माहे रमज़ान , रोज़ा और एतिकाफ
( 1 ) रोज़ा नबुव्वत के पन्द्रहवें ( 15 ) साल यानी दस ( 10 )शव्वाल सन दो ( 2 )हिजरी में फर्ज हुआ ।
तफ्सीरे कबीर और तफ्सीरे अहमदी में है कि हज़रत आदम अलैहिस्सलाम से हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम तक हर उम्मत पर रोज़े फर्ज़ रहे ।
चुनान्चे हज़रत आदम अलैहिस्सलाम पर कमरी महीने की ( 13,14,15 ) तेरहवीं , चौदहवीं और पन्द्रहवीं के रोज़े और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की उम्मत पर आशूरे का रोज़ा फर्ज रहा । बाज़ रिवायतों में है कि सब से पहले हज़रत नूह अलैहिस्सलाम ने रोज़े रखे । ( तफसीरे नईमी , जिः २ )
Etikaf ki Niyat in hindi |
( 2 ) हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि सरकारे कायनात सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमायाः जब माहे रमज़ान शुरू होता है तो आसमान के दरवाजे खोल दिये जाते हैं
और दोज़ख़ के दरवाजे बन्द कर दिये जाते हैं और शयातीन जन्जीरों में जकड़ दिये जाते हैं । ( अनवारुल हदीस )
( 3 ) हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि सय्यिदे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमायाः जो शख़्स ईमान के साथ सवाब की उम्मीद से रोज़ा रखेगा तो उस के अगले पिछले गुनाह बख्श दिये जाएंगे
और जो ईमान के साथ सवाब की नियत से रमज़ान की रातों में कियाम यानी तरावीह की नमाज़ पढ़ेगा तो उस के भी अगले पिछले गुनाह बख़्श दिये जाएंगे और जो ईमान के साथ सवाब की नियत से शबे कद्र में कियाम करेगा उस के भी अगले पिछले गुनाह बख़्श दिये जाएंगे । ( मुस्लिम शरीफ )
( 4 ) हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नबीये करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः जब माहे रमज़ानुल मुबारक की पहली रात होती है तो शयातीन और सरकश जिन्न कैद कर लिये जाते हैं और जहन्नम के दरवाजे बन्द कर दिये जाते हैं ,
इन में से कोई दरवाज़ा खोला नहीं जाता और जन्नत के दरवाजे खोल दिये जाते हैं , इन में से कोई दरवाज़ा बन्द नहीं किया जाता और पुकारने वाला पुकारता है : ऐ भलाई तलब करने वाले मुतवज्जेह हो और ऐ बुराई का इरादा रखने वाले बुराई से दूर रह और अल्लाह तबारक व तआला बहुत से लोगों को दोज़ख़ से आज़ाद करता है और हर रात ऐसा ही होता है । ( तिर्मिज़ी शरीफ )
( 5 ) हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः रमज़ान आया , यह बरकत का महीना है । अल्लाह तबारक व तआला ने इस के रोजे तुम पर फर्ज किये ।
इस में आसमान के दरवाजे खोल दिये जाते हैं और दोज़ख़ के दरवाजे बन्द कर दिये जाते हैं और सरकश शयातीन को तौक पहना दिये जाते हैं और इस में एक रात ऐसी होती है जो हज़ार महीनों से अफज़ल है जो इस की बरकतों से मेहरूम रहा वह बेशक मेहरूम रहा । ( निसाई )
( 6 ) हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि सरकार नबीये मुकर्रम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमायाः मेरी उम्मत को रमज़ान शरीफ़ में पांच चीजें मखसूस तौर पर दी गई हैं जो पहली उम्मतों को नहीं मिलीं ।
एक यह कि उन के मुंह की बू अल्लाह तआला के नज़दीक मुश्क से ज्यादा पसन्दीदा है और दरिया की मछलियां इफ्तार के वक़्त तक दुआ करती हैं और जन्नत हर रोज़ उन के लिये सजाई जाती है ।
फिर हक तआला इरशाद फरमाता है : करीब है कि मेरे बन्दे मशक्कतें अपने ऊपर से फेंक कर तेरी ( जन्नत की ) तरफ आएं और सरकश शयातीन को कैद कर दिया जाता है कि वह रमज़ान में उन बुराइयों की तरफ नहीं पहुंच सकते और रमज़ान की आख़िरी रात में रोज़ादारों के लिये मगफिरत की जाती है । सहाबए किराम ने अर्ज़ कियाः या रसूलल्लाह !
