ambiya aur auliya

ambiya aur auliya ke name me lafaz,shabd,word "YA" Lagana kaisa hai padhe infomgm par mukammal tafsir mustanad dalil aour majboot hawalon ke roshni me

अम्बिया ए किराम व औलिया किराम को लफ़्जे " या " के साथ पुकारना कैसा है ? 

सवाल :- क्या अल्लाह के आलावा अम्बिया व औलिया को भी  " या " के साथ पुकार सकते हैं ? 

जवाब :-  " या " शब्द अल्लाह के साथ खास नहीं , अल्लाह  के आलावा अम्बियाए किराम अलैहिस्सलाम और औलियाए किराम  को भी लफ़्जे " या " के साथ पुकार सकते हैं ।

ambiya aur auliya ke name me lafaz,shabd,word "YA" Lagana kaisa hai padhe infomgm par mukammal tafsir mustanad dalil aour majboot hawalon ke roshni me
ambiya aur auliya

इस में शरअन कोई हरज नहीं । लफ़्जे " या " अरबी ज़बान का लफ़्ज़ है 

जिस के मतलब है " " , रोजाना की आम बोलचाल  में भी लफ़्जे " या " का आम इस्तेमाल है जैसा कि मशहूर मुहावरा है ।

" या शैख़ अपनी अपनी देख

मुहावरे में भी गैरुल्लाह को " या " के साथ बोला जाता है । 

कुरआने करीम में कई मकामात पर लफ़्जे " या " अल्लाह के आलावा के साथ आया है ।उदाहरण के लिए ये आयतें पढ़ें :- 

  1. ( या अइयुहन नबी) तर्जुमा :- ऐ गैब की खबरें बताने वाले नबी।
  2. (या अइयुहर रसूल) तर्जुमा :- ऐ रसूल । 
  3. ( या अइयुहल मुज़म्मिल) तर्जुमा :- ऐ झुरमट मारने वाले।
  4. ( या अइयुहल मुदस्सिर) तर्जुमा :- ऐ बाला पोश ओढ़ने वाले। 
  5. (या इब्राहीमु) तर्जुमा :- ऐ इब्राहीम । 
  6. (या मूसा) तर्जुमा :-  ऐ मूसा ! 
  7. (या ईसा) तर्जुमा :- ऐ ईसा ।  
  8. ( या नूहू) तर्जुमा :- ऐ नूह ।  
  9. (या दाऊदा) तर्जुमा :- ऐ दावूद । 

और आम इन्सानों को भी लफ़्जे " या " के साथ पुकारा गया है जैसा कि कुरआन में आया है :  

  1. (या अइयुहन नासु) तर्जुमा :- ऐ लोगो ! 


इस के इलावा भी कुरआने मजीद में बे शुमार जगह पर लफ्जे " या " गैरुल्लाह के साथ आया है । 


हदीसे मुबारका में भी कसरत के साथ लफ्जे " या " अल्लाह के आलावा कई जगह नबियों और आवामो के साथ आया है । 

सहाबए किराम रिदवानुल्लाही अलैहि अजमईन सरकारे आली वकार स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम को या नबिय्यल्लाह , या रसूलल्लाह कह कर ही पुकारते थे । 

मुस्लिम शरीफ़ की हदीस में है : ( जब सरकारे मक्कए मुकर्रमा  हिजरत फ़रमा कर मदीनए मुनव्वरह  ,  तशरीफ़ लाए )

 फसइदर रिजालू वन निसाउ फौउक़ल बुयूती  वत फर्रक़ल गिलमानू वल खुदमी फित तुरकई युनादूना या मोहम्मदु या रसूलल्लाही या मोहम्मदु या रसूलल्लाही ।

तो मर्द और औरतें घरों की छतों पर चढ़ गए और बच्चे और खुद्दाम रास्तों में फैल गए ।

और वोह नारे लगा रहे थे।

 या मुहम्मद या रसूलल्लाह , या मुहम्मद या रसूलल्लाह । ( मुस्लिम शरीफ किताबुज़ ज़ुहद वर्रका़इक़ बाब फी हदीसिल हिजरती सफा नम्बर 1228 हदीस नम्बर 7522  )

 नबिये करीम , स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम ने एक नाबीना सहाबी  को दुआ ता'लीम फ़रमाई जिस में अपने नामे नामी इस्मे गिरामी के साथ लफ़्जे " या " इर्शाद फ़रमाया :

 चुनान्चे हज़रते सय्यिदना उस्मान बिन हुनैफ़  से रिवायत है कि एक नाबीना सहाबी  नबिये करीम  की बारगाहे  में हाज़िर हुए और अर्ज की : ( या रसूलल्लाह स्वल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ) 

अल्लाह से दुआ कीजिये कि वोह मुझे आफ़िय्यत दे ( या'नी मेरी बीनाई लौटा दे मतलब अल्लाह पाक मुझे देखने की कुव्वत फरमा दे ) , 

आप स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया : " अगर तू चाहे तो दुआ करूं और चाहे तो सब्र कर और येह तेरे लिये बेहतर है । " उन्हों ने अर्ज की : दुआ फ़रमा दीजिये । 

आप स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम ने उन्हें अच्छी तरह वुजू करने और दो रक्अत नमाज़ पढ़ने का हुक्म दिया और फ़रमाया इस तरीके से दुआ करना ।

अल्ला हुम्मा इन्नी असअलुका व अतवज्जहु बि मुहम्मदी नबिय्यिर रहमती या मुहम्मदु  इन्नी क़द तवज्जहतु बिका इला रब्बी फी हाजती  लितुक़दा अल्ला हुम्मा फशफ्फि़अ़हू फिय्या।  

तर्जुमा :- या'नी ऐ अल्लाह ! मैं तुझ से सुवाल करता हूं और तेरी तरफ़ मुतवज्जेह होता हूं। तेरे नबी मोहम्मद स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम के जरीए से जो नबिय्ये रहमत हैं , 

या रसूलल्लाह स्वल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम मैं आप के जरीए से अपने रब की तरफ़ इस हाजत के बारे में मुतवज्जेह होता हूं ताकि मेरी यह हाजत पूरी हो ।

 ऐ अल्लाह  इन की शफाअत मेरे हक़ में कबूल फ़रमा । ( इब्ने माजा किताब अकामतुस स्वलात  बाब मा जाआ फी स्वलातिल हाजती 156/2 हदीस 1385 ) 

याद रखें।

हदीसे पाक में " मुहम्मद " है मगर इस की जगह " या रसूलल्लाह " कहना चाहिये कि हुजूरे अक्दस स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम को नाम ले कर निदा करना जाइज़ नहीं है । 

उल्मा फ़रमाते हैं : अगर रिवायत में वारिद हो जब भी तब्दील कर लें । मजीद तफ्सीलात जानने के लिये आला हज़रत इमामे अहले सुन्नत इमाम अहमद रज़ा मोहद्दिस बरैलवी के फ़तावा रज़विय्या जिल्द 30 में मौजूद रिसाले " तजल्लिल यकी़न बिअन्ना नबिय्यना सय्यदिल मुरसलीन  " सफ़ा 156 से 157 का मुताला कीजिये ।


हज़रते सय्यिदना उस्मान बिन हुनैफ रदि अल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं : 

फवल्लाहि मा तफर्रक़ना व त्वाला बिनल हदीसु हत्ता दखला अलैइनर रजुलू कअन्नहु लम यकुन बिही दुर्रुन कत्तु ।

तर्जुमा:-  खुदा की क़सम ! हम उठने भी न पाए थे और न ही हमारी गुफ़्तगू ज़्यादा तवील हुई थी।

 कि वोह हमारे पास आए , गोया कभी नाबीना ही न हुए । ( मुअज्जमे कबीर मा असनदे उस्मान बिन हनीफ 31/9 हदीस 831 ) 

मालूम हुवा कि गैरुल्लाह को लफ़्जे " या " के साथ पुकारना शिर्क नहीं।

 अगर यह शिर्क होता तो कुरआन व हदीस में गैरुल्लाह के साथ लफ़्जे " या " न आता।

 और खल्क के रहबर , शाफेए महशर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम हरगिज़ इस की तालीम इर्शाद न फ़रमाते और ना ही सहाबए किराम  इस पर अमल पैरा होते । 

गैज़ में जल जाएं बे दीनों के दिल 

या रसूलल्लाह की कसरत कीजिये 

( हदाइके बख्शिश ) 

लफ़्जे " या " के साथ दूर वालों को पुकार सकते हैं 

सवाल :- क्या लफ़्जे " या " के साथ दूर वालों को भी पुकार सकते हैं ? 

