huzoor ki paidaish

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 HUZOOR KI PAIDAISH

  1. हज़रते अब्दुल्लाह रदि अल्लाहु अन्हु की वफ़ात का बयान 
  2. असहाबे फील का वाक्या 
  3. हुजूर पुर नूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम की पैदाइश का बयान , तवल्लुद शरीफ़ सरकार स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम 
  4. हुजूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम की पैदाइश शरीफ़ की खुशी का सदका 
  5. हज़रते आमिना  की वफ़ात 
  6. अब्दुल मुत्तलिब व अबू तालिब की कफ़ालत   

हज़रते अब्दुल्लाह रदि अल्लाहु अन्हु की वफ़ात का बयान 

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जब कौले मशहूर के मुवाफिक हम्ल शरीफ़ को दो (2) महीने पूरे हो गए तो ।

हज़रत अब्दुल मुत्तलिब ने आप के वालिद हज़रते अब्दुल्लाह को मदीने में खजूरें लाने के लिये भेजा ।

 हज़रते अब्दुल्लाह वहां अपने वालिद के ननिहाल बनू अदी बिन नज्जार में एक माह बीमार रह कर इन्तिका़ल फ़रमा गए।

 और वहीं दारे नाबिगा में दफ्न हुवे । 

बाज़ कहते हैं कि अब्दुल मुत्तलिब ने हज़रत अब्दुल्लाह को तिजारत के लिये मुल्के शाम भेजा था।

वोह वापस आते हुये मदीने में बनू अदी में ठहरे और बीमार हो कर यहीं रह गए । 

हज़रत अब्दुल्लाह का तर्का एक लौंडी उम्मे ऐमन बरका हबशिय्या और पांच (5) ऊंट और कुछ बकरियां थीं । 

 असहाबे फील का वाक्या

सरकार स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम के जमीन पर  तशरीफ़ लाने से पचपन 55 दिन पहले एक वाकिआ पेश आया जो असहाबे फील के वाकिआ के नाम से मशहूर हुवा। 

इस वाकिए की कैफ़िय्यत बतरीके इख़्तिसार यूं है कि उस वक्त बादशाहे हबशा की तरफ से अबरहा यमन का गवर्नर था।

 उस ने शहरे सन्आ में एक कलीसा बनाया और बादशाहे हबशा को लिखा कि मैं ने आप के लिये एक बेनज़ीर कलीसा बनवाया है ।

 मैं कोशिश कर रहा हूं कि अरब के लोग आइन्दा खानए काबा को छोड़ कर यहीं हज व तवाफ़ किया करें । 

जब यह ख़बर अरब में मशहूर हो गई तो बनी किनाना में से एक शख्स ने गुस्से में आ कर उस कलीसा (गिरजा घर) में बोल व बराज़ कर दिया । 

यह देख कर अबरहा आग बगूला हो गया और उस ने क़सम खाई कि काबे की ईंट से ईंट न बजा दूं तो मेरा नाम अबरहा नहीं । 

उसी वक्त फ़ौज व हाथी ले कर काबे पर चढ़ाई की यहां तक कि मक़ामे मुग़म्मस में जो मक्कए मुशर्रफ़ा से दो मील है।

जा उतरा और एक सरदार को हुक्म दिया कि अहले मक्का से छेड़ छाड़ शुरू करे । 

लिहाजा वोह सरदार कुरैश के ऊंट और भेड़ बकरियां हांक लाया जिन में दो सौ (200) ऊंट अब्दुल मुत्तलिब बिन हाशिम के भी थे ।

 इसके बाद  अबरहा की तरफ से हुनाता हिमयरी गया और अब्दुल मुत्तलिब को अबरहा के पास ले आया । 

अबरहा ने अब्दुल मुत्तलिब का बड़ा खातिर इकराम किया और दोनों में ब ज़रीअए तर्जुमान येह गुफ़्तगू हुयी।


 अबरहा :- तुम क्या चाहते हो ? 

 अब्दुल मुत्तलिब :- मेरे ऊंट वापस कर दो । 

अबरहा :- हैरान हो कर तुम्हें ऊंटों का तो ख़याल है मगर खानए काबा जो तुम्हारा और तुम्हारे आबाओ अज्दाद का दीन है।

 जिसे मैं ढाने आया हूं उस का नाम तक नहीं लेते । 

अब्दुल मुत्तलिब :- मैं ऊंटों का मालिक हूं खानए काबा का मालिक और है वोह अपने घर को बचाएगा । 

अबरहा :- खानए काबा मुझ से बच नहीं सकता । 

अब्दुल मुत्तलिब :- फिर तुम जानो और वोह खुदा जाने ।

 इस गुफ़्तगू के बाद अब्दुल मुत्तलिब अपने ऊंट ले कर मक्के में वापस आ गये।

और कुरैश से कहने लगा कि शहरे मक्का से निकल जाओ और पहाड़ियों के दरों में पनाह ले लो । 

यह कह कर खुद चन्द आदमियों को साथ ले कर खानए काबा में गया ।

और दरवाज़े का हल्का पकड़ कर यूं दुआ की :  

ऐ अल्लाह ! बन्दा अपने घर को बचाया करता है तू भी अपना घर बचा ।

 ऐसा न हो कि कल को उन की सलीब और उन की तदबीर तेरी तदबीर पर गालिब आ जाए ।

अगर तू हमारे क़िबले को उन पर छोड़ने लगा है तो हुक्म कर जो चाहता है । 

इधर अब्दुल मुत्तलिब यह दुआ कर के अपने साथियों समेत पहाड़ों में पनाह गुज़ीं हुए।

उधर सुब्ह को अबरहा खानए काबा को ढाने के लिये फ़ौज और हाथी ले कर तैय्यार हुवा । 

जब उस ने हाथी का मुंह मक्के की तरफ किया तो वोह बैठ गया ,  बहुत कोशिश की गई मगर न उठा ।

आखिर मक्के की तरफ से उस का मुंह मोड़ कर उठाया तो उठा और तेज़ भागने लगा।

ग़रज़ जब मक्के की तरफ़ उस का मुंह करते तो बैठ जाता और किसी दूसरी तरफ करते तो उठ कर भागता ।

इसी हाल में अल्लाह तआला ने समन्दर की तरफ से अबाबीलों के झुरमुट के  झुरमुट भेजे ।

जिन के पास कंकरियां थीं , एक एक चोंच में और दो दो पन्जों में उन्हों ने कंकरों का मींह बरसाना शुरू किया।

