khula kaise lete hain khula ka tarika

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खुला (खुलअ) khula Talaq 

अल्लाह अज्ज व जल्ल इरशाद फरमाता है । 

 

तुम्हें हलाल नहीं कि जो कुछ औरतों को दिया है उस में से कुछ वापस लो मगर जब दोनों को अन्देशा हो कि अल्लाह की हदें काइम न रखेंगे

 फिर अगर तुम्हें अन्देशा हो कि वह दोनों अल्लाह की हदें काइम न रखेंगे तो उन पर कुछ गुनाह नहीं इस में कि बदला देकर औरत छुटटी लें । 

यह अल्लाह की हदें हैं उन से तजावुज़ न करें और जो अल्लाह की हुदूद से तजावुज़ करे तो वह लोग ज़ालिम हैं ।


सहीह बुखारी व सहीह मुस्लिम में हज़रते अब्दुल्लाह बिन अब्बास रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से मरवी कि 

साबित इब्ने कैस रदियल्लाहु तआला अन्हु की बीबी ने हुजूर अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में हाज़िर होकर अर्ज़ की कि या रसूलल्लाह साबित इब्ने कैस के अख़लाक व दीन की निस्बत मुझे कुछ कलाम नहीं।

( यानी उन के अख़लाक़ भी अच्छे हैं और दीनदार भी हैं ) मगर इस्लाम में कुफराने नेअमत को मैं पसन्द नहीं करती ( यानी खुबसूरत न होने की वजह से मेरी तबीअत उन की तरफ माइल नहीं )

 इरशाद फरमाया उस का बाग़ ( जो महर में तुझ को दिया है ) तू वापस करदेगी अर्ज़ की हाँ हुज़ूर ने साबित इब्ने कैस से फरमाया बाग़ लेलो तलाक देदो ।

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मसअला : - माल के बदले में निकाह ज़ाइल करने को खुलअ (खुला)  कहते हैं औरत का कबूल करना शर्त है बगैर उस के कबूल किए खुलअ (खुला)  नहीं हो सकता और उस के अल्फाज़ मुअय्यन हैं उन के अलावा और लफज़ों से न होगा । 


मसअला : - अगर ज़ौज व ज़ौजा ( मियाँ बीवी ) में ना इत्तिफाकी रहती हो और यह अंन्देशा हो किं अहकामे शरईया की पाबन्दी न कर सकेंगे तो खुला में मुज़ाइका ( हरज ) नहीं और जब खुलअ कर लें तो तलाक़े बाइन वाकेअ हो जायेगी और जो माल ठहरा है औरत पर उस का देना लाज़िम है ( हिदाया )


 मसअला : - अगर शौहर की तरफ से ज़्यादती हो तो खुलअ (खुला) पर मुतलकन एवज़ लेना मकरूह है और अगर औरत की तरफ से हो तो जितना महर में दिया हो उस से ज़्यादा लेना मकरूह फिर भी . अगर ज़्यादा ले ले तो कज़ाअन जाइज़ है ( आलमगीरी )।



मसअला : - जो चीज़ महर हो सकती है वह बदले खुलअ (खुला) भी हो सकती है । और जो चीज़ महर नहीं हो सकती वह भी बदले खुलाअ हो सकती है मसलन दस दिरहम से कम को बदले खुल कर सकते हैं मगर महर नहीं कर सकते ( दुर्रे मुख्तार ) 


मसअला : - खुलअ (खुला) शौहर के हक में तलाक को औरत के कबूल करने पर मुअल्लक ( शर्त ) करना है कि औरत ने अगर माल देना कबूल कर लिया तो तलाके बाइन हो जायेगी लिहाज़ा अगर शौहर ने खुलअ (खुला) के अल्फाज़ कहे और औरत ने अभी कबूल नहीं किया तो शौहर को रुजूअ का इख़्तियार नहीं 

न शौहर को शर्ते खियार हासिल और न शौहर की मज्लिस बदलने से खुलअ (खुला) बातिल ( शौहर खुलअ के अलफाज़ कहने के बाद रूजूअ नहीं कर सकता ) ( खानिया )


 मसअला : - खुलअ (खुला) औरत की जानिब में अपने को माल के बदले में छुड़ाना है तो अगर औरत की जानिब से इब्तिदा हुई मगर अभी शौहर ने कबूल नहीं किया तो औरत रुजूअ (वापसी) कर सकती है और ज़्यादा का भी इख़्तियार ले सकती है 

अपने लिए इख़्तियार भी ले सकती है और यहाँ तीन दिन बख़िलाफ़ बैअ ( खरीद व फ्रोख़्त ) के बैअ में तीन दिन से ज़्यादा का इख़्तियार नहीं और दोनों में से एक की मज्लिस बदलने के बाद औरत का कलाम बातिल हो जायेगा ( खानिया ) 


