noor e mohammadi ki Barkat, barkat e noor e mohammadi, Fazilat e noor e mohammadi, azmat e noor e mohammadi, mohammad ka noor, sirat e rasool arbi,
Nabi ka Noor नूरे मुहम्मदी की बरकत, नूर ए मोहम्मद स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम की बरकत
हज़रते जाबिर बिन अब्दुल्लाह अन्सारी रदि अल्लाहु अन्हु से रिवायत है
अल्लाह तआला ने सब से पहले बिला वासिता अपने हबीब हज़रत मोहम्मद स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम का नूर पैदा किया।
फिर इसी नूर को खल्के़ आ़लम का वासिता ठहराया ।
ब हवाला हदीस मुसन्निफ़ अब्दुर्रज्जाक मुतवफ्फा सन 211 हिजरी अल जुज़उल मफक़ूद मिनल जुज़उल अव्वल मिनल मुसन्निफ़ लिअ़ब्दिर्रज़्ज़ाक़ किताबुल ईमान बाब फी तख़लीक़ नूरे मोहम्मदी स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम हदीस नम्बर 18 सफा नम्बर 63
noor e mohammadi ki Barkat 2021 |
और आ़लमे अरवाह ही में इस रूहे सरापा नूर को वस्फे नबुव्वत से सरफ़राज़ फ़रमाया।
चुनान्चे , एक रोज़ सहाबा ए किराम रिदवानुल लाही तअला अलैहिम अजमईन ने हुजूरे अनवर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम से पूछा कि आप की नबुव्वत कब साबित हुई ?
हुजू़र स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया :-
वा आदमा बैइनर रूही वल जस्दी
तर्जुमा :-
यानी मैं उस वक्त नबी था जब कि हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की रूह ने जिस्म से ताल्लुक न पकड़ा था ।
रेफरेंस हवाला
(तिरमिजी शरीफ, सुनन तिरमिजी किताबुल मनाकि़ब बाब मा जाआ फदलन नबी हदीस नम्बर 3629, जिल्द 5, सफ़ा 301)
इसके बाद इसी आ़लम में अल्लाह तआला ने तमाम अम्बिया ए किराम अलैहिमुस्सलाम की रूहों से अहद लिया गया जो
वा इज अखज़ल लाहू मीसाक़न नबीयीना वाली आयत में मजकूर है
जिस वक्त इन पैग़म्बरों की रूहों ने अहदें मज़कूर के मुताबिक़ हुजूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम की नुबुव्वत व इमदाद का इक़रार कर लिया तो
नूरे मुहम्मदी के फैजान से इन रूहों में वो काबिलिय्यतें पैदा हो गई कि
दुनियां में अपने अपने वक़्त में इन को मन्सबे नुबुव्वत अता हुवा ।
और इन से मोजिजात ज़हूर में आए ।
वा इज अखज़ल लाहू मीसाक़न नबीयीना वाली आयत की तफ्सीर
इस आयत का तर्जमा यूं है :-
और जब लिया अल्लाह ने इक़रार पैगम्बरों का कि अलबत्ता जो कुछ मैं ने तुम को दिया
किताब व हिक्मत से फिर आये तुम्हारे पास रसूल सच्चा करने वाला उस चीज़ को कि तुम्हारे साथ है
अलबत्ता तुम ईमान लाओगे उस पर और मदद दोगे उस को ।
कहा खुदा ने
क्या इक़रार किया तुम ने और लिया इस पर अहद मेरा ,
तमाम पैगम्बरों ने कहा :- हम ने इक़रार किया ,
फ़रमाया खुदा ने :- तुम गवाह रहो और मैं तुम्हारे साथ गवाहों से हूं ।
इन्तिहा ( सूरह आले इमरान रुकूअ नम्बर 9 ) 12 मिन्ह
तर्जमए कन्जु़ल ईमान : और याद करो जब अल्लाह ने पैगम्बरों से इन का अहद लिया ।
जो मैं तुम को किताब और हिक्मत दूं फिर तशरीफ़ लाए तुम्हारे पास वोह रसूल।
कि तुम्हारी किताबों की तस्दीक़ फ़रमाए तो तुम ज़रूर ज़रूर उस पर ईमान लाना ।
और ज़रूर ज़रूर उस की मदद करना फ़रमाया क्यूं तुम ने इकरार किया और इस पर मेरा भारी जिम्मा लिया
सब ने अर्ज की हम ने इक़रार किया ।
