuma chand roz ke baad aise hum sabaq bane k Akhirat me bhi sath na chhoda" ....


Qur'an e kareem se bhi is baat ki Ta'eed hoti hai k Razi-Allahu Ta'ala Anh ka Lafz Sahab e Kiraam ke Sath Khas nahi hai ..


Surah Al Baiyyenah me hai


"رضي الله عنهم ورضوا عنه ذلك لمن خشي ربه"


Yaani Razi-Allahu Anhum wa Razu Anh un logo ke liye hai jo apne Rab se daren .. jaisa ke Tafaseer me waazeh hai ke "Raza Yaani Razi-Allahu Anhum wa Razu anh un logo ke liye hai jin ke dil me Rab ki Khashiyyat ho" ...



Aur Rab ki Khashiyyat Ulama hi ka Khaassa hai balke Aimmah farmate hain ke Alim sirf wahi shaks hai jise Khuda e Azza wa Jalla ki Khashiyyat Hasil ho (Tafseer e khazin, Mualimut Tanzeel wagairah)


Saabit hua ke Razi-Allahu Ta'ala anh sirf Baa Amal Ulama o Mashaikh ke liye hai ... Magar ye Lafz chunke Urf e Aam me Bada Muaqqar hai yahan tak ke bahot se log ise sahaba e kiraam hi ke liye khas samajhte hain ... lehaaza ise har ek ke liye na istemaal kiya jaaye balke ise bade bade Ulama o Mashaaikh hi ke liye istemaal kiya jaaye jaise k hamare buzrgo ne kiya hai ....


wa-Allahu Ta'ala A'lam.


Sawal -  

Kuch Kitabo Mai ye Tazkira h k Huzur Goush e paak or Huzur Garib Nawaz Ki Mulakat kuch Dino k Liye Hui th 

Kuch Kitabo Mai Mulakat Ka Zikr Nahi h 

Magar In Dono Buzurgo Ka Dour Ek hi th 

 

To Mulakat Wali Riwayat Sahi hai Hazrath?? 

 

Jawaab:

Mulaqat se Mutalliq Riwayat Mai Ne Nahi dekhi hai.... Haan Ye Riwayat zarur milti hai ke jis waqt Huzoor Gaus e Paak Radi-Allahu Ta'ala Anh ne Jis waqt Elaan farmaya tha ke Mera Qadam Tamam Allah ke Waliyo ki Gardan par hai to us waqt Hadrat Gareeb Nawaz Khurasan me Maujood The .



Sawal


Baraye karam Qur’an o Hadees ka hawala bhi de dein...


Jawaab :-


Gaaye ki hillat Shariat e Qadeema hai . Allah Ta'ala Quraan e Azeem me Farmata hai . 

ھل اتٰک حدیث ضیف ابراہیم المکرمین o اذ دخلوا علیہ فقالواسلٰما قال سلم قوم منکرون o فراغ الی اھلہ فجاء بعجل سمین

Yaani kya Aayi tere paas khabar ibrahim ke izzat daar mehmano ki, jab wo us ke paas aaye bole Salam, kaha salam anjaane log hain phir jaldi karta apne ghar gaya , so un k khane ko le aaya ek farbah *Bachhda* bhuna hua . 


Ahadees se saabit hai k Huzoor ﷺ ne apni azwaaj e mutahharaat ki taraf se gaaye ki qurbani ki, aur qurbani ka gosht khane ka hukm farmaate , Magar khud Huzoor e Aqdas ﷺ ne tanawul farmaya ya nahi, is baare me Hadees me saraahat Mere ilm me nahi. 

 

Haan Hadees e Muslim kitab ul zaqat ke buryerah رضی الله عنہ k liye gaaye ka gosht sadqe me aaya wo huzur ﷺ ke pass laya gaya aur Huzur ﷺ se arz kiya gaya ye sadqa hai k buryerah ko aaya farmaya iske liye sadqa hai aur humare liye hadiya. 

isse bazahir tanawal farmana maloom hota hai . 

