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इमाम हुसैन की जिन्दगी ईस्लामिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक कथा है। यहां मैं आपको इमाम हुसैन की जिन्दगी के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में बता रहा हूँ:
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1. परिवार और वंश: इमाम हुसैन का जन्म 3 शव्वाल 4 इस्लामी (626 ईसवी) में हुआ था।
उन्हें हजरत अली और बीवी बीबी फातिमा के बेटे के रूप में पाला गया था। उनके पिता की शहादत के बाद, उन्हें इमाम बनाया गया।
सलाम सुल्ताने कर्बला को हमारा सलाम हो।
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आशूरा के दिन फजी़लत हिन्दी में।
2. कर्बला की लड़ाई: सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण घटना इमाम हुसैन की जिन्दगी में है, वह है कर्बला की लड़ाई। 10 मुहर्रम 61 इस्लामी (680 ईसवी) को उन्होंने अपने परिवार और साथियों के साथ करबला में खड़े होकर खांसी की।
यह एक अद्वितीय और वीरतापूर्ण संघर्ष था, जिसमें वे अधिकांशतः असमर्पित थे। इमाम हुसैन और उनके साथियों ने शाहीदी दी, लेकिन उनकी बहादुरी और वचनबद्धता आज भी मुसलमानों के दिलों में जिंदा है।
3. स्वतंत्रता और इंसाफ़: इमाम हुसैन की जिन्दगी में एक महत्वपूर्ण मूल्य उनकी स्वतंत्रता और इंसाफ़ था।
उन्होंने खुद को दुर्गम परिस्थितियों में भी स्थिरता और सत्य के लिए संघर्ष करते हुए दिखाया।
उन्होंने जीवन को बलिदान करके अदालत और अधिकार की प्रतिष्ठा को बनाए रखा।
4. इंसानियत के प्रतीक: इमाम हुसैन की जिन्दगी इंसानियत, दया और सहानुभूति के प्रतीक के रूप में भी जानी जाती है। उन्होंने ग़रीबों, भूखे-प्यासे और निर्धनों की मदद की और सभी लोगों के साथ एक साथ खड़े होकर आपसी बंधुत्व को प्रशंसा की।
इमाम हुसैन की जिन्दगी इस्लामिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्मृति है और उनके बलिदान ने उनके अनुयायों के दिलों में स्थायी प्रभाव छोड़ा है।
उनकी जीवन और शहादत अदालत, सच्चाई और न्याय के प्रतीक के रूप में स्मरणीय हैं।
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इमाम हुसैन इस्लामिक इतिहास में महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं। वे हजरत मुहम्मद साहब के पोते और हजरत अली के बेटे थे।
इमाम हुसैन का जन्म 3 शव्वाल 4 इस्लामी (626 ईसवी) में हुआ था। वे इस्लामी दारुल हकूमत के दूसरे इमाम थे।
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इमाम हुसैन की मशहूरत और प्रसिद्धता उनके शहीदी के कारण हैं। उन्होंने अहले बैत (प्रोफ़ेट के परिवार के सदस्यों) के हक़ की रक्षा करने के लिए विदेशी सल्तनत के ख़िलाफ़ खड़े होकर करबला के मैदान में लड़ाई लड़ी।
करबला की लड़ाई 10 मुहर्रम इस्लामी (680 ईसवी) में हुई थी और इस लड़ाई में इमाम हुसैन और उनके साथियों ने बहुत बड़ा बलिदान दिया।
वे अपने परिवार के सदस्यों के साथ शहीद हो गए, लेकिन उनकी सच्ची और निर्भीक आज़ादी की आवाज़ और उनका बलिदान इस्लामी इतिहास के महत्वपूर्ण प्रतीक बने।
इमाम हुसैन की शहादत का यादगार अर्बाईन (चालीसवां दिन) के मौक़े पर मनाया जाता है, जब उनके शहीद होने के 40वें दिन को याद किया जाता है।
यह त्योहार दुनियाभर में शिया मुसलमानों द्वारा मनाया जाता है और विभिन्न रिती और रस्मों के साथ आयोजित किया जाता है।
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