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कियामत , ह्श्र व नश्र और बर्ज़ख़ का बयान
(1) मुफस्सिरीने किराम का कौल है कि कियामत का दिन सिर्फ हिसाब के लिये नहीं , उस दिन और काम भी होंगे ।
रब तआला फरमाता है तमाम बन्दों का हिसाब बहुत थोड़े वक़्त में हो जाएगा , चार (4) घंटे या इस से भी कम वक्त के और दिन है पचास (50000) हज़ार साल का ।
बाकी वक़्त में हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शान का इज़्हार होगा । ( तफसीरे नईमी )
(2) क़यामत में हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का न हिसाब होगा न आमाल तौले जाएंगे बल्कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के कुछ ख़ादिम बिना हिसाब किताब जन्नत में जाएंगे ।
आदाबुल मुरीदीन की शरह में लिखा है कि एक रोज़ हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि मेरी उम्मत में सत्तर (70000) हज़ार लोग ऐसे हैं जिन का हिसाब किताब नहीं वह बेहिसाब जन्नती हैं ।
हज़रत उकाशा रज़ियल्लाहु अन्हु खड़े हो गए और अर्ज़ कियाः या रसूलल्लाह मुझे भी उन्ही में कर दीजिए । फरमाया कर दिया । ( सम ए सनाबिल शरीफ )
(3) इमाम दारमी अपनी सुनन में हज़रत अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत करते हैं कि मालिके जन्नत हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाते हैं :
- मैं सब से पहले कब्र से बाहर आऊंगा जब लोग उठाए जाएंगे ।
- और मैं उन का पेशवा हूँ जब वह हाज़िरे बारगाह होंगे ।
- और मैं उन का ख़तीब हूँ जब वह दम बखुद होंगे ।
- और मैं उन का शफीअ हूँ जब वह महबूस होंगे ।
- और मैं खुशख़बरी देने वाला हूँ जब वह नाउम्मीद होंगे ।
- इज्ज़त की कुन्जियाँ उस दिन मेरे हाथ में हैं ।
- और लिवाउल हम्द भी उस दिन मेरे हाथ में होगा । ( दारमी )
qayamat ka din |
( 4 ) इब्ने अब्द रब्बा किताब बहजतुल मजालिस में रिवायत करते हैं कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाते हैं :
क़यामत के दिन सिरात के पास एक मिम्बर बिछाया जाएगा फिर एक फरिश्ता आकर उस के पहले जीने पर खड़ा होगा और निदा करेगाः
ऐ मुसलमानों के गिरोह जिस ने मुझे पहचाना उस ने पहचाना और जिस ने न पहचाना तो मैं मालिक दारोग़ ए दोज़ख़ हूँ ।
अल्लाह तआला ने मुझे हुक्म दिया है कि जहन्नम की कुन्जियाँ मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को दे दूँ और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का हुक्म है कि अबू बक्र सिद्दीक के सिपुर्द कर दूँ , हाँ हाँ गवाह हो जाओ ।
फिर एक फरिश्ता दूसरे जीने पर खड़े होकर पुकारेगाः ऐ मुसलमानों के गिरोह जिस ने मुझे पहचाना उस ने जाना और जिस ने न जाना तो मैं रिज़वान दारोग़ ए जन्नत हूँ ।
मुझे अल्लाह तआला ने हुक्म दिया है कि जन्नत की कुन्जियां मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को दे दूँ और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का हुक्म है कि अबू बक्र के सिपुर्द कर दूँ ।