Mulakkhasan Fatawa Razvia wa Hashiya Hujjatul Islam) Wa-Allahu Ta'ala A'lam  


Mufti Sahab Ek Bhai ka sawal hai Rahnumayi Farmaye 


Hazrat ek sawal hai  agar  peshab ke kuchh der bad agar peshab ke kuch katre jase ek bund aagaya to gusl wajib Hoga ha nahi Aur esa hamesa hota hai  wajahat farmae


Jawab

Peshab ke Apne makhraj se nikalne ki wajah se wuzu tootega is ki wajah se gusl wajib nahi hoga. Haan Jis jagah wo nijasat lagi ho us jagah ko paani baha kar paak kiya jaaye. 


Sarmaya e AhleSunnat rehnumaaee farmaye is masle me ke;


"Be zaroorat, Qabl Az waqoo sawal poochna Kaisa hai?



Jawaab:

 Be zarurat Qabl az Waqu sawal poochne ka maqsad kya hai.. 



Agar Ilm me izafa Maqsood ho ya Dosro ki Ta'laam ki Niyyat ho to Mustahsan hai.. 



Aur Agar Sawal se Mujeeb Aalim ki Salahiyat ka imtehan ya use Logo ke saamne zaleel karna ho to na jaayez o haraam 



Ye ek sawaal aaya hai.

Saiyyadi Aalahazrat  ke ta'alluq se mashoor hai ke dono haathon se likha karte the aur karaamat ye thi ke is safe ka jahan khatam hota tha doosra safa wahi se pehle se shuru rehta hai..



Maulana hasan raza phd aur maulaana hamdani sahab ki taqreerein me suna gaya tha kya kisi k paas iski tasdeeq ya hawala mil sikta hai???



Jawaab:

Is Baare me mai ne bhi kaafi suna hai.. 


Magar hamaare Akabir ne is ki tasdeeq nahi farmaayi hai... ke Ulte hath se likhna qareen e qayaas nahi lagta ..



Sayyedi Alahadrat Ki har Ada Sunnat e Mustafa Hua karti thi to ap Baayen hath se kis tarah tahreer farma sakte hain jab ke Acche kaam daahine hath se hi karna sunnat hai ..


 Khutbe me padhajata hay


Jamae ul Qur'an


Hazrat Usman bin Affan Radiyallahu anho


Lekin ye post me Hazrat Zaid bin Sabit Radiyallahu anho se Qur'an jama hua hay aessa likkha hay


To aess me rahnumai farmaiye


Jawaab:

 hazrate zaid o hazrate siddiqe akbar o deegar sahabae kiram jinhon ne quran shareef jama' karne men madad ki oh sab hazraat bhi jaame'quran hain 


magar hazrate usmaane gani ki hukumat men ye bahut bada fitna barpa ho gaya tha mushaf shareef ke maa'mle men  us azzem fitne ko khatm karne ki wajah se jaame' quran huye or ye bhi keh amooman badshhon ki hukumat men jo kaam hote hain oh badshahon ki taraf mansoob hote hain halankeh kaam anjam dene wale afrad dusre hote hain


sarkare aqdas sallahu alaihe wasallm ne mukhtalif qabilon ko unke qabile men jis tarah arbi boli jati thi us tarah quran padhne ki ijazat di thi 


or kuchh qabilon ke afraad ne apne qabile ki zaban ke muwafiq nuskha bhi tarteeb de kar rakhe the 


jab hazrate usmae gani ki khilafat ka zamana aaya to qabilon ikhtelaf huva or har qabila wale ye kahte k hamari zaban men quran nazil huva hai to hazrate usmane gani ne oh sab nuskhe mangwakar rakh liye  


chunkeh quran quraish ki zaban nazil huva hai or siddiqe akbar ke waqt ka nuskha quraish ki zaban prurattab tha us ko hazrate hafsa se mangwakar uski naql ko tamam bilade islam men jari farmaya


 hazrate usmane gani ne 1mushaf pr saare musalmano ko jam'a farma diya isi liye jaam'e quran kahe jaate hain


Sawal 


Hazrat

Iss post me jo likkha hay k


Hazrat Zaid bin sabit ne ye kam kiya 

Ye sahi hay?


