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Maiyyat Ka Khana Khana Kaisa Hai?
तीजा दसवां बीसवां चालीसवां छमछी बरसी के मय्यत का खाना खिलाने का मसला
7 वा 10 वा 20 वा 30 वा चेहलुम बरसी के खाने के मुताल्लिक आलाहजरत अलैहिर्रहमा का फतवा
सवाल :- मरहूम के ईसाले सवाब के लिये जो खाना बनाते हैं वह खाना ग़रीब के अलावा मालदार लोग भी खा सकते हैं या नहीं ? और जो मेहमान आते हैं उन्हें खिलाना चाहिये या नहीं ?
जवाब :- मैय्यत के नाम पर मैय्यत वालों की तरफ़ से आम और ख़ास सब लोगो को दावत देकर खिलाना नाजाईज़ और बुरी बिद - अत है । क्यूं कि शरीअत ने दावत ख़ुशी में रखी है ना कि ग़म में ।
( फ़तावा आलमगीरी : जिल्द 1 , पेज 167 फ़त् - हुल बारी : जिल्द 2 , पेज 142 तह्तावी + मराक़िल फ़लाह : जिल्द 1 , पेज 617 दुर्रे मुख़्तार + रद्दुल मोह्तार : जिल्द 2 , पेज 240 )
इमामे अहले सुन्नत आलाहज़रत मौलाना अहमद रज़ा रहमतुल्लाहि अलैहि फ़रमाते हैं : मुर्दे का खाना सिर्फ़ फ़ुक़रा ( यानी जो साहिबे निसाब ना हों ) उन के लिये होना चाहिये , आम दावत के तौर पर जो करते हैं ये मना है, ग़नी ( साहिबे निसाब ) ना खाये । ( फ़तावा रज़विया : जिल्द 9 , पेज 536 )
Maiyyat Ka Khana Khana Kaisa Hai? |
और एक जगह इमामे अहले सुन्नत आलाहज़रत मौलाना अहमद रज़ा रहमतुल्लाहि अलैहि फ़रमाते हैं :- मैय्यत के यहां जो लोग जमा होते हैं , और उनकी दावत की जाती है , ये खाना हर तरह मना है (फ़तावा रज़विया : जिल्द 9 , पेज 673)
और फ़रमाते हैं सरकार आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मोहद्दिस बरैलवी :- मैय्यत की दावत बिरादरी केलिये मना है । (फ़तावा रज़विया : जिल्द 9 , पेज 609)
इस पर इमामे अहले सुन्नत आलाहज़रत मौलाना अहमद रज़ा रहमतुल्लाहि अलैहि फ़रमाते हैं :- तीजे , 10 वें , 20 वें , 40 वें वग़ैरा का खाना मिस्कीनों को दिया जाये , बिरादरी में बांटना या बिरादरी को इकट्ठा करके खिलाना बे मतलब है । (फ़तावा रज़विया : जिल्द 9 , पेज 667 )
सदरुश्शरीआ हज़रत अल्लामा अमजद अली आज़मी रहमतुल्लाहि अलैहि फ़रमाते हैं :- आम मैय्यत का खाना सिर्फ़ फ़ुक़रा ( ग़ैर साहिबे निसाब ) को खिलायें , और बिरादरी में अगर कुछ लोग जो साहिबे निसाब ना हों उन भी खिला सकते हैं , और अपने रिश्तेदारों में अगर ऐसे लोग हों तो उनको खिलाना औरो से बेहतर है , और जो साहिबे निसाब हों उनको ना खिलायें , बल्कि ऐसे लोगो को खाना भी ना चाहिये । ( फ़तावा अमजदिया : जिल्द 1 , पेज 337)
हज़रत मुफ़्ती शरीफ़ुल हक़्क़ अमजदी रहमतुल्लाहि अलैहि फ़रमाते हैं :- कुछ जगह यह रिवाज है कि मैय्यत के खाने को बिरादरी अपना हक़्क़ समझती है , अगर ना खिलायें तो ऐब लगाते और ताना देते हैं , ये ज़रूर बुरी बिदअत है , लेकिन अगर मैय्यत को सवाब पहुंचाने के लिये खाना पकवा कर ग़रीब मुसलमानों को खिलायें , तो इसमे हरज नहीं , यह खाना अगर आम मुसलमानो में से किसी को सवाब पहुंचाने के लिये है तो मालदारों ( साहिबे निसाब लोगो ) को खाना मना है ।
और फ़ुक़रा ( ग़ैर साहिबे निसाब लोगो ) को जाइज़ , और अगर बुज़ुर्गाने दीन को सवाब पहुंचाने केलिये है तो अमीर ब सबको खाना जाईज़ है । ( फ़तावा अमजदिया : जिल्द 1 , पेज 337)
और इसी लिये जिस सूरत में दावत नाजाईज़ है , वोह नाजाईज़ ही रहेगी , चाहे मैय्यत की दावत कही जाये या सिर्फ़ दावत बोलकर खिलायी जाये।
और मना होने की बुनियद फ़ातिहा नहीं है , कि फ़ुक़रा का खाना अलग फ़ातिहा करने और बाक़ी लोगो का अलग बग़ैर फ़ातिहा करने से खराबी दूर हो जायेगी ।
मुसलमानों पर लाज़िम है कि इस ग़लत रिवाज को ख़त्म करें , जिस चीज़ का नाजाईज़ होना साबित हो जाये उसके बावजूद अगर उसको करेगा तो वोह गुनहगार है । ( फ़तावा फ़ैज़ुर्रसूल : जिल्द 1 , पेज 657 से 662 तक का ख़ुलासा )
