chaliswa in islam in hindi

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मरने के बाद लाभ पहुंचाने वाले जाइज़ काम।

हमारी ज़िन्दगी का समय सीमित है, हम चाहें या न चाहें एक दिन हमें मरना है, और मरने के बाद कब्र तंग और अंधेरी कोठरी में पहुंचना है।


 हमारे अमल का सिलसिला कट जाएगा मरते ही दुनियां से , आलमे बरज़ख में हम एक-एक अमल के मोहताज होंगे, चाहने के बावजूद भी कुछ न कर सकेंगे। 

इन्हें भी पढ़ें

(1)  मय्यत का खाना कौन खा सकता है  

(2) बिस्मिल्लाह का वजीफा तमाम काम के लिए

(3) नमाज़ ए गौसिया पढ़ने का तरीका हिन्दी में

लेकिन अल्लाह ने कुछ रिश्ता ऐसे रखे हैं जिनके जरिए कब्र में भी कुछ फायदा मिल सकता है। इन में खास तौर पर से दो चीज़ें हैं:

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मय्यत (मृतक) के पर्सनल काम (व्यक्तिगत कार्य):

यानी वे अच्छे काम जो मुर्दा (मृतक) ने अपने ज़िन्दगी में किए थे, जब तक कि लोग उन से फायदा उठाते रहेंगे, उनका सवाब मुर्दे को मिलता रहेगा जैसे :-

  1. इल्म (ज्ञान) है जिसे उसने सिखाया और उसे फैलाया। 
  2. उसी तरह सदक़ा जारिया, जैसे कुरआन मजीद की प्रतियां बांटी।
  3. मस्जिद बनवा दी।
  4. मुसाफिर खाना बनवा दिया।
  5. नहर खुदवा दी। 
  6. मदरसा बनवा दिया। 
  7. दावत के लिए ज़मीन डोनेट कर दी।
  8. मरीजो़ के लिए हास्पिटल , अस्पताल बनवा दी।
  9. रास्ते में चलने वालों के लिए पेड़ लगवा दी जिसमें राह चलते लोग उस पेड़ के साये मे रुक कर आराम कर सकें।
  10. किसी पढ़ने वाले को मदद कर देना जिससे उसकी पढ़ाई मुकम्मल हो सके, किसी गरीब बच्ची की शादी करा देना।

सही मुस्लिम की रिवायत है अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:- जब इन्सान मर जाता है तो उससे इसके अमल का सिलसिला कट जाता है, सिवाय तीन (3) चीज़ों के अमल का सिलसिला बाकी़ रहता है :- 

  1. सदक़ा जारिया 
  2. या वह इल्म (ज्ञान) जिससे फायदा उठाया जाए, 
  3. या नेक औलाद जो उसके लिए दुआ ए मगफिरत करे। 

ये सारे वे काम हैं जिनके फायदा मुर्दे को कब्र में मिलता रहता है। इस लिए हमें चाहिए कि मौत से पहले इस दुनियां में अपने लिए कुछ कर जाएं। 

कुछ सदका (डोनेट) कर दें, कुछ सदका जारिया कर जायें, कुछ समर्पित कर दें ताकि कब्र में उसका सवाब हमें मिलता रहे।

दूसरों के किए नेक काम :-

यानी मुर्दों (मृतकों) मय्यत के लिए किए गए दूसरों के कामों जिनसे मुर्दों, मय्यत को लाभ पहुंचता है। 

जिन में पहले दर्जे पर दुआ है। दुआ मुर्दे को सवाब पहुंचाने में बहुत खास मकाम रखती है।

  1.  मय्यत के जनाज़े की नमाज़ पढ़ते हुए उसके लिए दुआ करना, 
  2. मय्यत को कब्र में दफन करने के बाद कब्र के पास खड़े होकर दुआ करना,
  3.  कब्रिस्तान की यात्रा के समय मसनून दुआ करना, 
  4. बच्चों का माता पिता (वालदैन) के लिए दुआ करना, 
यह वह दुआएं हैं जिनका अज्रो सवाब मय्यत या मुर्दा को मिलता है।


सुनन इब्ने माजा की हदीस है, अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया कि जन्नत में एक शख्स का दर्जा ऊंचा किया जाता है तो वह हैरानी के साथ पूछता है :-

 मुझे यह दर्जा कैसे मिला? 