मसअला : - खुलअ (खुला) चूँकि मुआवज़ा ( बदला ) है लिहाज़ा यह शर्त है कि औरत का कबूल उस लफ़्ज़ के मअना समझकर हो बगैर मअना समझे अगर महज़ लफ़्ज़ बोल देगी तो खुलअ न होगा ( दुर्रे मुख्तार ) 


मसअला : - चूँकि शौहर की जानिब से खुलअ (खुला) है लिहाज़ा शौहर आकिल , बालिग होना शर्त है नाबालिग या मजनून खुलअ (खुला) नहीं कर सकता कि अहले तलाक नहीं और यह भी शर्त है कि औरत महल्ले तलाक हो 

लिहाज़ा अगर औरत को तलाके बाइन देदी है तो अगर्चे इद्दत में हो उस से खुलअ नहीं हो सकता यूँही अगर निकाह फासिद हुआ है या औरत मुरतद हो गई जब भी खुलअ (खुला) नहीं हो सकता कि निकाह ही नहीं है

 खुलअ (खुला) किस चीज़ का होगा और रजई की इद्दत में है तो खुलअ (खुला) हो सकता है ( दुरै मुख्तार हुलमुहतार ) 


मसअला : - शौहर ने कहा मैंने तुझ से खुलअ किया और माल का ज़िक न किया तो खुलअ (खुला) नहीं बल्कि तलाक़ है और औरत के कबूल करने पर मौकूफ नहीं । ( बदाएअ) 


मसअला : - शौहर ने कहा मैंने तुझ से इतने पर खुलअ (खुला) किया औरत ने जवाब में कहा हाँ तो उस से कुछ नहीं होगा जब तक यह न कहे कि मैं राज़ी हुई या जाइज़ किया यह कहा तो सहीह हो गया 

यूँही अगर औरत ने कहा मुझे हज़ार रुपये के बदले में तलाक देदे शौहर ने कहा हाँ तो यह भी कुछ नहीं और अगर औरत ने कहा मुझ को हज़ार रुपये के बदले में तलाक है शौहर ने कहा हाँ तो हो गई ( आलमगीरी ) 


मसअला : - निकाह की वजह से जितने हुकूक एक के दूसरे पर थे वह खुलअ (खुला) से साकित हो जाते हैं और जो हुकूक कि निकाह से अलावा हैं वह सांकित न होंगे इद्दत का नफ़्का अगरचे निकाह के हुकूक से है मगर यह साकित न होगा 

हाँ अगर उस के साकित होने की शर्त कर दी गई तो यह भी साकित हो जायेंगा यूँही औरत के बच्चा हो तो उस का नपका और दूध पिलाने के मसारिफ ( खर्च ) साकित न होंगे 

और अगर उन के साकित होने की भी शर्त है और उस के लिए कोई वक़्त मुअय्यन कर दिया गया है तो साकित हो जायेंगे 

वरना नहीं और बसूरते वक़्त मुअय्यन ( वक्त ख़ास करने की सूरत में ) करने के अगर उस वक़्त से पेश्तर बच्चे का इन्तिकाल हो गया तो बाकी मुद्दत में जो सर्फ होता वह औरत से शौहर ले सकता है 

और अगर यह ठहरा है कि औरत अपने माल से दस बरस तक बच्चे की परवरिश करेगी तो बच्चे के कपड़े का औरत मुतालबा कर सकती है 

और अगर बच्चे का खाना कपड़ा दोनों ठहरा है तो कपड़े का मुतालबा भी नहीं कर सकती अगर्चे यह मुअय्यन न किया हो कि किस किस्म का कपड़ा पहनायेगी और बच्चे को छोड़कर औरत भाग गई । तो बाकी नफ़्का की कीमत शौहर वसूल कर सकता है 

और अगर यह ठहरा है कि बुलूग तक अपने पास रखेगी तो लड़की में ऐसी शर्त हो सकती है लड़के में नहीं ( आलमगीरी ) 


मसअला : - खुलअ (खुला) किसी ' मिकदारे मुअय्यन पर हुआ और औरत मदखुला ( जिमा कर लिया हो ) है और महर पर औरत ने कब्ज़ा कर लिया है 

तो जो ठहरा है शौहर को दे और उस के अलावा शौहर कुछ नहीं ले सकता है और महर औरत को नहीं मिला है तो अब औरत महर का मुतालबा नहीं कर सकती 

और जो ठहरा है शौहर को दे और अगर गैर मदखूला ( यानी जिस से जिमाअ न किया गया हो ) है और पूरा महर ले चुकी है तो शौहर निस्फ महर का दवा नहीं कर सकता 