Jawaab:

Ji Hadarat Usaman e Gani Radi-Allahu Ta'ala Anh ne Hadrat e Zaid Ko Bulaaya Aur jitne Bhi Maktoobaat the Un Me Jo Sahih lafz Hote Unhe Hadrat e Zaid Se Daryaft Farmaate ... kyu ke Hadrat Zaid Kaatib e Wahy the unhe Yaad Tha Ke Kin Huroof ke sath Nuzool hua


Lehaaza Kahan Alif Hona Chahiye Kahan Nahi... is Tarh Ki Bahot se Umoor Hadrat Zaid Ke Farman ke Mutabiq Hi Likhe Gaye


Ek sawal hai, Insaan ke inteqaal ke baad jo ziyarat ka khaana hai. Uss Khaane par kiska haq hai aur usse kaun kha sakta hai?



Jawaab:

fuqra o masaakin ka haq hai. gani ke liye munasib nahin .teeja o chaliswan wagairah ka khana agar gani bhi kha len to gunahgar nahin magar iss tarh ke khane se gani ko bachna chahiye 


agar malik ne sirf faqeeron ke liye khane ka intezaam kiya or uski yehi niyyat ho to ab gani ko khana  jayez nahin 


yunhi agar inn mawaqe' pr bataure da'wat khilaya jaye jab bhi agniyaa ko khana jayez nahin


upar ki tafseel se ye baat waazeh hui k agar malik ne faqeeron ke liye khas na ki ho or na hi bataure da'wat ho balke mahaz sawab ke liye madarse men khana bhijwaye ya unko ghar pe bulakar khilaye to har tarah ke bachhe kha sakte hain.


Sawal:- Hazrat islam me khoon(blood) donate kaisa hai.. Shariyat me iska kya hukm hai, aur jo shaks khoon donate krta hai uspe kya hukm hoga

Rehnumayi farmaye


Jawaab:

وعليـــكم السَّـــلام ورحمــة اللــه وبركاته


Insan Apne A'za ka Malik nahi hai Isi wajah se wo Apna khoon Atiya nahi kar sakta ke ye NaJaayez hai


Insan apne a'zaa parts of body ka malik nahi hai ... use apne A'za bila zarurat e sharaiyah talf karna naa jaayez o haram hai ..... Agar sakht zarurat ho jaise apne kisi Musalman ke jaan jaane ka khauf ho aur begair blood diye us ki jaan bachana mushkil ho to Is surat me blood de sakta hai .... aam taur par blood donate karna haraam hai  


is surat me Agar use bhi khoon ke ilaawa chaara nahi to Kahin Se Blood Hasil karne ki koshish kare .. agar na mile to Khud De de aur baad me Tauba o Istegfaar kare..


Aek Wtsapp me deeni group me sub members male (aadmi) hay


Uss group me aurat burka pahake


Nasihat (waiz) karti hay aesa video clip bhejte hay


To aessa bhejna kaisa hay 

Rahnumai farmaiye


Hazrat agar aessi koi

Hadis hay k


Aurat ki aawaz aurat hay

To please

Hawale k sath bataiyega

Kisi ne puchha hay


Jawaab:

 Ek Masla ye hai k jis tarah khwateen apne jism ko Na Mahram Mardon se Chupana zaruri hai.  Isi Tarah Apni Awaz ko Bhi Na Mahram Mardon Tak Pahochne se Bachane ki koshish karni chabiye.


Albatta jahan zarurat ho wahan Na Mahram Mard se Parde ke peeche se Baat Kar Sakti hai.


Haan  ye Hai ke Na Mahram se baat karte waqt Aurat apni awaz ki Qudrati lachak aur narmi ko khatam kar ke zara khushk lahje me baat kare taame qudrati lachak aur narmi zahir na hone paaye aur Naa Mahram Mard ko aurat ke narm andaz e guftgu se bhi kisi gunah ki lazzat lene ka mauqa na mil sake.



Qur'aan e paak me irshad hua

فلاتخضعن بالقول فيطمع الذي في قلبه مرض


Baat me aisi narmi na karo ke dil ka rogi kuch lalach kare 


Yahan Allah ne Un Ummahaat ul Mumineen ko Ye Hukm Farmaya Jo Paak Hain Aur Fitne se door bhi hain ke Baat ko Narmi se na karo ke saamne waale ke dil me kuch galat shaitani khayal aa jaaye


To Aaj ki aurato ke liye kyu na hukm hoga ke Aaj to Fitne zyada hain ... 


Rahi baat Parde me Reh kar kisi ke video banane ki to is ki bhi zarurat kya hai? Jab ke hamare mard ulama e kiraam maujood hain ..