फ़रमाया तो एक दूसरे पर गवाह हो जाओ और मैं आप तुम्हारे साथ गवाहों में हूं । (सूरह आले इमरान 81)
इमाम बुसैरी ने खूब फ़रमाया है :
वा कुल्लू अय्यिन अनर रसूलुल किरामी बिहा
फइन्नमत तसलत मिन नूरिही बिहिमी
फइन्नहु शमसू फदलिन हुम कवाकिबुहा
युज़हिरना अनवारहा लिन्नासी फिज़ ज़ु ल मी
(क़सीदा ए बुरदा सफा 98)
तर्जमए मज़मूम
मोजिजे जितने कि लाए थे रसूलाने किराम।
उस लड़ी के नूर से जा मिलती है सब की बहम।
आफ्ताबे फज़्ल है वोह सब कवाकिब इस के थे।
जुल्मतों में नूर फैलाया जिन्हों ने बेशो कम।
इसी अहद के सबब से हज़राते अम्बियाए साबिक़ीन अलैहिमूस्सलाम ने अपनी अपनी उम्मतों को
हुजूर नबिय्ये आख़िरुज्जमान स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम की आमदो बशारत और इन के इत्तिबाअ़ व इमदाद की ताकीद फ़रमाते रहे हैं ।
अगर हुजूर नबिय्ये रहमत स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम की नुबुव्वत दुनियां में ज़ाहिर न होती
तो तमाम अम्बिया ए साबिक़ीन अलैहिमूस्सलाम की नुबुव्वतें बातिल हो जाती ।
और वोह तमाम बशारतें ना तमाम रह जातीं ।
पस दुनियां में हुजूरे अक्दस स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम की तशरीफ़ आवरी ने तमाम अम्बियाए साबिक़ीन की नुबुव्वतों की तस्दीक़ फ़रमा दी ।
अल्लाह तआला का फरमान है
बल जाआ बिल हक़्की वा सदक़ल मुरसलीन
तर्जुमा कन्जुल ईमान : बल्कि वोह तो हक़ लाए हैं और उन्हों ने रसूलों की तस्दीक़ फ़रमाई ।
बल्कि लाया है हक़ को और सच्चा किया है पैगम्बरों को (सूरह साफ्फात , रुकूअ 2 )
जिस तरह रसूले करीम स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम का नूरे अज़हर मिम्बए अन्वारुल अम्बिया था।
इसी तरह आप के जिस्मे अतहर का माद्दा भी लतीफ़ तरीन अशिया था चुनान्चे ।
हज़रते काब अहबार रदि अल्लाहु अन्हु से मन्कूल है कि जब अल्लाह तआला ने हज़रते मुहम्मद स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम को पैदा करना चाहा तो हज़रत जिब्रईल को हुक्म दिया कि सफ़ेद मिट्टी लाओ ।
पस हज़रत जिब्रईल अलैहिस्सलाम बहिश्त के फ़िरिश्तों के साथ उतरे और हज़रत की कब्र शरीफ़ की जगह से मुठ्ठी भर खाके सफ़ेद चमकती दमकती उठा लाए ।
फिर वोह मुश्ते खाके सफ़ेद बहिश्त के चश्मए तस्नीम के पानी से गूंधी गई ।
यहां तक कि सफेद मोती की मानिन्द हो गई जिस की बड़ी शुआअ थी
इसके बाद फरिश्ते उसे ले कर अर्श व कुरसी के गिर्द और आस्मानों और ज़मीन में फिरे यहां तक कि तमाम फ़िरिश्तों ने आप ( रूहे अन्वर व माद्दए अतहर ) को आदम अलैहिस्सलाम की पैदाइश से पहले पहचान लिया ।
जब अल्लाह तआला ने हज़रते आदम अलैहिस्सलाम को पैदा किया तो अपने हबीबे पाक स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम के नूर को उन की पुश्ते मुबारक में बतौरे अमानत रखा ।
इस नूर के अन्वार उन की पेशानी में यूं नुमायां थे जैसे आफ़्ताब आस्मान में और चांद अन्धेरी रात में और इन से अहद लिया गया ।
कि यह नूरे अन्वर पाक पुश्तों से पाक रहमों में मुन्तकिल हुवा करे ।
इसी वासिते जब वोह हज़रते हव्वा से मुकारबत का इरादा करते तो उन्हें पाक व पाकीज़ा होने की ताकीद फ़रमाते।
यहां तक कि वोह नूर हज़रते हव्वा के रहमे पाक में मुन्तकि़ल हो गया।
उस वक्त वोह अन्वार जो हज़रते आदम अलैहिस्सलाम की पेशानी में थे हज़रते हव्वा की पेशानी में नुमूदार हुवे ।
