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हज़रत मोहम्मद स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम का शजरा ए नसब | hazrat muhammad ka nasab nama
हुजूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम का हालाते नसब व विलादत शरीफ़ पैगम्बर ए इस्लाम हज़रत मोहम्मद मुस्तफा स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम का नसब नामा हिन्दी में पढ़ें।
हुज़ूर का सिलसिलए शजरा ए नसब नामा यह है :-
- सय्यिदना मुहम्मद स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम
- बिन अब्दुल्लाह
- बिन अब्दुल मुत्तलिब
- बिन हाशिम
- बिन अब्दे मनाफ़
- बिन कुसा
- बिन किलाब
- बिन मुर्रह
- बिन काब
- बिन लुई
- बिन गालिब
- बिन फ़िहर
- बिन मालिक
- बिन नज़्र
- बिन किनाना
- बिन खुज़ैमा
- बिन मुदरिका
- बिन इलियास
- बिन मुज़र
- बिन नज़ार
- बिन माद
- बिन अदनान
( अस्सीरतुन नबवियतुल इब्नुल हिशाम )
Huzoor ka nasab nama |
खानदानी शराफ़त व सियादत
रसूलुल्लाह स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम का खानदान अरब में हमेशा से मुमताज़ व मुअज्ज़ज़ था। यानी ऊंचा और इज्जत वाला खानदान था।
नज़्र ( या फ़हर ) का लक़ब कुरैश था इस वजह से इस की औलाद को कुरैशी और ख़ानदान को कुरैश कहने लगे और इस से ऊपर वाले किनानी कहलाये।
कुरैश की वजहे तस्मिय्या में बहुत से मुख्तलिफ़ कौ़ल हैं जिन के बारे में लाखना मुख़्तसर में गुन्जाइश नहीं।
सहीह बुखारी में है कि रसूलुल्लाह स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि
मैं बनी आदम के बेहतरीन तबकात से भेजा गया एक कुर्न बाद दूसरे कुर्न के यहां तक कि मैं उस कुर्न से जिस से कि हुवा ।
( सहीह बुखारी किताबुल मनाकि़ब बाब सिफतुन नबी स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम हदीस 3557 )
मुस्लिम शरीफ में है कि अल्लाह तआला ने हज़रते इस्माईल अलैहिस्सलाम की औलाद में से किनाना को बरगुज़ीदा बनाया
और किनाना में से कुरैश को और कुरैश में से बनी हाशिम को बनी हाशिम में से मुझ को बरगुजीदा बनाया। ( सहीह मुस्लिम शरीफ किताबुल फजा़यल फस्ल नस्बुन नबी हदीस 2276)
इसी तरह तिर्मिज़ी शरीफ़ में बा सनदे हसन आया है कि अल्लाह तआला ने ख़ल्क़त को पैदा किया तो
मुझ को उन के सब से अच्छे गिरोह में बनाया फिर कबीलों को चुना तो मुझ को सब से अच्छे क़बीले में बनाया ।
फिर घरों को चुना तो मुझे उन के सब से अच्छे घर में बनाया ।
पस मैं रूह व जात और अस्ल के लिहाज़ से इन सब से अच्छा हूं। ( सुनन तिरमिजी किताबुल मनाकि़ब बाब मा जाआ फदलुन नबी हदीस 3627)
किसी ने क्या अच्छा कहा है :
लम यख़लुकि़र रह़मानु मिस्ला मोहम्मदिन
अइदंव वा इल्मी अन्नहु ला यख़लुकु
तर्जुमा:-
खुदा ने हज़रत मोहम्मद स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम का मिस्ल कभी पैदा नहीं किया।
और मुझे इल्म है कि वोह आप का मिस्ल पैदा न करेगा ।
( हयातुल हइवानुल कुबरा खिलाफते अबु बक्र सिद्दीक जिल्द 1 सफा 75)
नज़्र के बाद फ़हर अपने वक्त में रईस अरब था ।
इस का हम असर हस्सान बिन अब्दे कुलाल हिमयरी चाहता था।
कि काबा के पथ्थर उठा कर यमन में ले जाए ताकि हज के लिये वहीं काबा बना दिया जाए।
जब वो इस इरादे से हिमयर वगैरा को साथ ले कर यमन से आया ।
और मक्का से एक मन्जिल पर मकामे नख्ला में उतरा तो फ़िहर ने कबाइले अरब को जमा कर के उस का मुकाबला किया ।
हिमयर को शिकस्त हुई , हुस्सान गिरिफ्तार हुवा और तीन 3 बरस के बाद फ़िदया दे कर रिहा हुवा ।
इस वाकिए से फ़िहर की हैबत व अज़मत का सिक्का अरब के दिलों पर जम गया ।
फ़िहर के बाद कुस्सा बिन किलाब ने निहायत इज्जतो इक्तिदार हासिल किया ।
कुस्सा मजकूर आप स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम के जद्दे खामिस हैं इन का असली नाम जैद था ।
किलाब की वफ़ात के बाद इन की वालिदा फ़ातिमा ने बनू उज़रा में से एक शख्स रबीआ बिन हिज़ाम से शादी कर ली थी।
वोह फ़ातिमा को अपनी विलायत यानी मुल्के शाम को ले गया।
फातिमा अपने साथ ज़ैद को भी ले गई चूंकि जैद अभी बच्चे ही थे।
और अपने वतन मानूस से दूर जा रहे थे इस लिये उन को कुस्सा कहने लगे ।
जब कुस्सा जवान हो गए तो फिर मक्का में अपनी कौम में आ गए और वहीं हुलैल खुज़ाई की बेटी हुबई से शादी कर ली ।
हुलैल उस वक्त काबे का मुतवल्ली था उस के मरने पर तौलियत कुस्सा के हाथ आई।
उस ने खुजाआ को बैतुल माल से निकाल दिया।