और महर औरत को नहीं मिला है तो औरत निस्फ महर का शौहर पर दावा नहीं कर सकती और दोनों सूरतों में जो ठहरा है देना होगा और अगर महर पर खुलअ (खुला) हुआ और महर ले चुकी है तो महर वापस करे और महर नहीं लिया है 

तो शौहर से महर साकित हो गया और औरत से कुछ नहीं ले सकता और अगर मसलन महर के दसवें हिस्से पर खुला हुआ

 और महर मसलन हज़ार रुपये का है और औरत मदख़ूला है और कुल महर ले चुकी है तो शौहर उस से सौ रुपये लेगा और महर बिल्कुल नहीं लिया है हर से कुल महर साकित हो गया और अगर औरत गैर मुदखुला है 

और महर ले चुकी है तो शौहर उस से पचास रुपये ले सकता है और औरत को कुछ महर नहीं मिला है तो कुल साकित हो गया ( आलमगीरी ) 


मसला : - औरत का जो महर शौहर पर है उसके बदले में खुलअ (खुला) हुआ फिर मालूम हुआ कि औरत का कुछ महर शौहर पर नहीं तो औरत को महर वापस करना होगा यूँही अगर उस असबाब के बदले में खुलअ (खुला) हुआ जो औरत का मर्द के पास है फिर मालूम हुआ कि उस का असबाब उसके पास कुछ नहीं है तो महर के बदले में खुलअ करार पायेगा महर ले चुकी है तो वापस करे और शौहर पर बाक़ी है तो साकित ( खानिया ) 


मसाला : - जो महर औरत का शौहर पर है उस के बदले में खुलअ (खुला) हुआ या तलाक़ और शौहर को मालूम है कि उस का कुछ मुझ पर नहीं चाहिए तो उस से कुछ नहीं ले सकता है खुलअ की सूरत में तलाक़ बाइन होगी और तलाक की सूरत में रजई ( खानिया ) 


मसअला : - यूँ खुलअ (खुला) हुआ कि जो कुछ शौहर से लिया है वापस करे और औरत ने जो कुछ लिया था फ्रोख्त कर डाला हिबा कर के कब्ज़ा दिला दिया कि वह चीज़ शौहर को वापस नहीं कर सकती तो अगर वह चीज़ कीमती है तो उस की कीमत दे और मिस्ली ( उस जैसी ) है तो उस की मिस्ल ( खानिया )



 मसअला :- औरत को तलाक बाइन देकर फिर उस से निकाह किया फिर महर पर खुलअ (खुला) हुआ तो दूसरा महर साकित हो गया पहला नहीं ( जौहरा नय्यरा ) 


मसअला : - बगैर महर निकाह हुआ था और दुखूल से पहले खुलअ (खुला) हुआ तो मताअ ( जोड़ा ) साकित और अगर औरत ने माले मुअय्यन पर खुलअ किया उस के बाद बदले खुलअ में ज़्यादती की तो यह ज़्यदती बातिल है ( आलमगीरी )


 मसअला : - खुलअ (खुला) उस पर हुआ कि किसी औरत से ज़ौजा ( बीवी ) अपनी तरफ से निकाह करा और उस का महर ज़ौजा दे तो ज़ौजा पर सिर्फ वह महर वापस करना होगा जो ज़ौज ( शौहर ) से ले चुकी है और कुछ नहीं ( आलमगीरी ) 


मसअला : - शराब व खिन्ज़ीर व मुर्दार वगैरा ऐसी चीज़ पर खुलअ (खुला) हुआ जो माल नहीं तो तलाक पड़ गई और औरत पर कुछ वाजिब नहीं और अगर उन चीज़ों के बदले में तलाक दी तो रजई वाकेअ हुई 

यूँ हीं अगर औरत ने यह कहा मेरे हाथ में जो कुछ है उस के बदले में खुलअ (खुला) कर और हाथ में कुछ न था तो कुछ वाजिब नहीं और अगर यूँ कहा कि उस माल के बदले में जो मेरे हाथ में है 

और हाथ में कुछ न हो तो अगर महर ले चुकी है तो वापस करे वरना महर साकित हो जायेगा और उस के अलावा कुछ देना नहीं पड़ेगा यूँ हीं अगर शौहर ने कहा मैंने खुलअ (खुला) किया उस के बदले में जो मेरे हाथ में है 

और हाथ में कुछ न हो तो कुछ नहीं और हाथ में जवाहिरात हों तो औरत पर देना लाज़िम होगा अगर्चे औरत को यह मालूम न था कि उस के हाथ में क्या है। (दुर्रे मुख्तार)