नीज़ वोह दूर से सुनते और देखते हैं या नहीं ? 

जवाब :- जी हां जिस तरह लफ़्जे " या " के साथ क़रीब वालों को पुकार सकते हैं। ऐसे ही दूर वालों को भी पुकार सकते हैं ।

 अल्लाह  की अता से उसके मक़बूल बन्दे दूर से सुनते , देखते और हाजत रवाई फ़रमाते हैं ।

 हज़रते सय्यिदना अबू हुरैरा रदि अल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूले अकरम स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि अल्लाह तआला फ़रमाता है :- 

जो मेरे किसी वली से दुश्मनी करे , उस से मैं ने लड़ाई का एलान कर दिया ।

और मेरा बन्दा किसी शै से मेरा इस क़दर कुर्ब हासिल नहीं करता जितना फ़राइज़ से करता है ।

और मेरा बन्दा नवाफ़िल के जरीए से हमेशा कुर्ब हासिल करता रहता है यहां तक कि मैं उसे मह़बूब बना लेता हूं ।

और जब उस से मोहब्बत करने लगता हूं तो 

  • मैं उस के कान बन जाता हूं। जिस से वोह सुनता है 
  • और मैं उस की आंख बन जाता हूं जिस से वोह देखता है ।
  • और उस का हांथ बन जाता हूं जिस के साथ वोह पकड़ता है ।
  • और उस का पैर बन जाता हूं जिस के साथ वोह चलता है ।
  • और अगर वोह मुझ से सुवाल करे तो ज़रूर उसे दूंगा और पनाह मांगे तो ज़रूर उसे पनाह दूंगा । ( बुखारी शरीफ किताबुर रका़क़ बाब अत्तवाजेअ़ 248/4 हदीस 6502 ) 

हज़रत सय्यिदना इमाम फ़खरुद्दीन राजी रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाते हैं : 

फइजा स्वारा नूरू जलालिल्लाहि समअन लहु समिअ़ल क़रीबा वल बई़दा ।

जब अल्लाह का नूरे जलाल बन्दए महबूब के कान बन जाता है तो वोह दूर व नज़्दीक की आवाज़ सुन लेता है ,

 व इजा स्वारा जालिकन नूरू बसरन लहु रअल क़रीबा वल बई़दा ।

और जब उस की आंखें नूरे जलाल से मुनव्वर हो जाती हैं तो वोह दूर व नदीक को देख लेता है , 

व इजा स्वारा जालिकन नूरू यदन लहु क़दरा अलत तसर्रुफि फिस सअ़बी वस सहलि वल बईदी वल क़रीबी ।

और जब यही नूर बन्दए महबूब के हाथों में जल्वा - गर होता है तो उसे मुश्किल व आसान और दूर व नदीक में तसर्रुफ़ करने की कुदरत हासिल हो जाती है । ( तफ्सीरे कबीर पारह 15 तहतुल आयत 7,12/ 436) 

हदीसे पाक में है : जब तुम में से किसी की कोई चीज़ गुम हो जाए या तुम में से कोई मदद मांगना चाहे और वोह ऐसी जगह हो जहां उस का कोई पुरसाने हाल न हो तो उसे चाहिये कि यूं कहे :-

या इबादल्लाही अगी़सूनी, या इबादल्लाही अगी़सूनी।

तर्जुमा:-   ऐ अल्लाह के बन्दो ! मेरी मदद करो , ऐ अल्लाह के बन्दो ! मेरी मदद करो ।

 अल्लाह के कुछ बन्दे हैं जिन्हें यह नहीं देखता  वो उस की मदद करेंगे  ( कन्जुल उम्माल,किताबुस सफर 3,6/300 हदीस 17494 ) 

बादे वफ़ात मक़बूलाने बारगाह मतलब बुजुर्गों के मरने के बाद उनको पुकार सकते हैं या नहीं?

सवाल :- क्या बा'दे वफ़ात भी मक़बूलाने बारगाह को लफ्जे " या " के साथ पुकार सकते हैं ? 

जवाब :- जी हां बा'दे वफ़ात भी मक़बूलाने बारगाह को लफ़्जे " या " के साथ पुकार सकते हैं। इस में कोई मुज़ायका नहीं । अल्लाह के मक़बूल बन्दों की शान तो बहुत बुलन्दो बाला है । आम मुर्दो को भी बा'दे वफ़ात लफ़्जे " या " के साथ पुकारा जाता है ।

और वोह सुनते हैं जैसा कि हदीसे पाक में है :- 

हुजूरे अकरम स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम जब मदीनए मुनव्वरह के कब्रिस्तान में तशरीफ़ ले जाते तो कब्रों की तरफ़ अपना रुखे अन्वर कर के यूं फ़रमाते हैं :- 

अस्सलामु अलैइकुम या अहलल क़ुबूरी यगफिरुल लाहु लना वलकुम अनतुम सलफुना  व नह़नु बिल असरि।

 तर्जुमा:- कब्र वालो ! तुम पर सलाम हो अल्लाह हमारी और तुम्हारी मगफ़िरत फ़रमाए । तुम लोग हम से पहले चले गए और हम तुम्हारे बाद आने वाले हैं । ( तिर्मिजी शरीफ़ किताबुज जनाएज़ बाब मा यकू़लूर रजुलू फिल मका़बिरा 329/2 हदीस 1055) 

इस हदीसे पाक में बादे वफ़ात अहले कुबूर को लफ्जे " या " के साथ पुकारा भी गया है और उन्हें सलाम भी किया गया है।

सलाम उसे किया जाता है। जो सुनता हो और जवाब भी देता हो।

 जैसा कि मुफस्सिरे शहीर , हकीमुल उम्मत हज़रत मुफ़्ती अहमद यार ख़ान फ़रमाते हैं : कब्रिस्तान में जा कर पहले सलाम करना फिर यह अर्ज करना सुन्नत है ।

इस के बाद अहले कुबूर को ईसाले सवाब किया जाए ।

इस से मालूम हुवा कि मुर्दे बाहर वालों को देखते पहचानते हैं और उन का कलाम सुनते हैं ।

वरना उन्हें सलाम जाइज़ न होता।

क्यूं कि जो सुनता न हो या सलाम का जवाब न दे सकता हो। उसे सलाम करना जाइज़ नहीं , देखो सोने वाले और नमाज़ पढ़ने वाले को सलाम नहीं कर सकते । ( मिरआतुल मनाजीह , 2/524 , जियाउल कुरआन पब्लीकेशन्ज़ ) 

हर नमाज़ी नमाज़ में तशहुद पढ़ता है और नबिय्ये करीम स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम की बारगाहे अक्दस में इन अल्फ़ाज़ 

अस्सलामु अलैइका अइयुहन नबिय्यु व रहमतुल्लाहि व बरकातुहू ।

के साथ सलाम पेश करता है। 

( यानी सलाम हो आप पर ऐ नबी और अल्लाह की रहमतें और बरकतें । )

