humbistari ki dua urdu

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मुबाशरत के आदाब - biwi se humbistari ke baad ki dua

अल्लाह रब्बुल इज्ज़त इरशाद फ़रमाता है : तो उनसे शहवत करो और तलब करो जो अल्लाह ने तुम्हारे नसीब में लिखा हो । ( तर्जमा कंजुल ईमान पारा -2 सूरह बकरा रुकूअ - 7 )


 हदीस :- नबी ए करीम स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया : " तुम में से किसी का अपनी बीवी से मुबाशरत (sex) करना भी सदका है ।

 सहाबाए किराम ने अर्ज किया : या रसूल अल्लाह ! कोई शख़्स अपनी शहवत (sex) पूरी करेगा और उसे अजर भी मिलेगा ?

 हुजूर ने इरशाद फरमाया : हाँ ! अगर वह हराम मुबाशरत करता तो क्या वह गुनहगार न होता ? 

इसी तरह वे जाइज़ मुबाशरत (sex) करने पर अजर का मुस्तहिक है । इस बात का हमेशा ख़्याल रखे कि जब भी मुबाशरत (sex) का इरादा हो तो ये मालूम कर ले कि कहीं औरत हैज़ ( period ) से तो नहीं है । 

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चुनाँचे औरत से साफ़ साफ़ पूछ लें और औरत की भी ज़िम्मादारी है कि अगर वह हाएज़ा (period) हो तो बेझिजक अपने शौहर ( husband)  को उससे आगाह करे । 

अगर औरत हालते हैज (period) में हो तो हरगिज़ मुबाशरत (sex) न करे कि उन अय्याम में मुबाशरत (sex) करना बहुत बड़ा गुनाह है । इस मसलों का मुफ़स्सल बयान इंशाअल्लाह आगे आएगा । 


अक्सर औरतें शादी की पहली रात हालते हैज़ (period time) में होने के बावजूद शर्म की वजह से बताती नहीं हैं या अगर कह भी दें तो बहुत कम मर्द होते हैं जो सब्र से काम लेते हैं । फिर इस जल्द बाज़ी की सज़ा उम्र भर डाक्टरों (Doctor's) और हकीमों की फीस की शकल में भुगतते फिरते हैं । 


लिहाज़ा मर्द और औरत दोनों को ऐसे मौकों पर सब्र से काम लेना चाहिए । कुछ मर्द मतलब परस्त होते हैं । उन्हें सिर्फ अपने मतलब से ही लेना होता है । 

वह दूसरों की खुशी को कोई अहमियत नहीं देते और यही जिमाअ होता है तो ये नहीं देखते कि औरत इसके लिए तैय्यार है या नहीं ।


 वह कहीं किसी दुख , दर्द या बीमारी में मुबतला तो नहीं है । इन सब बातों से उन्हें कोई मतलब नहीं होता । वह बेसब्री के साथ औरत से अपनी ख़्वाहिश की तकमील कर लेते हैं



इस हरकत से औरत की निगाह में मर्द की इज्ज़त कम हो जाती है और वह मर्द को मतलब परस्त समझने लगती है । साथ ही मुबाशरत का वह लुत्फ़ भी हासिल नहीं हो पाता है जो ! दोनों तरफ है आग बराबर लगी हुई का मंजर पेश कर सके । 



हदीस :- हज़रत उतबा बिन सलमा रदि अल्लाहु ताला अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमायाः 

 तुम में से जो कोई अपनी बीवी के पास जाए तो पर्दा कर ले और गधों की तरह न शुरू हो जाए । ( इब्न माजा जिल्द 1 बाब - 616 हदीस- 1990 सपहा - 538 ) 



हदीस :- सय्यद इमाम मुहम्मद ग़ज़ाली रदि अल्लाहु ताला अन्हु रिवायत करते हैं कि सरकारे मदीना स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम ले इरशाद फरमायाः

  मर्द को चाहिए कि अपनी औरत पर जानवरों की तरह न गिरे । सोहबत (sex)  से पहले कासिद होता है । सहाबए किराम ने अर्ज़ किया : या रसूलुल्लाह ! वे कासिद क्या है ? 

 इरशाद फरमाया : बोसो किनार (kiss) और मुहब्बत आमेज़ गुफ्तगू वगैरा है । " ( कीमियाए सआदत सपहा - 266 )


यह हदीस उम्मुल मोमिनीन हज़रत आयशा सिद्दीका रदि अल्लाहु ताला अन्हा से मरवी है कि रसूल अल्लाह स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमायाः 

 जो मर्द अपनी बीवी का हाथ उसको बहलाने के लिए पकड़ता है , अल्लाह तआला उसके लिए एक नेकी लिख देता है । जब मर्द मोहब्बत से औरत के गले में हाथ डालता है , उसके हक में दस नेकियाँ लिखी जाती हैं और जब औरत से जिमाअ करता है तो दुनिया व माफ़ीहा से बेहतर हो जाता है । ( गुनयतुत्तालिबीन बाब - 5 सपहा - 113 ) 



 सोहबत (sex) से पहले खुद बेचैन न हो जाए अपने आप पर पूरा इत्मीनान रखें जल्द बाज़ी न करें । पहले बीवी से प्यार व मोहब्बत 

 भरी गुफ्तगू करें । 

फिर बोसो किनार (kiss ) के जरीए से मुबाशरत के लिए आमादा करें और उस दौरान , दिल ही दिल में ये दुआ पढ़ें । 

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 अल्लाह के नाम से जो बुजुर्ग व बरतर अज़मत वाला है , अल्लाह तआला बहुत बड़ा है , अल्लाह बहुत बड़ा है । 

 इसके बाद जब मर्द औरत सुहबत (sex) का इरादा कर लें तो बरहना होने से कब्ल एक मरतबा सूरह इखलास , पढ़ें : सूरह इख़लास पढ़ने के बाद ये दुआ पढ़ें : 

 अल्लाह के नाम से ऐ अल्लाह ! दूर कर हम से शैतान मरदूद को और दूर कर शैतान मरदूद को उस औलाद से जा तू हमें अता करे । ( बुखारी शरीफ जिल्द - 3 हदीस- 473+ मुस्लिम शरीफ़ जिल्द - 1 | सफ़हा - 165+ इहयाउलउलूम जिल्द - 2 सफा - 93 + हिस्ने हसीन सफा - 165 ) 


हदीस : हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रदि अल्लाहु ताला अन्हु से रिवायत है कि रसूले करीम स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमायाः जो शख़्स इस दुआ को सोहबत (sex) के वक़्त पढ़ेगा ( वही  दुआ जो ऊपर लिखी गई है )

 तो अल्लाह तआला उस पढ़ने वाले को अगर औलाद अता फरमाए तो उस औलाद को शैतान कभी भी नुक्सान न पहुंचा सकेगा । ( बुखारी शरीफ जिल्द - 3 हदीस- 150 सफ़्हा 85 + मुस्लिम शरीफ जिल्द -1 सपहा - 463 + तिमिजी शरीफ जिल्द -1 सदीस -1087 सपहा -557 ) 


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