और कुरैश को घाटियों पहाड़ियों और वादियों से जमा कर के मक्का के अन्दर और बाहर आबाद किया।
इस वजह से कुस्सा को मुजतमिअ भी कहते हैं ।
कुस्सा ने कई कारहा ए नुमायां काम किये चुनान्चे , एक कमेटी घर का़यम किया जिसे दारुन्नदवा कहते हैं ।
अहम तरीन काम में मशवरें या मिटिंग यहीं करते थे। लड़ाई के लिये झन्डा यहीं तय्यार होता था ।
निकाह और दीगर तक़रीबात की रस्में यहीं अदा करते।
हरम की हाजियों का खाना पानी का इन्तजाम व हाजियों को जमजम का पानी पिलाने का काम भी कुस्सा ही ने का़यम किया।
मौसमे हज में कुरैश को जमा कर के यह तक़रीर की जिसका मज़मूम यह है :-
तुम खुदा के पड़ोसी और खुदा के घर के मुतवल्ली हो।
और हुज्जाज़ खुदा के मेहमान और खुदा के घर के ज़ाइरीन हैं।
वो और मेहमानों की निस्बत तुम्हारी मेजबानी के ज़्यादा मुस्तहिक हैं ।
इस लिये हज्ज के दौरान उन के खाने पीने के लिये कुछ मुक़र्रर करो ।
इस पर कुरैश ने सालाना रक़म मुक़र्रर की जिस से हर साल अय्यामे मिना में हाजियों को खाना खिलाया जाता था।
चमड़ा के लिये कुस्सा ने चर्मी हौज़ बनाए जो अय्यामे हज में काबा के सेहन में रखे जाते थे ।
इन हौज़ों के भरने के लिये मक्का के कुओं का पानी मशकों में ऊंटों पर लाया जाता था ।
इन मनासिब के इलावा कुरैश के बाकी शरफ़ भी यानी हिजाबत ए काबा की कलीद बरदारी व तौलियत और लिवाअ अलम बन्दी और लश्कर कुस्सा के हाथ में थे।
और कुस्सा ही पहले शख़्स हैं जिन्हों ने मुज़्दलिफ़ा पर रोशनी की ताकि लोगों को अरफ़ात से नज़र आ जाए ।
कुस्सा के चार (4) लड़के थे।
- अब्दुद्दार ।
- अब्दे मनाफ़।
- अब्दुल उज्जा ।
- अब्द
- तख़्मुर ।
- बर्रह थीं ।
अब्दुद्दार अगर्चे उम्र में सब से बड़ा था मगर शराफ़तो वजाहत में अपने से भाइयों के हम पाया न था।
और अब्दे मनाफ़ तो सब से अशरफ़ थे।
यह हुज़ूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम के जद्दे राबिअ थे इन का असली नाम मुग़ीरा था ।
रसूलुल्लाह स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम के नूर की झलक इन की पेशानी में ऐसी थी कि इन को क़मरुल बहा ( वादिये मक्का का चांद ) कहा करते थे ।
जब कुस्सा बहुत बूढ़े हो गए तो उन्हों ने अब्दुद्दार से कहा कि मैं तुझे तेरे भाइयों के बराबर करता हूं।
यह कह कर हरम शरीफ़ के तमाम मनासिब उस के सिपुर्द कर दिये ।
कुस्सा की हैबत के सबब से उस वक्त किसी ने एतराज़ न किया ।
मगर कुस्सा के बाद जब अब्दुद्दार और अब्दे मनाफ़ का भी इन्तिका़ल हो चुका तो अब्द के बेटों ने जिनके नाम यह है।
- हाशिम ।
- अब्दे शम्स ।
- मुत्तलिब ।
- नौफुल ।
और चाहा कि हरम शरीफ़ के वज़ाइफ़ अब्दुद्दार की औलाद से छीन लें ।
इस पर कुरैश में इख़्तिलाफ़ पैदा हो गया।
- बनू असद बिन उज़्ज़ा
- और बनू ज़हरा बिन किलाब
- और बनू तैम बिन मुर्रह
- और बनू हारिस बिन फ़िहर यह सब बनू अब्दे मनाफ़ की तरफ़ हों गये।
- और बनू मख़्ज़ूम
- और बनू सम
- और बनू जुमह और
- बनू अदी बिन काब दूसरी तरफ हो गए ।
बनू अब्दे मनाफ़ और इन के अतराफ ने कसमें खा कर मुआहदा किया कि हम एक दूसरे का साथ न छोड़ेंगे।
और यक जहती के इज़हार के लिये एक प्याला खुश्बू से भर कर हरम शरीफ़ में रखा और सब ने उस में अपनी उंगलियां डुबोई इस लिये इन पांच 5 क़बाइल को मुतय्यबीन कहते हैं ।
इसी तरह दूसरे फ़रीक़ ने बा हम मुआहदा किया।
और एक प्याला खून से भर कर उस में अपनी उंगलियां डूबो कर चाट लीं इस लिये इन पांच 5 कबाइल को लअकुतुद्दम ( खून के चाटने वाले ) कहते हैं ।
गरज़ हर दो फ़रीक़ लड़ाई के लिये तय्यार हो गए ।
मगर इस बात पर सुलह हो गई कि सकायत व रिफ़ादत व कियादत बनू अब्दे मनाफ़ को दी जाए ।
और हिजाबत व लिवा व नदवा ब दस्तूर बनू अब्दुद्दार के पास रहे।
चुनान्चे , हाशिम को जो भाइयों में सब से बड़े थे सकायत व रिफादत मिली ।
हाशिम के बा'द मुत्तलिब को और मुत्तलिब के बाद अब्दुल मुत्तलिब और अब्दुल मुत्तलिब के बाद अबू तालिब को मिली और अबू तालिब ने अपने भाई अब्बास के हवाले कर दी।
क़यादत अब्दे शम्स को दी गई अब्दे शम्स बाद उस के बेटे उमय्या को फिर उमय्या के बेटे हर्ब को फिर हुर्ब के बेटे अबू सुफयान को अता हुई।
इस लिये जंगे उहुद और अहज़ाब में अबू सुफ़यान ही काइद था ।
जंगे बद्र के वक्त वोह क़ाफ़िलए कुरैश के साथ था इस लिये उतबा बिन रबीआ बिन अब्दे शम्स अमीरुल जैश था ।
दारुन्नदवा अब्दुद्दार की औलाद में रहा यहां तक कि इकरमा बिन आमिर बिन हाशिम बिन अब्दे मनाफ़ बिन अब्दुद्दार ने हज़रते मुआविय्या के हाथ फरोख्त कर दिया ।