तो उससे कहा जाता है :- तेरे मरने के बाद तेरे लिए तेरी औलादों ने जो दुआ ए मग़फिरत की है उसके वज़ह से तुम्हारा दर्जा बुलंद किया गया है।


इसलिए हमें चाहिए कि हमारे वालदैन (माता पिता) अगर मर चुके हैं तो उनके लिए हम ज्यादा से ज्यादा दुआयें मगफिरत करते रहें।

दूसरे नंबर पर मय्यत का क़र्ज़ अदा करना

 (मृतक के ऋण का भुगतान): सही बुखारी की रिवायत है, अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया :-

نفس المومن معلقۃ بدینہ حتی یقضی عنہ

मोमिन की रूह उसके क़र्ज के वजह से लटकी रहती है, यहाँ तक कि उसकी ओर से वह क़र्ज का आदायेगी कर दिया जाए।

 यहाँ तक कि अगर पत्नी का महर अदा नहीं किया था तो यह पति के जिम्मे ( महर का क़र्ज़ की अदायगी )ऋण होता है।

जिसका भुगतान मौत के बाद भी आवश्यक है हां अगर पत्नी अपना अधिकार माफ कर देती है तो यह अलग बात है।


यहाँ पर इस प्वाइंट को भी समझना बहुत ज़्यादा ज़रूरी है कि कितने लोग शादी के समय महर तय कर लेते हैं, और उनकी नियत भी भुगतान करने की नहीं होती।

बल्कि कहीं-कहीं पर तो डर के वजह से महर का रकम बहुत ज्यादा होता है इस आशंका से कि ऐसा न हो कि बेटी को तलाक दे दे। 

मानो उनका मक़सद महर प्राप्त करना नहीं होता बल्कि खुशी और नाखुशी हर हालत में वैवाहिक रिश्ते को बांध कर रखना होता है, ऐसे सारे लोगों को इन हदीसे पाक पर विचार करना चाहिए:


सही अत्तरग़ीब वत्तरहीब की रिवायत है, अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: जो शख्स किसी औरत से अधिक या कम महर के बदले शादी करता है।

 लेकिन दिल में महर की अदायगी करने का इरादा नहीं रखता, तो वह उसे धोखा दे रहा है, और अगर महर अदा किए बिना मर गया तो वह क़यामत (महा प्रलय) के दिन अल्लाह के सामने दोषी व्यभिचारी व्यक्ति के रूप में पेश होगा।

और जिसने किसी से (ऋण) कर्ज लिया और उसका लौटने का इरादा न हो तो वह (ऋणदाता) कर्ज देने वाले को धोखा दे रहा है, यहां तक कि वह उस से अपना माल प्राप्त कर ले।

और अगर वह मर गया तो क़यामत के दिन एक चोर के रूप में अल्लाह की अदालत में पेश होगा।

उसी तरह यदि मय्यत पर रोज़ा फ़र्ज़ हों या नज़र का रोज़ा हो और उन्हें अदा किए बिना वह मर गया तो इस फर्ज़ या नज़र के रोज़े यदि घर वाले रखते हैं तो मुर्दे से वे रोज़ा फ़र्ज़ हों या नज़र का रोज़ा (अनिवार्य उपवास) माफ हो जाएंगे ।

और मुर्दे को इसका सवाब (पुण्य) मिलेगा। सही बुखारी और सही मुस्लिम की रिवायत है अल्लाह के पैगंबर हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया :-

من مات وعلیہ صیام صام عنہ ولیہ

जिस शख्स का इस हाल में मौत हो जाए कि इसके जिम्मे रोज़े हों, तो उसकी ओर से उसका अभिभावक रोज़ा रखेगा।


उसी तरह अगर मय्यत पर हज्ज फ़र्ज़ था और वह हज्ज किए बिना मर गया, तो उसकी तरफ से हज्ज किया जाएगा। 

सही बुखारी और सही मुस्लिम की रिवायत है अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से एक औरत ने पूछा था:-

 मेरी माँ हज्ज करने की नज़र मानी थी, लेकिन वह मरने तक हज्ज न कर सकी, मैं उसकी ओर से हज्ज कर सकती हूं? 

आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया :- तुम उसकी ओर से हज्ज करो, 

फिर कहा: ज़रा बताओ! अगर तुम्हारी माँ पर क़र्ज़ होता तो क्या तुम उसे अदा करती?

 अल्लाह के बन्दों का हक़ अदा करो, क्योंकि अल्लाह के बन्दे ज्यादा हकदार है कि उसका हक़ अदा किया जाए।


प्यारे दोस्तों! ये सारे वे काम हैं जिन्हें करके मुर्दे को सवाब पहुंचाना जाइज़ है। 

उनके अलावा बहुत सारे ऐसे काम हैं जिन्हें मुस्लिम समाज में मय्यत (मरहूमों) को सवाब पहुंचाने के लिए किया जाता है जैसे तीजा, दसवां, बीसवाँ, चालीसवां और बरसी वगैरह।

Mrne Ke Baad Labh Pahunchane Wale Jaiz Kaam,


Hamaara Life ka Time Limited Hai, Ham Chaahen Ya Na Chaahen Ek Din Hamen Mrna Hai, 

Aour Mrne Ke Baad Qabr Tang Aour Andheri Kothri mein Pahunchna Hai. 

 Hamare Amal Ka Silasila Kat Jayga Marte Hi Duniyan Se , Aalame Barzakh Me Ham Ek Ek  Amal ke mohataaj honge, Chaahane Ke Baawjood Bhi Kuchh Na Kar Sakenge. 

Lekin Allaah Ne Kuchh Rishta Aise Rakhe Hain Jin ke Jariye Qabr Mein Bhee Kuchh fayeda Mil Sakata Hai. 

in Mein khaas Taur Par Se Do Cheezen Hain:


murda (mrtak) ke parsanal kaam (vyaktigat kaary):


yaanee ve achchhe kaam jo murda (mrtak) ne apane zindagee mein kie the, 


jab tak ki log un se phaayada uthaate rahenge, unaka savaab murde ko milata rahega, 


jaise ilm (gyaan) hai jise usane sikhaaya aur use failaaya, 


usee tarah sadaqa jaariya, jaise quran majeed kee pratiyaan baantee, masjid banava dee, 


musaafir khaana banava diya, nahar khudava dee, madarasa banava diya, daavat ke lie zameen donet kar dee.


sahee muslim kee rivaayat hai allaah ke rasool sallallaahu alaihi va sallam ne pharamaaya:

 ” jab insaan mar jaata hai to usase isake amal ka silasila kat jaata hai, sivaay teen cheezon ke: 

  • sadaqa jariya 
  • ya wah ilm jis se fayeda uthaaya jaye, 
  • ya nek aulaad jo us ke liye Dua kare 

ye saare we kaam hain jin ke fayeda murde ko qabr mein milta rahta hai. 

is liye hamen chaahiye ki maut se pahle is duniya me apne liye kuchh kar jayen. kuchh donet kar den,

 kuchh sadaka jariya kar jaayen, kuchh samarpit kar den taaki kabr mein usaka savaab hamen milata rahe.

doosaron ke kie nek kaam:

yaanee murdon (mrtakon) ke lie kie gae doosaron ke kaamon jinase murdon ko laabh pahunchata hai. 

jin mein pahale sthaan par dua hai. dua murde ko savaab pahunchaane mein bahut khaas makaam rakhatee hai, 

mayyat ke janaaze kee namaaz padhate hue usake lie dua karana, 

mayyat ko kabr mein daphan karane ke baad kabr ke paas khade hokar dua karana,

 kabristaan kee yaatra ke samay masnoon dua karana, bachchon ka maata pita (vaaladain) ke lie dua karana, 

yah vah duaen hain jinaka ajro savaab murde ko milata hai.


sunan ibne maaja kee hadees hai, allaah ke rasool sallallaahu alaihi va sallam ne farmaya

 ki jannat mein ek shakhs ka darja ooncha kiya jaata hai to vah hairaanee ke saath poochhata hai: mujhe yah darja kaise mila? 

to usase kaha jaata hai: tere marane ke baad tere lie teree aulaadon ne jo dua e magafirat kee hai usake vazah se tumhaara darja buland kiya gaya hai.


isalie hamen chaahie ki hamaare vaaladain (maata pita) agar mar chuke hain to unake lie ham jyaada se jyaada duaayen magaphirat karate rahen.