जिस पर कंकर गिरती हलाक हो जाता । 

यह देख कर अबरहा का लश्कर भाग निकला । 

इस तरह अल्लाह तआला ने अपना घर काबा को दुश्मन से बचा लिया ।

कुरआने मजीद की सूरह फ़ील में इसी वाकिये की तरफ इशारा है । 

 किस्सए असहाबे फील में दो तरह से हुज़ूर की करामत और मोजज़ात ज़ाहिर है , 

एक तो यह कि अगर असहाबे फील गालिब आते तो वोह हुज़ूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम की कौम को कैद कर लेते और गुलाम बना लेते ।


 इस लिये अल्लाह तआला ने असहाबे फील को हलाक कर दिया ।

ताकि उस के हबीबे पाक पर हम्ल व तुफूलिय्यत की हालत में असीरी व गुलामी का धब्बा न लगे । 


दूसरी यह कि असहाबे फील नसारा अहले किताब थे जिन का दीन कुरैश के दीन से जो बुत परस्त थे यक़ीनन बेहतर था।


 मगर यह कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के वुजूदे बा जूद की बरकत थी

 कि अल्लाह तआला ने बैतुल्लाह शरीफ़ की हुरमत काइम रखने के लिये कुरैश को बा वुजूद बुत परस्त होने के अहले किताब पर फ़तह दी ।


 यह वाकिआ हुज़ूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम की नबुव्वत का पेश खेमा था

 क्यूंकि आप स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम के दीन में इसी बैतुल्लाह की ताज़ीम इसी के हज्ज और इसी की तरफ नमाज़ का हुक्म हुवा ।

हुजूर पुर नूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम की पैदाइश का बयान | तवल्लुद शरीफ़ सरकार स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम

जब हम्ल शरीफ को चांद के हिसाब से पूरे नौ (9) महीने हो गए तो हुजूरे अक्दस स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम बारह रबीउल (12) अव्वल दो शम्बा के दिन फज्र के वक्त कि अभी बाज़ सितारे आस्मान पर नज़र आ रहे थे ।

सुबह 4:20 मिनट सउदी अरब के टाइम के मुताबिक ज़मीन पर तशरीफ़ आवरी हुये । 

  1. दोनों हांथ ज़मीन पर रखे हुये , 
  2. सर आस्मान की तरफ़ उठाए हुये ( जिस से आप अपने उलूव्वे मर्तबा की तरफ इशारा फ़रमा रहे थे )  
  3. बदन बिल्कुल पाकीज़ा और तेज़ खुश्बू कस्तूरी की तरह खुश्बूदार 
  4. खत्ना किये हुये 
  5. नाफ़ बुरीदा , ( सही सलामत नाफ बनी हुई ) 
  6. चेहरा चौदहवीं रात के चांद की तरह नूरानी 
  7. आंखें कुदरते इलाही से सुर्मगीं 
  8. दोनों शानों के दरमियान मोहरे नबुव्वत दरख़्शां , ( चमकती हुई ) 

आप की वालिदा ने आप के दादा अब्दुल मुत्तलिब को जो उस वक्त खानए काबा का तवाफ़ कर रहे थे बुला भेजा ।

 वोह हज़रत स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम को देख कर बहुत खुश हुये।

और बैतुल्लाह शरीफ़ में ले जा कर आप स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम के लिये सिदके दिल से दुआ की ।

और अल्लाह तआला  की इस नेअ़मते उज़मा का शुक्रिया अदा किया । 

आप स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम के चचा अबू लहब की लौंडी सुवैबा ने अबू लहब को तवल्लुद शरीफ़ (पैदाइश) की खबर दी तो उस ने इस खुशी में सुवैबा को आज़ाद कर दिया ।

 हुजूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम जिस महीने में पैदा हुवे इस का नाम तो रबीअ़ था ही मगर वोह मौसिम भी रबीअ़ ( बहार ) का था । 

 हुजूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम की पैदाइश शरीफ़ की खुशी का सदका 

 अबू लहब की मौत के एक साल बाद हज़रते अब्बास रदि अल्लाहु अन्हु ने ख़्वाब में अबू लहब को बुरे हाल में देखा।

पूछा :- तुझे क्या मिला ? 

अबू लहब ने जवाब दिया :-  लम अलका बअ़दकुम गैइरा अन्नी सुकीतू फी हाजिही बिअ़ताकती सुवैइबता

तर्जुमा :- तुम्हारे बाद मुझे कुछ आराम नहीं मिला सिवाए इस के कि सुवैबा को आजाद करने के सबब से ब मिक्दार इस मुगाक ( मतलब शहादत और अंगूठे के बीच के जगह ) के पानी मिल जाता है जिसे मैं पी लेता हूं । 

(सहीह बुखारी किताबुन निकाह बाब व उम्महातु कुमुल लती अरदअ़नकुम हदीस नम्बर 5101, जिल्द 3, सफा 732)

 इस हदीस को उरवा बिन जुबैर रदि अल्लाहु अन्हु ने बयान की इसका मतलब यह है।

 कि अबू लहब बता रहा है कि मेरे तमाम आमाल बेकार गए सिवाए एक के और वोह यह कि 

मैं ने हुज़ूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम की विलादत की खुशी में अपनी लौंडी सुवैबा को आज़ाद कर दिया था ।

 इस एक अमल का फाइदा बाकी रह गया और वोह यूं है कि इस के बदले हर दो शम्बा को इबहाम व सबाबा के दरमियानी मुग़ाक की मिक्दार मुझे पानी मिल जाता है ।

जिसे मैं उंगलियों से चूस लेता हूं और अज़ाब में तख़्फ़ीफ़ हो जाती है। 

यह हुजूर रसूले अकरम की खुसूसिय्यात से है ।

वरना काफ़िर का कोई अमल फ़ाइदा न देगा ।

लिहाजा उल्मा ए अहले सुन्नत वल जमात इसी हदीस के पेशे नज़र सरकार की आमद आमद की खुशी बनाने का हुक्म देते हैं।

ताकी हमारी गुनाहों से निजात मिलने का सबब बने।

अपील:- infomgm islamic blog team आप सब से गुजारिश करती है कि 

चाहे लाकडाउन हो या ना हो आप अपने मकानों में सरकार स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम की आमद आमद की खुशी मनायें।