 इस सलाम में पुकारना भी है और आप स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम को मुखातब करना भी है। 

आप स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम की हयाते ज़ाहिरी में भी दूर व नजदीक से यह सलाम आप की बारगाहे अक्द़स में पेश किया जाता था।

 और विसाले ज़ाहिरी के बाद भी पेश किया जा रहा है और ता क़यामत पेश किया जाता रहेगा । 

आप स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम अल्लाह की अता से इस सलामपुकार को सुनते हैं और जवाब भी अता फ़रमाते हैं

जैसा कि हज़रत सय्यिदना शैख़ यूसुफ़ बिन इस्माईल नबहानी  फ़रमाते हैं : बा'ज़ औलिया ने बतौरे करामत अपने कौ़ल " अस्सलामु अलैइका अइयुहन नबिय्यु व रहमतुल्लाहि व बरकातुहू ।

 ' के जवाब में नबिय्ये करीम स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम  का जवाब अता फ़रमाना सुना है।

 और यह मुहाल नहीं है क्यूं कि अल्लाह ने आप स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम को गैब पर मुत्तलअ फ़रमाया है। और हर उस शख्स का कलाम सुनने की ताक़त अता फ़रमाई है ।

जो दूर व नदीक से आप स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम से मुखातिब होता है ।

और अल्लाह को इस बात में भी कोई फर्क नहीं कि यह कलाम सुनना आप स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम की हयाते ज़ाहिरी में हो या विसाले ज़ाहिरी के बा'द । 

तहक़ीक़ यह बात दुरुस्त है कि आप स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम अपनी कब्रे अन्वर में जिन्दा हैं । ( शवाहिदुल हक़ फसल फी रद मा मनअहु इब्नुल क़य्यिम सफा 211 ) 

हनफ़िय्यों के अजीम पेशवा हज़रत सय्यिदना अल्लामा अली कारी रहमतुल्लाहि अलैह फ़रमाते हैं : 

फला फरका़ लहुम फिल हालइनि  वलिजा की़ला औलिया अल्लाहि ला यमूतूना वला किन यनतकि़लूना मिन दारिन इला दारिन ।

या'नी अम्बियाए किराम अलैहिस्सलाम की दोनों हालतों यानी ( ज़िन्दगी और मौत ) में कोई फर्क नहीं है। 

इसी लिये कहा गया है कि अल्लाह के वली ( और नबी ) मरते नहीं बल्कि एक घर से दूसरे घर की तरफ़ मुन्तकिल हो जाते हैं । ( मिरकातुल मफातीह किताबुस स्वलात बाब जुमअतु अलफसलिस सालिस 259/3 तहतुल हदीस 1366  ) 

जाहिरी विसाल से इन नुफूसे कु़दसिया की कुव्वतें और सलाहिय्यतें ख़त्म नहीं हो जातीं बल्कि इन में मजीद इज़ाफ़ा हो जाता है।

 क्यूं कि दुनिया में तो यह कै़द में थे विसाले ज़ाहिरी के बाद इस कै़द से आजा़द हो जाते हैं ।

लिहाज़ा इन की कुव्वत में भी इज़ाफ़ा हो जाता है जैसा कि हदीसे पाक में है :

 दुनियां मोमिन का कैदखाना और काफ़िर के लिये जन्नत है ।

 जब मोमिन मर जाता है तो उस की राह खोल दी जाती है कि जहां चाहे सैर करे । ( कशफुल खफा हरफुद दालुल महमिलह 363/1  हदीस 1316 ) 

हमारे पेशवा इमाम आ'ला हज़रत , इमामे अहले सुन्नत , मुजद्दिदे दीनो मिल्लत मौलाना शाह इमाम अहमद रज़ा खान रहमतुल्लाहि अलैह फ़रमाते हैं :

 बा'द मरने के सम्अ , बसर , इदराक ( या'नी देखना , सुनना और समझना ) आम लोगों का यहां तक कि कुफ्फ़ार का ज़ाइद हो जाता है ।

और यह तमाम अहले सुन्नत व जमाअत का इज्माई अक़ीदा है । ( मल्फूज़ाते आ'ला हज़रत , स . 363 )

दूर से देखना और सुनना अल्लाह की सिफ़त नहीं है।

सवाल :-  क्या दूर से देखना और सुनना अल्लाह की सिफ़त नहीं है? 

जवाब :-  दूर से देखना और सुनना हरगिज़ अल्लाह की सिफ़त नहीं है क्यूं कि दूर से तो वोह देखता और सुनता है जो पुकारने वाले से दूर हो।

 जब कि अल्लाह , तो अपने बन्दों के करीब है जैसा कि पारह 2 सूरतुल ब -करह की आयत नम्बर 186 में खुदाए रहमान  का फ़रमाने निशान है :

 व इजा साअलका अन्नी फइन्नी क़रीब।

तर्जुमा कन्जुल ईमान :- और ऐ  महबूब जब तुम से मेरे बन्दे मुझे पूछे तो मैं नदीक हूं ।

 इसी तरह पारह 26 सूरए की आयत नम्बर 16 में इर्शादे रब्बुल आलमीन है : 

व नह़नू अक़रबु इलैहि मिन ह़बलिल वरीद।

तर्जुमा कन्जुल ईमान : और हम दिल की रग से भी उस से ज़्यादा नज़दीक  हैं । 

जब अल्लाह  इल्मो कुदरत के एतबार से अपने बन्दों के करीब है तो फिर दूर से देखना और सुनना उस की सिफ़त कैसे हो सकती है !

 दूर से देखने और सुनने के वाक़िआत 

सवाल :- मक़बूलाने बारगाहे इलाही के दूर से देखने , सुनने और तसर्रूफ़ात फ़रमाने के चन्द वाक़िआत हजरत मौलाना गुलाम जीलानी रज़्वी साहब बयान फ़रमा दीजिये । 

जवाब :-  अल्लाह ने अपने बरगुज़ीदा बन्दों को दूर से देखने , सुनने और तसर्रूफ़ात करने की ताक़त अता फ़रमाई है ।

लिहाजा वोह अल्लाह की अता से दूर से देखते और सुनते और तसर्रूफ़ात भी फ़रमाते हैं।

 जैसा कि हज़रते सय्यिदना अब्दुल्लाह बिन अब्बास रदि अल्लाहु अन्हु से रिवायत है।

 कि नबिये करीम स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम के ज़मानए मुबारक में सूरज को ग्रहन लगा , तो आप स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम ने नमाज़ पढ़ी ।

( दौराने नमाज़ हाथ बढ़ा कर कुछ लेना चाहा लेकिन फिर दस्ते मुबारक नीचे कर दिया , नमाज के बा'द )

 सहाबए किराम  ने अर्ज़ की : या रसूलल्लाह स्वल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम हम ने देखा कि आप अपनी जगह से किसी चीज़ को पकड़ रहे थे , फिर हम ने देखा कि आप पीछे हटे । 

आप स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फ़रमाया :

 इन्नी उरीतुल जन्नता फतना वलतु मिन्हा उन्कू़दन वलउ अखजतुहू   लअकलतुम मिन्हू मा बकि़यतित दुनियां ।

तर्जुमा:-  मुझे जन्नत दिखाई गई तो मैं उस में से एक खोशा तोड़ने लगा , अगर मैं उस खोशे को तोड़ लेता तो तुम रहती दुनियां तक उस में से खाते रहते । ( बुखारी शरीफ किताबुल अज़ान बाब रफअल बसरि इलल इमामी फिस स्वलात 265/1 हदीस 748 )

 मुफस्सिरे शहीर , हकीमुल उम्मत हज़रते मुफ्ती अहमद यार खान  फ़रमाते हैं : 