उन्हों ने इसे दारुल अमारत बना लिया और आखिरे कार हरम में शामिल हो गया ।
हिजाबत आज तक अब्दुद्दार की औलाद में है और वो बनू शैबा बिन उस्मान बिन अबी तलहा बिन अब्दुल उज्ज़ा बिन उस्मान बिन अब्दुद्दार हैं ।
लिवा भी उसी की औलाद में रहा चुनान्चे , जंगे उहुद में झन्डा उन ही के हाथ में था ।
जब एक क़त्ल हो जाता तो दूसरा उस की जगह लेता इस तरह उन की एक जमाअत क़त्ल हो गई ।
हाशिम ने मन्सबे रिफ़ादत व सकायत को निहायत खूबी से अन्जाम दिया ज़िल हिज्जा की पहली तारीख को
सुबह के वक्त काबा से पुश्त लगा कर यूं खिताब करते थे : " ऐ कुरैश के गिरोह तुम खुदा के घर के पड़ोसी हो खुदा ने बनी इस्माईल में से तुम को इस की तौलियत का शरफ़ बख़्शा है और तुम को इस के पड़ोस के लिये खास किया है ।
खुदा के ज़ाइरीन तुम्हारे पास आ रहे हैं जो उस के घर की ताज़ीम करते हैं ।
पस वो खुदा के मेहमान हैं और खुदा के मेहमानों की मेजबानी का हक़ सब से ज़्यादा तुम पर है।
इस लिये तुम खुदा के मेहमानों और उस के घर के ज़ाइरीन का इकराम करो जो ।
हर एक शहर से तीरों जैसी लागुर और अन्दाम सबुक ऊंटनियों पर जूलीदामू और गुबार आलूदा आ रहे हैं ।
इस घर के रब की क़सम ! अगर मेरे पास इस काम के लिये काफ़ी सरमाया होता तो मैं तुम्हें तक्लीफ़ न देता मैं अपने कसबे हुलाल की कमाई में से दे रहा हूं ।
तुम में से भी जो चाहे ऐसा करे ।
मैं इस घर की हुरमत का वासिता दे कर गुज़ारिश करता हूं कि जो शख्स बैतुल्लाह के ज़ाइरीन को अपने माल से दे , वोह ब जुज़ हलाल की कमाई के न हो ।
इस तक़रीर पर कुरैश अपने हलाल मालों में से दिया करते और दारुन्नदवा में जम्भु कर देते ।
हाशिम का असली नाम अम्र था उलू रुतबा के सबब अम्र अल अला कहलाते थे ।
निहायत मेहमान नवाज़ थे , इन का दस्तरख्वान हर वक्त बिछा रहता था ।
एक साल कुरैश में सख्त कहत अकाल पड़ा ।
यह मुल्के शाम से खुश्क रोटियां खरीद कर अय्यामे हज में मक्के में पहुंचे ।
और रोटियों का चूरा कर के ऊंटों के गोश्त के शोरबे में डाल कर सरीद बनाया और लोगों को पेट भर कर खिलाया ।
उस दिन से इन को हाशिम ( रोटियों का चूरा करने वाला ) कहने लगे ।
अब्दे मनाफ़ के साहिबजादों ने कुरैश की तिजारत को बहुत तरक्की दी और दुवुले खारिजा के साथ तअल्लुकात पैदा कर के इन से कारवाने कुरैश के लिये फ़रामीने हिफ़्ज़ो अम्न हासिल किये ।
चुनान्चे , हाशिम ने कैसरे रूम और मलिके गुस्सान से और अब्दे शम्स ने हबशा के बादशाह नजाशी से ।
और नौफ़ल ने अकासिरहे इराक़ से और मुत्तलिब ने यमन के शाह हिमयर से इसी किस्म के फ़रमान लिखवा लिये ।
इस के बाद हाशिम ने कुरैश के लिये साल में दो तिजारती सफ़र मुक़र्रर किये इस लिये कुरैश मौसिमे सर्मा में यमन व हबशा और गर्मा में इराक़ व शाम में जाते।
और ऐशियाए कोचक के मशहूर शहर अन्कुरा ( अंगूरा ) तक पहुंच जाते ।
हाशिम की पेशानी में नूरे मुहम्मदी चमक रहा था ।
अहबार में से जो आप को देखता आप के हाथ को बोसा देता । कबाइले अरब व अहबार में से आप को शादी के पयाम आते मगर आप इन्कार कर देते ।
एक दफ़ा ब गरजे तिजारत आप मुल्के शाम को गए । रास्ते में मदीने में बनू अदी बिन नज्जार में से एक शख़्स अम्र बिन जैद बिन लबीद खज़रजी के यहां ठहरे ।
उस की साहिबजादी सलमा हुस्नो सूरत व शराफ़त में अपनी क़ौम की तमाम औरतों में मुम्ताज़ थी ।
आप ने उस शादी कर ली । मगर अम्र ने हाशिम से यह अहद लिया कि सलमा जो औलाद जनेगी वोह अपने मैके में जनेगी ।
शादी के बाद हाशिम शाम को चले गए ।
जब वापस आए तो सलमा को अपने साथ मक्का में ले आए ।
हम्ल के आसार ब खूबी महसूस हुवे तो सलमा को मदीने में छोड़ कर आप शाम को चले गए ।
और वहीं गज़्ज़ा में पच्चीस साल की उम्र में इन्तिकाल किया और गुज्जा ही में दफ्न हुये ।
सलमा के हां एक लड़का पैदा हुवा जिस के सर में कुछ सफ़ेद बाल थे इस लिये इस का नाम शैबा रखा गया ।
और शैबतुल हम्द भी कहते थे ।
हम्द की निस्बत इस की तरफ इस उम्मीद पर की गई कि इस से अफआले नेक सरजूद होंगे ।
जिस के सबब से लोग इस की तारीफ़ किया करेंगे ।
शैबा सात 7 या आठ 8 साल मदीने ही में रहे फिर मुत्तलिब को ख़बर लगी तो भतीजे को लेने के लिये मदीने में पहुंचे ।
जब मदीने से वापस आए तो शैबा को अपने पीछे ऊंट पर सवार कर लिया ।
शैबा के कपड़े फटे पुराने थे । जब चाश्त के वक्त मक्का में दाखिल हुवे तो लोगों ने मुत्तलिब से पूछा कि यह कौन हैं ?