अय्यामे हम्ल में हज़रते आदम , ने ब पासे अदबो ताजीम हज़रते हव्वा से मुकारबत तर्क कर दी ।
यहां तक कि हज़रते शीस अलैहिस्सलाम पैदा हुवे तो वोह नूर उन की पुश्त में मुन्तकिल हो गया ।
येह हुजूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम का मोजिज़ा था कि हज़रते शीस अलैहिस्सलाम अकेले पैदा हुवे ।
आप के बाद एक बतन में जोड़ा ( लड़का लड़की ) पैदा होता रहा इस तरह यह नूरे पाक , पाक पुश्तों से पाक रहमों में मुन्तक़िल होता हुवा हुजूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम के वालिदे माजिद हज़रते अब्दुल्लाह तक पहुंचा ।
और उन से बिना बर कौले असह अय्यामे तशरीक में जुमा की रात को आप की वालिदए माजिदा हज़रते आमिना के रहमे पाक में मुन्तकिल हुवा ।
इसी नूर के पाक व साफ़ रखने के लिये अल्लाह तआला ने हुज़ूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम के तमाम आबा व उम्महात को शिर्को कुफ्र की नजासत और ज़िना की आलूदगी से पाक रखा है ।
- इसी नूर के सदके से यानी नूरे मोहम्मदी स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम के सदके में हज़रत के तमाम आबाओ अजदाद निहायत हसीन व मरजए ख़लाइक थे ।
- इसी नूर के सदके से यानी नूरे मोहम्मदी स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम की बरकत से हज़रते आदम अलैहिस्सलाम मलाइक के मस्जूद बने।
- और इसी नूर के सदके से यानी नूरे मोहम्मदी स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम के वसीले से उन की तौबा क़बूल हुई।
- इसी नूर के सदके से यानी नूरे मोहम्मदी स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम के सदके की बरकत से हज़रते नूह अलैहिस्सलाम की कश्ती तूफ़ान में गर्क होने से बची ।
- इसी नूर के सदके से यानी नूरे मोहम्मदी स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम की बरकत से हज़रते इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर आतिशे नमरूद गुलज़ार हो गई ।
- और इसी नूर के सदके से यानी नूरे मोहम्मदी स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम के तुफैल से हज़राते अम्बियाए साबिक़ीन अलैहिमुस्सलाम पर अल्लाह तआला की इनायात और रहमत नाजिल हुई ।
( अल वफाउल वफा फी फजा़यले मुस्तफा इब्नुल जूज़ी, अल वफा बहवालल मुस्तफा स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम इब्नुल जूजी मुतर्जिम दूसरा बाब सरवरे दो आलम स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम के वजूद ओ उन्सरी का बयान 89 )
जब हुज़ूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम ग़ज़वए तबूकसे वापस तशरीफ़ लाए तो ।
हज़रते अब्बास रदि अल्लाहु अन्हु ने हुजूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम की इजाज़त से आप की मद्ह (तारीफ़) में चन्द अश्आर अर्ज किये ।
जिन में मजकूर है कि कश्तिए नूह का तूफ़ान से बचना ।
और हज़रते इब्राहीम पर आतिशे नमरूद का गुलज़ार हो जाना।
हुजूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम के नूर ही की बरकत से था ।
(खसाइसे कुबरा हाकिम तबरानी)
हज़रते इमामुल अइम्मा अबू हनीफ़ा नोमान बिन साबित ताबेई कूफ़ी रदि अल्लाहु हुजूर रसूले अकरम स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम की मद्ह में यूं फ़रमाते हैं :-