 कि जब हुज़ूर के तवल्लुद शरीफ ( पैदाइश) पर खुशी मनाने से एक काफ़िर को यह फायदा पहुंच सकता है।

 तो अन्दाजा कीजिये कि एक मुसलमान जो हर साल मौलूद (जश्ने ईद मिलादुन्नबी) शरीफ़ मनाया करता है और 

हुजूर अहमदे मुख़्तार के विलादत शरीफ पर खुशियां मनाता है इस दारे फ़ानी से रुख़सत हो जाए तो उसे किस क़दर फायदा पहुंचेगा ।

 तवल्लुद शरीफ (विलादत पैदाइश शरीफ़ )  के वक़्त खवारिक 

तवल्लुद (विलादत) शरीफ़ के वक्त गैब से अजीबो गरीब और खिलाफे आदत उमूर ज़ाहिर हुवे।

ताकि आप की नुबुव्वत की बुनियाद पड़ जाए और लोगों को मालूम हो जाए कि आप स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम अल्लाह तआला के बरगुज़ीदा व पसन्दीदा हैं । 

  • चुनान्चे सितारे ताज़ीम के लिये झुक कर आप के क़रीब आ गए और उन के नूर से हरम शरीफ़ की पस्त ज़मीन और टीले रोशन हो गए । 
  • आप के साथ ऐसा नूर निकला कि मक्कए मुशर्रफ़ा के रहने वालों को मुल्के शाम के कैसरी महल नज़र आ गए । शयातीन पहले आस्मानों पर चले जाते और काहिनों को बाज़ मुगय्यबात की ख़बर दे देते थे।
  • और वोह लोगों को कुछ अपनी तरफ से मिला कर बता दिया करते थे । अब आसमानों में इन का आना जाना बन्द कर दिया गया और आसमानों की हिफ़ाज़त शहाबे साकिब से कर दी गई । 
  • इस तरह वहूय व गैरे वहूय में खलत मलत हो जाने का अन्देशा जाता रहा ।
  •  शहरे मदाइन में महले किसरा फट गया और इस के चौदह कंगूरे गिर पड़े । इस में इशारा था कि चौदह ( 14)  हुक्मरानों के बाद मुल्के फ़ारिस ख़ादिमाने इस्लाम के कब्जे में आ जाएगा । 
  • फ़ारस के आतश कदे ऐसे सर्द पड़ गए कि हर चन्द इन में आग जलाने की कोशिश की जाती थी मगर न जलती थी । 

चुनान्चे , ऐसा ही वुकूअ में आया , इन हुक्मरानों के नाम येह हैं : 

  1. नौशीरवां , 
  2. हुरमुज़ बिन नौशीरवां , 
  3. खुसरो परवेज़ बिन हुरमुज़ ,
  4.  शीरवयह बिन खुसरो परवेज ,
  5.  अजूद शीर बिन शीरवयह ,
  6.  शहर यार या शहर यराजू , 
  7. किस्रा बिन शीरवयह ( बकौल बा'ज़ बिन परवेज़ ) 
  8. मलिका बूरान हमशीरा शीरवयह ,
  9.  फैरूज खफश ,
  10.  आरज़ मीदख़्त हमशीरा शीरवयह ,
  11.  खिरज़ाद खुसरुवानह अवलाद परवेज़ बिन हुरमुज़ ,
  12.  इब्ने मिह्र जिस्निस अज़ नस्ल अर्दशीर बिन बाबक , 
  13. फैरूज़ बिन मिहरान जिस्निस , 
  14. यज्द बिन शहरयार बिन परवेज़ ।

बुहैर ए सावा जो हम्दान वुकुम के दरमियान छ: (6) मील लम्बा और इतना ही चौड़ा था।

 और जिस के किनारों पर शिर्क व बुत परस्ती हुवा करती थी यका यक बिल्कुल खुश्क सूखा हो गया ।

 वादिये सावा ( शाम व कूफ़ा के दरमियान ) की नदी जो बिल्कुल खुश्क सूखी पड़ी थी लबालब बहने लगी ।  

 रज़ाअत हुज़ूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम

हुजूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम को आप की वालिदए माजिदा ने कई दिन दूध पिलाया।

फिर अबू लहब की आज़ाद की हुई लौंडी सुवैबा ने चन्द रोज़ ऐसा ही किया।

 इसके बाद हलीमा सादिया ने यह खिदमत अपने जिम्मे ली ।

 कुरैश में दस्तूर था कि शहर के लोग अपने शीर ख़्वार बच्चों को बदवी आबादी ( गांव देहात ) में भेज दिया करते थे।

 ताकि बच्चे बद्दुओं में देहात में रहने वालों के सांथ पल कर फ़साहत और अरब की ख़ालिस खुसूसिय्यात हासिल करें।

 और मुद्दते रजाअत के खत्म होने पर कुछ रक़म यानी तोहफा तहायफ दे कर वापस ले आते थे । 

इस लिये नवाहे मक्का के क़बाइल की बदवी औरतें साल में दो दफ़ा रबीअ व खरीफ़ में बच्चों की तलाश में शहरे मक्का में आया करती थीं । 

चुनान्चे , इस बार कहत साली में हलीमा सादिया अपने क़बीले की दस (10) औरतों के साथ इसी गरज़ से शहर में आई । 

हलीमा के साथ उस का शीर ख़्वार लड़का अब्दुल्लाह नाम था

उस का शौहर हारिस बिन अब्दुल उज्ज़ा सादी 

एक दराज़ गोश और एक ऊंटनी थी । 

भूंक के मारे न ऊंटनी दूध का एक कुतरा ना देती थी और न हलीमा की छातियों में काफ़ी दूध था ।

 इस लिये बच्चा बे चैन रहता था और रात को उस के रोने के सबब से मियां बीवी सो भी नहीं सकते थे ।

लेकिन जब हलीमा सादिया मक्का पहुंची तो तमाम अमीरों के बच्चों को लेकर औरतें चली गई

अब हलीमा के हिस्से में सरवरे कौनों मकां सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत करने का शरफ लिखा था।

जब कोई अमीर बच्चा ना मिला तो आखिर कार आमना के दर पर आकर कहने लगी कि अपना बच्चा दे दो।

हज़रत आमना ने फरमाया इस बच्चे का बाप नहीं है यह यतीम है।

तो तुम जिस नियत से आई हो की तुम्हें ज्यादा तोहफा मिलेगा वो तुम्हें हम नहीं दे पायेंगे।