इस हदीस से दो मस्अले मालूम हुए : 

1. एक यह कि हुजूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम जन्नत और वहां के फलों वगैरा के मालिक हैं कि खोशा तोड़ने से रब ने मन्अ न किया खुद न तोड़ा , क्यूं न हो कि रब तआला फ़रमाता है : 

इन्ना आअ़त्वइना कल कौसर।

तर्जुमा कन्जुल ईमान :- ऐ महबूब बेशक हम ने तुम्हें बे शुमार खूबियां अता फ़रमाई । (अल कुरआन पारह 30 सूरह अल कौसर)

इसी लिये हुजूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम ने सहाबा को कौसर का पानी बारहा पिलाया । 

2. दूसरा यह कि हुजूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम को रब तआला ने वोह ताकत दी है कि मदीने में खड़े हो कर जन्नत में हाथ डाल सकते हैं।

 और वहां तसर्रुफ़ात कर सकते हैं , जिन का हाथ मदीने से जन्नत में पहुंच सकता है क्या उन का हाथ हम जैसे गुनहगारों की दस्त - गीरी के वासते नहीं पहुंच सकता।

 और अगर यह कहो कि जन्नत क़रीब आ गई थी तो जन्नत और वहां की नेअ़मतें हर जगह हाज़िर हुई ।

 बहर हाल इस हदीस से या हुजूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम को हाज़िर मानना पड़ेगा या जन्नत को । ( मिरआतुल मनाजीह , 2/382 ) 

हदीसे पाक और इस की शरह से वाजेह तौर पर यह बात साबित होती है कि हमारे प्यारे सरकार स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम ने अताए परवर दगार ज़मीन पर खड़े हो कर सातों आस्मानों से भी ऊपर जन्नत को न सिर्फ देख लिया।

 बल्कि अपना दस्ते मुबारक भी जन्नत के खोशे तक पहुंचा दिया । सरकार  के सदके में सहाबए किराम  और बुजुर्गाने दीन  को भी दूर से देखने , सुनने और तसर्रुफ़ात करने की कुव्वत हासिल है ।

चुनान्चे हज़रते सय्यिदना उमर बिन हारिस रदि अल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि अमीरुल मुअमिनीन हज़रत सय्यिदना उमर फ़ारूके आ'ज़म रदि अल्लाहु अन्हु ने हज़रते सय्यिदना सारिया  को इस्लामी लश्कर का सिपह सालार (कमान्डर) बना कर नहावन्द भेजा।

 (नहावन्द ईरान में सूबए आज़र बाईजान के पहाड़ी शहरों में से है और मदीनए मुनव्वरह  से इतना दूर है कि एक महीना चल कर भी आदमी वहां नहीं पहुंच सकता ।) 

आप रदि अल्लाहु अन्हु जिहाद में मसरूफ़ थे , इधर मदीनए तय्यिबा  में अमीरुल मुअमिनीन हज़रते सय्यिदना उमर फ़ारूके आ'जम रदि अल्लाहु अन्हु जुमा का खुत्बा फ़रमा रहे थे ।

यका यक आप  ने खुत्बा छोड़ कर तीन बार फ़रमाया : 

" या सारियतुल जबला।

या'नी ऐ सारिया ! पहाड़ की तरफ़ जाओ । 

 फिर इस के बाद खुत्बा शुरू फ़रमा दिया , बादे नमाज़ हज़रते सय्यिदना अब्दुर्रहमान बिन औफ़ रदि अल्लाहु अन्हु ने इस पुकार की वजह दरयाफ्त की तो ।

आप रदि अल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया : मैं ने मुसलानों को देखा कि वोह पहाड़ के पास लड़ रहे हैं।

 और कुफ्फार ने उन्हें आगे पीछे से घेर रखा है , यह देख कर मुझ से जब्त न हो सका और मैं ने कह दिया : 

या सारियतुल जबला। 

या'नी ऐ सारिया ! पहाड़ की तरफ़ जाओ ।

 इस वाक्या के कुछ रोज़ बा'द हज़रते सय्यिदना सारिया  का क़ासिद एक ख़त ले कर आया जिस में लिखा था।

 कि हम लोग जुमा के दिन कुफ्फार से लड़ रहे थे और करीब था कि हम हार  जाते कि ऐन जुमा की नमाज़ के वक्त हम ने किसी की आवाज़ सुनी :

या सारियतुल जबला। 

 या'नी ऐ सारिया ! पहाड़ की तरफ़ जाओ ।

 इस आवाज़ को सुन कर हम पहाड़ की तरफ़ चले गए तो अल्लाह ने कुफ्फार को शिकस्त दी।

 हम ने उन्हें क़त्ल कर डाला , इस तरह हमें कामयाबी हासिल हो गई । ( कन्जुल उम्माल किताबुल फजायल फजायलुस सहाबा फजायले फारूक आज़म 12, 256/6 ) 

हज़रते सय्यदना अल्लामा अफ़ीफुद्दीन अब्दुल्लाह याफई यमनी  फ़रमाते हैं :

 इस हदीस शरीफ़ से अमीरुल मुअमिनीन हज़रते सय्यिदना उमर फ़ारूके आज़म की दो करामतें ज़ाहिर हुई :

 ( 1 ) आप  ने मदीना ए मुनव्वरा से ( चौदह सौ ( 1400 ) मील दूर  मकाम नहावन्द में मौजूद लश्करे इस्लाम और उन के दुश्मन को मुलाहज़ा फ़रमा लिया और 

( 2 ) मदीनए तय्यिबा से इतनी दूर आवाज़ पहुंचा दी । ( रौजुर रेयाहीन सफा 39 ) 

हज़रते सय्यिदना शैख आरिफ़ अबुल कासिम  फ़रमाते हैं : एक मरतबा हज़रत सय्यिदना शैख़ अब्दुल कादिर जीलानी  दौराने वा'ज़ इस्तिरराक़ की हालत में हो गए।

 यहां तक कि आप के इमामे का बल ( या'नी पेच ) खुल गया तो तमाम हाज़िरीन ने भी अपने इमामे और टोपियां गौसे आज़म  की कुर्सी की तरफ़ फेंक दिये । 

जब आप वा'ज़ से फ़ारिग हुए तो अपने इमामे शरीफ़ को दुरुस्त फ़रमाया और मुझे हुक्म दिया कि ऐ अबुल कासिम

लोगों को उन के इमामे और टोपियां दे दो । मैं ने सब लोगों को उन के इमामे और टोपियां दे दी लेकिन आखिर में एक दुपट्टा रह गया।

मैं नहीं जानता था कि यह किस का है ? 

हालां कि मजलिस में कोई भी ऐसा न बचा था जिस का कुछ रह गया हो । 

हुजूर गौसे आज़म  ने मुझ से फ़रमाया : यह मुझे दे दो । 

मैं ने वोह दोपट्टा आप को दे दिया । 

आप ने उसे अपने कन्धे पर रखा तो वोह गायब हो गया । मैं हैरानगी से दम बखुद रह गया ।

 फ़रमाया : ऐ अबुल क़ासिम ! जब मजलिस में लोगों ने अपने इमामे उतार दिये तो हमारी एक बहन ने अस्बहान से अपना दुपट्टा उतार कर फेंक दिया था । 

फिर जब मैं ने उस दुपट्टे को अपने शानों पर रखा तो उस ने अस्बहान से अपना हाथ बढ़ाया और अपने दुपट्टे को उठा लिया । ( बहज्जतुल असरार सफा नम्बर 185 ) 

मालूम हुवा कि अल्लाह के नेक और बरगुज़ीदा बन्दे दूर से देखते , सुनते और तसर्रुफात भी फ़रमाते हैं ।

देखिये ! आज के इस तरक्की याफ्ता दौर में science technology साइन्सी टेक्नोलॉजी ( मोबाइल , रेडियो और टीवी वगैरा ) के जरीए एक वक्त एक ही लम्हे में दुनियां के कोने कोने में आवाज़ और तस्वीरें को  सुना और देखा भी जा सकता है । 

जब साइन्सी मशीनों science technology के जरीए यह सब कुछ हो सकता है तो रूहानी राबते ( Conection ) के जरीए क्यूं नहीं हो सकता ?