मसअला : -  मेरे हाथ में जो रुपये हैं उन के बदले में खुलअ (खुला) कर और हाथ में कुछ नहीं तो तीन रुपये देने होंगे ( दुर्रे मुख़्तार वगैरा ) 


मसअला : -  मगर उर्दू में चूँकि जमअ दो पर भी बोलते हैं लिहाज़ा दो ही रुपये लाज़िम होंगे और सूरते मजकूरा में अगर हाथ में एक ही रुपया है जब भी दो दे 


मसअला : - अगर यह कहा कि उस घर में या उस सन्दूक में जो माल या रुपये हैं उन के बदले में खुलअ (खुला) कर और हकीकतन उन में कुछ न था तो यह भी उसी के मिस्ल है

 कि हाथ में कुछ न था यूँही अगर यह कहां कि उस जारिया या बकरी के पेट में जो है उस के बदले में और कमतर मुद्दते हम्ल में न जनी तो मुफ़्त तलाक वाकेअ हो गई 

और कमतर मुद्दते हमल में जनी तो वह बच्चा खुलअ (खुला) के बदले मिलेगा कमतर मुद्दते हमल औरत में छः महीने है और बकरी में चार महीने और दूसरे चौपायों में भी वही छ महीने 

यूँ हीं अगर कहा उस दरख़्त में जो फल हैं उन के बदले और दरख़्त में फल नहीं तो महर वापस करना होग़ा ( दुर्रे मुख्तार)


 मसअला :- कोई जानवर घोड़ा , खच्चर , बैल वगैरा , बदले खुलअ (खुला) करार दिया और उस की सिफत भी बयान कर दी तो औसत दर्जे का देना वाजिब आयेगा 

और औरत को यह भी इख़्तियार है कि उस की कीमत देदे और जानवर की सिफत न . बयान की हो तो जो कुछ महर में ले चुकी है वह वापस करे ( आलमगीरी ) 


मसअला : - औरत से कहा मैं ने तुझ से खुलअ (खुला) किया औरत ने कहा मैंने क़बूल किया तो अगर वह लफ़्ज़ शौहर ने बनियत ए तलाक कहा था तलाक बाइन वाकेअ हो गई 

और महर साकित न होगा बल्कि अगर औरत ने कबूल न किया हो जब भी यही हुक्म है और अगर शौहर यह कहता है कि मैं ने तलाक़ की नियत से न कहा था तो तलांक वाकेअ न होगी जब तक औरत कबूल न करे और अगर यह कहा था कि फुला चीज़ के बदले मैंने तुझ से खुलअ (खुला) किया 

तो जब तक औरत कबूल न करेगी तलाक वाकेअ न होगी और औरत के कबूल करने के बाद अगर शौहर कहे कि मेरी मुराद तलाक़ न थी तो उस की बात न मानी जाये ( खानिया वगैरा ) 


मसअला : - भागे हुए गुलाम के बदले में खुलअ (खुला) किया और औरत ने यह शर्त लगा दी कि मैं उस की ज़ामिन नहीं यानी अगर मिल गया तो दे दूँगी और न मिला तो उस का तावान मेरे ज़िम्मे नहीं तो खुलअ सहीह है

 और शर्त बातिल यानी अगर न मिला तो औरत उस की कीमत दे और अगर यह शर्त लगाई कि अगर उस में कोई ऐब हो तो में बरी हूँ तो शर्त सहीह है ( दुर्रे मुख्तार , रद्दुल मुहतार )

 जानवर गुम शुदा के बदले में हो जब भी यही हुक्म है । 


मसअला : - औरत ने शौहर से कहा हज़ार रुपये पर मुझ से खुलअ (खुला) कर शौहर ने कहा को तलाक़ है तो यह उस का जवाब समझा जायेगा हाँ अगर शौहर कहे कि मैंने जवाब की नियत से न कहा था तो उस का कौल मान लिया जायेगा और तलाक मुफ़्त वाकेअ होगी और बेहतर यह है कि पहले ही शौहर से दरयाफ़्त कर लिया जाये 

यूँही अगर औरत कहती है मैंने खुलअ (खुला) तलब किया था और कहता है मैंने तुझे तलाक़ दी थी तो शौहर से दरयाफ़्त करें अगर उस ने जवाब में कहा था तो खुलअ (खुला) है वरना तलाक ( खानिया ) 


मसअला :- खरीद व फरोख़्त के लफ़्ज़ से भी खुलअ (खुला) होता है मसलन मर्द ने कहा मैंने तेरा अम्र या तेरी तलाक तेरे हाथ इतने को बेची औरत ने उसी मजलिस कहा मैंने कबूल की तलाक वाकेअ हो गई यूं