अन्तल लजी लौ लाका मा खुलिका अमरुन
कल्ला वला खुलिकल वरा लौ लाका
अन्तल लजी मिन नूरिका लिल बदरिस सना
वशमशु मुशरिकतुन बिनरी बहाका
अन्तल लजी लम्मा तवस्सला आदमु
मिन ज़ल्लतिन बिका फाजा व हुवा अबाका
व बिकल खलीलू दआ फआदत नारुहू
बरदंव व क़द खमिदत बिनूरी सनाका
व दआका अय्यूबू लिदुर्रिम मस्सहु
फउजीला अ़न्हुद दुर्रू ही़ना दआ़का
व बिकल मसीहू अता बशीरम मुखबिरन
बिसिफाती हुसनिका मादिहन लिउ़लाका
कजा़लिका मूसा लम यज़ल मुतवस्सिलन
बिका फिल कि़यामती मुह़तमन बिहिमाका
वल अम्बियाऊ व कुल्लू खलक़िन फिल वरा
वर रुसलू वल अमलाकू लह़ता लिवाका
( मजमुआ कसाइद सफा नम्बर 40 )
तर्जुमा:-
आप की वोह मुक़द्दस ज़ात है कि अगर आप न होते तो हरगिज़ कोई आदमी पैदा न होता ।
और न कोई मख्लूक पैदा ना होती अगर आप न होते ।
आप वोह हैं कि आप के नूर से चांद को रोशनी है और सूरज आप ही के नूरे जे़बा से चमक रहा है ।
आप वोह हैं कि जब आदम ने लगज़िश के सबब से आप का वसीला पकड़ा तो वोह कामयाब हो गए हालां कि वोह आप के बाप हैं ।
आप ही के वसीले से हज़रत इब्राहीम खलील ने दुआ मांगी , तो आप के रोशन नूर से आग उन पर ठन्डी हो गई ।
और बुझ गई और हज़रत अय्यूब ने अपनी मुसीबत में आप ही को पुकारा तो इस पुकारने पर उन की मुसीबत दूर हो गई
और हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम आप ही की बशारत और आप ही की सिफ़ाते हसना की ख़बर देते और मद्ह करते हुवे आए ।
इसी तरह हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम आप का वसीला पकड़ने वाले और क़ियामत में आप के सब्ज़ाज़ार में पनाह लेने वाले रहे
और अम्बिया और मख्लूकात में से हर मख्लूक और पैग़म्बर और फ़रिश्ते आप के झन्डे तले होंगे ।
नूरानी फूल
हुजूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम के क़द मुबारक का साया न था ।
हाकीम तिर्मिज़ी मुतव्वफ़ा सिने 255 हिजरी ने अपनी किताब " नवादिरुल उसूल " में हज़रते ज़कवान ताबेई रदि अल्लाहु अन्हु से यह हदीस नक्ल की है।
कि सूरज की धूप और चांद की चांदनी में रसूलुल्लाह स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम का साया नहीं पड़ता था ।
इमाम इब्ने सब्अ रदि अल्लाहु अन्हु का कौल है कि यह आप स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम के ख़साइस में से है कि
आप का साया ज़मीन पर नहीं पड़ता था और आप नूर थे ।
इस लिये जब आप धूप या चांदनी में चलते तो आप का साया नज़र नहीं आता था।
और बाज़ का कौल है कि इस की शाहिद वोह हदीस है जिस में आप की इस दुआ का ज़िक्र है कि आप ने यह दुआ मांगी :-
अल्ला हुम्मज अ़लु फी क़ल्बि नूरन व फि समई नूरन व से
फी बसरि नूरन व अ़न यमीनी नूरन व अ़न यसारी नूरन व अ़मामी नूरन व ख़ल्फी नूरन व फौकी़ नूरन व तहती नूरन वज अ़लनी नूरा ।
(मुस्लिम शरीफ किताबुस सलातुल मुसाफिरीन बाबुद दुआ ई फिस सलातुल लैल वा क़ियामा )
तर्जुमा :-
कि खुदावन्दा तू मेरे तमाम आज़ा ( और मेरे तमाम अतराफ़ ) को नूर बना दे ।
और आप स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम ने अपनी इस दुआ को इस कौल पर ख़त्म फ़रमाया कि " वज अलनी नूरन " या'नी या अल्लाह !
तू मुझ को सरापा नूर बना दे ।
जाहिर है कि जब आप सरापा नूर थे तो फिर आप का साया कहां से पड़ता !