क्या मगफिरत की रात शबे कद्र है ?
फरमायाः नहीं । , बल्कि मज़दूर का काम ख़त्म होने के वक़्त मज़दूरी दे दी जाती है । ( बहकी )
( 7 ) हज़रत उबादा बिन सामित रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने रमज़ानुल मुबारक के करीब इरशाद फरमायाः रमज़ान का महीना आ गया है जो बड़ी बरकत वाला है ।
रब तबारक व तआला इस में तुम्हारी तरफ मुतवज्जह होता है और अपनी ख़ास रहमत नाज़िल फ़रमाता है , ख़ताओं को माफ करता है , दुआ कुबूल करता है , तुम्हारे तनाफुस ( दूसरे के हिर्स में काम करने को तनाफुस कहते हैं ) को देखता है और मलाइका से फन करता है ।
पस अल्लाह को नेकी दिखलाओ । बद नसीब है वह शख्स जो इस माह में भी अल्लाह की रहमत से मेहरूम रह जाए । ( तबरानी )
( 8 ) हदीसे पाक में आया है कि रमज़ान शरीफ की हर रात . आसमानों में सुब्हे सादिक तक एक पुकारने वाला यह पुकारता है कि ऐ भलाई के मांगने वाले भलाई मांगना ख़त्म करे और खुश हो जा कि तेरी दुआ कुबूल हो चुकी है ।
और ऐ शरीर , शर से बाज़ आ जा और इबरत हासिल करा है कोई मगफिरत का तालिब कि उस , की तलब पूरी की जाए । है कोई तौबा करने वाला कि उस की तौबा कुबूल की जाए । है कोई दुआ मांगने वाला कि उस , की दुआ कुबूल की जाए । है कोई साइल कि उस का सवाल पूरा किया जाए ।
अल्लाह तबारक व तआला रमज़ानुल मुबारक की हर शब में इफ्तार के वक़्त साठ हज़ार गुनहगारों को दोज़ख़ से आज़ाद फरमा देता है और ईद के दिन सारे महीने के बराबर गुनाहों की बख़्शिश की जाती है ।
( 9 ) हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि हुजूर सय्यदे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशाद है कि जो शख़्स जान बूझ कर बिना शरई उन के एक दिन भी रमज़ान का रोज़ा छोड़े फिर गैर रमज़ान का रोज़ा चाहे तमाम उम्र रखे तो उस का बदल नहीं हो सकता । ( अहमद , तिर्मिज़ी , अबू दाऊद , इब्ने माजा , दारिमी , बुख़ारी शरीफ )
( 10 ) एक मौके पर सरकार सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमायाः जब रमज़ान की पहली रात होती है तो अल्लाह तआला अपनी मखलूक की तरफ़ नज़रे करम फरमाता है और जब अल्लाह तआला किसी बन्दे की तरफ़ नज़रे करम फ़रमाए तो उसे कभी अज़ाब न देगा ।
और हर रोज़ दस लाख गुनहगारों को जहन्नम से आज़ाद फ़रमाता है और जब उन्तीसवीं रात होती है तो महीने भर में जितने आज़ाद हुए उन के मजमूए के बराबर एक रात में आज़ाद करता है ।
फिर जब ईदुल फित्र की रात आती है तो मलाइका खुशी करते हैं और अल्लाह तआला अपने नूर की ख़ास तजल्ली फ़रमाता है और फ़रिश्तों से कहता है : ऐ गिरोहे मलाइका , उस मज़दूर का क्या बदला है जिस ने काम पूरा कर लिया ।
मलाइका अर्ज करते हैं : उस को पूरा पूरा अज्र दिया जाए । अल्लाह अज्ज व जल्ल फ़रमाता है : तुम गवाह रहना कि मैं ने सब को बख़्श दिया । ( बहारे शरीअतं )
( 11 ) हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हु रावी हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमायाः खुद हक तआला और उस के फरिश्ते सेहरी खाने वालों पर रहमत नाज़िल करते हैं । ( तबरानी )