यह सुन कर हलीमा सादिया ने कहा अब कोई बच्चा नहीं है मक्का में इसलिए मैं इसी बच्चे को ले जाउंगी।

अब किस्मत जागी तो हलीमा को जो शरफो कमाल में मशहूर थी ऐसा मुबारक रजीअ मिल गया। ( मुबारक बच्चा )

 कि सारी जहमत काफूर हो गई । देखते ही देखते दाई हलीमा के छाती से लगा लिया ।

 दूध ने जोश मारा हुज़ूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम ने पिया और बाईं छाती छोड़ दी जिस से हलीमा के बच्चे ने पिया ।

इस के बाद भी ऐसा ही होता रहा , यह अद्ले जिबिल्ली  का नतीजा था । 

डेरे पर पहुंची तो फिर दोनों बच्चों ने सैर हो कर दूध पिया हारिस ने उठ कर ऊंटनी को जो देखा तो उस के थन दूध से भरे हुवे थे।

 जिस से मियां बीवी सैर हो गए और रात आराम से कटी । 

इस तरह तीन रातें मक्का में गुज़ार कर हज़रत आमिना से विदा लिया गया ।

और हलीमा अपने क़बीले को आई , उस ने हुज़ूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम को अपने आगे दराज़ गोश पर सवार कर लिया । 

दराज़ गोश ने पहले काबे की तरफ तीन सजदे कर के सर आस्मान की तरफ उठाया गोया शुक्रिया अदा किया।

 कि उस से यह ख़िदमत ली गई , फिर रवाना हुई और हुज़ूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम की बरकत से ऐसी चुस्तो चालाक बन गई।

 कि काफिले के सब चौपायों जानवरों से आगे चल रही थी हालांकि जब आई थी तो कमजोरी के सबब से सब से पीछे रह जाती थी ।

 साथ की औरतें हैरान हो कर पूछती थीं अबू जुऐब की बेटी !

 क्या यह वही दराज़ गोश है ? 

हलीमा जवाब देती वल्लाह यह वही है ।

 बनू साद में उस वक़्त  सख़्त अकाल था मगर हुज़ूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम की बरकत से हलीमा के मवेशी सैर हो कर आते और खूब दूध देते ।

और दूसरों के मवेशी भूंके आते और वोह दूध का एक कतरा भी न देते।

लोगों ने कहा जहां हलीमा सादिया के जानवर चारा चरते हैं। 

वहीं अपने जानवरों को चारा चरने भेजो। लेकिन उनके जानवर शिकम सैर नहीं हो पाते थे।

हज़रत हलीमा सादिया फरमाती है जब हुजूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम मेरे घर में आयें तो एक दिन भी मैंने चराग रौशन नहीं किया।

क्यूंकि हुजूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम की चेहरे से चमकदार हमारे कबीले में चराग नहीं होते थे सब चिराग़ों की चमक फीकी पड़ जाती थी।

लोगों ने एक दिन मुझे मशवरा दिया की हलीमा सादिया तुम इतना ज़्यादा चिराग रात में मत जलाया करो यह कहत साली का टाइम है।

हलीमा सादिया फरमाती है की ये चराग की रौशनी नहीं बल्कि मेरे घर में जो रौशनी रात में होती है वो हुज़ूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम के चेहरे की चमक होती है।

जब से मोहम्मद मेरे घर में है एक दिन भी मैंने चराग रौशन नहीं की है।

इस तरह हलीमा की सब तंगदस्ती दूर हो गई ।

( अल मवाहिबुल लदुन्निया वा शरह जु़रकानी जिल्द 1 सफा 266  ) 

हलीमा सादिया  हुज़ूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम को किसी दूर जगह न जाने देती थी ।

 एक रोज़ वोह ग़ाफ़िल हो गई और हुज़ूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम ने अपनी रज़ाई बहन शैमा के साथ दोपहर के भेड़ों के रेवड़ में तशरीफ़ ले गए।

 दाई हलीमा तलाश में निकली और आप स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम को शैमा के साथ पाया । 

शैमा बोली : अम्मां जान ! मेरे भाई ने तपिश महसूस नहीं की।

 बादल आप पर साया करता था , जब आप ठहर जाते तो बादल भी ठहर जाता और जब आप चलते तो बादल भी चलता।

यही हाल रहा यहां तक कि हम इस जगह आ पहुंचे हैं ।  (अल मवाहिबुल लदुन्निया वा शरह जु़रकानी जिल्द 1 सफा 268 )

 जब हुज़ूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम दो 2 साल के हो गए तो दाई हलीमा ने आप को दूध छुड़ा दिया।

 आप को आप की वालिदा के पास ले कर आई और कहा : काश ! 

तू अपने बेटे को मेरे पास और रहने दे ताकि क़वी मजबूत जाए क्यूंकि मुझे इस पर वबाए मक्का का डर है । 

यह सुन कर बीबी आमिना ने आप को हलीमा को वापस कर दिया ।

 हलीमा का बयान है कि हमें वापस आए दो या तीन महीने थे कि एक रोज़ हुजूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम अपने रज़ाई भाई अब्दुल्लाह के साथ हमारे घरों के पीछे हमारी भेड़ों में थे कि आप स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम का भाई दौड़ता आया।

कहने लगा कि मेरे इस कुरैशी भाई के पास दो शख़्स आए जिन पर सफेद कपड़े हैं उन्हों ने पहलू के बल लिटा कर इस का पेट फाड़ दिया । 

यह सुन कर मैं और मेरा ख़ाविन्द दौड़े गए , देखा कि आप खड़े हैं और चेहरे का रंग के साथ बदला हुवा है ।

 हम दोनों आप के गले लिपट गए और पूछा : बेटा ! तुझे क्या हुवा ? 

आप स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम ने बयान किया कि दो शख़्स मेरे पास आए जिन पर सफ़ेद कपड़े थे ।

 उन्हों ने पहलू के बल लिटा कर मेरा पेट फाड़ दिया और उस में से एक खून की फटकी निकाल कर कहा :

 " हाजा हज्जुस शयत्वानी मनका " ( येह तुझ से शैतान का हिस्सा है ) 

फिर इसे ईमान व हिक्मत से भर कर सी दिया । पस हम आप स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम को अपने खेमे में ले आए ।

 मेरे खाविन्द ने कहा : हलीमा ! मुझे डर है इस लड़के को कुछ आसेब है ।

आसेब ज़ाहिर होने से पहले इसे इस के कुम्बे में छोड़ आ ।

 मैं आप स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम को आप की वालिदा के पास लाई और बड़े इसरार के बाद उस से हक़ीक़ते हाल बयान की । 

मां ने कहा : अल्लाह की कसम ! इन पर शैतान को दख़ल नहीं , मेरे बेटे की बड़ी शान है । 

तअद्दुदे शक्के सदर आप स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम का सीना चाक होने का बयान।

 हुज़ूर का शक्के सदर कितना बार हुआ है?