इसी तरह हज़रत अब्दुल्लाह बिन मुबारक और इब्नुल जौजी ने भी हज़रते अब्दुल्लाह बिन अब्बास रदि अल्लाहु अन्हु से रिवायत की है कि
हुजूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम का साया नहीं था ।
( अल मुआहिबुल लदु्न्निया फि शरह ज़रकानी अल फसलुल अव्वल 565,567)
nure muhabbati ki barkat allah taala ne sab se pahle bila vasita apane habib hazrat mohabbat swalallaho alaihi vsallm ka nur paida kiya .
fir isi nur ko khalke aalm ka vasita thahraya .
Referance hadis
( musannif abdurrajjak mutvaffaa san 211 hijari b rivayate hjarate jabir bin abdullah ansari rdi allahu anhu , al juzaul mfakud minal juzaul avval minal musannif liabhdirrajzaq kitabul eman bab fi takhalik nure mohabbati swalallaho alaihi vsallm hadis namber 18 safa namber 63 , )
aur aalme arwah hi men is ruhe sarapa nur ko vasfe nabuvvat se sarfraz framaya .
chunanche , ek din sahaba e kiram ridwanul lahi tala alaihim ajmain ne
hujure anvar swalallaho alaihi vsallm se poochha ki aap ki nabuvvat kab sabit hui ?
aap swalallaho alaihi vsallm ne framaya :
va aadama baiiner ruhi val jasdi
Referance hawala
( tiramiji sharif , sunan tiramiji kitabul manakib bab ma jaa fdaln nabi hadis namber 3629 , jild 5 , safa 301 )
tarjuma : -- yani man use vakt nabi tha jab ki hazrat aadam alaihisslam ki ruh ne jism se talluk n pakada tha .
isake bad isi aalm men allah taala ne tamam ambiya a kiram alaihimusslam ki ruhon se ahad liya gaya jo
( wa is akhjal lahu misakane nabiyina vali aayat men majkur hai )
jis waqt in pagambaron ki ruhon ne ahade mazakur ke mutabik huzoor swalallaho alaihi vsallm ki nabuvvat v emedad ka ekarar kar liya
to nure muhabbati ke faijan se in ruhon men vo kabiliyyaten paida ho gai ki duniyan men apane apane waqt men in ko mansbe nabuwwat ata huva .
aur in se mojijat zahur men aaye .
Aur jab liya allah ne iqrar paigambaron ka ki albatta jo kuchh man ne tum ko diya kitab v hikmat se fir aaye tumhare pas rasul saccha karne vala
use chies ko ki tumhare sath hai albatta tum iman laoge use par aur madad doge
kaha khuda ne kya ekarar kiya tum ne aur liya is par ahad mera ,
kaha : inhon ne ekarar kiya hum ne , framaya khuda ne tum gwah raho aur man tumhare sath gwahon se hun . intiha ( surah aale imran rukua namber 9 ) 12 minh
( tarjama kqnzul eman : aur yad karo jab allah ne paigambaron se in ka ahad liya . jo man tum ko kitab aur hikmat dun fir tasharif laye tumhare pas
voh rasul ki tumhari kitabon ki tasdik framaye to tum zrur zrur use par eman lana .
aur zrur zrur use ki madd karna framaya ccun tum ne ekarar kiya aur is par mera bhari jimma liya sab ne arge ki hum ne ekarar kiya .
framaya to ek dusare par gwah ho jao aur man aap tumhare sath gwahon men hun . surah aale imran 81 ) imam busairi ne khub framaya hai :
va kullu ayyan aner rasulul kirami biha
finnmat tsalt min nurihi bihimi
finnahu shamsu fdalin hum kwakibuha yuzahirna
anvaraha linnasi fis zu l mi ( ksida a burda safa 98 )
tarjama mazmum mo jije jitane ki laye the rasulane kiram use ladi ke noor se ja milti hai
sab ki bahme aftabe fazl hai voh sab kwakib is ke the julmaton men noor failaya
jinhon ne besho kam isi ahad ke sabab se hazrate ambiyaye sabikin alaihimusslam ne apani apani ummaton ko huzoor nabiyye aakhirujjaman swalallaho alaihi vsallm ki aamdo basharat aur in ke ittibaa wa emedad ki takid framate rahe han .
agar huzoor nabiyye rahmat swalallaho alaihi vsallm ki nabuvvat duniyan men zahir n hoti
to tamam ambiya a sabiqin alaihimusslam ki nabuvvaten batil ho jati .