Sawal

Kya ye bat kehna durust hai ke Kisi dusre religion(mazhab) ko bura naa kaho... unka adab karo Unki izzat karo... 


Kya unki izzat karna Sahi hai n shariat ke hisab se hadith ke hawale se jawab inyat farmaye... 

Jazak Allah


Jawaab:

Jo baatil Mazaahib hain unhe bura nahi to aur kya kaha jaayega,  Magar Gaaliyaan dene se Mana kiya gaya k Qur'an e Pak ka irshad hai 


ولا تسبوا الذين يدعون من دون الله فيسبوا الله عدوا بغير علم 


Aur unhe gaali na do wo jin ko wo Allah ke siwa poojte hain k wo Allah ki Shan me be adabi karenge zyadti Aur jihalat se 


Maf'hoom ye hua k un ke Baatil Khudaao ko agar tum Gaali doge to Wo Dushmani o Adaawat me Allah ko Gaali denge.


Lehaza ye kehna ke sab mazhab sahi hain aur un ki izzat karni chahiye ye Bada sakht jumla hai Aisa kehne waala Tauba kare,  Haan Unhe Gaaliyaan na di jaayen


Sawal                        

Hazrat aapne farmaya ki sabhi mazhab sahi or unki izzat karne ko kehna galat hai sakht gunah hai, yeh sahi hai fir bhi agar doosre kisi mazhab ko sahi galat apne dil or zubaan se na kahein or na galat bolein to yeh kaisa hai 

Rehnumai farmayein


Jawaab:

Jab Tak zaahir na hoga koi hukm na hoga, Haan Baat cheet se Bad Mazhabo ki Muwafiqat hoti ho to sakht hukm hoga.


Yaani kisi par hukm usi waqt diya jaayega jab k us ki muraad zaahir ho jaaye . Ab agar koi kafiro ko kuch kehta nahi to Mutlaqan us par Koi hukm na hoga . Haan baat cheet se jab zaahir ho jaaye k is ke dil me kya hai to usi ke mutaabiq hukm bhi hoga


As'Salamu Alaikum Wa Rahmatullahi Wa Barkaatuhu Huzoor...


Aaj Kal Youtube aur Social media pe Aik Manqabat bahot Chalayi Ja rahi hai Jiske Ash'aar hain,

"Aañkheñ meri abtak haiñ chaukhat pe dhari Khwaja...

Bigdi ke Banane me Kyu der lagi Khwaja?..."


Huzoor Kya Is Tarah ke Ash'aar Padhna Durust hain Kya Isme Sarkaar Sayyidi Khwaja Gareeb Nawaaz Razi Allahu Ta'ala Anho ki Baargaah me Shikwa nahi hai?


Jawaab 

Ye kisi Alim ka likha hua sher har giz nahi maloom hota 


Mo'tabar Sunni sahih ul aqeeda Musalmano ki likhi hui Naat o Manqabat parhi jaaye . aur is tarah ki manqabato se ehteraz kiya jaaye jis me be adabi ka shaayeba ho .


Sawal

Kya Mard Apne Seene(Chest) Ke Baal Kaat Sakte Hai


Jawaab :

Seene k baal agar itne zyada hon k gusl me diqqat (Mushkil) aati ho to koi harj nahi. Warna makrooh e tanzeehi hai.


Sawal:-Rajab ke kunde 22 ko mana krte hai ke mt kro hargiz nhi krne chhye to hm 22 ko krna chahte h kya kr skte hazrat ???


Jawaab :-

22 rajab ko bhi ki jaaye to harj nahi . Haan fatiha me imam jaafar e sadiq k sath hazrat ameer e muwaaiyya ke naam bhi isaal e sawab karen taake shio ka radd bhi ho aur un se kisi tarah ki mushabahat bhi na baaqi rahe ... haan jo bid'aat hain jaise k mitti ka bartan ho aur jis jagah bane usi jagah khaaya jaaye phir bartan ko phek diya jaaye wagaira ye sab qaiden bid'at o na jaayez hain


Kya Farmate hai Olama e din Wa Muftiyane Iqram is masle me Sawal hai ki Aaj kal *Fb* Aur *Instagram* Aur *WhatsApp* pe Log Apni Apni Ya Apne dost Ahbaab ya Rishtedaar ke saath Photo Kichate hai Aur Aage forward karte hai to in teeno me Masha Allah, Subhan'Allah, Ya Ek Option Hota hai Ki Like Karne ka us pe click karte hai 


Aise me kya hukm lagega Jo like karta hai A ya Masha Allah, Subhan'Allah kahta hai Aur Jo ye pic khicha kar forward karta hai ?


