Ghous e azam kise kahate hain, Gaus-e-aajam kise kahate hain, gaus e aazam kise kahate hain, gause aazam kise kahate hain, gaus e aajam kise kahate hain, gaus e azam meaning
गौश ए आजम किसे कहते हैं? जनिये
ग़ौस-ए-आजम किस कहते हैं?
गौस का मतलब फरियाद रस, फरियाद सुनने वाला है और ग़ौस-ए-आज़म का मतलब जिन्नातों और इन्सानों के फरियाद रस लेकिन कुछ वहाबी विचारधारा ऐसे भी होते हैं।
अम्बिया और औलिया से मदद मांगना कैसा है पढ़ें
जिसे पढ़ कर हमारे भोले भाले सुन्नी मुसलमान भाई बहक जाते हैं पहले इनका अकी़दा पढ़ें और इसके नीचे इनका जवाब भी पढ़ कर अपने ईमान की हिफाज़त करें खुद भी बचें और दूसरों को भी बचायें और अपने दोस्तों रिश्तेदारों को शेयर करें।
ghous e azam kise kahate hain |
इनका झांसा देने का तरीका तो देखें की जो गौसे आज़म की अज़मत जानने के लिए इन्टरनेट पर विजिट करे उसे टाइटल लिख कर कि गौसे आज़म किसे कहते हैं के नाम पर जल्द लोग पढ़ने लगेंग उसके बाद कुछ भी लिखो लोग उनके जाल में फंसते चले जायेंगे।
गौश ए आजम किसे कहते हैं?
ग़ौस-ए-आजम किस कहते हैं?
दीन-ए-इस्लाम ने अकीदा-ए-तौहीद के हवाला से याही तालीम दी है की अल्लाह के सिवा और कोई मददगार नहीं, नफा वा नुक्सान सिर्फ अल्लाह तआला के ही इख्तियार में है, सिर्फ वही मुश्किल कुशा है वही खालिक, राज़िक़ है। मिसाल के तौर पर कुछ आयत पेश की जाति है
- और मदद तो अल्लाह ताला ही की तरफ से है जो ग़ालिब वा हिकमत वाला है। (सूरह आले इमरान 3, आयत-126)
- और वो अपने लिए अल्लाह ताला के सिवा कोई मदद और हिमायती नहीं पायेंगे (सूरह अहज़ाब 33, आयत-18)
- और तुम्हारे लिए अल्लाह के सिवा कोई हिमायती और मदद नहीं (सूरह बक़रा 2, आयत-107)
- अगर अल्लाह तुम्हारी मदद करे तो तुम पर कोई ग़ालिब नहीं हो सकता, और अगर वो तुम्हारा साथ छोड़ दे तो उसके बाद कौन है जो तुम्हारी मदद करे? और अल्लाह ही पर भरोसा करना है ईमान वालो को (सूरह आले इमरान 3, आयत-160)
- और अल्लाह काफ़ी है हिमायत के लिए और अल्लाह काफ़ी है मदद के लिए (सूरह निसा 4, आयत-45)
- और तुम्हारे लिए अल्लाह के सिवा कोई वाली (हिमायती) और मदद नहीं (सूरह तौबा 9, आयत-116)
इन आयत से ये हकीकत वजेह हो जाती है की सिर्फ अल्लाह ताला ही हकीकत मददगार, सबसे बड़ा मदद यानी "गौस-ए-आज़म" है जब की दीगर बहुत सी आयात में न सिर्फ ग़ैरुल्लाह को पुकारने के लिए गई है और ऐसा करने वाले को मुशरिक, ज़ालिम कहा गया है।
ये सब बद अकी़दा बद मज़हबों के हैं अब पेश है इनका जवाब।
ऐसे कह कर और बतला कर अहले सुन्नत के भोले भाले लोगों को झांसा देने में कामयाब हो जाते हैं जैसे ही ये पोस्ट हमारे नज़रों से गुज़रा फ़ौरन हमने इसका जवाब लिख कर आप लोगों के सामने पेश कर रहे हैं।
ताकि ऐसे भोले भाले सुन्नी सहीहुल अकी़दा लोगों को गुमराह होने से बचाया जा सके या यह कह लिया जाये कि बद अकीदा बनने से पहले ये पोस्ट उन तक पहुंचाया जा सके और उनका ईमान बचाया जा सके।
अक्सर जब बुजुर्गाने दीन की अकी़दत की बात आती है तो तमाम बद अकी़दों के हालत खराब होने लग जाती है।
पेश है कुछ जवाब।
अल्लाह कु़रआन में इरशाद फरमाता है।
अ़तीउल्लाहा व अ़तीउर रसूल
इताअ़त करो अल्लाह रब्बुल आ़लमीन की और इताअ़त करो रसूल स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम की। (अल कुरआन)
तफ्सीर:-
अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इताअ़त उतनी ही ज़रूरी है , जितनी अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की दीन - ए - इस्लाम में अल्लाह तआला के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम क इताअ़त इसी तरह से ज़रूरी है जैसे अल्लाह तआला की इताअ़त ज़रूरी है ।
अल्लाह तआ़ला ने कु़रआन मे इरशाद फ़रमाया
जिसने रसूल की इताअत की उसने अल्लाह की इताअत की ( सूरह निसा )
- ऐ लोगों जो ईमान लाए हो अल्लाह और रसूल सल्लललाहु अलैहि वसल्लम की इताअत करो और अमाल ( कर्म ) बर्बाद न करो । ( सूरह मुहम्मद )
- अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपनी मर्ज़ी से कोई बात नही कहते वो जो कुछ भी कहते हैं उन पर अल्लाह की जानिब से वही की जाती ( कुरआन )
लिहाज़ा अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस उम्मत को जो भी कुछ बताया वो अपनी मर्ज़ी से नही बताया बल्कि वो हुक्म - ए - इलाही बताया चाहे वो
- वज़ु का तरीका हो ,
- या नमाज़ का तरीका हो ,
- निकाह का तरीक़ा हो
- या तलाक़ का तरीक़ा हो ,
- रोज़ा रखने का तरीका हो
- हज्ज करने का तरीका हो
- ज़कात निकालने का तरीका हो
- इस्लाम का दावत देने का तरीका हो
- सब्र करने का तरीका हो
- हुकूकुल्लाह और हुकूकुल इबाद का तरीका हो
अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी में ऐसी बहुत सी बातें मिलती हैं कि जब तक अल्लाह की तरफ़ से वही (हुक्म) नहीं आ जाती तब तक अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सहाबा के सवालात का जवाब न देते थे ।
इसलिए हमें चाहिए कि
- हर हाल में अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की इताअ़त करते रहें ,
- उनकी तमाम सुन्नतों पर अमल करें , ताकि हम कामियाब हो सकें ।
अल्लाह के रसूल स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम ने जिंदगी के तमाम उसूल बता दिए हैं ।
जिंदगी के हर मोड़ पर हमें क्या करना है और क्या नहीं करना है सब कुछ तय कर दिए हैं ।
तो अगर हम अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि के वसल्लम के बताये हुए तरीके पर अमल करके अपनी जिंदगी गुजारें , तो ज़रूर हम कामयाब होंगे ।
कल्मा ईमान ए मुफस्सल हमें ये दर्स देता है
आमन्तु बिल्लाहि व मलाइकतिही व कुतुबिही व रुसुलिही वल यउमिल आखिरी वल क़दरी खैइरिही व शर्रिही मिनल लाही तअ़ला वल बअ़सी बअ़दल मउत।
तर्जुमा:- ईमान लाया अल्लाह पर उसके फरिश्तों पर और किताबों पर उसके रसूलों पर और मैदान ए हश्र पर और मरने के बाद दोबारा ज़िंदा उठाने पर।
तफ्सील :- ईमान अल्लाह पर रखना है या तमाम पर आप कहोगे अजीब सवाल पूछते हो जनाब ईमान अल्लाह उसके रसूल फ़रिश्तों, आसमानी किताबों, और मौत पर ईमान रखना ज़रूरी है ।
और यह ईमान हमारा कल्मा हमारे दीन का हिस्सा है तो क्या कोई यह कह सकता है की अल्लाह के अलावा किसी को इख्तियार है मदद करने की और अगर कोई किसी को मददगार माने तो वह मुशरिक़ हो जायेगा।
ऐसे सोंच वालों के लिए ही हमारा कल्मा ईमान ए मुफस्सल मुंह तोड़ तमाचा है ।
अब अगर कोई कहे कि हम ईमान ए मुफस्सल नहीं मानते तो अच्छी बात है तुम्हारी मर्ज़ी है नहीं मानते तो ईमान खत्म।
और अगर मानते हो तो तस्लीम करना मजबूरी है ये सब जो जाहिल वहाबी विचारधारा के लोग हमें ज्ञान बांटते फिर रहे हैं।