 हीं अगर महर के बदले में बेची और उस ने कबूल की हाँ अगर उस का महर शौहर पर बाकी न था और यह बात शौहर को मालूम थी फिर महर के बदले बेची तो तलाके रजई होगी ( खानिया ) 


मसअला :- लोगों ने औरत से कहा तूने अपने नफ़्स को महर व नफ़्का - ए- इद्दत के बदले खरीदा औरत ने कहा हाँ ख़रीदा फिर शौहर से कहा तूने बेचा उस ने कहा हाँ तो खुलअ (खुला) हो गया और शौहर तमाम हुकूक से बरी हो गया 

और अगर खुलअ (खुला) कराने के लिए लोग जमा हुए और अल्फाज़े मजकूरा ( यही अलफाज़ ) दोनों से कहा अब शौहर कहता है मेरे ख्याल में यह था कि किसी माल की खरीद व फरोख्त हो रही है जब भी तलाक़ का हुक्म देंगे ( आलमगीरी ) 


मसअला : - लफ़्ज़े बैअ से खुलअ (खुला) हो तो उस से औरत के हुकूक साकित न होंगे जब तक यह ज़िक्र न हो कि उन हुकूक के बदले बेचा ( खानिया ) 


मसअला :- शौहर ने औरत से कहा तूने अपने महर के बदले मुझ से तीन तलाकें खरीदीं औरत ने कहा खरीदी तो तलाक वाकेअ न होगी जब तक मर्द उस के बाद यह न कहे कि मैंने बेचीं और अगर शौहर ने पहले यह लफ़्ज़ कहे कि

 महर के बदले मुझ से तीन तलाकें खरीद और औरत ने कहा ख़रीदीं तो वाकेअ होगई अगर्चे शौहर ने बाद में बेचने का लफ़्ज़ न कहा ( खानिया ) 


मसअला :- औरत ने शौहर से कहा मैंने अपना महर और नफ़्का - ए - इद्दत तेरे हाथ बेचा तूने खरीदा शौहर ने कहा मैंने ख़रीदा उठ जा ।

 वह चली गई तो तलाक वाकेअ न हुई मगर एहतियात यह है कि अगरं पहले दो तलाकें न दे चुका हो तो तजदीदे निकाह करे ( खानिया ) 


मसअला :- औरत से कहा मैंने तेरे हाथ एक तलाक बेची और इसका ज़िक्र न किया औरत ने कहा मैंने ख़रीदी तो रजई पड़ेगी और अगर यह कहा कि मैंने तुझे तेरे हाथ बेचा और औरत ने कहा ख़रीदा तो बाइन पड़ेगी ( खानिया ) 


मसअला : - औरत ने कहा मैंने तेरे हाथ तीन हज़ार को तलाक बेची उस को तीन बार कहा आख़िर में औरत ने कहा मैंने खरीदी फिर शौहर यह कहता है कि

 मैंने तकरार के इरादे से तीन बार कहा था तो कज़ाअन उस का कौल मोअतबर नहीं और तीन तलाकें वाकेअ हो गयीं और औरत को सिर्फ तीन हज़ार देने होंगे

 नौ हज़ार नहीं कि पहली तलाक तीन हज़ार के एवज़ हुई और अब दूसरी और तीसरी पर माल वाजिब नहीं हो सकता और चूँकि सरीह है लिहाज़ा बाइन को लाहिक होंगी ( खानिया ) 


मसअला : - माल के बदले में तलाक दी और औरत ने कबूल कर लिया तो माल वाजिब होगा और तलाक बाइन वाकेअ होगी ( आलमगीरी ) 


मसअला : - औरत ने कहा हज़ार रुपये के एवज़ मुझे तीन तलाकें देदे शौहर ने उसी मज्लिस में एक तलाक दी तो बाइन वाकेअ हुई और हज़ार की तिहाई का मुस्तहक है और मज्लिस से उठ गया फिर तलाक दी तो बिला मुआवजा वाकेअ होगी 

और अगर औरत के उस कहने से पहले दो तलाकें दे चुका था और अब एक दी तो पूरे हज़ार पायेगा और अगर औरत ने कहा था कि हज़ार रुपये पर तीन तलाकें दे और एक दी तो रजई हुई 

और अगर इस सूरत में मज्लिस में तीन तलाकें मुतर्रिक कर के दीं तो हज़ार पायेगा और तीन मज्लिसों में दीं तो कुछ नहीं पायेगा ( दुरे मुख्तार रद्दुल मुहतार)