 रूहानी राबता तो साइन्सी राबते से ज़्यादा ताकत वर ( Powerfull ) है । 

साइन्स वाला दूर की आवाज़ और फोटो सुना और दिखा दे तो किसी को वस्वसा नहीं आता ।

और अल्लाह अपनी अता से अपने महबूब बन्दों को दूर की आवाज़ सुना दे तो वस्वसे आने शुरू हो जाते हैं ।

 अल्लाह  हमें अपने मक़बूल बन्दों की मोहब्बत नसीब फ़रमाए ।

और इन के फ़ज़ाइलो कमालात मानने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए । 

 क़सीदए नूर के एक शे'र की तशरीह

 सवाल :- आ'ला हज़रत  के इस कलाम या शायरी में " दिल जल रहा था नूर का " से क्या मुराद जिस का असआर यह है।

नारियों का दौर था दिल जल रहा था नूर का 

तुम को देखा हो गया ठन्डा कलेजा नूर का 

जवाब :- आला हज़रत , इमामे अहले सुन्नत , मुजद्दिदे दीनो मिल्लत मौलाना शाह इमाम अहमद रज़ा खान के इस शे'र में दोनों जगह " नूर " से मुराद दीने इस्लाम ली जा सकती है । 

मतलब यह है कि ऐलाने नबुव्वत के आगाज़ में नारियों ( या'नी गैर मुस्लिमों ) का दौर दौरा था ।

 हर तरफ़ जहालत का घटा टोप अंधेरा छाया हुवा था , कुफ्रकुफ्फार का गलबा देख कर दीने इस्लाम कुढ़ रहा था।

 फिर नूर के पैकर , तमाम नबियों के सरवर ने अपने नूर की किरने बिखेरी तो कुफ्रकुफ्फार का गलबा ख़त्म हो गया , दीने इस्लाम की रोशनी हर सू आम होने लगी।

 तो सरकार स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम को देख कर दीने इस्लाम का कलेजा ठन्डा हो गया । 

नूरे खुदा है कुफ्र की ह - र - कत पे खन्दा ज़न 

फूंकों से येह चराग बुझाया न जाएगा 


ambiya aur auliya ke name me lafaz,shabd,word "YA" Lagana kaisa hai padhe infomgm par mukammal tafsir mustanad dalil aour majboot hawalon ke roshni me

ambiya va auliya ko lafje " ya " ke saath pukaarana kaisa ? 

sawaal :- kya allaah ke aalaawa ambiya wa auliya ko bhee " ya " ke saath pukaar sakate hain ? 

jawaab :- " ya " shabd allaah ke saath khaas nahin hai

allaah ke aalaawa ambiyae kiraam alaihis salaam aur auliya e kiraam ko bhee lafje " ya " ke saath pukaar sakate hain .

is mein sharan koee haraj nahin .

 lafje " ya " Arabic language ka word hai jis ke matlab hain " aie " 

rojaana kee aam bolachaal mein bhee lafje " ya " ka aam istemaal hai jaisa ki mashahoor muhaavara hai .

" ya shaikh apanee apanee dekh

muhaavare mein bhee Gairullaah ko " ya " ke saath bola jaata hai . 

Quran e karim mein kaee makaamaat par lafje " ya " allaah ke aalaava ke saath aaya hai .

Example ke lie ye aayaten padhen :- 

  1. ( ya aiyuhan nabee) tarjuma :- ai gaib kee khabaren bataane vaale nabee. 
  2. (ya aiyuhar rasool) tarjuma :- ai rasool ,  
  3. ( ya aiyuhal muzammil) tarjuma :- ai jhuramat maarane vaale.
  4. ( ya aiyuhal mudassir) tarjuma :- ai baala posh odhane vaale.
  5. (ya ibraaheemu) tarjuma :- ai ibraaheem , 
  6. (ya moosa) tarjuma :- ai moosa !  
  7. (ya eesa) tarjuma :- ai eesa ,
  8.  ( ya noohoo) tarjuma :- ai nooh , 
  9. (ya daooda) tarjuma :- ai daavood . 

aur aam insaanon ko bhee lafje " ya " ke saath pukaara gaya hai jaisa ki kuraan mein aaya hai : 

  1. (ya aiyuhan naasu) tarjuma :- ai logo ! 


is ke ilaava bhee kuraane majeed mein be shumaar jagah par laphje " ya " gairullaah ke saath aaya hai . 


hadeese mubaaraka mein bhee kasarat ke saath laphje " ya " allaah ke aalaava kaee jagah nabeeyon aavaamo ke saath aaya hai . 

sahaabe kiraam ridavaanullaahee alaihi ajameen sarakaare aalee vakaar svalallaaho alaihi vasallam ko ya nabiyyallaah , ya rasoolallaah kah kar hee pukaarate the . 

muslim shareef kee hadees mein hai : ( jab sarakaare makke mukarrama hijarat farama kar madeene munavvarah , tashareef lae )

 phasidar rijaaloo van nisau phauuqal buyootee vat pharraqal gilamaanoo val khudamee phit turakee yunaadoona ya mohammadu ya rasoolallaahee ya mohammadu ya rasoolallaahee 

to mard aur auraten gharon kee chhaton par chadh gae aur bachche aur khuddaam raaston mein phail gae aur voh naare laga rahe the ya muhammad ya rasoolallaah , ya muhammad ya rasoolallaah . ( muslim shareeph kitaabuz zuhad varrakaiq baab phee hadeesil hijaratee sapha nambar 1228 hadees nambar 7522 )

 nabiye kareem , svalallaaho alaihi vasallam ne ek naabeena sahaabee ko dua taleem faramaee jis mein apane naame naamee isme giraamee ke saath lafje " ya " irshaad faramaaya :

 chunaanche hazarate sayyidana usmaan bin hunaif se rivaayat hai ki ek naabeena sahaabee nabiye kareem kee baaragaahe mein haazir hue aur arj kee : ( ya rasoolallaah svallallaaho alaihe vasallam ) 

allaah se dua keejiye ki voh mujhe aafiyyat de ( yanee meree beenaee lauta de ) , 

aap svalallaaho alaihi vasallam ne faramaaya : " agar too chaahe to dua karoon aur chaahe to sabr kar aur yeh tere liye behatar hai . " unhon ne arj kee : dua farama deejiye . 

aap svalallaaho alaihi vasallam ne unhen achchhee tarah vujoo karane aur do rakat namaaz padhane ka hukm diya aur faramaaya yah dua karana .

alla humma innee asaluka va atavajjahu bi muhammadee nabiyyir rahamatee ya muhammadu innee qad tavajjahatu bika ila rabbee phee haajatee lituqada alla humma phashaphphiahoo phiyya  

tarjuma :- yanee ai allaah ! main tujh se suvaal karata hoon aur teree taraf mu - tavajjeh hota hoon tere nabee muhammad svalallaaho alaihi vasallam ke jareee se jo nabiyye rahamat hain , 

ya rasoolallaah svallallaaho alaihe vasallam main aap ke jareee se apane rab kee taraf is haajat ke baare mein mu - tavajjeh hota hoon taaki meree yeh haajat pooree ho ,

 ai allaah in kee shaphaat mere haq mein kabool farama . ( ibne maaja kitaab akaamatus svalaat baab ma jaa phee svalaatil haajatee 156/2 hadees 1385 ) 

yaad rakhen.

hadeese paak mein " muhammad " hai magar is kee jagah " ya rasoolallaah " kahana chaahiye ki hujoore akdas svalallaaho alaihi vasallam ko naam le kar nida karana jaiz nahin . 