आलाहज़रत इमाम ए अहमद रज़ा मोहद्दिस बरैलवी फरमाते हैं :- तजुरबे की बात है कि जो लोग मैय्यत के तीजे , 10 वे , 20 वे , 40 वे बरसी वग़ैरा के खाने के तलब - गार और शौक़ीन रहते हैं उनका दिल मुर्दा हो जाता है ।
अल्लाह की याद और इबादत के लिये उनके अंदर वोह चुस्ती नहीं रह जाती , क्यूंकि वो अपने पेट के लुकमे के लिये मुसलमान की मौत के इंतेज़ार में रहते हैं , और खाना खाते वक़्त अपनी मौत से बे ख़बर होकर खाने के मज़े में खोये रहते हैं । (फ़तावा रज़विया : जिल्द 9 , पेज 667 )
सबसे पहले कोशिश करें कि आप मय्यत के खाने से बचें अगर आप साहिबे निसाब हैं तो लेकिन आज कल बहुत सारी गलतफहमियां पैदा हो गई है की कुछ बेवकूफ लोग जो नामो नुमूद के बहुत जानकार बनते फिरते हैं ।
उन लोगों का कहना है कि मय्यत के खाने मे फातिहा दी गई किसी आलिम या गैर ए उल्मा से लेकिन अगर उस खाना को उल्मा तनावुल फरमा ले तो कुछ लोग उसके पीछे नमाज़ पढ़ने से कतराते हैं।
उनकी नज़र में वो शख्स आलिम ही नहीं है जो मय्यत का खाना तनावुल फरमा ले इसके लिए एक बेहतरीन फतवा आप सब लोगों के सामने हाज़िर है और ये फतवा देने वाले शख्स कोई छोटा मोटा मुफ्ती नहीं।
बल्कि वक्त का बेहतरीन इदारा जिसे दुनिया ए सुन्नियत अल जामिअतुल अशरफिया मुबारक पुर के नाम से जानती और पहचानती है जिसके बानी हुज़ूर हाफिजे़ मिल्लत हैं।
जो मोहताजे तआरुफ नहीं है उस एदारा के मुफ्ती साहेबान का फतवा मुलाहिजा फरमाएं और वीडियो देखिए मुफ्ती साहब का जिसमें अगनिया के हवाले से फतवा दे रहे हैं।
सवाल :- क्या तीजा दसवां चालीसवां की फातिहा के लिए लोगों को खबर दी जाती है। की बाद नमाज़ ए अस्र फातिहा है और कुछ लोग मिल कर फातिहा दिला देते हैं और बाकी लोग जिसमें अगनिया (अमीर लोग) भी शामिल होते हैं रात में पहुंच कर खाना खाते हैं तो क्या ऐसा करना जायज़ है?
अल जवाब :- मुफ्ती निज़ामुद्दीन दारुल उलूम अल जामियातुल अशरफिया मुबारक पुर।
हां इसमें कोई हरज नहीं है नाजायज़ नहीं है इसाले सवाब के लिए जो खाना पकाया जाये और उसमें नामों नुमूद और रियाकारी ना हो सिर्फ मक़सद ईसाले सवाब हो कोई नामवरी और शोहरत मक़सूद ना हो तो ये खाना हलाल है।
और उसको खिलाना एक सदका़ है सदका़ ए नाफिला
सदका़ ए नाफिला का खाना सबके लिए जायज़ है क्या फ़कीर और क्या अमीर क्या ग़नी और क्या बादशाह क्या आवाम और क्या उल्मा और क्या गैर ए उल्मा सबके लिए इजाज़त है।
बुखारी शरीफ की हदीस में है की तुम अपनी बीवी के मुंह में जो लुक्मा डालोगे उसमें भी अज्र है। अपने बीवी के ख़र्चा नफका़ अपने ऊपर वाजिब है मगर सुन्नत अदा करने के लिए अपने बीवी के मुंह में जो लुक्मा डालोगे ये भी सदका़ है।
और इस पर भी तुम को अज्र मिलेगा वजह क्या है कि सदका़ ए नाफिला और सदका़ ए नाफिला पर अज्र मिलता है ।
इसाले सवाब का खाना सदका़ ए नाफिला है अमीर को खिलाओ तो भी सदका़ ए नाफिला और फकीर को खिलाओ तो भी सदका़ ए नाफिला आलिम को खिलाओ तो भी सदका़ ए नाफिला गैरे आलिम को खिलाओ तो भी सदका़ ए नाफिला तो इसलिए सवाब तो मिलना है।
फर्क ये है कि फ़कीरों को खिलायेंगे तो सवाब ज्यादा है अमीरों और मालदारों को खिलायेंगे तो सवाब कम है।
इसलिए बताया यह जाता है अफ़ज़ल ये है बेहतर ये है की फकीरों को खिलाया जाये मक़सद सवाब है तो सवाब ज्यादा मिलेगा और मय्यत को ज्यादा से ज्यादा सवाब पहुंचेगा।
लेकिन अमीरों को भी खाना खिलाना जायज़ है क्योंकि इसमें भी सवाब है और इसका सवाब भी मय्यत को पहुंचेगा।
इसलिए इसको नाजायज ना कहा जाये नाजायज ना समझा जाये ये भी जायज़ वो भी जायज़ ।
अलबत्ता अफ़ज़ल ये है सिर्फ फुकरा को खिलाया जाये उसमें सवाब ज्यादा है तो मय्यत को फायदा ज्यादा है।
और कहते हैं आम्मुल मय्यतुल कब्र में की मय्यत का खाना दिल को मुर्दा कर देता है तो फिर इसका क्या मतलब है?