मसअला : - शौहर ने औरत से कहा हज़ार के एवज़ या हज़ार रुपये पर तू अपने को तीन तलाकें दे दे औरत ने एक तलाक दी तो वाकेअ न हुई ( दुर्रे मुख्तार ) 


 मसअला : - औरत से कहा हज़ार के एवज़ या हज़ार रुपये पर तुझ को तलाक है औरत ने उसी मज्लिस में कबूल कर लिया तो हज़ार रूपये वाजिब हो गये 

और तलाक़ हो गई हाँ अगर औरत सफीडा ( बेवकूफ ) है या कबूल करने पर मज़बूर की गई तो बगैर माल तलाक पड़ जायेगी और अगर मरीज़ा है तो तिहाई से यह रकम अदा की जायेगी ( दुर्रे मुख्तार ) 


 मसअला : - अपनी दो औरतों से कहा तुम एक को हज़ार रुपये के एवज़ तलाक है और दूसरी को सौ अशरफियों के बदले और दोनों ने कबूल कर लिया तो दोनों मुतल्लका हो गयीं

 और किसी पर कुछ वाजिब नहीं हाँ अगर शौहर दोनों से रुपये लेने पर राज़ी हो तो रुपये लाज़िम होंगे और राज़ी न हो तो मुफ़्त मगर उस सूरत में रजई होगी। ( दुर्रे मुख़्तार , रद्दुल मुहतार ) 



मसला : - औरत गैर मदखूला को हज़ार रुपये पर तलाक दी और उस का महर तीन हज़ार का था जो सब अभी शौहर के जिम्मे है तो डेढ़ हज़ार तो यूँ साकित हो गये 

कि कब्ल दुखूल दी है बाकी रहे डेढ़ हज़ार उन में हज़ार तलाक के बदले वज़अ हुए और पाँच सौ शौहर से वापस ले ( आलमगीरी ) 


मसअला :- महर की एक तिहाई के बदलें तलाक दी और दूसरी तिहाई के बदले दूसरी और तीसरी के बदले तीसरी तो सिर्फ पहली तलाक के एवज़ एक तिहाई साकित हो जायेगी और दो तिहाइयाँ शौहर पर वाजिब हैं ( आलमगीरी ) 



मसअला : - औरत को चार तलाकें हज़ार रुपये के एवज़ दीं उस ने कबूल कर लीं तो हज़ार के बदले में तीन ही वाक़े होंगी 

और अगर हज़ार के बदले में तीन कबूल कीं तो कोई वाकेअ न होगी और अगर औरत ने शौहर से हज़ार के बदले में चार तलाकें देने को कहा और शौहर ने तीन दीं तो यह तीन तलाकें हज़ार के बदले में होगयीं और एक दी तो एक हज़ार की तिहाई के बदले में ।  


मसअला : - औरत ने कहा हज़ार रुपये पर या हज़ार के बदले में मुझे एक तलाक दे शौहर ने कहा तुझ पर तीन तलाकें और बदले को ज़िक्र न किया 

तो बिला मुआविज़ा तीन हो गई और अगर शौहर ने हज़ार के बदले में तीन दीं तो औरत के कबूल करने पर मौकूफ है कबूल न किया कुछ नहीं और कबूल किया तो तीन तलाकें हज़ार के बदले में हुई ( आलमगीरी ) 


मसअला :- औरत से कहा तुझ पर तीन तलाकें हैं जब तू मुझे हज़ार रुपये दे तो फकत उस कहने से तलाक वाकेअ न होंगी 

बल्कि जब औरत हज़ार रुपये देगी यानी शौहर के सामने लाकर रख देगी उस वक़्त तलाकें वाकेअ होंगी 

अगर्चे शौहर लेने से इन्कार करे और शौहर रुपये लेने पर मजबूर नहीं किया जायेगा ( आलमगीरी ) 


मसअला : - दोनों राह चल रहे है और खुलअ (खुला) किया अगर हर एक का कलाम दूसरे के कलाम से मुत्तसिल ( मिला हुआ ) है तो खुलअ (खुला) सहीह है

 वरना नहीं और इस सूरत में तलाक भी वाकेअ नहीं होगी ( आलमगीरी ) 

औरत कहती है मैंने हज़ार के बदले तीन तलाकों को कहा था और तूने एक दी। 


मसअला :- शौहर कहता है तू ने एक ही को कहा था तो अगर शौहर गवाह पेश करे तो ठीक वरना औरत का कौल मोअतबर है ( आलमगीरी ) 


मसअला :- शौहर कहता है मैंने हज़ार रुपये तुझे तलाक दी तूने कबूल न किया औरत कहती है मैंने कबूल किया था तो कसम के साथ शौहर का कौल मोअतबर है 