( 12 ) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः सब्र ईमान का आधा हिस्सा है और रोज़ा सब्र का आधा हिस्सा । इन्सान का हर अमल मज़ालिम के बदले में जाता रहता है मगर रोज़ा किसी के बदले में जाया नहीं होता बल्कि अल्लाह तआला कियामत के दिन यह फरमाएगा कि रोजे को मुझ से ताल्लुक है इस के ज़रिये कोई अपना बदला नहीं ले सकता । ( अल हदीस )
( 13 ) हज़रत सहल बिन तस्तरी रहमतुल्लाहि अलैहि हर 15 दिन के बाद एक बार खाना खाते और जब माहे रमज़ान आता तो ईदुल फित्र तक कुछ न खाते । इस के बावजूद आप रोज़ाना चार सौ रकअतें नमाज़ पढ़ते थे । अरबाबे इल्म बयान करते हैं कि आप जिस दिन पैदा हुए तो रोज़े से थे
और जिस दिन दुनिया से रुखसत हुए उस दिन भी रोज़े से थे । किसी ने पूछा यह किस तरह ? बताया गया कि उन की पैदाइश का वक़्त सुब्हे सादिक था और शाम तक उन्हों ने दूध न पिया और वह दुनिया से रुख़सत हुए तो वह रोज़े की हालत में थे । यह बात हज़रत अबू तल्हा मालिकी रहमतुल्लाहि अलैहि ने बयान फरमाई । ( कश्फुल महजूब )
( 14 ) हज़रत जुनैद बग़दादी रहमतुल्लाहि अलैहि हमेशा रोज़ा रखते थे लेकिन अल्लाह वाले दोस्तों में से कोई आता तो उस की वजह से रोज़ा खोल देते और फरमाते थे कि ऐसे दोस्तों के साथ खाने की फज़ीलत कुछ रोज़े की फजीलत से कम नहीं है । ( अवारिफुल मआरिफ )
( 15 ) हज़रत इब्राहीम बिन अदहम रहमतुल्लाहि अलैहि रमज़ान में अव्वल से आखिर तक कुछ न खाते थे हालांकि शदीद गर्मी का ज़माना होता और रोज़ाना गेहूं की मज़दूरी को जाते थे और जितनी मज़दूरी मिलती थी वह सब फ़कीरों में बाँट देते थे
और रात भर इबादत करते और नमाजें पढ़ते यहाँ तक कि दिन निकल आता और वह लोगों की नज़रों के सामने रहते थे और लोग उन्हें देखा करते कि वह कुछ खाते पीते नहीं हैं और रात को सोते भी नहीं हैं । ( अहकामुस सियाम वल एतिकाफ )
( 16 ) हज़रत शैख़ अबू नस्र सिराज रहमतुल्लाहि अलैहि जिन्हें ताऊसुल फुकरा कहा जाता है , जब रमज़ान आया तो बगदाद पहुंचे और मस्जिदे शअरीज़ियह में कियाम फरमाया तो उन्हें अलग कोठरी दी गई और दुर्वेशों की इमामत उन के सिपुर्द कर दी गई ।
चुनान्चें ईद तक उन्हों ने इमामत फरमाई और तरावीह में ( 5 )पांच कुरआन ख़त्म किये और हर रात ख़ादिम उन की कोठरी में एक रोटी ले जाता ।
जब ईद का दिन आया तो वह नमाज़ पढ़ा कर चले गए तो ख़ादिम ने कोठरी में नज़र डाली तो तीसों रोटियां यूँही अपनी जगह पर थीं । ( कश्फुल महजूब )
( 17 ) हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि सरकार नबीये करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमायाः जो शख्स रोज़ादार का रोज़ा खुलवाए तो उस को भी रोज़ादार के बराबर सवाब मिलता है और रोज़ादार के सवाब में भी कुछ कमी नहीं होती । ( तिर्मिज़ी शरीफ )
( 18 ) हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि सरकार सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि जो फी सबीलिल्लाह एक दिन का रोज़ा रखे तो अल्लाह तआला उस के और दोज़ख की आग के बीच इस कदर ख़न्दक बनाता है जिस कदर आसमान और ज़मीन के बीच की दूरी है । ( तिर्मिज़ी शरीफ़ )