वाजेह रहे कि हुज़ूर का शक्के सदर  चार 4 मरतबा हुवा है ,

  1.  एक वोह जिस का ज़िक्र ऊपर हुवा , यह इस वासते था कि हुज़ूरे अनवर वसाविसे शैतान से जिन में बच्चे मुब्तला हुवा करते हैं महफूज़ रहें और बचपन ही से अख़लाक़े हमीदा पर परवरिश पाएं , 
  2. दूसरी मरतबा दस (10) बरस की उम्र में हुवा ताकि आप कामिल तरीन अवसाफ़ पर जवान हों , 
  3. तीसरी मरतबा गारे हिरा में बिअसत के वक्त हुवा ताकि आप वही के बोझ को बरदाश्त कर सकें , 
  4. चौथी मरतबा शबे मे'राज में हुवा ताकि आप मुनाजाते इलाही के लिये तय्यार हो जाएं । 

हज़रते आमिना  की वफ़ात 

हुजूर अक़दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की उम्र मुबारक छ: (6)  साल की हुई तो ।

आप की वालिदा आप को साथ ले कर मदीने में आप के दादा के ननिहाल बनू अदी बिन नज्जार में मिलने गई।

बाज़ कहते हैं कि अपने शौहर की कब्र की जियारत के लिये गई थीं । 

उम्मे ऐमन भी साथ थीं , जब वापस आईं तो रास्ते में मक़ामे अबवा में इन्तिकाल फ़रमा गई और वहीं दफ्न हुई ।

 हिजरत के बाद जब हुज़ूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम का गुज़र बनू नज्जार पर हुवा तो अपने कियामे मदीना का नक्शा सामने आ गया।

और अपने कियाम गाह को देख कर फ़रमाया : " इस घर में मेरी वालिदए मुकर्रमा मुझे ले कर ठहरी थीं मैं बनी अदी बिन नज्जार के तालाब में तैरा करता था।

अब्दुल मुत्तलिब व अबू तालिब की कफ़ालत 

उम्मे ऐमन हुज़ूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम को मक्के में लाई और आप के दादा अब्दुल मुत्तलिब के हवाले किया । 

अब्दुल मुत्तलिब आप की परवरिश करता रहा मगर जब  आप  की उम्र मुबारक आठ (8) साल की हुई तो इस ने भी वफ़ात पाई ।

और हस्बे वसिय्यत आप का चचा अबू तालिब जो हज़रते अली का बाप और आप के वालिद अब्दुल्लाह का मां जाया भाई था।

 आप की तरबिय्यत का कफ़ील हुवा ।

अबू तालिब आप की कफ़ालत को बहुत अच्छी तरह अन्जाम दिया

 और आप को अपनी जात और बेटों पर मुक़द्दम रखा।

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hazarate abdullaah radi allaahu anhu kee vafaat 

jab kaule mashahoor ke muvaaphik haml shareef ko do maheene poore ho gae to hazarat abdul muttalib ne aap ke vaalid hazarate abdullaah ko madeene mein khajooren laane ke liye bheja .

 hazarate abdullaah vahaan apane vaalid ke nanihaal banoo adee bin najjaar mein ek maah beemaar rah kar intikaal farama gae.

 aur vaheen daare naabiga mein daphn huve . baaz kahate hain ki abdul muttalib ne hazarate abdullaah ko tijaarat ke liye mulke shaam bheja tha.

voh vaapas aate huve madeene mein banoo adee mein thahare aur beemaar ho kar yaheen rah gae . 

hazarate abdullaah ka tarka ek laundee umme aiman baraka habashiyya aur paanch (5) oont aur kuchh bakariyaan theen . 


 asahaabe pheel ka vaakya

sarakaar svalallaaho alaihi vasallam ke jameen par tashareef laane se 55 din pahale ek vaakia pesh aaya jo asahaabe pheel ke vaakia ke naam se mashahoor huva. 

is vaakie kee kaifiyyat batareeke ikhtisaar yoon hai ki us vakt baadashaahe habasha kee taraph se abaraha yaman ka gavarnar tha.

 us ne shahare sana mein ek kaleesa banaaya aur shaahe habasha ko likha ki main ne aap ke liye ek be nazeer kaleesa banavaaya hai .

 main koshish kar raha hoon ki arab ke log aainda khaane kaaba ko chhod kar yaheen haj va tavaaf kiya karen . 

jab yah khabar arab mein mashahoor ho gaee to banee kinaana mein se ek shakhs ne gusse mein aa kar us kaleesa mein bol va baraaz kar diya . 

yah dekh kar abaraha aag bagoola ho gaya aur us ne qasam khaee ki kaabe kee eent se eent na baja doon to mera naam abaraha nahin . 

usee vakt fauj va haathee le kar kaabe par chadhaee kee yahaan tak ki maqaame mugammas mein jo makke musharrafa se do meel hai.

ja utara aur ek saradaar ko hukm diya ki ahale makka se chhed chhaad shuroo kare . 

lihaaja voh saradaar kuraish ke oont aur bhed bakariyaan haank laaya jin mein do sau (200) oont abdul muttalib bin haashim ke bhee the .

 isake baad abaraha kee taraph se hunaata himayaree gaya aur abdul muttalib ko abaraha ke paas le aaya . 

abaraha ne abdul muttalib ka bada ikaraam kiya aur donon mein ba zareee tarjumaan yeh guftagoo huyee.


 abaraha :- tum kya chaahate ho ? 

 abdul muttalib :- mere oont vaapas kar do . 

abaraha :- hairaan ho kar tumhen oonton ka to khayaal hai magar khaane kaaba jo tumhaara aur tumhaare aabao ajdaad ka deen hai.


 jise main dhaane aaya hoon us ka naam tak nahin lete . 

abdul muttalib :- main oonton ka maalik hoon khaane kaaba ka maalik aur hai voh apane ghar ko bachaega . 


abaraha :- khaane kaaba mujh se bach nahin sakata . 