Ulama faramaate hain : agar rivaayat mein vaarid ho jab bhee tabdeel kar len . 

majeed taphseelaat jaanane ke liye aala hazarat imaame ahale sunnat imaam ahamad raza mohaddis barailavee ke fatawa razaviyya jild 30 mein maujood risaale " tajallil yakeena bianna nabiyyana sayyadil murasaleen " safa 156 se 157 ka muta - laa keejiye .


hazarate sayyidana usmaan bin hunaiph radi allaahu anhu faramaate hain : 

phavallaahi ma tapharraqana va tvaala binal hadeesu hatta dakhala alaiinar rajuloo kaannahu lam yakun bihee durrun kattu .

tarjuma:- khuda kee qasam ! ham uthane bhee na pae the aur na hee hamaaree guftgoo zyaada taveel huee thee

 ki voh hamaare paas aae , goya kabhee naabeena hee na hue . ( muajjame kabeer ma asanade usmaan bin haneeph 31/9 hadees 831 ) 

maaloom huva ki gairullaah ko lafje " ya " ke saath pukaarana shirk nahin.

 agar yah shirk hota to kuraan va hadees mein gairullaah ke saath lafje " ya " na aata aur khalk ke rahabar 

 shaaphee mahashar svalallaaho alaihi vasallam haragiz is kee taaleem irshaad na faramaate aur na hee sahaabe kiraam is par amal paira hote . 

gaiz mein jal jaen be deenon ke dil 

ya rasoolallaah kee kasarat keejiye 

( hadaike bakhshish ) 

lafje " ya " ke saath door vaalon ko pukaar sakate hain 

savaal :- kya lafje " ya " ke saath door vaalon ko bhee pukaar sakate hain ? neez voh door se sunate aur dekhate hain ya nahin ? 

javaab :- jee haan jis tarah lafje " ya " ke saath kareeb vaalon ko pukaar sakate hain aise hee door vaalon ko bhee pukaar sakate hain ,

 allaah kee ata se us ke maqabool bande door se sunate , dekhate aur haajat ravaee faramaate hain .

 hazarate sayyidana aboo huraira radi allaahu anhu se rivaayat hai ki rasoole akaram svalallaaho alaihi vasallam ne faramaaya ki allaah taaala faramaata hai : 

jo mere kisee valee se dushmanee kare , us se main ne ladaee ka elaan kar diya .

aur mera banda kisee shai se mera is qadar kurb haasil nahin karata jitana faraiz se karata hai .

aur mera banda navaafil ke jareee se hamesha kurb haasil karata rahata hai yahaan tak ki main use mahaboob bana leta hoon .

aur jab us se mahabbat karane lagata hoon to 

  1. main us ke kaan ban jaata hoon. jis se voh sunata hai 
  2. aur main us kee aankh ban jaata hoon jis se voh dekhata hai .
  3. aur us ka haath ban jaata hoon jis ke saath voh pakadata hai 
  4. aur us ka pair ban jaata hoon jis ke saath voh chalata hai .
  5. aur agar voh mujh se suawal kare to zaroor use doonga aur panaah maange to zaroor use panaah doonga . ( bukhaaree shareeph kitaabur rakaqa baab attavaaje 248/4 hadees 6502

hazarat sayyidana imaam fakharuddeen raajee rahamatullaah alaih faramaate hain : 

phaija svaara nooroo jalaalillaahi saman lahu samila qareeba val baeeda 

jab allaah ka noore jalaal bande mahaboob ke kaan ban jaata hai to voh door va nazdeek kee aavaaz sun leta hai ,

 va ija svaara jaalikan nooroo basaran lahu raal qareeba val baeeda .

aur jab us kee aankhen noore jalaal se munavvar ho jaatee hain to voh door va nadeek ko dekh leta hai , 

va ija svaara jaalikan nooroo yadan lahu qadara alat tasarruphi phis sabee vas sahali val baeedee val qareebee .

aur jab yahee noor bande mahaboob ke haathon mein jalva - gar hota hai to use mushkil va aasaan aur door va nadeek mein tasarruf karane kee kudarat haasil ho jaatee hai . ( tafseere kabeer paarah 15 tahatul aayat 7,12/ 436) 

hadeese paak mein hai : jab tum mein se kisee kee koee cheez gum ho jae ya tum mein se koee madad maangana chaahe 

aur voh aisee jagah ho jahaan us ka koee purasaane haal na ho to use chaahiye ki yoon kahe : 

" ya ibaadallaahee ageesoonee, ya ibaadallaahee ageesoonee

tarjuma:- ai allaah ke bando ! meree madad karo , ai allaah ke bando ! meree madad karo .

 allaah ke kuchh bande hain jinhen yah nahin dekhata ( voh us kee madad karenge ) ( kanjul ummaal,kitaabus saphar 3,6/300 hadees 17494 ) 

bade vafaat maqaboolaane baaragaah ko pukaar sakate hain ?

savaal :- kya bade vafaat bhee maqaboolaane baaragaah ko laphje " ya " ke saath pukaar sakate hain ? 

javaab :- jee haan bade vafaat bhee maqaboolaane baaragaah ko lafje " ya " ke saath pukaar sakate hain is mein koee muzaayaka nahin . 

allaah ke maqabool bandon kee shaan to bahut bulando baala hai aam murdo ko bhee bade vafaat lafje " ya " ke saath pukaara jaata hai .

aur voh sunate hain jaisa ki hadeese paak mein hai : 

huzoore akaram svalallaaho alaihi vasallam jab madeene munavvarah ke kabristaan mein tashareef le jaate to kabron kee taraf apana rukhe anvar kar ke yoon faramaate : 

assalaamu alaiikum ya ahalal qubooree yagaphirul laahu lana valakum anatum salaphuna va nahnu bil asari.

 tarjuma:- ai kabr vaalo ! tum par salaam ho allaah hamaaree aur tumhaaree magafirat faramae , 

tum log ham se pahale chale gae aur ham tumhaare baad aane vaale hain . ( tirmijee shareef kitaabuj janaez baab ma yakooloor rajuloo phil makabira 329/2 hadees 1055) 

is hadeese paak mein bade vafaat ahale kuboor ko lafje " ya " ke saath pukaara bhee gaya hai aur unhen salaam bhee kiya gaya hai.

salaam use kiya jaata hai jo sunata ho aur javaab bhee deta ho jaisa ki muphassire shaheer , hakeemul ummat hazarate muftee ahamad yaar khaan faramaate hain : kabristaan mein ja kar pahale salaam karana phir yeh arj karana sunnat hai ,

is ke bad ahale kuboor ko eesaale savaab kiya jae is se maaloom huva ki murde baahar vaalon ko dekhate pahachaanate hain aur un ka kalaam sunate hain .

varana unhen salaam jaiz na hota kyoon ki jo sunata na ho ya salaam ka javaab na de sakata ho use salaam karana jaiz nahin , dekho sone vaale aur namaaz padhane vaale ko salaam nahin kar sakate . ( miraatul manaajeeh , 2/524 , jiyaul kuraan pableekeshanz ) 

har namaz mein tashahud padhata hai aur nabiyye kareem svalallaaho alaihi vasallam kee baaragaahe akdas mein in alfaaz  assalaamu alaiika aiyuhan nabiyyu va rahamatullaahi va barakaatuhoo .ke saath salaam pesh karata hai. 