मुत्तलिब ने कहा :- यह मेरा अब्द ( गुलाम ) है इस वजह से शैबा को अब्दुल मुत्तलिब कहने लगे ।
मुत्तलिब के बाद अहले मक्का की रियासत अब्दुल मुत्तलिब को मिली और रिफादत व सकायत उन के हवाले हुई ।
रसूलुल्लाह का नूर उन की पेशानी में चमक रहा था उन से कस्तूरी की सी खुश्बू आती थी ।
जब कुरैश को कोई हादसा पेश आता तो अब्दुल मुत्तलिब को कोहे शैबा पर ले जाते और उन के वसीले से बारगाहे रब्बुल इज्ज़त में दुआ मांगते।
और अय्यामे कहत (अकाल) में उन के वासिते से तलबे बारां करते मतलब बारिश के लिए दुआ करते और वोह दुआ कबूल होती ।
अब्दुल मुत्तलिब पहले शख्स हैं जो तहन्नुस किया करते थे या'नी हर साल माहे रमज़ान में कोहे हिरा में जा कर खुदा की इबादत में गोशा नशीन रहा करते ।
- वोह मवहिहद थे ।
- शराब व जिना को हराम जानते थे ।
- निकाहे महारिम से और ब हालते बरहंगी तवाफ़े काबा से मना करते ।
- लड़कियों के क़त्ल से रोकते ।
- चोर का हाथ काट देते ।
- बड़े मुस्तजाबुद्दावात और फुय्याज़ थे ।
- अपने दस्तरख्वान से पहाड़ियों की चोटियों पर परन्दे चरिन्दे को खिलाया करते थे ।
इस लिये इन्हें मुतइमुत्तैर ( परिन्दों को खिलाने वाले ) कहते थे ।
यह सब कुछ नूरे मुहम्मदी की बरकत से था ।
अब्दुल मुत्तलिब ने चाहे जम ज़म को नए सिरे से खुदवा कर दुरुस्त किया ।
इस का किस्सा यूं है कि:-
हज़रते इस्माईल के बाद काबे की तौलियत नाबित बिन इस्माईल के सिपुर्द हुई नाबित के बाद नाबित का नाना मज्जाज़ बिन अम्र जुरहुमी मुतवल्ली हुवा ।
जब बनू जुरहुम हरम शरीफ की बे हुरमती करने और काबे के माल अपने खर्च में लाने लगे ।
तो बनू बक्र बिन अब्दे मनाफ़ बिन किनाना और ग़बशान खुज़ाई ने उन को मक्का से यमन की तरफ़ निकाल दिया ।
उस वक्त से खुजाआ मुतवल्ली हुवे । खुजाआ में से अखीर मुतवल्ली हुलैल बिन हबशिय्या था।
जिस के बाद तौलियत कुस्सा के हाथ आई जैसा कि पहले मजकूर हुवा ।
अम्र बिन हारिस बिन मज्ज़ाज़ जुरहुमी ने जाते वक्त काबे के हर दो गज़ाले तिलाई और हजर रुक्न को ज़म ज़म में डाल कर उसे ऐसा बन्द कर दिया था।
कि मुद्दत गुज़रने पर किसी को उस का निशान तक मालूम न रहा ।
आखिरे कार अब्दुल मुत्तलिब को ख़्वाब में उस के खोदने का इशारा हुवा ।
अब्दुल मुत्तलिब के हां उस वक्त सिर्फ एक साहिब जादा हारिस था उसी को साथ ले कर खोदने लगे ।
जब कुएं का बालाई हिस्सा नज़र आया तो खुशी में तक्बीर कही ।
खोदते खोदते हर दो गज़ाल और कुछ तल्वारें और जिरहें बर आमद हुईं ।
यह देख कर कुरैश ने कहा कि इस में हमारा भी हक़ है ।
अब्दुल मुत्तलिब ने बजाए मुकाबले के इस मुआमले को कुर्जा अन्दाज़ी पर छोड़ा।
चुनान्चे , हर दो ग़ज़ाल का कुआं काबे पर , तल्वारों और जिरहों का कुआ अब्दुल मुत्तलिब पर पड़ा और कुरैश के नाम कुछ न निकला ।
इस तरह अब्दुल मुत्तलिब ने जम ज़म को खोद कर दुरुस्त किया ।
उस वक्त से जम ज़म ही का पानी हाजियों के काम आने लगा और मक्का के पानी की ज़रूरत न रही ।
ज़म ज़म के खोदने में अब्दुल मुत्तलिब ने अपने मुआविनीन की किल्लत महसूस कर के यह मन्नत मानी थी।
कि अगर मैं अपने सामने दस बेटों को जवान देख लूं तो इन में से एक को खुदा की राह में कुरबान करूंगा।
जब मुराद बर आई तो ईफ़ाए नज़्र के लिये दसों 10 बेटों को ले कर काबा में आए ।
और अपनी नज़्र का हाल बयान किया और कहा कि इन दसों पर पर्चा डालो , देखो किस का नाम निकलता है ?
चुनान्चे , हर एक ने अपने अपने नाम का पर्चा दिया ।
एक तरफ़ कुर्जा निकाल रहा था दूसरी तरफ अब्दुल मुत्तलिब यूं दुआ कर रहे थे : " या अल्लाह !
मैं ने इन में से एक की कुरबानी की मन्नत मानी थी अब मैं इन पर कु अन्दाज़ी करता हूं , तू जिसे चाहता है उस का नाम निकाल ।
इत्तिफ़ाक़ से अब्दुल्लाह का नाम निकला जो रसूलुल्लाह के वालिद और अब्दुल मुत्तलिब को सब बेटों में प्यारे ।
अब्दुल मुत्तलिब छुरी हाथ में ले कर उन को कुरबान गाह की तरफ ले चले मगर कुरैश और अब्दुल्लाह के भाई मानेअ हुवे।
आखिरे कार अब्दुल्लाह और दस 10 ऊंटों पर पर्चा डाला गया के इत्तिफ़ाक़ यह कि अब्दुल्लाह ही के नाम पर पर्चा निकला।
फिर अब्दुल्लाह और बीस 20 ऊंटों पर पर्चा डाला गया मगर नतीजा वही निकला ।
बढ़ाते बढ़ाते सौ 100 ऊंटों पर नौबत पहुंची तो पर्चा ऊंटों पर निकला।
चुनान्चे , अब्दुल मुत्तलिब ने सौ 100 ऊंट कुरबानी किये
और अब्दुल्लाह बच गए इसी वासिते हुज़ूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया :-
यानी मैं दो ज़बीह ( इस्माईल व अब्दुल्लाह ) का बेटा हूं ।
अब्दुल्लाह की शादी जब अब्दुल मुत्तलिब ऊंटों की कुरबानी से फारिग हुवे तो अब्दुल्लाह की फ़िक्र हुई।
अब्दुल्लाह नूरे मुहम्मदी के सबब कमाले हुस्नो जमाल रखते थे । कजीए जब्द से और मशहूर हो गए ।
कुरैश की औरतें इन की तरफ माइल थीं , मगर अल्लाह तआला ने इन को पर्दए इफ्फ़त व इस्मत में महफूज़ रखा ।
अब्दुल मुत्तलिब इन के लिये ऐसी औरत की तलाश में थे जो शरफ नसबो हसब व इफ़्फ़त में मुमताज़ हो ।
इस लिये वोह इन को बनू जोहरा के सरदार वहब बिन अब्दे मनाफ़ बिन जोहरा बिन किलाब बिन मुर्रह के यहां ले गए।
वहब की बेटी आमिना जोहरिय्या करशिय्या नसब व शरफ़ में कुरैश की तमाम औरतों से अफ़ज़ल थीं ।
अब्दुल मुत्तलिब ने वहब को अब्दुल्लाह की शादी का पैगाम दिया और वहीं अक्द हो गया ।
बाज़ कहते हैं कि आमना अपने चचा वुहैब के पास रहती थीं अब्दुल मुत्तलिब ने वुहैब को पैगाम दिया और निकाह हो गया।
और इसी मजलिस में खुद अब्दुल मुत्तलिब ने वुहैब की साहिबजादी हाला से शादी की ।
अब्दुल मुत्तलिब के यहां ब क़ौले इब्ने हिशाम पांच 5 बीवियों से दस 10 लड़के और छ: 6 लड़कियां पैदा हुई जिन की तफ्सील यूं है :
(1) ज़ौजा का नाम :-
समरा बिन्ते जुन्दब हवाज़िनिया
औलाद का नाम :- हारिस
(2) ज़ौजा का नाम :-
लुबना बिन्ते हाजिर खुज़ाइय्या
औलाद का नाम :-
अबू लहब ( असली नाम अब्दुल उज्जा )
(3) ज़ौजा का नाम :-
फ़ातिमा बिन्ते अम्र मखजूमिया
औलाद का नाम :-
- अबू तालिब ( असली नाम अब्दे मनाफ़ )
- जुबैर।
- अब्दुल्लाह ( वालिदे रसूलुल्लाह स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम )
- बैजा।
- आतिका।
- बर्रह।
- उमैमा।
- अरवा।
(4) ज़ौजा का नाम :-