हाँ हाँ गवाह हो जाओ , हाँ हाँ गवाह हो जाओ ।
(5 ) हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम दमिश्क की जामेअ उमवी की मश्रिकी जानिब सफेद मीनार के पास नुजूल फरमाएंगे ।
दो कपड़े रंगे हुए पहने , दो फरिश्तों के परों पर हाथ रखे होंगे ।
जब अपना सर झुकाएंगे बालों से पानी टपकने लगेगा और जब सर उठाएंगे तो मोती झड़ने लगेंगे । ( अबू दाऊद , बुखारी शरीफ , मुस्लिम वगैरा )
(6) हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की दुआ पर अल्लाह तआला याजूज माजूज पर नगफ नामी एक कीड़ा भेजेगा जो उन के नथुनों में घुस जाएगा । सुबह को सब मरे पड़े होंगे । ( तफ़सीरे नईमी )
(7) हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा का बयान है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः ईसा अलैहिस्सलाम नाज़िल हो कर पैंतीस (45) साल दुनियां में क़याम फरमाएंगे ।
इस अर्से में वह निकाह करेंगे और उन के औलाद होगी फिर वफात पाकर मेरे मकब्रे में दफ्न किये जाएंगे ।
उन की क़ब्र अबू बक्र और उमर की कब्रों के बीच होगी । ( तफसीरे नईमी )
(8) हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत है कि क़ियामत के दिन दोज़ख़ को सातवीं ज़मीन के नीचे से इस हालत में लाया जाएगा कि उसके चारों तरफ फरिश्तों की सत्तर (70000) हजार जमात होंगी ।
- हर सफ की तादाद जिन्न और इन्सान की तादाद से सत्तर (70000) हज़ार गुना ज़्यादा होगी ।
- फ़रिश्ते उसकी लगामें खींचते होंगे । जहन्नम के चार (4) पावँ होंगे ।
- एक से दूसरे पावँ में एक (100000) लाख फासला होगा ।
- और तीस (30000) हज़ार सर होंगे ।
- हर सर में तीस (30000) हज़ार मुंह ।
- हर मुँह में तीस (30000) हज़ार दांत ।
- हर दांत तीस (30000) हज़ार बार कोहे उहद से बड़ा
- और हर मुंह में दो (2) होंट ।
- हर होंट की चौड़ाई दुनियां के बराबर होगी ।
- हर होंट में लोहे की एक ज़न्जीर ।
- हर ज़न्जीर में सत्तर (70000) हज़ार हलके होंगे।
- हर हलके को बहुत से फरिश्ते थामे होंगे ।
- इस हालत में जहन्नम को अर्श के बाएं जानिब लाकर रखेंगे । ( दकाइकुल अख़बार )
(9) जनाबे रसूले मकबूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि क़यामत से पहले मुल्के हिजाज़ में एक आग निकलेगी कि उसकी रौशनी से शहर बसरा की पहाड़ियाँ रौशन होंगी ।
सो 954 हिजरी में मदीनए मुनव्वरा के मुतस्सिल एक आग बतौर शहर के ज़मीन से निकली , एक मुद्दत तक रही फिर गायब हो गई । ( सीरते रसूले अरबी )
( 10) इब्न अबी शैबा हसन रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत करते हैं कि दोज़खी एक दिन में सत्तर (70000) हज़ार बार जलाया जाएगा और जब उसका चमड़ा गल सड़ कर गिर पड़ेगा तो वह फिर वैसा ही कर दिया जाएगा । ( दुरै मन्सूर )
( 11 ) रिवायतों में है कि हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की वालिदा हज़रत बीबी और फिरऔन की बीवी हज़रत आसिया हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के निकाह में आएंगी । ( गुल्दस्तए तरीकत )