abdul muttalib :- phir tum jaano aur voh .

 is guftagoo ke baad abdul muttalib apane oont le kar makke mein vaapas aa gaya.


aur kuraish se kahane laga ki shahare makka se nikal jao aur pahaadiyon ke darron mein panaah lo . 

yah kah kar khud chand aadamiyon ko saath le kar khaane kaaba mein gaya .


aur daravaaze ka halka pakad kar yoon dua kee : 

 ai allaah ! banda apane ghar ko bachaaya karata hai too bhee apana ghar bacha .

 aisa na ho ki kal ko un kee saleeb aur un kee tadabeer teree tadabeer par gaalib aa jae .


agar too hamaare qibale ko un par chhodane laga hai to hukm kar jo chaahata hai . 

idhar abdul muttalib yah dua kar ke apane saathiyon samet pahaadon mein panaah guzeen hue.

udhar subh ko abaraha khaane ka ba ko dhaane ke liye fauj aur haathee le kar tayyaar huva . 


jab us ne haathee ka munh makke kee taraph kiya to voh baith gaya , bahut koshish kee gaee magar na utha .


aakhir makke kee taraph se us ka munh mod kar uthaaya to utha aur tez bhaagane laga.


garaz jab makke kee taraf us ka munh karate to baith jaata aur kisee doosaree taraph karate to uth kar bhaagata .

isee haal mein allaah taaala ne samandar kee taraph se abaabeelon ke jhuramut ke jhuramut bheje .


jin ke paas kankariyaan theen , ek ek chonch mein aur do do panjon mein unhon ne kankaron ka meenh barasaana shuroo kiya , 

jis par kankar giratee halaak ho jaata . 


yah dekh kar abaraha ka lashkar bhaag nikala . is tarah allaah taaala ne apana ghar dushman se bacha liya .

quraane majeed soore feel mein isee vaakie kee taraph ishaara hai . 

 kisse asahaabe feel mein do tarah se huzoor kee karaamat zaahir hai , 

ek to yah ki agar asahaabe pheel gaalib aate to voh huzoor svalallaaho alaihi vasallam kee kaum ko kaid kar lete aur gulaam bana lete .


 is liye allaah taaala ne asahaabe pheel ko halaak kar diya taaki us ke habeebe paak par haml va tuphooliyyat kee haalat mein aseeree va gulaamee ka dhabba na lage . 


doosaree yah ki asahaabe pheel nasaara ahale kitaab the jin ka deen kuraish ke deen se jo but parast the yaqeenan behatar tha.


 magar yah ki hazarat ke vujoode ba jood kee barakat thee ki allaah taaala ne baitullaah shareef kee huramat kaim rakhane ke liye kuraish ko ba vujood but parast hone ke ahale kitaab par fath dee .


 yah vaakia huzoor svalallaaho alaihi vasallam kee nabuvvat ka pesh khema tha kyoonki aap svalallaaho alaihi vasallam ke deen mein isee baitullaah kee taazeem isee ke hajj aur isee kee taraph namaaz ka hukm huva .



hujoor pur noor svalallaaho alaihi vasallam kee paidaish ka bayaan , tavallud shareef sarakaar svalallaaho alaihi vasallam


jab haml shareeph ko chaand ke hisaab se poore nau (9) maheene ho gae to hujoore akdas svalallaaho alaihi vasallam baarah rabeeul (12) avval do shamba ke din fajir ke waqt ki abhee baaz sitaare aasmaan par nazar aa rahe the subah 4:20 minat saudee arab ke taim ke mutaabik paida huye . 

donon haanth zameen par rakhe huye , 

sar aasmaan kee taraf uthae huye ( jis se aap apane uloovve martaba kee taraph ishaara farama rahe the ) 

 badan bilkul paakeeza aur tez khushboo kastooree kee tarah khushboodaar 

khatna kiye huye 

naaf bureeda , ( sahee salaamat naaph banee huee ) 

chehara chaudahaveen raat ke chaand kee tarah nooraanee 

aankhen kudarate ilaahee se surmageen 

donon shaanon ke daramiyaan mohare nabuvvat darakhshaan , ( chamakatee huee ) 

aap kee vaalida ne aap ke daada abdul muttalib ko jo us vakt khaane kaaba ka tavaaf kar rahe the bula bheja .

 voh hazarat ko dekh kar bahut khush huye aur baitullaah shareef mein le ja kar 

aap svalallaaho alaihi vasallam ke liye sidake dil se dua kee .

aur allaah taaala kee is nemate uzama ka shukriya ada kiya . 

aap ke chacha aboo lahab kee laundee suvaiba ne aboo lahab ko tavallud shareef (paidaish) kee khabar dee to us ne is khushee mein suvaiba ko aazaad kar diya .

 hujoor svalallaaho alaihi vasallam jis maheene mein paida huve is ka naam to rabee tha hee magar voh mausim bhee rabee ( bahaar ) ka tha . 

 huzoor svalallaaho alaihi vasallam kee paidaish shareef kee khushee ka sadaka 

 aboo lahab kee maut ke ek saal baad hazarate abbaas radi allaahu anhu ne khvaab mein aboo lahab ko bure haal mein dekha.

poochha :- tujhe kya mila ? 

aboo lahab ne javaab diya :- lam alaka badakum gaiira annee sukeetoo phee haajihee bitaakatee suvaiibata

tarjuma :- tumhaare baad mujhe kuchh aaraam nahin mila sivae is ke ki suvaiba ko aajaad karane ke sabab se 

ba mikdaar is mugaak ( matalab shahaadat aur angoothe ke beech ke jagah ) ke paanee mil jaata hai jise main pee leta hoon . 