aur voh tamam basharaten na tamam rah jatin .
pas duniyan men huzoor e aqdas swalallaho alaihi vsallm ki tasharif aavari ne tamam ambiyaye sabikin ki nabuvvaton ki tasdik frama di .
allah taala ka farman hai
bal jaa bil hakkai va sadkal mursalin
tarjuma balki laya hai hak ko aur saccha kiya hai paigambaron ko ( surah saffaat , rukua 2 ) . (
tarjama kanzul iman : balki voh to hak laye han aur unhon ne rasulon ki tasdik framai .
jis tarah rasule karim swalallaho alaihi vsallm ka noor e azahar mimbe anvarul ambiya tha isi tarah aap ke jism e atehr ka madda bhi latif tarin asia tha chunanche .
hazrat e kab ahbar rdi allahu anhu se manchool hai ( al wafoul wafa fi fajayale mustafa ibnul juzi ,
(al wafa bahawalal mustafa swalallaho alaihi vsallm ibnul juji mutarjim dusara bab sarvare do aalm swalallaho alaihi vsallm ke vjud o unceri ka bayan 89 )
ki jab allah taala ne hjarate muhabbat swalallaho alaihi vsallm ko paida karna chaha to hazrat jibrail ko hukm diya ki safed mitti lao .
pas hazrat jibrail alaihisslam bahisht ke firishton ke sath utare aur hazrat ki kabr sharif ki jagah se muthi bhar khake safed chamkti damkati utha laye .
fir voh mushte khake safed bahisht ke chashma tasnim ke pani se gundhi gai .
yahan tak ki safed moti ki manind ho gai jis ki badi shuaa thi isake bad farishte use le kar arsh v kursi ke gird aur
aasmanon aur zamin men fire yahan tak ki tamam firishton ne aap ( ruhe anver v madde atehr )
ko aadam alaihisslam ki paidaish se pahle pahchan liya .
jab allah taala ne hjarate aadam alaihisslam ko paida kiya to apane habibe pak swalallaho alaihi vsallm ke nur ko un ki pushte mubark men bataure amant rakha .
is noor ke anvar un ki peshani men un numayan the jaise aaftab aasman men aur chand andheri rat men aur in se ahad liya gaya .
ki yah noor anver pak pushton se pak rahamon men muntakil huva kare .
isi vasite jab voh hazarat e hawwa se mukarbat ka irada karte to unhen pak v pakiza hone ki takid framate .
yahan tak ki voh nur hjarate hawwa ke rahame pak men muntakil ho gaya .
use vakt voh anvar jo hjarate aadam alaihisslam ki peshani men the hjarate hawwa ki peshani men numudar huve .
ayyame haml men hazrat e aadam ,
ne b pase adabo tajim hjarate hawwa se mukarbat tark kar di . yahan tak ki hazrat e shish alaihisslam paida huve to voh nur un ki pusht men muntakil ho gaya .
yeh huzoor swalallaho alaihi vsallm ka mojiza tha ki hjarate shis alaihisslam akele paida huve .
aap ke bad ek batan men joda ( ladka ladki ) paida hota raha
is tarah yah noor pak , pak pushton se pak rahamon men muntaqil hota huva huzoor swalallaho alaihi vsallm ke valide majid hjarate abdullah tak pahuncha .
aur un se bina bar kaule asah ayyame tasharik men juma ki rat ko aap ki valide majida hjarate aamina ke rahame pak men muntakil huva .
isi noor ke pak v saf rakhane ke liye allah taala ne hazrat ke tamam aba v ummahat ko shirko kufr ki najasat aur zina ki aaludgi se pak rakha hai .
isi noor se hazrat ke tamam abao ajdad nihayat hasin v marzay khalike the .
isi noor ki barkat se hjarate aadam alaihisslam malike ke masjud bane
aur isi noor ke vasile se un ki tauba qubal hui . isi ki barkat se hjarate nuh alaihisslam ki kashti tufan men gark hone se bachi .
isi noor ki barkat se hjarate ibrahim alaihisslam par aatishe namarud gulzar ho gai . aur isi nur ke tufail se hazrate ambiyaye sabikin alaihimusslam par allah taala ki inayat aur rahmat najil hui . jab huzur swalallaho alaihi vsallm gjwae tabuk se vapas tasharif laye to .