doosare nambar par mayyat ka qarz ada karana (mrtak ke rn ka bhugataan): sahee bukhaaree kee rivaayat hai, allaah ke rasool hazarat muhammad sallallaahu alaihi va sallam ne pharamaaya:


نفس المومن معلقۃ بدینہ حتی یقضی عنہ

“momin kee rooh usake karj ke vajah se latakee rahatee hai, yahaan tak ki usakee or se vah karj ka bhugataan kar diya jae.


 yahaan tak ki yadi patnee ka mahar ada nahin kiya tha to yah pati ke jimme ( mahar ka qarz kee adaayagee ) hota hai jisaka bhugataan maut ke baad bhee aavashyak hai, 

haan agar patnee apana adhikaar maaph kar detee hai to yah alag baat hai.


yahaan par is pvaint ko bhee samajhana bahut zyaada zarooree hai ki kitane log shaadee ke samay mahar tay kar lete hain, 

aur unakee niyat bhee bhugataan karane kee nahin hotee, balki kaheen-kaheen par to dar ke vajah se mahar ka rakam bahut jyaada hota hai is aashanka se ki aisa na ho ki betee ko talaak de de. 

maano unaka maqasad mahar praapt karana nahin hota balki khushee aur naakhushee har haalat mein vaivaahik rishte ko baandh kar rakhana hota hai,

 aise saare logon ko in hadeese paak par vichaar karana chaahie:


sahee attarageeb vattaraheeb kee rivaayat hai, allaah ke rasool sallallaahu alaihi va sallam ne farmaya: 

jo shakhs kisee aurat se adhik ya kam mahar ke badale shaadee karata hai,

 lekin dil mein mahar kee adaayagee karane ka iraada nahin rakhata, to vah use dhokha de raha hai, 

Aur Agar Mahar Ada Kiye Bina Mar Gaya To Wah Qayamat (Maha Pralay) Ke Din Allaah Ke Saamne Doshi vyakti ke Roop Mein Pesh Joga,

 aur jisane kisee se  Qarz liya aur us ka lautane ka iraada na ho to wah Qarz dene waale ko dhokha de raha hai, 

yahaan tak ​​ki vah us se apana maal praapt kar le, aur agar wah mar gaya to Qayamat ke din ek chor ke roop mein allaah kee adaalat mein pesh hoga.


usee tarah yadi mayyat par roza farz hon ya nazar ka roza ho aur unhen ada kiye bina wah mar gaya to is farz ya nazar ke roze yadi ghar waale rakhte hain to murde se wah roza farz hon ya nazar ka roza maaf ho jaenge 

aur murde ko is ka sawab (puny) milega. 

sahee bukhaaree aur sahee muslim kee rivaayat hai allaah ke paigambar hazrat muhammad sallallaahu alaihi wasallam ne farmaya:

من مات وعلیہ صیام صام عنہ ولیہ


jis shakhs ka is haal mein maut ho jae ki isake jimme roze hon, to usakee or se us ka abhi bhaavak roza rakhega.


usee tarah yadi mayyat par hajj farz tha aur vah hajj kie bina mar gaya, 

to usakee taraph se hajj kiya jaega. 

sahee bukhaaree aur sahee muslim kee rivaayat hai allaah ke rasool sallallaahu alaihi va sallam se ek aurat ne poochha tha: 

meree maan hajj karane kee nazar maanee thee,

 lekin vah marane tak hajj na kar sakee, main usakee or se hajj kar sakatee hoon? 

aap sallallaahu alaihi va sallam ne farmaya:

 tum us ki taraf se hajj karo, Fir kaha: zara batao! 

agar tumhaaree maan par qarz hota to kya tum use ada karatee?

 allaah ka haq ada karo,

 kyonki allaah jyaada hakadaar hai ki usaka haq ada kiya jae”.


pyaare doston! ye saare ve kaam hain jinhen karake murde ko savaab pahunchaana jaiz hai.

 unake alaava bahut saare aise kaam hain jinhen muslim samaaj mein mayyat (marahoomon) ko savaab pahunchaane ke lie kiya jaata hai jaise teeja,

 dasavaan, beesavaan, chaaleesavaan aur barasee vagairah.

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