हाला बिन्ते वुहैब जोहरिया
औलाद का नाम :-
- हुम्जा।
- मुक़व्वम।
- हज्ल।
- सफ़िय्या।
(5) ज़ौजा का नाम :-
नुतैला बिन्ते खुब्बाब खज़रजिय्या
औलाद का नाम :-
- अब्बास।
- ज़िरार।
जब नूरे मुहम्मदी हज़रते आमना रदि अल्लाहु अन्हा के रहमे मुबारक में मुन्तकिल हो गया तो कई अजाइबात जुहूर में आए ।
उस साल कुरैश में सख़्त कहत साली थी , इस नूर की बरकत से ज़मीन पर जा बजा रूईदगी की मखमली चादर नज़र आने लगी ।
दरख्तों ने अपने फल झुका दिये और मक्का में इस क़दर फ़राख़ साली हुई कि इस साल को ( स न तुल फत्ही वल इब्तिहाजि) कहने लगे ।
कुरैश का हर एक चार पाये फ़सीह अरबी ज़बान में हज़रते आमना रदि अल्लाहु अन्हा के हम्ल की ख़बर देने लगा ।
बादशाहों के तख़्त और बुत औंधे गिर पड़े , मशरिको मगरिब के वहशी चारे परिन्दे और दरयाई जानवरों ने एक दूसरे को खुश खबरी दी ।
जिन्न पुकार उठे कि हुजूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम का ज़माना करीब आ गया ।
कहानत की आबरू जाती रही और रुहबानिय्यत पर ख़ौफ़ तारी हुवा ।
हुजूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम की वालिदए माजिदा ने ख़्वाब में सुना कि कोई कह रहा है :-
तेरे पेट में जहान का सरदार है
जब वो पैदा हों तो उन का नाम मुहम्मद रखना स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम।
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हम सब की वजह से किसी के इल्म में इजाफा का सबब बन सकें।
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NASAB PROPHET MOHAMMAD swalallaaho alaihi wasallam |
Shajra e Nasab of Rasool Allah Hazrat Muhammad Sawalalaho Alahi Wassalam, shajra e nasab prophet muhammad, Rasool ka nasab, shajra e nasab prophet muhammad, hazrat muhammad s.a.w ka shajra nasab in urdu pdf, shajra e nasab hazrat adam to hazrat muhammad pdf, nabi ka nasab nama pdf, hazrat muhammad ka nasab nama, shajra nasab of hazrat muhammad in english, shajra nasab hazrat muhammad by tariq jameel, shajra e nasab in urdu
Shajra e Nasab of Rasool Allah Hazrat Muhammad Sawalalaho Alahi Wassalam
hujoor svalallaaho alaihi vasallam ka haalaate nasab va vilaadat shareef
paigambar e islaam hazarat mohammad mustapha svalallaaho alaihi vasallam ka nasab naama hindee mein padhen.
huzoor ka silasile nasab ye hai :-
- sayyidana muhammad
- bin abdullaah
- bin abdul muttalib
- bin haashim
- bin abde manaaf
- bin kusa
- bin kilaab
- bin murrah
- bin kaab
- bin luee
- bin gaalib
- bin fihar
- bin maalik
- bin nazr
- bin kinaana
- bin khuzaima
- bin mudarika
- bin iliyaas
- bin muzar
- bin nazaar
- bin maad
- bin adanaan
( asseeratun nabaviyatul ibnul hishaam )
khaandaane sharaafat wa siyaadat
rasoolullaah svalallaaho alaihi vasallam ka khaanadaan arab mein hamesha se mumataaz va muajzaz tha.
nazr ( ya fahar ) ka laqab kuraish tha is vajah se is kee avalaad ko kuraishee aur khaanadaan ko kuraish kahane lage aur is se oopar vaale kinaanee kahalaaye.
kuraish kee vajahe tasmiyya mein bahut se mukhtalif kaula hain jin ke baare mein laakhana mukhtasar mein gunjaish nahin.
saheeh bukhaaree mein hai ki rasoolullaah svalallaaho alaihi vasallam ne faramaaya ki
main banee aadam ke behatareen tabakaat se bheja gaya
ek kurn baad doosare kurn ke
yahaan tak ki main us kurn se jis se ki huva .
( saheeh bukhaaree kitaabul manaakiba baab siphatun nabee svalallaaho alaihi vasallam hadees 3557 )
muslim sharif mein hai ki allaah taaala ne hazarate ismaeel alaihissalaam kee aulaad mein se kinaana ko baraguzeeda banaaya
aur kinaana mein se kuraish ko aur kuraish mein se banee haashim ko banee haashim mein se mujh ko baragujeeda banaaya
( saheeh muslim shareeph kitaabul phajayal phasl nasbun nabee hadees 2276)
isee tarah tirmizee shareef mein ba sanade hasan aaya hai .
ki allaah taaala ne khalqat ko paida kiya to mujh ko un ke sab se achchhe giroh mein banaaya
Fir kabeelon ko chuna to mujh ko sab se achchhe qabeele mein banaaya .
Fir gharon ko chuna to mujhe un ke sab se achchhe ghar mein banaaya ,
pas main rooh va jaat aur asl ke lihaaz se in sab se achchha hoon ( sunan tiramijee kitaabul manaakiba baab ma jaa phadalun nabee hadees 3627)
kisee ne kya achchha kaha hai :-
lam yakhalukira rahmaanu misla mohammadin
aidanv va ilmee annahu la yakhaluku
tarjuma:-
khuda ne hazarate muhammad svalallaaho alaihi vasallam ka misl kabhee paida nahin kiya aur mujhe ilm hai ki voh aap ka misl paida na karega .
( hayaatul haivaanul kubara khilaaphate abu bakr siddeek jild 1 sapha 75)
nazr ke baad fahar apane vakt mein raees arab tha ,
is ka ham asar hassaan bin abde kulaal himayaree chaahata tha ki kaaba ke paththar utha kar yaman mein le jae
taaki haj ke liye vaheen kaaba bana diya jae.
jab vo is iraade se himayar vagaira ko saath le kar yaman se aaya aur makka se ek manjil par
makaame nakhla mein utara to fihar ne kabaile arab ko jama kar ke us ka mukaabala kiya .
himayar ko shikast huee , hussaan giriphtaar huva aur teen baras ke baad fidaya de kar riha huva .
is vaakie se fihar kee haibat va azamat ka sikka arab ke dilon par jam gaya .
fihar ke ba da kussa bin kilaab ne nihaayat ijjato iktidaar haasil kiya .
kussa majakoor aap svalallaaho alaihi vasallam ke jadde khaamis hain in ka asalee naam jaid tha .
kilaab kee vafaat ke baad in kee vaalida faatima ne banoo uzara mein se ek shakhs rabeea bin hizaam se shaadee kar lee thee.
voh faatima ko apanee vilaayat yaanee mulke shaam ko le gaya .