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( 12 ) हदीस में है कि मीसाके अज़ल का अहदनामा संगे अस्वद में महफूज़ है । संगे अस्वद ख़ानए कअबा में नसब है । कल कयामत के दिन यह पत्थर इस तरह आएगा कि उसके आँखें , ज़बान , मुंह वगैरा सब कुछ होगा । ( नुज्हतुल कारी )
(13 ) हुजूरे अकदस सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि जन्नत वालों की पहली ग़िज़ा मछली का जिगर होगा कि इसके कबाब जन्नतियों को खिलाए जाएंगे । ( गुल्दस्त तरीकत )
(14) मरने के बाद मुसलमान की रूह मर्तबे के मुताबिक अलग अलग जगहों पर रहती है ।
- कुछ की कब्र पर।
- कुछ की चाहे ज़मज़म में।
- कुछ की आसमान और ज़मीन के बीच।
- कुछ की पहले दूसरे और सातवें आसमान तक।
- कुछ की आसमानों से भी बलन्द ।
- और कुछ की रूहें अर्श के नीचे कन्दीलों में ।
- और कुछ की आला इल्लियीन में । ( तोहफतुल वाइज़ीन )
(15) काफिरों की रूहें कुछ की मरघट या कब्र पर ,
कुछ की चाहे बरहूत में जो यमन में एक नाला है।
कुछ की पहली , दूसरी और सातवीं ज़मीन तक , कुछ की उसके भी नीचे सिज्जियीन में । ( तोहफतुन वाइज़ीन )
(16) दज्जाल की पेशानी पर ' हाज़ा काफिर ' लिखा होगा और उसकी एक आँख कानी होगी । ( तफ़सीरे नईमी )
( 17 ) कयामत के करीब एक धुंवाँ मश्रिक से मग़रिब तक चालीस (40) दिन तक छाया रहेगा ।
इसके असर से मोमिनीन पर जुकाम की सी कैफियत तारी होगी और काफिरों को नशा चढ़ जाएगा , उनके नाक , कान और मुंह से धुवाँ निकलेगा । ( तफसीरे नईमी )
(18) दाब्बतुल अर्ज़ मक्के में सफा पहाड़ी के पास से निकलेगा ।
- उसके पास हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम का असा।
- और हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम की मुहर होगी जिससे मोमिन की पेशनी पर ' हाज़ा मोमिन ।
- और काफिर के माथे पर ' हाजा काफिर ' की मुहर लगाएगा । ( सीरते रसूले अरबी )
- हजरत ईसा अलैहिस्सलाम मीनारे के करीब नाज़िल होकर दज्जाल को कत्ल करेंगे । ( बुख़ारी शरीफ )
(19) हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम मुल्के शाम की जायेअ उमवी के सफेद पड़ोसी को सताने वाले होंगे । ( बुख़ारी शरीफ )
( 20) महशर के दिन कुछ लोग बिना हाथ पाव के कब्रों से निकलेंगे ।
( 21 ) कुछ लोग सुअर की सूरत में उठेंगे , यह नमाज़ों में सुस्ती करने वाले ।
( 22 ) कुछ लोग कब्र से ख़ून थूकते हुए उठेंगे , यह लोग ख़रीदो फरोख्त में दयानतदार न होंगे।
(23) कुछ लोग कब्रों से सूजे फूले हुए उठेंगे , यह खुदा से न डरने वाले होंगे जो इन्सानों के डर से गुनाहों को छुपाया करते थे और इसी हालत में मर होंगे झूट बोलने वाले होंगे । ( बुखारी शरीफ )
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(24) कुछ लोग गुद्दी और गला कटे हुए निकलेंगे , यह झूटी गवाही देने वाले होंगे । ( बुख़ारी शरीफ )
(25) कुछ लोग वह होंगे जिन के मुहं में ज़बान न होगी और मुंह से पीप और ख़ून जारी होगा । यह लोग सच्ची गवाही छुपाने वाले होंगे । ( बुखारी शरीफ )