(saheeh bukhaaree kitaabun nikaah baab va ummahaatu kumul latee aradnakum hadees nambar 5101, jild 3, sapha 732)

 is hadees ko urava bin jubair radi allaahu anhu ne bayaan kee isaka matalab yah hai.

 ki aboo lahab bata raha hai ki mere tamaam aamaal bekaar gae sivae ek ke aur voh yah ki main ne huzoor svalallaaho alaihi vasallam kee vilaadat kee khushee mein apanee laundee suvaiba ko aazaad kar diya tha .

 is ek amal ka phaida baakee rah gaya aur voh yoon hai ki is ke badale har do shamba ko ibahaam va sabaaba ke daramiyaanee mugaak kee mikdaar mujhe paanee mil jaata hai .

jise main ungaliyon se choos leta hoon aur azaab mein takhfeef ho jaatee . 

yah hujoor rasoole akaram kee khusoosiyyaat se hai , varana kaafir ka koee amal faida na dega .


lihaaja ulma e ahale sunnat val jamaat isee hadees ke peshe nazar sarakaar kee aamad aamad kee khushee banaane ka hukm dete hain.

taakee hamaaree gunaahon se nijaat milane ka sabab bane.

apeel:- infomgm islamich blog taiam aap sab se gujaarish karatee hai ki 

chaahe laakadaun ho ya na ho aap apane makaanon mein sarakaar svalallaaho alaihi vasallam kee aamad aamad kee khushee manaayen


 ki jab huzoor ke tavallud shareeph ( paidaish) par khushee manaane se ek kaafir ko yah phaayada pahunch sakata hai.

 to andaaja keejiye ki ek musalamaan jo har saal maulood (jashne eed milaadunnabee) shareef manaaya karata hai aur 

hujoor ahamade mukhtaar ke vilaadat shareeph par khushiyaan manaata hai is daare faanee se rukhasat ho jae to use kis qadar phaayada pahunchega .

 tavallud shareeph (vilaadat paidaish shareef ) ke vaqt khavaarik 

tavallud (vilaadat) shareef ke vakt gaib se ajeebo gareeb aur khilaaphe aadat umoor zaahir huve.

taaki aap kee nabuvvat kee buniyaad pad jae aur logon ko maaloom ho jae ki aap allaah taaala ke baraguzeeda va pasandeeda hain . 

chunaanche , sitaare taazeem ke liye jhuk kar aap ke qareeb aa gae 

aur un ke noor se haram shareef kee past zameen aur teele roshan ho gae . 

aap ke saath aisa noor nikala ki makke musharrafa ke rahane vaalon ko mulke shaam ke kaisaree mahal nazar aa gae .

 shayaateen pahale aasmaanon par chale jaate aur kaahinon ko baaz mugayyabaat kee khabar de dete the.

aur voh logon ko kuchh apanee taraph se mila kar bata diya karate the . 

ab aasamaanon mein in ka aana jaana band kar diya gaya aur aasamaanon kee hifaazat shahaabe saakib se kar dee gaee | 

is tarah vahooy va gaire vahooy mein khalat malat ho jaane ka andesha jaata raha . 

shahare madain mein mahale kisara phat gaya aur is ke chaudah kangoore gir pade . 

is mein ishaara tha ki chaudah ( 14) hukmaraanon ke baad mulke faaris khaadimaane islaam ke kabje mein aa jaega .

 faaras ke aatash kade aise sard pad gae ki har chand in mein aag jalaane kee koshish kee jaatee thee magar na jalatee thee . 

chunaanche , aisa hee vukoo mein aaya , in hukmaraanon ke naam yeh hain : nausheeravaan , huramuz bin nausheeravaan , khusaro paravez bin huramuz , sheeravayah bin khusaro paravej , ajood sheer bin sheeravayah , shahar yaar ya shahar yaraajoo , kisra bin sheeravayah ( bakaul baz bin paravez ) malika booraan hamasheera sheeravayah , phairooj khaphash , aaraz meedakht hamasheera sheeravayah , khirazaad khusaruvaanah avalaad paravez bin huramuz , ibne mihr jisnis az nasl ardasheer bin baabak , phairooz bin miharaan jisnis , yajd bin shaharayaar bin paravez .

buhair e saava jo hamdaan vukum ke daramiyaan chh: (6) meel lamba aur itana hee chauda tha aur jis ke kinaaron par shirk va but parastee huva karatee thee yaka yak bilkul khushk ho gaya .

 vaadiye saava ( shaam va koofa ke daramiyaan ) kee nadee jo bilkul khushk padee thee labaalab bahane lagee .  





 razaat huzoor svalallaaho alaihi vasallam

hujoor svalallaaho alaihi vasallam ko aap kee vaalide maajida ne kaee din doodh pilaaya.

phir aboo lahab kee aazaad kee huee laundee suvaiba ne chand roz aisa hee kiya.

 isake baad huleema saadiya ne yah khidamat apane jimme lee .

 kuraish mein dastoor tha ki shahar ke log apane sheer khvaar bachchon ko badavee aabaadee ( gaanv dehaat ) mein bhej diya karate the.

 taaki bachche badduon mein dehaat mein rahane vaalon ke saanth pal kar fasaahat aur arab kee khaalis khusoosiyyaat haasil karen.

 aur muddate rajaat ke khatm hone par kuchh raqam yaanee tohapha tahaayaph de kar vaapas le aate the . 

is liye navaahe makka ke qabail kee badavee auraten saal mein do dafa rabee va khareef mein bachchon kee talaash mein shahare makka mein aaya karatee theen . 

chunaanche , is baar kahat saalee mein haleema saadiya apane qabeele kee das (10) auraton ke saath isee garaz se shahar mein aaee . 

haleema ke saath us ka sheer khvaar ladaka abdullaah naam , us ka shauhar haaris bin abdul ujza saadee , ek daraaz gosh aur ek oontanee thee . 

bhoonk ke maare na oontanee doodh ka ek kutara detee thee aur na haleema kee chhaatiyon mein kaafee doodh tha .

 is liye bachcha be chain rahata tha aur raat ko us ke rone ke sabab se miyaan beevee so bhee nahin sakate the .

ab kismat jaagee to haleema ko jo sharapho kamaal mein mashahoor thee aisa mubaarak rajee mil gaya.

 ki saaree jahamat kaaphoor ho gaee . dekhate hee daee chhaatee se laga liya .

 doodh ne josh maara hazarat ne piya aur baee chhaatee chhod dee jis se haleema ke bachche ne piya .

is ke baad bhee aisa hee hota raha , yah adle jibillee ka nateeja tha . 

dere par pahunchee to phir donon bachchon ne sair ho kar doodh piya haaris ne uth kar oontanee ko jo dekha to us ke than doodh se bhare huve the.

 jis se miyaan beevee sair ho gae aur raat aaraam se katee . 

is tarah teen raaten makka mein guzaar kar hazarate aamina ko vida kar diya gaya .

aur haleema apane qabeele ko aaee , us ne hazarat ko apane aage daraaz gosh par savaar kar liya . 

daraaz gosh ne pahale kaabe kee taraph teen sajade kar ke sar aasmaan kee taraph uthaaya goya shukriya ada kiya.