Rahnumai farmaye


Jawaab 

Jandar Ki Tasweer Ki Hurmat Par Itni Kasrat Se Ahaadees Marwi Hain Ke Wo Hadd e Tawaatur Ko Pahoch Gayi. Ke Is Ka Inkar Karne Waala Gumraah Hai ...

Chand Ahadees Pesh Hain

Hadrat Saeed Bin Abul Hasan Radi-Allahu Anhu Se Riwayat Hai Unho Ne Kaha Ki Mai Hazrat Ibne Abbas Radi-Allahu Anhu Ke Paas Hazir Tha To Achanak Ek Aadmi Aaya Aur Kehne Laga K Aye Ibne Abbas!“Mai Ek Aisa Aadmi Hu K Meri Rozi Ka Zariya Mere Haath Ki Karigari Hai Aur Wo Ye K Mai Tasveere Banaya Karta Hu”.

Hazrat Ibne Abbas Radi Allahu Anhu Ne Farmaya :“Mai Tumse Wahi Hadees Bayan Karta Hu Jisko Khud Maine Nabi e Paak ﷺ Se Suna Hai K

Jo Shaksh Koi Tasveer Banayega To Allah Ta'ala Usko Us Waqt Tak Azaab Deta Rahega Jab Tak K Wo Us Tasveer Me Rooh Na phoonk De Aur Wo Usme Kabhi Rooh Nahi Phoonk Sakega” Wo Aadmi Sakht Laraz Se Kaanpne Laga Aur Uska Chehra Peela Parr Gaya, 

Hazrat Ibne Abbas Ne Farmaya :“Tum Par Afsos Hai Agar Tum Tasveer Banana Nahi Chor Sakte To In Darakht Aur Aisi Cheezon Ki Tasveer Banao Jin Me Rooh Nahi Hai”!!

Sab Se Ziyada Azaab ALLAH Ke Nazdeek Tasveer Banane Wale Ko Hoga.

Mishkhat Shareef


Qiyamat Ke Din ALLAH Ta’ala Ki Bargaah Me Sabse Ziyada Sakht Tarin Azaab Un Tasveer Banane Waalo Par Hai Jo Khuda Ke Banaye Huwe Ki Naql Kare.

Bukhari Shareef


Huzoor ﷺ Irshaad Farmate Hai,

“Jis Ghar Me Kutta Aur Tasveer Ho, Us Ghar Me Rahmat Ke Farishte Daakhil Nahi Hote”

Fatawe Razviya, Jild 9


Huzoor Ne Ye Bhi Irshad Farmaaya ke : Tasweer Banaane waala aur Banwane waala dono Jahannami hain ...

In Ahadees ki Raushni Me Ye Baat Saabit Ho Gayi Ke Tasweer Chaahe Jis Tarah Banaai jaaye Wo Haraam Hai ...

Aur Is ki Illat Ye Hai ke Agle Zamaane Me Log Yu Hi Tasweer Bana Kar Rakhte Aur Baad Ke Log Unhe Poojne Lagte ... Isi Bina Par Mutlaqan Tasweer e Jandaar Ko Ta'zeem Ki Jaga Rakhna Haraam Hai ...

Profile Par Insan Aisi Hi Photo Rakhta Hai Jo Use Acchi Lagti Hai Aur Acchi Lagne Waali Cheez Ko Saja Kar Rakha Jaata Hai Aur Is Tarah Saja Kar Rakhna Haraam .. 