(26) कुछ लोग सर झुकाए कब्रों से निकलेंगे और उनके पावँ सर पर होंगे , यह वह लोग होंगे जो ज़िना करते करते बिना तौबा किये मर गए थे । ( बुखारी शरीफ )
(27) कुछ लोग कब्र से कोढ़ी और जुज़ामी होकर उठेंगे , यह माँ बाप के ना फरमान लोग होंगे । ( बुख़ारी शरीफ )
(28) कुछ लोग इस तरह उठेंगे कि उनके मुंह काले , आँखें करन्जी और पेट में आग भरी होगी , यह वह लोग हैं जो ज़बरदस्ती नाहक यतीमों का माल खा जाया करते थे । ( बुख़ारी शरीफ )
(29) ऐसे लोग कब्रों से उठेंगे जिनके चेहरे चौदहवीं के चांद की तरह चमकते होंगे ।
यह लोग पुल सिरात से कौंदती बिजली की तरह गुज़र जाएंगे । यह लोग नेक अमल करने वाले , गुनाहों से बचने वाले , नमाज़ की हिफाजत करने वाले और तौबा के बाद लोग होंगे । ( बुख़ारी शरीफ )
(30) कुछ लोग इस हालत में कब्रों से उठेंगे कि उनका दिल भी अन्धा होगा और आँखें भी ।
दाँत बैल के सींग के बराबर होंगे , होंट सीने पर और ज़बान पेट या रान पर पड़ी होगी । यह शराब पीने वाले लोग होंगे । ( बुख़ारी शरीफ )
( 31) रसूले खुदा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः दोज़ख़ में जलने वाले से ज्यादा किसी पर अज़ाब न होगा । ( बुख़ारी ) मरने वाले
(32 ) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कयामत की जो निशानियाँ बयान फरमाई उनमें
- बाज़ारों का मन्दा ,
- बारिश की कमी ,
- सूद ख़्वारी ,
- हरामी सूद खाने
- बच्चों की ज्यादती ,
- दौलत मन्दों की तअज़ीम ,
- मस्जिदों में फासिकों का शोरो और बुरों का अहले हक पर ग़लबा शामिल है । ( बुखारी शरीफ )
(33) गुल खड़ा रहेगा । पहला उम्र का कि किस चीज़ में फना का ?
दूसरा जिस्म का कि किस मशगुले में बूढ़ा किया ?
तीसरा इल्म का कि पढ़ लिख कर क्या अमल किय ?
और चौथा माल का कि कहाँ से कमाया और कहाँ खर्च किया ? ( तरीकए मुहम्मदिया )
(34) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाते हैं मेरी उम्मत पर एक ज़माना ऐसा आएगा कि लोग उलमा और फुकहा से नफरत करने लगेंगे ।
उस वक्त अल्लाह तआला उनको तीन (3) तरह की बलाओं में गिरफ्तार करेगा ।
- पहली कमाइयों में बरकत न रहेगी ।
- दूसरी उन पर अल्लाह तआला ज़ालिम हुक्मराँ मुसल्लत फ़रम देगा ।
- और तीसरी दुनिया से बेईमान उठेंगे । ( मुकाशिफतुल असरार )
(35 ) रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः कयामत उस वक़्त तक कायम न होगी जब तक दो जमाअतों में जंगे अज़ीम रूनुमा न हो जाए हालांकि दोनों का दावा एक ही हो ।
और कयामत उस वक़्त तक कायम नहीं हो सकती जब तक तकरीबन तीस झूटे दज्जाल दुनियां में न आ चुकें जिन में हर एक यह कहता होगा कि मैं अल्लाह का रसूल हूँ । ( तोहफतुल वाइज़ीन )
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(36) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः जो औरत अपने शौहर को अपनी ज़बान से तकलीफ देगी , कयामत के दिन उसकी ज़बान सत्तर (70) हाथ की होकर गुद्दी के पीछे लग जाएगी । ( तोहफतुल वाइज़ीन )