( 19 ) हज़रत अब्बास बिन हनीफ रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि मैं ने सईद बिन जुबैर रज़ियल्लाहु अन्हु से रजब के रोजे की कैफियत पूछी तो उन्हों ने कहा कि मैं ने हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से सुना वह कहते थे कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम रोज़ा रखते थे तो गुमान होता था कि अब इफ्तार ही नहीं करेंगे और जब छोड़ते थे तो गुमान होता था कि अब रोज़ा ही न रखेंगे । ( अबू दाऊद )
( 20 ) उम्मुल मोमिनीन हज़रत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं कि जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम रोज़ा रखते थे तो मेहसूस होता था कि रखते ही चले जाएंगे और जब छोड़ते थे तो यह गुमान होता था कि अब न रखेंगे । मैंने उनको रमज़ान के अलावा कभी पूरे महीने का रोज़ा रखते हुए न पाया , न किसी और महीने में इतने रोजे रखते जितना कि शअबान में रखते थे । ( अबू दाऊद )
( 21 ) हज़रत अबू अय्यूब रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नबीये करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि जिस ने रमज़ान का रोज़ा रखा उस के बाद शव्वाल के ( 6 ) छः रोजे रखे तो वह साइमुद दहर है यानी उस ने पूरी साल रोज़े में गुज़ारी । ( तिर्मिज़ी )
( 22 ) हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु की रिवायत है कि सरकार सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमायाः बन्दे के आमाल अल्लाह तआला के सामने पीर और जुमेरात को पेश किये जाते हैं तो मैं पसन्द करता हूँ कि मेरे आमाल इस हाल में पेश किये जाएं कि मैं रोज़ से हूँ । ( तिर्मिज़ी शरीफ )
( 23 ) अय्यामे बैज़ यानी हर माह की ( 13,14,15 ) तेरहवीं , चौदहवीं और पन्द्रहवीं तारीख़ के रोज़ों की बड़ी फजीलत आई है । शैख़ अबू नस्र रहमतुल्लाहि अलैहि ने हज़रत इमाम जैनुल आबिदीन रज़ियल्लाहु अन्हु की सनद से फरमाया कि तेरह (13) तारीख का रोज़ा तीन हजार बरस के रोज़ों के बराबर है और ( 14 ) चौदह तारीख़ का रोज़ा दस हज़ार बरस के रोज़ों के बराबर है और (15) पन्द्रहवीं का रोज़ा एक लाख तेरह हज़ार रोज़ों के बराबर है । ( निसाई शरीफ )
( 24 ) हज़रत सईद इब्ने अबी हिन्द रहमतुल्लाहि अलैहि ने हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत की उन्हों ने फरमाया कि सरकार नबीये करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझे इन तीन बातों की वसियत की कि मरते दम तक महीने के तीन रोजे ( यानी अय्यामे बैज़ के रोज़े ) रखू और मरने से पहले चाश्त और वित्र की नमाज़ न छोडूं । ( गुनियतुत तालिबीन )
( 25 ) रोजे की हालत में औरत का बोसा लिया यां छुआ या मुबाशिरत की गले लगाया और यह सब करने में इन्जाल हो गया तो रोज़ा टूट जाएगा । ( बहारे शरीअत )
( 26 ) औरत को कपड़े के ऊपर से छुआ और कपड़ा इतना मोटा है कि बदन की गर्मी मेहसूस नहीं होती तो रोज़ा फासिद नहीं हुआ अगर्चे इन्जाल हो गया । ( बहारे शरीअत )
( 27 ) नाक में बलगम जमा हो गया और सांस के ज़रिये खींच कर निगल लिया तो रोज़ा न गया । अपना ही थूक हाथ पर लेकर निगल लिया तो रोज़ा जाता रहा । ( बहारे शरीअत )
( 28 ) मुसाफ़िर ने इकामत की , ज़ो निफास वाली औरत पाक हो गई , मरीज़ था अच्छा हो गया , काफ़िर था मुसलमान हो गया और मज्नून को होश आ गया , नाबालिग था बालिग हो गया , इन सब सूरतों में जो कुछ दिन का हिस्सा बाकी रह गया हो उसे रोजे की तरह गुज़ारना वाजिब है । ( बहारे शरीअत )