( yanee salaam ho aap par ai nabee aur allaah kee rahamaten aur ba - ra - katen . )

 is salaam mein pukaarana bhee hai aur aap svalallaaho alaihi vasallam ko mukhaatab karana bhee . 

aap svalallaaho alaihi vasallam kee hayaate zaahiree mein bhee door va najdeek se yah salaam aap kee baaragaahe aqdas mein pesh kiya jaata tha aur visaale zaahiree ke baad bhee pesh kiya ja raha hai aur ta qiyaamat pesh kiya jaata rahega . 

aap svalallaaho alaihi vasallam allaah kee ata se is salaam va pukaar ko sunate hain aur javaab bhee ata faramaate hain .

jaisa ki hazarate sayyidana shaikh yoosuf bin ismaeel nabahaanee  faramaate hain : baz auliya ne bataure karaamat apane kaul " assalaamu alaiika aiyuhan nabiyyu va rahamatullaahi va barakaatuhoo .

  ke javaab mein nabiyye kareem svalallaaho alaihi vasallam  ka javaab ata faramaana suna hai.

 aur yeh muhaal nahin hai kyoon ki allaah ne aap svalallaaho alaihi vasallam ko gaib par muttal faramaaya hai aur har us shakhs ka kalaam sunane kee taaqat ata faramaee hai .

jo door va nadeek se aap svalallaaho alaihi vasallam se mukhaatib hota hai .

aur allaah ko is baat mein bhee koee phark nahin ki yah kalaam sunana aap svalallaaho alaihi vasallam kee hayaate zaahiree mein ho ya visaale zaahiree ke bad . 

tahaqeeq yah baat durust hai ki aap svalallaaho alaihi vasallam apanee kabre anvar mein jinda hain . ( shavaahidul haq phasal phee rad ma manahu ibnul qayyim sapha 211 ) 

hanafiyyon ke ajeem peshava hazarat sayyidana allaama ali qaaree rahamatullaahi alaih faramaate hain : 

phala pharaka lahum phil haalini  valija keela auliya allaahi la yamootoona vala kin yanatakiloona min daarin ila daarin .

 

yanee ambiyae kiraam alaihissalaam kee donon haalaton yaanee ( zindagee aur maut ) mein koee phark nahin , 

isee liye kaha gaya hai ki allaah ke valee ( aur nabee ) marate nahin balki ek ghar se doosare ghar kee taraf muntakil ho jaate hain . ( mirakaatul maphaateeh kitaabus svalaat baab jumatu alaphasalis saalis 259/3 tahatul hadees 1366  ) 

jaahiree visaal se in nufoose qudasiya kee kuvvaten aur salaahiyyaten khatm nahin ho jaateen balki in mein majeed izaafa ho jaata hai.

 kyoon ki duniya mein to yah kaid mein the visaale zaahiree ke bad is kaid se aajaad ho jaate hain .

lihaaza in kee kuvvat mein bhee izaafa ho jaata hai jaisa ki hadeese paak mein hai :

 duniyaan momin ka kaidakhaana aur kaafir ke liye jannat hai ,

 jab momin mar jaata hai to us kee raah khol dee jaatee hai ki jahaan chaahe sair kare . ( kashaphul khapha haraphud daalul mahamilah 363/1  hadees 1316 ) 

hamaare peshava wa imaam aala hazarat , imaame ahale sunnat , mujaddide deeno millat maulaana shaah imaam ahamad raza khaan rahamatullaahi alaih faramaate hain :

 bad marane ke sama , basar , idaraak ( yanee dekhana , sunana aur samajhana ) aam logon ka yahaan tak ki kuphfaar ka zaid ho jaata hai .

aur yah tamaam ahale sunnat va jamaat ka ijmaee aqeeda hai . ( malphoozaate aala hazarat , sa . 363 )

door se dekhana aur sunana allaah kee sifat nahin 

savaal :- kya door se dekhana aur sunana allaah kee sifat nahin ? 

javaab :- door se dekhana aur sunana haragiz allaah kee sifat nahin kyoon ki 

door se to voh dekhata aur sunata hai jo pukaarane vaale se door ho.

 jab ki allaah , to apane bandon ke kareeb hai jaisa ki paarah 2 sooratul ba -karah kee aayat nambar 186 mein khudae rahamaan ka faramaane nishaan hai :

 va ija saalaka annee phinnee qareeb.

tarjuma kanzul imaan :- aur ai mahaboob jab tum se mere bande mujhe poochhe to main nadeek hoon .

 isee tarah paarah 26 soore kee aayat nambar 16 mein irshaade rabbul aalameen hai : 

va nahnoo aqarabu ilaihi min habalil vareed.

tarajum kanzul imaan : aur ham dil kee rag se bhee us se zyaada nadeek hain . 

jab allaah ilmo kudarat ke etibaar se apane bandon ke kareeb hai to phir door se dekhana aur sunana us kee sifat kaise ho sakatee hai !

 door se dekhane aur sunane ke vaaqiaat 

savaal :- maqaboolaane baaragaahe ilaahee ke door se dekhane , sunane aur tasarroofaat faramaane ke chand vaaqiaat hajarat maulaana gulam jilani razvi saahab bayaan farama deejiye . 

javaab :- allaah ne apane baraguzeeda bandon ko door se dekhane , sunane aur tasarroofaat karane kee taaqat ata faramaee hai lihaaja voh allaah kee ata se door se dekhate aur sunate aur tasarroofaat bhee faramaate hain.

 jaisa ki hazarate sayyidana abdullaah bin abbaas radi allaahu anhu se rivaayat hai ki

 nabiye kareem svalallaaho alaihi vasallam ke zamaane mubaarak mein suraj ko grahan laga , 

to aap svalallaaho alaihi vasallam ne namaaz padhee , ( dauraane namaaz haath badha kar kuchh lena chaaha lekin phir daste mubaarak neeche kar diya , namaaj ke bad )

 sahaabe kiraam ne arz kee : ya rasoolallaah svallallaaho alaihe vasallam ham ne dekha ki aap apanee jagah se kisee cheez ko pakad rahe the , 

phir ham ne dekha ki aap peechhe hate . 

aap svalallaaho alaihi vasallam ne irshaad faramaaya :

 innee ureetul jannata phatana valatu minha unkoodan valu akhajatuhoo laakalatum minhoo ma bakiyatit duniyaan .

tarjuma:- mujhe jannat dikhaee gaee to main us mein se ek khosha todane laga , 

agar main us khoshe ko tod leta to tum rahatee duniyaan tak us mein se khaate rahate . ( bukhaaree shareeph kitaabul azaan baab raphal basari ilal imaamee phis svalaat 265/1 hadees 748 )


 mufassire shaheer , hakeemul ummat hazarate mufti ahamad yaar khaan faramaate hain : 

is hadees se do masale maaloom hue : 

1. ek yah ki hujoor svalallaaho alaihi vasallam jannat aur vahaan ke phalon vagaira ke maalik hain ki khosha todane se rab ne man na kiya khud na toda , kyoon na ho ki rab taaala faramaata hai : 

inna aatvina kal kausar.

tarjuma kanzul imaan :- ai mahaboob beshak ham ne tumhen be shumaar khoobiyaan ata faramaee . (al kuraan paarah 30 soorah al kausar)

isee liye hujoor svalallaaho alaihi vasallam ne sahaaba ko kausar ka paanee baaraha pilaaya . 