(37) हज़रत अबू बक्र सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु रसूले खुदा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से रिवायत करते हैं कि जो औरत अपने ख़ाविंद को अपनी ज़बान दराज़ी के कारण सताएगी वह खुदा की लअनत , उसके ग़ज़ब और तमाम फ़रिश्तों की लअनत और आदमियों की फिटकार में गिरफ्तार रहेगी । ( तोहफ्तुल वाइज़ीन )
( 38 ) तीन (3) शख़्स दोज़ख़ की तह में डाले जाएंगे :
- पहला मुश्रिक ,
- दूसरा पड़ोसी की बीवी से जिना करने वाला ।
- और तीसरा माँ बाप का नाफरमान । ( गुल्दस्तए तरीकत )
(39) दज्जाल लईन शाम और इराक के दरमियान से निकलेगा । चालीस (40) दिन रहेगा ।
पहला दिन एक साल का होगा , दूसरा दिन एक माह का तीसरा दिन एक हफ्ते का , बाकी दिन जैसे होते हैं उसी कदर ( सीरते रसूले अरबी )
( 40 ) नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि कयामत के दिन है ? जहन्नम से निकलेगा । उस एक जानवर हरीश नामी जो बिच्छू की नस्ल से है , उसकी लम्बाई आसमान और ज़मीन के फासले के बराबर होगी और चौड़ाई मश्रिक से मग़रिब तक होगी ।
हज़रत जिब्रईल अलैहिस्सलाम पूछेंगे :
ऐ हरीश तुझे किस की तलाश है ?
वह कहेगाः पाँच तरह के आदमियों की
- एक बेनमाज़ी ,
- दूसरा ज़कात न देने वाला ,
- तीसरा माँ बाप का नाफरमान ,
- चौथा शराबी
- और पांचवाँ मस्जिद में दुनिया की बातें करने वाला ।
कहाँ का इरादा है ?
वह जवाब देगा : महशर के मैदान की तरफ । ( जुब्दतुल वाइज़ीन )
( 41 ) आख़िरत में हकबह का हिसाब है । एक एक हकबह वहां अस्सी अस्सी (80-80) बरस का होगा , एक एक बरस तीन सौ साठ (360) दिन का और एक दिन पचास हज़ार (50000) बरस के बराबर होगा ।
इस तरह एक हकबह हिसाब में 140 करोड़ बरस का होता है । ( गुल्दस्तए तरीकृत )
( 42 ) हज़रत अलीये मुर्तज़ा कर्रमल्लाहु तआला वजहहुल करीम से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः
एक ज़माना ऐसा आने वाला है कि इस्लाम का फक्त नाम रह जाएगा और दीन की फकत रस्म और कुरआन का फ़क्त दर्स बाकी रह जाएगा ।
मस्जिदें बज़ाहिर आबाद होंगी मगर हकीकत में अल्लाह के ज़िक्र से ख़ली होंगी ।
उस ज़माने के उलमा सबसे ज़्यादा शरीर होंगे । फिले उन्हीं से निकल कर उन्हीं की तरह पलट जाएंगे और यह कयामत की निशानियाँ हैं । ( जुबदतुल वाइज़ीन )
( 43 ) महशर के दिन तमाम मखलूकात बैतुल मकद्दिस के मुत्तसिल एक मकाम पर जमा होंगी जिसका नाम साहिरा है । ( गुल्दस्तए तरीकृत )
( 44 ) कुछ रिवायतों में है कि अर्सए कियामत में एक सौ बीस (120) सफें होंगी , हर सफ की लम्बाई चालीस हज़ार बरस और चौड़ाई बीस हज़ार बरस की होगी । उन में मोमिनों की तीन सफें होंगी और बाकी काफिरों की । ( तोहफतुल वाइज़ीन )
(45 ) रिवायत में है कि लोग कब्रों से उठ कर चालीस (40) बरस तक अपनी अपनी जगह खड़े रहेंगे । वहां खाना , पीना , बोलना , बैठना कुछ न होगा । ( तोहफ्न्तुल वाइज़ीन )
(46) हदीस शरीफ में है कि कयामत के दिन जब अल्लाह तआला मखलूक को कब्रों से उठाएगा तो फरिश्ते मोमिनीन की कब्रों पर आकर उनके सरों की मिट्टी पोंछेंगे और सन्दे में जो अंग ज़मीन पर लगते हैं उनके अलावा जिस्म की सारी मिट्टी झाड़ देंगे ।