Faatima apane saath zaid ko bhee le gaee choonki jaid abhee bachche hee the
aur apane vatan maanoos se door ja rahe the is liye un ko kussa kahane lage .
jab kussa javaan ho gae to phir makka mein apanee kaum mein aa gae
aur vaheen hulail khuzaee kee betee hubee se shaadee kar lee .
hulail us vakt kaabe ka mutavallee tha us ke marane par tauliyat kussa ke haath aaee.
us ne khujaa ko baitul maal se nikaal diya aur kuraish ko ghaatiyon pahaadiyon
aur vaadiyon se jama kar ke makka ke andar aur baahar aabaad kiya
is vajah se kussa ko mujatami bhee kahate hain .
kussa ne kaee kaaraha e numaayaan kaam kiye chunaanche ,
ek kametee ghar kaim kiya jise daarun nadava kahate hain .
aham tareen kaam mein mashavaren ya miting yaheen karate the.
ladaee ke liye jhanda yaheen tayyaar hota tha .
nikaah aur deegar taqareebaat kee rasmen yaheen ada karate haram kee haajiyon ka khaana paanee ka intajaam
va haajiyon ko zam zam ka paanee pilaane ka kaam bhee kussa hee ne kaim kiya.
mausame haj mein Quraish ko jama kar ke yah taqareer kee
: “ tum khuda ke padosee aur khuda ke ghar ke mutavallee ho.
aur hujjaaz khuda ke mehamaan aur khuda ke ghar ke zaireen hain vo
aur mehamaanon kee nisbat tumhaaree mejabaanee ke zyaada mustahik hain .
is liye haj ke dauraan un ke khaane peene ke liye kuchh muqarrar karo .
is par Quraish ne saalaana raqam muqarrar kee jis se har saal ayyaame mina mein gareeb haajiyon ko khaana khilaaya jaata tha.
chamada ke liye kussa ne charmee hauz banae jo ayyaame haj mein kaaba ke sehan mein rakhe jaate the .
in hauzon ke bharane ke liye makka ke Khnoon ka paanee mashakon mein oonton par laaya jaata tha .
in manaasib ke ilaava kuraish ke baakee sharaf bhee yaanee hijaabat kaaba kee kaleed baradaaree va
tauliyat aur liva alam bandee aur )
lashkar kussa ke haath mein the.
aur kussa hee pahale shakhs hain jinhon ne muzdalifa par roshanee kee taaki logon ko arafaat se nazar aa jae .
kussa ke chaar (4) ladake (
- abduddaar ,
- abde manaaf ,
- abdul ujja ,
- abd
- takhmur ,
- barrah theen .
abdud daar agarche umr mein sab se bada tha magar sharaafato vajaahat mein apane se bhaiyon ke ham paaya na tha aur abde manaaf to sab se asharaf the.
yah huzoor svalallaaho alaihi vasallam ke jadde raabi the in ka asalee naam mugeera tha .
rasoolullaah ke noor kee jhalak in kee peshaanee mein aisee thee ki in ko qamarul baha ( vaadiye makka ka chaand ) kaha karate the .
jab kussa bahut boodhe ho gae to unhon ne abduddaar se kaha ki main tujhe tere bhaiyon ke baraabar karata hoon.
yah kah kar haram shareef ke tamaam manaasib us ke sipurd kar diye .
kussa kee haibat ke sabab se us vakt kisee ne etaraaz na kiya , magar kussa ke baad jab
abduddaar aur abde manaaf ka bhee intikaal ho chuka to abd ke beton (
- haashim ,
- abde shams ,
- muttalib ,
- nauphul )
aur chaaha ki haram shareef ke vazaif abduddaar kee aulaad se chheen len .
is par kuraish mein ikhtilaaf paida ho gaya banoo asad bin uzza
aur banoo zahara bin kilaab aur banoo taim bin murrah
aur banu haaris bin fihar yah sab banu
abde manaaf kee taraf aur banu makhzoom aur banoo
sam aur banoo jumah aur banoo adee bin kaab doosaree taraph ho gae .
banu abde manaaf aur in ke alaaf ne kasamen kha kar muaahada kiya ki ham ek doosare ka saath na chhodenge.
aur yak jahatee ke izahaar ke liye ek pyaala khushboo se bhar kar haram shareef mein rakha
aur sab ne us mein apanee ungaliyaan duboee is liye in paanch qabail ko mutayyabeen kahate hain .
isee tarah doosare fareeq ne ba ham muaahada kiya
aur ek pyaala khoon se bhar kar us mein apanee ungaliyaan doobo kar chaat leen
is liye in paanch kabail ko laakutuddam ( khoon ke chaatane vaale ) kahate hain .
garaz har do fareeq ladaee ke liye tayyaar ho gae magar is baat par sulah ho gaee ki
sakaayat va rifaadat va kiyaadat banoo abde manaaf ko dee jae
aur hijaabat va liva va nadava ba dastoor banoo abduddaar ke paas rahe.
chunaanche , haashim ko jo bhaiyon mein sab se bade the sakaayat va riphaadat milee .
haashim ke bad muttalib ko aur muttalib ke baad abdul muttalib
aur abdul muttalib ke baad aboo taalib ko milee aur aboo taalib ne apane bhai abbaas ke havaale kar dee.
Qiyaadat abde shams ko dee gaee abde shams baad us ke bete umayya ko phir umayya ke bete
harb ko phir harb ke bete aboo suphayaan ko ata huee.
is liye jange uhud aur ahazaab mein aboo sufayaan hee kaid tha .
jange badr ke vakt voh qaafile kuraish ke saath tha is liye utaba bin rabeea bin abde shams ameerul jaish tha .
daarunnadava abduddaar kee aulaad mein raha yahaan tak ki ikarama bin aamir
bin haashim bin abde manaaf bin abduddaar ne hazarate muaaviyya ke haath pharokht kar diya .
unhon ne ise daarul amaarat bana liya aur aakhire kaar haram mein shaamil ho gaya .
hijaabat aaj tak abduddaar kee aulaad mein hai aur vo banoo shaiba
bin usmaan bin abee talaha bin abdul ujza bin usmaan bin abduddaar hain .
liva bhee usee kee aulaad mein raha chunaanche ,
jange uhud mein jhanda un hee ke haath mein tha .
jab ek qatl ho jaata to doosara us kee jagah leta is tarah un kee ek jamaat qatl ho gaee .
haashim ne mansabe rifaadat va sakaayat ko nihaayat khoobee se anjaam diya
zil hijja kee pahalee taareekh ko subah ke vakt kaaba se pusht laga kar yoon khitaab karate the : " ai kuraish ke
giroh tum khuda ke ghar ke padosee ho khuda ne
bani ismaeel mein se tum ko is kee tauliyat ka sharaf bakhsha hai aur tum ko is ke pados ke liye khaas kiya hai .