और अगर शौहर कहता है मैंने हज़ार रुपये पर तेरे हाथ तलाक बेची तूने कबूल न की औरत कहती है मैंने कबूल की थी तो औरत का कौल मोअतबर है । (दुरै मुख्तार ) 


मसअला : - औरत कहती है मैंने सौ रुपये में तलाक देने को कहा था शौहर कहता है नहीं बल्कि हज़ार के बदले तो औरत का कौल मोअतबर है और दोनों ने गवाह पेश किये तो शौहर के गवाह कबूल किए जायें यूँही अगर औरत कहती है बगैर किसी बदले के खुलअ हुआ और 

शौहर कहता है नहीं बल्कि हज़ार रुपये के बदले में तो औरत का कौल मोअतबर है और गवाह शौहर के मक़बूल ( आलमगीरी ) 


मसला : - औरत कहती है मैंने हज़ार के बदले में तीन तलाक को कहा था तूने एक दी शौहर कहता है मैं ने तीन दीं अगर उसी मज्लिस की बात है तो शौहर का कौल मोअतबर है 

और वह मज्लिस न हो तो औरत का और औरत पर हज़ार की तिहाई वाजिब मगर इद्दत पूरी नहीं हुई है तो तीन तलाकें हो गयीं ( आलमगीरी ) 


मसअला : - औरत ने खुलअ (खुला) चाहा फिर यह दवा किया कि खुलअ (खुला) से पहले बाइन तलाक दे चुका था और उस के गवाह पेश किए तो गवाह मकबूल हैं और बदले खुलअ (खुला) वापस किया जाये ( आलमगीरी ) 


मसअला : - शौहर दावा करता है कि इतने पर खुलअ (खुला) हुआ औरत कहती है खुलअ (खुला) हुआ ही नहीं तो तलाक बाइन वाकेअ हो गई रहा माल उस में औरत का कौल मोअतबर है 

कि वह मुन्किर है और अगर औरत खुलअ (खुला) का दवा करती है और शौहर मुन्किर है तो तलाक वाकेअ न होगी ( दुर्रे मुख्तार ) 


मसअला : - ज़न व शौहर में इख़्तिलाफ़ हुआ औरत कहती है तीन बार खुलअ (खुला) हो चुका और मर्द कहता है कि दो बार अगर यह इख़्तिलाफ निकाह हो जाने के बाद हुआ और 

औरत का मतलब यह है कि निकाह सहीह न हुआ उस वास्ते कि तीन तलाकें हो चुकीं अब बगैर हलाला निकाह नहीं हो सकता और मर्द की ग़र्ज़ यह है कि निकाह सहीह हो गया 

उस वास्ते कि दो ही तलाकें हुई हैं तो इस सूरत में मर्द का कौल मोअतबर है और अगर निकाह से पहले इद्दत में या बाद इद्दत यह इख़्तिलाफ हुआ तो उस सूरत में निकाह करना जाइज़ नहीं 

दूसरे लोगों को भी यह जाइज़ नहीं कि औरत को निकाह पर आमादा ( तैयार ) करें न निकाह होने दें ( आलमगीरी ) 


मसअला : - मर्द ने किसी से कहा कि तू मेरी औरत से खुल कर तो उस को यह इख़्तियार नहीं कि बगैर माल खुलअ (खुला) करे ( आलमगीरी ) 


मसअला : - औरत ने किसी को हज़ार रुपये पर खुलअ (खुला) के लिए वकील बनाया तो अगर वकील ने बदले खुलअ (खुला) मुतलक रखा 

मसलन यह कहा कि हज़ार रुपये पर खुलअ (खुला) कर या उस हज़ार पर या वकील ने अपनी तरफ इज़ाफत की मसलन यह कहा कि मेरे माल से हज़ार रुपये पर या कहा हज़ार रुपये पर और मैं हज़ार रुपये का ज़ामिन हूँ 

तो दोनों सूरतों में वकील के कबूल करने से खुलअ (खुला) हो जायेगा फिर अगर रुपये मुतलक हैं 

जब तो शौहर औरत से लेगा वरना वकील से बदले खुलअ (खुला) का मुतालबा करेगा औरत से नहीं फिर वकील औरत से लेगा 

और अगर वकील के असबाब ( सामान ) के बदले खुलअ (खुला) किया और असबाब हलाक हो गये तो वकील उन की कीमते ज़मान दे ( आलमगौरी ) 


मसअला : - मर्द ने किसी से कहा कि तू मेरी औरत को तलाक देदे उस ने माल पर खुलअ (खुला) किया माल पर तलाक दी और औरत मदखूला है तो जाइज़ नहीं और गैर मदखूला है तो जाइज़ है ( आलमगीरी ) 