पेशानियों से मिट्टी का असर ज़ाइल न होगा । उस वक्त निदा होगी : ऐ फरिश्तो यह कब्र की मिट्टी नहीं है बल्कि सज्दों की
और देखने वाले समझ लें कि यह मेरे ख़ादिम और बन्दे हैं । है , इनको छोड़ दो ताकि पुले सिरात से गुज़र कर जन्नत में दाख़िल हो जाएं । ( तोहफतुल वाइजीन )
(47) सिफारिशी की तलाश के वक़्त अम्बियाए किराम एक जगह न होंगे , अलग अलग मकामात पर होंगे । एक हज़ार (1000) साल तक लोग उन्हें ढूंडते फिरेंगे । एक हज़ार (1000) साल बाद हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का पता चलेगा तब और दूसरे नीचे रहेंगे ।
सहाबए किराम के चुनान्चे सिद्दीकीन हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ख़िदमते अकदस में शफाअत तलब करते हुए अपनी दरख्वास्त पेश करेंगे । ( तफसीरे नईमी )
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( 48 ) कयामत के दिन खुलफाए राशिदीन मुख़्तलिफ झन्डे होंगे ।
- मोमिन इन झन्डों के हज़रत अबू बक्र सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु के झन्डे तले , आदिलीन ।
- फारूकी झन्डे तले , तमाम सखी दाता लोग ।
- उस्मानी झन्डे तले , तमाम शहीद ।
- हैदरी झन्डे तले , फुकहा ।
- हज़रत मआज़ बिन जबल के झन्डे तले , तमाम ज़ाहिदीन।
- हज़रत अबूज़र गिफारी के परचम तले , तमाम फुकुरा व मसाकीन।
- हज़रत अबुद दरदा के झन्डे तले , हर कारी ।
- उबइ बिन कअब के परचम के साए में तमाम मुअज्ज़िन ।हज़रत बिलाल के झन्डे तले ।
- और तमाम मज़लूमीन सय्यदुना इमाम हुसैन के परचम तले जमा होंगे । रिज़वानुल्लाहि तआला अलैहिम अजमईन । ( तफसीरे रुहुल बयान )
(49 ) क़यामत के दिन सारे मोमिन और काफिर एक ही जगह जमा होंगे । फिर छाँट कर दी जाएगी , मोमिन अर्श के दाएं तरफ और काफिर बाएं तरफ रखे जाएंगे । ( तोहफ्तुल वाइज़ीन )
(50) हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि उम्मते मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम में हमेशा तीन सौ चली रहेंगे जिन के दिल आदम अलैहिस्सलाम के कल्बे पाक की तरह होंगे और चालीस कल्ब मूसा अलैहिस्सलाम पर ,
सात कल्ब इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर , पांच कल्ब जिब्रईल अलैहिस्सलाम पर , तीन (3) कल्ब मीकाईल अलैहिस्सलाम पर और एक (1) कल्ब इस्त्राफील अलैहिस्सलाम पर ।
जब उस एक की वफात होगी तो उन तीन एक उन तीन में और सात (7) में से एक यहाँ कायम हो जाएगा और पाँचों (5) में में से एक उन पांच में और चालीस (40) में से एक उन तीन सौ (300) में दाख़िल होकर यह गिन्ती पूरी रखेंगे । इनके तुफैल बलाएं दफा होती रहेंगी । ( मिरकात )
(51) रूहुल बयान में है कि उमम्ते मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम में चालीस (40) अब्दाल , सात (7) अमीन , तीन (3) खुलफा और एक (1) कुत्बे आलम होगा । ( तोहफतुल वाइज़ीन )
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