Ashad Haraam..Aur jo us photo ko pasand karen tasweer hone ki haisiat se to us par bhi wahi hukm hoga. Aur mana karne aur narazgi k izhaar par qudrat ke ba wajood khamosh rehne ka gunaah hoga balke us par acche comnts ki wajah se bhi gunah hoga


Sawal

KYA FARMATE HAE OLMAYE KIRAM WA MUFTIYANE SHARAI MATIN IS MASALE ME KI AGAR KOI MARD OR AOURAT AEK DUSRE KO MUH BOLA BHAI -BAHEN KA RISHTA BANA KAR AEK DUSRE SE BAT CHIT KAR SAKTE HAE YA NAHI 

AUOR AGAR WHATSUP PAR AEK DUSRE DINI ULUM PAR KOI POST KARE YA FIR KOI MASAIL SAMAJ ME NA AANE PAR CALL KARKE MASAIL KI WAJAHAT KAR SAKTE HAE YA NAHI 

HALAN KI UMAR ME BARABAR BHI NAHI AGAR MAN LIYA JAYE TO AEK KI 28 SAL DUSRE KI 35 SAL SE UPAR HAE TO KYA AESE ME DONO JOKI EK DUSRE KO BHAI BAHEN KA RISHTA BANAYE HAIN

 WO AEK DUSRE KO SALAM KALAM KAR SAKTE HAE YA NAHI OR WHATS UP PAR SIRF OR SIRF DINI ILM PAR BATE KAR SAKTE HAE YA NAHI


Jawaab :- 

Rishta Ya to nasab k etebar se hota hai ya phir doodh ka rishta hoga .... Kisi ko apni bahen bana lena ya larki ka kisi ko apna bhai bana lene se jo ahkam e shara ki pabandiyaan hain wo un se nahi uthengi . 


Agar sirf deeni masaail ke liye zaruratan Baat cheet hoti hai.. k wo masle kisi Aurat se Nahi samajh me aate to us hadd tak ijazat hai jab k fitne ka andesha e qawi na ho .


Jawaab :- 

Ap khaalisan Li waj'hillah Nafs kushi aur riyazat e Sharai me apni misaal ap the neki k kaamo ke hukm karne aur buraai se rokne ke liye mard e diler the is muaamle me apni jaan tak ki parwaah nahi karte the . 


Baaz ulama ne ye bhi farmaya hai k ap hamesha apne nafs se jihaad kiya karte the .. aur baaz ne ye kaha k ap jihaad fee sabeelillah ko zyada margoob rakhte the aur hamesha kalima e haq ki bulandi k liye kuffar o mushrikeen se qitaal ke mutamanni rehte the . 


Wajah kuch bhi ho itni baat to saabit hai k Ap Arif Billah aur mard e momin e kamil the


Sawal

 Mufti Sahab ... Milaad Shareef ki Mehfil mein Naath Shareef padhi jaa rahi ho aur is beech kisi Aalim ki entry ho ... abh Naath Shareef continue rakhni chahiye ya fir rok kar khade ho jaye aur unka Isteqbal karein ?



Jawaab:

Iqaamat e Namaz ke waqt ye Hukm hai k Is Dauraan Imam Jis Saff Se Guzre Us saff waale Khade Ho jaayen Ya Samne Se Aaye to Jis jis ki Nazar Pade Wo Khade Hote Rahen ... 

Lehaza Agar Naat Shareef Ho Rahi ho Aur Koi Aalim e Deen Us Darmiyaan Majlis Me Tashreef Laayen To Ehteraaman khade Hona Chahiye aur agar wahan Riwaaj yahi hai k Naat Shareef Rok Kar Isteqbaal Kiya jata hai To munasib yahi hai k aisa hi kiya jaaye, Is me Harj nahi.


Assalamualekum Mufti Sahab 

Sawal ;

Hazrat mera sawal tha ki... 

Kuchh log kehte hai k aapke wahna kisi rooh ka mamalaa hai, yaa to fula aadmi yaa aurat jo mar chuka/ (chuki) hai uske wajah se aapko paresani yaa taklif hai !!!

(Meri murad Muslamano ki hi baat hai gair ki nahi.)


To mufti sahab to kya esa kehna durust hai?


Jara tafseel se batayenga.


Jawaab :-

Agar Rooh Kisi Musalman Muttaqi parhezgar ki hai to wo pareshan nahi karegi. Aur kisi Gair Muslim ya gunahgaar ki rooh to khud Azab me giraftar hogi to us k aane ka sawal nahi . 

Haan ye ho sakta hai k jinnati asaraat hon . Wa-Allahu Ta'ala A'lam


Sawal

Jo baat hai wo muslaman ki hi hai aur unki maut kue me khudkusi karne se hui thi ....

Hamare dada ki pehli aurat ki baat hai....