( 29 ) पांच महीनों का चाँद देखना फर्जे किफाया है : शअबान , रमजान , शव्वाल , जी कअदा , ज़िल हज्जा । शअबान का इस लिये कि अगर रमज़ान का चाँद देखते वक़्त अब्र या गुबार हो तो यह तीस रोज़े पूरे करके रमज़ान शुरू करें । और रमज़ान का रोज़ा रखने के लिये और शव्वाल का रोज़ा ख़त्म करने के लिये और जी कअदा का ज़िल हज्जा के लिये और ज़िल हज्जा का बक्र ईद के लिये । ( फतावए रजविया , बहारे शरीअत )
( 30 ) हज़रत सय्यदुना इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नबीये करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमायाः रमज़ान के ( आख़िरी ) दस दिनों के एतिकाफ का सवाब दो हज और दो उमरों के बराबर है । ( बैहकी )
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Keya aap jaante hain
एतिकाफ की फजी़लत Etikaf ki fazilat
( 1 ) हज़रत इमाम ज़ोहरी रहमतुल्लाहि अलैहि कहते हैं कि नबीये करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बहुत से काम कभी करते और कभी छोड़ देते थे लेकिन जब से मदीनए मुनव्वरा तशरीफ़ लाए तब से अखीर ज़िन्दगी तक कभी भी रमज़ान के आख़िरी दस दिनों का एतिकाफ नहीं छोड़ा । ( इब्ने माजा )
( 2 ) हज़रत अब्दुल्लाह इने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा रिवायत करते हैं कि एतिकाफ करने वाले के लिये नबीये करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः एतिकाफ़ करने वाला गुनाहों से बचा रहता है और उस के लिये ( बगैर किये भी ) उतनी ही नेकियाँ लिखी जाती हैं जितनी करने वाले के लिये लिखी जाती हैं । ( इब्ने माजा )
( 3 ) हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः जो शख्स अपने भाई के किसी काम के लिये चले फिरे और कोशिश करे उस के लिये दस बरस के एतिकाफ से अफज़ल है और जो शख्स एक दिन का भी एतिकाफ अल्लाह की रज़ा के वास्ते करता है तो हक तआला उस के और जहन्नम के बीच तीन खन्दके आड़ फरमा देता है जिन की मुसाफ़त आसमान और ज़मीन के बीच की दूरी से भी ज़्यादा है । ( तबरानी , बेहकी )
( 4 ) एतिकाफ के चार ( 4 ) अरकान हैं : पहला ( 1 ) रुक्न नियत या शर्त है । दूसरा ( 2 ) रुक्न मोअतकिफ का होना ज़रूरी है । तीसरा ( 3 ) रुक्न मस्जिद का होना है । चौथा ( 4 ) रुक्न एतिकाफ करने वाले का मस्जिद में रहना है । ( अहकामुस सियाम वल एतिकाफ )
( 5 ) शबे कद्र की अलामत यह है कि वह रात खुली और चमकदार होती है , साफ़ शफ़्फाफ , न ज़्यादा गर्मी और न ज़्यादा सर्दी बल्कि मुअतदिल , गोया उस में चाँद खिला हुआ है । उस रात सुब्ह तक आसमान के सितारे शयातीन को नहीं मारे जाते ।
इस की अलामतों में यह भी है कि इस के बाद सुब्ह को सूरज बगैर शुआअ के तुलूअ होता है बिल्कुल हमवार टिकिया की तरह होता है जैसा कि चौदहवीं रात का चाँदा अल्लाह अज्ज व जल्ल ने इस दिन के आफताब के तुलूअ के वक़्त शैतान को इस के साथ निकलने से रोक दिया । ( दुर्रे मन्सूर )
( 6 ) हज़रत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा ने नबीये करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पूछाः या रसूलल्लाह अगर मुझे शबे कद्र का पता चल जाए तो मैं क्या दुआ मांगू ?