khuda ke zaireen tumhaare paas aa rahe hain jo us ke ghar kee taazeem karate hain .
pas vo khuda ke mehamaan hain aur khuda ke mehamaanon kee mejabaanee ka haq sab se zyaada tum par hai.
is liye tum khuda ke mehamaanon aur us ke ghar ke zaireen ka ikaraam karo jo .
har ek shahar se teeron jaisee laagur aur andaam sabuk oontaniyon aur gubaar aalooda aa rahe hain .
is ghar ke rab kee qasam ! agar mere paas is kaam ke liye kaafee saramaaya hota
to main tumhen takleef na deta main apane kasabe hulaal kee kamaee mein se de raha hoon .
tum mein se bhee jo chaahe aisa kare .
main is ghar kee huramat ka vaasita de kar guzaarish karata hoon ki
jo shakhs baitullaah ke zaireen ko apane maal se de ,
voh ba juz hulaal kee kamaee ke na ho .
is taqareer par Quraish apane hulaal maalon mein se diya karate
aur daarun nadava mein jambhu kar dete .
haashim ka asalee naam amr tha uloo rutaba ke sabab amr al ala kahalaate the .
nihaayat mehamaan navaaz the , in ka dastarakhvaan har vakt bichha rahata tha .
ek saal Quraish mein sakht kahat akaal pada .
yah mulke shaam se khushk rotiyaan khareed kar ayyaame haj mein makke mein pahunche .
aur rotiyon ka choora kar ke oonton ke gosht ke shorabe mein daal kar sareed banaaya aur logon ko pet bhar kar khilaaya .
us din se in ko haashim ( rotiyon ka choora karane vaala ) kahane lage .
abde manaaf ke saahibaja don ne quraish kee tijaarat ko bahut tarakkee dee
aur duvule khaarija ke saath taallukaat paida kar ke in se kaaravaane kuraish ke liye faraameene hifzo amn haasil kiye .
chunaanche , haashim ne kaisare room aur malike gussaan se
aur abde shams ne habasha ke baadashaah najaashee se .
aur naufal ne akaasirahe iraaq se aur muttalib ne yaman ke shaah himayar se isee kism ke faramaan likhava liye .
is ke baad haashim ne kuraish ke liye saal mein do tijaaratee safar muqarrar kiye
is liye kuraish mausime sarma mein yaman va habasha aur garma mein iraaq va shaam mein jaate.
aur aishiyae kochak ke mashahoor shahar ankura ( angoora ) tak pahunch jaate .
haashim kee peshaanee mein noore muhammadee chamak raha tha .
ahabaar mein se jo aap ko dekhata aap ke haath ko bosa deta .
kabaile arab va ahabaar mein se aap ko shaadee ke payaam aate magar aap inkaar kar dete .
ek dafa ba garaje tijaarat aap mulke shaam ko gae .
raaste mein madeene mein banoo adee bin najjaar mein se ek shakhs amr bin jaid bin labeed khazarajee ke yahaan thahare .
us kee saahibajaadee salama husno soorat va sharaafat mein apanee qaum kee tamaam auraton mein mumtaaz thee .
aap ne us shaadee kar lee . magar amr ne haashim se yah ahad liya ki salama jo aulaad janegee voh apane maike mein janegee .
shaadee ke baad haashim shaam ko chale gae .
jab vaapas aae to salama ko apane saath makka mein le aae .
haml ke aasaar ba khoobee mahasoos huve to salama ko madeene mein chhod kar aap shaam ko chale gae .
aur vaheen gazza mein pachchees saal kee umr mein intikaal kiya aur gujja hee mein daphn huve .
salama ke haan ek ladaka paida huva jis ke sar mein kuchh safed baal the is liye is ka naam shaiba rakha gaya .
aur shaibatul hamd bhee kahate the .
hamd kee nisbat is kee taraph is ummeed par kee gaee ki is se aphaale nek sarajood honge .
jis ke sabab se log is kee taareef kiya karenge .
shaiba saat ya aath saal madeene hee mein rahe
phir muttalib ko khabar lagee to bhateeje ko lene ke liye madeene mein pahunche .
jab madeene se vaapas aae to shaiba ko apane peechhe oont par savaar kar liya .
shaiba ke kapade phate puraane the . jab chaasht ke vakt makka mein daakhil huve to logon ne muttalib se poochha ki yeh kaun hain ?
muttalib ne kaha : yeh mera abd ( gulaam ) hai is vajah se shaiba ko abdul muttalib kahane lage .
muttalib ke baad ahale makka kee riyaasat abdul muttalib ko milee aur riphaadat va sakaayat un ke havaale huee .
rasoolullaah ka noor un kee peshaanee mein chamak raha tha un se kastooree kee see khushboo aatee thee .
jab kuraish ko koee haadisa pesh aata to abdul muttalib ko kohe shaiba par le jaate aur un ke vaseele se baaragaahe rabbul ijzat mein dua maangate.
aur ayyaame kahat akaal mein un ke vaasite se talabe baaraan karate aur voh dua kabool hotee .
abdul muttalib pahale shakhs hain jo tahannus kiya karate the yanee har saal maahe ramazaan mein kohe hira mein ja kar khuda kee ibaadat mein gosha nasheen raha karate .
voh mavahihad the sharaab va jina ko haraam jaanate the , nikaahe mahaarim se aur ba haalate barahangee tavaafe kaaba se mana karate , ladakiyon • ke qatl se rokate , chor ka haath kaat dete , bade mustajaabuddaavaat aur phuyyaaz the , apane dastarakhvaan se pahaadiyon kee chotiyon par parande charinde ko khilaaya karate the .
is liye inhen mutimuttair ( parandon ko khilaane vaale ) kahate the .
yah sab kuchh noore muhammadee kee barakat se tha . abdul muttalib ne chaahe jam zam ko nae sire se khudava kar durust kiya .
is ka kissa yoon hai ki hazarate ismaeel ke baad kaabe kee tauliyat naabit bin ismaeel ke sipurd huee naabit ke baad naabit ka naana majjaaz bin amr jurahumee mutavallee huva .
jab banoo jurahum haram shareeph kee be huramatee karane aur kaabe ke maal apane kharch mein laane lage .
to banoo bakr bin abde manaaf bin kinaana aur gabashaan khuzaee ne un ko makka se yaman kee taraf nikaal diya .
us vakt se khujaa mutavallee huve . khujaa mein se akheer mutavallee hulail bin habashiyya tha jis ke baad tauliyat kusa ke haath aaee jaisa ki pahale majakoor huva .
amr bin haaris bin majzaaz jurahumee ne jaate vakt kaabe ke har do gazaale tilaee aur hajar rukn ko zam zam mein daal kar use aisa band kar diya tha.
ki muddat guzarane par kisee ko us ka nishaan tak maaloom na raha .
aakhire kaar abdul muttalib ko khvaab mein us ke khodane ka ishaara huva .
abdul muttalib ke haan us vakt sirph ek saahibajaada haaris tha usee ko saath le kar khodane lage .