2. doosara yah ki hujoor svalallaaho alaihi vasallam ko rab taaala ne voh taaqat dee hai ki madeene mein khade ho kar jannat mein haath daal sakate hain.

 aur vahaan tasarrufaat kar sakate hain , jin ka haath madeene se jannat mein pahunch sakata hai kya un ka haath ham jaise gunahagaaron kee dast - geeree ke vaasate nahin pahunch sakata.

 aur agar yah kaho ki jannat kareeb aa gaee thee to jannat aur vahaan kee nematen har jagah haazir huee .

 bahar haal is hadees se ya hujoor svalallaaho alaihi vasallam ko haazir maanana padega ya jannat ko . ( miraatul manaajeeh , 2/382 ) 

hadeese paak aur is kee sharah se vaajeh taur par yah baat saabit hotee hai ki hamaare pyaare sarakaar ,

 makke madeene ke taajadaar svalallaaho alaihi vasallam ne ba atae paravar dagaar zameen par khade ho kar saaton aasmaanon se bhee oopar jannat ko na sirf dekh liya.

 balki apana daste mubaarak bhee jannat ke khoshe tak pahuncha diya .

 sarakaar ke sadake mein sahaabe kiraam aur bujurgaane deen ko bhee door se dekhane , sunane aur tasarrufaat karane kee kuvvat haasil hai .

chunaanche hazarate sayyidana umar bin haaris radi allaahu anhu se rivaayat hai ki 

ameerul muamineen hazarate sayyidana umar faarooke aazam radi allaahu anhu ne hazarate sayyidana saariya ko islaamee lashkar ka sipahasaalaar bana kar nahaavand bheja.

 (nahaavand iran mein soobe aazar baeejaan ke pahaadee shaharon mein se hai aur madeene munavvarah se itana door hai ki ek maheena chal kar bhee aadamee vahaan nahin pahunch sakata .) 

aap radi allaahu anhu jihaad mein masaroof the , idhar madeene tayyiba mein ameerul muamineen hazarate sayyidana umar faarooke aajam radi allaahu anhu juma ka khutba farama rahe the .

yaka yak aap ne khutba chhod kar teen baar faramaaya : 

" ya saariyatul jabala.

yanee ai saariya ! pahaad kee taraf jao . " phir is ke baad khutba shuroo farama diya , bade namaaz hazarate sayyidana abdul rahamaan bin auf radi allaahu anhu ne is pukaar kee wajah darayaapht kee to aap radi allaahu anhu ne faramaaya : 

main ne musalmaanon ko dekha ki voh pahaad ke paas lad rahe hain.

 aur kuphphaar ne unhen aage peechhe se gher rakha hai , yah dekh kar mujh se jabt na ho saka aur main ne kah diya : 

" ya saariyatul jabala. 

yanee ai saariya ! pahaad kee taraf jao .

 is vaakya ke kuchh roz bad hazarate sayyidana saariya ka qaasid ek khat le kar aaya jis mein likha tha 

ki ham log juma ke din kuphphaar se lad rahe the aur kareeb tha ki ham haar jaate ki ain juma kee namaaz ke vakt ham ne kisee kee aavaaz sunee :

" ya saariyatul jabala. . yanee ai saariya !

 pahaad kee taraf jao .

 is aavaaz ko sun kar ham pahaad kee taraf chale gae to allaah ne kuphphaar ko shikast dee.

 ham ne unhen katl kar daala , is tarah hamen kaamayaabee haasil ho gaee . ( kanjul ummaal kitaabul phajaayal phajaayalus sahaaba phajaayale phaarook aazam 12, 256/6 ) 

hazarate sayyadana allaama afeephuddeen abdullaah yaaphee yamanee faramaate hain :

 is hadees shareef se ameerul muamineen hazarate sayyidana umar faarooke aazam kee do karaamaten zaahir huee :

 ( 1 ) aap ne madeena e munavvara se ( chaudah so ( 1400 ) meel door ) makaam nahaavand mein maujood lashkare islaam aur un ke dushman ko mula - haza farama liya aur 

( 2 ) madeene tayyiba se itanee door aavaaz pahuncha dee . ( raujur reyaaheen sapha 39 ) 

hazarate sayyidana shaikh aarif abul kaasim faramaate hain : 

ek marataba hazarat sayyidana shaikh abdul qadir jilai dauraane vaz istiraraaq kee haalat mein ho gae.

 yahaan tak ki aap ke imaame ka bal ( yanee pech ) khul gaya to tamaam haazireen ne bhee apane imaame aur topiyaan gause aazam kee kursee kee taraf phenk diye . 

jab aap vaz se faarig hue to apane imaame shareef ko durust faramaaya aur mujhe hukm diya ki aie abul kaasim

logon ko un ke imaame aur topiyaan de do . main ne sab logon ko un ke imaame aur topiyaan de dee lekin aakhir mein ek dupatta rah gaya.

main nahin jaanata tha ki yah kis ka hai ? 

haalaan ki majalis mein koee bhee aisa na bacha tha jis ka kuchh rah gaya ho . 

huzr gause aazam ne mujh se faramaaya : yah mujhe de do . 

main ne voh dopatta aap ko de diya . 

aap ne use apane kandhe par rakha to voh gaayab ho gaya . main hairaanagee se dam bakhud rah gaya .

 faramaaya : ai abul qaasim ! jab majalis mein logon ne apane imaame utaar diye to hamaaree ek bahan ne asbahaan se apana dupatta utaar kar phenk diya tha . 

phir jab main ne us dupatte ko apane shaanon par rakha to us ne asbahaan se apana haath badhaaya aur apane dupatte ko utha liya . ( bahajjatul asaraar sapha nambar 185 ) 

maaloom huva ki allaah ke nek aur baraguzeeda bande door se dekhate , sunate aur tasarruphaat bhee faramaate hain .

dekhiye ! aaj ke is tarakkee yaaphta daur mein saince technology ( mobail , redio aur TV vagaira ) ke jareee ek vakt ek hee lamhe mein duniyaan ke kone kone mein aavaaz aur tasveeren ko suna aur dekha bhee ja sakata hai . 

jab saince masheenon ke jareee yah sab kuchh ho sakata hai to roohaanee raabate ( conection ) ke jareee kyoon nahin ho sakata ?

 roohani raabata to sainsee raabate se zyaada taakat var ( powerfull ) hai . 

Since vaala door kee aavaaz aur photo suna aur dikha de to kisee ko vasvasa nahin aata .

aur allaah apanee ata se apane mahaboob bandon ko door kee aavaaz suna de to vasvase aane shuroo ho jaate hain .

 allaah hamen apane maqabool bandon kee mohabbat naseeb faramae .

aur in ke fazailo kamaalaat maanane kee taufeeq ata faramae . 

 qaseede noor ke ek sher kee tashareeh

 savaal :- aala hazarat ke is kalaam ya shaayaree mein " dil jal raha tha noor ka " se kya muraad jis ka asaar yah hai.


naariyon ka daur tha dil jal raha tha noor ka 

tum ko dekha ho gaya thanda kaleja noor ka 

javaab :- aala hazarat , imaame ahale sunnat , mujaddide deeno millat maulaana shaah imaam ahamad raza khaan ke is sher mein donon jagah " noor " se muraad deene islaam lee ja sakatee hai . 

matalab yah hai ki ailaane nabuvvat ke aagaaz mein naariyon ( yanee gair muslimon ) ka daur daura tha .

 har taraf jahaalat ka ghata top andhera chhaaya huva tha , kuphr va kuphphaar ka galaba dekh kar dine islaam kudh raha tha.

 phir noor ke paikar , tamaam nabiyon ke saravar ne apane noor kee kirane bikheree to kuphr va kuphphaar ka galaba khatm ho gaya , deene islaam kee roshanee har soo aam hone lagee.

 to sarakaar svalallaaho alaihi vasallam ko dekh kar deene islaam ka kaleja thanda ho gaya . 

noore khuda hai kuphr kee ha - ra - kat pe khanda zan 

phoonkon se yeh charaag bujhaaya na jaega

ambiya aur auliya ke name me lafaz,shabd,word "YA" Lagana kaisa hai padhe infomgm par mukammal tafsir mustanad dalil aour majboot hawalon ke roshni me

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