फरमायाः यह दुआ मांगोः अल्लाहुम्मा इनका अफुव्वन तुहिब्बुल अफवा फ़अफु अनी । यानी ऐ अल्लाह , तू बेशक माफ़ करने वाला है और पसन्द करता है माफ करने को पस माफ कर दे मुझे भी । ( अहमद , इब्ने माजा , तिर्मिज़ी , मिशकात )
( 7 ) हज़रत सय्यदुना जिब्रील अलैहिस्सलाम के छ : सौ ( 600 ) बाजू हैं , उन में से दो कभी नहीं खुलते मगर शबे कद्र में यह दोनों बाजू मश्रिक और मग़रिब से भी बढ़ जाते हैं ।
फिर हज़रत जिब्रईल अलैहिस्सलाम फरिश्तों को कहते हैं कि खड़े बैठे अल्लाह का ज़िक्र करने वालों , नमाज़ अदा करने वालों को सलाम व मुसाफहा करें और जो दुआ मांगते ' हों उस पर आमीन कहें । ( गुनियतुत तालिबीन )
( 8 ) हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः जो लोग जमा हो कर अल्लाह अज्ज व जल्ल का ज़िक्र करते हैं और सिवाए रज़ाए इलाही के उन का कोई और मकसद नहीं
होता तो आसमान से एक पुकारने वाला पुकारता है कि खड़े हो जाओ तुम्हारी मगफिरत हो गई और तुम्हारे गुनाहों को नेकियों से बदल दिया गया । ( तफसीरे नईमी )
( 9 ) सन दो हिजरी में मोमिनों पर रोजे फर्ज़ और सदकए फित्र वाजिब हुआ ।
( 10 ) महीनों में सिर्फ रमज़ान का नाम कुरआन में लिया गया है । ( तफसीरे अहमद )
( 11 ) फुक्हा का कौल है कि अगर किसी ने नज्र मानी कि मैं रमज़ान बाद अल्लाह के लिये इस साल के बेहतरीन दिनों में रोज़े रखूगा तो उस पर ज़िल हज्जा के पहले दस दिन के रोजे वाजिब होंगे क्योंकि सारे साल में यह दस रोज़े सब से बेहतर हैं । ( तफसीरे नईमी ) .
( 12 ) हदीस में है कि जिस ने ज़िलहज्जा के अरफे का रोज़ा रख लिया , अल्लाह तआला उसे सात बरस के रोज़ों का सवाब अता करता है । ( तफसीरे नईमी )
( 13 ) रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः शबे कद्र में चार झन्डे नाज़िल होते हैं : एक लिवाउल हम्द , दूसरा लिवाउल रहमत , तीसरा लिवाउल मगफिरत , चौथा - लिवाउल करामतः हर झन्डे के साथ सत्तर हज़ार . फरिश्ते होते हैं और हर झन्डे पर कलिमएं तय्यिबा लिखा होता है ।
लिवाउल हम्द आसमान और ज़मीन के बीच , लिवाउल मगफिरत रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के रौज़ए पाके के ऊपर , लिवाउल रहमत कअबए मुअज्जमा पर और लिवाउल करामत बैतुल मुकद्दस के गुम्बद पर गाड़ा जाता है और हर झन्डा मुसलमानों के दरवाजे पर (70) सत्तर बार सलाम करने आता है । ( तोहफ्तुल वाइज़ीन )
( 14 ) रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाते हैं : जो शख़्स लैलतुल कद्र में इतनी देर इबादत के लिये खड़ा रहा जितनी देर चरवाहा बकरी दोह ले , तो वह अल्लाह तआला के नज़दीक बारह माह रोजे रखने वाले से बेहतर है । ( तफसीरे नईमी )
( 15 ) रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः अल्लाह तआला ने एक फरिश्ता पैदा फरमाया है और उस के चार (4) मुंह बनाए हैं , एक मुंह से दूसरे मुंह तक अस्सी हज़ार बरस की राह है ।
उस फ़रिश्ते का एक मुंह सज्दे में है जो कियामत तक रहेगा । इस मुंह से सज्दे की हालत में ही फरिश्ता यूँ कहता है : इलाही मैं तेरी तस्बीह करता हूँ , तेरा जमाल निहायत अज़ीमुश्शान है । दूसरे मुंह से जहन्नम की तरफ़ देख कर कहता है : उस पर अफ़सोस जो इस में दाखिल हुआ ।