jab kooen ka baalaee hissa nazar aaya to khushee mein takbeer kahee .
khodate khodate har do gazaal aur kuchh talvaaren aur jihen bar aamad hueen . yah dekh kar kuraish ne kaha ki is mein hamaara bhee haq hai .
abdul muttalib ne bajae mukaabale ke is muaamale ko kurja andaazee par chhoda chunaanche , har do gazaal ka kua kaabe par , talvaaron aur jirahon ka kua abdul muttalib par pada aur kuraish ke naam kuchh na nikala .
is tarah abdul muttalib ne jam zam ko khod kar durust kiya . us vakt se jam zam hee ka paanee haajiyon ke kaam aane laga aur makka ke ke paanee kee zaroorat na rahee .
zam zam ke khodane mein abdul muttalib ne apane muaavineen kee killat mahasoos kar ke yah mannat maanee thee.
ki agar main apane saamane das beton ko javaan dekh loon to in mein se ek ko - khuda kee raah mein kurabaan karoonga .
jab muraad bar aaee to eefae nazr ke liye dason beton ko le kar kaaba mein aae .
aur apanee nazr ka haal bayaan kiya aur kaha ki in dason par kurja daalo , dekho kis ka naam nikalata hai ?
chunaanche , har ek ne apane apane naam ka kurja diya .
ek taraf kurja nikaal raha tha doosaree taraph abdul muttalib yoon dua kar rahe the : " ya allaah ! main ne in mein se ek kee kurabaanee kee mannat maanee thee ab main in par ku andaazee karata hoon , too jise chaahata hai us ka naam nikaal .
ittifaaq se abdullaah ka naam nikala jo rasoolullaah ke vaalid aur abdul muttalib ko sab beton mein pyaare .
abdul muttalib chhuree haath mein le kar un ko kurabaan gaah kee taraph le chale magar kuraish aur abdullaah ke bhaee maane huve ,
aakhire kaar abdullaah aur das oonton par kurja daala gaya ke ittifaaq yah ki abdullaah hee ke naam par kurja nikala.
phir abdullaah aur bees 20 oonton par kurja daala gaya magar nateeja vahee nikala .
badhaate badhaate sau 100 oonton par naubat pahunchee to kurja oonton par nikala , chunaanche , abdul muttalib ne sau 100 oont kurabaanee kiye
aur abdullaah bach gae isee vaasite huzoor svalallaaho alaihi vasallam ne faramaaya : ya nee main do zabeeh ( ismaeel va abdullaah ) ka beta hoon .
abdullaah kee shaadee jab abdul muttalib oonton kee kurabaanee se phaarig huve to abdullaah kee fikr huee |
abdullaah noore muhammadee ke sabab kamaale husno jamaal rakhate the . kajeee jabd se aur mashahoor ho gae .
kuraish kee auraten in kee taraph mail theen , magar allaah taaala ne in ko parde iphfat va ismat mein mahaphooz rakha .
abdul muttalib in ke liye aisee aurat kee talaash mein the jo sharaph , nasabo hasab va iffat mein mumataaz ho .
is liye voh in ko banoo johara ke saradaar vahab bin abde manaaf bin johara
bin kilaab bin murrah ke yahaan le gae vahab kee betee aamina johariyya karashiyya nasab va sharaf mein kuraish kee tamaam auraton se afazal theen .
abdul muttalib ne vahab ko abdullaah kee shaadee ka paigaam diya aur vaheen akd ho gaya .
baaz kahate hain ki aamina apane chacha vuhaib ke paas rahatee theen abdul muttalib ne vuhaib ko paigaam diya aur nikaah ho gaya.
aur isee majalis mein khud abdul muttalib ne vuhaib kee saahibajaadee haala se shaadee kee .
abdul muttalib ke yahaan ba qaule ibne hishaam paanch 5 beeviyon se das 10 ladake aur chh: 6 ladakiyaan paida huee jin kee taphseel yoon hai :
(1) zauja ka naam :-
samara binte jundab havaaziniya
aulaad ka naam :- haaris
(2) zauja ka naam :-
lubana binte haajir khuzaiyya
aulaad ka naam :-
aboo lahab ( asalee naam abdul ujja )
(3) zauja ka naam :-
faatima binte amr makhajoomiya
aulaad ka naam :-
aboo taalib ( asalee naam abde manaaf ) , jubair , abdullaah ( vaalide rasoolullaah svalallaaho alaihi vasallam ) , baija , aatika , barrah , umaima , arava
(4) zauja ka naam :-
haala binte vuhaib johariya
aulaad ka naam :-
humja , muqavvam , hajl , safiyya
(5) zauja ka naam :-
nutaila binte khubbaab khazarajiyya
aulaad ka naam :-
abbaas , ziraar
jab noore muhammadee huzarate aamina radi allaahu anha ke rahame mubaarak mein muntakil ho gaya to kaee ajaibaat juhoor mein aae .
us saal kuraish mein sakht kahat saalee thee , is noor kee barakat se zameen par ja baja rooeedagee kee makhamalee chaadar nazar aane lagee .
darakhton ne apane phal jhuka diye aur makka mein is qadar faraakh saalee huee ki is saal ko ( sa na tul phathee val ibtihaaji) kahane lage .
kuraish ka har ek chaar paaye faseeh arabee zabaan mein hazarate aamina radi allaahu anha ke haml kee khabar dene laga .
baadashaahon ke takht aur but aundhe gir pade , mashariko magarib ke vahashee chaare parinde aur darayaee jaanavaron ne ek doosare ko khush khabaree dee .
jinn pukaar uthe ki hujoor svalallaaho alaihi vasallam ka zamaana kareeb aa gaya .
kahaanat kee aabaroo jaatee rahee aur ruhabaaniyyat par khauf taaree huva .
hujoor svalallaaho alaihi vasallam kee vaalide maajida ne khvaab mein suna ki koee kah raha hai :- tere pet mein jahaan ka saradaar hai
jab vo paida hon to un ka naam muhammad rakhana . svalallaaho alaihi vasallam.
aage insha allaah baad mein post kiya jaayega ab ek apeel jo bhee is post ko padh kar thodee see bhee sheyar kar saken to jaroor kar den ham sab kee vajah se kisee ke ilm mein ijaapha ka sabab ban saken. aur aise hee islaamee jaanakaaree padhane ke lie hamaare blog infomgm par vijit karen.
Shajra e Nasab of Rasool Allah Hazrat Muhammad Sawalalaho Alahi Wassalam, shajra e nasab prophet muhammad, Rasool ka nasab, shajra e nasab prophet muhammad, hazrat muhammad s.a.w ka shajra nasab in urdu pdf, shajra e nasab hazrat adam to hazrat muhammad pdf, nabi ka nasab nama pdf, hazrat muhammad ka nasab nama, shajra nasab of hazrat muhammad in english, shajra nasab hazrat muhammad by tariq jameel, shajra e nasab in urdu
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