मै भी सोंचता था कि हमारे यहां एक कम अक्ल आदमी रहता है मुबारकपुर में तो जब कोई बीमार हो जाता है तो जाता है देखने के लिए और पूंछता है कि किसी से कब मरिहां ।
यानी कब मरेगा तो मैंने पूछा क्यों पूंछता है ये तो बताया लोगों ने इसलिए पूंछता है कि मर जायेगा तब खाना पकेगा हम भी खांयेंगे।
तो मुझे इस हदीस ए पाक का मतलब समझ में आ गया कि जो इस इन्तज़ार में रहता है कि कोई मरे तो खाना खाने को मिले तो उसका दिल मुर्दा हो जाता है।
और जिसका दिल मुर्दा हो जाता है वही किसी मुसलमान के मरने का इन्तज़ार करता रहता है।
और यूं किसी का इन्तेकाल हो जाये और हमारे बस में नहीं है और उसके ईसाले सवाब के लिए खाना पकाया जाये तो उसके खाने से दिल मुर्दा नहीं होता है
Mufti nizamuddin misbahi aljamiatul ashrafiya mubarak pur fatwa
Tija, Daswan, Biswaan, Chaliswan, Chamachhi, Barsi, ke mayyat ka khana khilane ka masala
7 va 10 va 20 va 30 va chehalum barasee ke khaane ke mutaallik aalaahajarat alaihirrahama ka phatava
savaal : - marahoom ke eesaale savaab ke liye jo khaana banaate hain vah khaana gareeb ke alaava maaladaar log bhee kha sakate hain ya nahin ? aur jo mahamaan aate hain unhen khilaana chaahiye ya nahin ?
javaab : - maiyat ke naam par maiyat vaalon kee taraf se aam aur khaas sab logo ko daavat dekar khilaana na jaeez aur buree bid - at hai , kyoonki shareeat ne daavat khushee mein rakhee hai na ki gam mein . ( fataava aalamageeree : jild 1 , pej 167 fat - hul baaree : jild 2 , pej 142 tahtaavee + maraaqil falaah : jild 1 , pej 617 durre mukhtaar + raddul mohtaar : jild 2 , pej 240 )
imaame ahale sunnat aalaahazarat maulaana ahamad raza rahamatullaahi alaihi faramaate hain : murde ka khaana sirf fu - qara ( yaanee jo saahibe nisaab na hon , un ) ke liye hona chaahiye ,
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( fataava razaviya : jild 9 , pej 536 )
aur ek jagah imaame ahale sunnat aalaahazarat maulaana ahamad raza rahamatullaahi alaihi faramaate hain : " maiyyat ke yahaan jo log jama hote hain , aur unakee daavat kee jaatee hai , ye khaana har tarah mana hai .
(fataava razaviya : jild 9 , pej 673 ) aur faramaate hain : " maiyat kee daavat biraadaree keliye mana hai . ftaava razaviya : jild 9 , pej 609)
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(fataava razaviya : jild 9 , pej 667 )
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balki aise logo ko khaana bhee na chaahiye . ( fataava amajadiya : jild 1 , pej 337)
hazarat muftee shareeful haqq amajadee rahamatullaahi alaihi faramaate hain : " kuchh jagah yeh rivaaj hai ki maiyyat ke khaane ko biraadaree apana haqq samajhatee hai ,
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aur fu - qara ( gair saahibe nisaab logo ) ko jaiz , aur agar buzurgaane deen ko savaab pahunchaane keliye hai to ameer ba sabako khaana jaeez hai . ( fataava amajadiya : jild 1 , pej 337)
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( fataava faizurrasool : jild 1 , pej 657 se 662 tak ka khulaasa )
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(fataava razaviya : jild 9 , pej 667 )
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