तीसरे मुंह से जन्नत की तरफ देख कर कहता है : इस में दाखिल होने वाले को मुबारकबाद ।
चौथे मुंह से अर्श इलाही की तरफ देख कर कहता है : इलाही रहम कर और उम्मते मुहम्मदिया में जो रमज़ान के रोज़ेदार हैं उन्हें अज़ाब न दे । ( तोहफतुल वाइज़ीन )
( 16 ) सरवरे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः अल्लाह तआला किरामन कातिबीन को रमज़ान में हुक्म देता है कि उम्मते मुहम्मदिया की नेकियाँ लिखो और बदियाँ लिखनी छोड़ दो । ( ज़ोहरतुर रियाज़ )
( 17 ) रोज़े तीन तरह के होते हैं : अवाम का रोज़ा , ख़वास का रोज़ा और अख़स्सुल ख़वास का रोज़ा । अवाम का रोज़ा यह है कि पेट और शर्मगाह को उस की ख्वाहिशों से रोका जाए । ख़वास का रोज़ा यह है कि तमाम अंग गुनाहों से बाज़ रहें । अख़स्सुल ख़वास का रोज़ा यह है कि दिल तमाम दुनियवी और दीनी फिक्रों और अल्लाह के सिवा हर एक से रुका रहे । यह रोज़ा नबियों और सिद्दीकों का होता है । ( जुब्दतुल वाइज़ीन )
( 18 ) तीस रोजे फर्ज होने में कुछ उल्मा के कौल के मुताबिक यह हिकमत है कि आदम अलैहिस्सलाम के पेट में गेहूँ के दाने तीस रोज़ तक रहे थे । फिर जब उन की तौबा कुबूल हुई तो अल्लाह तआला ने तीस रोज़ों का हुक्म दिया , इन में रातें भी शामिल थीं । उम्मते मुहम्मदिया पर सिर्फ दिन को रोज़ा फ़र्ज़ किया गया । ( बहज्जतुल अनवार )
( 19 ) सरवरे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः अल्लाह तआला को रोज़ेदार का तना हुआ पेट तमाम बर्तनों से ज़्यादा पसन्द है । ( तफ़सीरे नईमी )
( 20 ) सरवरे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः जो शख़्स रमजान के महीने में इल्मे दीन की मजलिस में हाज़िर हुआ , उस के नामए आमाल में हर कदम के बदले एक साल की इबादत लिखी जाती है और वह अर्श के नीचे मेरे साथ रहेगा । ( ज़ख़ीरतुल आबिदीन )
( 21 ) सरवरे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः अल्लाह तआला ने फरमाया कि इब्ने आदम के कुल अमल उस के लिये हैं मगर रोज़ा सिर्फ मेरे लिये है और मैं खुद ही इस का बदला दूंगा । ( बुख़ारी शरीफ )
( 22 ) हदीस में है कि जो औरत रमज़ान में अपने ख़ाविन्द की मर्जी पर चलेगी उसे हज़रत मरयम और आसिया का सा सवाब मिलेगा । ( तफसीरे नईमी )
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Keya aap jaante hain
Etikaf ki Niyat in arbi |
Itifak Ki Niyat Aur Dua
Itikaf ki dua in Arabic
بسم اللہ دخلت و علیہ توکلت و نویت سنت الا تکاف
TRANSLATION
मै अल्लाह के बा बर्कत वाले नाम से मस्जिद मे दखिल हुआ और उसी पर भरोसा किया , और मैने सुन्नत इतिकाफ़ का इरादा किया , अये अल्लाह मुझ पर अपने रहम के दरवाजे खोल दे .
Itikaf ki dua in hindi
बिस्मिल्लहि दखलतु वा अलइही तवक्कल्तु वा नवइतु सुन्नतल एतिकाफ़
Itikaf ki dua in English
Bismillahi Dakhaltu Wa'Alayhi Tawakkaltu Wanawaytu Sunnatul l’tikaaf
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