hjarate abbas rdi allahu anhu ne hujur swalallaho alaihi vsallm ki ijajat se aap ki madajh men chand ashaar arge kiye .
jin men majkur hai ki kashtiye nuh ka tufan se bachana aur hjarate ibrahim par aatashe namarud ka gulzar ho jana hujur swalallaho alaihi vsallm ke nur hi ki barkat se tha . ( khsice kubara hakim tabarani ) hjarate imamul aimma abu hanifa noman bin sabit tabei kufi rdi allahu hujur rasule akarm swalallaho alaihi vsallm ki madajh men un framate han : --
antal lji lau laka ma khulika amarun kalla vala khulical vara lau laka antal lji min nurika lil badaris sana vashamshu
mushirktun binari bahaka antal lji lamma tvassla aadamu min jllatin bika faja
wa huva abaka wa bical khalilu daan phanadat naruhu bardamv
wa kad khmidat binuri sanaka
wa daanka ayyubu lidurrim massahu phaujila annhud durru heena dakaa v bical masihu ata bashirm mukhbirn bisifati husanika madihan liualaka kazalika musa lam yjal mutvassiln bika fil kiyamati muhataman bihimaka val ambiyau wa kullu khalkin fil vara var rusalu val amalaku lahaata livaka ( majmua kascid safa namber 40 ) tarjuma : --
aap ki voh mukadhas zat hai ki agar aap n hote to hargis koi aadami paida n hota .
aur n koi makhluk paida hoti agar aap n hote .
aap voh han ki aap ke nur se chand ko rotioney hai aur surj aap hi ke nure jaiba se chamk raha hai .
aap voh han ki jab aadam ne lagzish ke sabab se aap ka vasila pakada to voh kamayab ho gaye halanki voh aap ke bap han .
aap hi ke vasile se khalil ne dua mangi ,to aap ke rotion nur se aag un par thandi ho gai aur bujh gai aur hazrat ayyub ne apani musibat men aap hi ko pukara to is pukarne par un ki musibat dur ho gai
aur esa alaihisslam aap hi ki basharat aur aap hi ki sifate hsana ki khbar dete aur madajh karte huve aaye .
isi tarah musa alaihisslam aap ka vasila pakadne vale aur kiyamat men aap ke subzazar men panah lene vale rahe
aur ambiya aur makhlukat men se har makhluk aur pagamber aur frishte aap ke jhande tale honge .
nurani fool aap swalallaho alaihi vsallm ke kad mubark ka saya n tha .
hakim tirmizi ( mutaffa san e 255 hijari ) ne apani kitab " navadirul usul "
men hjarate zakwan tabei rdi allahu anhu se yeh hadis ko naqal ki hai ki
soorj ki dhup aur chand ki chandani men rasulullah swalallaho alaihi vsallm ka saya nahi padta tha .
imam ibne subea rdi allahu anhu ka kaul hai ki yah aap swalallaho alaihi vsallmake khsice men se hai ki aap ka saya zamin par nahi padta tha
aur aap nur the is liye jab aap dhup ya chandani men chalte to aap ka saya nazer n aata tha
aur baz ka kaul hai ki is ki shahid voh hadis hai jis men aap ki is dua ka zicr hai ki aap ne yeh dua mangi :
alla hummaj alu fi kalib nurn wa fi samai nurn v se fi basari nurn wa an yamini nurn wa an yasari nurn wa amami nurn wa khalfi nurn wa fauki nurn v tahati nurn waj alni nura . ( muslim sharif kitabus salatul musafirin babud dua i fis salatul lal wa kiyama )
tarjuma : -- ki khudavanda tu mere tamam aza ( aur mere tamam ataraf ) ko nur bana de . aur aap swalallaho alaihi vsallm ne apani is dua ko is kaul par khatm framaya ki " vj alani nurn " या'नी ya allah ! tu mujh ko sarapa nur bana de . jahir hai ki jab aap sarapa nur the to fir aap ka saya kahan se padta ! isi tarah abdullah bin mubark aur ibnul jauji ne bhi hjarate abdullah bin abbas rdi allahu anhu se rivayat ki hai ki hujur swalallaho alaihi vsallm ka saya nahi tha . ( al muahibul ldunaconiya fi shrah zrakani al fsalul avval 565,567 )
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