अल्लाह के अलावा किसी को मददगार मानोगे तो मुशरिक हो जाओगे तो पूरी बातें बताओ तब सवाल करना सीखो।
ईमान यह है अल्लाह मददगार है और अल्लाह की अ़ता से अल्लाह के फ़रिश्ते अल्लाह के महबूब बन्दे भी मददगार है।
अगर कोई ये सोचें कि अल्लाह की अ़ता के बगैर कोई मददगार है
तब हुक्म ए शरई नाफिज होगा कि यह मुशरिक है कि अल्लाह के अलावा ये किसी इन्सान को खुदा के जैसा ताकतवर जानता और समझता है।
और अगर कोई यह अकीदा रखे की
अल्लाह मददगार है और अल्लाह की अ़ता से उसके बन्दे भी मददगार है तो कोई हरज नहीं है।
बहुत से हदीसें इसकी रहनुमाई करती मिलेगी हमें।
हम उस पर कभी तफ्सील से लिखेंगे ।
बस अकीदा यह रखें अल्लाह हमारा खालिक व मालिक है और अल्लाह के महबूब बन्दे भी हमारे लिए काबिले ताजी़म है।
(पीरे तरीकत हज़रत अल्लामा मौलाना गुलाम जीलानी हन्फी कादरी बरकाती नूरी रज़्वी धनपुरी शहडोल मध्यप्रदेश भारत Admin infomgm , member AIUMB, member AIUSJA president jIlani Mission)
gaush e aajam kise kahate hain? janiye
gaus-e-aajam kis kahate hain?
kuchh vahaabee vichaaradhaara aise bhee hote hain jise padh kar hamaare bhole bhaale sunnee musalamaan bahak jaate hain
pahale inaka akeeda padhen aur isake neeche inaka javaab bhee padh kar apane eemaan kee hiphaazat karen khud bhee bachen aur doosaron ko bhee bachaayen
deen-e-islaam ne akeeda-e-tauheed ke havaala se yaahee taaleem dee hai kee allaah ke siva aur koee madadagaar nahin, napha va nuksaan sirph allaah taaala ke hee ikhtiyaar mein hai,
sirph vahee mushkil kusha hai vahee khaalik, raaziq hai. misaal ke taur par kuchh aayat pesh kee jaati hai
- aur madad to allaah taala hee kee taraph se hai jo gaalib va hikamat vaala hai(soorah aale imaraan 3, aayat-126)
- aur vo apane lie allaah taala ke siva koee madad aur himaayatee nahin paayenge (soorah ahazaab 33, aayat-18)
- aur tumhaare lie allaah ke siva koee himaayatee aur madad nahin (soorah baqara 2, aayat-107)
- agar allaah tumhaaree madad kare to tum par koee gaalib nahin ek shakti, aur agar vo tumhaara saath chhor de to usake baad kaun hai jo tumhaaree madad kare? aur allaah hee par bharosa karana chhai eemaan vaalo ko (soorah aale imaraan 3, aayat-160)
- aur allaah kaafee hai himaayat ke lie aur allaah kaafee hai madad ke lie (soorah nisa 4, aayat-45)
- aur tumhaare lie allaah ke siva koee vaalee (himaayatee) aur madad nahin (soorah tauba 9, aayat-116)
in aayat se ye hakeekat vajeh ho jaatee hai kee siraph allaah taala hee hakeekat madadagaar, sabase bada madad yaanee "gaus-e-aazam" hai
jab kee deegar bahut see aayaat mein na siraph gairullaah ko pukaarane ke lie gaee hai aur aisa karane vaale ko musharik, zaalim kaha gaya hai
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taaki aise bhole bhaale logon ko gumaraah hone se bachaaya ja sake ya yah kah liya jaaye ki bad akeeda banane se pahale ye post un tak pahunchaaya ja sake
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pesh hai kuchh javaab.
allaah Quran mein irashaad faramaata hai.