To koi rasta bataye 

Hazarat


Jawaab :- 

Jawab me sab ki tafseel bayan ki gayi hai .. kisi ka khudkushi karna haraam hai aur wo mustahiq e azab hai . Lehaza us ki rooh ka aana Aur Pareshan karna Sahi nahi. Haan is bahaane kisi jinnat ki shararat ho sakti hai .


Sawaal 

Koi rasta hai


Jawaab :-

Ghar ke rehne wale namazo ki pabandi karen aur rozana quraan e majeed se kuch tilawat karen . Sote waqt ayat al kursi aur chaaro qul parh kar damm kar liya karen .


Hazrat kuch log kehte hai Asr ke baad se magrib tak kuch khaya piya na jaye to nafl roze ka sawaab milta hai?

Kya ye sahi hai?


Jawaab :- 

Ye baat mai ne kahin nahi dekhi... haan buzurgo ke Mamoolat se hai k wo Asr se Magrib ke darmiyaan khane peene se baaz rehte the


Kisi behen ka sawal hai rehnumai farmae..10saal ki bachi apne chote bhai behen ko pareshan karti hai aur jhagda karti aur apni ammi ko bhi pareshan karti hai..Hazrat iske liye koi wazifa batae ya ilaj batae jisse bachi ki islah ho sake..JazakAllahu khair


Jawaab :-

Surah saff parh kar bacchi par damm kiya karen .. aur rozana fajr k waqt us ki peshani par hath rakh kar aur asman ki taraf Muh utha kar 21 martaba Yaa Shaheedu Parha karen.


As'Salamu Alaikum Wa Rahmatullahi Wa Barkaatuhu Huzoor...


Aik Joint Family me 3 bhai rahte hain Bade Bhai ki Shadi Ho chuki hai Baqi Do Bhai Bade Bhai ki BV(Apni bhabhi) se Baat chit karte hain Aur Chehre ka Parda nahi Karte...

To Aise Me Unpar kya Hukm Hai???


Kya Shariyat me Sagi Bhabhi se Bhi Chehre ka Hath Aur Pair ke Panje Ka Pardah Waajib hai?



Jawaab :- 

Ek sath rehne ki wajah se harj e shadeed hai is liye chehra aur hatheli aur qadam ka parda na kar sake to harj nahi... magar tanhaai me kisi k sath na rahe. Aur fitne ka andesha ho to us se bhi bache.


QABRASTAN ME ABHI JO RASTA JUMEDARO NE BANA RAKHA HAY PAHLE WAHA PAR BHI KABRE THI KUCH SALO PAHLE MAGAR AB WAHA RASTHA HAY OR US SE GUJAR KAR HI MAYYET KO DAFNA NE LIYE LE JANA PADTHA HAY."us raste par chalna kesa hay hazrat."



Jawaab:

Agar Waaqai jo naya Raasta banaya hai wahan Qabren thi agar che bahot purani aur boseeda, to wo raasta banana naa jaayez o haraam hai, us par chalna phirna baithna sona Namaz e Janaaza parhna Jaayez nahi. 


Kyu ke us raaste par chalna phirna Namaz wagaira parhna dar asl Qabr par chalna phirna Namaz wagaira parhna hoga.


Hadees Shareef me hai Rasool e Akram ﷺ farmaate hain "Mujhe Aag ya Talwaar par chalna Qabr par chalne se zyaada pasand hai " (Ibn e Maajah)


Huzoor SadrusShariah BadrutTareeqah Allama Muhammad Amjad Ali Alaihir Rahmah war Rizwaan Farmaate hain "Qabristaan me jo Naya Raasta nikaala gaya us se guzarna Naa Jaayez hai Khwaah naya hona use Ma'loom ho ya us ka Gumaan ho" (Bahar e Shariat BaHawaala Alamgeeri o Durr e Mukhtar)


Jab Qabristaan me naye Raaste ka sirf Gumaan hone par is par chalna phirna uthna baithna jaayez nahi to jis Raaste ke baare me ye yaqeen ho k ye Qabro ko Mismaar kar ke banaya gaya to us par chalne phirne baithne wagaira par kis Qadr sakht Hukm hoga. Lehaaza jo naya raasta Qabro ko mismaar kar ke banaya gaya hai use har giz istemaal na kiya jaaye.. Wa-Allahu Ta'ala A'lam


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