मसअला : - औरत ने किसी को खुलअ (खुला) के लिए वकील किया फिर रुजूअ कर गई और वकील को रुजूअ का हाल मालूम न हुआ तो रुजूअ सहीह नहीं 

और अगर कासिद भेजा था और उस के पहुँचने से कब्ल रुजू कर गई तो रुजूअ सहीह है अगर्चे कासिद को उस की इत्तिलाअ न हुई ( आलमगीरी ) 


मसअला : - लोगों ने शौहर से कहा तेरी औरत ने खुलअ (खुला) का हमें वकील बनाया शौहर ने दो हज़ार पर खुलअ किया औरत वकील बनाने से इन्कार करती है 

तो अगर वह लोग माल के ज़ामिन हुए थे तो तलाक़ हो गई और बदले खुलअ उन्हें देना होगा और अगर ज़ामिन न हुए थे और ज़ौज ( शौहर ) दावेदार है कि औरत ने उन्हें वकील किया था तो तलाक हो गई 

मगर माल वाजिब नहीं और अगर ज़ौज ( शौहर ) वकालत का दावेदार न हो तो तलाक़ न होगी । ( आलमगीरी ) 


मसअला : - बाप ने लड़की का उस के शौहर से खुलअ (खुला) कराया अगर लड़की बालिगा है और , बाप बदले खुलअ (खुला) का ज़ामिन हुआ तो खुलअ (खुला) सहीह है

 और अगर महर पर खुलअ (खुला) हुआ और लड़की ने इज़्न दिया था जब भी सहीह है

 और अगर बगैर इज़्न हुआ और ख़बर पहुँचने पर जाइज़ कर दिया जब भी हो गया 

और अगर जाइज़ न किया न बाप ने महर की ज़मानत की तो न हुआ 

और महर की ज़मानत की है तो होगया फिर जब लड़की को ख़बर पहुँची उस ने जाइज़ कर दिया तो शौहर महर से बरी है और जाइज़ न किया तो औरत शौहर से महर लेगी 

और शौहर उस के बाप से और अगर नाबालिगा लड़की का उस लड़की के माल पर खुलअ कराया तो सहीह यह है कि तलाक हो जायेगी 

मगर न तो महर साकित होगा न लड़की पर माल वाजिब होगा और अगर हजार रुपये पर नाबालिगा का खुलअ (खुला) हुआ और बाप ने ज़मानत की तो हो गया और रुपये बाप को देने होंगे और अगर बाप ने यह शर्त की बदले खुलअ (खुला) लड़की देगी 

तो अगर लड़की समझदार है यह समझती है कि खुलअ (खुला) निकाह से जुदा कर देता है तो उस के कबूल पर मौकूफ़ है कबूल कर लेगी तो तलाक है वाके हो जायेगी 

मगर माल वाजिब न होगा और अगर नाबलिगा की माँ ने अपने माल से खुलअ (खुला) कराया या ज़ामिन हुई तो खुलअ (खुला) हो जायेगा 

और लड़की के माल से कराया तो तलाक़ न होगी यूँहीं अगर अजनबी ने खुलअ (खुला) कराया तो यही हुक्म है ( आलमगीरी , दुरै मुख्तार , वगैराहुमा ) 


मसअला :- नाबालिगा ने अपना खुलअ (खुला) खुद कराया और समझदार है तो तलाक़ वाक़े हो जायेगी 

मगर माल वाजिब न होगा और अगर माल के बदले तलाक दिलवाई तो तलाक रजई होगी ( आलमगीरी , रद्दुल मुहतार ) 


मसअला : - नाबालिगा लड़का न खुद खुलअ (खुला) कर सकता है न उस की तरफ से उस का बाप ( रद्दुल मुहतार ) 


मसअला : - औरत ने अपने मर्जुल मौत में खुलअ (खुला) कराया और इद्दत में मर गई तो तिहाई माल मीरास और बदले खुलअ (खुला) उन तीनों में जो हुक्म है 

शौहर वह पायेगा और अगर उस बदले खुलअ (खुला) के अलावा कोई माल ही न हो तो उस की तिहाई और मीरास में जो कम है वह पायेगा

 और अगर इद्दत के बाद मरी तो बदले खुलअ (खुला) ले लेगा जबकि तिहाई माल के अन्दर हो और औरत गैर मदख़ूला है और मर्जुल मौत में पूरे महर के बदले खुलअ (खुला) हुआ तो आघा महर तलाक की वजह से साकित है

 रहा निफ़्फ़ ( आधा ) अब अगर औरत के और माल नहीं है तो उस निस्फ़ की चौथाई का शौहर हक़दार है ( आलमगीरी रहुल मुहतार )


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