Ateeullaaha va Ateeur rasool
itata karo allaah rabbul aalameen kee aur itata karo rasool svalallaaho alaihi vasallam kee
tashareeh:-
allaah ke rasool sallallaahu alaihi vasallam kee itaat utanee hee zarooree hai , jitanee allaah rabbul izzat deen - e - islaam mein allaah taaala ke rasool sallallaahu alaihi vasallam ka itaat isee tarah se zarooree hai jaise allaah taaala kee itaat zarooree hai .
- allaah taaala ne kuraan me irashaad faramaaya ... " jisane rasool kee itaat kee usane allaah kee itaat kee " ( soorah nisa )
- ai logon jo iman lae ho allaah aur rasool sallalalaahu alaihi vasallam kee itaat karo aur amaal ( karm ) barbaad na karo . ( soorah muhammad )
- allaah ke rasool sallallaahu alaihi vasallam apanee marzee se koee baat nahee kahate vo jo kuchh bhee kahate hain un par allaah kee jaanib se vahee kee jaatee ( Quran )
lihaaza allaah ke nabee sallallaahu alaihi vasallam ne is ummat ko jo bhee kuchh bataaya vo apanee marzee se nahee bataaya balki vo hukm - e - ilaahee bataaya chaahe vo vuzu ka tareeka ho ,
- ya namaaz ka tareeka ho , nikaah ka tareeqa ho
- ya talaaq ka ,
allaah ke rasool sallallaahu alaihi vasallam kee zindagee mein aisee bahut see baaten milatee hain ki jab tak allaah kee taraf se vahee nahin aa jaatee tab tak allaah ke rasool sallallaahu alaihi vasallam sahaaba ke savaalaat ka javaab na dete the .
isalie hamen chaahie ki har haal mein allaah ke rasool sallallaahoo alaihi vasallam kee itaat karate rahen ,
- unakee tamaam sunnaton par amal karen ,
- taaki ham kaamiyaab ho saken .
allaah ke rasool sallallaahu alaihi vasallam ne jindagee ke tamaam usool bata die hain , jindgi ke har mod par hamen kya karana hai aur kya nahin karana hai sab kuchh tay kar die hain .
to agar ham allaah ke rasool sallallaahu alaihi ke vasallam ke bataaye hue tareeke par amal karake apanee jindagee gujaaren , to zaroor ham kaamayaab honge .
kalma eemaan e muphassal hamen ye dars deta hai
aamantu billaahi va malaikatihee va kutubihee va rusulihee val yaumil aakhiree val qadaree khaiirihee va sharrihee minal laahee tala val basee badal maut.
Iman laaya allaah par usake pharishton par aur kitaabon par usake rasoolon par aur maidaan e hashr par aur marane ke baad dobaara zinda uthaane par.
tafseer :- eemaan allaah par rakhana hai ya tamaam par aap kahoge ajeeb savaal poochhate ho janaab eemaan allaah usake rasool farishton, aasamaanee kitaabon, aur maut par eemaan rakhana zarooree hai .
aur yah eemaan hamaara kalma hamaare deen ka hissa hai to kya koee yah kah sakata hai kee allaah ke alaava kisee ko ikhtiyaar hai madad karane kee aur agar koee kisee ko madadagaar maane to vah mushariq ho jaayega.
aise sonch vaalon ke lie hee hamaara kalma eemaan e muphassal munh tod tamaacha hai .
ab agar koee kahe ki ham eemaan e muphassal nahin maanate to achchhee baat hai tumhaaree marzee hai
nahin maanate to eemaan khatm aur agar maanate ho to tasleem karana majabooree hai ye sab jo jaahil vahaabee vichaaradhaara ke log hamen gyaan baantate phir rahe hain.
allaah ke alaava kisee ko madadagaar maanoge to musharik ho jaoge to pooree baaten batao tab savaal karana seekho.
eemaan yah hai allaah madadagaar hai aur allaah kee ata se allaah ke farishte allaah ke mahaboob bande bhee madadagaar hai.
agar koee ye sochen ki allaah kee ata ke bagair koee madadagaar hai tab hukm e sharee naaphij hoga ki yah musharik hai ki allaah ke alaava ye kisee insaan ko khuda ke jaisa taakatavar jaanata aur samajhata hai.
aur agar koee yah akeeda rakhe kee allaah madadagaar hai aur allaah kee ata se usake bande bhee madadagaar hai to koee haraj nahin hai bahut se hadeesen isakee rahanumaee karatee milegee hamen.
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