 ki us se yah khidamat lee gaee , phir ravaana huee aur hazarat kee barakat se aisee chusto chaalaak ban gaee.

 ki kaaphile ke sab chaupaayon se aage chal rahee thee haalaanki jab aaee thee to kamajoree ke sabab se sab se peechhe rah jaatee thee .

 saath kee auraten hairaan ho kar poochhatee theen aboo juaib kee betee ! kya yeh vahee daraaz gosh hai ? 

haleema javaab detee vallaah yah vahee hai .

 banoo sa da mein us vaqt sakht akaal tha magar huzoor svalallaaho alaihi vasallam kee barakat se haleema ke maveshee sair ho kar aate aur khoob doodh dete .

aur doosaron ke maveshee bhooke aate aur voh doodh ka ek katara bhee na dete .

is tarah haleema kee sab tangadastee door ho gaee . ( al mavaahibul ladunniya va sharah jurakaanee jild 1 sapha 266 ) 

haleema saadiya huzoor svalallaaho alaihi vasallam ko kisee door jagah na jaane detee thee .

 ek roz voh gaafil ho gaee aur huzoor svalallaaho alaihi vasallam ne apanee razaee bahan shaima ke saath dopahar ke bhedon ke revad mein tashareef le gae.

 daee haleema talaash mein nikalee aur aap svalallaaho alaihi vasallam ko shaima ke saath paaya . 

kahane lagee : tapash mein shaima bolee : ammaan jaan ! mere bhaee ne tapash mahasoos nahin kee.

 baadal aap par saaya karata tha , jab aap thahar jaate to baadal bhee thahar jaata aur jab aap chalate to baadal bhee chalata.

yahee haal raha yahaan tak ki ham is jagah aa pahunche hain . " (al mavaahibul ladunniya va sharah jurakaanee jild 1 sapha 268 ) jab huzoor svalallaaho alaihi vasallam do saal ke ho gae to daee haleema ne aap ko doodh chhuda diya.

 aap ko aap kee vaalida ke paas le kar aaee aur kaha : kaash ! too apane bete ko mere paas aur rahane de taaki qavee ho jae kyoonki mujhe is par vabae makka ka dar hai . 

yah sun kar beebee aamina ne aap ko haleema ko vaapas kar diya .

 haleema ka bayaan hai ki hamen vaapas aae do ya teen maheene the ki ek roz hujoor svalallaaho alaihi vasallam apane razaee bhaee abdullaah ke saath hamaare gharon ke peechhe hamaaree bhedon mein the ki aap svalallaaho alaihi vasallam ka bhaee daudata aaya.

kahane laga ki mere is kuraishee bhaee ke paas do shakhs aae jin par saphed kapade hain unhon ne pahaloo ke bal lita kar is ka pet phaad diya . 

yah sun kar main aur mera khaavind daude gae , dekha ki aap khade hain aur chehare ka rang ke saath badala huva hai .

 ham donon aap ke gale lipat gae aur poochha : beta ! tujhe kya huva ? 

aap svalallaaho alaihi vasallam ne bayaan kiya ki do shakhs mere paas aae jin par safed kapade the .

 unhon ne pahaloo ke bal lita kar mera pet phaad diya aur us mein se ek khoon kee phatakee nikaal kar kaha :

 " haaja hajjus shayatvaanee manaka " ( yeh tujh se shaitaan ka hissa hai ) 

phir ise eemaan va hikmat se bhar kar see diya . pas ham aap svalallaaho alaihi vasallam ko apane kheme mein le aae .

 mere khaavind ne kaha : haleema ! mujhe dar hai is ladake ko kuchh aaseb hai .

aaseb zaahir hone se pahale ise is ke kumbe mein chhod aa .

 main aap svalallaaho alaihi vasallam ko aap kee vaalida ke paas laee aur bade isaraar ke baad us se haqeeqate haal bayaan kee . 

maan ne kaha : allaah kee kasam ! in par shaitaan ko dakhal nahin , mere bete kee badee shaan hai . 


taaddude shakke sadar aap svalallaaho alaihi vasallam ka seena chaak hone ka bayaan.

 vaajeh rahe ki huzoor ka shakke sadar chaar 4 marataba huva hai , ek voh jis ka zikr oopar huva , yah is vaasate tha ki huzoore anavar vasaavise shaitaan se jin mein bachche mubtala huva karate hain mahaphooz rahen aur bachapan hee se akhalaaqe hameeda par paravarish paen , doosaree marataba das (10) baras kee umr mein huva taaki aap kaamil tareen avasaaf par javaan hon , teesaree marataba gaare hira mein biasat ke vakt huva taaki aap vahee ke bojh ko baradaasht kar saken , chauthee marataba shabe meraaj mein huva taaki aap munaajaate ilaahee ke liye tayyaar ho jaen . 



hazarate aamina kee vafaat 

hujoor aqadas sallallaahu taaala alaihi vasallam kee umr mubaarak chh: (6) saal kee huee to aap kee vaalida aap ko saath le kar madeene mein aap ke daada ke nanihaal banoo adee bin najjaar mein milane gaee.

baaz kahate hain ki apane shauhar kee kabr kee jiyaarat ke liye gaee theen . 

umme aiman bhee saath theen , jab vaapas aaeen to raaste mein maqaame abava mein intikaal farama gaee aur vaheen daphn huee .

 hijarat ke baad jab huzoor svalallaaho alaihi vasallam ka guzar banoo najjaar par huva to apane kiyaame madeena ka naksha saamane aa gaya.

aur apane kiyaam gaah ko dekh kar faramaaya : " is ghar mein meree vaalide mukarrama mujhe le kar thaharee theen main banee adee bin najjaar ke taalaab mein taira karata tha.


abdul muttalib va aboo taalib kee kafaalat 

umme aiman huzoor svalallaaho alaihi vasallam ko makke mein laee aur aap ke daada abdul muttalib ke havaale kiya . 

abdul muttalib aap kee paravarish karata raha magar jab aap kee umr mubaarak aath (8) saal kee huee to is ne bhee vafaat paee .

aur hasbe vasiyyat aap ka chacha aboo taalib jo hazarate alee ka baap aur aap ke vaalid abdullaah ka maan jaaya bhaee tha.

 aap kee tarabiyyat ka kafeel huva .

aboo taalib aap kee kafaalat ko bahut achchhee tarah anjaam diya

 aur aap ko apanee jaat aur beton par muqaddam rakha.

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